Saturday, August 27, 2011

भारतीय होने का गर्व -----------------


न्ना के आगे केन्द्र सरकार नतमस्तक हो गयी। एक दो को छोड़ संपूर्ण विपक्ष अन्ना के साथ हो लिया। पूरे देश की निगाहें आज संसद और रामलीला मैदान में गड़ गयी थी। हुआ वहीं, जो देश चाहता था। इस देश में कई आंदोलन हुए, एक आंदोलन गांधी ने किया था। दूसरा आंदोलन जयप्रकाश नारायण ने किया और तीसरा आंदोलन अन्ना हजारे का देखने को मिला। गांधी और गांधी के आंदोलन को मैंने नहीं देखा, जब जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन छेडा था, उस वक्त मेरी उम्र सात साल की थी, पर 1977 के लोकसभा चुनाव में, मैं दस साल का हो गया था, और उस वक्त एक छोटे से डंडे में चक्रबीच हल लिये किसान का झंडा लेकर, खूब इधर – उधर घूमा था। लोग बताते हैं कि उस वक्त भी भ्रष्टाचार ही मुद्दा था, जिसमें जयप्रकाश का ये आंदोलन सफल हुआ। उस वक्त से लेकर आज तक 37 साल हो गये। बहुत सारे आज के युवा तो न तो गांधी और न ही जयप्रकाश के आंदोलन को ही देखा हैं, ऐसे में जिन्होंने अन्ना के इस आंदोलन को देखा होगा। उन्हें अनुभुति हो गयी होगी कि सद्चरित्र, सत्याग्रह और अहिंसा में कितनी ताकत होती हैं।
दिल्ली का रामलीला मैदान जहां 4 जून को रामदेव भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद करते है। केन्द्र सरकार, थोड़ी ढिलाई बरतती हैं, पर वे थोड़ा और उग्र होते हैं, पर जैसे ही केन्द्र उनको अपनी औकात दिखाती हैं तो वे दिल्ली के रामलीला मैदान से महिलाओं की पोशाक पहन कर भागते हैं। उसके बाद उनके बालकृष्ण और उनकी संस्थाओं पर क्या – क्या दाग लगते हैं, सभी को पता हैं। ठीक दुसरी ओर रामदेव की आंदोलन को हवा निकालनेवाली कांग्रेस, जब अन्ना के आंदोलन की हवा निकालने की बात करती हैं, तो अन्ना बड़े ही शांत स्वभाव से चुनौती देते हैं कि बताओ उनमें कौन कौन सा दाग हैं, हालांकि कांग्रेस के नेता मणीष तिवारी और सुबोधकांत सहाय जैसे लोग घटिया स्तर की बात करने से नहीं चूकते। कांग्रेस से संबंध रखनेवाले तो इंटरनेट पर अन्ना हजारे के मान मर्दन करने से भी नहीं चूकते, पर जब उन्हें पता लगता है कि अन्ना के साथ जनता हैं तो वे धीरे – धीरे बैकफुट पर आते नजर आते हैं। बैकफूट भी ऐसा कि आज 27 जुलाई एक ऐतिहासिक दिन बन गया। केन्द्र ने संसद में लोकपाल विधेयक पारित करा दिये। प्रधानमंत्री का पत्र लेकर विलासराव देशमुख, दिल्ली के रामलीला मैदान पहुंचे और अन्ना ने अपना अनशन तोड़ने की घोषणा कर दी।
कमाल हैं कि पहला ऐसा आंदोलन देखने को मिला, जहां शांतिपूर्ण ढंग से जनता आंदोलित थी। कहीं कोई हिंसक घटनाएं नहीं। सभी अन्ना – अन्ना रट रहे हैं। एक नारा तो इस दौरान गजब लगा – मैं अन्ना हूं। सचमुच पूरे देश और विश्व ने इस दौरान देखा कि बिना किसी हिंसा और किसी शोर-शराबे के भी जीत दर्ज की जा सकती हैं।
सचमुच आज गांधी जीवित थे --------- अन्ना के आंदोलन के रुप में। जिन्होंने गांधी जी को नहीं देखा, वो शायद अन्ना को देख लें। मैं एक नहीं कई बार कहा हूं, कि जिसके पास चरित्र होता हैं, वहीं आंदोलन खड़ा करता हैं। इसमें एक बात और कि धन की चाहत रखनेवाला व्यक्ति कभी भी आंदोलन नहीं खड़ा कर सकता, ये अटल सत्य हैं, हमारे पुराण और स्मृतियां इसके प्रमाण हैं।
अन्ना के आंदोलन और उसकी जीत पर हर भारतीयों को गर्व हैं, एक प्रकार से संपूर्ण विश्व को एक संदेश की देखों भारत में कैसे सरकार एक सामान्य जनता के आगे झूक जाती हैं। ये संदेश नक्सलियों को भी कि तुम बार-बार हिंसा फैलाते हो, पर कोई आंदोलन खड़ा नहीं कर सके और न व्यवस्था बदल सकें पर देखों की, एक सामान्य व्यक्ति ने कैसे अपनी जीत सुनिश्चित कर ली। वह भी बिना किसी हिंसा और शोर शराबे के।
एक सबक उन नेताओं को भी, कि जो बार-बार इस आंदोलन के पीछे आरएसएस और भाजपा का हाथ बताया करते थे, आज अपने ही इस बयान पर शर्मसार और अऩ्ना नाम केवलम् मंत्र का जप कर रहे थे।
क्या पूरे विश्व में आप कोई ऐसा देश का नाम बता सकते हैं कि जहां इस प्रकार से आंदोलन चला हो। जहां कोई हिंसा न हुआ हो। लोग 12 दिनों से एक रामलीला मैदान में जमकर, एक 74 व्यक्ति के साथ एकजूटता प्रदर्शित कर रहे हो। नहीं न। तो बस याद रखिये, अपने देश में ऐसा हुआ हैं। आज का दिन ऐतिहासिक हैं भारत की 121 करोड़ आबादी के लिए, क्योंकि उनके सामने एक अनोखी घटना घटी हैं। जो ऐतिहासिक, रोमांचित और पूरे विश्व में भारत के लोकतंत्र की विजयगाथा की कहानी गढ़ रही हैं। आज की घटना से हमें दृढ़ विश्वास हो चला हैं कि 21 वीं सदी भारत का हैं। बस यहां के युवाओं को इसी तरह भारत के आदर्शों पर चलने की सिर्फ जरुरत हैं।

Wednesday, August 24, 2011

झुकती है दुनिया, झुकानेवाला चाहिए------ अन्ना, मीडिया और केन्द्र सरकार !

कल तक भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं था, पर आज भ्रष्टाचार मुद्दा है। भ्रष्टाचार पर संसद के अंदर और संसद के बाहर बहस हो रही हैं। होना भी चाहिए क्योंकि इस भ्रष्टाचार ने भारत की प्रगति और उसके सपनों को प्रभावित किया है, और हमें ये कहने में कोई दिक्कत नहीं हो रही कि इसके लिए गर कोई दोषी है तो वह है – केन्द्र सरकार, और खुलकर बोले तो – कांग्रेस सरकार। इसी सरकार ने भ्रष्टाचार के बीज बोए, जो आज विशाल वटवृक्ष बनकर देश को सुरसा की तरह निगलता जा रहा हैं।आश्चर्य इस बात की हैं कि ये सरकार अपने किये पर पछतावा भी नहीं करती, बल्कि ठीक उसके उलट भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़नेवालों को ही सबक सीखा देती हैं। उदाहरण एक नहीं अनेक हैं। आगे लिखने के पहले मैं एक बार फिर कह देना चाहता हूं कि जो फिलहाल भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे है, या टीवी के माध्यम से जो भीड़ दिखाई पड़ रही हैं, वे सभी दुध के धूले हुए होंगे – ऐसा नहीं हैं, पर जनता के अंदर ही जनार्दन (ईश्वर) हैं इसलिए जनता के खिलाफ बोलना अपराध हैं, साथ ही जो केन्द्र में बैठे नेता ये बयान देते हैं कि संसद सर्वोच्च हैं और जो निर्णय लिये जायेंगे वो संसद के माध्यम से ही निर्णय लिये जायेंगे। तो शायद उन्हें ये पता नहीं कि जो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं, वे संसद की गरिमा पर सवाल न उठाकर वहां बैठे उन भ्रष्ट लोगों के खिलाफ अंगूली उठा रहे हैं, जिन्होंने संसद में शपथ लेने के बाद भी भ्रष्टाचार के रिकार्ड बनाये है।कमाल हैं आम जनता महंगाई से पीस रही हैं। हास्पीटल में उसका समुचित इलाज नहीं हो पा रहा। उनके बच्चे अच्छी पढ़ाई से वंचित हो रहे हैं। ए ग्रेड की नौकरियों से आम जनता गायब हैं। पर इन नेताओं को देखिये – महंगाई का इनके उपर कोई असर ही नहीं पड़ता, ये गर बीमार पड़े तो इलाज के लिए अमरीका, ब्रिटेन और फिर स्वास्थ्य लाभ के लिए स्विटजरलैंड का दौरा करेंगे। अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए विदेश भेजेंगे और ये बच्चे जब वहां से लौटेंगे तो इन्हें ए ग्रेड की नौकरी थमवायेंगे और जब कुछ नहीं हुआ तो नेता का पद खाली हैं ही। जिंदा रहे तो बहुत सारे चांस हैं, नहीं तो मरने पर बेटे अथवा बेटियों का स्थान सुरक्षित हैं ही। जिस देश में इस प्रकार के सिद्धांत प्रतिपादित होते हो, वहां भ्रष्टाचार नहीं फलेगा फूलेगा तो और क्या फलेगा फूलेगा।मेरा आज भी मानना हैं कि इस देश को गर खतरा हैं तो वह हैं – चरित्रहीनों से। इस देश में चरित्रहीनों की संख्या बढ़ती जा रही हैं, और चरित्रवानों की संख्या घटती जा रही हैं, ठीक उसी तरह जैसे भारत से जंगलों और उसमें रहनेवालों सिहों की संख्या प्रभावित हो रही हैं। जब भी किसी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद की, कि सत्ता में बैठे भ्रष्ट दलालों ने, ऐसा ताना बाना बुना कि वह व्यक्ति अपने सम्मान को बचाने के लिए, सदा के लिए अपना मुंह ही बंद कर लिया, पर इस देश में जब भी किसी चरित्रवान ने सत्ता के दलालों को भ्रष्टाचार के खिलाफ चुनौती दी, सत्ता भड़भड़ाकर, उस व्यक्ति के चरणों के आगे नतमस्तक हो गयी। उसका उदाहरण – अन्ना के रुप में सामने हैं।अन्ना क्या है, अन्ना ऐसा क्यूं कर रहे हैं, अन्ना को किसने ऐसा करने को कहा। इन सवालों के जवाब देने में मैं असमर्थ हूं। पर शायद भारत की जनता को लग रहा हैं कि इस व्यक्ति ने जो सवाल उठाये हैं – देशहित में हैं। इसे सत्ता का लोभ भी नहीं। इसलिए इसका समर्थन करना चाहिए। आज बड़ी संख्या में जनता इनके साथ है और जहां जनता होती हैं, जीत उसी की होती हैं, शायद केन्द्र की सरकार को इसका भान नहीं हैं। तभी तो भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने की बात करनेवाले अन्ना के आंदोलन को कुचलने का हरसंभव प्रयास करती हैं और जब आंदोलन को कुचलने में नाकाम रहती हैं तो विधवा प्रलाप करती हैं।कमाल हैं एक बूढ़े अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठायी तो कांग्रेस के युवराज राहुल कहा हैं, उनके बयान कहां गये – पता ही नहीं चल रहा। इधर कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी, अन्ना के खिलाफ तुमताम पर उतर आते हैं। इधर कांग्रेस के एक मंत्री सुबोधकांत सहाय, दिग्विजय सिंह की तरह बयान देते हैं कि अन्ना को रांची के पागलखाने में सिफ्ट कर देना चाहिए। शायद कांग्रेस के इन दिग्भ्रमित नेताओं को पता नहीं कि यहां की जनता बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही हैं, उस मौके का, जब इन नेताओं को, यहां के लोग पागलखाने भेजने में मह्त्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे।कमाल हैं – अंग्रेज यहां का धन लूट कर, इंग्लैंड ले जाते थे, तो बात समझ में आती थी कि वे विदेशी हैं। अपने देश को वैभवशाली बनाना चाहते हैं। पर भारतीय नेता यहां के धन विदेशों में ले जा रहे हैं, अपना ज्यादातर समय़ विदेशों में व्यतीत कर रहे हैं और कह रहे हैं कि वे भारत से प्रेम करते हैं, भारत को वैभवशाली बनाना चाहते हैं, आखिर ये दोहरा चरित्र दिखानेवाले इन भारतीय नेताओं पर यहां की जनता विश्वास कैसे करें। यहीं कारण हैं कि जनता का सरकार पर से विश्वास उठ चुका हैं और भ्रष्टाचार के इस सवाल पर फिलहाल अन्ना के निकट जनता ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रही हैं। पिछले दो दिनों से भारत की जनता उद्वेलित हैं। वो जानना चाहती है कि अन्ना के साथ आखिर केन्द्र सरकार ऐसा सलूक क्यों कर रही हैं। आखिर अन्ना ने क्या गलती कर दी कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जब गिरफ्तार कर लिया गया, गिरफ्तारी के कारण गिना दिये गये तो फिर अचानक रात होते होते उनकी रिहाई की बात कैसे हो गयी। शायद दिल्ली में बैठी कांग्रेस सरकार को आभास हुआ होगा कि जैसे रामदेव के आंदोलन को उन्होंने कुचल दिया। सीबीआई और अन्य एजेंसियों को लगाकर रामदेव के हालत पस्त कर दिये ठीक उसी प्रकार से अन्ना की हवा निकाल देंगे। हालांकि अन्ना के इस आंदोलन की हवा निकालने के लिए, कांग्रेसियों ने अन्ना के चरित्र पर अंगूली ही नहीं बल्कि उनके खिलाफ कई झूठे दस्तावेज भी इंटरनेट पर उपलब्ध कराये, पर वो अपने इरादे में सफल नहीं हो सके। उलटे केन्द्रसरकार ही शर्म से मुंह छुपाने का प्रयास करती रही। रामदेव के आंदोलन की तो भद्द पीटनी ही थी, क्योंकि रामदेव खुद को संत बताते हैं, पर रामदेव संत नहीं बल्कि ये विशुद्ध व्यवसायी हैं और इनका व्यवसाय करोंड़ों – अरबों में हैं और विदेशों में भी फैला हैं और जो कारोबार करता हैं, वह कारोबार धर्म का हो, या चूरन – चटनी का। व्यवसाय, व्यवसाय होता हैं। पूरी तरह से वणिक कर्म होता हैं, जहां झूठ ही झूठ का बोलबाला होता हैं। ऐसे में एक झूठ बोलनेवाला, दूसरे झूठ बोलनेवाले के खिलाफ आंदोलन करेगा या भिड़ेगा तो उसमें जो मजबूत होगा वहीं जीतेगा। और ये अवश्यम्भावी थी कि इसमें जीत कांग्रेस की होनी ही थी, पर अन्ना के साथ ऐसा है ही नहीं। अन्ना के पास न तो बैंक बैलेंस हैं और न कोई पारिवारिक चाहत। ऐसे में जिसके पास केवल सत्य ही सत्य हो, तो भला उसे कोई कैसे हरा सकता हैं। यहीं कारण रहा कि जब – जब अन्ना ने केन्द्र को चुनौती दी। केन्द्र की हालत भीगी बिल्ली जैसी होती रही और ये स्थिति बराबर होती रहेगी, क्योंकि ये देश गांधी का देश हैं, कृष्ण और राम का देश हैं। यहां असत्य जब – जब सत्य से टकराया हैं, हारा है और इस बार भी हारेगा।जनलोकपाल विधेयक लाना ही होगा और पीएम तथा न्यायपालिका को उसके दायरे में लाना ही होगा, क्योंकि ये अन्ना की मांग नहीं, बल्कि आम जनता की मांग हैं। इसलिये सरकार हठधर्मिता छोड़े और जनता की मांग माने, नहीं तो याद रखें जैसे 1974 के आंदोलन का प्रभाव 1977 में दिखा था, 2011 का ये आंदोलन भी रंग दिखाकर रहेगा। इसमें किसी को संदेह नहीं रखना चाहिए।

Saturday, August 6, 2011

एक थी चिड़िया..........

बचपन में अपनी मां से मैंने बहुत सारी कहानियां सुनी। उन कहानियों को मैं चाहकर भी नहीं भुला सकता। सारी कहानियों में बाल मनोविज्ञान साफ झलकता था, साथ ही जीवन में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष की क्या महत्ता हैं, वो भी साफ देखने को मिलता, ऐसे ही कुछ कहानियों में से एक हैं ---- एक थी चिड़िय़ा।


एक चिड़िया थी।
उसे कहीं से दाल मिला, वो दाल लेकर जैसे ही उड़ी, उसकी दाल किसी खूंटे में जा गिरी। वो खूंटे में फंसे दाल को निकालने की जुगत लगायी पर कोई जुगत काम नहीं आयी, अंत में वो एक बढ़ई के पास पहुंची और बोली................
बढ़ई – बढ़ई खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल भात,
का खायी का पीहीं,
का ले परदेस जायी।
बढ़ई बोला – एक दाल के लिए हम खूंटा चीड़ने जाये, नहीं जायेंगे। चिड़िया – बड़ी दुखी हुई, वो इसके बाद राजा के पास गयी और बोली –
राजा राजा बढ़ई दंड,
बढ़ई न खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल भात,
का खायी का पीहीं,
का ले परदेस जायी।
राजा बोला – एक दाल के लिए, हम बढ़ई को दंडे, नहीं दंडेगे, जाओ यहां से। चिड़िया बड़ी दुखी हुई, वो रानी के पास गयी और बोली-------------
रानी रानी राज बुझाव,
राजा न बढ़ई दंडे,
बढ़ई न खूंटा चीरे,
खूंटा मे मोर दाल भात,
का खायी, का पीहीं,
का ले परदेस जायी।,
रानी बोली – कि एक दाल के लिए हम राजा को बुझावे, ऐसा नहीं होगा। जाओ यहां से। चिड़िया बड़ी दुखी हुई वो सर्प के पांस गयी और बोली ---
सर्प सर्प रानी डस,
रानी न राज बुझावे,
राजा न बढ़ई दंडे,
बढ़ई न खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल भात,
का खायी का पीहीं,
का ले परदेस जायी,
सर्प बोला – कि एक दाल के लिए रानी को डसने जाये, नहीं जायेंगे, जाओ, यहां से। चिड़िया बड़ी दुखी हुई वो लउर के पास गयी और बोली --
लउर- लउर सर्प पीट,
सर्प न रानी डसे,
रानी न राज बुझावे,
राजा न बढ़ई दंडे,
बढ़ई न खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल भात,
का खायी का पीही,
का ले परदेस जायी,
लउर बोला कि एक दाल के लिए हम सर्प पीटे, नहीं पीटेंगे, जाओ। चिड़िया बड़ी दुखी हुई, वो अब अपना दुखड़ा लेके भाड़ के पास गयी और बोली-------
भाड़ भाड़ लउर जार,
लउर न सर्प पीटे,
सर्प न रानी डसे,
रानी न राज बुझावे,
राजा न बढ़ई दंडे,
बढ़ई न खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल भात,
का खायी, का पीहीं,
का ले परदेस जायी,
भाड़ बोला कि एक दाल के लिए हम लउर जार दे, नहीं होगा। जाओ यहां से। चिड़िया समुंदर के पास गयी और बोली-------
समुंदर समुंदर भाड़ बुझाव,
भाड़ न लउर जारे,
लउर न सर्प पीटे,
सर्प न रानी डसे,
रानी न राज बुझावे,
राजा न बढ़ई दंडे,
बढ़ई न खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल भात,
का खायी का पीहीं,
का ले परदेस जायी,
समुंदर बोला कि एक दाल के लिए हम भाड़ बुझावे। नहीं बुझायेंगे, जाओ यहां से। चिड़िया इसके बाद हाथी के पास गयी और बोली -----------
हाथी हाथी, समुंदर सोख,
समुंदर न भाड़ बुझावे,
भाड़ न लउर जारे,
लउर न सर्प पीटे,
सर्प न रानी डसे,
रानी न राज बुझावे,
राजा न बढ़ई दंडे,
बढ़ई न खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल भात,
का खायी का पीहीं,
का ले परदेस जायी,
हाथी बोला कि एक दाल के लिए हम समुंदर सोखे। नहीं सोखेंगे। जाओ यहां से। फिर चिड़िया, जाल के पास गयी और बोली ------
जाल जाल, हाथी छान,
हाथी न समुंदर सोखे,
समुंदर न भाड़ बुझावे,
भाड़ न लउर जारे,
लउर न सर्प पीटे,
सर्प न रानी डसे,
रानी न राज बुझावे,
राजा न बढ़ई दंडे,
बढ़ई न खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल भात,
का खायी का पीहीं,
का ले परदेस जायी,
जाल बोला कि एक दाल के लिए हम हाथी छानें। नहीं छानेंगे, जाओ यहां से। चिड़िया बड़ी दुखी हुई वो चूहा के पास गयी।
चूहा चूहा जाल काट,
जाल न हाथी छाने,
हाथी न समुंदर सोखे,
समुंदर न भाड़ बुझावे,
भाड़ न लउर जारे,
लउर न सर्प पीटे,
सर्प न रानी डसे,
रानी न राज बुझावे,
राजा न बढ़ई दंड़े,
बढ़ई न खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल भात,
का खायी, का पीहीं,
का ले परदेस जायी,
चूहा बोला कि एक दाल के लिए हम जाल काटे, नहीं जायेंगे, जाओ यहां से, चिड़िया बड़ी दुखी हुई, वो बिल्ली के पास गयी।
बिल्ली बिल्ली चूहा चाप
चूहा न जाल काटे,
जाल न हाथी छाने,
हाथी न समुंदर सोखे,
समुंदर न भाड़ बुझावे,
भाड़ न लउर जारे,
लउर न सर्प पीटे,
सर्प न रानी डसे,
रानी न राज बुझावे,
राजा न बढ़ई दंडे,
बढ़ई न खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल भात,
का खायी, का पीहीं,
का ले परदेस जायी।
बिल्ली बोली चिड़िया से बताओ चूहा कहां हैं, हम उसको चापेंगे।
फिर क्या था,
चूहा डरते हुए बोला,
कि हमरा के चापे, उपे मत कोई
हम जाल काट बलोई,
जाल बोला,
कि हमरा के काटे उटे मत कोई,
हम हाथी छान बलोई,
हाथी बोला,
कि हमरा के छाने उने मत कोई,
हम समुंदर सोख बलोई,
समुंदर बोला,
कि हमरा के सोखे उखे मत कोई,
हम भाड़ बुझाये बलोई,
भाड़ बोला,
कि हमरा के बुझावे उझावे मत कोई,
हम लउर जार बलोई,
लउर बोला,
कि हमरा के जारे उरे मत कोई,
हम सर्प पीट बलोई,
सर्प बोला,
कि हमरा के पीटे उटे मत कोई,
हम रानी डस बलोई,
रानी बोली,
कि हमरा के डसे उसे मत कोई,
हम राज बुझाये बलोई,
राजा बोला,
कि हमरा बुझावे, उझावे मत कोई,
हम बढ़ई दंड बलोई,
बढ़ई बोला,
कि हमरा के दंडे उंडे मत कोई,
हम खूंटा चीर बलोई,
खूंटा बोला,
कि हमरा के चीरे उरे मत कोई,
हम अपने से फांट बलोई,
इस प्रकार खूंटा फंट गया,
और चिड़िया अपना दाल लेकर उड़ गयी.......................