Monday, October 31, 2011

लोकपर्व छठ की हार्दिक शुभकामनायें.............

एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्तया गृहाण अर्घ्यं दिवाकर।।






ऊं आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।। (ऋग्वेद)

Wednesday, October 26, 2011

जहां राम वहीं अयोध्या, और जहां अयोध्या वहीं दीपावली.....

चपन में दीपावली पर निबंध जब लिखने को कहां जाता, तो अनायास राम की चर्चा हो जाती। दीपावली पर ये प्रसंग मैं लिखना नहीं भूलता कि जब राम 14 वर्ष के वनवास को पूरा करने के बाद अयोध्या लौटें तौ अयोध्यावसियों ने राम का स्वागत दीपावली मना कर की थी, अर्थात् अपने घरों, चौक चौराहों, सड़कों, विद्यालयों और प्रशासकीय भवनों को दीपों से ऐसा सुसज्जित किया कि उस दिन से चली आ रही ये परंपरा आज भी जीवित हैं. दीपावली हम मनाते जा रहे हैं, पर दीपावली मनाने के क्रम में ये भूल जाते हैं कि जहां राम वहीं अयोध्या और जहां अयोध्या नहीं वहां दीपावली कैसी। राम का मतलब क्या, क्या राम एक व्यक्ति हैं या चरित्र, गर राम एक व्यक्ति हैं तो हमे नहीं लगता कि वनगमन के समय, सुमित्रा लक्ष्मण को ये कहती कि---
तात तुम्हारि मातु बैदेही। पिता रामु सब भांति सनेही।।
अवध तहां जहं राम निवासू। तहंइं दिवसु जहं भानू प्रकासू।।

गोस्वामी तुलसीदास ने अयोध्याकांड में साफ कहा, कि जब लक्ष्मण को पता चला कि श्रीराम को वनगमऩ का आदेश मिला हैं, वे भी श्रीराम के साथ निकलना चाहते हैं, वे अपनी माता सुमित्रा से आदेश मांगते हैं कि माता सुमित्रा सहर्ष श्रीराम के साथ वनगमन का आदेश दे। सुमित्रा भी तनिक मन में पुत्रमोह नहीं रखती और लक्ष्मण से कह बैठती हैं जो मैंने गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस से उद्धृत चौपाईयों को उपर में लिखा हैं। आजकल सामान्य जन से पूछिये कि दीपावली क्या हैं, बतायेंगे -पर्व हैं, दीये जलायेंगे, गणेश लक्ष्मी की पूजा करेंगे, मिठाईयां खायेंगे - खिलायेंगे और जितनी जेब जवाब दे, उतने का पटाखा छोड़ देंगे, दीपावली संपन्न हो जायेगी, पर दीपावली तो इन सबसे दूर चरित्र की पूजा का पर्व हैं, जो हम सबसे दूर छूटता जा रहा हैं और जहां चरित्र ही नहीं वहां ज्ञान अर्थात् गणेश का प्रादुर्भाव कैसे होगा, और जब गणेश नहीं होंगे तो सत्य मार्ग से लक्ष्मी अर्थात् धन कैसे प्राप्त होगी और जब सत्यमार्ग से लक्ष्मी आयेगी ही नहीं तो फिर संपन्नता कैसे होगी। कोई भी पर्व हमारे यहां जो आदिकाल से चला आ रहा हैं, वो ऐसे ही नहीं बन गया, उसके आधार हैं पर सच्चाई ये हैं कि हम उन आधारों को छोड़ बाह्याडंबरों और आधुनिकता में इस प्रकार खोते चले जा रहे हैं कि उसका प्रभाव हमारे दैनिक जीवन पर पड़ता जा रहा हैं और सब कुछ होते हुए भी हम बावले होकर, सपरिवार समूल नष्ट होते जा रहे हैं, समय आज भी बीता नहीं हैं, सब कुछ वहीं हैं, पर आज भी राम के चरित्र को हम अपने में समाहित कर लें तो फिर दिक्कत कहा हैं। हमारे प्राचीन मणीषियों ने तो बार - बार कहा कि -
असतो मा सदगमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योरमा अमृतंगमय
आखिर, सबसे पहले उन्होने असत्य से सत्य की और जाने की बात क्यों कहीं, इसलिए कहीं कि, कहा गया हैं - सत्य धारयति धर्मः। यानी धर्म सिर्फ सत्य को धारण करता हैं, असत्य को नहीं। फिर दूसरी पंक्ति आयी - अंधकार से प्रकाश की ओर चले। अंधकार से प्रकाश की ओर कौन जायेगा, जो सत्य को धारण करेगा, फिर हैं मृत्यु से अमरता की ओर चले, यानी मृत्यु पर विजय कौन पायेगा, जो सत्य से प्रकाशित होगा। दीपावली इसी सत्य को प्राप्त कर, स्वयं को प्रकाशित और दूसरों को प्रकाशित करने का पर्व हैं, गर आपने ऐसा कर दिया तो दीपावली मना रहे हैं, अन्यथा आप क्या मना रहे हैं, स्वयं सोच लीजिये। मैं कह ही क्या सकता हूं। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि श्रीराम वनगमऩ से लौट रहे हैं, उनके साथ सारे लोग मौजूद हैं जो रावण पर विजय प्राप्त करने के समय हृदय से सहयोग किया, वे उन्हें संबोधित कर रहे हैं, कहते हैं ------
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोउं। यह प्रसंग जानई कोउ कोऊ।।
अर्थात अवधपुरी जैसा प्रिय उन्हें कोई नहीं, और ये प्रसंग बहुत कम ही लोग जानते हैं, आखिर त्रेतायुग के इस अवधपुरी में क्या था, बस चरित्र था, और इसी चरित्र से सभी अवांछित तत्व कांपते थे, पर क्या आज वो चरित्र हमारे पास हैं, गर नहीं तो इस दीपावली को क्यों नहीं हम एक आदर्श दीपावली मनाने के लिए एक पग बढ़ाये।

Thursday, October 13, 2011

शर्म करो, टीम अन्ना के लोगों ----------


गर लोकतंत्र में हिंसा का स्थान नहीं तो लोकंतत्र में पागलपन का भी कोई स्थान नहीं। जो लोग पागलपन की हद तक जाकर ये बयान दे डालते हैं कि कश्मीरी अवाम को जबरन अपने साथ रखना देशहित में नहीं, कश्मीर से सेना हटा लेना चाहिए, वहां जनमत संग्रह कराकर, उनकी मंशा पर छोड़ देना चाहिए, कि वे भारत में रहना चाहते हैं अथवा भारत से अलग रहना चाहते हैं। ऐसे पागलों को भी सोच लेना चाहिए कि इस पागलपन से भरे बयान पर पूरे देश में कड़ी प्रतिक्रिया हो सकती हैं और ये प्रतिक्रिया उग्र रुप धारण भी कर सकती हैं, जब प्रतिक्रिया उग्र होगी तो उसका रुप क्या होगा, शायद उन्हें इसका अंदाजा नहीं। और जब अंदाजा होता हैं तो ये पागलपन से भरे बयान देनेवाले लोग हठधर्मिता भी नहीं छोड़ते, कह डालते हैं कि वे अपने बयान पर कायम हैं, उनके साथ बदसलुकी करनेवाले, ऐसे लोगों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए, जो हिंसा का सहारा लेते हैं, पर यहीं घटियास्तर के लोग जब नक्सलियों, उग्रवादियों, आतंकियों द्वारा हिंसा फैलायी जाती हैं, बड़े पैमाने पर इनके द्वारा बेकसूर मार डाल दिये जाते हैं, कश्मीरी पंडितों का समूह थोक भाव में अपने ही देश में बेगानों की तरह इधर से उधर भटकते हैं तब इनका हृदय नहीं पसीजता, लेकिन आंतकियों पर जब नकेल हमारी सेना, हमारे जवान डालते हैं तो इनका हृदय पिघलने लगता हैं और वे जेल में बंद अथवा जेल के बाहर आंतक फैलाने में मशगूल नरपिशाचों यानी आतंकियों के समर्थन में बयान देने से भी नहीं चूकते। ये वहीं लोग हैं जो टीम अन्ना में भी मौजूद हैं - प्रशांतभूषण जैसे लोग इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। अरुंधति राय, स्वामी अग्निवेश न जाने कितने ऐसे लोगों की जमात हैं जो मानवाधिकार संगठनों के नाम पर नक्सलियों और आतंकियों के लिए प्राण वायु का काम करते हैं। मैं पत्रकार हूं, हमने देखा हैं कि ये जब भी देश के किसी ऐसे क्षेत्रों का दौरा करते हैं और जब उन दौरों में स्थानीय पत्रकारों को रखने की बात होती हैं तो एक सिरे से इसे नकारते हैं और जब कभी ज्यादा दबाब पड़ा तो अपने समर्थकों में ही किसी को पत्रकार बनाकर प्रोजेक्ट करते हैं और देश के विरुद्ध आग उगलते हैं। इन्हीं के घटियास्तर के बयानों से चीन और पाकिस्तान जैसे देशों को भारत के विरोध में बोलने और संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत को नीचा दिखाने में बल मिलता हैं, पर भारत सरकार आज तक ऐसे लोगों पर नकेल नहीं कस सकी और न ही ऐसे लोगों पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा ही कर सकी। ये अलग बात हैं कि भाजपा और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियां हमेशा से कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा कहने में नहीं चूकती, पर इन घटियास्तर के व्यक्तियों, जिनकी देशसेवा में कभी रुचि नहीं रही, जिनका ज्यादातर समय देशतोड़क और देश की सीमाओं को छोटा करने में ज्यादा लगता हैं, इनके खिलाफ आज तक न तो बयान आया और न ही प्रतिक्रिया। ऐसे में देश के युवा चूड़ियां पहनकर तो बैंठेंगे नहीं, उनके दिमाग में जो आया कर दिया या करेंगे। जरुरत हैं कि जो लोग दिल्ली या महानगरों के आलीशान बंगलों में, एसी में बैठते या जीवनयापन करते हैं, जिन्होंने न तो खुद और न ही कभी उनके खानदान में किसी ने देश के लिए प्राण न्योछावर किया हैं, जिनके खानदान में आजतक किसी ने सेना में अपना योगदान नहीं दिया हैं और न आनेवाले दिनों में कोई इनके खानदान से ऐसा योगदान देगा, क्योंकि इन्होंने इतना पैसा कानून के पचड़ों से कमा लिया हैं कि ये कानूनी दांव पेच में ही अपने पूरे खानदान को लगाकर अपना और देश का सत्यानाश करेंगे, ऐसे पागलों से देश और भारतीय सेना के पक्ष में बयान सुनने को मिलेगा, ये मूर्खता के सिवा कुछ नहीं। इसलिए. हे टीम अन्ना के प्रशांत भूषण जैसे घटियास्तर के विचारकों, तुम इसी तरह देश को सीमा को छोटा करने का बयान देते रहो, पर समझ लो कि जिनके इशारे पर जो तुम बयान दे रहे हो, वहीं भारत के शत्रु तु्म्हारी इस हरकत के लिए ऐसा दंड देंगे कि तुम्हारा नाम विभीषण की श्रेणी में आ खड़ा होगा। क्योंकि विभीषण के भ और ष तुम्हारे नाम से भी जूड़े हैं। मैं तो भारत माता से यहीं प्रार्थना करुंगा कि तुम जैसे लोग अपने कोख से पैदा नहीं करें, न ही तो ये देश कभी खड़ा नहीं हो पायेगा। हमारी सेना - पाकिस्तान और चीन से क्या लड़ेंगी, जब तुम जैसे लोग भारत में ही रहकर पाकिस्तान और चीन की भाषा बोलते हैं। शर्म करो - टीम अन्ना के लोगों शर्म करों। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हो और खुद भ्रष्ट आचरण दिखाते हो, भारत की जमीं का अन्न खाते हो और भारत के खिलाफ ही आग उगलते हो।

राष्ट्रनिर्माण का पर्व - विजयादशमी........


विजयादशमी - आज ही के दिन भगवान श्रीराम को महाशक्ति दुर्गा ने विजयी भव का आशीर्वाद दिया था। महाशक्ति के आशीर्वाद से ही भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय पायी। सीता को उसके चंगुल से ही नहीं छुड़ाया बल्कि जो वचन उन्होंने विभीषण को दिया था - लंकेश कहकर, उस वचन को भी निभाया। बाद में अपने भाई लक्ष्मण के साथ पुनः अयोध्या लौटे और अवध की संस्कृति को जनजन तक पहुंचाया। यहीं नहीं उन्होंने मर्यादा की अद्भुत मिसाल कायम की। उस मर्यादा की जिसके कारण उनका एक नाम मर्यादा पुरुषोत्तम भी पड़ गया। पुत्र के रुप में, पति के रुप में, शिष्य के रुप में, पिता के रुप में और एक प्रजापालक राजा के रुप में राम की मिसाल शायद किसी लोक में देखने को नहीं मिलती। यहीं कारण हैं कि उनकी प्रशंसा वेदों ने भी गायी हैं ये कहकर कि राम आपके जैसा दूसरा इस त्रैलोक्य में नहीं हैं।
जरा ध्यान दीजिये -------------
आज जो भारत की स्थिति हैं., वैसी ही स्थिति राम के समय भी थी। भारत की सभ्यता और संस्कृति व आध्यात्मिक शक्ति पर रावण की नजर थी, उसकी सेना व गुप्तचर अयोध्या की सीमा तक पहुंच चुके थे, स्थिति ये थी की कोई सुरक्षित नहीं था। महर्षि विश्वामित्र को इसका आभास था -- इसलिए भारत को अखंड रखने के लिए, अपने यज्ञ को बीच ही छोड़कर अयोध्या पहुंचते हैं और महाराज दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग लेते हैं। इन्हीं राम और लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र बातों ही बातों में परीक्षा लेते हैं कि इन बालकों में जिन पर देश की सुरक्षा का भार होगा, क्या वे इस योग्य हैं। वे ताड़का से भिड़वाते हैं और पल ही भर में दोनों राम और लक्ष्मण ताड़का को मार गिराते हैं। महर्षि विश्वामित्र को विश्वास हो जाता है कि जिन बालकों को उन्होंने विद्या ग्रहण कराने के लिए चुना हैं, वे हर भांति योग्य हैं और वे अपने पास पड़ी विद्या को सहर्ष राम और लक्ष्मण को सौप देते है। यही विद्या राम और लक्ष्मण को वनगमन और सीताहरण बाद में रावण पर विजय पाने में भी अक्षरशः सत्य साबित हुई।
विजयादशमी संकल्प लेने का पर्व हैं -- ये उत्साह और जोश भरने का पर्व नहीं, बल्कि संकल्पित होकर देशसेवा के व्रत लेने का दिन हैं। अपने अंदर चरित्र निर्माण और देश निर्माण का व्रत लेने का पर्व हैं। वो भी व्रत कैसा, लाखों संकट क्यों न आ जाये, पर धैर्य नहीं खोना हैं। राम की तरह अटल रहना हैं, गर राम की तरह आप अटल रहोगे तो तुम्हारी जय अवश्य होगी, पराजय का तो सवाल ही नहीं उठता। राम की शक्ति देखिये -- राम को जो कैकेयी वनवास देती हैं, जो मंथरा राम के बारे में सपने में भी अच्छा नहीं सोचती, उस पर भी कृपा लूटाते हैं। शबरी के घर जाकर जूठे बेर खाने में भी उन्हें आपत्ति नहीं होती, वे वानरों और भालूओं के बीच रहकर भी आनन्द महसूस करते हैं, उनके सेना में तो ज्यादातर वानर भालू ही थे, पर एक गिलहरी जो उनके समुद्र पर पुल बनाने के लिए योगदान दे रही होती हैं तो उस पर भी उनकी कृपा पहुंच ही जाती हैं और उसे भी आनन्द देने में तनिक देर नहीं लगाते। महर्षि वाल्मीकि की रामायण हो या तुलसी की श्रीरामचरितमानस गर समय मिले तो पढ़े, पायेंगे कि राम ने सिर्फ दिया, लिया नहीं। जो देता हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ हैं जो पा लिया वो कभी श्रेष्ठ नहीं हो सकता, सर्वश्रेष्ठ की तो बात ही भूल जाईये।
यहीं कारण है कि राम के आगे सभी नतमस्तक हैं -- कबीर की पंक्तियां हो या रविदास की पंक्तियां या इन पंक्तियों को पाकर किसी ने अपना जीवन धन्य धन्य कर लिया हो, राम तो राम हैं, उन्हीं में समाने में आऩन्द हैं, शायद विजयादशमी भी यहीं बार - बार कहता हैं कि जैसे राम ने रावणरुपी चरित्र का अंत कर दिया, आप भी अपने अंदर समायी हुई बुराई रुपी रावण का अंत कर लो, ताकि जीवन आपका राममय हो जाय।