Monday, December 31, 2012

ये नया वर्ष हैं..................


कल भी आया, कल आयेगा भी,
हंसो, खेलो, ये नया वर्ष हैं
हंसो, खेलो, ये नया वर्ष हैं..................
भ्रष्टाचार-दुष्कर्म, निरंतर
भारत की दिन-रात भयावह
सिसकती, कराहती, जैसे-तैसे
जीने की ये नयी चाह हैं
हां हां, सुनो
ये नया वर्ष हैं.....................
कल दल-गण आंदोलन करती थी
अब, आंदोलन से पीछे हटती हैं
अब जनता आगे बढ़ कहती
हटो, अरे ये मेरा वक्त हैं
क्योंकि,
ये नया वर्ष हैं....................
गंगा – जमना, अब रोती कहती
कभी हरती थी, वो पापों को
अब खुद मैली होकर भी,
त्राहिमाम संदेश सुनाती
घाटों की सुनी दिन रातें
कलकल निनाद न, अब सुन पाती
फिर भी बोलो, कि हम खुब खुश हैं
झूठ बोल, मन को बहलाओ
और कहो
ये नया वर्ष हैं.............................

Sunday, December 30, 2012

काला शनिवार.............................

शनिवार को सुबह, मैं जैसे ही जगा। एक बुरी खबर, मेरे कानों को सुनाई दी। 16 दिसम्बर को सामूहिक दुष्कर्म की शिकार 23 वर्षीया लड़की अब दुनिया में नहीं रही। सारा देश हतप्रभ था। देश की बहादुर बिटिया चल बसी। उसके साथ हुए अमानुषिक कुकृत्य ने पूरे देश को अंदर से झकझोर दिया था। दिल्ली क्या, दूर गांवों में भी इसकी गूंज सुनाई दी। सभी ने एक स्वर से मांग किया कि दुष्कर्मियों को कठोर से कठोर सजा मिले। संसद में भी इसकी शोर सुनाई दी। सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री जया भादुड़ी तो इस घटना से इतनी मर्माहत हुई कि वो रो पड़ी, पर इसी संसद में कांग्रेस का एक ऐसा भी नेता था, जो संसदीय कार्य मंत्री होते हुए भी इस घटना के समय़, संसद में चल रही बहस के दौरान हंस रहा था। जिसका नाम था -- राजीव शुक्ला। वो स्वयं को पत्रकार भी समय - समय पर कहा करता हैं। ऐसे तो नेता, नेता होता हैं। चाहे वो किसी भी पार्टी का क्यों न हो। बेशर्मी में इसका रिकार्ड तोड़ना सामान्य व्यक्तियों के वश की बात नहीं। हाल ही में कांग्रेस पार्टी का ही एक नेता संजय निरुपम, भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी को ठुमके लगानेवाली कह डाला था, वो भी टीवी बहस के दौरान। इसी तरह राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने भी नारियों के खिलाफ घटियास्तर की टिप्पणी कर डाली पर इससे भी आगे निकल गये माकपा नेता अनीसुर्रहमान जिन्होंने प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेकर ऐसी टिप्पणी कर डाली, जिसे सभ्य समाज कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकता।
सवाल उठता हैं कि जब देश में सामूहिक दुष्कर्म के खिलाफ, स्वतः स्फूर्त आंदोलन प्रारंभ हो जाते हो। उसके बाद भी देश के नेताओं की मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता हो। नारियों के खिलाफ उनके बयान घटियास्तर के आते हो। साथ ही उक्त आंदोलन को दबाने के लिए नाना प्रकार के षडयंत्र रचे जाते हो। ऐसे में हम इन नेताओं पर और उनकी पार्टियों से हम ये भरोसा क्यों रखे, कि ये सामूहिक दुष्कर्म की शिकार युवती को मरणोपरांत भी न्याय दिलायेंगे। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का ये बयान कि, उनकी भी लड़किया हैं, और इस घटना से वे भी मर्माहत हैं, पर ये मर्माहत होने के बावजूद भी खुद बचने का प्रयास करते हो। उक्त लड़की को सिंगापुर इलाज के नाम पर, इसलिए ट्रांसफर करते हो, कि देश में ये मैसेज जाय कि सरकार, उसे बचाने के लिए हरसंभव प्रयास की हैं। ये जानते हुए भी कि उस लड़की की स्थिति यहां पर ही, इतनी बिगड़ गयी हैं कि उसे बचाया नहीं जा सकता, क्या दिखाता हैं।
जनता मांग कर रही हैं कि त्वरित न्याय के तहत इस दुष्कर्म कांड के आरोपियों को सजा दिलायी जाय, पर सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही। मैं तो कहता हूं कि जिन लोगों ने नारियों को सम्मान नहीं दिया हैं, जिनकी मानसिकता नारियों के प्रति कभी ठीक नहीं रहा, जिन्होंने हमेशा विवादास्पद बयान नारियों के खिलाफ दिया हो, क्या इन्हें ऐसे ही छोड़ देना चाहिए। जिन नेताओं ने नारियों के खिलाफ घटियास्तर का बयान दिया हैं, क्या उन्हें इसलिए छोड़ देना चाहिए कि वे नेता हैं, या उन्हें भी दंडित करना चाहिए।
मेरा मानना हैं कि ये दुष्कर्म या सामूहिक दुष्कर्म इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि हमारी नारियों के प्रति मानसिकता बदल गयी हैं। गलती खुद करें, और इसके लिए लड़कियों और नारियों के ड्रेस पर इल्जाम लगा दे। कमाल हैं, ऐसे कई कांग्रेसी-भाजपाई नेताओं के हास्यास्पद बयान, मीडिया में भरे पड़े हैं। जो इसके लिए लड़कियों के पोशाक को जिम्मेवार मानते हैं। मेरा मानना हैं कि जब इन नेताओं के मन में ही गंदगी भरी पड़ी हैं, जिसकी वे चर्चा नहीं करते, क्योंकि ये जानते हैं कि जैसे ही वे मन के अंदर, जागृत होनेवाली अपनी गंदी भावनाओं को देखेंगे, तो वे खुद शर्म से गड़ जायेंगे, पर हमें नहीं लगता कि इनकी जमीर इतनी मजबूत हैं कि वे शर्म से खुद मरेंगे, ये तो पैदा ही लिए हैं, हम सामान्य जन को जिंदा मार डालने के लिए। ये तब तक कुकर्म करेंगे, बयान देंगे, जब तक जिंदा रहेंगे, क्योंकि ये जानते हैं कि देश में जो भी हो रहा हैं, उससे वे परे हैं। इसकी आंच भी, उनके घरों तक नहीं पहुंचेगी। इसलिए आम जनता की इज्जत व आबरु जाये भाड़ में, हमें क्या पड़ी हैं। बस घटना घटेंगी। देखने जायेंगे।  घड़ियाली आँसू बहायेंगे। अपने विवेकाधीन कोटे से कुछ रुपये दें देंगे और जनता तो मूर्ख हैं ही, ये छोटी - मोटी घटनाएं थोड़े ही याद रखेंगी, बस पांच साल के लिए फिर से चुनाव के बाद, अपनी सीटे आरक्षित करा लेंगे।

Friday, December 21, 2012

बिहार के मुख्यमंत्री अहंकारी नीतीश क्या जाने, किसी का सम्मान कैसे किया जाता हैं...........................

गुजरात में नरेन्द्र मोदी ने शानदार तरीके से एक बार फिर सत्ता हासिल की हैं। गुजरात की छः करोड़ जनता ने एक बार फिर उन पर विश्वास किया और विपक्षियों के लाखों - करोड़ों आरोपों को दरकिनार करते हुए, नरेन्द्र मोदी को अपना हीरो चुना। इसमें कोई दो मत नहीं कि वे आनेवाले समय में प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार है और यहीं प्रबल दावेदारी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आंखों की नींद गायब कर दी हैं। वे इतने सदमे में हैं कि वे मर्यादा तक भूल गये हैं। बिहार में एक कहावत हैं - हम अपने दुश्मनों को भी उंचा पीढ़ा देते हैं, पर इसे देखिये। सामान्य तौर पर, लोग जो शिष्टाचार निभाते हैं। ऐसे अवसरों पर बधाई देते हैं। इसने नरेन्द्र मोदी को बधाई देना भी उचित नहीं समझा। अरे आप नरेन्द्र मोदी को बधाई दो या मत दो। उसे क्या फर्क पड़ता हैं। ऐसे थोड़े ही ना हैं कि वो आपकी बधाई की लालसा पाले हुए हैं। वो तो अच्छी तरह जानता हैं कि आप क्या हो। कल तक गाली देने में आगे थे, तो आज भी गाली ही दो। तुम्हारे मुंह से यहीं अच्छा लगता हैं। जो नीतीश को जानते हैं, वे उनके कैरेक्टर को भी जानते हैं। नीतीश भारतीय राजनीति में अहंकारी पुरुष थे, और रहेंगे। समय आने पर लालू की तरह इनका भी अहंकार मिट्टी में मिल जायेगा और जो सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते हैं, कुशासन बाबू कहाने में भी देर नहीं लगेगा।
बिहार - एक अनोखा प्रदेश। यहां एक से एक शूरवीरों ने जन्म लिया। जिनकी यशोगाथा आज भी पूरे विश्व में देखी और सुनी जाती हैं, पर पिछले बीस पच्चीस वर्षों से इस बिहार में एक से एक मसखरे और अहंकारी दिखाई पड़ रहे हैं, जिनके कुकृत्यों से बिहार पर अंगूलियां उठायी जा रही हैं। ऐसे भी बिहार और बिहारी क्या हैं। इसके बारे में गर जानना हैं तो बिहार से अलग, आप किसी भी प्रदेश में जाकर बिहारियों के बारे में पूछे, तो पता चल जायेगा। एक नारा, बिहारियों के लिए, जो हर जगह सुनायी देती हैं वो हैं -- एक बिहारी, सौ बिमारी। 
क्या सचमुच एक बिहारी, सौ बिमारी के बराबर हैं, या लोग ऐसे ही कह देते हैं।
सबसे पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित बिहार के लोग के बारे में क्या कहती हैं, वो सुनिये --  बिहार और यूपी से आये लोगों ने दिल्ली को गंदा करके रख दिया हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और शिव सेना के लोग तो बिहारियों को देखना ही पसंद नहीं करते और इसका मौन समर्थन करते हैं, महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेता व वहां के मुख्यमंत्री पृथ्वी राज चौहान। देश के पूर्वी भाग असम और दक्षिण के चेन्नई और बंगलौर में तो ये बिहारी कई बार मार खाकर लौट आते हैं। क्यों मार खाते हैं। ये बताने की जरुरत नहीं। इधर बिहार में लालू और अब नीतीश के शासन को झेल रहे बिहारी समझते हैं कि नीतीश के आने के बाद, बिहार का सम्मान बढ़ा हैं, बिहार तेजी से विकास कर रहा हैं। तो इन मूर्खों को कौन समझाये कि जो नयीं लेटेस्ट रिपोर्ट आयी हैं विकास की। उसमें एक नंबर पर छोटा सा प्रदेश - सिक्किम हैं। जो आज तक अपने लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग तक नहीं की हैं। जबकि बिहार का मुख्यमंत्री नीतीश हमेशा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की भीख मांगा करता हैं, जबकि यहीं शख्स जब केन्द्र में सरकार में शामिल था, तो तत्कालीन बिहार की मुख्यमंत्री रावड़ी देवी के इस मांग पर ही अंगूली उठा दी थी। हाल ही में जब महाराष्ट्र में एक बिहारी युवक की निर्मम हत्या कर दी गयी थी। नीतीश ने इस पर अपना बयान जारी किया था कि एक छोटी सी मुर्गी पर तोप छोड़ दिया गया, पर इसी नीतीश ने जब महाराष्ट्र का दौरा किया तो वह महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेताओं व कार्यकर्ताओं से डरते हुए अपने भाषण की शुरुआत ही, जय महाराष्ट्र से की।
आज भी नीतीश बिहार में उद्योग लगाने के लिए, देश के उद्योगपतियो से चिरौरी करते हैं, पर कोई भी उद्योगपति बिहार में उद्योग लगाना पसंद नहीं करता। पर गुजरात को देखिये। वहां के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्या किया। बंगाल में नैनो पर ग्रहण लगा और उसने गुजरात में नैनो का प्रोडक्शन करा, दिखा दिया कि थॉट क्या हैं। गुजरात के सैकड़ों कपड़ा मिलों और अन्य संस्थानों में आज भी बिहारी मजदूर शान से काम करते हैं। इन बिहारी मजदूरों को गुजरात और गुजरातियों से कोई शिकायत तक नहीं। ये चुनावों में भी भाग लेते हैं और नरेन्द्र मोदी को अपना हीरो मानते हैं, पर नीतीश को देखिये।
नीतीश धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट बांटते हैं। ये धर्मनिरपेक्षता के सर्टिफिकेट का दुकान पटना और दिल्ली के जदयू कार्यालय में खोले हुए हैं। बिहार में भाजपा के वैशाखी पर शासन कर रहे हैं और भाजपा को ही समय - समय पर गीदड़भभकी और बंदरघुड़की दिखाते रहते हैं। बिहार के अल्पसंख्यकों को ये दिखाऩे के लिए की, वे लालू से ज्यादा सेक्यूलर हैं, अल्पसंख्यक उनकी पार्टी को भूले नहीं, इसलिए समय - समय पर नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाने का कोई कसर नहीं छोड़ते। इस बार तो उन्होंने मर्यादा को ही ताक पर रख दिया। सामान्य तौर पर देखा जाता हैं कि कोई भी व्यक्ति गर शीर्ष पर पहुंचता हैं या कोई विजयी होता हैं तो उसका घुरविरोधी भी उसको बधाई देने के लिए पहुंच जाता हैं। पर ये संस्कारवान अथवा चरित्रवान व्यक्ति ही कर सकता हैं। सामान्य नहीं। 
कल गुजरात में चुनाव परिणाम निकले। गुजरात परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष जो पूर्व में भाजपा में रहकर, गुजरात का बागडोर संभाल चुके हैं। भाजपा को चुनौती दी, बुरी तरह हार गये। पर नरेन्द्र मोदी को देखिये, चुनाव जीतने के बाद, वे उनके घर जाते हैं, उनका पांव छूते हैं। पर नीतीश को देखिए, अहंकार में चूर हैं। नरेन्द्र मोदी को बधाई तक नहीं दिये हैं। उनके पिछलग्गू नेता इस पर बयान देते हैं कि नीतीश जी बहुत व्यस्त हैं, इसलिए वे बधाई नहीं दे पाये। जैसे लगता हैं कि नीतीश जी के पास दो सेंकेंड का भी समय नहीं हैं। जैसे लगता हैं कि नीतीश को शौचालय जाने तक का समय नहीं हैं, या दिनचर्या के दौरान नीतीश जी मुंह भी नहीं धो पा रहे हैं और न ही नहा रहे होंगे। अरे पिछलग्गूओं साफ कहो कि नीतीश को नरेन्द्र मोदी की जीत रास नहीं आ रही हैं। उसे लग रहा हैं कि विकास को लेकर और आनेवाले समय में प्रधानमंत्री पद को लेकर, उसका कोई घुरविरोधी सामने हैं तो वो नरेन्द्र मोदी हैं, जिसके कारण वो इतना जल भून गया हैं कि उसे मर्यादा तक याद नहीं रही। ऐसे नीतीश ही बिहार की कब्र खोदेंगे। क्योंकि जिसके पास मर्यादा, चरित्र व संस्कार नहीं, वो बिहार को क्या सम्मान दिलायेगा। ये तो बेशर्मी की हद हैं। इसने तो बिहार के दस करोड़ जनता का अपमान कर दिया हैं। बिहार की तो परंपरा रही हैं कि अपने दुश्मनों को भी आगे बढ़कर स्वागत करने का, पर इस नीतीश ने तो सारी मर्यादाएं लांघ कर बता दिया कि वो सिर्फ और सिर्फ बिहार के सम्मान पर दाग लगाने के लिए सत्ता हासिल की हैं। भाजपा को चाहिए कि अपने पीठ पर जो नीतीश को उसने सवार कर रखा हैं, उसे उतार कर फेंके नहीं तो ये खुद तो जायेगा ही, भाजपा की भी कब्र खोद देगा।

Thursday, December 20, 2012

गुजरात की जनता का अपमान बंद कर, जनादेश का सम्मान करें राष्ट्रीय मीडिया और तथाकथित नेता..........................

गुजरात की जनता ने एक बार फिर नरेन्द्र मोदी के हाथों में गुजरात की बागडोर सौंप दी हैं। इस बार भी भारी बहुमत के साथ नरेन्द्र मोदी सत्तारुढ़ हुए हैं। ये अलग बात हैं कि इस भारी जीत को उनके विरोधी पचा नहीं रहे हैं, और फिर धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते हुए, उन्हें धर्मनिरपेक्ष बताने से इनकार कर रहे हैं। इसकी शुरुआत, बिहार से ही हुई हैं। बिहार में भाजपा की वैशाखी पर टिकी, नीतीश की पार्टी के एक प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा हैं कि वे नरेन्द्र मोदी को धर्मनिरपेक्ष नहीं मानते। ऐसे भी समय - समय पर इनकी पार्टी और इनके बहुत सारे नेता, जिसमें राजद से जदयू में गये शिवानंद तिवारी और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हैं जो नरेन्द्र मोदी को समय - समय पर नीचा दिखाने के लिए बेतुके बयान देते रहते हैं पर उन्हें नहीं मालूम कि उनका इस प्रकार का बयान, नरेन्द्र मोदी का अपमान नहीं, बल्कि सीधे तौर पर गुजरात की छः करोड. जनता का अपमान कर देता हैं, जो नरेन्द्र मोदी को बार - बार सत्ता सौंपता हैं। 
ऐसे ही लोग मीडिया में भी हैं। जो गाहे - बगाहे नरेन्द्र मोदी को नाना प्रकार के विभूषणों से समय - समय पर अलंकृत करते रहते हैं। जब - जब चुनाव आते हैं, इन मीडिया हाउस को कई साल पहले हुए गुजरात के दंगे याद आने लगते हैं, और इसका दृश्य वे बार - बार अपने टीवी चैनलों के माध्यम से जनता को दिखाने शुरु करते हैं। यहीं नहीं इस दंगे में नरेन्द्र मोदी को लपेटने का भी प्रयास करते है, पर गुजरात की जनता शायद इस घटना को उस रुप में नहीं लेती और अपने ढंग से मतदान कर, सबको बता देती हैं कि उसे अपने नरेन्द्र पर कितना भरोसा हैं। 
सवाल उठता हैं कि गुजरात में दगे हुए, तो उसके लिए भाजपा के नरेन्द्र मोदी दोषी, तो फिर हाल ही में असम में जो दंगे हुए, उसके लिए असम के कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई व भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दोषी क्यों नहीं। देश की भुतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जो पूरे देश में सिक्ख विरोधी दंगे फैले, उसके लिए कांग्रेसी दोषी क्यों नहीं, जबकि उस वक्त देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का दंगे पर ही विवादास्पद बयान आ गया था। दंगों पर मीडिया और देश के मूर्धन्य नेताओं का दोहरा मापदंड क्यों। आपके पास कानून हैं, संविधान हैं। आपके पास गर सबूत हैं, तो न्यायालय का दरवाजा खटखटाये, कोई रोक रखा हैं क्या। अदालत में उन्हें दोषी सिद्ध करें और फिर बोले कि वो नरेन्द्र मोदी धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं, पर बिना किसी सबूत के किसी व्यक्ति को धर्मनिरपेक्ष न बताकर, उसे दोषी सिद्ध कर देना, क्या गलत नहीं हैं।
इधर मैं देख रहा हूं कि जिसकी कोई औकात नहीं, जो खुद भाजपा के वैशाखी पर सत्तासुख प्राप्त कर रहे हैं,  या जिन्होंने सत्तासुख पाया हैं। जो समय - समय पर भाजपा का सहयोग लेकर संविधान में प्रमोशन पर संशोधन के समर्थन का सहयोग लेने को लालायित भी रहते हैं, पर जब भाजपा को सहयोग करने की बात आती हैं तब उसे सांप्रदायिक कहकर, कन्नी काट लेते हैं, जैसे लगता हैं कि भाजपा अछूत हैं, उसे भारतीय राजनीति में रहने का कोई हक ही नहीं। अब तो कई पार्टियों ने धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट जारी करने का दुकान भी खोल दिया हैं। ये समय - समय पर धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट जारी भी करते रहते हैं। जबकि सबसे बड़े सांप्रदायिक और जातिवाद तथा परिवारवाद के पोषक वहीं हैं। मुलायम की पार्टी समाजवादी पार्टी हो या लालू की पार्टी राजद अथवा मायावती की पार्टी बसपा। क्या ये पार्टियां जातिवाद का सहारा लेकर देश को तोड़ने का काम नहीं करती, क्या जातिवाद से देश को खतरा नहीं हैं। सांप्रदायिकता से देश को खतरा और जातिवाद से देश बनता हैं क्या। इस देश में तो ज्यादातर पार्टियां जो स्वयं को धर्मनिरपेक्ष घोषित की हुई हैं, वे खुद घोर सांप्रदायिक और जातिवाद की शिकार हैं। हाल ही में जाति आधारित जनगणना करवाकर,  इन पार्टियों ने सिद्ध कर दिया कि इनकी मानसिकता कितनी भयानक हैं और देश को तोड़ने के लिए ये कितना बड़ा षडयंत्र रच रहे हैं। 
इसमें कोई दो मत नहीं कि आज देश को नरेन्द्र मोदी जैसे नेताओं की जरुरत हैं, क्योंकि वो जो कहता हैं, वो करता हैं। वो जाति की राजनीति नहीं करता। वो अपने छः करोड़ गुजरातियों की बात करता हैं। वो किसी दूसरे प्रांत से आये, नागरिकों को ये कहकर नहीं दुत्कारता कि तुम बिहारी हो, अपने प्रांत लौट जाओ। आज भी गुजरात के कई शहरों में लाखों की संख्या में बिहारी रहते हैं और गुजरात के विकास में चार चांद लगा रहे हैं साथ ही अपने बिहार में रह रहे परिवारों का भरण - पोषण कर रहे हैं। जरा दिल्ली में देखिये - शीला दीक्षित बिहारियों और यूपी के लोगों के बारे में क्या बयान जारी करती हैं। ये तो कांग्रेसी हैं। इनका इस प्रकार का बिहार व यूपी के लोगों के बारे में घटिया बयान क्यों आता हैं, पर जब शोर मचता हैं तो वो अपने बयान में क्यों सुधार करती हैं। पूछिये महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृश्वी राज चौहान से कि जब महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर अत्याचार होते हैं तब ये अपना मुंह क्यों सी लेते हैं। ये कुछ उदाहरण हैं। सभी को अपने गिरेबां में झांक कर देखना चाहिए। 
सब ने नरेन्द्र मोदी के नाम पर गुजरात की जनता का अपमान किया हैं। साथ ही अपमान करने का सिलसिला रुका भी नहीं हैं, जारी हैं। मीडिया व देश के कुछ पार्टियों के नेता अभी भी नरेन्द्र मोदी को सांप्रदायिक बनाने पर तूले हैं। जरुरत हैं जैसे गुजरात की जनता, गोधरा और अन्य दंगे भूलकर, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात को आगे बढ़ाने के लिए लालायित हैं। सभी मीडिया और अन्य पार्टियों के लोग अपने बयानों और कार्यो में सुधार लाये और गुजरात की जनता का अपमान करने का काम नहीं करें, क्योंकि आपको किसी ने ये अधिकार नहीं दिया कि आप बेवजह, उनका अपमान करें..............।

Wednesday, December 19, 2012

दिल्ली में दुष्कर्म, पूरा देश आंदोलित, संसद में बहस - वो रो रही थी, मंत्री जी हंस रहे थे..........................

पूरे देश ने देखा कि दिल्ली में दुष्कर्म, संसद में बहस  - वो रो रही थी, मंत्री जी हंस रहे थे। सारा देश दिल्ली में हुई गैंगरैप वाली घटना को लेकर शर्मसार हैं, आंदोलित हैं। जिनके पास चरित्र हैं, वे स्वयं को मानव कहने पर अपमानित महसूस कर रहे हैं, पर कांग्रेसियों को लज्जा नहीं आती, ये देखिये, संसद में क्या कर रहे हैं। जब राज्यसभा में दिल्ली में गैंग रैप को लेकर, समुचा सदन अवाक् था। घटना को अंजाम देनेवालों आततायियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहा था। देश के संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला मंगलवार को उस गंभीर बहस के दौरान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। जबकि इसी सदन में जया बच्चन अपनी भावनाओं को रोक नहीं पायी और उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े, हालांकि जिस पार्टी से जया बच्चन आती हैं, उनके नेता मुलायम सिंह यादव की तो बात ही निराली हैं। इनके नेता मुलायम सिंह यादव, विधानसभा चुनाव के दौरान, सिद्धार्थनगर जिले में आयोजित एक चुनावी सभा के दौरान ये कह डाला था कि हमें सत्ता में लाईये, आपको देंगे बलात्कार भत्ता। ऐसे भी हम आपको बता दें कि जैसे हर विषय पर हर पार्टियों की अलग - अलग विचारधारा होती हैं, और वे उन विचारधाराओं को मूर्तरुप देने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं। उसी प्रकार बलात्कार जैसे विषय पर भी इनकी अलग - अलग विचारधारा हैं।  संयोग से गर किसी ने इनके घर में ऐसी घटना कर डाली तो उसकी खैर नहीं, वे कानून खुद अपने हाथों में ले लेंगे, पर सामान्य जनों के लिए कानून, संविधान और पता नहीं क्या - क्या कह डालेंगे। जो उन्हें पता तक नहीं होता।
सबसे पहले कांग्रेसियों को देखिये कि इन्होंने समय - समय पर बलात्कार के बारे में क्या कहा हैं। सबसे पहले हरियाणा चलिए, जहां 2012 में इतने रेप के कांड हुए कि ये प्रदेश इसी के नाम से ज्यादा जाना जाने लगा। यहां के कांग्रेसी नेता इस कांड पर क्या - क्या बयान दिये हैं। जरा गौर करे। हरियाणा कांग्रेस के प्रवक्ता धरमवीर गोयल के अनुसार बलात्कार के लिए महिलाएं ही जिम्मेवार हैं, 90 फीसदी महिलाएं स्वेच्छा से रेप कराती हैं।
हरियाणा के ही विधायक संपत मीणा कहते हैं कि बलात्कार के लिए चाउमिन और पिज्जा जिम्मेवार हैं। कभी सोनिया गांधी ने ही हरियाणा कांड पर कहा था कि बलात्कार सिर्फ हरियाणा में ही नहीं पूरे देश में होते हैं। ऐसे में हम आपको बता दें कि कांग्रेसी सिर्फ बलात्कारियों पर ही इतनी उदारता नहीं दिखाते ये तो देश को मिट्टी में मिलानेवाली ताकतों पर भी अपनी कृपा बरसाते हैं। जैसे हाल ही में आपने गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को सुना होगा कि कैसे उन्होंने सदन में हाफिज सईद को श्री लगाकर संबोधित किया। ऐसे इसी पार्टी का एक पागल नेता, जिसे दिग्विजय सिंह के नाम से जाना जाता हैं, ये ऐसी हरकतें बराबर किया करता हैं।
आप कहेंगे कि मुझे ये बात लिखने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी। मेरा कहना हैं कि जहां के राजनीतिज्ञों की सोच बलात्कार वाले मुद्दे पर एकमत नहीं हैं. जो इस प्रकार की अमानुषिक घटना को सामान्य ढंग से लेते हो। अपराधियों को सम्मान देते हो तथा गंभीर विषयों पर जब बहस हो तो उसे हंसी में उडा़ देते हो। तब ऐसी हालत में हम ऐसे राजनीतिज्ञों से ये क्यूं आशा रखे, कि ये देश में कानून का शासन स्थापित करेंगे और बलात्कार के दोषियों को सजा दिलवायेंगे। ये तो हमारी लाशों पर राजनीति कर रहे हैं। हमारी संतानों को, वे पशुओं से भी बदतर समझते हैं, तभी तो सत्ता का स्वाद चख रहे, इन मंत्रियों के चेहरे पर मुस्कान दिखी, गर ऐसा नहीं होता तो फिर ये भी हमारी तरह, आंदोलित व आक्रोशित होते। साथ ही गैर - जिम्मेदारानां बयान नहीं देते।
हम आपको बता दें कि आज जरुरत हैं, हर परिवार को कि वे अपनी बेटियों को लक्ष्मीबाई बनाये। ये संभव हैं। गर आपने लक्ष्मीबाई बना दिया यानी स्वरक्षा के उपाय बता दिये तो फिर किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वो आपकी बेटी को छू भी सकें। क्योंकि सरकार और पुलिस से स्वरक्षा का विश्वास रखना मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं। ये सरकार और ये पुलिस, सिर्फ और सिर्फ नेताओं और उनकी बहु-बेटियों की हिफाजत के लिए हैं। आम जनता के लिए नहीं। आम जनता तो बनी ही हैं - इन नेताओं की खुराक, जमकर, जहां होता हैं ये अपने पेट में, अपने हिसाब से खुराक डाल लेते हैं।

Wednesday, December 12, 2012

12.12.12 का चक्कर..................

12.12.12 को आना ही था, वो आ गया। अब आप इसे कैसे मनाते हैं। कैसे सेलीब्रेट करते हैं। कैसे इस दिन को यादगार बना देते हैं। ये श्रेय ईश्वर ने आपको दिया हैं, पर आप 12.12.12 को सेलीब्रेट करने के चक्कर में ईश्वर को जब चुनौती दे डालते हैं, तो ये ईश्वर को तनिक भी अच्छा नहीं लगता। आज 12.12.12 को सेलीब्रेट करने के चक्कर में लोग यहीं कर रहे हैं। कई ज्योतिषियों ने तो यहां तक कह दिया कि आज के दिन जो बच्चे जन्म लेंगे वे बहुत ही बलशाली व पराक्रमी होंगे, क्योंकि आज के दिन पांच ग्रहों का संयोग मिल रहा हैं। मंगल ग्रह का प्रभाव बच्चों पर पड़ेगा और आज जन्म लेनेवाले बच्चे और दिनों की अपेक्षा कुछ बेहतर स्थिति में होंगे। इस मनगढ़ंत बेफिजूल की बातों व चर्चाओं का प्रभाव यह पड़ा या यूं कहें कि कुछ लोगों को पता नहीं क्या हो गया, वो आज ही के दिन आपरेशन करा बच्चे को जन्म दे रहे हैं और नाम दे रहे हैं कि वे मातृत्व-पितृत्व सुख पाना चाहते हैं। क्या ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देते हुए, खुद आपरेशन करा बच्चे को जन्म दिलाकर, मातृत्व-पितृत्व सुख पाना सहीं हैं। 
कुछ लोग आज ही वैवाहिक जीवन का आनन्द लेने की कामना करते हुए दाम्पत्य सूत्र में बंध रहे हैं। ऐसा करने से उन्हें लगता हैं कि उनका जीवन धन्य हो जायेगा और कुछ लोग अजीबोगरीब हरकतें कर रहे हैं, जिसे देख हमें लगता हैं कि हम पढ़े - लिखे लोगों की दुनिया में हैं, या मूर्खों की दुनिया में। अनपढ़ लोग जब ऐसी हरकतें करते हैं तो समझ में आता हैं कि वे अनपढ़ हैं, पर पढ़े लिखे लोग ऐसी हरकतें करे तो क्या कहेंगे। एक घटना सुनाता हूं, जब आपरेशन से बच्चों का जन्म नहीं होता था, तब ऐसी हालात नहीं थी, जबसे आपरेशन की धंधे ने जोर पकड़ा, ऐसी वाहियात बातों का प्रभाव ज्यादा दिखा। सच्चाई ये हैं कि बच्चे - बच्चे होते हैं। ये ईश्वरीय अनुभूतियां हैं, आप इन्हें ईश्वर पर ही छोड़ दे। उन्हें जब ईश्वर ने मुकर्रर कर दिया हैं, दुनिया में आने को। उन्हें उस दिन ही आने दे, नहीं तो इसका खामियाजा आपको ही भुगतना पड़ेगा और फिर आप जिंदगी भर अपने आपको कोसते रहेंगे कि आपने ऐसा क्यूं किया। एक उदाहरण, जो अपने जीवन में घटा हैं, वो आपके समक्ष रखता हूं। एक व्यक्ति ने एक ज्योतिष के घर जाकर कहा, ज्योतिष महोदय। डाक्टर ने कहां हैं कि आपका बच्चा आपरेशन से होगा, आप जब कहें दो तीन दिन के अंदर आपरेशन कर बच्चे को दुनिया में ले आया जाय। आप ये बताये कि कौन दिन आपरेशन कराना अच्छा रहेगा, ग्रहों की स्थिति किस दिन शुभ और अद्भुत हैं, जिस दिन बच्चे को दुनिया में ले आया जाये, और एक पंथ दो काज हो जाय। ज्योतिष ने सारे पंचांग उलटकर डेट मुकर्रर कर दी। और उक्त डेट को बच्चा दुनिया में आ गया। बच्चा जब दुनिया में आया तो फिर ज्योतिष से पंचांग दिखाने की, कुंडली बनाने की बात हुई। चूंकि जन्म के पहले ही पंचांग दिखा लिया गया था, अब केवल औपचारिकता पूरी की गयी। ज्योतिष ने कहा - अरे जजमान, गजब हो गया। आपका बच्चा होनहार, विद्वान, महापराक्रमी, बलशाली हैं, कोई इसके सामने टिकेगा ही नहीं। एकदम मस्ती में रहेगा। जब तक रहेगा, दोनों हाथों में इसके लड्डू रहेंगे। जजमान खुश। ज्योतिष को मुंहमांगी दक्षिणा देकर विदा किया गया। इधर बच्चे के ननिहाल से भी बच्चे को देखने की जिज्ञासा हुई कि ज्योतिष ने कहा हैं कि बच्चा बहुत ही पराक्रमी होगा, हम भी देखे कि मेरा नाती कैसा हैं, मेरा भांजा कैसा हैं। ननिहाल के नाना - नानी, मामा- मामी सभी व्याकुल। छोटा सा बच्चा, जब चार साल का हुआ, वो अपने ननिहाल पहुंचा। सभी खुश, दिन खुशियों से कट रहे थे। ज्योतिष की बात, कुछ सर चढ़ कर बोल रहा था। सभी ज्योतिष की बातों में फूले नहीं समा रहे थे। अचानक एक घटना घटी, चार साल का बच्चा, आकाश से आती हुई किसी चीज को देखने के लिए दौड़ा, शायद पतंग होगा। उसके पांव, खूले छत से फिसले और वो जमीन पर गिर पड़ा। उसे लोग लेकर फिर अस्पताल की और दौड़े और बच्चा दुनिया में मात्र चार साल ही टिक सका। लोग ज्योतिष को कोसने लगे, कि आपने कहा था - ऐसा होगा, वैसा होगा। लेकिन बच्चा तो चार साल में ही दुनिया से चल बसा। ज्योतिष ने कहा कि जजमान मैने गलत कहां कहा। बच्चे की चार साल की आयु थी और इन चार सालों में मैं वो पूरी तरह मस्ती काटा, मैने तो बच्चे की जन्म कुंडली देखी थी, आपकी नहीं। इसलिए आप देखे की बच्चा चार साल में ही मस्ती काटी की नहीं। बच्चे के माता - पिता के होश उड़ गये। वो ज्योतिष की बातों और उसकी इस सोच से अवाक् हो गये। 
आज जिस प्रकार से बच्चे को जन्म दिलाने  और शादी करने की होड़ 12.12.12 के चक्कर में लगी हैं। हमें लग रहा हैं कि कहीं ऐसा नहीं कि लोग इस 12.12.12 के चक्कर में अपने ही हाथों से आनेवाले भविष्य के सुखद पल का कहीं गला न घोंट दे। हम तो यहीं चाहेंगे कि लोग ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने के बजाय, ईश्वर को हाजिर-नाजिर मानकर, ये दिन भी उन्हीं को सौंप, इसका आनन्द लें, तभी हम सच्चे सुख का आनन्द ले पायेंगे, नहीं तो वहीं होगा, जो मैंने एक सच्ची घटना के माध्यम से आपके समक्ष कुछ कहने की बात रखी............

Wednesday, December 5, 2012

रस्सी जल गयी पर बल नहीं गया...................

आपने एक लोकोक्ति जरुर सुनी होगी - रस्सी जल गयी पर बल नहीं गया। ये लोकोक्ति बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद सुप्रीमो तथा मसखरी मे प्रवीण लालू प्रसाद यादव पर फिट बैठती हैं। बिहार की सत्ता से बेदखल होने के बाद, मुझे लगा था कि ये सुधरेंगे। मसखरी छोड़ेंगे, थोड़ी बुद्धिमानी दिखायेंगे, पर वो कहते हैं न कि नेचर और सिंगनेचर कभी बदलते नहीं। इस कहावत को भी सही कर दिखाया हैं -- माननीय फूहड़, श्री लालू प्रसाद यादव ने। मैंने फूहड़ शब्द का प्रयोग इसलिए इनके लिए किया, क्योंकि आज ही एफडीआई पर संसद में हो रही बहस के दौरान, एक सांसद को धमकी देने के क्रम में, इन्होंने खुद ये कह डाला कि वे उक्त सांसद से ज्यादा फूहड़ हैं। क्यों नहीं लालू जी, आप फूहड़ ही नहीं बहुत कुछ हो सकते हैं। आपने तो कई कीर्तिमान बनाये हैं, बिहार में। देश में। क्या - क्या कीर्तिमान बनाये हैं, जरा आप खुद देखे।
1.  आप देश के कई युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं। मेरे कई मित्र जो पत्नी भक्त हैं, उन्हें मैं बार - बार कहता हूं कि तुम क्या पत्नी भक्त होगे, जो हमारे लालू जी हैं। उन्होंने अपनी पत्नी को बिहार का मुख्यमंत्री तक बना दिया, तुमने अपनी पत्नी के लिए क्या किया। इसलिए पत्नी भक्ति में आपसे बेहतर दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
2. जो लोग स्वयं को संकल्पित जीवन व्यतीत करने का दावा करते हैं, उन्हें मैं तो आपका ही प्रमाण देता हूं कि लालू जी जो कहते हैं, वो करते भी हैं, जैसे उन्होंने कहा था कि बिहार उनके जीवित रहते कभी बंट ही नहीं सकता, उनकी लाश पर बनेगा झारखंड। पर जैसे ही आपकी कुर्सी हिलने को दिखी, और बिहार की जनता ने थोड़ी सीट आपकी झोली में कम कर दी,  आपने झारखंड बनवा दिया और बिहार का नक्शा, इतना छोटा हो गया कि हम क्या कहें। ये श्रेय भी, मैं आपको देना चाहता हूं।
3. जब आप सत्ता में थे, तो आपकी कृपा से, आपका अनुग्रह पाकर आपके पशु भी, विभिन्न प्रकार के शो में, प्रथम हो जाया करते थे। चाहे वो डॉग शो हो या हार्स शो।
4. बिहार में लाख आप नीतीश को गाली दे, पर इतना तो नीतीश ने जरुर किया कि कम से कम बिहार की जनता उनके ससुराल और उनके शालों को तो नहीं ही जानती, जैसा कि आप के ससुराल के बारे में जानती हैं।
5. आप जिस संसदीय दल में शामिल होकर पाकिस्तान गये थे, और पाकिस्तान के बाजार में आलू का मॉडल देख रहे थे, वहीं पाकिस्तान और वहां की जनता, नीतीश के शासन की तुलना आपके शासन की तुलना से कर, नीतीश को बेहतर शासक के रुप में प्रोजेक्ट कर रही हैं, जबकि आप की थू - थू हो रही हैं, ज्यादा जानकारी के लिए, आपसे संबंधित रिपोर्ट यूट्यूब पर भरी पड़ी हैं, पाकिस्तान के किसी भी चैनल के टीवी समाचार रिपोर्ट को आप देख लें अथवा पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की बिहार पर इंटरव्यू देख लें।
6. कल तक जिस मीडिया को आप कोसते नहीं थकते थे, सुनने में आ रहा हैं कि मीडिया के भाईयों और मीडिया के मालिकों को धन देकर, आप अपनी सभा की सीधी लाईभ शो करवा रहे हैं, और कुछ प्रिंट मीडिया के लोगों को उपकृत कर, अपनी तारीफ के पूल बंधवाने का कार्य आपने प्रारंभ किया हैं।
ये कुछ उदाहरण हैं, जो मैंने आपकी तारीफ में लिखे हैं। ऐसे भी आपने जो जातिवाद का बीज बिहार में बोया हैं, वो कभी मिट ही नहीं सकता। आज आप जो नकली ब्राह्मण प्रेम दिखा रहे हैं। आपने ब्राह्मणों को कितनी गालियां दी हैं, वो पटना जंक्शन पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु की प्रतिमा ही बतायेगी। जब आप एक सशक्त नेता बिहार के गिने जाते थे, तब आपने, देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की प्रतिमा पर उनके जन्मदिन के दिन माल्यार्पण करना, अपनी शान के खिलाफ समझा था और आज सोनिया व राहुल की गणेश परिक्रमा बारंबार करने के बाद, बिहार की गलियों में घूम घूमकर ब्राह्मणों का आशीर्वाद मांग रहे हैं। मैं बिहार का ही रहनेवाला हूं। आपने किस प्रकार से बिहार के विकास में अहम योगदान देनेवाले लोगों व जातियों का आपने शासनकाल में अपमान किया हैं, वो मुझसे बेहतर कौन जान सकता हैं। आपने अपने शासन के दंभ में, कितने लोगों को सताया हैं, अपमानित किया हैं, केवल इसका पश्चाताप कर लें, तो बिहार की जनता आपको माफ कर दें, पर आपको पश्चाताप करना भी नहीं आता। आप तो स्वयंभू मसखरे हैं, आपको मसखरी करने से फूर्सत कहा हैं। मसखरी के चक्कर में आपने आज एफडीआई पर हो रही विशेष बहस के दौरान संसद में वो कह डाला, जिससे बिहार की जनता की बदनामी हो गयी। आपने भाजपा को जमूरा बता दिया, जबकि सबसे बड़ा जमूरा तो आप ही हैं। ये अलग बात है कि आपने भाजपा से इसके लिए माफी मांग ली। प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने संसद में आप पर ठीक ही टिप्पणी की -- आपको गाठें खोलना नहीं आता और मसखरी के अलावा कुछ बोलना नहीं आता। आप संसद में कहते हैं कि गर गलत हुआ तो राजद के लोग सारे दुकानों में आग लगा देंगे। आपको आग लगाने का मौका भी ये एफडीआई देगा, अरे आपने अपने ही चिराग से देश के कई घरों में आग लगा दी। आपको क्या पता कि एफडीआई से देश को क्या नुकसान होने जा रहा हैं। आप को तो सिर्फ सीबीआई की चिंता सता रही हैं। आप अच्छी तरह जानते हैं कि अभी सत्ता कांग्रेस के हाथों में हैं, और सीबीआई की चाबी केन्द्र सरकार के हाथों में है। आप चारा घोटाले में बुरी तरह फंसे हैं। इसलिये सोनिया -  राहुल की परिक्रमा करने के सिवा आपके पास दूसरा कोई चारा नहीं हैं। बस इनकी परिक्रमा करते रहिए, समय - समय पर मसखरी कर, इनका दिल बहलाते रहिए, देश भाड़ में जाय, आपको क्या मतलब। आपको और आपके परिवार को बस समय - समय पर सत्ता का रसास्वादन करने का मौका मिल जाय, बस इतना ही आपके लिए काफी हैं। ऐसे भी बिहार में आपने जातीयता का ऐसा बीज बोया हैं कि उसका फायदा, देर सबेर आप जब तक जीवित रहेंगे आपको छोड़ दूसरे को थोड़े ही मिलने जा रहा। जातीयता के घोड़े पर सवार होकर, जमकर बिहार व देश को बर्बाद करते रहिए, आम जनता को धोखा देते रहिए। इससे ज्यादा यहां की जनता को आपसे आशा भी नहीं हैं।

Sunday, December 2, 2012

ए गोपाल भैया, हमरा डर लागता, पहुंचा द...................................

ये उस वक्त की बात हैं, जब मेरी उम्र करीब छः - सात साल रही होगी। मां - बाबुजी प्रतिदिन रात के वक्त जब हम सोने जाते, तो एक से एक कहानियां सुनाते। वो कहानी निरंतर, मेरे लिए मार्गदर्शन का काम करती। आज भी, जब मैं एकांत में होता हूं, तो उनकी यादें अनायास, आती रहती हैं, साथ ही जीने का मार्ग प्रशस्त करती हैं। जीवन कैसा हो, किसके लिए हो, ये भी सहज भाव से बता जाया करती हैं। एक बार जब मुझे किसी बात को लेकर बहुत डर लगा, तो मेरी मां ने मुझे समझाया कि भगवान तो सभी जगह हैं, वो हमेशा हमारी सहायता को तत्पर रहते हैं, तो फिर डर किस बात का। बस करना सिर्फ इतना हैं, कि उस प्रभु को हमेशा याद रखना हैं। 
प्रभु को याद रखना हैं, ये कहते हुए, मेरी मां ने मुझे एक कहानी सुनाया जो आज भी मुझे प्रेरित करती हैं। चूंकि मां ग्रामीण परिवेश से थी, तो उसकी बातों में ग्रामीण भाषाओं और शब्दों के भाव स्पष्ट रुप से दिखाई पड़ते। मां कहानियां सुनाती और कहानी सुनने के क्रम में, मैं हुंकारी भरे जाता। इधर मां कहानी सुनाने के क्रम में बड़े ही सहज भाव से मेरे सर पर हाथ फिराया करती, तथा मेरे बालों में अपनी उँगलिया फिराया करती। मां का कहानी कहना और हाथों की जादूई स्पर्श, हमें स्वर्ग का आनन्द करा दिया करती। मैं भी उस वक्त रात की प्रतीक्षा करता और खुब ध्यान से मां के द्वारा कही गयी कहानियों को अपने हृदय में भरा करता। 
जाड़े की सर्द भरी रात, जमीन पर रखे धान के पुआल पर बिछे फटे चीटे खेंदरे, मां के जादूई स्पर्शवाले हाथों की थाप और मां के मुख से निकली कहानियों के बीच कब नींद आ जाती, हमें पता ही नहीं चलता। सुबह हुई, लीजिए, फटी - पुरानी धोती की गांथी बन गयी और उन गांथियों में ठंड महाराज, हमें हरा दें, ऐसा ठंड महराज का मजाल नहीं। भाई गांथी तो गांथी हैं। इसका जवाब कभी भी, आज के हजारों - लाखों रुपये के गर्म कपड़े नहीं दे सकते, ये तो गंवई पोशाक हैं, जो बिहार के आज भी सुदूरवर्ती इलाकों में, ठेठ गांव में देखने को मिल जायेगा।
लीजिए, हमारी यहीं सबसे बड़ी दिक्कत हैं, हम आपको चले थे कहानी सुनाने और लिख रहे हैं पोशाक वृतांत, ये तो बड़ा ही गड़बड़झाला हैं। तो लीजिए आप भी सुनिये, जो मैने अपनी मां से सुना, वो भी छः - सात साल की उम्र में, शायद आपको अच्छा लगे। मां ने कहना शुरु किया कि बहुत पहले, मेरे जैसा ही एक छोटा सा बालक, जिसका नाम श्याम था। वो अपनी मां के साथ रहा करता था। मां उसकी बहुत गरीब थी, पर उसका श्याम पढ़ लिखकर एक चरित्रवान नागरिक बने, ऐसा सोचा करती। एक दिन, उसने पास के ही एक गांव के स्कूल में श्याम का नाम लिखवा दिया, पर दिकक्त ये थी कि स्कूल जाने से लेकर आने तक में घने जंगल का रास्ता पार करना, श्याम के लिए खतरे से खाली नहीं था। एक दिन उसने अपनी मां से कहा कि मां, मुझे स्कूल जाने में डर लगता हैं। तभी उसकी मां ने कहां कि बेटा जहां भी डर लगे, तुम अपने बड़े भैया, गोपाल भैया को पुकारना। वो आयेंगे और तुम्हें घर से स्कूल और स्कूल से घर तक पहुंचा देंगे। फिर क्या था। श्याम की सारी परेशानी दूर होती दिखाई दी। जब वो घर से स्कूल जा रहा था, तभी जंगल के रास्ते में उसे डर सताने लगी, उसने बड़े ही दर्द भरी आवाज से गोपाल भैया को आवाज दी। श्याम ने कहा -- ऐ गोपाल भैया हमरा डर लागता पहुंचा द....। फिर क्या था गोपाल भैया आये और श्याम की छोटी सी अंगूली को पकड़, स्कूल तक पहुंचा दिया। जब स्कूल से वह घर लौटने लगा तब फिर उसने आवाज दी- ऐ गोपाल भइया हमरा डर लागता पहुंचा द....। पुनः गोपाल भैया आये और श्याम को स्कूल से घर तक पहुंचा दिया। इसी प्रकार से ये रोज का क्रम बन गया। श्याम की गोपाल भैया से दोस्ती हो गयी, गोपाल भैया रोज श्याम के साथ घुलमिलकर स्कूल और घर तक पहुंचाने का कार्य करने लगे। 
एक दिन स्कुल में जन्माष्टमी का त्यौहार मनाने का कार्यक्रम रखा गया। स्कूल के प्राचार्य ने सभी बच्चों को अपने अपने घर से दुध लाने का आदेश दिया। सभी बच्चे ने दुध लाने की हामी भरी। दुध से खीर बनाया जाना था, और फिर भगवान कृष्ण को भोग लगाया जाना था, क्योंकि भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव जो था। श्याम ने अपनी मां से दूध की मांग कर दी। बेचारी श्याम की गरीब मां, दुध कहां से लाती, उसके पास तो एक पैसे तक नहीं थे। वो क्या करती। उसने सहज भाव से कह दिया कि श्याम, तुम अपने गोपाल भैया से क्यों नहीं दूध मांग लेते। श्याम ने कहां - ठीक हैं मां ,मैं गोपाल भइया से ही दूध मांग लूंगा। इधर श्याम जैसे ही घर से स्कूल के लिए निकला। उसने गोपाल भैया से दूध की मांग कर दी। गोपाल भैया ने एक छोटी सी लुटिया में दूध की व्यवस्था कर दी। जब श्याम छोटी सी लुटिया में दूध लेकर पहुंचा तो देखा की सभी बच्चे बड़े बड़े पात्रों में दूध लेकर आये थे। स्कूल के शिक्षक, बड़े बड़े पात्रो में लाये गये दूध की अच्छी व्यवस्था कर रहे थे, ताकि वे सारे दूध जल्द से जल्द सुरक्षित रख लिये जाये, पर बेचारे श्याम के पास तो छोटी सी लुटिया हैं, उसकी ओर तो शिक्षक देख ही नहीं रहे। उसने बड़ी ही विनम्रता से शिक्षक से दूध लेने के लिए विनती की। फिर भी शिक्षक ने श्याम की बातों पर ध्यान देना जरुरी नहीं समझा। शायद उन्हें लगा हो कि छोटी सी लुटिया की दूध से कही अच्छा है कि बड़े पात्रों के दूध को जल्द से जल्द रख लिया जाय। शिक्षक द्वारा श्याम की बात को बार - बार अनसूनी कर देने तथा श्याम द्वारा बार - बार अनुरोध किये जाने पर, शिक्षक क्रुद्ध हो, झल्ला उठे। लाओ - अपनी लूटिया, देखते है कितना दूध हैं। शिक्षक ने लूटिया से अपने पात्र में दूध डालना शुरु किया।
ये क्या -- प्रभु की कृपा। लुटिया की दूध तो समाप्त ही नहीं हो रही। सारे के सारे पात्र दूध से भर गये। शिक्षक हैरान, सारे बच्चे हैरान, ये कैसे हो सकता हैं। बात स्कूल के प्राचार्य तक पहुंच गयी। प्राचार्य ने श्याम को बुलाया कि श्याम ये छोटी सी अद्भुत दूध से भरी लुटिया किसने दी। श्याम ने बड़े ही आदर से प्राचार्य को कहा कि गुरुजी ये हमारे गोपाल भैया ने दिया हैं। प्राचार्य ने कहां कि तुम मुझे अपने गोपाल भैया से मिला सकते हो। श्याम ने कहां - क्यों नहीं गुरुजी, वो मेरे साथ हमेशा घर से स्कूल और स्कूल से घर आया जाया करते हैं। प्राचार्य ने कहा कि आज हम तुम्हारे साथ घर चलेंगे। श्याम ने कहा कि क्यों नहीं गुरुजी। आज आप जरुर चले। मेरे गोपाल भैया बहुत ही सुंदर और बहुत ही अच्छे हैं। श्याम ने जैसे ही कहा, प्राचार्य श्याम के साथ स्कूल से श्याम के घर की ओर निकल पड़े। श्याम जैसे ही स्कूल से निकला, उसने आवाज दी - ऐ गोपाल भैया, हमरा डर लागता पहुंचा द। गोपाल भैया ने कहा कि श्याम आज तो तुम्हारे स्कूल के प्राचार्य, तुम्हारे साथ साथ चल रहे हैं, फिर भी डर लग रहा हैं। श्याम ने कहा - भैया, आप हमारे साथ चलिये, हमे बहुत ही अच्छा लगता हैं। गोपाल भैया, श्याम के निश्चल भावयुक्त बातों को सुन प्रभावित हो गये, और श्याम के साथ चल पड़े। इधर स्कूल से घर तक श्याम, अपने प्राचार्य के साथ आ चुका था, पर ये क्या प्राचार्य को, जिनकी तलाश थी, वो तो उन्हें दीखे नहीं। प्राचार्य ने श्याम से शिकायत की, कहा - श्याम तुमने तो कहा था कि तुम गोपाल भैया से मिलाओगे, पर तुमने अपने गोपाल भैया से मिलाया नहीं। श्याम ने कहा कि प्राचार्य महोदय, आपने मेरे गोपाल भैया को देखा नहीं, ये क्या गोपाल भैया, मेरे साथ खड़े हैं, बहुत ही सुंदर, हाथ में मुरली लिए, कितनी इनकी सुंदर छवि हैं, मैं देख रहा हूं, आप नहीं.......।
भगवान मुस्कुराये, शायद, भगवान की मुस्कुराहट कुछ संदेश दे रही थी, कि जो सहज हैं, सरल हैं, सहृदय हैं, उसके लिए, भगवान को तो हर समय आना पड़ता हैं, इसलिए भय कैसा। 
मेरी मां ने कहां- भगवान, सर्वत्र हैं, कोई अनाथ नहीं हैं, सभी सनाथ हैं, इसलिए डर कैसा, उन्हें पुकारो, वो तु्म्हारे साथ हैं। आज भी हमें लगता हैं कि वो तो हमारे साथ हैं। कभी वो अलग, हमसे हुए ही नहीं।

Thursday, November 29, 2012

ट्रेन में वो अनोखा प्यार........................

ये उन दिनों की बात है। जब मैं ईटीवी में अपनी सेवा दे रहा था। उन्हीं दिनों ईटीवी मुख्यालय हैदराबाद में हर तीन - तीन महीने पर ईटीवी के मालिक रामोजी राव स्वयं बैठकें लिया करते थे। समय - समय पर कुछ लोगों को उस बैठक में आमंत्रित भी किया जाता था। संयोग से उन दिनों, मैं तीन - चार बैठकों में भाग लिया था। इन्हीं बैठकों में भाग लेने के दौरान, मैंने फलकनुमा एक्सप्रेस में कुछ दृश्य देखे, जो आज भी हमें रोमांचित करते हैं। कभी - कभी तो मेरी जुबां से, उन दृश्यों को याद कर, ये शब्द अनायास निकल पड़ते हैं कि लोग प्यार को क्या समझते हैं। शारीरिक भूख अथवा त्याग की पराकाष्ठा। 
आज फिर वो दृश्य याद आये हैं। मैं अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूं और उन्हें शब्दों में पिरोने की कोशिश कर रहा हूं। मैं, अपने मित्रों के साथ हैदराबाद से रांची के लिए लौट रहा था। सिकन्दराबाद के आठ नंबर प्लेटफार्म पर, फलकनुमा एक्सप्रेस लगी थी। मैं उक्त ट्रेन में यथोचित बर्थ पर जाकर विश्राम की मुद्रा में आ गया। ट्रेन चल पड़ी थी। मुझे इस ट्रेन को खड़गपुर में छोड़कर, खड़गपुर से ही रांची के लिए हावड़ा हटिया एक्सप्रेस पकड़ना था। बच्चों की याद आ रही थी। साथ ही पत्रकारिता जगत में मनुष्य के रुप में छुपे पशु भी धीरे धीरे एक - एक कर हमारे हृदय में अवतरित हो रहे थे। कैसे लोग, अपनी घटियास्तर की मनोवृत्ति को, अक्षरशः सिद्ध करने के लिए, नाना प्रकार का कुकर्म करते हैं। वह भी देखकर, मैं अचंभित था। कुछ लोग इस प्रकार के बारे में, हमसे कह चुके थे -- जनाब यहीं दुनियादारी हैं। मैं दुनियादारी, शायद समझ रहा था। इसी दुनियादारी के क्रम में रांची, डालटनगंज और धनबाद की परिक्रमा कर चुका था, पर मैं अपने परिवार के द्वारा मिले संस्कार की बात कहूं या 32 वर्षों तक उन संस्कारित व्यक्तियों की मिली श्रृंखला कहूं, जिससे हमें यहीं प्राप्त हुआ कि गंगा बहती रहती हैं, कुछ लोग उससे आचमन करते हैं और कुछ लोग उसी में गंदगी बहाते हैं, पर गंगा तो गंगा हैं, उसे इससे क्या मतलब की, उसके जल से कौन क्या करता हैं, वो तो सदैंव पहले भी बहा करती थी, आज भी बहती हैं और कल भी बहेगी। लेकिन अब तो चिंता होती हैं कि गंगा अब कैसे बहेगी, कई ने इसकी धारा को रोकने का वो प्रयास शुरु किया हैं कि अब गंगा के भविष्य को भी खतरा उत्पन्न हो गया हैं, फिर भी इन सब बातों से दूर, आज गंगा बह रही हैं। यहीं हमारे लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।
बात कर रहा हूं, अनोखे प्यार की, कही विषय से विषयांतर न हो जाउं, इसका मुझे डर बराबर लगा रहता हैं, फिर भी, अब मैं उस प्लाट पर आता हूं, जो हमारे विषय का महत्वपूर्ण बिंदु है। फलकनुमा एक्सप्रेस अपनी तेजी से बढ़ी जा रही थी। रात कब बीती, पता ही न चला। देखते देखते ट्रेन सुबह के वक्त श्रीकाकुलम को पार करते हुए, उड़ीसा प्रांत में प्रवेश कर चुकी थी। अचानक मैंने देखा कि जिस डिब्बे में हम थे। उस डिब्बे में ब्रह्मपुर स्टेशन के पास एक वृद्ध जिनकी उम्र 85 की होगी, दयनीय अवस्था में, अपनी 77 -78 वर्षीया वृद्ध पत्नी के साथ जैसे - तैसे ट्रेन में सवार हुए। ट्रेन में सवार टीटीई ने उन्हें नीचे उतारने की असफल कोशिश की, पर वृद्ध और वृद्धा की कातर आंखों ने, उक्त टीटीर्ई पर ऐसा करने से रोक लगा चुकी थी। उधर वृद्ध ने वृद्धा को एक ओर बिठाया, थोड़ी राहत की सांस ली। राहत की सांस लेने के बाद, उक्त गर्मी में, वृद्धा की प्यास कैसे बुझे, वृद्ध ने ट्रेन में ही बिखड़े प्लास्टिक के बोतलों का सहारा लिया और उसमें पड़े पानी से वृद्धा की प्यास बुझायी। प्यास बुझाने के बाद, वृद्धा को कुछ सांकेतिक भाषाओं में समझाते हुए, उसने हर डिब्बे की चक्कर लगानी शुरु कर दी। इधर मैं अपने बर्थ पर जाकर, आराम करना शुरु किया, तभी अचानक, मुझे नीचे से कुछ सरकने की आवाज आयी। नीचे देखने पर, हमने देखा कि उक्त वृद्ध कुछ खोज रहा था। हमें अधिक दिमाग लगाने की जरुरत ही नहीं पड़ी। उसके एक हाथ में प्लास्टिक के बैग में पड़े भोजन के अवशेष बताने के लिए काफी थे कि वह रेलयात्रियों के खाये हुए भोजन से बचे जूठन से कुछ अपने लिए और अपनी पत्नी के लिए भोजन की तलाश कर रहा था। देखते - देखते, वह बहुत कुछ अपने लिए निकाल चुका था। फिर उसने अपनी पत्नी के पास जल्दी पहुंचना जरुरी समझा। इधर ट्रेन भुवनेश्वर के आस - पास आ चुकी थी। मैं थोड़ा अपनी बॉडी को सीधा करने के लिए, डिब्बे के दरवाजे तक पहुंचा।
डिब्बे के दरवाजे पर जो हमने दृश्य देखा, वो चौकानेवाले थे। वृद्धा गर्मी से बेहाल थी। संभव हैं, उसे बुखार भी होगा, क्योंकि जो उसके चेहरे थे, वो बहुत कुछ कह रहे थे। अचानक प्लास्टिक के थैले से वृद्ध ने भोजन के जूठन से एक टूटा फूटा अंडा निकाला और अपनी वृद्ध पत्नी को खाने को दिया। वृद्ध पत्नी ने उसे खाने से मना कर दिया। उसने  ( वृद्ध पत्नी ने ) कहा कि पहले तुम ( वृद्ध ) खाओ। वृद्ध ने कहा कि तुम ( वृद्ध पत्नी ) बीमार हो, तुम इसे खाओगी तो तुम्हें ताकत होगा, और जल्दी ठीक हो जाओगी। इधर वृद्ध पत्नी ने कहा कि नहीं ये अंडा हैं, इसमें बहुत ताकत होता हैं, तुम ( वृद्ध ) खाओगे, तो तुम्हें ताकत होगी, फिर तुम ( वृद्ध ) जब स्वस्थ होगे, तो तुम  ( वृद्ध ) देखभाल हमारी ( वृद्ध पत्नी को )अच्छी तरह कर सकोगे, नहीं तो हमारी देखभाल कौन करेगा। इसी प्रेमालाप वाली तकरार में समय बीत रहा था, पर न तो वृद्ध और न वृद्ध की पत्नी ही खाने को तैयार थे, अंत में दोनों ने निश्चय किया कि दोंनो आधी - आधी खायेंगे ताकि किसी को किसी के प्रति हीनभावना न आये और दोनों ने ऐसा ही किया। 
ऐसी अवस्था जहां पर कोई किसी को पूछने को तैयार नहीं, वहां ऐसी सोच, रेल में यात्रा करते समय हमें एक संदेश दे गया। प्रेम का मतलब क्या - स्वार्थ या त्याग। गर स्वार्थ है तो वहां प्रेम रह कैसे सकता हैं। जहां त्याग होता हैं वहीं तो प्रेम हैं। सचमुच फलकनुमा एक्सप्रेस की वो प्रेमगाथा, हमें आज भी याद आती हैं और मैं बेचैन हो उठता हूं। एक सवाल ये भी अपने आप से पूछता हूं कि दुनिया में कितने लोग हैं जो अपनी पत्नी को इस प्रकार से प्रेम करते हैं या पत्नियां अपने पति के प्रति इतना सुंदर भाव रखती हैं।

Tuesday, November 13, 2012

दीपावली के मर्म को समझिये, अपने देश से प्यार करना सीखिये..............................

आज दीपावली है। पूरे देश में दीपावली की धूम है। हर जगह जिनके पास पैसे हैं, उन्होंने अपने अट्टालिकाओं को खूब सजाया है, साथ ही उन अट्टालिकाओं के अंदर अपने जरुरत के सामानों की खूब खऱीदारी की हैं। दीवाली के दिन धमाका करने और जमकर मिठाई खाने का भी अच्छा प्रबंध किया हैं। प्रबंध करना भी चाहिए क्योंकि लक्ष्मी जी ने इन पर जब कृपा की हैं तो वो कृपा दृष्टिगोचर होना ही चाहिए पर सच्चाई ये भी हैं कि इन अट्टालिकाओं के आस - पास के कई घरों में आज भी चूल्हें नहीं जलेंगे, शायद लक्ष्मी जी इस बार भी उनके घरों से रुठी नजर आ रही है, पर खुशी इस बात की, इन गरीबों ने कम से कम देश का तो अहित नहीं ही किया। गर इनके पास भी पैसे होते तो शायद ये भी वहीं करते, जो हर दीपावली के दिन अट्टालिकाओं में रहनेवाले किया करते हैं, यानी विदेशी वस्तुओं की खरीदारी कर, दूसरे देशों के आर्थिक स्थिति को और मजबूत करते।
खैर छोडि़ये कौन क्या कर रहा हैं, ये तो उसके विवेक और देशभक्ति पर निर्भर करता हैं कि वे इन सारी चीजों को किस रुप में देखता हैं। एक व्यक्ति जन्म लेता हैं अपने देश को मजबूत बनाने के लिए और दूसरा व्यक्ति जन्म लेता हैं, ये करने के लिए कि देश से उसे क्या मतलब, पशुओं की तरह खाना - पीना, ऐश करना और दूनिया से चल देना हैं। ऐसे में ये जान लेना जरुरी हैं कि इस दीपावली में कौन से देश ने सर्वाधिक दीपावली का फायदा उठाया। आज क्या हो रहा हैं कि दीपावली का सर्वाधिक मुनाफा किसी ने उठाया तो वो हैं चीन, जापान और अमरीका जैसे देश। जरा देखिये चीन क्या कर रहा हैं। हमारे दीपावली पर्व पर अपने देश की बनी सारी सामग्रियों को भारत के बाजार में ठेल दिया। यहीं नहीं अब लक्ष्मी - गणेश की प्रतिमा भी भारत में नहीं बल्कि चीन से बन कर आ रही हैं और उनकी पूजा हो रही हैं। चीन की बनी लक्ष्मी - गणेश से सुख-समृद्धि की कामना हो रही हैं। है न आश्चर्य की बात.....................। क्या चीन में बने गणेश - लक्ष्मी से हमारे देश अथवा हमारे घर की अर्थव्यवस्था सचमुच सुदृढ़ होगी कि कुछ उलट हो रहा हैं। हम अपने पैसों से इन चीजों को खरीद कर किसे मजबूत कर रहे हैं और इससे वो मजबूत होकर हमारे प्रति वह क्या रवैया अपना रहा हैं, क्या ये किसी से छूपा हैं। क्या ये सच नहीं कि वो अभी भी अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम तथा कभी कभी जम्मू कश्मीर पर भारत के खिलाफ विषवमन करता हैं और गाहे बगाहे जब कभी मौका मिलता हैं, वो अपनी खीझ निकालता है, दूसरी ओर हम क्या कर रहे हैं। उनकी सामानों को खरीदकर उसे मजबूत बनाने और महाशक्ति बनाने में मदद कर रहे है और अपने देश भारत की खटिया खड़ा कर रहे हैं। आनेवाले समय में वो क्या करेगा किसी से छुपा हैं क्या................................
क्या ये सही नहीं है हमारे द्वारा ही मजबूत किये गये अपनी अर्थव्यवस्था से, ये अपने ही देश के हृदय में खंजर भोकते हैं। सीमा पर रहनेवाले हमारे जवानों के सीने में गोली उतारकर, हमारे जवानों के सीने को गोलियों से छलनी कर देते हैं। अपने देश के अंदर रहनेवाले नरपिशाचों पर वे पैसे खर्च करते हैं और ये नरपिशाच हमारे जवानों के खून से होली खेलते हैं। सच्चाई ये भी हैं कि इन घटनाओं को सभी जानते हैं, पर इन घटनाओं को नजरंदाज कर, हम एकमेव वहीं कार्य करते हैं, जिसमें उनकी घटियास्तर की निजी स्वार्थ छिपी रहती हैं। देशभक्ति तो दिखती ही नहीं। देशभक्ति तो सिर्फ अरबों - खरबों रुपये के बने क्रिकेट स्टेडियम में दिखाई पड़ती है। जब भारत किसी अन्य देश से क्रिकेट खेल रहा होता हैं और इक्के दूक्के राष्ट्रीय ध्वज किसी भारतीय के हाथों में दिखाई पड़ते हैं, पर ऐसी देशभक्ति से क्या मतलब.............। जिससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं होती, जिससे देश महाशक्ति नहीं बन सकता। जिसमें जीत होने के बावजूद, हमारे देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को वो सम्मान नहीं मिलता, जितना की सम्मान अमरीका, जापान या चीन के राष्ट्राध्यक्षों को होता हैं।
जरा देखिये, दो दिन पहले धनतेरस था। अकेले झारखंड में रांची से प्रकाशित प्रभात खबर ने लिखा हैं कि धनतेरस के दिन, बाजार में बरसे 1255 करोड़ रुपये। ये केवल झारखंड का हाल था। गर पूरे देश की बात करें तो खरबों रुपये का वारा न्यारा हुआ, कारोबार हुआ। पर बात यहां पर आती हैं कि इऩ कारोबारों से कौन सा देश मजबूत हुआ। भारत या फिर अन्य देश। गर भारत की अर्थव्यवस्था, इतने कारोबार के बावजूद भी मजबूत नहीं होती और इसका फायदा दूसरे देश उठा ले रहे हैं तो फिर ऐसे पर्व के आयोजन अथवा मनाने का क्या औचित्य।
मैने अपनी आंखों से देखा, कि जिस देश में अपने ही देश के कुम्हारों के हाथों से बनाये मिट्टी के दिये जला करते थे, अब वहां चीन से बनी दिये और इलेक्ट्रानिक बल्बों ने कब्जा कर लिया हैं। जिन भारतीय बच्चों के हाथों में भारतीय़ खिलौने हुआ करते थे, अब उन हाथों में चीनी खिलौने हैं। इसी तरह आरामदायक और सभी विलासिता संबंधी वस्तूओं पर अमरीकी, जापानी और चीनी वस्तूओं की पैठ हो गयी हैं, ऐसे में ये देश कैसे आत्मनिर्भर होगा। एक बात और, जब देश को बाजार ही बनाना था, विदेशी वस्तूओं से इस भारतीय बाजारों को पाट ही देना था तो फिर अंग्रेजों को निकाल बाहर क्यों किया गया, वे भी तो वहीं कर रहे थे, जो आज के नेता, निमंत्रण देकर, विदेशियों को बुलाकर कर रहे हैं। आश्चर्य इस बात की हैं कि हमारे देश के नेता गुलाम हो सकते हैं, वे विदेशी शासकों के आगे ताता-थैया कर रहे हैं, तो हम भारतीय भी उनके साथ मिलकर ताता-थैया क्यों कर रहे है। जिन्हें ताता - थैया करना हैं, करते रहे। हम मजबूती से वो काम करे, जिससे अपना देश मजबूत होता हो। 
जरुरत हैं, दीपावली के मर्म को समझने की। क्या कहता हैं - दीपावली। दीपावली स्वयं को प्रकाशित करने का पर्व हैं, पर हम अंधकार में कब तक बने रहेंगे। कब तक अपने ही पैसों से, अपने ही घर में आग लगाकर तमाशा देखते रहेंगे, हम क्यों नहीं समझते, गांधी की भाषा, स्वदेशी की भाषा। हम क्यों नहीं समझते कि अपने देश के एक कुम्हार के द्वारा बनायी गयी मिट्टी के दीये से उस कुम्हार की दशा-दिशा भी सुधरती हैं और भारत की अर्थव्यवस्था भी सुधरती हैं। इतनी छोटी सी बात लोगों को समझ में क्यूं नहीं आती। खुद महात्मा गांधी, आचार्य बिनोवा भावे, लाल बहादुर शास्त्री का झोला ढोनेवाले कांग्रेसियों को ये बात क्यों नहीं समझ आती। हमें लगता है कि हम भारतीयों को अच्छी बातें बहुत देर में समझ में आती हैं और जब समझ में आयेगी तब बहुत देर हो चुका होगा............और हम ये गाने गा रहे होंगे वो गाना होगा- सब कुछ लूटा कर होश में आये तो क्या किया..............................

Friday, November 9, 2012

मेरे राम को कुछ भी बोलो, मेरे राम को कोई फर्क नहीं पड़ता...........................

मेरे राम को कुछ भी बोलो, मेरे राम को कोई फर्क नहीं पड़ता और न ही फर्क पड़ता हैं, राम पर विश्वास करनेवालों को, क्योंकि उनके लिए राम तो राम हैं, जिसके बिना उनका जीवन कभी सफल हो ही नहीं सकता और न ही ये दुनिया उनके बिना चल ही सकती हैं। जो राम पर विश्वास करते हैं, उनका विश्वास किसी जेठमलानी के बयान का मोहताज नहीं होता। दुनिया में राम जेठमलानी कोई पहले व्यक्ति नहीं, जिसने राम को बुरा कहा। ऐसे लोगों की संख्या तो बहुतायत में हैं, जिनकी दिन की शुरुआत ही राम की निंदा और रात का समापन राम की निंदा से ही होता हैं। ऐसे भी राम को समाप्त करने का बीड़ा कई बार अनेक राजनीतिक दलों और अन्यान्य धार्मिक व कई सामाजिक संगठनों ने किया हैं, पर राम को क्या फर्क पड़ा। वो तो आज भी वाल्मीकि के श्लोंकों में, मीरा और रविदास के भजन में, कबीर के दोहों में, तुलसी के चौपाईयों में और देश-विदेश के अनन्य कवियों के कंठाग्रों में शोभायमान हैं। राम तो ऐसे हैं कि वे अपने निंदकों और अपने चाहनेवालों पर भी समभाव रखते हैं, नहीं तो वनवास से लौटने के बाद वे कैकयी और मंथरा पर अपना असीम अनुराग नहीं लूटाते। ऐसे भी राम को जानने के लिए, आपको राम जेठमलानी जैसे नेताओं के पास जाना पड़े तो ये आपकी मूर्खता हैं, राम को जानने के लिए आपको वाल्मीकि, मीरा, रविदास, कबीर और तुलसी का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा।
जरा रविदास जी को देखिये, क्या कहते हैं...........................
जब रामनाम कहि गावैगा
तब भेद अभेद समावैगा
जो सुख हवैं या रस के परसे
सो सुखका कहि गावैगा
जरा रविदास जी की परम शिष्या श्रीकृष्ण की अनन्य भक्तवत्सला मीरा क्या कहती हैं.............
पायोजी मैंने राम रतन धन पायो
वस्तु अमोल दियोजी मेरे सदगुरु, किरपा कर अपनायो, पायोजी मैंने.....
खरच न खूटै, चोर न लूटे, दिन - दिन बढ़त सवायो, पायो मैंने................
कबीर के राम को देखिये.......................
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूढें बन माहि
ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया दिखैं नाहि
और तुलसी का तो जवाब नहीं, उन्होंने तो साफ कह दिया
नाना भांति राम अवतारा।
रामायण सत कोटि अपारा।।
ये महान संतों के उद्गार बताते हैं कि राम क्या हैं। राम को व्यक्ति विशेष मानना, और उन्हें व्यक्ति विशेष मानकर, अपने ढंग से उन पर प्रतिक्रिया दे देना, आपकी मजबूरी हो सकती हैं पर इससे राम को क्या.........। पर जिन्होंने राम को जान लिया, वे अनन्त सुख को प्राप्त कर, अपना और इस राष्ट्र दोनों का भला किया। राम का जीवन ही जीने का आधार हैं, अनन्त व परमसुख प्राप्त करने के लिए, राम को तो जानना ही होगा, पर राम को आप जानेंगे कैसे।
वेद कहता हैं, जीवेद शरदः शतम्। सौ वर्ष तक जियो, पर सौ वर्षों तक कैसे जियोगे। धन कमाने की लालसा तो आपको धनपशु बना दी हैं, और इसी धन में आप सुख प्राप्त करने की जिजीविषा लेकर स्वयं को समाप्त कर लेते हो, और कहते हो कि राम को मैं नहीं मानता, ये तो वहीं बात हुई कि कोई मूर्ख कहें कि मैं सूरज के अस्तित्व को नहीं मानता, मैं दिन व रात के अस्तित्व को नहीं मानता, मैं हवा को भी नहीं मानता। तो इससे सूरज, दिन, रात व हवा को क्या फर्क पड़ता हैं, क्या वो अपना काम करना बंद कर देगी या उक्त व्यक्ति से क्रोधित होकर उसके साथ बुरा बर्ताव करेगी।
मैं तो पहले भी कहा था, आज भी कह रहा हूं कि कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या को होनेवाली दीपावली सिर्फ यहीं संदेश देती हैं कि हे प्रकाश की कामना करनेवाले मनुष्यों, तुम सत्य मार्ग पर चलों। जैसे ही तुम सत्यमार्ग पर चलोगे, राम तुम्हारे साथ होंगे। जब राम तुम्हारे साथ होंगे तो तुम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाओगे और एक मर्यादा पुरुषोत्तम व्यक्ति के लिए, संसार में कोई भी कार्य असंभव नहीं। ऐसे में एक भारतीय के लिए, जिसके लिए कोई कार्य असंभव नहीं हैं, उस भारतीय और भारत की ऐसी दशा क्यो। सभी भ्रष्टाचार - भ्रष्टाचार चिल्ला रहे हैं, एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं, पर सच यहीं हैं कि सभी किसी न किसी प्रकार से अपने आचरण को भ्रष्ट जरुर किये हुए हैं, ऐसे में सत्यमार्ग पर चलना और स्वयं राम बनना दोनों असंभव है। सच यहीं हैं कि अपने देश से राम बहुत दूर चले गये हैं। जरुरत हैं, उस राम को, चरित्र रुपी राम को अपने अंदर बैठाने की ताकि हम हर दिन दीपावली मना सकें ताकि हम हमेशा स्वयं को प्रकाशित कर सकें। उस वक्त हमें ये बोलने की आवश्यकता ही न पड़े कि हमें असत्य से सत्य की और अंधकार से प्रकाश की ओर या मृत्यु से अमरता की ओर चले, बल्कि हम इसे अपने कर्म द्वारा सत्यापित कर रहे होंगे।

Monday, November 5, 2012

इन बेशर्म पत्रकारों को तनिक लज्जा नहीं आती............................

आज सुबह सुबह मैंने सारे समाचार पत्रों को खंगाला हैं। सभी समाचार पत्रों ने नीतीश की स्तुतिगान की हैं। स्तुतिगान करना आवश्यक भी था, क्योंकि अब विज्ञापन नहीं छपते हैं। विज्ञापन के बदले, ऐसे समाचार छाप दिये जाते हैं, जो विज्ञापन का ही काम करता हैं और उसके बदले, उसकी एक बड़ी राशि समाचार से प्रभावित होनेवाले व्यक्ति अथवा संस्थानों से ले लिेये जाते हैं। ऐसा देश के सभी समाचार पत्र कर रहे हैं, इसलिए राष्ट्रीय से लेकर, क्षेत्रीय समाचार पत्रों ने भी वहीं किया, जिसका मैंने पूर्व में आकलन किया था। इसके पहले, इस तरह का काम, सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय टीवी चैनल कल कर चुके हैं। 
आज सुबह - सुबह करीब सारे राष्ट्रीय चैनल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को फांसी पर लटकाने के लिए बेताब दीखे, लगे हाथों भाजपा के चिरप्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी की ओर से भाजपा अध्यक्ष नितिन के खिलाफ बयान भी आ गया, जिसे इन चैनलों द्वारा दिखाया और सुनाया भी जा रहा हैं। हद हो गयी, इसे लेकर विशेष समाचार प्रसारित शुरु कर दिये गये हैं। समाचार क्या हैं, जरा आप ही पढ़िये और विचार कीजिये। भोपाल के एक कार्यक्रम में नितिन गडकरी ने एक बयान दिया कि विवेकानंद और दाउद के आईक्यू एक ही थे, पर एक ने उस आईक्यू द्वारा देश और विश्व को नयी दिशा दी तो दूसरे ने विध्वंसात्मक कार्य कर मानवता का अहित किया। अब आप ही बताये, इसमें गलत क्या हैं। आज भी हम राम और रावण, कृष्ण और कंस का तुलनात्मक विवरण अपने बच्चों को नहीं देते हैं क्या और इस विवरण के द्वारा, हम बच्चों में ये प्रेरणा नहीं भरते हैं क्या, कि तुम्हें राम बनना हैं, तुम्हें कृष्ण बनना हैं, तुम्हें विवेकानन्द जैसा बनना हैं, जिससे हमारा समाज और हमारा राष्ट्र गौरवान्वित हो। ऐसा हम जब करते हैं तो फिर नितिन गडकरी के खिलाफ हाय तौबा क्यों। ये तो वहीं बात हुई, बेसिरपैर के बाल का खाल निकालना। गर राष्ट्रीय चैनल के पत्रकारों को कोई बात नहीं समझ आती या वे पागल हो गये हो तो इसमें नितिन गडकरी को हलाल करने की आवश्यकता क्यों। इन्हें खुद आगरा अथवा रांची के मनःचिकित्सा अस्पतालों में जाकर शरण लेनी चाहिए।
इन दिनों देश का सर्वाधिक नुकसान तथाकथित पत्रकारों द्वारा हो रहा हैं। ये सभी कांग्रेसभक्त बनकर, देश की अस्मिता व इसके वैभवशाली इतिहास पर कुठाराघात कर रहे हैं और इसके बदले वे कांग्रेस से उपकृत होते जा रहे हैं। हमारे पास कई सबूत हैं, जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि अब तक इन मीडिया हाउस के मालिकों और पत्रकारों ने क्या किया हैं। कोई इस प्रकार के समाचारों को प्रसारित व प्रकाशित कर प्रधानमंत्री का प्रेस सलाहकार बन जाता हैं तो कोई राज्यसभा के सांसद के रुप में उपकृत होता हैं, कोई इसी के आड़ में अपना व्यवसाय चलाता हैं तो कोई अपने बेटे - बेटियों और संगे संबंधियों को सरकारी अथवा कारपोरेट जगत में लाखों - करोंड़ों के पैकेज पर नौकरी दिलवाता हैं। ऐसे में इन पत्रकारों द्वारा प्रकाशित अथवा प्रसारित खबरों पर अपना मन बनाना, देश के साथ खिलवाड़ करने के सिवा कुछ नहीं। इसलिए सभी देशवासियों को चाहिए, कि ऐसे पत्रकारों से अपनी दूरियां बनाये और इनके द्वारा प्रकाशित और प्रसारित समाचारों के प्रति कड़ा प्रतिवाद करें, ऐसा माहौल बनाये, कि इनके कुकर्मों से देश को बचाया जा सकें। क्योंकि परमाणु बम से भी ज्यादा खतरनाक, इनके विचार हैं। परमाणु बम से केवल एक खास इलाका प्रभावित होता हैं, पर इनके  खतरनाक विचार, पूरे भारत को निगलने के लिए तैयार हैं। ऐसे भी इन घटियास्तर के पत्रकारों की सोच पर अंकुश लगाने के लिए संविधान में कुछ भी नहीं हैं, ये स्वयं को देश के लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बताकर देश की जनता को दिग्भ्रमित भी कर रहे हैं। इसलिए सावधान हो, और इन घटियास्तर के चैनलों व पत्रकारों को अपने वैचारिक जागरुकता से पराजित करने के लिेए, मिलकर एक ऐसा कदम उठाये, कि ये सारे पत्रकार भारत की जनता से थर्रा उठे।

Sunday, November 4, 2012

बिहार को विशेष दर्जा क्यों, पुरुषार्थ जगाने के बदले, भीख मांगने की नयी परंपरा की शुरुआत क्यों...........

बिहार को विशेष दर्जा चाहिए। नीतीश ने इसके लिए अधिकार रैली पटना में बुलायी हैं। बड़ी संख्या में बिहार के सुदुरवर्ती इलाकों से लोग पहुंचे हैं, इस अधिकार रैली में। हालांकि इस प्रकार की रैली में लोग कैसे आते हैं, कैसे बुलाये जाते हैं, किस प्रकार के प्रलोभन दिये जाते हैं, ये बिहार की जनता रग - रग जानती हैं। ऐसे भी बिहार विकास के लिए कम, रैली और रैलाओं के लिए ही जाना जाता हैं। इसके पहले भी लालू प्रसाद जैसे घाघ नेता पटना में रैली बुला चुके हैं, उसका रसास्वादन भी कर चुके हैं, पर फिलहाल इनके हालत पस्त हैं। आज गर ये रैली बुलाये तो शायद ही, इनके द्वारा पूर्व में बुलायी गयी रैली, जितनी भीड़ भी जूट सके। पर जनता तो जनता हैं, कभी लालू तो अब नीतीश, आनेवाले समय में कभी दूसरे नेताओं को भी ये श्रेय वह दे दें तो अतिश्यिोक्ति नहीं होगी। 
चलिये भविष्य की बात छोड़े। अतीत से वर्तमान और वर्तमान से भविष्य बनता हैं। अतीत गरीब रैला, लाठी में तेलपिलावन रैला से होते हुए अधिकार रैली तक पहुंच चुका हैं। हर जदयू विधायक ने अपने अपने हिसाब से इस रैली में अपने लोग को बुलाने में, जमकर कसरत की हैं, जिसका रिजल्ट अधिकार रैली में देखने को मिला हैं। हम आपको बता दें कि ऐसे पूरे देश में रैली व रैला का दौर चल पड़ा हैं। लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी तो दिल्ली में आज ही के दिन कांग्रेस ने भी अपनी शक्ति प्रदर्शन कर, एक तरह से 2014 के लोकसभा चुनाव का शंखनाद कर दिया हैं। जमकर सभी पार्टियों ने एक दूसरे को लताडा़ भी हैं और भ्रष्टाचार कें मुद्दे पर स्वयं को पाक साफ और महंगाई के लिए एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ा। अब जनता परेशान है कि इन रैलियों में किसे वे पाक साफ समझे और किसे कटघऱे में रखे। इसी बीच हिमाचल प्रदेश में आज मतदान चल रहा हैं, जबकि गुजरात में मतदान होना बाकी हैं, पर गुजरात और हिमाचल से जो संकेत मिल रहे हैं, वो साफ हैं कि जनता कांग्रेस से दूरी बना चुकी हैं और लोकसभा का चुनाव जब भी हो, कांग्रेस को विपक्ष में इस बार बैठने का जरुर मौका मिलेगा।
और अब हम बात करते हैं, बिहार की। जब से दूसरी बार नीतीश ने बिहार में सत्ता संभाली। वे बिहार के विशेष दर्जा दिलाने की मांग पर ज्यादा जोर देते रहे। बात यहां आती हैं कि बिहार को ही विशेष दर्जा क्यों, अन्य प्रदेशों को क्यों नहीं। देश में और भी बिहार जैसे कई प्रांत हैं, जो विकास से कोसो दूर हैं, उन्हें क्यों नहीं विशेष दर्जा मिलना चाहिए। दूसरी बात, नीतीश को ये परमज्ञान उस वक्त क्यों नहीं प्राप्त हुआ, जब वे एनडीए के शासनकाल में केन्द्र में एक जिम्मेदार मंत्रालय संभाल रहे थे और बिहार में रावडी़ देवी का शासन था। बिहार में रावड़ी भी तो वहीं बात कह रही थी और ये बार - बार इसका विरोध कर रहे थे। यानी आप जो बोलो वो देववाणी और बाकी बोले वो असुरवाणी। क्या सोच हैं - नीतीश जैसे लोगों की। जो लोग नीतीश को नजदीक से जानते हैं कि वो अच्छी तरह जानते हैं कि ये व्यक्ति, स्वयंप्रभु, भाग्यविधाता, अपने को मानता हैं। ये अपने आगे किसी को नहीं लगाता, चाहे वो जदयू में शरद यादव जैसे लोग ही क्यों न हो। हालांकि इसी अहं में वो नरेन्द्र मोदी को भी चुनौती दे डालता हैं पर इसकी ताकत इतनी नहीं कि वो नरेन्द्र मोदी से आंख में आंख मिलाकर बात भी कर सकें। इसने अहं में आकर कई बार गुजरात की जनता का भी अपमान किया, पर गुजरात की जनता, ऐसे - ऐसे व्यक्ति को, ज्यादा महत्व नहीं देती, मुझे अच्छी तरह मालूम हैं। नीतीश के बार में, मैं एक और बात कह दूं कि जिनकी याददाश्त थोड़ा कमजोर हैं तो उनके लिए उदाहरण दे देता हूं कि ये वहीं नीतीश हैं -- जिसने पिछली बार लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह की बांका से टिकट कटवा दी थी। ये अलग बात हैं कि दिग्विजय सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में लोकसभा का चुनाव लड़कर नीतीश को, उसकी औकात बता दी। आज दिग्विजय सिंह दुनिया में नहीं हैं, पर ऐसा नहीं कि उनके नहीं रहने से नीतीश के कारगुजारियों पर बोलने व लिखनेवाला कोई नहीं।
ज्यादातर लोग नीतीश को एक बेहतर शासक के रुप में मानते हैं। वे इसलिए मानते है कि लालू का जिसने शासनकाल देखा हैं, वे मानते है कि अब भी लालू से नीतीश बेहतर हैं, पर क्या, हम इन्हें भी अराजकता फैलाने का वहीं मौका दें, जो कभी लालू को दिया था। आज भी मुजफ्फरपुर की नवरुणा कहां हैं, किसी को पता नहीं। अपहरण, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक सौहार्द्र की स्थिति क्या हैं, बिहार में किसी से छुपा नहीं। फिलहाल बिहार तो आतंक का रणक्षेत्र बनता जा रहा हैं। देश के किसी भी हाल में आंतकी घटनाएं हो रही हैं, उसका किसी न किसी प्रकार से सूत्र बिहार में मिल जा रहा हैं। ऐसे में बिहार का क्या सम्मान हैं, और क्यो विशेष दर्जा मिलना चाहिए। हमारी समझ से परे हैं। 
मैं भी बिहार का रहनेवाला हूं। मैंने लालू यादव का शासन भी देखा और नीतीश का भी शासन देखा। वहां क्या स्थिति हैं। मुझसे बेहतर कौन जानता है। एक घटना सुनाता हैं। आज से तीन साल पहले पटना के गांधी मैदान में भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी। ये उस वक्त की बात हैं जब बिहार में विधानसभा के चुनाव की रणभेरी बज चुकी थी। एक दक्षिण से प्रसारित होनेवाली टीवी चैनल में जब हमने समाचार देखने के लिए, नौ बजे रात्रि में टीवी खोला तो देखा कि रात्रि के नौ बजे से लेकर नौ बजकर 22 मिनट तक नीतीश ही नीतीश दिखाई पड़ रहे थे। जब हमने इस संबंध में पता लगाया तो पता चला की नीतीश ने उक्त चैनल को पेड न्यूज के रुप में अपने पक्ष में इस्तेमाल करवाया। जब हमने इस संबंध मे पटना के ही एक वरिष्ठ पत्रकार जो नीतीश भक्त हैं, पूर्व में खुब पत्रकारिता जगत में नाम भी कमाया हैं, वयोवृद्ध हैं। इस संबंध में बात की तब उनका कहना था कि ये गलत नहीं हैं, हर नेता को अधिकार हैं कि वो अपने पक्ष में ऐसा करें । कमाल हैं नीतीश पेड न्यूज के आधार पर अति महत्वपूर्ण समाचारों को रुकवाकर अपने लिए चैनल को इस्तेमाल करें तो सहीं, बाकी करें तो गलत हैं।
अंत में, बिहार को किसी भी हालत में विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलना चाहिए, और इस प्रकार की केन्द्र पर बेवजह दबाव की राजनीति भी बंद होनी चाहिए। नहीं तो, हर प्रदेश के लोग ऐसा करना शुरु करेंगे। ऐसे में पूरे देश में अराजकता की स्थिति पैदा होंगी, देश टूटने के कगार पर होगा। अच्छा होगा कि बिहार के नेता, अपने पुरुषार्थ को जगाकर, स्वयं बिहार को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाये। ऐसे देश में कई राज्य हैं, जो स्वयं आगे बढ़े हैं, किसी से भीख नहीं मांगा और न ही विशेष राज्य का दर्जा के लिए, अधिकार रैली का आयोजन, अपने प्रांत में कराया, तो फिर बिहार में इस प्रकार की अधिकार रैली क्यों.........................

Saturday, November 3, 2012

आज लिखने व बोलने की नहीं, कर के दिखाने की जरुरत हैं..............................

सचमुच आज लिखने व बोलने की नहीं, कर के दिखाने की जरुरत हैं। रांची से एक प्रकाशित अखबार जिसकी, मैं तहेदिल से इज्जत करता हूं, गर उसे एक दिन भी नहीं पढ़ूं तो मैं बेचैन हो जाता हूं। पर मैं इन दिनों देख रहा हूं कि इस अखबार को भी, अन्य अखबारों की तरह हवा लगी हैं। वो ऐसी चीजे लिख दे रहा हैं कि जिसे पढ़कर, मन व्यथित हो उठा हैं। इस अखबार में चरित्र, धन, भ्रष्टाचार और अन्य विषयों पर हमेशा सारगर्भित आलेख पढ़ने को मिलते हैं, पर मेरा मानना हैं कि केवल लिख देने से, उन विषयों का समाज व राष्ट्र में पदार्पण हो जायेगा, ऐसा संभव नहीं हैं। कल यानी 2 नवम्बर को इस अखबार ने आदर्श डाक्टरों की सूची से संबंधित प्रथम पृष्ठ पर समाचार प्रकाशित किया। जिसमें रांची के डा. के के सिन्हा को आदर्श डाक्टर के रुप में स्थापित किया। मै रांची की ही जनता से पूछता हूं कि क्या डा. के के सिन्हा, जिनकी चिकित्सीय फीस 1000 रुपये हैं। जिनसे इलाज कराने के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता हैं। साथ ही जिनसे इलाज कराने के लिए नेताओं व मंत्रियों से पैरवी करानी पड़ती हैं। जो मुख्यमंत्री, कारपोरेट जगत के मठाधीशों, विभिन्न अखबारों के मालिकों व संपादकों को मुफ्त इलाज मुहैया कराते हो और गरीबों से एक हजार रुपये, फीस वसूलते हो। जो अपने यहां इलाज कराने आये, मरीजों का निबंधन भी नहीं कराते हो, जिससे ये पता लगे कि उन्होंने एक दिन में कितने मरीजों की जांच की। ताकि पता चल सकें कि वे एक दिन में कितने रोगियों को देखकर, कितने रुपये उनसे वसूले। जिनका समाचार बाप - बेटे से संबंधित मारपीट का कई समाचारों में सुर्खियां बन चुका हो। क्या उक्त अखबार बता सकता हैं कि इन्होंने कब और किस समय, गरीबों के लिए अपने दरवाजे खोले। ठीक वैसे ही जैसे लालपुर के डा. एस पी मुखर्जी के दरवाजे, गरीबों के लिए सदा खुले रहते हैं। आदर्श का मतलब क्या हैं.............। अपने लिए अच्छा होना, सिर्फ अपने लिेए कमाई करना, और आदर्श होना ये दोनों अलग अलग बाते हैं। ये सभी को समझना चाहिए। आदर्श वहीं हैं, जिनका जीवन अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिेए हो।
एक बात और। किसी व्यक्ति की आमदनी दस लाख रुपये प्रति माह हैं  और वो ईमानदारी की बात करें तो शोभा नहीं देता। शोभा उसे देता हैं, जिसकी आमदनी न के बराबर हो, और उसने पूरा जीवन ईमानदारी से, वह भी विपरीत परिस्थितियों में गुजार दें, तब वो प्रेरणास्रोत व आदर्श बन जाता हैं। इस रांची में एक से एक डाक्टर हैं, जो बेईमान भी हैं, चरित्रहीन भी हैं पर आदर्श भी हैं, लेकिन आदर्श का पैमाना जब डा. के के सिन्हा जैसे लोगों के पास आकर शरण लेता हैं,तो हम जैसे लोगों को असहनीय पीड़ा होती हैं।
आजकल आदर्शवादिता के नाम पर पुरस्कार देने की भी योजना चल पड़ी हैं। ऐसे ऐसे लोगों को पुरस्कार दे दिया जाता हैं कि हमें समझ में नहीं आता कि उन्हें ये पुरस्कार देने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी। हाल ही में रेडिशन ब्लू जैसे महंगे होटल में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के एक अधिकारी को, जो मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के बहुत ही निकट हैं। सुनने में आया हैं कि जो वह बोलता हैं, मुख्यमंत्री उसकी बातों को अच्छे बच्चों की तरह मान लेते हैं। उसे पुरस्कृत किया गया। उसे ये पुरस्कार लक्ष्मी लाडली योजना के लिए दिया गया। यानी सारा श्रेय उसे दे दिया गया, जिसने लक्ष्मी लाडली योजना के लिए क्या किया। उसे खुद ही पता नही। घोर आश्चर्य हैं। इसी तरह एक बार, रेलवे के एक महिला कर्मचारी को भी पुरस्कृत कर दिया गया, ये कहकर कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ पत्र लेखन के लिए, पुरस्कृत किया जा रहा हैं। सच्चाई ये हैं कि कितने पत्र उक्त महिला ने, उक्त अखबार को भेजे, उसे खुद ही पता नहीं होगा, पर पुरस्कार दिया गया और लेनेवाले ने ले भी लिया। 
ऐसे में, एक सवाल उठता हैं कि क्या इस प्रकार की कारगुजारियों से समाज बदलेगा, आंदोलन सफल होगा। उत्तर होगा - नहीं, तो क्या किया जाना चाहिए। हमारा नम्र निवेदन हैं कि स्वयं पर ध्यान दीजिये। वहीं लिखिये जो सार्थक हो। वो मत लिखिये, जिससे लोग दिग्भ्रमित हो जाये, क्योंकि जो आप लिखते हैं या छापते हैं, वो आप नहीं जानते कि यहां की जनता, उसको किस रुप में लेती हैं। गर लोगों का विश्वास डोला तो फिर झारखंड को एक बड़ी क्षति होगी, क्योंकि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि रांची से जितने भी अखबार छपते हैं, उनमें से आप एकदम अलग हैं, पर आप भी जब अन्य अखबारों जैसे होंगे तो फिर झारखंड की जनता किस पर विश्वास करेगी। बड़ी विनम्रता से, करवद्ध प्रार्थना करता हूं कि झारखंड से निकलनेवाली और पूरे राष्ट्र में एक अलग छवि रखनेवाली इस अखबार को गिरने से बचाये। ये झारखंड हित में हैं...................................

Thursday, October 11, 2012

कौआ और भैस भी काला हैं, इनका क्या होगा नीतीशजी.............................

बहुत पहले कहानियां सुना करता था कि जब किसी राजा या शहंशाह की सवारी किसी रास्ते से गुजरती तो उस रास्ते पर चलनेवाले या किसी न किसी प्रकार से जूड़े रहनेवाले को आगाह किया जाता कि जहांपनाह की सवारी आ रही हैं, सभी होशियार हो जाये.............। अब हालांकि ऐसा देखने को नहीं मिलता, पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों जब से अधिकार यात्रा पर निकले हैं और जिस प्रकार से उनका चारो ओर विरोध हो रहा हैं। हम ये कह सकते हैं कि जिस प्रकार जूतमपैजार हो रहा हैं। कहीं उनकी सभा में कुर्सियां तो कहीं चप्पल जूते तक बरस रहे हैं। ऐसे में उनके अधिकार यात्रा से संबंधित अधिकारियों ने ऐसी ऐसी कारनामें शुरु की हैं, जिस कारण उनकी ये यात्रा, अधिकार कम शर्मनाक यात्रा में ज्यादा तब्दील हो गयी हैं, पर नीतीश तो नीतीश हैं। उन पर इन सभी चीजों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। फिलहाल सत्ता के मद में वे इतने डूब गये हैं कि उन्हें अपना विरोध भी पसंद नहीं, गर कोई उनका विरोध करता हैं तो वे उसे इतने अच्छे ढंग से देख ले रहे हैं कि जिसकी जितनी निंदा की जाय कम हैं।  
इसमें कोई दो मत नहीं कि लालू का पन्द्रह साल का शासन नरकमय था, पर नीतीश जी आपको इसका ही तो लाभ मिला कि जनता ने लालू एंड कंपनी को सत्ता से हटाकर, आपको सत्ता सौंप दी, पर आपने तो इन दिनों हद कर दी हैं। जैसे साढ़ लाल रंग देखकर भड़क जाता हैं, वैसे ही आप काला रंग देखकर भड़क जा रहे हैं। स्थिति ऐसी हैं कि आपके कई सभाओं में बिहार की बहू बेटियों के शरीर से काला दुपट्टा तक उतरवा लिया जा रहा हैं, पर आपको शर्म नहीं आ रही। कई जगहों पर युवाओं से काला टी शर्ट उतरवा लिया गया हैं। अगर कहीं मुस्लिम महिलाएं काला बुर्का पहनकर आपकी सभा में आ गयी तो आप क्या करेंगे, तब तो आपको मुस्लिम वोट ही खिसक जायेगा, पर हमें लगता हैं कि आप ऐसी गुस्ताखी नहीं करेंगे, क्योंकि आप बहुत ही चालाक हैं। कभी - कभी तो मैं सोचता हूं कि गर आपका वश चले तो आप पूरे बिहार से भैस और कौए का न सफाया कर दें क्योंकि इनका रंग भी काला हैं। ऐसे तो मैं आपको अच्छी तरह से जानता हूं कि आप बिहार के प्रति कितने ईमानदार है। अगला जब 2014 का लोकसभा चुनाव होगा तो आपकी सारी हेकड़ी निकल जायेगी और साथ ही आपके साथ चलनेवाले भाजपा और भाजपा के सुशील कुमार मोदी की भी हवा निकल जायेगी, क्योंकि  आपको शायद नहीं पता हैं कि लालू एंड कंपनी को खोने के लिए कम और पाने के लिए ज्यादा हैं, जबकि आपको खोने के लिए ज्यादा और पाने के लिए कम हैं। 
इधर आपकी नरेंद्र मोदी से ज्यादा नाराजगी दीखती हैं। पर सच्चाई ये हैं कि नरेंद्र मोदी ने कभी भी गुजरात के लिए विशेष पैकेज की मांग नहीं की। फिर भी गुजरात प्रगति के शिखर पर हैं, पर आप बिहार के लिए स्पेशल पैकेज की मांग के लिए अधिकार यात्रा पर निकल गये हैं, जबकि सच्चाई ये हैं कि जब बिहार में लालू - रावड़ी का शासन था, तब भी बिहार के लिए विशेष पैकेज की मांग की गयी थी, और आप जब केन्द्र में सत्तासीन थे, तब उसका विरोध किया था, अब विशेष पैकेज की मांग आपने कहां से शुरु कर दी, ये हमारी समझ से परे हैं।
आपने आजकल पूरे बिहार को शराब पीनेवाला प्रदेश बना दिया। जहां मैं रहता हूं वहां गली - गली में शराब बिक रही हैं, गांजा बिक रहे हैं। दूध के स्टाल तक पर शराब बिक रहे हैं, दिक्कत तो ये हैं कि हम अपने बच्चों को कैसे संस्कारित करें, क्योंकि अब तो शराबी, पीकर वो नंगा नाच कर रहे हैं, कि आम महिला आपको कोस रही हैं। कहीं ऐसा नहीं कि इनकी हाय आपको लेकर डूब जाये। फिर भी आपको तीन साल और शासन करने का लाइसेंस मिला हैं, आराम से शासन करते रहिए, नरेंद्र मोदी और भाजपा को धकियाते रहिये, बिहार का नाम डूबाते रहिए, कांग्रेस और सोनिया - राहुल से संबंध मजबूत करते रहिए। हमारा वोट देने का वक्त आयेगा तो हम आपको सत्ता से धकेल जरुर देंगे। फिर उसके बाद आप किसी भी लड़की से काला दुपट्टा उतरवाने का प्रयास तो दूर उधर नजर उठाकर देख भी नहीं पायेंगे।

Tuesday, October 9, 2012

ये हैं भारतीय रेल की चाय और टीटीई की महिमा............

मैं पिछले दिनों पटना और सिंकदराबाद की यात्रा पर था। इस दौरान भारतीय रेल की कई विशेषताओं से दो - चार हुआ। सर्वाधिक दृश्य टीटीई से संबंधित देखने को मिले। वह भी रेल के अंदर और रेल के बाहर भी। सबसे पहले बात रांची जंक्शन की। जब मैं धनबाद में ईटीवी कार्यालय में कार्यरत था। तब बार - बार रांची से धनबाद और धनबाद से रांची आया जाया करता था। उस दौरान मूलतः साप्ताहिक यात्रा हुआ करती थी। हमारे कई पत्रकार मित्र इस दौरान हमसे मिलते और बोकारो - रांची रेल पथ पर एक चाय विक्रेता की चर्चा किये बिना नहीं रुकते। वे बार - बार कहते कि एक चायवाला हैं, जो इस रेल पथ पर चाय बेचता हैं। आवाज लगाता हैं - कि खराब से खराब चाय पीजिये, पर लोग जब उसकी चाय पीते तो वो चाय सबसे शानदार चाय होती। कई पत्रकार मित्रों ने तो उस चायवाले की शान में कई समाचार भी अपने समाचार पत्रों में प्रकाशित किये। हमें भी एक दो बार वो चायवाला उस दौरान मिला था, पर मुझे चाय उतनी पसंद नहीं, इसलिए उसकी चाय पर हमारी ध्यान कभी गयी ही नहीं। पर पिछले दिनों 4 अक्टूबर को जब मैं पटना से रांची की ओर 18623 अप राजेन्द्रनगर - हटिया एक्सप्रेस से रवाना हुआ, तो 5 अक्टूबर की सुबह 6 बजे मुरी के आसपास उक्त चायवाला मिला, जो हमेशा की तरह खराब से खराब चाय पीजिये की रट लगाता हुआ,  मेरे डब्बे से गुजरा। मेरी पत्नी को चाय बहुत ही पसंद हैं। उन्होंने चायवाले को आवाज दी। चायवाला आया और एक कप उनकी ओर बढ़ा दिया। मैंने भी उससे गुफ्तगूं करते हुए कहा कि भाई तुम्हारी चाय तो बहुत ही नामी हैं, कई हमारे पत्रकार मित्र ने तुम्हारी प्रशंसा की हैं। ये कहकर कि तुम बोलते हो, खराब से खराब चाय पीजिये, पर सच में ये चाय बहुत ही अच्छी होती हैं। वह भी खुब प्रसन्न होकर बोला कि हां सर, कई अखबारों में तो उसका समाचार भी छपा हैं। इसी चाय को लेकर, लेकिन पहले वो भैस के दूध का चाय बेचता था, पर अब तो पाकेट वाला दूध का चाय हैं, फिर भी ये चाय आपको और चाय से बेहतर ही मिलेगी। मैंने पूछा कि इसके क्या दाम हैं। उसने कहा - दस रुपये प्रतिकप। मैंने बोला -- ये तुम्हें नहीं लगता कि चाय का दाम जरुरत से ज्यादा हैं। उसने कहा कि हां साहब जरुरत से ज्यादा तो हैं ही, पर क्या करें। ट्रेन में चाय बेचनी हैं तो टीटीई और अन्य लोगों को मुफ्त सेवा देनी ही हैं। ऐसे में उनकी ओर की गयी मुफ्त सेवा का कर, तो आपलोगों से ही वसूलेंगे न। उस चायवाले ने बड़ी ईमानदारी से ये बता दिया कि किस प्रकार टीटीई उससे अपनी रंगदारी वसूलते हैं, और इसका खामियाजा आम यात्रियों को भुगतना पड़ता हैं और सामान्य रेलयात्री टीटीई के चाय का भी अलग से रंगदारीस्वरुप उस चायवाले को भुगतान करते हैं। 
इधर जैसे ही रांची जंक्शन उतरा। तब जल्द से नहा धो. पूजा - पाठ कर, मैं अपने कार्यालय पहुंचा। वहां पता चला कि अपने चैनल की समाचारवाचिका भी रांची जंक्शन के मुख्यद्वार पर कार्यरत टीटीईकर्मियों की कोपभाजन बन गयी हैं। पता चला कि रांची जंक्शन के मुख्यद्वार पर तैनात महिला टीटीईकर्मियों ने इन पर ये आरोप मढ़ दिया कि समाचारवाचिका बेटिकट यात्रा कर रही हैं। जबकि उनके पास टिकट मौजूद थे, ये अलग बात हैं कि उनका टिकट, उस पर्स में था, जिस पर्स को उचक्कों ने ट्रेन के रांची जंक्शन पहुंचने के पहले ही चुरा लिया था। इस बात की जानकारी और प्राथमिकी की रिपोर्ट दिखाने के बावजूद, उक्त महिला टीटीईकर्मियों ने उनके साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया, जिससे वो अभी भी उबर नहीं पायी हैं। सवाल उठता हैं कि क्या किसी भी टीटीई को किसी भी रेलयात्रियों के साथ दुर्व्यवहार करने का हक हैं, गर नहीं तो फिर ऐसा क्यों। क्या इसका जवाब भारतीय रेलवे का कोई अधिकारी दे सकता हैं। समाचारवाचिका बार बार अपना पीएनआर नं., कोच नंबर, बर्थ नं. बता रही थी, पर उक्त महिलाटीटीई, जिनकी संख्या 6-7 बतायी जा रही थी, वो इनकी कोई बात सुनने को तैयार क्यों नहीं थी, कहीं ऐसा तो नहीं कि इनका मकसद सिर्फ ये था कि समाचारवाचिका को कैसे सरेआम बेइज्जत किया जाय, जिसमें वो कामयाब रही। क्या ये शर्मनाक नहीं, क्या किसी रेलयात्री के साथ ऐसा किया जाना चाहिए।
और अब पटना से सिकंदराबाद की........। 27 सितम्बर को हम पटना से सिकंदराबाद की ओर चले। हमारे साथ पांच - छः लोग थे। रेल में सर्विस दे रहे पैंट्री ब्वाय से मेरे साथ चल रहे लोगों ने चाय मांगी। उक्त पैंटी ब्वाय ने पटना जंक्शन पर ही थर्मस से निकालकर पांच - छः चाय सभी को दिये, वो चाय इतनी अच्छी थी कि दुबारा सिकंदराबाद तक पहुंचने के बाद भी वैसी चाय नहीं मिली, क्योंकि अन्य चाय जो दिये जा रहे थे पैंट्री कार के अंदर, वो हम कह सकते हैं कि प्रथम दृष्टया पीनेलायक नहीं थे, मजबूरी में ही पीया जा सकता था। जब हमने नागपुर और वल्लारशाह स्टेशन के बीच, उसी पैँट्री ब्वाय से थर्मसवाली चाय पीलाने को कही तो उसने कहा माफ करे जनाब, ये चाय आपको मिल नहीं सकती, ये खासमखास लोगों के लिए ही हैं। फिर हमने देखा कि वो पैंट्रीब्वाय पास में ही बैठे सात - आठ टीटीई जो वल्लारशाह स्टेशन से जूडे थे, आराम से उन्हें ससम्मान पिलायी और उनसे पैसे भी नहीं लिये। जब मैंने उससे पूछा कि हमलोगों ने तुमसे चाय मांगी, वह भी पैसों से तो तुमने नहीं दी, इन्हें बिना पैसे के कैसे चाय दे दिये। उसने कहा कि जनाब हमारी मजबूरी समझे, आपको तो एक दो दिन सफर करना हैं, हमें तो इनके साथ इस रास्ते पर बराबर चलना हैं। मैं समझ गया - भई अपनी अपनी किस्मत हैं। भारतीय रेल में किसी को बिना पैसे की अच्छी चाय मिल जाती हैं और किसी को पैसे देने पर भी नहीं मिलती और जिन यात्रियों को मिलती भी हैं तो वे दूसरे की चाय के पैसे का भी भुगतान कर देते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता। ये हैं भारतीय रेल की चाय और टीटीई की महिमा............