Sunday, January 22, 2012

जो समाज और जहां की सरकार नपुंसक हो जाती हैं, वहां नरपिशाच राज करते हैं................


जब जीने की तमन्ना, मौत पर हावी हो जाती हैं। जब लोग मौत को गले लगाने को छोड़ जीने की आरजू पाल लेते हैं। जहां लोग साहस छोड़ कायराना हरकतों को तरजीह देते हैं। वहां नरपिशाचों की चल पड़ती हैं। आज झारखंड की राजधानी की सारी अखबारें गढ़वा के भंडरिया में नरपिशाचों (नक्सलियों) द्वारा की गयी, वहशियाना जूल्मों से अटी पटी हैं। ये नरपिशाच (नक्सली) समझते हैं कि विदेशियों के इशारे पर, चल रही उऩकी नीतियों और हरकतों से देश व समाज पर कब्जा कर लेंगे. तो मैं फिर वहीं कहूंगा कि ये उनकी सबसे बड़ी भूल हैं। वे कभी कामयाब नहीं हो सकते हैं, क्योंकि ये चीन नहीं, भारत हैं। यहां कभी वो ही ही नहीं सकता, जो इस देश की मिट्टी में रचा बसा नहीं हैं। जो कहते हैं कि बंदूक की नलियों से सत्ता हासिल होती हैं, शांति पनपता हैं, वे भूल रहे हैं, कि बंदूक सिर्फ मौत दे सकती हैं, जिंदगी नहीं और जो जिंदगी देगा ही नहीं, वो देश व समाज को नयीं दिशा क्या देगा। नरपिशाचों (नक्सलियों) को समर्थन देनेवाले कह सकते हैं कि मैंने नक्सलियों को नरपिशाच क्यों कहा। उनके लिए जवाब यहीं हैं कि गढ़वा में जिस प्रकार से वहां के थाना प्रभारी और ड्राईवर को जिंदा जलाया गया, जैप के जवानों के सर पर गोलियां दागी गयी और राज्य के अन्य इलाकों में जिस प्रकार से ये ग्रामीणों का गला रेंतते हैं, ऐसे में जो भी व्यक्ति, जिसका मानवता में विश्वास हैं, वे नक्सलियों को कभी नक्सली कह ही नहीं सकते। इनके लिए तो नये शब्दों की इजाद करनी होगी, पर मैं इनके लिए पुराने शब्दों में से ही, एक शब्द चुना हैं -- नरपिशाच। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि हम भारत में रहते हैं। ये गांधी का देश, राम का देश हैं। लोहिया, जयप्रकाश, महान क्रांतिकारी भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद का देश हैं। जिसे कुछ पथभ्रष्ट राजनीतिज्ञ, पथभ्रष्ट नक्सली समर्थक पत्रकार, पथभ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारी, पथभ्रष्ट असामाजिक तत्व जिनकी पैठ, आज हर विभागों में हो गयी हैं। वे इस देश को इऩ नरपिशाचों के हाथ में सौप कर अपने पड़ोसी देश, जो भारत का सबसे बड़ा दुश्मन हैं, उसके हाथों की कठपुतलियां बना देना चाहते हैं।

सर्वप्रथम, इन नरपिशाचों की यहां तू ती क्यों बोलती हैं, इस पर विचार करें --------
क. क्योंकि इनके समर्थन में समाज के तथाकथित अपने आपको प्रगतिशील कहलानेवाले अरुंद्धति राय, अग्निवेश जैसे अतिप्रबुद्ध वर्गों की टोली हैं, जो समय समय पर यहां आकर, विभिन्न गोष्ठियां आयोजित कर इनके समर्थन में बहुत कुछ बोलकर, इनका सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाते रहते हैं।
ख. इन नरपिशाचों के समर्थन में बड़े वामपथी पत्रकारों की टोली भी हैं, जो इनका समर्थन करती रहती हैं और समय समय पर दिशा निर्देश करती रहती हैं।
ग. आदिवासी इलाकों में आदिवासियों को उनके मूल धर्म से हटाकर, पथभ्रष्ट करानेवाली अनेक संस्थाएं यहां चल रही हैं, जो चाहती हैं कि यहां इन नरपिशाचों (नक्सलियों) का बोलबाला रहें ताकि उनके इस आतंक का फायदा उठाकर वे धर्मांतरण का कार्य आसानी से कर सकें। इसी मूल उद्देश्यों को लेकर ये संस्थाएं इन नरपिशाचों (नक्सलियों) का खुलकर समर्थन करती हैं। आप देंखेंगे कि इन नरपिशाचों (नक्सलियों) का समर्थन करनेवाली गोष्ठियां, इन्हीं संस्थाओं में आयोजित होती हैं।
घ. झारखंड की सभी राजनीतिक पार्टियां और इसमें शामिल राजनीतिज्ञ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों रुप से इन नरपिशाचों (नक्सलियों) को आर्थिक मदद करती रहती हैं और समय - समय पर इन्हें अपना भाई - बंधु कहकर इनका मनोबल बढ़ाती रहती हैं। साथ ही ये राजनीतिज्ञ दल जब विकास संबंधी बजट बनाते हैं तो ये ध्यान रखते हैं कि इस बजट का एक हिस्सा, उन्हें इन नरपिशाचों (नक्सलियों) को भी देना हैं, इसलिए उनका हिस्सा का ये खास ध्यान रखते हैं, और ये राशियां बिना किसी मेहनत के उन नरपिशाचों (नक्सलियों) तक आराम से पहुंचती हैं।
ड. राजनीतिज्ञों की इसी उदारता का ये नरपिशाच विशेष ध्यान रखते हैं और इनके इशारों पर कभी कभी विभिन्न घटनाओं को अंजाम भी देते हैं, जैसे कभी - कभी ये नरपिशाच (नक्सली) चुनाव के समय, बूथ मैनेजमेंट का भी काम कर देते हैं और समय - समय पर किसी व्यक्ति अथवा किसी पिकेट को उड़ाने से भी बाज नहीं आते।
च. यहां खुफिया विभाग पूरी तरह फेल हैं। खुफिया विभाग के अधिकारी तो पत्रकारों की गणेश परिक्रमा करते रहते हैं और जो पत्रकार उन्हें बता देते हैं, उसी पर उनको गुमान हो जाता हैं। सच्चाई ये हैं कि खुफिया विभाग के किसी वरीय अधिकारी या कनीय अधिकारी अथवा कर्मचारी को ताकत नहीं कि वो इन नरपिशाचों (नक्सलियों) के बारे में सही सहीं जानकारी इक्ट्ठी कर लें। पुलिस की तो बात ही दूर हैं। खुफिया विभाग दुरुस्त रहती तो गढ़वा कांड जैसे कांड बार - बार हमें देखने व सुनने को नहीं मिलते। यहीं नहीं यहां के सारे के सारे वरीय पुलिस अधिकारी, राजनीतिज्ञों से सांठ गांठ कर आराम की जगहों पर रहना चाहते हैं, कोई नरपिशाचों (नक्सलियों) को चुनौती देना नहीं चाहता। उनसे लडऩा नहीं चाहता। क्यों - क्योंकि वो जानता हैं कि इन नरपिशाचों (नक्सलियों) पर उनके राजनीतिज्ञ और अन्य वरीय पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों का वरद् हस्त प्राप्त हैं। इसलिए वो सामंजस्य बनाने पर ज्यादा ध्यान देता हैं। और भूले भटके जब कभी ये पुलिस अधिकारी इन नरपिशाचों (नक्सलियों) को पकड़ लेते हैं तो ये इन नरपिशाचों के प्रति आदरसूचक शब्द का प्रयोग करते हैं, जैसे लगता हैं कि उसने देश व समाज को नयीं दिशा देने के लिए अवतरित हुआ हैं।
अर्थात् गर आप चाहे कि इस प्रांत से इन नरपिशाचों को निकाल कर फेंक दें. नहीं फेंक सकते, क्योंकि हर डाल पर उल्लू बैठा हैं, अंजामें गुलिस्तां क्या होगा।

नरपिशाचों (नक्सलियों) के उद्देश्य -------
जब कभी ये नरपिशाच (नक्सली) अथवा इनके समर्थक मिल जायेंगे तो ये कहेंगे कि वे व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका मूल उद्देश्य भ्रष्टाचार मुक्त समता मूलक समाज बनाना हैं पर सच्चाई ये हैं कि ये शत प्रतिशत एक पड़ोसी देश के इशारों पर काम कर रहे हैं, इनके मधुर संबंध तो कहा जाता हैं कि पाकिस्तान के आईएसआई से भी हैं, जो देश में आतंक फैलाकर भारत को विनाश के कगार पर ला खड़ा करना चाहता हैं। ये व्यवस्था परिवर्तन नहीं, बल्कि पूरी तरह से भारत को एक साम्राज्यवादी पड़ोसी देश का गुलाम बना देना और उसके एवज में अपना ऐशो आराम चाहते हैं ताकि वे अपनी मनमर्जी से मार काट मचा सकें। ये भारत में लोकतंत्र नहीं बल्कि चीन का शासन चाहते हैं, जहां किसी को बोलने की इजाजत ही नहीं।
ये नरपिशाच गांव के भोले भाले ग्रामीणों और वहां के युवाओं के हाथों में तो एके 47 थमा देना चाहते हैं पर अपने पारिवारिक सदस्यों को देश के महानगरों में या विदेशो में पढ़ने अथवा जीवन यापन के लिए भेजते हैं। गांव की लड़कियों और महिलाओं की क्या स्थिति हैं, जहां इनका दबदबा चलता हैं। ये यहां लिखने की जरुरत नहीं, बस एक बार इन गांवों में केवल घूम लेने की जरुरत हैं, पता लग जायेगा। गर आपसे इनकी दुश्मनी हो गयी तो बस आपको पुलिस का मुखबिर बताकर गला काट देंगे। गर आप इनके प्रभावित क्षेत्रों में घूमने निकलेंगे तो आपको इसकी इजाजत नहीं होगी, गर आपने इनकी इजाजत के बिना घूमा या किसी से बातचीत की, तो आपकी खैर नहीं, आपको अपने जान से हाथ धोना पड़ेगा। पूरी तरह से तालिबानी हुकुमत हैं यहां।
इन नरपिशाचों (नक्सलियों) की यहां क्यों चल पड़ी --------
क. इसलिए चल पड़ी, क्योंकि गांवों में संभ्रांत और सज्जन लोगों ने अपनी भूमिका सीमित कर दी और विकासात्मक कार्यों और सामाजिक कार्यों में अपनी निष्क्रियता शुरु कर दी। नतीजा समाज के भ्रष्ट और असामाजिक तत्व सक्रिय हो गये।
ख. भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, भ्रष्ट पत्रकारों तथा भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों के तिकड़ियों ने गांव की सामाजिक संरचनाओं को बिगाड़ना शुरु कर दिया, और गांव के प्रत्येक घर में एक दूसरे के खिलाफ ऐसी विषवमन कर दी कि गांव के लोग आपस में ही लड़ने शुरु कर दिये और इऩ भ्रष्ट तिकड़ियों की चल पड़ी। जब नरपिशाचों (नक्सलियों) का ऐसे में इऩ गांवों में आगमन हुआ तो उन्होंने इस विधि को अपने ढंग से लेना शुरु किया, नतीजा सामने हैं।

भविष्य ---------
भारत का भविष्य सुखद हैं। हिंसा से कभी भी, इस देश में क्रांति नहीं आयी हैं। जिस देश में हिंसा से क्रांति हुई हैं और व्यवस्था परिवर्तन होता दिखा तो वहां व्यवस्था चिरस्थायी नहीं रही। भारत एक महान देश हैं और ऐसे देश में इन नरपिशाचों की नहीं चलेगी। आप मानकर चलिये, क्योंकि जब देश में पंजाब और असम से आतंक खत्म हो गया। कश्मीर में अलगाववादियों और देशद्रोहियों की नहीं चल पायी तो फिर नरपिशाचों (नक्सलियों) की भी यहां नही चलेगी। आप मानकर चलिये। चाहे इनका नेटवर्क आपके घर में भी क्यों न पहुंच गया हो, इनका नेटवर्क काम नहीं करेगा, क्योंकि हर घर में राम और गांधी बसते हैं। यानी सत्य और अहिंसा बसती हैं।
एक बात और कुछ लोग कहते हैं कि नक्सली गतिविधियां इसलिए बढ़ी, क्योंकि गांवों में विकास कार्य नहीं हुए। ये कहनेवाले को मैं बता देना चाहता हूं कि गरीबी और निरक्षरता -- हिंसा नहीं सिखाती। गर ऐसा होता तो इस देश की जो दशा हैं, ऐसे में हर घर में नक्सली होता, नरपिशाच होते। पर ऐसा हैं नहीं। हमारे देश में तो कई संत मुफलिसी में गुजार दिये। कबीर की वो पंक्ति नहीं पढ़ी क्या -------- मन लागा, मेरा यार फकीरी में.......................।

Thursday, January 5, 2012

श्रीश्री परमहंस योगानंद जी का जन्मोत्सव रांची के योगदा आश्रम में..............

पूर्व जन्म का सुकर्म कहे या वर्तमान का प्रयास। हमें पता नहीं, पर इतना जरुर कहुंगा कि आज उस वक्त बहुत आनन्द और शांति की प्राप्ति हुई, जब मैं आज योगदा आश्रम पहुंचा। कल ही मेरे छोटे बेटे हिमांशु ने कहा था कि पापा जी 5 जनवरी को स्वामी योगानन्द जी का जन्मोत्सव हैं, क्या आप आश्रम चलेंगे, इच्छा थी चलने की पर बोल नहीं पाया था। आज सुबह में हिमांशु ने स्वामी योगानंद जी के बारे में अखबार में कुछ पढ़ने की कोशिश की, पर उसे निराशा हाथ लगी, क्योंकि स्वामी योगानंद जी के बारे में किसी अखबार ने कुछ विशेष डालने की कोशिश नहीं की थी। मेरे यहां प्रभात खबर आता हैं, पर उसमें भी सिर्फ सूचना ही थी, स्वामी योगानंद जी के बारे में कुछ नहीं था। मेरा रांची से संपर्क 5 जून 1985 को पहली बार हुआ था, मेरी पत्नी पहली बार योगदा आश्रम लायी थी, कब लायी थी, मुझे पता नहीं। पर जब वो यहां लायी थी तब उतना प्रेम का ज्वार इस आश्रम के लिए नहीं था, पर जैसे जैसे रांची से मेरा संपर्क बढ़ता गया, पता नहीं क्यों और कैसे योगदा आश्रम में मेरी दिलचस्पी बढ़ती गयी। योगदा आश्रम और उसकी आबोहवा ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं अपने दोनों बच्चों का नामांकन ही योगदा सत्संग विद्यालय में करा दिया। मेरे दोनों बच्चे योगदा सत्संग से ही मैट्रिक की परीक्षा पास की हैं। बड़े बेटे सुधांशु ने 2004 का दयामाता गोल्ड मेडल एवार्ड भी जीता हैं। जब मेरा छोटा बेटा हिमांशु सातंवी में पढ़ रहा था तब मुझे पता चला था कि योगदा आश्रम में छठी कक्षा के बच्चों के लिए एक विशेष साधना शिविर लग रही हैं। मैंने योगदा आश्रम के साधकों और योगदा सत्संग के प्राचार्य डा. विश्वम्भर मिश्र से बड़ा अनुरोध किया था कि वे हिमांशु को थोड़ा इस साधना शिविर में जगह दें। शिविर छठी कक्षा के लिए थी, पर मेरे अनुरोध को स्वीकार कर लिया गया। उस साधना शिविर से लौटने के बाद मैंने अपने बेटे हिमांशु में काफी परिवर्तन देखा जो आज भी मुझे प्रभावित करती हैं। पत्रकार के रुप में पत्रकारिता कार्य हेतु कई बार मुझे इस आश्रम में जाने का मौका मिला, पत्रकारिता की, पर योगदा आश्रम के अनुभव, को शब्दों में अभिव्यक्त करने की मुझमे क्षमता नहीं। जब भी गया, स्वामी योगानंद जी के चित्र और उनकी दिव्य आंखों को मैं देखता ही रह जाता हूं, जैसे लगता हैं कि वे मुझसे कुछ कह रहे हो। एक बार फिर, आज उस आश्रम में जाने का मौका मिला - दोनों बच्चे मेरे साथ थे। बड़ा आनन्द आया, क्योंकि आश्रम के एक एक स्थान को मनःस्पर्श करने की ठानी थी, इच्छा पूरी हो गयी। लगा कि मैंने कुछ पाया हैं। सचमुच 5 जनवरी 1893 को जब स्वामी योगानंद धरती पर अवतरित हुए होंगे तो वो दिन कैसा रहा होगा। वो लोग कितने धन्य होंगे, जिन्हें स्वामी योगानंद जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ होगा। ऐसे तो सम्पूर्ण रांची 5 जनवरी को इस आश्रम में सिमटती नजर आती हैं, सभी स्वामी योगानंद जी के चित्र के आगे नमन कर रहे होते हैं, उसके पश्चात प्रसाद ग्रहण कर, स्वयं को तृप्त करते हैं। मैं चाहुंगा कि स्वामी योगानंद जी की कृपा सब पर बनी रहें ताकि लोग एक दूसरे से प्रेम करना सीखें ताकि भगवद् कृपा सब पर सदैव बनी रहे। स्वामी योगानंद जी को मेरे समस्त परिवार की ओर से शत शत नमन...........................