Sunday, May 13, 2012

देश तरक्की कर रहा हैं, हम इँडियन किसी से कम नहीं...............................


मैं 45 का हो गया हूं, और मेरा मानना हैं कि जो इन वर्षों में मैंने देखा। देखकर यहीं महसूस कर रहा हूं कि देश वाकई तरक्की कर रहा है। कई प्रमाण हैं मेरे पास, इसे साबित करने के लिए। ये अलग बात हैं कि आप मेरे इन सबूतों पर विश्वास करें या न करें, पर इतना जरुर कहना चाहता हूं कि आकाशवाणी पटना में जब मैं आकस्मिक उद्घषोक के रुप में कार्य करता था, तब उसके मुख्यद्वार पर महात्मा गांधी के कथन उद्धृत थे, जिसे मैं बराबर पढ़ा करता था -- वो ये था गांधी के शब्दों में कि - "मैं चाहता हूं कि मेरे घर की खिड़कियां और दरवाजे सदा के लिए खुले रहे ताकि दूसरे स्थानों की आबोहवा व उनकी संस्कृति बेरोक टोक आया जाया करें, पर मैं ये नहीं चाहूंगा कि उनके इस संस्कृति के आने जाने के कारण, अपने ही देश की संस्कृति को खतरा उत्पन्न हो जाय।" ये कथन गांधी के थे, आज गांधी जीवित नहीं हैं और न उनको याद करनेवाले जीवित हैं। हाड़-मांस के पुतलों की यहां संख्या इतनी हो गयी हैं कि इसकी संख्या एक अरब को पार कर गयी हैं। जो लोग गांधी को ढोते हैं, उन कांग्रंसियों को भी अब गांधी और गांधी के राम से एलर्जी हो गयी हैं, क्योंकि वो जानती हैं कि न तो गांधी और न गांधी के राम, उन्हें वोट दिला सकते हैं। ऐसे में गांधी के इस कथन से उन्हें क्या लेना देना। ये आलेख लिखने के बक्त एक और शख्स की अनायास याद आ गयी। नाम हैं उसका मैकाले। जिसने भारतीय शिक्षा पद्धति की नींव रखी और जिसने डेढ़ सौ वर्ष पहले कहा था, उसे खुद भारतीयों ने चरितार्थ किया। आज तो भारत के गलियों में बच्चा - बच्चा एक डायलाग बोलता हैं। उसके बोल हैं --- टम टमा टम टम, टमाटर खाये हम। अंग्रेज का बच्चा क्या जाने, अंग्रेजी जाने हम। ये बोल बताते हैं कि देश कितनी तरक्की किया हैं। इस देश में अंग्रेजी दिवस नहीं मनाया जाता, पर इस देश में अंग्रेजी बोलना व पढ़ना शान समझी जाती हैं। इस देश में हिंदी दिवस मनाया जाता हैं, पर हिंदी पढ़ने, लिखने व बोलने में मंत्री से लेकर संतरी तक को झिझक और शर्म महसूस होती हैं, स्थिति ऐसी हैं कि अब हिंदी के इस देश में शुद्ध हिंदी बोलनेवालों की संख्या विलुप्त होती जा रही हैं। भारत का एक राज्य नागालैंड की तो भाषा ही अंग्रेजी हो गयी हैं। आईये हम आपको बता देते हैं कि मैकाले ने 2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में क्या कहा था --- LORD MACAULAY ADDRESS TO THE BRITISH PARLIAMENT, 2 FEBRUARY, 1835 "I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is a beggar, who is a thief. Such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such calibre, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self-esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation.
" मैकाले ने कहा था -- कि मैंने भारत के कोने कोने की यात्रा की, लेकिन इस यात्रा के दौरान मुझे न तो कोई भिखारी दिखा और न ही चोर। इस देश में मैने उच्च नैतिक मूल्यों और आदर्शों को देखा। जो वहां के निवासियों में कूट कूट कर भरा था। ऐसे देश को हम तभी जीत पायेंगे जब उसकी रीढ़ मानी जानेवाली आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत में बदलाव करेंगे। इसलिए मैं इस बात का सुझाव देता हूं कि उस देश की पुरानी और प्राचीन शिक्षा पद्धति को बदलने की कोशिश की जाये। उनकी संस्कृति में परिवर्तन कर हम उनको जीत सकते हैं। इसलिए हमारी कोशिश विदेशी और अंग्रेजी को बढ़ावा देने की हैं। ताकि उनको लगे, कि ये सब उनकी संस्कृति से बेहतर हैं। इन कदमों के उठाये जाने के बाद ही हमारा उस देश पर पूरा प्रभुत्व हो सकता हैं, अन्यथा नहीं।"
कमाल हैं आज हम दावे के साथ कह सकते हैं कि जिस मैकाले ने ब्रिटिश सत्ता के भारत में काबिज रहने तक अपनी परिकल्पनाओं को साकार होते हुए नहीं देखा, आज वो साकार ही नहीं, बल्कि पूरा देश अंग्रेजी और अंग्रेजमय हो जाना चाहता हैं। भारत और भारतीयता तो कहीं दिखती नहीं, सिर्फ इंडिया दिखता हैं। आनेवाले समय में आर्यावर्त, जंबूद्वीप, भरतखंड, हिंदुस्तान की तरह लोग भारत कहना भूल जायेंगे और अंग्रेजों का नाम दिया इंडिया ही देश का असली नाम माना जायेगा। उदाहरणस्वरुप देश के विभिन्न राष्ट्रीय अथवा प्रादेशिक निजी चैनलों के नाम देखिये -- ज्यादातर इंडिया व इंडिया के केन्द्र में हैं, भारत और हिंद तो दीखता ही नहीं। मेरा एक मित्र अमरीका में रहता हैं, उसकी पत्नी अमरीकन मूल की हैं। एक बार उनसे बातचीत हुई थी -- वो भारत को बहुत प्यार करती हैं। कहती है कि उनकी दादी कहा करती थी कि इंडियन बहुत अच्छे होते हैं, वे एक ही पत्नी पर अपना पूरा जीवन समाप्त कर देते हैं, पर अमरीका व पश्चिम देशों में तो लड़कियों की शादी ना हुई, तलाक का सिलसिला शुरु हो जाता हैं। इसलिए वो शादी एक भारतीय से की और उसे खुशी हैं कि वो भारतीय पति आज भी उससे उतना ही प्यार करता हैं, जितना की पन्द्रह - सोलह साल पहले किया करता था। बच्चे भी दो हैं और सब खुशी से रह रहे हैं कोई दिक्कत नहीं। पर क्या -- सचमुच भारत में ऐसा हैं, या केवल अब ये गलतफहमी लोग पाल रहे हैं..............................। आप इसे स्वीकार करिये, भारत, आज इंडिया हैं। वो इंडिया जो न तो पूरी तरह अंग्रेज बन सका और न ही पूरी तरह भारतीय। बीच में यहां की अरबों आबादी पेंडूलम की तरह लटक रही हैं। पूर्व में जिस किसी देश पर आक्रमण होता था तो उस आक्रमण में अपनी संस्कृति को थोपने की आदत कुछ ज्यादा ही दिखती थी। भारत में जितने भी विदेशी आक्रमणकारी आये, उनके मूल में धर्म प्रचार और यहां की शैक्षिक संस्थाओं व संस्कृतियों को मटियामेट करना और अपने को मजबूत स्थिति में रखना ही मूल मकसद हुआ करता था। नालंदा के अवशेष खंडहर और सोमनाथ मंदिर को लूटा जाना - इस बात के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। कल के भारत और आज की इंडिया ने् कई आक्रमणकारियों व विदेशी शासकों को अपनी मिट्टी पर राज करते देखा हैं पर भारतीयों के दिलों पर राज करना इनके बूते के बाहर थी तभी मैकाले ने अपनी व्यथा ब्रिटिश संसद में रखी थी, पर आज की क्या स्थिति हैं, क्या आज कोई विदेशी यहां आकर, अपनी व्यथा, अपने देश में कर सकता हैं। उत्तर होगा -- नहीं। क्योंकि आज वो देख रहा हैं कि जो उसके यहां होता हैं वो ही इंडिया में हो रहा हैं तो किसका भारत और कैसा भारत। ये तो इंडिया हैं इंडिया। आज पूरा इंडिया अपना नया साल पहली जनवरी को मनाता हैं, उसे पता ही नहीं कि भारतीय संविधान ने उसके लिए एक अपना संवत् चुना हैं जिसे शक संवत् कहा जाता हैं और इसके भारतीय महीने जनवरी फरवरी से अलग हैं। प्रगति का सबसे पहला सोपान तो यहीं हैं कि आज कोई भी भारतीय को अपना पहला महीना, अपना पहला संवत तक याद नहीं। भारत सरकार कहती हैं कि राष्ट्रीय खेल हॉकी हैं पर सच्चाई ये हैं कि किसी भी भारतीय से आप पूछे हांकी के बारे में, तो वो हॉकी का एबीसीडी भी नहीं बता पायेगा और जब क्रिकेट की बात करें तो लीजिए, आपको उस पर एक थीसिस लिख देगा। ये बाते बता रही हैं कि देश कितनी तेजी से प्रगति कर रहा हैं, प्रगति ऐसी कि देश की सरकार चाह भी लें कि वो कुछ नया करेगी, यहां की जनता, उससे भी आगे बढ़कर, तेजी दिखा देगी। प्रगति के कुछ उदाहरण देखिये, खासकर आजादी के बाद ..........................

1. आजादी के पूर्व तक यहां के लोग मां को मैया अथवा मां कहकर पुकारते थे, पर आज वो ही मां मम्मी से होते हुए माम तक पहुंच गयी हैं, वो ही हाल पिताजी जो बाबुजी कहलाया करते थे अब पापा होते हुए, डैडी से डेड हो चुके हैं।

2. पहले घर में जब किसी का जन्मोत्सव मनाया जाता था, तो घर में सत्यनारायण की पूजा हुआ करती थी, गर ये भी नहीं हुआ तो जिसका जन्मदिन होता था, वो मंदिर जरुर जाता, तिलक जरुर लगाता और घर आकर घर में बने विशेष पकवानों का मजा लेता, घर में सभी लोग उसकी बलइयां लेते, बड़े बुजुर्ग आशीर्वाद देकर, उसे धन्य धन्य कर देते, पर अब यहां ऐसा नहीं दिखता। अब तो हर घर में केक आते हैं, मोमबत्तियां आती हैं, मोमबत्तियां जलाकर उसे फूंका जाता हैं और ताली बजाकर हैप्पी बर्थ डे टू यू का प्रचलन शुरु हो गया। सचमुच अंग्रेज नहीं होते तो ये बेचारे इंडियन अपने बच्चों का जन्मदिन भी नहीं मना पाते. मैं तो इसके लिए अंग्रेजों को बधाई दूंगा कि उन्होंने इँडियन को जन्मदिन मनाना सिखाया।

3. पहले ज्यादा भारतीय धोती पहना करते थे और माथे पर टोपी, जबकि महिला साड़िय़ों का उपभोग करती थी, पर अंग्रेजों ने भारतीयों को कपड़ा पहनाना सिखाया, आज सभी भारतीय धोती की जगह फुलपैंट पहनते हैं, जिससे उनके पांव जाड़ों के दिनों में ठंड से बच जाती हैं तथा टोपी से जो उनका लुक खराब लगता था, अब टोपी छोड़ देने से उनका लुक स्मार्ट हो गया हैं. अब तो महिलाएं साड़ियां नहीं पहनना चाहती, क्योंकि साड़ी में वो सैक्सी नहीं दिखती, टॉप जीन्स में सैक्सी दिखती हैं, इसलिए उन्हें ये पहनावा ज्यादा रुचिकर लग रहा हैं। ऐसे भी आज की महिलाओं और पुरुषों को सैक्सी दिखना, कुछ ज्यादा ही भा रहा हैं।

4. अब भारतीयों के घरों में रोटी - सब्जी या दाल चावल नहीं दिखाई देता। अब तो इसके जगह पर पिज्जा, चाउमिन, बल्गर और पता नहीं क्या क्या भोज्य पदार्थ दिखाई देने लगे हैं।

5. अब शादियों की सालगिरह भी, अंग्रेज के बच्चों के बर्थडे की तरह मनायी जाने लगी हैं। शादी का सालगिरह मनाने का प्रचलन इतना बढ़ा हैं कि होटलों व रेस्तराओं की बल्ले बल्ले हो गयी हैं। जिनकी शादी का सालगिरह होता हैं वे पति पत्नी अपने पूर्व के प्रेमी व प्रेमिकाओं को इस अवसर पर बुलाना नहीं भूलते ताकि वे अपने प्यार के उन पलों को सबके सामने शेयर कर सके। ऐसा कहना और सुनना आजकल शान समझा जाता हैं क्योंकि किसका पति कितना हैंडसम और किसकी पत्नी पहले कितनी सेक्सी थी, वो सबसे ज्यादा उसके चाहनेवालों की संख्या पर निर्भर करती हैं और ये संख्या दिखाने का सबसे सुंदर मौका होता हैं। शादी का सालगिरह मनाना। धन्य हैं अंग्रेज, जिन्होंने भारतीयों को शादी की सालगिरह का महत्व समझाया।

6. अब तो मेरे देश में विवाहित महिलाएं सिंदुर नहीं लगाती। सिंदुर लगाना, पुरातनपंथी होने का नमूना माना जाता हैं। शादी के बाद सिंदुर न लगाकर विधवाओं की तरह रहना अब शान समझा जा रहा हैं। प्रगतिशील महिलाओं की माने तो सिंदुर लगाकर महिलाएं खुद को विवाहित होने का सबूत देती हैं ऐसा पुरुष क्यों नहीं करते. भाई इनकी बातों में दम हैं। ऐसा पुरुषों के लिए कुछ न कुछ जरुर होना चाहिए, पर हमको इससे क्या मतलब, हम तो प्रगति की बात कर रहे हैं, आजकल हमारे देश की महिला व पुरुष बिना विवाह के ही आपस में पति - पत्नी की तरह रह रहे हैं और उन्हें सामाजिक मान्यता भी मिल रही हैं। गर इस दौरान इनके द्वारा बच्चे पैदा हो जाते हैं तो बच्चे को अधिकार भी हैं कि वे इन्हें अपना मम्मी या डैडी माने अथवा नहीं, या वे उन्हें माने जहां इनके इन मम्मी डैडियों ने इन्हें अपने चैन का नासूर समझकर किसी अनाथालय को दे दिया और उसके बदले में नोटों के बंडल अनाथालयों को भेज दिये।

7. पूर्व में भारतीयों को खाना खाना नहीं आता था, अंग्रेजों ने इन्हें खाना खाने के तरीके सिखाये। पहले भारतीय अपना भोजन, अपने हाथों से खाया करते थे, पर अंग्र ये छुरी और कांटों का प्रयोग कर रहे हैं, ये प्रगति का सबसे सुंदर उदाहरण हैं। आज भारत के सभी होटलों व रेस्तरों में कांटा और छुरी की भरमार हैं। कांटा और छुरी के फायदे भी अनेक हैं, जब खाना खाने के दौरान बक-झक हुई किसी से, तो आप कांटा छुरी का बेहतर इस्तेमाल भी कर सकते हैं, गर आपके पास कोई दुसरा हथियार नहीं हो।

8. पहले जो सिनेमा बनते थे वो भारतीय मूल्यों को रेखांकित करते थे। फिल्मों में भाई - बहन, मां - बाप, पति - पत्नी, भाई - भाई, घर-परिवार और समाज के प्रति कर्तव्य का बोध छुपा करता था, पर अब ऐसा देखने को नहीं मिलता, अब इन सारे रिश्तों की जगह केवल लड़के - लड़कियों के प्रेम व सेक्स ने ले ली हैं, ऐसे भी जरुरी हैं कि प्रेम व सेक्स कैसे किये जाये, क्योंकि इसके बिना लेडिज और जेन्टलमैन का किरदार ठीक नहीं बन पड़ता। यहीं कारण हैं कि आज नेताओं से लेकर अन्य लोगों के जुबां पर भाईयों और बहनों की जगह लेडिज एंड जेन्टलमैन ने ले लिया हैं।

9. हमारे देश में शिक्षा में भी आमूल चुल परिवर्तन हुए हैं। धर्म - निरपेक्षता की आड़ में केन्द्र व राज्य सरकारों ने रामायण और महाभारत जैसे भारतीय महाकाव्यों की धज्जियां उड़ा दी हैं। इनका मानना हैं कि इससे देश में सांप्रदायिकता बढ़ती हैं. इसलिए ऐसी - ऐसी चीजें पढ़ाई जा रही हैं, जिससे बच्चा केवल पैसे जमा करने की मशीन बनकर देश व समाज को अपने हाथों से बर्बाद कर सकें, और इनकी बानगी देखने को भी मिल रही हैं। आईएएस और आईपीएस की फौजों ने महानगरों में अपने लिये राजसी ठाठ-बाट के सामान इकट्ठे करने में लगे हैं, देश और समाज इनके ठेंगे पर हैं, ये जमकर भारतीयों के पैसे का सही इस्तेमाल कर रहे हैं। स्थल अध्ययन के नाम पर विदेश यात्रा करते हैं और अपनी पत्नियों के साथ, कभी - कभी ठेके पर पत्नी लेकर रंगरेलियां मनाते पकड़े जा रहे हैं, यहीं हाल हमारे प्रबुद्ध नेताओं का हैं, ये भी इसी प्रकार का कार्य कर रहे हैं।

10. देश में नेताओं की फौज इक्ट्ठी हो गयी हैं। चाहे समाजवादी हो, या दक्षिणपंथी या वामपंथी. सभी का एक ही स्वर -- मिले सुर मेरा तुम्हारा और सुर बने हमारा हैं। कल तक नहीं चलेगा परिवार का राज अलापने वाले, अपने बहु-बेटियों और बेटे दामादों को टिकट बांट कर धन्य धन्य हो रहे हैं।

11. कल तक नेता सरकारी अस्पतालों में अपना इलाज कराते थे, अब वे सरकारी अस्पतालों में इलाज कराना अपनी बेईज्जती समझते हैं, इसलिए ये फाइव स्टार वाली सुविधावाली अस्पतालों में इलाज कराकर, इसके पैसे भी आम जनता से वसूलकर, भरते हैं, ये कहकर कि वे जनप्रतिनिधि हैं और आम जनता आज भी खैराती अस्पतालों में इलाज कर सीधे स्वर्गगमन कर रही हैं।

12. 15 अगस्त 1947 में जो भारत का मानचित्र था, वो अब सिकुडता नजर आ रहा हैं। चीन 1962 में भारत का एक बड़ा हिस्सा कब्जे में कर रखा हैं, जबकि अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम पर उसकी नजर टेढी हैं सो अलग। यहीं नहीं आज भी चीन के विमान और उसके सैनिक अरुणाचल प्रदेश के कई भागों को धीरे - धीरे अपने में मिलाते जा रहे हैं। इससे बड़ी देश के प्रगति का सूचक और क्या हो सकता हैं।

13. देश की संसद और राज्य की विधानसभाओं में स्पेशल कैंटीन चलती हैं, जो यहां के नेताओं और उनके चमचो को बहुत ही सस्ते दरों पर खाद्यान्न मुहैया कराती हैं, जबकि आम जनता आज भी मंहगाई से त्रस्त हैं।

14. देश के नेताओं व राजनीतिज्ञों ने शिक्षा की दो धाराएं निकाली हैं। यहां की जनता के लिए घिसी पिटी विश्वविद्यालयीय शिक्षा दे रखी हैं, जबकि अपने खानदान के बच्चों के लिए विदेश में शिक्षा दिलाने की योजना चला रखी हैं, आज भी देश के सभी बडे़ नेताओं व बड़े प्रशासनिक अधिकारियों के बेटे उच्च शिक्षा के लिए भारत की बजाय विदेश की शरण लेते हैं।

15. देश के सभी प्रमुख अखबारों के अपनी वेबसाइट अश्लील चित्रों से भरी पड़ी रहती हैं, आप इन वेबसाइटों को देखकर देश की प्रगति का आइना देख सकते हैं। यहीं नहीं इन अखबारों में सेक्स और लव के चटखारे इतने अटेपटे हैं कि आपको ब्लू फिल्मों की कैसेट देखने की आवश्यकता ही नहीं पडे़गी।

16. जिस देश में कभी नानक, एकनाथ, नामदेव, नरसिह मेहता, तुलसी, कबीर, मीरा की तूती बोलती थी, आज उस देश में कृपा बरसानेवाले बाबाओं की बाढ़ आ गयी हैं. संतों की जगह रामदेव, निर्मलबाबा, आसाराम जैसे ठगों ने ले ली हैं, जो सपने दिखाकर लोगों को मूढ़ बनाने में विशेष रुचि रखते हैं।

17. इस देश में पहले श्रीरामचरितमानस की चौपाईयां घर - घर में गूंजती थी। कहा जाता था -- प्रातःकाल उठि के रघुनाथा, मात-पिता गुरु नावहि माथा। उस देश में अब मदर्स डे, फादर्स डे मनाया जाने लगा हैं, और इसके माध्यम से बताया जाता हैं कि मां और पिता क्या होते हैं।

18. जिस देश में हर महीने कोई न कोई पर्व व त्योहार हुआ करते थे, अब यहां केवल पर्व के नाम पर होली और दीवाली ही दिखाई पड़ती हैं, जबकि एक नया पर्व इस देश में अब दिखाई देने लगा हैं। जो अब हर साल 14 फरवरी को मनाया जाता हैं। इस पर्व को वैलेंन्टाईन डे कहा जाता हैं। इस पर्व के दिन हर लड़का एक लड़की को लेकर या हर लड़की एक लड़के को लेकर या लड़का - लड़का में या लड़की - लड़की से प्रेम करती हैं और इस प्रेम का लब्बो लुआब ये होता हैं कि अश्ललीलता व प्रेम की फुहड़ता चरम पर होती हैं।

19. हमारे देश में हर साल एक न एक घोटाले का पर्दाफाश होता हैं। कई घोटाले जैसे चारा घोटाला, ताबूत घोटाला, टूजी घोटाला इत्यादि। हर घोटाला खासमखास होता हैं। प्रत्यके घोटाले एक दूसरे घोटाले को मुहं चिढ़ा होता हैं कि देखों में तुमसे भी बड़ा हू। इन घोटालो में शामिल नेताओं को सजा भी नहीं होती, ये आराम से कुछ दिन ट्रायल के दौरान जेल में होते हैं, पर अंत में ससम्मान बरी भी हो जाते हैं। ये घोटालेबाज कुछ घटियास्तर के सफेदपोश पत्रकारों के साथ मिलकर नये चैनल खोलकर, अपने संत होने का एक झूठा आचरण भी पेश करते हैं, जिससे सामान्य जनता दिग्भ्रमित होती जाती हैं।

20. देश में रहनेवाले इंडियन जो यहां सरकारी सेवाओं में काम कर रहे होते हैं या जो खेती वाड़ी कर अपना जीवन यापन करते हैं, उनके धन यहां अंकगणितीय प्रणाली से बढ़ रहे हैं, पर नेताओं व आईएएस व आईपीएस अधिकारियों के धन ज्यामितीय प्रणाली से बढ़ रहे हैं।

21. अब अपने देश में कुछ - कुछ राज्यसभा की सीटे एक तरह से आरक्षित सी हो गयी हैं। जहां एक खानदान के लोग या मीडिया से जूड़े लोग पिछले पच्चीस छब्बीस वर्षों से काबिज हैं और उनका ये कब्जा आजीवन रहेगा। आज नेता का बेटा नेता ही होता हैं और उसे ही देश की बागडोर मिलेगी, ऐसा गुप्त एजेंडा को इस सफाई से यहां पेश किया जाता हैं कि जनता सदा मूर्ख बनी रहती हैं।

22. देश की भाषा, राजभाषा हिन्दी मानी गयी हैं, पर सच्चाई ये हैं कि हिंदी अंग्रेजी की दासी के सिवा कुछ नहीं। लोकसभा से लेकर राज्यसभा, विधानसभा से लेकर विधानपरिषद् तक अंग्रेजी की सल्तनत चलती हैं। हिंदी में संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देनेवाले अटलबिहारी वाजपेयी भी जब प्रधानमत्री बने तो कई जगहों पर अंग्रेजी में संवाद करना, इन्होंने शान समझा। वो कहा जाता हैं न कि हिंदी गंवारों और जाहिलों की भाषा हैं, जबकि फादर कामिल बुल्के के अनुसार - "संस्कृत महारानी, हिंदी बहुरानी और अंग्रेजी नौकरानी हैं।"

23. देश के संसद के 60 साल हो गये पर सच्चाई ये हैं कि जैसे जैसे संसद अपनी वर्षगांठ मनाता गया, वैसे वैसे ये संसद अपनी गरिमा भी खोता चला गया। केन्द्र की कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार अपनी सरकार बचाने के लिए सांसदों को घूस देकर अपनी सरकार बचायी। एक बार तो ऐसा हुआ कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने दुबारा अपनी सरकार बचाने के लिए सांसदो को खरीदने की कोशिश की और वे पैसे साफ देखे गये कि कैसे सदन में रखे गये। पूरा देश देखा इस दृश्य को। जिस चैनल के पास इस दृश्य को दिखाने का जिम्मा था, उसने कांग्रेस के आला नेताओं के हाथों अपनी जमीर बेच दी, अपनी आत्मा बेच दी। यानी यहां के राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार अपनी जमीर बेचने में किसी भी अन्य देश के पत्रकारों से काफी आगे निकल चुके हैं। कितने प्वाइँट लिखूं, जितना भी लिंखूंगा कम ही होगा, बस अब आप इतना जरुर जान लीजिए कि देश काफी प्रगति कर चुका हैं............बस एक दौड़ और लगानी हैं यानी अपने सर्ट और पैंट और छोटे करने हैं...........यकीन मानिये हम अमरीकी और ब्रिटेन को मात दे देंगे। तब और गर्व से कह सकेंगे कि हम इंडियन किसी से कम नहीं.....................................।