Saturday, September 22, 2012

हमारे प्रधानमंत्री डायलॉग बहुत अच्छा बोल लेते हैं......................

ल यानी 21 सितम्बर 2012 को अपने देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का हिंदी में भाषण सुनने को मिला। आमतौर पर अंग्रेजी में बोलनेवाले मनमोहन सिंह को शायद ये परमज्ञान हो गया होगा कि यहां की जनता अंग्रेजी थोड़ा कम जानती हैं, इसलिए हिंदी में पहले और बाद में उन्होंने अंग्रेजी का सहारा लिया, हालांकि आम तौर पर देखा गया हैं कि जब अंग्रेजी में ये बड़े बड़े महानुभाव भाषण दे देते हैं तो इनके भाषण का हिंदी अनुवाद ये कहकर पेश नहीं किया जाता कि उनके हिंदी भाषण को पढ़ा हुआ मान लिया जाय, और लोग पढ़ा हुआ मान लेते हैं। ऐसे भी, मेरा ये विषय भी नहीं कि उन्होंने किस भाषा में भाषण दिया, क्योंकि ये महाशय अपने देश की सम्मान के प्रति कितना गंभीर हैं, वो देश की जनता जानती हैं।
अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि देश को अभी एफडीआई की जरुरत हैं। उन्होंने बड़ी ही बेशर्मी से ये भी कहा कि 1991 में जब आर्थिक सुधार कार्यक्रम देश में शुरु किये गये तो यहीं लोग जो आज विरोध कर रहे थे, उस वक्त भी विरोध करना शुरु किया था, पर आज उसका क्या फायदा मिला, सभी को ज्ञात हैं। उन्होंने ये भी बड़े बेशर्मी से कह दिया कि देश के ज्यादातर हिस्सों में ज्यादातर लोग एक साल में छह सिंलिंडर से ही काम चला लेते हैं, पर ये नहीं बताया कि उनके ( प्रधानमंत्री के ) घर में कितने सिलिंडर, एक साल में खर्च होते हैं। कल के भाषण में इतना तो स्पष्ट हो गया कि हमारे प्रधानमंत्री डायलॉग बहुत अच्छा बोल लेते हैं। इसलिए हम तो यहीं चाहेंगे कि जैसे उन्होंने ब्यूरोक्रेट में रहकर अपनी पोजीशन ठीक की। राजनीति में हाथ पांव मारकर बिना किसी लोकसभा चुनाव जीते, प्रधानमंत्री बन गये। अब उन्हें फिल्मी दुनिया में भी हाथ अजमाना चाहिए, निःसंदह वे तीनों शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान को परास्त कर सुपर स्टार बन जायेंगे और इस प्रकार से एक रिकार्ड भी बना लेंगे, कि एक व्यक्ति जो हर जगह फिट हैं, वो सिर्फ और सिर्फ मनमोहन हैं। बेचारे प्रधानमंत्री ऐसे तो बहुत कम बोलते हैं, कम बोलने का रिकार्ड भी उन्ही के पास हैं, जब ममता बनर्जी ने जैसे ही एफडीआई मुद्दे पर, केन्द्र से अपना समर्थन वापस लिया, उनका मुंह खुल गया और जनता से सहयोग मांगने लगे।
इधर कल तक एफडीआई के विरोध में भारत बंद में शामिल होनेवाली समाजवादी पार्टी, जिसका चरित्र सदैव संदिग्ध रहा हैं। उसके बड़े नेता मुलायम सिंह यादव, सोनिया गांधी के चरण कमल पर लोटने के लिेए मजबूर हो गये। याद रखिये ये वहीं मुलायम हैं जो दो दिन पहले कोलकाता में कांग्रेस को कोस चुके हैं। ये वहीं मुलायम हैं जिनकी जीभ प्रधानमंत्री पद के लिए हमेशा लपलपायी रही हैं। ये वहीं मुलायम हैं, जिन्होंने अपने पुरे खानदान को राजनीति में घुसाकर, उन्हें अनुप्राणित किया हैं। ये वहीं मुलायम हैं, जिन्हें वामपंथी नेता एबी वर्द्धन, एनसीपी के कई नेता, थर्ड फ्रंड की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में देर तक नहीं की हैं, और उतनी ही जल्दी, इस नेता यानी मुलायम ने कांग्रेस के गोद में बैठने में अपनी पुरुषार्थ दिखा दी। ये कहकर कि वे नहीं चाहते कि देश में सांप्रदायिक शक्तियां मजबूत हो। यानी देश मुलायम की जातिगत राजनीति के कारण और कांग्रेस की गलत आर्थिक नीतियों के कारण भले ही भाड़ में चला जाये, पर मुलायम  और सोनिया की बादशाहत किसी भी प्रकार से कम नहीं होने चाहिेये। ये हैं हमारे देश के नेताओं का दोहरे चरित्र को उजागर करती आज की राजनीति। ऐसे ऐसे नेता, हमारे देश को महान बनाने के लिए, आजकल पैदा लिेए हैं, जो देश को अमरीका और अन्य देशों के हाथों गिरवी रखकर, उऩके उपनिवेश शासक के तौर पर खुद को प्रतिष्ठित करने का सपना देख रहे हैं। क्या होगा, इस देश का, जहां ऐसे ऐसे घटिया स्तर के नेताओं की फौज आज विद्यमान हैं।
कल हमारे प्रधानमंत्री ये भी बोले कि अमरीका और अन्य पश्चिमी देशों में आयी आर्थिक मंदी का असर भारत में भी देखने को मिला हैं, पर हमारे उपर उतना बोझ नहीं पड़ा हैं। मैं कहता हूं की गर नहीं पड़ा तो डीजल का भाव क्यों बढ़ा दिया। यहीं नहीं हमारे प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में डीजल का उपयोग बड़े बड़े अमीर करते हैं, क्या देश के खेतों में काम करने वाले किसानों और खेतिहर मजदूरों के डीजल पंपिंग सेट, पेट्रोल पर चलते हैं। क्या हमारे देश के सारे के सारे किसान अमीर हो गये। क्या प्रधानमंत्री का इस प्रकार दिया गया बयान करोंड़ों किसानों के मुंह पर तमाचा नहीं हैं। प्रधानमंत्री जी, आम जनता से सहयोग मांगते हो, कठोर फैसले लेने की मजबूरी का हवाला देते हो, और खुद तुम्हारे मंत्रिमंडल के लोग जनता की गाढ़ी कमायी के अरबों - खरबों रुपये लूटकर विदेशों में जमा कर दे रहे हैं, साथ ही लूटने का क्रम जारी भी हैं। उस भ्रष्टाचार पर आप अंकुश नहीं लगाते और आम जनता को देश के लिए जीने की दुहाई देते हो यानी हम जिंदगी भर देश के लिए सब कुछ लुटाते रहे और आप जिंदगी भर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर शान बघारते रहो और अंत में तिंरगा को लपेटकर, अपने सैल्यूट भी मरवाओ। क्या बात हैं। ये सिर्फ, इसी देश भारत में होता हैं और कहीं नहीं। दूसरा देश होता तो स्थिति कुछ और होती। बगल में चीन हैं -- देख लो। तुम्हारी - हमारी सदैव औकात बताता हैं और हमारी इतनी भी ताकत नहीं कि उसकी औकात बता दें। पूरा देश चीनी माल से अटा पटा हैं। मैं पूछता हूं हमारे प्रधानमंत्री ये तो बताये कि चीन के किस नगर में, मेरे देश की बनी सामग्रियां बिकती दिखायी दे रही हैं, गर नहीं तो इसके लिए जिम्मेवार कौन हैं। पिछले 65 सालों में दस साल निकाल दें तो कांग्रेस की ही सरकार रही हैं, और इस देश का बंटाधार कांग्रेस और इसको सहयोग करनेवाली पार्टियां के सिवा किसी और ने नहीं किया। ऐसे में आम जनता, आप के इस लल्लो - चप्पो वाली भाषण पर विश्वास क्यों करे। आप प्रधानमंत्री हैं -- 2014 तक आपको मिला हैं, शासन करने को। करते रहिये, देश को विदेशियों के हाथो लूटवाते रहिये। आगे देखते हैं कि 2014 के बाद कोई देश से प्यार करनेवाला सहीं व्यक्ति मिलता हैं या नहीं, जो प्रधानमंत्री पद पर रहकर, देश का सम्मान बढ़ा सके।

Saturday, September 15, 2012

शर्मनाक, हमारे नेताओं ने देश को बाजार बना दिया.............................

एक सवाल -------
1. भारत के प्रधानमंत्री व उनके मंत्रिपरिषद् से,
2. कांग्रेसियों से,
3. कांग्रेस के पिछलग्गू पार्टियों व अन्यान्य संगठनों से, तथा
4. कांग्रेस भक्त पत्रकारों से.
जब देश को बाजार ही बनाना था, तो 1947 के पूर्व भारत के अमर स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त क्यों कराया, अंग्रेज तो वहीं कर रहे थे, जो आज की हमारी सरकार आजादी के 65 साल बाद करने के लिए बेकरार हैं। जब मैट्रिक का मैं विद्यार्थी था, उस वक्त रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी देखने को मिली। इस गांधी फिल्म में एक दृश्य हैं -- जिसमें एक अंग्रेज, स्वतंत्रता सेनानियों पर अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए कहता हैं कि तुम जो स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे हो, क्या तुम इस स्वतंत्रता को बचाकर रख पाओगे, कुछ ही साल बाद तुम गुलाम हो जाओगे। वह संवाद, अक्षरशः हमे आज सत्य दिखता हैं। हमारी मनमोहन सरकार, थाल में सजाकर अपने देश भारत को, विदेशियों के आगे रख दिया कि वे आये और देश का मान मर्दन करें, अपने देश में बने विदेशी सामानों को भारत की छाती पर रखकर, भारत को ही बर्बाद कर दे, और इस कार्य में दिल खोलकर सहायता कर रहे, वे चारों जिससे हमने सवाल पूछे हैं -------------
आज सुबह सभी कांग्रेस भक्त मीडिया बंधुओं ने एक समाचार प्रकाशित किया हैं, जिसमें उन्होंने एफडीआई की केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी और उसके फायदे को प्रमुखता से छापा हैं, पर सच्चाई क्या हैं, आजादी के बाद से लेकर आज तक वह किसान-मजदूर और वो देशभक्त परिवार महसूस कर रहा हैं, जो इस देश से सच्चा प्यार करता हैं। हमें तो कभी - कभी अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर तरस आती हैं, क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राहुल और सोनिया के इशारों पे हमेशा ता-ता-थै-या करते नजर आते हैं। विदेशी शासकों के प्रमुखों के साथ इनकी जब फोटो दिखती हैं तो इनका दब्बूपन व कायरता साफ झलकता हैं। संसद में जब ये बोल रहे होते हैं तो इनकी आवाज सिंह सी नहीं, बिल्ली सी प्रतीत होती हैं।
14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के दिन, इनकी कृपा से विदेशी ताकतों के आगे झूकनेवाले भारतीय नहीं, बल्कि उन देशभक्त भारतीय परिवारों पर दो बम फटे, जिनकी जिंदगी सिर्फ भारत पर शुरु होती हैं और भारत पर ही खत्म हो जाती हैं। इस मनमोहन सरकार ने भारतीय किसानों की जिंदगी तबाह कर दी, डीजल का दाम 5.90 रुपये बढ़ाकर और मध्यम वर्गीय परिवारों को ये बताकर कि अब आपको मात्र साल में 6 सिलिण्डर मिलेंगे, सब्सिडी पर, इसके बाद आपको अपनी जरुरत पूरी करने के लिेए एक सिलिण्डर के 750 रुपये देने पड़ेंगे। साथ ही यह भी कह डाला कि देश अभी गंभीर संकटों से जूझ रहा हैं और इसके लिए कड़े फैसले सरकार को लेने पड़े हैं। इसलिए ऐसे हालात में देशवासियों को समान रुप से संकट झेलने को तैयार रहना चाहिए, यानी जिसकी रोज की आमदनी 26 रुपये और जिसकी रोज की आमदनी दस हजार रुपये हैं, सभी एक जैसी समस्याएं झेले। हैं न हैरानी वाली बात। हाल ही में मैंने अखबारों में पढ़ा कि हमारे प्रधानमंत्री की जमा राशि मात्र एक साल में दोगुणी हो गयी, जबकि मैंने जिन बैंकों में पैसे डाले हैं वो आज तक एक क्या पांच साल में भी  दोगुणे नहीं किये। शायद हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास अलादीन के चिराग होंगे, जिससे वे अपनी आर्थिक स्थिति जब चाहे दोगुणे या पांच गुणे कर लेते होंगे। काश प्रधानमंत्री जी वहीं अलादीन के चिराग, संपूर्ण देश के नागरिकों को दे देते तो कितना अच्छा होता। कांग्रेस की ही नेता हैं -- शीला दीक्षित जो दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं, बड़ी बेशर्मी से बयान देती हैं कि ठीक हैं सिलिण्डर व डीजल के दाम बढ़ गये, पर लोगों की सैलरी भी तो बढ़ी हैं, तो मैं पूछता हूं कि हे शीले, ये बताओ कि देश में कितने लोग सैलरी पर जीवित हैं, गर नहीं तो तुम ऐसी घटिया स्तर का बयान क्यों दी। ऐसे भी इन कांग्रेसियों के बयान को देखेंगे तो पायेंगे कि इनके बयान गैरजिम्मेदाराना, बेहूदापन और घटियास्तर से भरे होते हैं। उदाहरण के लिए कपिल सिब्बल, मणीष तिवारी और दिग्विजय सिंह के बयानों को आप देख सकते हैं। 
ऐसे तो पूरे देश में विपक्षी दल भी इस डीजल की मूल्यवृद्धि, सिलिण्डर में सब्सिडी की कटौती पर हाय तौबा मचा रहे हैं, हो सकता हैं कि कांग्रेस की सरकार सोची समझी रणनीति के तहत एक - दो रुपये डीजल का दाम घटा दे या इसी तरह की निर्णय सिलिण्डर पर भी कर दें पर जरा सोचिये आज इस देश की ऐसी हालत किसने की। आखिर देश के सभी नेताओं के पास बेतहाशा दौलत कहां से आये, गर आ भी गये तो ये बेतहाशा दौलत इन्होंने कहां छुपा रखा हैं। आखिर देश आर्थिक संकट से जूझ रहा हैं तो इनमें त्याग की भावना क्यों नहीं, ये क्यों नहीं अपने काले धन को भारत में लाकर, भारत को आर्थिक शक्ति बना देते हैं। सच्चाई तो ये हैं कि हमारे देश के नेताओं की जमीर मर चुकी हैं। ये अपने खानदान को सांसद बनाते हैं, देश व राज्य की बागडोर सौपते हैं। इनके खानदान विदेशों में अपने लिए शान की जिंदगी जीने के लिेए विलासिता संबंधी वस्तुओं का उपयोग करते हैं और देश की जनता को जाति व सांप्रदायिकता की आग में झोंक कर अपना उल्लू सीधा करते हैं, और देश की जनता पर जब इस प्रकार के बम फूंटते हैं तो जनता कराहने के सिवा कुछ नहीं कर पाती।
कमाल हैं, अपनी सरकार मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने की बात करती हैं। मिसाइल बनाने की बात करती हैं, प्रक्षेपास्त्र छोड़ने की बात करती हैं, पर सच्चाई ये हैं कि यहां की 90 प्रतिशत जनता पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का शासन चलता हैं, सच बात तो ये हैं कि ये कंपनियां गर भारत से हाथ खींच ले तो यहां की जनता पागलों की तरह अपने बालों को नोंच रही होगी, क्योंकि इनके बालों में शैम्पू से लेकर, इन्हें नहलाने, कपड़े धोने, दांत साफ करने, यहां तक की शौचालय में हाथ धुलाने का काम इऩ्हीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने ले रखा हैं और ये सब देने हैं कांग्रेस की। उस कांग्रेस की, जिसमें महात्मां गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, सरदार पटेल जैसे नेताओं की भागीदारी रहीं, दुर्भाग्य उस कांग्रेस में सोनिया, राहुल, शीला, मनमोहन, दिग्विजय जैसे घटिया स्तर के नेता हैं। अरे महात्मा गांधी को नाथुराम गोडसे ने एक बार मारा, पर गांधी को, उनके विचारों को सर्वाधिक हत्या किसी ने की, तो वह और कोई नहीं ये कांग्रेसी ही हैं। आज स्वतंत्रता के बाद गांधी और बिनोवा के विचारों को अपनाते हुए, ग्राम स्वराज्य की बात पर अमल की गयी होती, तो देश आज बाजार नहीं बनता।
आज सारा देश जब कांग्रेस की गलत नीतियों के कारण कराह रहा हैं तो देश की युवा पीढ़ी और देशभक्त जनता को चाहिए कि कांग्रेस से अपना नाता तोड़े और ईमानदारीपूर्वक जीवन व्यतीत करे। एफडीआई हमारे सरकार की मजबूरी हो सकती हैं, पर हमारी मजबूरी नहीं। आराम से स्वदेशी वस्तूओ का उपभोग करें, जब विकल्प न मिले तो विदेशी वस्तुओ का उपयोग करें। जो नेता या पार्टियां या मीडिया हाउस विदेशी वस्तूओं का उपभोग करती हैं या विदेशी वस्तुओं का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं, उसका बहिष्कार करें। उनका स्पर्श किया हुआ सामग्रियों का भी परित्याग करें। याद रखे, देश है तो आप हैं, देश नहीं तो कुछ नहीं। बड़ी त्याग और बलिदान से हमारे पूर्वजों ने देश को स्वतंत्र कराया हैं, कृपया अपने देश को बाजार बनने न दे, हांलांकि देश के सर्वोच्च संस्थाओं पर बैठे हमारे नेताओं ने देश को गुलाम बनाने के लिेए कोई कसर नहीं छोड़ रखी हैं, फिर भी एक और लड़ाई लडने के लिेए स्वयं को तैयार रखे और इस बार की लड़ाई पहले से कहीं ज्यादा खतरनाकर होगी, क्योंकि दुश्मन अब अपने घर में भी एक नहीं, अनेक हैं......................................

Tuesday, September 11, 2012

अर्जुन मुंडा सरकार के दो साल......................

अर्जुन मुंडा सरकार के दो साल हो गये। उस सरकार के दो साल हुए, जिस सरकार में शामिल दलों में आपसी समन्वयता हैं ही नहीं। इस सरकार की यहीं सबसे बड़ी प्रमुख बात हैं। सांप्रदायिकता के नाम पर भाजपा को हरदम गाली देनेवाली झामुमो और निरंतर सत्ता के निकट गणेश परिक्रमा करनेवाली आजसू जैसी दलों की खिचड़ी सरकार ने जैसे तैसे दो साल पूरे कर लिये हैं। ये सचमुच बड़ी बात हैं। कहने को एक बार फिर अर्जुन भक्त पत्रकार व मीडिया वहीं कह रहे हैं, जो एक साल पहले कहा था, यानी उनके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इसलिए वे कहेंगे क्या। निरंतर सरकारी विज्ञापनों की चाहत ने उन्हें सत्य बात लिखने और बोलने से रोका भी हैं, पर हम अपनी क्या कहें, कहे बिना और लिखे बिना रुक नहीं सकता, इसलिए मन किया, लिख रहा हूं. जनता निर्णय करें, सत्य क्या हैं और असत्य क्या हैं।
एक बार फिर एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक ने लिखा हैं कि पंचायत चुनाव और राष्ट्रीय खेल इस सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि हैं, पर सच्चाई ये है कि ये दोनों उपलब्धि पिछले साल की हैं, न कि इस साल की। हुआ तो ये हैं कि सरकार ने पंचायत चुनाव तो कराये पर पंचायतों को अधिकार ही नहीं दिये, यानी शादी तो कराया पर दुल्हा-दुल्हन का मिलन ही नहीं कराया, जब दुल्हा-मिलेंगे ही नहीं तो फिर ये शादी हो या नहीं, क्या फर्क पड़ता हैं, आज भी पंचायत प्रतिनिधि अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, कुछ दिन पहले तो इन्होंने झारखंड बंद का ऐलान भी किया, जिसका असर भी देखने को मिला, पर सरकार के उपर जूं तक नहीं रेंगी।
राष्ट्रीय खेल करानेवाली मुंडा सरकार से पूछिये कि पिछले साल की उपलब्धि, इस साल भी गिनाने में लगे हैं तो ये बताये कि इस साल उन्हीं पिचों व मैदानों पर खेल का कौन सा राष्ट्रीय आयोजन हुआ। सच्चाई ये हैं कि इन खेल स्टेडियमों में आशा नाइट व आयटम सांग गानेवाली कलाकारों का जमावड़ा हो रहा हैं या इन स्टेडियमों का वे लोग यूज कर रहे हैं जो किसी न किसी क्षेत्र में पावर रखते हैं और इन पावरों का यूज कर अपने - अपने लिए इन स्टेडियमों को यूज कर रहे हैं। इससे बड़ी शर्मनाक बात क्या हो सकती हैं।
इस साल मुख्यमंत्री दुर्घटनाग्रस्त हुए, ईश्वरीय कृपा बाल - बाल बच गये, उन्हें कुछ भी नहीं हुआ। ईश्वर को इसके लिेए कोटि कोटि धन्यवाद, पर एक सवाल मुंडाजी से भी कि ऐसी हालात में वे रिम्स न जाकर अपोलो क्यों गये, क्या उनकी इलाज रिम्स में बेहतर ढंग से नहीं हो सकती थी, गर वे अपोलो के बदले रिम्स जाते तो रिम्स की विश्वसनीयता में चार चांद लगता और यहां के डाक्टरों और यहां इलाज कराने आये मरीजों और उनके परिवारों का मनोबल भी बढ़ता, वे ये कहते कि हमारा मुख्यमंत्री भी वहीं इलाज कराता हैं, जहां सामान्य लोग जाते हैं, कितनी बड़ी बात होती। 
इसी साल मुख्यमंत्री ने अपने विशेषाधिकार से उन पत्रकारों को अपने विशेषाधिकार से लाखों रुपये दे डाले, जो उनकी आरती उतारने में लगे रहते हैं, वह भी फैलोशिप और लाइफटाइम एचीवमेंट के नाम पर। पत्रकारों ने लिया भी। एक ही परिवार से कई लोग उपकृत भी हुए, पर क्या ऐसे फैलोशिप और लाइफटाइम एचीवमेंट का पुरुस्कार लेने व देने से झारखंड का सम्मान बढ़ गया या हम वहीं ढाक के तीन पात पर विचरण कर रहे हैं। 
सच्चाई तो ये हैं कि इस प्रकार की आरती उतारने और उतरवाने की परंपरा को त्यागकर स्थानीयता नीति पर सरकार जल्द से जल्द कुछ ठोस प्रयास करती। पड़ोसी छतीसगढ़  स्थानीयता नीति स्पष्ट कर दिया पर झारखंड में देखिए, पिछले साल एक कमेटी बनती हैं और वो कमेटी दो साल में एक बार मीटिंग करती हैं और उस मीटिंग में भी कुछ निकल कर नहीं आता। क्या ये शर्मनाक नहीं हैं।
इस सरकार में शामिल दलों के नेताओं और यहां के अधिकारियों ने एक काम बहुत अच्छा किया कि वे जनता के पैसों से जर्मनी, इंग्लैंड और अमेरिका का खुद दौरा किया, वह भी स्टडी टूर के नाम पर और पता नहीं क्या क्या। पर उस स्टडी टूर का कितना फायदा मिला वो तो मैं झारखंड की राजधानी रांची समेत कई जिलों की स्थिति देखकर आनन्दित हो जाता हूं। अपने ही लोगों के माथे पर सर रखकर कैसे विकास के नाम पर, उस जमीन को औने पौने दाम पर देश के उद्योगपतियों को जमीन शिफ्ट कर दी जाती हैं, इसे देखकर हमें हैरानी होती हैं, पर इसके लिए, सिर्फ अर्जुन मुंडा को ही दोषी ठहराना मै उचित नहीं समझता, क्योंकि इसके लिए पक्ष व विपक्ष दोनों जिम्मेदार हैं, पर वर्तमान सरकार इतना तो जरुर कर सकती थी कि वो ऐसे कृत्यों पर लगाम लगाती। 
राजधानी रांची तो नर्क लगता हैं, किसी भी प्रकार से ये राजधानी लगता ही नहीं। सारा का सारा नगर तबेला नजर आता हैं। प्रतिदिन जाम, जल जमाव, अव्यवस्थित बाजार इसकी शोभा बन गयी हैं, जबकि राजधानी किसी भी प्रांत का दर्पण हैं, पर इसकी शोभा कैसे बढ़े, इस पर किसी का भी ध्यान नहीं हैं। राज्य की राजधानी रांची में यहां वरीय पुलिस अधिकारियों का काम रह गया हैं -- छोटे छोटे चोरों को पकड़ना और अपनी फोटो खींचवाकर, अखबारों व इलेक्ट्रानिक मीडिया में दिखलाना, जबकि इसी रांची से कई आतंकी, दूसरे राज्यों की पुलिस पकड़कर, अपने यहां ले जा चुकी हैं, ये शैली हैं - यहां की पुलिस के काम करने की और इन पुलिस पर सरकार का कुछ भी नहीं चलता। यानी यहां किसकी सरकार हैं, कैसी सरकार हैं, पता ही नहीं चल रहा, फिर भी दो साल इस सरकार ने पूरे कर लिए, चलिए हम सब मिलकर, इस सरकार की जय बोले.....क्योंकि अर्जुन तो अर्जुन हैं, वो अपने तरकस में हर प्रकार के बाण रखे हैं, जो समय समय पर यूज करता रहता हैं, हो सकता हैं कि एक दिन उसके तरकस से ऐसा भी बाण निकले, जिससे झारखंड की सारी समस्याओं का ही अंत हो जाय, इसलिए हम उस दिन का इंतजार करें, साथ ही इस सरकार के मनोबल को भी बढ़ाये, इन आशाओं के साथ की आनेवाले समय में कुछ न कुछ नया अवश्य होगा...................

Monday, September 10, 2012

यूपी में ब्राह्मणों की कोई मदद न करें, समाजवादी पार्टी का ऐलान....................

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी बहुमत है। ये वहीं पार्टी हैं जिसके स्वयंभू अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव हैं। जिनका समाजवाद अपने परिवार से शुरु होता हैं और अपने परिवार पर ही खत्म होता हैं। जिन्होंने अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाया, खुद लोकसभा में सांसद हैं, अपने बहू को भी सांसद बनवा दिया हैं साथ ही अपने रिश्तेदारों को भी उपकृत किया हैं। फिलहाल इन्होंने और इनके बेटे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पूरे प्रदेश में ऐलान किया हैं कि उनकी पार्टी के विधायक ब्राह्मणों की कोई मदद नहीं करें, क्योंकि ब्राह्मणों ने पिछली बार बहुजन समाज पार्टी को वोट दिया था और ऐसे भी ये वर्ग मुलायम सिंह यादव यानी उनके परिवार की पार्टी के पक्ष में मतदान नहीं करता। इसका खुलासा  इन्हीं के पार्टी के एक विधायक जो सुलतानपुर जिले के इसौली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से जीते हैं। जिनका नाम अबरार अहमद हैं, ने की हैं। ये खुलासा अबरार अहमद ने उस वक्त की, जब ब्राह्मणों का एक प्रतिनिधिमंडल अबरार अहमद से मिला। जिसने ताल ठोक कर कहा कि वो मुसलमान हैं और मुसलमानों के वोट से जीतकर आया हैं, कुछ हिंदु जाति के बैकवर्ड लोगों ने वोट दिया इस आधार पर वो चुनाव जीता, इसलिए वो ब्राह्मणों की कोई मदद नहीं करेगा। जब भी मदद करेगा तो वह मुसलमानों की मदद करेगा, क्योंकि वो मुसलमानों की वोट से जीतकर आया हैं, ऐसे भी उसके प्रदेश के नेता, पार्टी के नेता ब्राह्मणों की कोई मदद नहीं करे, इसकी घोषणा कर दी हैं, इसलिए अब तो ब्राह्मण भूल जाये कि यूपी में उनका कोई तारणहार भी हैं। 
संविधान कहता हैं या जब कोई जनप्रतिनिधि विधायक बनता हैं तो वह शपथ लेता हैं कि वो बिना किसी भेदभाव के सारे लोगों की समस्याओं को सुनेगा और अपनी सेवा देगा, पर जब एक विधायक अपनी ही पार्टी के मुखिय़ा के इशारों पर काम करते हुए एक वर्ग के खिलाफ विषवमन करता हो तो इसे आप क्या कहेंगे। ऐसे भी उत्तर प्रदेश में गुंडागर्दी, व्यभिचार और अपराध सामान्य सी बात हैं और इन सारे घटनाओं को कौन अंजाम देता हैं, ये भी बात किसी से छुपी नहीं हैं। अखिलेश के कुर्सी पर पहुचते ही ये सारे लोग प्रसन्न हैं, क्यूं प्रसन्न हैं, कारण स्पष्ट हैं, अपनी सरकार हैं, अपने लोग हैं, खुलकर गुंडागर्दी करो, विषवमन करो, राज्य में सरकार अपनी, केन्द्र में भी ढुलमुल सरकार, जिसे समय समय पर समाजवादी पार्टी की जरुरत पड़ती हैं तो भला, उन्हें कौन रोकेगा, सच्चाई यहीं भी हैं।
इन समाजवादियों को भाजपा में सांप्रदायिकता दिखाई पड़ती हैं, पर इनके द्वारा फैलायी जा रही जातियता व साँप्रदायिकता कितनी खतरनाक हैं, वो किसी को दिखाई नहीं देता। पत्रकारों में भी बहुत सारे ऐसे वर्ग हैं जो कांग्रेस भक्त होने के साथ साथ मुलायम भक्त भी हैं, जिन्हें ये सब दिखाई नहीं देता। इन्हें तो सारी अच्छाईयां मुलायम और अखिलेश में ही दिखाई देते हैं, कारण कि इन पत्रकारों को उनके हक का हिस्सा आराम से पहुंचा दिया जाता हैं। इसलिए ये फिलहाल अपने हृदय में ऊं मुलायमाय नमः अथवा ऊं अखिलेशाय नमः का अक्षरशः जाप कर रहे हैं। पूरे उत्तर प्रदेश में माई (मुस्लिम - यादव गठजोड़ ) समीकरण इस प्रकार आगे आया हैं कि इस आंधी से इस पार्टी ने पूरे प्रदेश के भाईचारे व एकता को प्रभावित कर दिया हैं। कम से कम हाल ही में सत्ता से बेदखल बसपा के शासनकाल  में ऐसी स्थिति नहीं थी। आश्चर्य इस बात की हैं सत्ता के मद में ये दोनों समुदाय के लोग इस प्रकार से अऩ्य लोगों के जीवन को रौंद रहे हैं, जिससे लगता हैं कि यहां जीना दूभर हो गया हैं और एक बार फिर उत्तर प्रदेश जंगल राज की ओर बढ़ गया। साथ ही ये जंगल राज तब तक चलेगा, जब तक पांच साल के लिेए इन्हें मिला निबंधन पत्र की अवधि समाप्त नहीं हो जाती। 
जो लोग लालू के शासन को बिहार में देखे हैं, साथ ही लालू का वो शासन का रसास्वादन करना चाहते हैं तो फिर उन्हें यूपी का रुख कर लेना चाहिए। सब कुछ वैसा ही हैं। नया कुछ भी नहीं हैं। और ये मानकर चलिए कि इन पांच सालों में वो सब कुछ होगा, जिसे एक सभ्य समाज बर्दाश्त नहीं कर सकता। ऐसे भी इधर ब्राह्मणों को गालियां देना इस देश में फैशन हो गया हैं। हिंदू समाज तो गालियां देता ही हैं अब मुस्लिमों की भी बन पड़ी हैं, वे भी मुलायम और अखिलेश जैसे नेताओं के इशारे पर गालियां देते हैं। कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को मार मार कर वहां का मुस्लिम समुदाय भगा दिया, पर मुलायम और अखिलेश को उनका दर्द सुनायी नहीं पड़ता, क्योंकि इन्हें तो ब्राह्मण वोट नहीं देता, भला ये ब्राह्मणों की क्यों सोचे। ये दलितों की भी क्यों सोचे, क्योंकि ये दलित तो बसपा को वोट देते हैं। ये तो सिर्फ यादवों और मुस्लिमों की वोट से जीतकर आये हैं, इसलिए पांच साल तक यादवों और मुस्लिमों की बल्ले बल्ले........। जहां के नेताओं की इस प्रकार की घटिया सोच होती हैं उस देश का किसी भी काल में भला नहीं हो सकता वो हमेशा ही गुलाम था, गुलाम हैं और गुलाम ही रहेगा, क्योंकि गुलामी तो मानसिकता में होती हैं और वो गुलामी मानसिकता तो आज भी बाप -बेटे और उनके चाचा आजम खान में दिखाई पड़ ही जाती हैं। इसलिए हे अखिलेश, हे मुलायम, हे आजम। जमकर यूपी का बंटाधार करो, तुम्हारे लोगों ने पांच साल की रजिस्ट्री तुम्हारे नाम से कर दिया हैं और हां याद रहे बिहार और गुजरात की तरह, यूपी को विकास के पथ पर मत लाना, क्योंकि गर तुमने ऐसा किया तो तुम्हारी नाक कट जायेगी।