Thursday, December 20, 2012

गुजरात की जनता का अपमान बंद कर, जनादेश का सम्मान करें राष्ट्रीय मीडिया और तथाकथित नेता..........................

गुजरात की जनता ने एक बार फिर नरेन्द्र मोदी के हाथों में गुजरात की बागडोर सौंप दी हैं। इस बार भी भारी बहुमत के साथ नरेन्द्र मोदी सत्तारुढ़ हुए हैं। ये अलग बात हैं कि इस भारी जीत को उनके विरोधी पचा नहीं रहे हैं, और फिर धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते हुए, उन्हें धर्मनिरपेक्ष बताने से इनकार कर रहे हैं। इसकी शुरुआत, बिहार से ही हुई हैं। बिहार में भाजपा की वैशाखी पर टिकी, नीतीश की पार्टी के एक प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा हैं कि वे नरेन्द्र मोदी को धर्मनिरपेक्ष नहीं मानते। ऐसे भी समय - समय पर इनकी पार्टी और इनके बहुत सारे नेता, जिसमें राजद से जदयू में गये शिवानंद तिवारी और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हैं जो नरेन्द्र मोदी को समय - समय पर नीचा दिखाने के लिए बेतुके बयान देते रहते हैं पर उन्हें नहीं मालूम कि उनका इस प्रकार का बयान, नरेन्द्र मोदी का अपमान नहीं, बल्कि सीधे तौर पर गुजरात की छः करोड. जनता का अपमान कर देता हैं, जो नरेन्द्र मोदी को बार - बार सत्ता सौंपता हैं। 
ऐसे ही लोग मीडिया में भी हैं। जो गाहे - बगाहे नरेन्द्र मोदी को नाना प्रकार के विभूषणों से समय - समय पर अलंकृत करते रहते हैं। जब - जब चुनाव आते हैं, इन मीडिया हाउस को कई साल पहले हुए गुजरात के दंगे याद आने लगते हैं, और इसका दृश्य वे बार - बार अपने टीवी चैनलों के माध्यम से जनता को दिखाने शुरु करते हैं। यहीं नहीं इस दंगे में नरेन्द्र मोदी को लपेटने का भी प्रयास करते है, पर गुजरात की जनता शायद इस घटना को उस रुप में नहीं लेती और अपने ढंग से मतदान कर, सबको बता देती हैं कि उसे अपने नरेन्द्र पर कितना भरोसा हैं। 
सवाल उठता हैं कि गुजरात में दगे हुए, तो उसके लिए भाजपा के नरेन्द्र मोदी दोषी, तो फिर हाल ही में असम में जो दंगे हुए, उसके लिए असम के कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई व भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दोषी क्यों नहीं। देश की भुतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जो पूरे देश में सिक्ख विरोधी दंगे फैले, उसके लिए कांग्रेसी दोषी क्यों नहीं, जबकि उस वक्त देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का दंगे पर ही विवादास्पद बयान आ गया था। दंगों पर मीडिया और देश के मूर्धन्य नेताओं का दोहरा मापदंड क्यों। आपके पास कानून हैं, संविधान हैं। आपके पास गर सबूत हैं, तो न्यायालय का दरवाजा खटखटाये, कोई रोक रखा हैं क्या। अदालत में उन्हें दोषी सिद्ध करें और फिर बोले कि वो नरेन्द्र मोदी धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं, पर बिना किसी सबूत के किसी व्यक्ति को धर्मनिरपेक्ष न बताकर, उसे दोषी सिद्ध कर देना, क्या गलत नहीं हैं।
इधर मैं देख रहा हूं कि जिसकी कोई औकात नहीं, जो खुद भाजपा के वैशाखी पर सत्तासुख प्राप्त कर रहे हैं,  या जिन्होंने सत्तासुख पाया हैं। जो समय - समय पर भाजपा का सहयोग लेकर संविधान में प्रमोशन पर संशोधन के समर्थन का सहयोग लेने को लालायित भी रहते हैं, पर जब भाजपा को सहयोग करने की बात आती हैं तब उसे सांप्रदायिक कहकर, कन्नी काट लेते हैं, जैसे लगता हैं कि भाजपा अछूत हैं, उसे भारतीय राजनीति में रहने का कोई हक ही नहीं। अब तो कई पार्टियों ने धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट जारी करने का दुकान भी खोल दिया हैं। ये समय - समय पर धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट जारी भी करते रहते हैं। जबकि सबसे बड़े सांप्रदायिक और जातिवाद तथा परिवारवाद के पोषक वहीं हैं। मुलायम की पार्टी समाजवादी पार्टी हो या लालू की पार्टी राजद अथवा मायावती की पार्टी बसपा। क्या ये पार्टियां जातिवाद का सहारा लेकर देश को तोड़ने का काम नहीं करती, क्या जातिवाद से देश को खतरा नहीं हैं। सांप्रदायिकता से देश को खतरा और जातिवाद से देश बनता हैं क्या। इस देश में तो ज्यादातर पार्टियां जो स्वयं को धर्मनिरपेक्ष घोषित की हुई हैं, वे खुद घोर सांप्रदायिक और जातिवाद की शिकार हैं। हाल ही में जाति आधारित जनगणना करवाकर,  इन पार्टियों ने सिद्ध कर दिया कि इनकी मानसिकता कितनी भयानक हैं और देश को तोड़ने के लिए ये कितना बड़ा षडयंत्र रच रहे हैं। 
इसमें कोई दो मत नहीं कि आज देश को नरेन्द्र मोदी जैसे नेताओं की जरुरत हैं, क्योंकि वो जो कहता हैं, वो करता हैं। वो जाति की राजनीति नहीं करता। वो अपने छः करोड़ गुजरातियों की बात करता हैं। वो किसी दूसरे प्रांत से आये, नागरिकों को ये कहकर नहीं दुत्कारता कि तुम बिहारी हो, अपने प्रांत लौट जाओ। आज भी गुजरात के कई शहरों में लाखों की संख्या में बिहारी रहते हैं और गुजरात के विकास में चार चांद लगा रहे हैं साथ ही अपने बिहार में रह रहे परिवारों का भरण - पोषण कर रहे हैं। जरा दिल्ली में देखिये - शीला दीक्षित बिहारियों और यूपी के लोगों के बारे में क्या बयान जारी करती हैं। ये तो कांग्रेसी हैं। इनका इस प्रकार का बिहार व यूपी के लोगों के बारे में घटिया बयान क्यों आता हैं, पर जब शोर मचता हैं तो वो अपने बयान में क्यों सुधार करती हैं। पूछिये महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृश्वी राज चौहान से कि जब महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर अत्याचार होते हैं तब ये अपना मुंह क्यों सी लेते हैं। ये कुछ उदाहरण हैं। सभी को अपने गिरेबां में झांक कर देखना चाहिए। 
सब ने नरेन्द्र मोदी के नाम पर गुजरात की जनता का अपमान किया हैं। साथ ही अपमान करने का सिलसिला रुका भी नहीं हैं, जारी हैं। मीडिया व देश के कुछ पार्टियों के नेता अभी भी नरेन्द्र मोदी को सांप्रदायिक बनाने पर तूले हैं। जरुरत हैं जैसे गुजरात की जनता, गोधरा और अन्य दंगे भूलकर, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात को आगे बढ़ाने के लिए लालायित हैं। सभी मीडिया और अन्य पार्टियों के लोग अपने बयानों और कार्यो में सुधार लाये और गुजरात की जनता का अपमान करने का काम नहीं करें, क्योंकि आपको किसी ने ये अधिकार नहीं दिया कि आप बेवजह, उनका अपमान करें..............।

2 comments:

  1. Tathyaatmak vichar aur vivekpurn vivechana ke liea abhar.. air shyyad yahi wajah hai ki tathakathit national aur bade media gharaano ko saamaajik roop se bhand ar bikaau jaise biesheshano se nawaajaa gayaa........ are baat nikli hai to door talak jaaegi hi...samay hai vivekpoorn chin tan kaa.

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  2. Kaash hamare desh ki media bhi aap ka chashma kam se kam kuchch der ke liye pahan leti to shayad use nazar aa jaata ki vastam mein galat Sonia aur Rahul jaise log hain na ki Modi jaisa vyakti..!

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