Tuesday, February 21, 2012

वो करें तो साला कैरेक्टर ढीला हैं.............


कुछ दिन पहले, रांची से प्रकाशित एक तथाकथित अपने आपको देशभक्त, समाज को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत कहनेवाले एक अखबार के संपादक ने मुखपृष्ठ पर संपादकीय लिखा। वो संपादकीय केन्द्रित था -- कर्नाटक विधानसभा में अश्लील फिल्म देख रहे मंत्रियों तथा देश में फैल रहे भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता पर। इस संपादकीय को देख ऐसा लगता हैं, जैसे कि संपादकीय लिखनेवाले व्यक्ति ने देश और समाज को अपने विचारों और लेखों तथा कार्यों से देश व समाज को नयी दिशा दी हैं। जबकि सच्चाई क्या हैं, जो भी व्यक्ति उक्त अखबार और उसके वेबसाईट को देखेगा तो शर्मसार हो जायेगा, साथ ही उसकी संपादकीय और बगुला भगत वाली कृत्यों से स्वयं को ठगा महसूस करेगा। जरा उसके संपादकीय को देखिये और उसके संस्थानों के कृत्यों को देखिये। आप समझ जायेंगे। मैं क्या कहना चाहता हूं। कमाल हैं। आप अखबारों में लिखते क्यों हो, उत्तर होगा - पढ़ने के लिए और वेबसाईट पर जो भी कुछ डालते हो, वो किसलिये। उत्तर हैं देखने और समझने के लिए। सबसे पहले इसी अखबार को देखिए। इसकी एक वेबसाईट हैं। जब आप इस वेवसाईट को खोलेंगे, तो इतनी गंदी- गंदी अश्लील चित्र मिलेंगी जो अश्लील फिल्मों को मात दें देगी। इस वेबसाईट में विभिन्न फिल्मों से जूड़ी अश्लील फिल्मों के कटिंग व्यापक रुप सें मिलेंगे। कई समाचार भी मिलेंगे जो सेक्स और सिर्फ सेक्स से ही जूड़ी रहती हैं। कई विदेशी मॉडलों और अभिनेत्रियों की नग्न तस्वीरे बहुतायत मिलेंगी। सेक्स और अश्लील समाचारों की तो ऐसी कड़िया इसमें हैं, कि पूछिये मत। यानी जो खुद गंदगी में भटकते हैं, उन्हें चिंता खाये जा रही हैं, देश और समाज की। पतित होते राजनीतिज्ञों और अधिकारियों की। सच्चाई ये हैं कि देश में जितने भी अखबार व मीडिया हाउस है, उसमें हाथों में लेकर गिनने के लिए एक ही दो लोग बचे हैं. जिन्हें हम चरित्रवान कह सकते हैं। सच्चाई ये हैं कि इन अखबारों और मीडिया हाउस की संपूर्णता से तकनीकी जांच करा ली जाये तो पता चलेगा कि राजनीतिज्ञों व अधिकारियों से ज्यादा अश्लील फिल्म और अश्लील खबरों को पढ़ने के शौकीन यहीं लोग हैं, जो अखबारों और मीडिया से जूड़े हैं। यानी चलनी दूसे सूप के जिन्हें बहत्तर छेद, ये करे तो रासलीला और दूसरा करें तो करेक्टर ढीला..............। पूरे देश के मीडिया हाउस में यहीं सब चल रहा हैं। देश में चरित्रवान पत्रकार, इस प्रकार से विलुप्त हो गये, जैसे देश के अभयारण्यों से चीता......। याद करिये एक समय था, जब चरित्रवान पत्रकारों की एक पौध हुआ करती थी, जब वे लिखते थे, तो इसका प्रभाव भी दिखता था। सरकार पर भी और जनता पर भी। आज देखिये ये घटियास्तर के लोग लिखते हैं पर उसका प्रभाव न के बराबर पड़ता हैं। क्यों, इस पर मंथन इन्हें खुद करना चाहिए। यहीं नहीं मैं कहता हूं कि देश में जितनें भी मीडिया हाउस हैं और जिनकी वेबसाईट हैं, सभी का एकमात्र काम यहीं रह गया हैं। भारतीय और विदेशी महिलाओं के अर्द्धनग्न तस्वीरें लोड करना और सेक्स से संबंधी समाचारों को प्रमुखता देना। ऐसे में कर्नाटक विधानसभा में मंत्रियों पर टिप्पणी करनेवाले या संपादकीय लिखनेवालों को क्या ये अधिकार हैं, कि उनके उपर कटाक्ष करें। अच्छा ये होता कि ये खुद अपना घर साफ सुथरा रखे ताकि उनके और उनके कार्यों से लोगों को सीख मिलती, ये क्या कि खुद करें तो रासलीला और दूसरा करें तो करेक्टर ढीला। ऐसे मैं एक बात में कह देना चाहता हूं कि देश में कहीं भी चरित्रहीनता की बातें आती हैं, उससे हर भारतीयों की सर शर्म से झूक जाती हैं, कारण कुछ भी हो, चाहे वो पत्रकार के कुकृत्य हो या राजनीतिज्ञों के कुकृत्य........................