Tuesday, June 19, 2012

जय जगन्नाथ.........

भारत धर्मभूमि, कर्मभूमि व त्यागभूमि हैं। इस देश के सभी प्रांतों के एक प्रधान देवता हैं। जो इन प्रांतों में प्राचीन काल से पूजित व वंदित रहे हैं। यहीं उन क्षेत्रों के भरण पोषण से लेकर आध्यात्मिक सुख भी प्रदान करते हैं। जैसे -- झारखंड में बाबा वैद्यनाथ, बंगाल में माता काली की प्रधानता हैं, ठीक उसी प्रकार उत्कल प्रदेश यानी उड़ीसा प्रांत के प्रधान देवता भगवान जगन्नाथ हैं। शंख व श्रीक्षेत्र से जाना जानेवाला ये पुरी क्षेत्र में भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा व बड़े भाई बलभद्र के साथ विराजते हैं और जैसे ही आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि आती हैं वे विशेष रथों में आरुढ़ होकर आम जन को अभिलषित व मुक्ति प्रदान करने हेतु अपने गर्भ गृह से निकल पड़ते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में आज भी लोग ये कहते नहीं भूलते ----------------उड़ीसा जगन्नाथपुरी में भले विराजो जी, भले विराजो जी साधो भले विराजो जी, उड़ीसा जगन्नाथ पुरी में भले विरोजो जी...........। इनकी महिमा जिसने भी गायी, वो धन्य हो गया। जो भगवान जगन्नाथ को मानते हैं, उनका मानना हैं कि भगवान जगन्नाथ राधा और कृष्ण की युगलमूर्ति हैं और इन्हीं से सारे जगत् की उत्पत्ति हुई। भगवान जगन्नाथ क्या नहीं हैं। वे तो सामान्य जन के देवता हैं। वे तो सामान्य जन के कल्याण के लिए गर्भगृह से बाहर निकलकर, सामान्य जन के दुख दर्द में शामिल होते हैं, यहीं नहीं स्वयं दर्शन देकर सरल सहज और सहृदय होने का सभी में भाव भी भरते हैं। शायद यहीं कारण हैं कि स्कंदपुराण तो साफ कहता हैं कि जो भी प्राणी भगवान जगन्नाथ के प्रति समर्पित हैं, या जो उनके नाम का सदैव संकीर्तन करते हैं या उनके रथों को खीचते हैं या जिस ओर उनकी रथयात्रा चल रही हैं, उसमें भाग लेते हैं या उनके दर्शन करते हैं, भगवान जगन्नाथ उनकी सारी कष्ट हर लेते हैं और उसे अंत में मोक्ष भी प्रदान कर देते हैं। भगवान जगन्नाथ की पुरी में निकलनेवाली रथयात्रा में तीन रथ प्रमुख होते हैं -- पहला रथ को तालध्वज रथ कहते हैं जिसमें बलभद्र, दूसरे रथ को पद्मध्वज कहते हैं, जिन पर बहन सुभद्रा और उसके पाद गरुड़ ध्वज होता हैं, जिस पर भगवान जगन्नाथ विराजते हैं। हालांकि कई प्रांतों में एक ही रथ पर सभी विराजते हैं और रथयात्रा का आनन्द लेते हुए लोग, भगवान के श्रीचरणों में स्वयं को समर्पित कर देते हैं। मूलतः रथयात्रा में भाव की ही प्रधानता हैं...........। ठीक उसी प्रकार जैसे कि गोस्वामी तुलसीदास, श्रीरामचरितमानस में कहते हैं कि जाकी रही भावना जैसी, प्रभू मूरति दीखै तिन तैसी। रथयात्रा की एक अद्भुत कथा हैं..........कहते हैं कि एक बार भगवान कृष्ण रुक्मिणी के साथ शयनगृह में शयन कर रहे थे तभी उनके मुख से राधे राधे के स्वर निकल पड़े। ये बात रुक्मिणी ने अन्य पटरानियों को सुनाया। रुक्मिणी ने यहां तक कह डाला कि प्रभु आज भी राधे को नहीं भूले हैं, वह भी तब, जबकि रुक्मिणी समेत कई पटरानियों ने प्रभु की खूब सेवा की। ये बात कि प्रभु के मुख से राधे - राधे क्यूं निकले। माता रोहिणी के पास सभी इस रहस्य को जानने पहुंची। इधर रोहिणी ने कथा सुनाना प्रारंभ किया पर कथा प्रारंभ करने के पहले सुभद्रा को पहरे पर लगा दिया गया कि सुभद्रा किसी को कथा पूर्ण होने के पूर्व आने न दे। इधर जब कथा प्रारंभ हुई तभी बलभद्र और कृष्ण उस स्थान पर आ गये। इधर माता रोहिणी रुक्मिणी समेत अन्य पटरानियों को भगवान कृष्ण के अद्भुत प्रेमलीलाओं और रहस्यों को सुनाना प्रारंभ किया। रोहिणी के उक्त कथासार को सुनते हुए भगवान कृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा इस प्रकार से भावविह्वल हो गये कि उनका शरीर दिखाई ही नहीं पड़ रहा था, यहां तक कि सुदर्शन चक्र की भी हालत वैसी ही हो गयी, पर जैसे ही उक्त समय नारद वहां पहुंचे, सभी पूर्वावस्था में आ गये। भगवान के इस अद्भुत रुप को केवल नारद ने देखा और उन्होंने इस सुंदर स्वरुप और छवि को अपने आंखों में बसा लिया। साथ ही ये सुंदर स्वरुप सभी के लिए सुलभ हो, उन्होंने भगवान से प्रार्थना की. भगवान ने नारद की ये बातें भी मान ली। तभी से भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बलभद्र पुरी में विराजकर सब को धन्य - धन्य कर रहे हैं और ये कथा युगों - युगों से चली आ रही हैं। यहीं कारण हैं कि इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ सुभद्रा होती हैं, जो नगर परिभ्रमण करने के लिए निकलती हैं। रथयात्रा भारतीय संस्कृति की प्राण हैं। पूरे भारतवर्ष में आषाढ़ शुक्लपक्ष द्वितीया तिथि को रथयात्रा का आयोजन होता हैं, अब तो विदेशों में भी रथयात्रा खूब धूमधाम से मनायी जाने लगी हैं। खासकर अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ से जूड़े लोग इस रथयात्रा को भव्यता से मनाते हैं, इनकी रथयात्रा का विशेष आकर्षण भी होता हैं।
झारखंड की राजधानी रांची समेत सरायकेला - खरसावां में भी रथयात्रा धूमधाम से मनाया जाता हैं। खासकर रांची स्थित जगन्नाथपुर मंदिर की रथयात्रा का कुछ खास विशेष महत्व हैं। पिछले सवा तीन सौ सालों से विराज रहे भगवान जगन्नाथ और उनकी रथयात्रा के समय यहां का दृश्य देखनेलायक होता हैं। जब लाखों लोग इस मंदिर के चारों ओर इकट्ठे होकर जय जगन्नाथ बोल उठते हैं, और भावपूर्ण हृदय से भगवान जगन्नाथ की रथ को खीचकर मौसीबाड़ी लाते हैं। करीब दस दिनों तक यहां इस दौरान मेला भी चलता रहता हैं, जिसमें दैनिक जीवनोपयोगी सामग्रियां मिलती रहती हैं। सचमुच भगवान जगन्नाथ का जो भी हुआ, भगवान जगन्नाथ उसके हो गये। रांची के जगन्नाथपुर मंदिर के बारे में कहा जाता हैं कि आज से करीब सवा तीन सौ साल पहले यहां एक ठाकुर एनीनाथ शाहदेव राजा हुए, जिनके स्वपन में बार बार भगवान जगन्नाथ की छवि दिखाई दी। उन्होंने इस स्वपन को बार - बार देखे जाने पर यहां भगवान जगन्नाथ को स्थापित करने का निश्चय किया। फिर उन्होंने पुरी से भगवान जगन्नाथ के विग्रहों को लाकर यहां विधि विधान से स्थापित कराया और आज रांचीवासियों को खुशी हैं कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए उन्हें अब ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ता, भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र यहां भी सुलभ हो गये और रथयात्रा की विधा यहां भी चल पड़ी। जय जगन्नाथ...........................

नक्षत्रों की दृष्टिकोण में मानसून

पूरे देश में मानसून की चर्चा हैं, वैज्ञानिकों ने पूर्व में घोषणा की थी कि मानसून समय पर आयेगा, पर सच्चाई ये हैं कि मौनसून केरल में सामान्य तौर पर समय से आया जरुर पर दगा भी दे गया। आज चारों ओर हाहाकार मचा हैं। खासकर रांची के आकाश में बादलों का झूंड आते जरुर हैं पर बरसते नहीं, आखिर क्यों। इधर भारतीय पंचागों और विद्वानों की मानें तो उनका कहना हैं कि इस बार मानसून उतना अच्छा नहीं रहेगा, जितना कि पिछले साल था। पिछले साल ज्यादातर वर्षा के नक्षत्र सुवृष्टि योग लेकर आये थे। इसलिए पिछले साल ये भी देखने को मिला कि इन नक्षत्रों में जमकर बारिश हुई और फसल भी अच्छी हुई, पर इस साल बात ही कुछ और हैं। भारतीय विद्वानों का समूह जो नक्षत्रों की भाषा समझता और जानता है, उसका मानना हैं कि इस बार नक्षत्र चमत्कार नहीं दिखायेंगे, क्योंकि इस बार सृवृष्टि का योग हैं ही नहीं। ज्यादातर नक्षत्रों में स्वल्पवृष्टि, खंडवृष्टि या सामान्यवृष्टि का योग हैं। ऐसे में इस बार वर्षा पिछले वर्ष की तुलना में सामान्य होगी न कि शानदार...................................

क. आद्रा -- 22 जून को प्रातः 5.29 से प्रारंभ -------- स्वल्पवृष्टि योग
ख. पुनर्वसु -- 6 जुलाई को दिन 07.04 से प्रारंभ -- खंडवृष्टि योग
ग. पुष्य --- 20 जुलाई को दिन 8.30 से प्रारंभ ----- अल्पवृष्टि योग
घ. आश्लेषा – 3 अगस्त को दिन 8.52 से प्रारंभ --- खंडवृष्टि योग
ङ. मघा – 17 अगस्त को दिन 7.39 से प्रारंभ ---- स्वल्पवृष्टि योग
च. पूर्वाफाल्गुन --- 30 अगस्त की रात 4.20 से प्रारंभ – सामान्यवृष्टि योग
छ. उत्तराफाल्गुन – 13 सितम्बर को रात 10.30 से प्रारंभ – खंडवृष्टि योग
ज. ह्स्त – 27 सितम्बर को दिन 1.53 से प्रारंभ – सामान्यवृष्टि योग
झ. चित्रा --- 10 अक्टूबर को रात्रि 2.23 से प्रारंभ – सामान्यवृष्टि योग

यानी हस्त जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में हथिया नक्षत्र कहते हैं, इसबार इस नक्षत्र में भारी बारिश या सामान्य बारिश की अपेक्षा कम बारिश होने की संभावना हैं, जबकि लोग बताते है कि हथिया की बारिश में तबाही हो जाया करती थी। इसी प्रकार उत्तरा नक्षत्र को कनवा नक्षत्र कहकर भी लोग संबोधित करते है। हमारे जनकवियों ने भी बारिश के बारे में खुलकर विचार दिया हैं और उनके विचार आज भी प्रासंगिक है.........................घाघा कवि को ले लीजिए, उन्होंने कहा हैं कि
रेवती रवे मृगशिरा तपे कछु दिन आदरा जाये
कहे घाघा जिन से श्वान भात न खाये
यानी जिस कालखंड में रेवती रव गया और मृगशिरा नक्षत्र तप गया समझ लीजिये आदरा ऐसा झमझमाएगा और फसल इतनी अच्छी होगी कि कौआ भी अघा जायेगा। ये है हमारी संस्कृति और मानसून की सांकेतिक दृष्टिकोण और हमारे पूर्वजों की भाषा. पर इस बार न तो आद्रा झमझमाने का
संकेत दे रहा हैं और न अन्य नक्षत्र ही कोई ऐसा संकेत दे रहे हैं, जो ये बता सकें कि इस बार नक्षत्र
पिछले साल की तरह शानदार बारिश कराकर भारतीयों को वारा न्यारा करेंगे।

दो सूटकेस बनाम 20 ट्रक...............

ज से ठीक पांच साल पहले, जब राष्ट्रपति के पद पर आसीन ए पी जे अब्दुल कलाम, राष्ट्रपति पद से विदा हो रहे थे, तब रांची से प्रकाशित प्रभात खबर में एक खबर छपी कि कलाम दो सूटकेस लेकर विदा होंगे, राष्ट्रपति भवन से। मैंने इस खबर को अपने दोनों बच्चों सुधांशु और हिमांशु को पढ़ाया। इस खबर से बच्चे इतने प्रभावित हुए कि, इन बच्चों ने उस खबर को प्रभात खबर से काटकर, नित्यदिन पठनीय दुर्गासप्तशती में संभालकर रख दिया। जब भी मैं या मेरे बच्चे दुर्गा सप्तशती पढ़ते अनायास अखबार का वो टुकड़ा मेरे और मेरे बच्चों के सामने से गुजर जाता.....। प्रेरणा देता कि जीने का मकसद क्या होना चाहिए.........। आज एक बार फिर वो पन्ना मेरे हाथों में हैं और बच्चों के साथ साथ, कलाम की वो सादगी हमें याद दिला गया कि जीने के मकसद क्या हैं......। एक कलाम हैं जो अपने साथ दो सूटकेस में ही जिंदगी को बांध कर एक बहुत सुंदर संदेश आम जनमानस को दे जाते हैं और एक राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी को देखिये..............।

खबर आयी हैं कि प्रतिभा पाटिल जी का सामान 20 ट्रकों में लादकर, महाराष्ट्र के तीन जगहों पर भेजा जायेगा और इस काम में राष्ट्रपति भवन के एक शीर्ष अधिकारी को लगाया गया हैं, जिसमें कुल 30 दिन लगेंगे। यहीं नहीं खबर ये भी हैं कि प्रतिभा पाटिल को पुणे के खड़की में सेना की जमीन पर बन रहे एक बंगले में रहना था, ये बंगला 2,61.00 वर्ग फुट जमीन पर बन रहा था, पर विवाद उठ जाने के कारण, अब वो वहां नहीं रहेंगी। नियमों के मुताबिक पूर्व राष्ट्रपति को 4500 वर्ग फुट का सरकारी बंगला या 2000 वर्ग फुट का सरकार द्वारा किराये पर लिया गया बंगला ही आवंटित किया जा सकता हैं।
कमाल देखिये -- कहां पूर्व राष्ट्रपति कलाम की सोच और कहां प्रतिभा पाटिल।
राष्ट्रपति पद पर रहते हुए एपीजे अब्दुल कलाम ने देशवासियों को संबोधन में तोहफे न लेने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि यह सांप को छूने और बदले में जहर हासिल करने के समान हैं। उन्होंने कहा था कि उपहार खतरनाक होते हैं और उनके पीछे कोई न कोई निहितार्थ होता हैं, पर मैं पूछता हूं कि आज के युग में ऐसी सोचवाले कितने लोग हैं, गर नहीं हैं, तो ऐसे व्यक्ति को पुनः राष्ट्रपति के पद पर बैठाने में सभी राजनीतिक दलों को क्या आपत्ति हैं।

बार-बार मुस्लिम प्रेम की बात करनेवाले, मुस्लिमों के आरक्षण की बात करनेवाले, सच्चर कमिटी की बातों को अक्षरशः लागू करनेवाले घड़ियाली आंसू बहानेवाले राजनीतिक दलों को, एपीजे अब्दुल कलाम में मुस्लिम क्यों नहीं दीखता। बार -बार ब्राह्मणवाद और ब्राह्मण का विरोध करनेवाले लालू, मुलायम, शरद जैसे घटियास्तर के नेताओं को आज कलाम क्यों पसंद नहीं। आज कलाम के लिए ममता बनर्जी ही क्यों आगे आ रही हैं, ये अलग बात हैं कि ममता बनर्जी की राजनीति करने की सोच हमें भी पंसद नहीं, पर मुलायम जैसे घटियास्तर के नेताओं से पूछिये कि ममता के संग संयुक्त प्रेस कांफ्रेस करने के बाद, फिर कांग्रेस की गोद में बैठकर प्रणव मुखर्जी के पक्ष में बयान कैसे दे डाला। सच्चाई यहीं हैं कि समाजवाद के नाम पर सबसे ज्यादा समाज का गलाघोंटा इन्हीं घटियास्तर के नेताओं ने। एक और समाजवादी को ले लीजिए जो बिहार में सुशासन बाबू के नाम से जाना जाता हैं यानी नीतीश कुमार। उसका बयान मैने आज ही चैनलों पर देखा। उसका कहना था कि अभी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एनडीए में चर्चाएं चल रही हैं, इसलिए वे अभी इस मुद्दे पर वे सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कह सकते। गर वे ऐसा नहीं कह सकते तो फिर मेंढ़क की तरह दलबदल में उस्ताद, उन्हीं के पार्टी के शिवानंद तिवारी ने प्रणव के पक्ष में पार्टी की ओर से कैसे बयान दे डाला। जबकि कलाम और कलाम की सोच को बिहार में जगाने की बात सर्वाधिक कोई करता हैं तो ये जदयू के लोग ही हैं और कलाम को सर्वोच्च सम्मान देने की बात आती हैं तो यहीं रोड़ा अटकाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वो कहावत हैं न बेशर्मों को शर्म कहां.....। पर सज्जनवृंद को ये भी जान लेना चाहिए कि बेशर्मों की जब लिस्ट बनाये तो ऐसे - ऐसे बेशर्म कहीं छूट न जाये। इसका ध्यान अवश्य रखे।

आज मैंने अखबार पढ़ा हैं- जिसमें कलाम साहब ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया हैं। उन्होंने एक तरह से ठीक ही किया। उनकी सोच, भले इस पर कुछ भी हो, पर हम जरुर कहेंगे कि देश में इन घटियास्तरों के सांसदों और विधायकों के मतों द्वारा सर्वोच्च स्थान पर जाना भी एक उपहार ही हैं, इसलिए कलाम साहब आपने अपनी ही बातों को अक्षरशः साबित कर दिया...........। मैं ईश्वर से प्रार्थना करुंगा कि भारत की माताएं आप ही जैसा लाल पैदा करें, जो देश व समाज के लिए गौरव हो.................।

Monday, June 11, 2012

जो बिकते हैं, उन्हें ही खरीदा जाता हैं.............

जो बिकते हैं, उन्हें ही खरीदा जाता हैं, जो बिकते नहीं, उन्हें खरीदने की किसी की औकात नहीं। जब जनता बिकने पर आ जाये, तो समझ लीजिए -- देश व लोकतंत्र को बड़ा खतरा हैं और ऐसे देश को कोई भी किसी भी कीमत पर खरीद कर, उस देश और उस देश की जनता की औकात बता सकता हैं। कमाल हैं -- सत्तालोलुपता, स्वोपकार की भावना और घटियास्तर की मनोवृत्ति ने समाज और देश को इतना नीचे ले आया हैं कि चाह कर भी ये देश व समाज आगे निकल ही नहीं सकता। मैं उस समाज और घर में पैदा लिया हूं - जहां एक चावल को मींजकर, पता लगा लिया जाता हैं कि चावल पका अथवा या नहीं। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार हटिया विधानसभा का उपचुनाव हो रहा हैं और जिस कदर विभिन्न दलों के प्रत्याशियों ने पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और मतदाताओं की यहां बोली लगायी हैं और इस बोली के अनुरुप, हटिया के मतदाता और कार्यकर्ता बिकते दीखे गये, रांची के पत्रकारों पर बिकने का तमगा लगा, उससे साफ पता चलता हैं कि यहां का परिणाम क्या आयेगा और इससे देश व लोकतंत्र को कितना खतरा उत्पन्न हो गया हैं।
फिलहाल जो सज्जनवृंद देश व समाज को नयी दिशा देना चाहते हैं और जिनका लोकतंत्र में विश्वास हैं, जो विधानसभा और लोकसभा का चुनाव सत्यनिष्ठा से लड़ना चाहते हैं, उनके लिए ये मतदाता रेट सूची नीचे दिया जा रहा हैं, कृपया देख लें, ताकि उन्हें पता लग जाये कि यहां चुनाव लड़ना एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति के लिए कितना मुश्किल सा हो गया हैं, और इसका श्रेय जाता हैं, उन धनाढ्यों को जिन्होंने चुनाव लड़कर, मतदान को भी बाजार बना दिया। बाजार क्या होता हैं, उसमें कैसे - कैसे लोग बिजनेस करते हैं, हमें लगता हैं कि ये बताने की जरुरत नहीं।
फिलहाल -- मतदाता रेट सूची पर ध्यान दें..................।
मतदाता रेट सूची
1. मतदाताओं के घर पर पर्चा या पोस्टल साटने का रेट.....100 रुपये।
2. मतदाताओं के घर पर झंडा लगाने का रेट..................200 रुपये।
3. मतदाताओं के घर के ओटे से नुक्कड़ सभा करने का रेट.300 रुपये।
4. मतदाताओं के घऱ के किसी सदस्य को कार्यकर्ता
नियुक्त करने का रेट.....................400 रुपये / प्रतिदिन। मुर्गा -मांस, चावल रोटी और शराब का प्रबंध प्रतिदिन करना होगा, अलग से।
5. मतदाताओं के घर के सभी सदस्यों के वोट प्राप्त करने का रेट... 1000 रुपये / प्रति मतदाता की दर से।
कमाल हैं, पूर्व में पत्रकारों पर पेड न्यूज को लेकर, संवाददाताओं और समाचार पत्रों पर आरोप लगते रहे थे, और ये आरोप सही भी हैं, पर जब मतदाताओं ने भी इस आर्थिक युग में अपनी रेट तय कर दी, तब तो लगता हैं कि इस देश का भगवान ही मालिक हैं।
ऐसा क्यूं हुआ, क्यूं हो रहा हैं। इसका भी मतदाताओं ने जवाब ढूंढ लिया हैं। वे साफ कहते हैं कि ये प्रत्याशी देश व समाज के लिए चुनाव तो लड़ नहीं रहे। ये लड़ रहे हैं, अपनी पत्नी, अपने बेटे- बेटियों और मित्रों के लिए तो ऐसे में भला हम इनसे देश व समाज के प्रति निष्ठा रखने का विश्वास इन पर क्यों करें। ये आज दिखाई पड़ रहे हैं तो चलो, इनसे जितना बन सकें, निकाल लो। भला कल क्या होगा, इसकी चिंता हम क्यों करें और ऐसे भी देश व समाज की चिंता सिर्फ हम गरीब क्यों करें, इन्हें क्यों नहीं करना चाहिए। देश पर खतरा हो तो बलिदान दें हमारे बेटे और मजे लूटे ये। गर दुख ही करना हैं तो सभी करेंगे और हम भी अपने हक का देश लूट रहे हैं, इसमें गलत क्या हैं।
बात भी ठीक हैं। जरा हटिया के स्कूलों में देखिये -- एनसीसी में किसका बच्चा हैं। सब उन्हीं का बच्चा हैं, जो मैला ढोते हैं, जिनका बाप गली मोहल्लों में टायर पंक्चर ठीक कर रहा होता हैं, जो सिलाई करके अपने परिवार को चला रहा होता हैं। जिसके परिवार का सदस्य या बेटा, उसके घर से कोसो दूर सीमा पर देश की रक्षा करने के लिए डटा हैं, जो रोज खेती मजदूरी करके पेट पालता हैं। क्या एनसीसी और देश की रक्षा करने के लिए इन्हीं गरीबों के बच्चे मिले हैं और संभ्रांतों - धनाढंयों के बच्चे एनसीसी में क्यों नहीं हैं या उनके बच्चे देश की सीमा पर क्यों नहीं दिखाई पड़ते। इसका जवाब तो न तो सरकार के पास हैं और न बुद्धिजीवियों के पास। अपने देश में जाति - वर्ग संघर्ष के नाम पर क्या हो रहा हैं। सभी जातियों में अमीर और गरीब की ऐसी खाई बन गयी हैं कि अमीर, गरीब को देख ही नहीं रहा तो भला चुनाव के माहौल में गरीब, अमीरों के चोचलेबाजी -- देश और समाज के बारे में क्यों सोचे। इसलिए उसने भी मतदाता रेट खोल लिये। इसमें गलत क्या हैं।
हमारे देश के महापुरुषों ने जो लोकतंत्र की कल्पना की थी। जिस देश का सपना संजोया था। वो क्या यहीं था क्या। जहां पर आज के नेताओं ने लाकर हमें छोड़ दिया हैं। आज जितने भी घोटाले हुए, उसकी जांच का परिणाम क्या हुआ। नतीजा सिफर। आजादी के बाद किसी भी घोटालेबाज नेताओं को न्यायालय द्वारा सजा मिली, उत्तर होगा नहीं, तो फिर हम गरीब ही देश की सेवा के लिए बने हैं क्या। जरा समाजवादियों की परिकल्पना देखिये -- एक अपने देश में पार्टी हैं - समाजवादी पार्टी। खूब राममनोहर लोहिया का नाम लेती हैं। जब आपातकाल की घोषणा हुई थी देश में। तो इस पार्टी के लोगों ने 1977 में नारा दिया था -- इंदिरा गांधी के खिलाफ कि वो चाहती हैं परिवार राज, हम चाहते हैं आम जनता की राज। जरा पूछो। उस समाजवादी पार्टी के मुलायम से कि तुम बताओ, तुम संसद में हो, बेटा को मुख्यमंत्री बना दिये हो, बहु को क्न्नोज से जीता कर सांसद बना दिया। ये कैसा समाजवाद हैं। उन कांग्रेसियों, भाजपाईयों और बसपाईयों से पूछो कि तुम्हारी क्या मजबूरी थी कि तुमने एक कैंडिडेट भी मुलायम के बहु के खिलाफ नहीं दिया। पर सवाल पूछने और जवाब देने का फूर्सत किसे हैं, सभी लूट रहे हैं, तो मतदाताओं ने भी करवट ली हैं कि हम भी क्यों नहीं अपना रेट तय करें। शायद ये रेट देश के सभी भागों में धीरे - धीरे अपना जलवा बिखेरेगा और सही मायनों में एक बार फिर परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़कर, अपनी पूर्व की श्रेणी में आ खड़ा होगा। ऐसे भी हमारे बाप दादाओं ने गुलामी देखी हैं, हमने गुलामी देखी ही नहीं, हमें भी तो गुलामी देखने का उतना ही अधिकार हैं। जब हमारे नेता व मतदाता दोनों लूटनेवाली स्थिति में आ जायेंगे तो फिर क्या होगा............। सबको मालूम हैं...................।