Thursday, October 11, 2012

कौआ और भैस भी काला हैं, इनका क्या होगा नीतीशजी.............................

बहुत पहले कहानियां सुना करता था कि जब किसी राजा या शहंशाह की सवारी किसी रास्ते से गुजरती तो उस रास्ते पर चलनेवाले या किसी न किसी प्रकार से जूड़े रहनेवाले को आगाह किया जाता कि जहांपनाह की सवारी आ रही हैं, सभी होशियार हो जाये.............। अब हालांकि ऐसा देखने को नहीं मिलता, पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों जब से अधिकार यात्रा पर निकले हैं और जिस प्रकार से उनका चारो ओर विरोध हो रहा हैं। हम ये कह सकते हैं कि जिस प्रकार जूतमपैजार हो रहा हैं। कहीं उनकी सभा में कुर्सियां तो कहीं चप्पल जूते तक बरस रहे हैं। ऐसे में उनके अधिकार यात्रा से संबंधित अधिकारियों ने ऐसी ऐसी कारनामें शुरु की हैं, जिस कारण उनकी ये यात्रा, अधिकार कम शर्मनाक यात्रा में ज्यादा तब्दील हो गयी हैं, पर नीतीश तो नीतीश हैं। उन पर इन सभी चीजों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। फिलहाल सत्ता के मद में वे इतने डूब गये हैं कि उन्हें अपना विरोध भी पसंद नहीं, गर कोई उनका विरोध करता हैं तो वे उसे इतने अच्छे ढंग से देख ले रहे हैं कि जिसकी जितनी निंदा की जाय कम हैं।  
इसमें कोई दो मत नहीं कि लालू का पन्द्रह साल का शासन नरकमय था, पर नीतीश जी आपको इसका ही तो लाभ मिला कि जनता ने लालू एंड कंपनी को सत्ता से हटाकर, आपको सत्ता सौंप दी, पर आपने तो इन दिनों हद कर दी हैं। जैसे साढ़ लाल रंग देखकर भड़क जाता हैं, वैसे ही आप काला रंग देखकर भड़क जा रहे हैं। स्थिति ऐसी हैं कि आपके कई सभाओं में बिहार की बहू बेटियों के शरीर से काला दुपट्टा तक उतरवा लिया जा रहा हैं, पर आपको शर्म नहीं आ रही। कई जगहों पर युवाओं से काला टी शर्ट उतरवा लिया गया हैं। अगर कहीं मुस्लिम महिलाएं काला बुर्का पहनकर आपकी सभा में आ गयी तो आप क्या करेंगे, तब तो आपको मुस्लिम वोट ही खिसक जायेगा, पर हमें लगता हैं कि आप ऐसी गुस्ताखी नहीं करेंगे, क्योंकि आप बहुत ही चालाक हैं। कभी - कभी तो मैं सोचता हूं कि गर आपका वश चले तो आप पूरे बिहार से भैस और कौए का न सफाया कर दें क्योंकि इनका रंग भी काला हैं। ऐसे तो मैं आपको अच्छी तरह से जानता हूं कि आप बिहार के प्रति कितने ईमानदार है। अगला जब 2014 का लोकसभा चुनाव होगा तो आपकी सारी हेकड़ी निकल जायेगी और साथ ही आपके साथ चलनेवाले भाजपा और भाजपा के सुशील कुमार मोदी की भी हवा निकल जायेगी, क्योंकि  आपको शायद नहीं पता हैं कि लालू एंड कंपनी को खोने के लिए कम और पाने के लिए ज्यादा हैं, जबकि आपको खोने के लिए ज्यादा और पाने के लिए कम हैं। 
इधर आपकी नरेंद्र मोदी से ज्यादा नाराजगी दीखती हैं। पर सच्चाई ये हैं कि नरेंद्र मोदी ने कभी भी गुजरात के लिए विशेष पैकेज की मांग नहीं की। फिर भी गुजरात प्रगति के शिखर पर हैं, पर आप बिहार के लिए स्पेशल पैकेज की मांग के लिए अधिकार यात्रा पर निकल गये हैं, जबकि सच्चाई ये हैं कि जब बिहार में लालू - रावड़ी का शासन था, तब भी बिहार के लिए विशेष पैकेज की मांग की गयी थी, और आप जब केन्द्र में सत्तासीन थे, तब उसका विरोध किया था, अब विशेष पैकेज की मांग आपने कहां से शुरु कर दी, ये हमारी समझ से परे हैं।
आपने आजकल पूरे बिहार को शराब पीनेवाला प्रदेश बना दिया। जहां मैं रहता हूं वहां गली - गली में शराब बिक रही हैं, गांजा बिक रहे हैं। दूध के स्टाल तक पर शराब बिक रहे हैं, दिक्कत तो ये हैं कि हम अपने बच्चों को कैसे संस्कारित करें, क्योंकि अब तो शराबी, पीकर वो नंगा नाच कर रहे हैं, कि आम महिला आपको कोस रही हैं। कहीं ऐसा नहीं कि इनकी हाय आपको लेकर डूब जाये। फिर भी आपको तीन साल और शासन करने का लाइसेंस मिला हैं, आराम से शासन करते रहिए, नरेंद्र मोदी और भाजपा को धकियाते रहिये, बिहार का नाम डूबाते रहिए, कांग्रेस और सोनिया - राहुल से संबंध मजबूत करते रहिए। हमारा वोट देने का वक्त आयेगा तो हम आपको सत्ता से धकेल जरुर देंगे। फिर उसके बाद आप किसी भी लड़की से काला दुपट्टा उतरवाने का प्रयास तो दूर उधर नजर उठाकर देख भी नहीं पायेंगे।

Tuesday, October 9, 2012

ये हैं भारतीय रेल की चाय और टीटीई की महिमा............

मैं पिछले दिनों पटना और सिंकदराबाद की यात्रा पर था। इस दौरान भारतीय रेल की कई विशेषताओं से दो - चार हुआ। सर्वाधिक दृश्य टीटीई से संबंधित देखने को मिले। वह भी रेल के अंदर और रेल के बाहर भी। सबसे पहले बात रांची जंक्शन की। जब मैं धनबाद में ईटीवी कार्यालय में कार्यरत था। तब बार - बार रांची से धनबाद और धनबाद से रांची आया जाया करता था। उस दौरान मूलतः साप्ताहिक यात्रा हुआ करती थी। हमारे कई पत्रकार मित्र इस दौरान हमसे मिलते और बोकारो - रांची रेल पथ पर एक चाय विक्रेता की चर्चा किये बिना नहीं रुकते। वे बार - बार कहते कि एक चायवाला हैं, जो इस रेल पथ पर चाय बेचता हैं। आवाज लगाता हैं - कि खराब से खराब चाय पीजिये, पर लोग जब उसकी चाय पीते तो वो चाय सबसे शानदार चाय होती। कई पत्रकार मित्रों ने तो उस चायवाले की शान में कई समाचार भी अपने समाचार पत्रों में प्रकाशित किये। हमें भी एक दो बार वो चायवाला उस दौरान मिला था, पर मुझे चाय उतनी पसंद नहीं, इसलिए उसकी चाय पर हमारी ध्यान कभी गयी ही नहीं। पर पिछले दिनों 4 अक्टूबर को जब मैं पटना से रांची की ओर 18623 अप राजेन्द्रनगर - हटिया एक्सप्रेस से रवाना हुआ, तो 5 अक्टूबर की सुबह 6 बजे मुरी के आसपास उक्त चायवाला मिला, जो हमेशा की तरह खराब से खराब चाय पीजिये की रट लगाता हुआ,  मेरे डब्बे से गुजरा। मेरी पत्नी को चाय बहुत ही पसंद हैं। उन्होंने चायवाले को आवाज दी। चायवाला आया और एक कप उनकी ओर बढ़ा दिया। मैंने भी उससे गुफ्तगूं करते हुए कहा कि भाई तुम्हारी चाय तो बहुत ही नामी हैं, कई हमारे पत्रकार मित्र ने तुम्हारी प्रशंसा की हैं। ये कहकर कि तुम बोलते हो, खराब से खराब चाय पीजिये, पर सच में ये चाय बहुत ही अच्छी होती हैं। वह भी खुब प्रसन्न होकर बोला कि हां सर, कई अखबारों में तो उसका समाचार भी छपा हैं। इसी चाय को लेकर, लेकिन पहले वो भैस के दूध का चाय बेचता था, पर अब तो पाकेट वाला दूध का चाय हैं, फिर भी ये चाय आपको और चाय से बेहतर ही मिलेगी। मैंने पूछा कि इसके क्या दाम हैं। उसने कहा - दस रुपये प्रतिकप। मैंने बोला -- ये तुम्हें नहीं लगता कि चाय का दाम जरुरत से ज्यादा हैं। उसने कहा कि हां साहब जरुरत से ज्यादा तो हैं ही, पर क्या करें। ट्रेन में चाय बेचनी हैं तो टीटीई और अन्य लोगों को मुफ्त सेवा देनी ही हैं। ऐसे में उनकी ओर की गयी मुफ्त सेवा का कर, तो आपलोगों से ही वसूलेंगे न। उस चायवाले ने बड़ी ईमानदारी से ये बता दिया कि किस प्रकार टीटीई उससे अपनी रंगदारी वसूलते हैं, और इसका खामियाजा आम यात्रियों को भुगतना पड़ता हैं और सामान्य रेलयात्री टीटीई के चाय का भी अलग से रंगदारीस्वरुप उस चायवाले को भुगतान करते हैं। 
इधर जैसे ही रांची जंक्शन उतरा। तब जल्द से नहा धो. पूजा - पाठ कर, मैं अपने कार्यालय पहुंचा। वहां पता चला कि अपने चैनल की समाचारवाचिका भी रांची जंक्शन के मुख्यद्वार पर कार्यरत टीटीईकर्मियों की कोपभाजन बन गयी हैं। पता चला कि रांची जंक्शन के मुख्यद्वार पर तैनात महिला टीटीईकर्मियों ने इन पर ये आरोप मढ़ दिया कि समाचारवाचिका बेटिकट यात्रा कर रही हैं। जबकि उनके पास टिकट मौजूद थे, ये अलग बात हैं कि उनका टिकट, उस पर्स में था, जिस पर्स को उचक्कों ने ट्रेन के रांची जंक्शन पहुंचने के पहले ही चुरा लिया था। इस बात की जानकारी और प्राथमिकी की रिपोर्ट दिखाने के बावजूद, उक्त महिला टीटीईकर्मियों ने उनके साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया, जिससे वो अभी भी उबर नहीं पायी हैं। सवाल उठता हैं कि क्या किसी भी टीटीई को किसी भी रेलयात्रियों के साथ दुर्व्यवहार करने का हक हैं, गर नहीं तो फिर ऐसा क्यों। क्या इसका जवाब भारतीय रेलवे का कोई अधिकारी दे सकता हैं। समाचारवाचिका बार बार अपना पीएनआर नं., कोच नंबर, बर्थ नं. बता रही थी, पर उक्त महिलाटीटीई, जिनकी संख्या 6-7 बतायी जा रही थी, वो इनकी कोई बात सुनने को तैयार क्यों नहीं थी, कहीं ऐसा तो नहीं कि इनका मकसद सिर्फ ये था कि समाचारवाचिका को कैसे सरेआम बेइज्जत किया जाय, जिसमें वो कामयाब रही। क्या ये शर्मनाक नहीं, क्या किसी रेलयात्री के साथ ऐसा किया जाना चाहिए।
और अब पटना से सिकंदराबाद की........। 27 सितम्बर को हम पटना से सिकंदराबाद की ओर चले। हमारे साथ पांच - छः लोग थे। रेल में सर्विस दे रहे पैंट्री ब्वाय से मेरे साथ चल रहे लोगों ने चाय मांगी। उक्त पैंटी ब्वाय ने पटना जंक्शन पर ही थर्मस से निकालकर पांच - छः चाय सभी को दिये, वो चाय इतनी अच्छी थी कि दुबारा सिकंदराबाद तक पहुंचने के बाद भी वैसी चाय नहीं मिली, क्योंकि अन्य चाय जो दिये जा रहे थे पैंट्री कार के अंदर, वो हम कह सकते हैं कि प्रथम दृष्टया पीनेलायक नहीं थे, मजबूरी में ही पीया जा सकता था। जब हमने नागपुर और वल्लारशाह स्टेशन के बीच, उसी पैँट्री ब्वाय से थर्मसवाली चाय पीलाने को कही तो उसने कहा माफ करे जनाब, ये चाय आपको मिल नहीं सकती, ये खासमखास लोगों के लिए ही हैं। फिर हमने देखा कि वो पैंट्रीब्वाय पास में ही बैठे सात - आठ टीटीई जो वल्लारशाह स्टेशन से जूडे थे, आराम से उन्हें ससम्मान पिलायी और उनसे पैसे भी नहीं लिये। जब मैंने उससे पूछा कि हमलोगों ने तुमसे चाय मांगी, वह भी पैसों से तो तुमने नहीं दी, इन्हें बिना पैसे के कैसे चाय दे दिये। उसने कहा कि जनाब हमारी मजबूरी समझे, आपको तो एक दो दिन सफर करना हैं, हमें तो इनके साथ इस रास्ते पर बराबर चलना हैं। मैं समझ गया - भई अपनी अपनी किस्मत हैं। भारतीय रेल में किसी को बिना पैसे की अच्छी चाय मिल जाती हैं और किसी को पैसे देने पर भी नहीं मिलती और जिन यात्रियों को मिलती भी हैं तो वे दूसरे की चाय के पैसे का भी भुगतान कर देते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता। ये हैं भारतीय रेल की चाय और टीटीई की महिमा............