Tuesday, June 18, 2013

बिहार के दंगाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गुंडागर्दी.............................

आज बिहार में भाजपा विश्वासघात दिवस मना रही हैं, पूरे राज्य में बिहार बंद का आह्वान किया हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को दंगाई बतानेवाला बिहार का दंगाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गुंडागर्दी देखिये। वे अपने जदयू कार्यकर्ताओं को आह्वाऩ कर रहे हैं कि वे सड़कों पर उतरे। भाजपा कार्यकर्ताओं का मुकाबला करें और इनके आह्वाऩ पर जदयू कार्यकर्ताओं ने वहीं किया जो उनके आलाकमान नीतीश ने कहा - जमकर भाजपा कार्यकर्ताओं पर लाठियां बरसायी। भाजपा कार्यकर्ताओॆं को घायल कर दिया। इनके कार्यकर्ता राइफल लेकर भी पहुंचे, ये राइफल लेकर सड़कों पर भजन गाने के लिए तो आये नहीं थे। अंततः जदयू के इस गुंडागर्दी और स्वयं पर लाठियां बरसते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं ने वहीं किया जो सामान्य व्यक्ति ऐसी अवस्थाओं में करता हैं।
मैं पूछता हूं - कि नीतीश बिहार के खुद मुख्यमंत्री हैं। वे सरकार में हैं। पुलिस उनकी। प्रशासन उनका। ऐसे में वे पुलिस प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने के बदले, जदयू कार्यकर्ताओं को उकसाने का काम क्यों किया। ऐसा काम सेक्यूलर नेता नहीं बल्कि एक गुंडा करता हैं। ये बिहार ही नहीं, बल्कि देश का बच्चा - बच्चा जानता हैं। क्या नीतीश बता सकते हैं कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता जदयू के कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा कार्यालय क्यों गये थे। उनकी मंशा क्या थी। ऐसे में नीतीश के पुलिसकर्मी क्या कर रहे थे, वे क्या इंतजार कर थे, कि जदयू कार्यकर्ता, भाजपा कार्यालय जाये, भाजपा कार्यकर्ताओं को जमकर, उनकी औकात बताये। ऐसे में पूरे राज्य में कानून व्यवस्था गर बिगड़ी तो उसका जिम्मेदार कौन होगा।
कल तक भाजपा अच्छी, सत्ता से उसके साथ चिपकने में अच्छा लगा और अब लगे भाजपा और भाजपा कार्यकर्ताओं को औकात बताने। धर्मनिरपेक्षता का इतना ही ठेका ले रखा हैं, तो लोकनायक जयप्रकाश नारायण का लबादा क्यों ओढ़ रखा हैं, उसे फेंक दो और जाओ सोनिया व राहुल के चरणों में बलिहारी जाओ। ऐसे भी सोनिया और राहुल के इशारों पर ठूमके लगानेवाला, भारत का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तुम्हें धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण पत्र आज दे ही दिया हैं। इस देश की विडम्बना हैं, कि सत्ता से बाहर रहने पर सारे के सारे नेताओं को भाजपा अच्छी लगती हैं, उसके कंधों पर मुख्यमंत्री बनना अच्छा लगता हैं, पर जैसे ही उसे अपनी मूर्खता पर अभिमान आने लगता हैं, उसे भाजपा और भाजपा के नेता दंगाई नजर आने लगते हैं। पूरे बिहार को विकास का हौवा खड़ाकर, बिहार का नाश करनेवाला, बिहार की लड़कियों से काला दुपट्टा उतरवानेवाला नीतीश, पूरे बिहार को बर्बाद कर के रख दिया। फिर भी पता नहीं, नीतीश भक्त पत्रकार, आर्थिक विश्लेषक और उसके टुकड़ों पर पलनेवाले मूर्खों को नीतीश क्यूं अच्छा लगता हैं, समझ में नहीं आता। 
आश्चर्य तो तब हुआ, कि कल रांची से प्रकाशित एक अखबार ने लंदन में अपनी पूरी जिंदगी गुजारनेवाला एक व्यक्ति का आलेख छापा - कि नीतीश बिहार को संभाल लेंगे। उसका नमूना तो आज ही दीख गया कि नीतीश कैसे बिहार को संभालने का प्रबंध कर रखा हैं। अरे जो नेता, अपने ही नेता जार्ज फर्नांडिंस, दिग्विजय सिंह को ठिकाने लगा दे और अब शरद यादव को उसकी औकात बताते हुए, पूरे पार्टी से लोकतंत्र समाप्त कर दे और खुद को स्वयंभू नेता घोषित कर दे, वो देश या प्रांत का नेता या सेवक नहीं होता, वो तो विशुद्ध रुप से तानाशाह कहलाता हैं, और आज जिस प्रकार से उसने अपने कार्यकर्ताओं को पूरे प्रदेश में सड़कों पर उतरने का आह्वान कर दिया, उससे साफ लगता हैं कि ये काम तो गुंडें का भी नहीं, ये तो पूर्णतः दंगाई का काम हैं, पर देश के अन्य नेताओं को नीतीश का ये कुकृत्य दिखाई नहीं देता।

Monday, June 17, 2013

घबराइये नहीं - इस बार बारिश के नक्षत्र दगा नहीं देंगे, खूब बरसेंगे.......................

घबराइये नहीं - इस बार बारिश के नक्षत्र दगा नहीं देंगे, खूब बरसेंगे.......................
जी हां। संदेश तो कुछ इसी प्रकार के दे रहे हैं, ये नक्षत्र। भारतीय मणीषियों ने नक्षत्रों के आधार पर, उनका विश्लेषण करते हुए पूर्व में भविष्यवाणियां किया करते थे, और ये बाते सत्य साबित होती थी। पिछले कई वर्षों से मैंने भी महसूस किया कि ऐसा सहीं हैं। जब - जब नक्षत्रों ने ये संदेश दिया कि इस बार बारिश नहीं होगी तो हुआ भी ऐसा ही बारिश नहीं हुई। जब नक्षत्रों ने सामान्य अथवा मूसलाधार बारिश के संकेत दिये तो उस साल भी इसी प्रकार की घटना घटित हुई। इस बार ये नक्षत्र क्या कह रहे हैं। इसे देखना वर्तमान में जरुरी हैं। बारिश के कई नक्षत्र हैं जो विभिन्न प्रकार से संदेश दे रहे हैं। ये कह रहे हैं कि भारतीय जनता घबराये नहीं, वैज्ञानिक कुछ भी कहें, नक्षत्र इस बार दगा नही देंगे। केवल एक ही नक्षत्र आश्लेषा मे्ं अल्पवृष्टि के संकेत हैं। आइये देखते हैं, नक्षत्रों के दृष्टिकोण में मानसून...................
क. आर्द्रा - 22 जून को दिन 11.41 से प्रारंभ - सामान्य वृष्टि
ख. पुनर्वसु - 6 जुलाई को दिन 1.16 से प्रारंभ - सामान्य वृष्टि
ग. पुष्य - 20 जूलाई को दिन 2.43 से प्रारंभ - सामान्य वृष्टि
घ. आश्लेषा - 3 अगस्त को दिन 2.03 से प्रारंभ - अल्प वृष्टि
ड. मघा - 17 अगस्त को दिन 1.51 से प्रारंभ - सामान्य वृष्टि
च. पूर्वा फाल्गुन - 31 अगस्त को दिन 10.33 से प्रारंभ - वार्युवृष्टिश्च
छ. उत्तरा फाल्गुन - 13 सितम्बर को रा. 4.42 से प्रारंभ - वार्युवृष्टिश्च
ज. हस्त - 27 सितम्बर को रा. 8.06 से प्रारंभ - वार्युवृष्टिश्च
झ. चित्रा - 11 अक्टूबर को दि. 8.35 से प्रांरभ - वार्युवृष्टिश्च
यानी साफ संकेत हैं कि एक नक्षत्र को छोड़, सभी नक्षत्रों से सामान्य से अधिक बारिश होने के संकेत हैं, अंतिम के चार नक्षत्र जैंसे पूर्वा फाल्गुन, उत्तरा फाल्गुन, हस्त और चित्रा तो आँधी-पानी के साथ बरसने के संकेत दे रहे हैं यानी झमाझम बरसेंगे नक्षत्र और लहलायेंगी फसलें................

Saturday, June 15, 2013

नीतीश बदनाम हुआ, मुसलमां तेरे लिए.......

बहुत पहले एक गाना सुना था -- लौंडा बदनाम हुआ, नसीबन तेरे लिए......। ये गीत अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश पर पूरी तरह फिट बैठ रही हैं और वह भी इस प्रकार- नीतीश बदनाम हुआ, मुसलमां तेरे लिए...........,क्योंकि नीतीश सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम वोट के लिए, वो सारे कार्य कर रहे हैं, जो किसी भी राजनीतिज्ञ को शोभा नहीं देता। इन्हें ये लगता हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करके ये पूरे बिहार में मुसलमानों के रहनुमा बन जायेंगे। अकेले बिहार में लोकसभा और विधानसभा में जदयू का परचम लहरा देंगे, तो ये उनकी मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं। मुस्लिम मतदाता चाहे वह बिहार का हो या किसी अन्य प्रांत का, हमें नहीं लगता कि वो इतना मुर्ख हैं कि सिर्फ मोदी का विरोध कर देने से, इनके साथ अथवा किसी अन्य राजनीतिक दल के साथ चिपक जायेगा।बिहार में कभी कांग्रेस, कभी लालू को अपना हीरो चुननेवाली मुस्लिम मतदाता, कल तक नीतीश के साथ थी, पर महराजगंज लोकसभा उपचुनाव ने ये सिद्ध कर दिया कि मुस्लिम मतदाताओं को ज्यादा दिनों तक कोई भी मुर्ख नहीं बना सकता, पर जब कोई मुर्ख बनने को तैयार हैं, अपने घर में आग लगाकर खुद तमाशा देखना चाहता हैं तो उसे किया ही क्या जा सकता हैं। उसे भी अपना घर फूंकने का पूरा अधिकार है।
राजनीतिक दृष्टिकोण से भारत एक महान देश हैं और बिहार उसमें अनोखा। एक फिल्म में बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा ने डायलाग बोला था। डायलॉग था - बिहार में तो मां के पेट में ही बच्चा राजनीति सीख लेता हैं। तब समझ लीजिये, बिहार में राजनीति कैसे सर चढ़कर बोलता है। फिलहाल बिहार में नीतीश कुमार को, नरेन्द्र मोदी से चिढ़ हैं। उनका कहना हैं कि नरेन्द्र मोदी सांप्रदायिक हैं। उन पर 2002 में गुजरात में हुए दंगे का दाग हैं। उनके इस चिढ़ को उनके आसपास अथवा उनकी कृपा से दिल्ली के राज्यसभा तक पहुंचने वाले चिरकुट नेता शिवानन्द तिवारी अथवा कृषि मंत्नी नरेन्द्र सिंह बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं और बताते हैं कि नीतीश सर्वाधिक सेक्यूलर नेता है, पर इन नेताओं के चेहरे से तब हवाइंया उड़ने लगती है। जब एक देशभक्त सवाल पूछ देता हैं, वो सवाल हैं............................
क. जब 2002 में गुजरात जल रहा था, उस वक्त नीतीश कुमार केन्द्र में मंत्री थे, उसी समय वे नरेन्द्र मोदी के खिलाफ इतनी उग्रता क्यों नहीं दिखाई, क्यों नही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक्शन लेने के लिए दबाव बनाया।
ख. आडवाणी सेक्यूलर कैसे हो गये, आडवाणी को वे प्रधानमंत्री बनाने के लिए इतने आतुर क्यों हैं, जबकि उन्हीं की पार्टी के कई नेता अच्छी तरह जानते हैं कि  रामरथ यात्रा निकालकर आडवाणी ने क्या किया था।
ग. भाजपा धर्मनिरपेक्ष नहीं पर कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष कैसे हो गयी, जबकि इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद देश में हुए दंगे के दौरान हजारों सिक्खों का कत्लेआम कर दिया गया। हाल ही में असम में एक बहुत बड़ा नरसंहार हो गया, वहां किस समुदाय के लोग मारे गये, ये नीतीश बहुत अच्छी तरह जानते हैं। यानी भाजपा करे तो दंगे और कांग्रेस व नीतीश की पार्टी करे तो हर हर गंगे।
घ. पूरा बिहार जानता हैं कि नीतीश बिहार के विकास की हवा खड़ा करते हैं, पर स्वयं घोर जातिवादी हैं, ये तो फूट जालो शासन करों में विश्वास रखते हैं, जैसे देखिये दलितों में भी बंटवारा खड़ा कर दिया और एक वर्ग को महादलित घोषित कर दिया, क्या इससे उस समुदाय का कल्याण हो गया।
ड. नीतीश ने विकास का हवा खड़ा कर, सर्वाधिक फायदा उन अपराधियों को पहुंचाया जो इनके दल में शामिल थे, और जो अपराधिक किस्म के नेता दूसरे दलों में थे, उन्हें चून-चूनकर जेलों के अंदर पहुंचाया, ताकि नीतीश का सामना कोई कर ही न सकें।
च. नीतीश ने नीतीश भक्त पत्रकारों को खूब फायदा पहुंचाया।  नीतीश भक्त पत्रकारों ने भी नीतीश को जमकर फायदा पहुंचाया। उसका नमूना देखिये, जब भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी पटना में तो एक चैनल ने पटना में आयोजित भाजपा कार्यकारिणी की बैठक का समाचार दो मिनटो में खत्म कर दी और नीतीश की एक सभा के समाचार को 21 मिनट स्थान दिया। बाद में जब हमने पता लगाया तो पता चला कि नीतीश के समर्थन में ये पेड न्यूज था।
छ. इसी नीतीश ने अपनी ही पार्टी के टॉप स्तर के नेता को ठिकाने लगाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जान बूझकर बांका संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से दिग्विजय सिंह का टिकट काटा। अंत में दिग्विजय सिंह खुद निर्दलीय लड़ गये और नीतीश को उसकी औकात बता दी। फिलहाल दिग्विजय सिंह दुनिया में नहीं हैं।
ज. सच्चाई ये हैं कि जदयू कोई राष्ट्रीय पार्टी नहीं हैं, ये क्षेत्रीय पार्टी हैं जो बिहार में भाजपा के वैशाखी पर टिकी है, नीतीश इसके एकमात्र नेता हैं, जो कुर्मी जाति से आते हैं। इस नीतीश ने जदयू को पूरी तरह से हाईजैक कर लिया हैं। शरद यादव तो मुखौटा हैं, उनकी इतनी हिम्मत भी नहीं कि नीतीश के खिलाफ बगावत या आवाज बुलंद कर सकें, क्योंकि उन्हें भी लोकसभा पहुंचना हैं, राजनीति करनी हैं और वे जानते हैं कि नीतीश उन्हें लोकसभा में आराम से पहुंचा सकते हैं, इसलिए ये चाहकर भी राजग गठबंधन को मजबूती नहीं प्रदान कर सकते, ये वहीं करेंगे, जो नीतीश कहेंगे, इसलिए बेचारे शरद यादव पर क्या लिखना और क्या बोलना।
हमारे देश में अल्पसंख्यक का मतलब। बौद्ध, जैन, यहुदी अथवा पारसी नहीं होता। इनके खिलाफ कुछ भी अत्याचार कोई भी कर दे, किसी भी नेता के आंख से आंसू नहीं दिखाई पड़ेंगे पर जैसे ही मुस्लिम या इसाईयों के खिलाफ गर छिटपुट हिंसा भी हो जाये तो फिर देखिये इन घडि़याली नेताओँ के घड़ियाली आंसू, इतने आंसू टपकायेंगे कि पूछिेय मत। ये इसलिए घड़ियाली आंसू टपकाते है, क्योंकि कई विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रो में ये वोटर के रुप में निर्णायक हैं। गर इन्हें पता लग जाये कि मुस्लिम या इसाई वोट अब निर्णायक नहीं रहे तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये घडि़याली आंसू क्या ये तो एक बूंद पसीने भी इनके लिए नहीं बहाये। ये हैं हमारे देश के वर्तमान घटियास्तर के नेताओं का चरित्र। विधायक और सांसद बनने के बाद तो ये शपथ लेते है कि वे भारत के संविधान की मर्यादाओं की रक्षा करेंगे पर सच्चाई ये  हैं कि जितना संविधान की धज्जियां ये उड़ाते हैं, उतना कोई नहीं और वोट के लिए तो ये कहीं मुसलमान तो कहीं घोर जातिवादी होने से भी नहीं चूकते। हम कहते हैं कि जब मुस्लिम वोटरों की इतनी ही चिंता हैं तो हमारा सलाह हैं कि नीतीश धर्मपरिवर्तन क्यों नहीं कर लेते। इससे अच्छा तो दूसरा कुछ हो ही नहीं सकता। मुस्लिम भी कहेंगे कि देखो ये नीतीश को, जो इस्लाम कबूल कर लिया, अपने हिंदू धर्म से खुद को अलग कर लिया। नेता हो तो ऐसा हो, जो वोट के लिए अपना ईमान और धर्म भी बदल लिया हैं, इसलिए वोट तो हम नीतीश कुमार जो अब मो.नीतीशुद्दीन बन गये हैं, उन्हें ही देंगे। इससे जदयू भी मजबूत हो जायेगा और सदा के लिए नीतीश बिहार के मुसलमानों में लोकप्रिय और ऐतिहासिक पुरुष हो जायेंगे................

Wednesday, June 12, 2013

बिहार में नरेन्द्र मोदी की बहती बयार व जदयू नेताओं का पागलपन.....................

नरेन्द्र मोदी को भाजपा ने चुनाव प्रचार अभियान समिति का कमान क्या सौंपा। भाजपा में शामिल आडवाणी ने भाजपा की नैया में पहली कील ठोक दी। फिर क्या था, जदयू जो पहले से ही गुजरात की जनता और वहां के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को खूलेआम गाली दे रहा था, उसे मौका मिल गया। अब तो वो ताल ठोक कर नरेन्द्र मोदी को दंगाई कह रहा हैं, भाजपा से तलाक लेने की बात कर रहा है, भाजपा से खुद को अलग कर 2014 की लोकसभा के चुनाव लड़ने की बात कह रहा है। उसे ऐसा करना भी चाहिए, उसकी ताकत का उसे अंदाजा लगना भी चाहिए। हम बार - बार कह भी रहे हैं कि 2014 का चुनाव जब भी हो, लालू यादव के पास खोने के लिए कुछ नहीं, जबकि नीतीश के पास पाने के लिए कुछ भी नहीं, क्योंकि लालू के वोटर कल भी नहीं उससे खिसके थे, आज भी नहीं खिसके है। महराजगंज का लोकसभा का उपचुनाव परिणाम बताने के लिए काफी है।
आज नीतीश सरकार में शामिल जदयू कोटे से शामिल कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह ने बयान दिया हैं कि मोदी दंगाई है। ये वहीं नरेन्द्र सिंह हैं जो एक जनता दरबार में एक आम जनता को अपने संबोधन में ये कह देता हैं कि थोड़ा सा हमने आपको सम्मान दिया और लगे आप सर चढ़कर ........। ये वहीं नरेन्द्र सिंह हैं जो अन्ना हजारे को मां बहन की गाली भी दे देता हैं, वो भी तब जब संवाददाताओं को समूह उससे अन्ना हजारे से संबंधित सवाल पूछते हैं। ये वहीं नरेन्द्र सिंह हैं, जिसे ईश्वर ने भयंकर सजा भी दी, पर उसे ईश्वर की मार के बाद भी बुद्धि नहीं खुली। राजनीति में कायरता व अपराध का संगम का सबसे बड़ा नमूना नरेन्द्र सिंह आज बिहार के किसानों का भाग्य निर्माता बना बैठा हैं। ऐसे ही कई जदयू में नेता हैं, जो अपराधी किस्म के हैं, पर विधायक और मंत्री बने बैठे हैं, जिन पर कई - कई अपराधों की लंबी फेहरिस्त हैं, पर जदयू के बड़े नेताओं का इन पर ध्यान नहीं जाता। ऐसे कई नेता जो विधायक बन कर जदयू के नेता बने हैं, जिससे बिहार की छवि दूसरे प्रांतों में बदनाम होती हैं, पर ये अपने को पाक साफ बताते हैं और मोदी को गाली देने में शान समझते हैं।
जदयू को लगता हैं कि नरेन्द्र मोदी को गाली देने, गुजरात की जनता को गाली देने से, 2014 में लोकसभा की सीट बढ़ जायेगी तो उसे मुगालते में नहीं रहना चाहिए। भाजपा और उससे जूड़े अन्य संगठन कोई चूड़़ियां पहनकर नहीं बैठी हैं। उन्हें भी जवाब देना आता है। नरेन्द्र मोदी, बिहार आयेंगे और चुनाव प्रचार करेंगे। पता लग जायेगा कि बिहार में नरेंद्र मोदी क्या हैं। अगर नीतीश को हिम्मत हैं तो गुजरात जाकर लोकसभा की एक भी सीट जीतकर दिखा दें या नरेंद्र मोदी की तरह जनसभा में भीड़ एकत्रित कर दिखा दें। सारा गर्व ही चूर हो जायेगा। इधर नीतीश और उनके नेता मोदी के बयार से इतने पागल हो गये कि उन्हें रात-दिन सोते जागते मोदी - मोदी ही नजर आ रहे हैं। आश्चर्य इस बात की हैं कि जदयू के इन घटियास्तर के नेताओं को मोदी दंगाई नजर आते हैं, पर इसी पार्टी के लाल कृष्ण आडवाणी को धर्म निरपेक्ष बताने से नहीं चूक रहे। कमाल हैं कि ये वहीं आडवाणी हैं, जिन्होंने रामरथ यात्रा निकाला। जिसकी वजह से बाबरी मस्जिद का आज नामोनिशां नहीं हैं। जिनके वजह से पूरे देश में धर्मनिरपेक्षता को खतरा उत्पन्न  हो गया था, देश के कई शहरों में हिंदू मुस्लिम दंगे हो गये। जिनके बारे में इसी पार्टी के कई नेता, उस वक्त दूसरे दलों में थे, आडवाणी को देश के लिए खतरा मानते थे, आज उसके लिए वे झंडे ढोने को बेताब हैं।
कमाल इस बात की हैं, इसी देश में एक प्रधानमंत्री राजीव गांधी हुए। जिनके कार्यकाल में पूरे देश में सिक्खों का कत्लेआम हुआ, पर इन नेताओं को कांग्रंसी धर्मनिरपेक्ष दिखाई पड़ते हैं। क्योंकि सिक्खों की संख्या मतदाताओं के रुप में उतना प्रभावशाली नहीं, इसलिए सिक्खों के लिए इनके आंखों से आंसू नहीं बहते और न ही बयान आता हैं। हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा अथवा सर्टिफिकेट का वितरण समय -समय पर मतदाताओं को ध्यान में रखकर रचा अथवा वितरित किया जाता हैं। धन्य हैं, भारत और भारत की जनता और इसके नेता। चीन पांच किलोमीटर अंदर तक घूसकर सड़क का निर्माण कर लिया। 20 किलोमीटर अंदर तक घूस गया, पर इनकी बेचैनी इस पर नहीं दिखी, पर नरेन्द्र मोदी के लिए बेचैनी देखिये। चीन की साम्राज्यवादी नीयतों पर इन्हें शक नहीं, उसके खिलाफ बयान हीं नहीं, बल्कि चीन का दौरा होता हैं, उसे गुरु बनाने की कोशिश होती हैं, और अपने ही देश के नागरिकों को देशद्रोही बताकर, पूरे विश्व के सामने नीचा दिखाने की कोशिश करने में, इन नेताओं को कितना आनन्द आता हैं। वाह रे नीतीश, वाह रे जदयू के घटियास्तर के नेता। तुम्हारा जवाब नहीं। बस एक साल का इंतजार करो, जनता बिहार की तैयार हैं, बताने के लिए कि तुम्हारी जगह कहां हैं...................................

Tuesday, June 11, 2013

आडवाणी का कुर्सी प्रेम और भाजपा.........................

निः संदेह लाल कृष्ण आडवाणी देश के बड़े नेता है, पर इतने भी बड़े नहीं, जिनका आचरण हम अपने जीवन में उतार सके या हम किसी को कह सके कि तुम आडवाणी जैसे नेता बनो। किसी भी नेता का जीवन-दर्शन, उसके संपूर्ण जीवन पर निर्भर करता हैं कि उसने अपने जीवन काल में क्या किया और क्या नहीं किया। क्या करने से उसके द्वारा देश को बल मिला, पार्टी को बल मिला अथवा उसकी पार्टी या देश की दुर्गति हो गयी। कमाल हैं ये वहीं आडवाणी है जो किसी समय दिल खोलकर ये बोला करते थे, कि गर देश में भाजपा सत्ता में आयी तो देश के प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी विराजमान होंगे, उन्होंने ऐसा किया भी और कभी भी वाजपेयी के आगे अपना कद उचा करने की कोशिश नहीं की, जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए, पर आज नरेन्द्र मोदी के आगे आते ही, इतने बड़े नेता ने जो ओछी हरकत की, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिख, जिन बातों का पत्र में उल्लेख किया, उससे ऐसा लगता है कि इस व्यक्ति ने अपने जीवन के सारे कार्यकाल पर खुद से पानी फेर दिया। हमें तो अब संदेह होता हैं कि किसी कालखंड में इस व्यक्ति ने अटल बिहारी वाजपेयी के लिए, अपना सर्वस्व त्याग भी किया होगा।
पत्र में क्या हैं - पत्र में इस नेता ने वर्तमान भाजपा में शामिल नेताओं पर देश के लिए कम और निजी जिंदगी के लिए राजनीति करने का घिनौना आरोप लगाया है। ये कहकर उसने खुद को पाक साफ और सभी भाजपाइयों पर तोहमत लगा दी। ये दिव्य ज्ञान भी लाल कृष्ण आडवाणी को तब आया, जब गोवा में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नरेन्द्र मोदी को चुनाव प्रचार अभियान की कमान सौंप दी गयी। उसके पहले इन्हें दिव्य ज्ञान नहीं आया था। ये दिव्य ज्ञान आडवाणी को उस वक्त भी नहीं आया, जब नीतीश कुमार और उसकी पार्टी के  घटिया स्तर के नेताओं ने नरेन्द्र मोदी के खिलाफ, गुजरात  की जनता के खिलाफ लगातार विष वमन करते रहे। आडवाणी को पता नहीं कि नरेन्द्र मोदी आज समय की मांग हैं। आम जनता नरेन्द्र मोदी की तरफ देख रही हैं, क्योंकि उसे लगता हैं कि ये व्यक्ति ऐसा हैं कि वो देश के लिए कुछ कर सकता हैं। आडवाणी बता सकते हैं कि उन्होंने देश के लिए अब तक क्या किया हैं। सिवाय कुर्सी प्रेम के। अरे आडवाणी को तो सोनिया गांधी से सीखना चाहिए, वो चाहे तो भारत की प्रधानमंत्री बन सकती थी, बन सकती हैं पर उसने कभी भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ध्यान ही नहीं दिया। और इनको देखिये, प्रधानमंत्री बनने के लिए इतने बेचैन हैं, उस कुर्सी पर सोने के लिए इतने बेचैन हैं, कि जैसे ही उन्हें ये भनक मिली कि नरेन्द्र मोदी उनके आगे दीवार बनकर खड़े हो गये। भाजपा के सारे बड़े पदों से इस्तीफा दे दिया। ये जनाब ब्लाग भी लिखते हैं। ब्लाग में महाभारत का प्रसंग भी ऱखते हैं, पर उन्हें नहीं मालूम कि समय की मांग को देखते हुए, उस महाभारत के कई पात्रों ने कब और किस समय, किन - किन चीजों का त्याग किया।
आडवाणी को ये भी शायद मालूम नहीं हैं कि इसी देश में महात्मा गांधी थे, जो चाहते तो भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे, पर उन्होंने प्रधानमंत्री पद से ज्यादा अपने लिए गोली चुन ली। आज वे मोहनदास से महात्मा गांधी और राष्ट्रपिता बन गये। कहा भी जाता हैं कि जिसे सब कुछ मिल जाता हैं, उसे कुछ भी नहीं मिलता और जिसे कुछ नहीं मिलता, उसे सब कुछ मिल जाता हैं। क्या ये प्रसंग आडवाणी को मालूम नहीं। आडवाणी तो आज उस कसाई की तरह हो गये जो, एक बकरे को बड़े प्यार से पालता हैं और फिर उसी बकरे की अपने हित में हत्या भी कर डालता हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने भाजपा को उंचाईयों पर लाकर खड़ा किया, पर ये भी सही हैं कि जिस प्रकार की कारगुजारी, उन्होंने कल दिखायी। लगता है ंकि वो चाहते हैं कि वे अपने ही हाथों से भाजपा का गला घोंट दे। नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक जीवन की कैरियर ही समाप्त कर दे। पर उन्हें नहीं मालूम कि भारत की जनता ने कुछ फैसला किया हैं। वो फैसला देशहित में, जनहित में हैं। देश को उचांई पर ले जाने का वक्त हैं. ऐसे में लालकृष्ण आडवाणी कुछ ऐसा न करें, जिससे देश की जनता और देश उन्हें कभी माफ ही न करें। ऐसे वो कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। नीतीश तो आपको धर्मनिरपेक्ष होने का सर्टिफिकेट भी दे चुके हैं। ये वहीं नीतीश हैं जिनकी धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा समय - समय पर बदलती रहती हैं। फिर भी जब आप अपने कैरियर को खुद ही डूबो देना चाहते हैं तो कोई कर ही क्या सकता हैं। 

Thursday, June 6, 2013

बिहार ने लालू की लालटेन की लौ बढ़ाई, जबकि नीतीश के तीर भोथर किये.................

बिहार में महराजगंज लोकसभा के उपचुनाव के परिणाम आ गये। राजद के प्रभुनाथ सिंह 1 लाख 37 हजार से भी अधिक मतों से जीते। जदयू के पी के शाही दूसरे नंबर पर रहे, जबकि कांग्रेस की जमानत तक जब्त हो गयी। लालू की बल्ले - बल्ले है। चुनाव परिणाम के पहले चक्र की मतगणना के बाद ही वे दहाड़ रहे थे। टीवी पर उनका बयान आ रहा था, कह रहे थे कि प्रभुनाथ लालटेन लेकर दौड़ रहा हैं। नीतीश का हाल क्या होगा - गइल गइल भइसिया पानी में। ब्रह्मर्षि समाज की जय जयकार कर रहे थे, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इस बार ब्रह्मर्षि समाज के लोगों ने दिल खोलकर उनका साथ दिया हैं और हुआ भी ऐसा ही। बेचारे पी के शाही जिस नीतीश के विकास का तीर लेकर महराजगंज में खूंटा गाड़ने का प्रयास कर रहे थे, उनका खूंटा प्रथम चक्र की मतगणना के बाद ही उखड़ गया। उन्होंने बयान दे डाला कि कार्यकर्ताओं का उत्साह व जोश नहीं था और पार्टी के अंदर चल रही भीतरघात और गठबंधन धर्म के ठीक से निर्वहन नहीं होने के कारण उनकी हार हो गयी। इधर लालू दहाड़ रहे थे, और दिल्ली में नीतीश, छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह से गुफ्तगूं कर रहे थे। टीवी पर ये भी दिखा कि जब नीतीश, रमण सिंह से बातें कर रहे थे, तब छायाकारों का समूह, इनकी छवि को अपने कैमरे में कैद कर रहा था, पर ये क्या जैसे ही नरेन्द्र मोदी उधर से निकले छायाकारों का समूह मोदी की ओर दौड़ पड़ा। 
पांच जून को देश के कई हिस्सों में हुए लोकसभा और विधानसभा के चुनाव परिणामों ने सभी पार्टियों को सबक सिखायी हैं, पर सच्चाई ये हैं कि किसी भी दल ने इस सबक को सीखने की कोशिश नहीं की।
गुजरात में चार विधानसभा सीटों और दो लोकसभा सीटों पर भाजपा को मिली भारी जीत, इस बात का संकेत हैं कि गुजरात की जनता नरेन्द्र मोदी को छोड़ना नहीं चाहती, उसे लगता हैं कि नरेन्द्र मोदी के हाथों में ही गुजरात का भविष्य हैं। जनता का फैसला शिरोधार्य होना भी चाहिए। पर बिहार में क्या हो रहा हैं। लगातार नीतीश के विकास का हव्वा खड़ा करनेवाले नीतीश के चाटूकारों की हवा निकल गयी हैं। बोलती बंद हैं। कल तक नीतीश - नीतीश जपनेवाले और इसी दरम्यान भाजपा की वैशाखी पर सरकार चलाते हुए भाजपा को ही आंख दिखानेवाले, मौसमी शेर गायब दीखे। महराजगंज की हार ने, उनकी सारी हेकड़ी निकाल दी हैं। जदयू के इन छुटभैयें नेताओं को लगता था कि बिहार की जनता नीतीश के आगे नतमस्तक हैं। जो नीतीश बोलेंगे, वो मानेगी। नीतीश का विकास, बिहार में सर चढ़कर बोल रहा हैं। ये हवाई किले बनानेवाले को पता नहीं कि विकास कोई सड़क बनाने और बिजली का खंभा खड़ा करने का ही नाम नहीं, उसके आगे रोजगार उपलब्ध कराने का भी नाम हैं। हद तो तब हो गयी कि आज भी बिहार के सुदुरवर्ती गांवों के लोग महाराष्ट्र और गुजरात में रोजी - रोटी कमाने के लिए जा रहे हैं, पर इन्हें रोकने के लिए बिहार सरकार ने कोई योजनाएँ नहीं बनायी। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के चिरकुट नेता बिहारियों को गाली देते थे और उसी महाराष्ट्र में जाकर नीतीश मनसे की जी हुजूरी करते दीखे। शायद बिहार की जनता इस दोहरे चरित्र को भूल गयी, उन्हें लगता होगा और जिस गुजरात ने आजतक बिहार की जनता के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला, उस गुजरात की जनता का अपमान, इस नीतीश ने बार - बार किया, नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विषवमन कर। नीतीश को लगता हैं कि दुनिया की सारी खूबियां इन्हीं में हैं। खुब अहं में डूबे हैं। विज्ञापन के चाबूक से अखबार और इलेक्ट्रानिक मीडिया के संपादकों को हांक रहे हैं, समझते हैं कि सम्राट अशोक हो गये, पर उन्हें नहीं मालूम कि बिहार की जनता तो असल में बिहार की जनता हैं। सबसे अनोखी। यहां जातिवाद सर चढ़कर बोलता हैं। लालू ने जातिवाद की सीढ़ी चढकर महराजगंज की लहलहाती फसल दुबारा काटी हैं। राजपूत -यादव तो उसके परंपरागत वोट हैं, भला वो मतदाता राजद से छिटके कब थे, छिटके तो मुस्लिम थे, फिर ससर गये, और लालू के लालटेन की जीत पक्की। रही बात भूमिहार जाति की, तो ये जाति अभी नीतीश से बिदकी हैं ही, ब्याज समेत इसने अपना किराया वसूल लिया और पी के शाही की तीर को भोथर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
हमें याद हैं कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुर ने सामान्य बातचीत के दौरान कहा था कि भला बिहार में विकास के नाम पर वोट मिलता हैं क्या। यहां तो जातिवाद और बयार पर वोट मिलता हैं। जनता को जातीयता का बीयर पिलाते रहिए, अपना उल्लू सीधा करते रहिए और जब जीत जाईये तो अपने अनुसार उसका अर्थ निकालिये। ये हैं हमारा बिहार। उसे कभी तीर तो कभी लालटेन और कभी कमल खिलाने में आनन्द आता हैं पर वो भी जाति के आधार पर, धर्म के आधार पर। बेचारी कांग्रेस जो कल तक इसी के सहारे राज करती थी, आज सारी जातियां उससे बिदक गयी हैं, देखते हैं, ये बिदकी जातियां कब कांग्रेस की ओर आती हैं  या कांग्रेस इसी तरह पिछलग्गू बनकर, बिहार में अपना काम चलाती रहेगी। फिलहाल बिहार की जनता ने लालू और उसकी पार्टी को च्यवनप्राश खिलाया हैं, ताकत दी हैं। ताकत मिलते ही, लालू अपनी आदत से लाचार हैं ही, फिर से शुरु कर दिया हैं दहाड़ना। देखते हैं कब तक दहाड़ते हैं, रही बात नीतीश की, तो मैं कहूंगा, कि अब भी वक्त हैं, अहं त्यागे और किसी की आलोचना व किसी के खिलाफ विषवमन करने से अच्छा हैं, बिहार की जनता का सम्मान बरकरार रखने में ध्यान लगाये। यहीं उनके लिए और उनकी पार्टी की सेहत के लिए बेहतर होगा।