Thursday, January 31, 2013

कोयलांचल में एक ऐसा घर, जिसके हर कमरें में राधिका संग भगवान कृष्ण विराजते हैं...............

क्या ऐसा संभव हैं कि एक सामान्य गृहस्थ के घर में राधिका संग भगवान कृष्ण विराजे। सामान्य सा उत्तर हैं - कभी नहीं,कदापि नहीं, पर मैंने अनुभव किया हैं कि ऐसा संभव हैं। गर सामान्य व्यक्ति अपने कर्म को भगवान कृष्ण के लिए, और उनकी ओर से, उन्हीं को समर्पित कर दे, तो ऐसा संभव हो जाता हैं। कोयलांचल से हमारा नाता 2000 ई. में तब जूड़ा। जब मैं दैनिक जागरण का ब्यूरो प्रमुख बना। उसी समय अपने कार्यालय में उस वक्त भाजपा से जूड़े एक सामाजिक कार्यकर्ता विजय झा से मुलाकात हुई थी। तभी से लेकर आज तक जो उनसे अंतरंगता बढ़ी, वो बढ़ती ही चली जा रही हैं। इन बारह सालों में कई बार, मैं उनके घर पर गया था, समाचार संकलन हेतु, पर ऐसी अनुभूति कभी नहीं हुई। जैसा कि इस बार हुआ हैं। शायद ऐसा इसलिए हो सकता हैं कि पूर्व में, मैं जब भी गया, तो ज्यादातर उनके घर में बैठा नहीं, बस नीचे ही नीचे, उनसे बात की समाचार संकलन किया और चलते बने। पर इन दिनों उनके घर में मैं पिछले एक सप्ताह से प्रवास पर हूं और जो मैंने अनुभव किया, वो मैं इस अपने ब्लॉग में लिखे बिना नहीं रह सकता। इस आलेख को पढ़नेवाले - सोचनेवाले इस लेखन के कई अर्थ निकाल सकते हैं, वे इसके लिए स्वतंत्र भी हैं, पर मेरी अनुभूतियों को उनकी सोच परतंत्र कर दें, ऐसा संभव नहीं। 
इन दिनों मैं अपनी पत्नी की बीमारी से थोड़ा चिंतित हूं। रांची में कई जगह इलाज कराया, पर जिस प्रकार का अर्थयुग हैं, उससे सही इलाज कराना, आज के युग में संभव नहीं हैं। हर जगह प्रोफेशनलिज्म ने ऐसा बाह्यांडबर तैयार किया हैं कि सामान्य व्यक्ति, इलाज के दौरान सहज रुप से मौत का साक्षात्कार भी कर लेता हैं, पर मैंने हर प्रकार से सोचा कि अपनी पत्नी का इलाज कहां कराउं। प्रभु की कृपा हुई, अचानक मैंने विजय जी को फोन लगाया। उन्होंने कहा कि आप तुरंत उनको लेकर, यानी पत्नी को लेकर कतरास आ जाये, यहां आराम से इलाज हो जायेगा, चिंता की कोई बात नहीं। 23 जनवरी को वनांचल एक्सप्रेस से हम दोनों कतरास पहुंचे और उनके आवास पर उस रात्रि से जो समय बिताना शुरु किया। जैसे लगा कि मैं किसी घर में नहीं बल्कि राधिका और श्रीकृष्ण के चरणकमलों के नीचे सोया हुआ हूं, क्योंकि जहां हमने शयन किया था, वहां भगवानश्रीकृष्ण राधिका संग चित्र में इस प्रकार विराजमान थे, कि उनके चरणकमल, मेरे मस्तक को छू रहे थे। ऐसे तो विजय झा के घर में जिधर देखिये, उधर ही श्रीकृष्ण, राधिका संग विराजते दीखते हैं। कहीं बालस्वरुप में तो कहीं युवास्वरुप में। सचमुच धन्य हैं, वे लोग जिन पर हरि इतनी कृपा लूटाते हैं, औरों के साथ ऐसा क्यूं नहीं होता। ऐसे में हमें गोस्वामी तुलसीदास विरंचित श्रीरामचरितमानस की वो चौपाई अनायास याद आती हैं, जिसमें विभीषण जी, हनुमान से कहते हैं कि --------
अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरि कृपा मिलहि नहि संता।।
अर्थात हे हनुमान जी अब मुझे पूरा विश्वास हो गया कि बिना ईश्वरीय कृपा के सज्जनों से मुलाकात नहीं होती।
सचमुच इन दिनों में ईश्वर से प्रतिदिन साक्षात्कार करता हूं। विजय झा की पत्नी डा. शिवानी झा, एक अच्छी चिकित्सक हैं, और उन्होंने कोयलांचल के कतरास इलाके की माताओँ और बहनों पर बड़ी कृपा लुटाती हैं, वो मेरे आंखों ने देखे हैं, यहीं कारण है कि यहां की सामान्य जन उन्हें बहुत सम्मान देती हैं। ये श्रीकृष्ण से इतना प्रेम रखती हैं कि उन्होंने अपना निजी अस्पताल के नामकरण ही भगवान कृष्ण के नाम से कर दिया हैं। उन्होंने अपने चिकित्सालय का नाम ही रखा हैं -- कृष्णा मातृ सदन। ज्यादातर डाक्टरों को देखिये तो अपने चिकित्सालयों के नाम - नर्सिंग होम, या अस्पताल, या हास्पिटल वगैरह - वगैरह रख देते हैं, पर यहां तो भारतीय धर्म और संस्कृति का मूल ध्येय वाक्य -- सेवा का स्पष्ट रुप ही झलक जाता हैं। जरा गोस्वामी तुलसीदास की पंक्तियां को समझे ---
दया धर्म का मूल हैं, पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोडि़ये, जब तक घटि में प्राण।।
लोग ये क्यूं भूल जाते हैं, धर्म का मूलस्वरुप दया हैं, गर आपने करुणा व दया हृदय में रखा तो जीवन धन्य, नहीं तो आप खुद अपने ही हाथों, अपनी चित्ता क्यूं सजा रहे हैं। जरुरत हैं, अपने हृदय को पवित्र बनाने की, ताकि आपके घर में भी, आपके घर के हर कमरे में, राधिका संग भगवान श्रीकृष्ण विराज सकें।

Monday, January 21, 2013

ये गांधी-नेहरु-पटेल और शास्त्री की कांग्रेस नहीं, बल्कि सोनिया-राहुल की कांग्रेस हैं.................................

हमें बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा हैं, जिस कांग्रेस पार्टी में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री,  सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे नेताओं ने अपने वाकपटुता और चरित्र के माध्यम से पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व को प्रभावित किया। जिनके आचरण को उतारने की सीख हमारे माता -पिता आजीवन देते रहे। आज उस कांग्रेस पार्टी में दिग्विजय सिंह, संजय निरुपम, मणिशंकर अय्यर और सुशील कुमार शिंदे जैसे नेताओं का बोलबाला हैं, जिनके चरित्र को उतारना तो दूर, उनके बोलचाल की भाषा को देख कोई भी माता - पिता अपने बेटे को, इनके भाषण को सुनने तक की इजाजत नहीं देगा। ऐसे हम आपको बता दें कि आज की कांग्रेस पार्टी को चला रही सोनिया व राहुल लाख कह लें कि वह पुरानी कांग्रेस को लेकर ढो रहे हैं, मैं मान नहीं सकता। क्योंकि पुरानी कांग्रेस पार्टी ने देश को चरित्र दिया, ताकत दी, महानता की सीख दी, आज की कांग्रेस सारी निर्लज्जता को पार कर चुकी हैं।
जरा दिग्विजय सिंह का बयान सुनिये -- ये कुख्यात आतंकवादी हाफिज सईद को जनाब कहके नवाजते हैं। जरा मणिशंकर अय्यर को देखिये - ये अपने प्रतिद्वंदियों को पशुओं से मिलान करते हैं।
जरा संजय निरुपम को देखिये -- अपने प्रतिद्वंदी पार्टी की एक महिला नेता को नाचनेवाली - ठुमके लगानेवाली कहकर संबोधित करते हैं।
पूर्व में गृह मंत्री और अब वित्त मंत्रालय संभाल रहे पी चिदम्बरम को तो केसरिया कलर में ही आतंकवाद नजर आता हैं, और इसी पार्टी के वर्तमान गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने तो भाजपा और संघ को हिंदू आतंकवाद से जोड़कर, एक नयी मिसाल कायम कर दी। 
जिस देश में ऐसे ऐसे लोग महत्वपूर्ण मंत्रालय सँभालते हो, जिस पार्टी के नेता, जो ये कहते नहीं थकते कि उनकी पार्टी ने देश को आजादी दिलवायी हो, उन पार्टी के नेता, अपने प्रतिद्वदिंयों के लिए सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग नहीं करते हो। उससे देश चलेगा, हम मानने को तैयार नहीं। ये दिखावे के लिए तो पाकिस्तान और वहां चल रहे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ खूब बोलते हैं, पर सच्चाई ये हैं कि आज इतनी इनकी ताकत नहीं कि वे पाकिस्तान से सीधे - सीधे युद्ध कर, उसकी हेकड़ी निकाल दें। हां ये इतना जरुर करते हैं कि अपना वोट बैंक, मुस्लिमों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए, संघ और भाजपा को गंदी गंदी गालियों से नवाज जरुर देते हैं, और जब इनकी देशव्यापी आलोचना होती हैं तो बड़ी ही बेशर्मी से ये कह देते हैं कि उनकी बातों को तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया गया।
सच्चाई ये हैं कि पूरे देश में महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहे हैं। इनके शासनकाल में भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड टूट गये हैं। महंगाई सुरसा की तरह मुंह बायें जा रही हैं। पूरे देश में पाकिस्तानी आईएसआई ने नक्सलियों के साथ मिलकर देश को निगलने को तैयार हैं जबकि बाहरी मोर्चे पर वो हरदम भारत को नीचा दिखाने की कोशिश करता हैं। आंध्रप्रदेश में तो कांग्रेस के साथ कदम से कदम मिलाकर चलनेवाली एक पार्टी के नेता ने तो देश के साथ बगावत करने की बात कहीं, जिसके भाषण यू टयूब पर बिखरे पडे हैं, जो सीधे - सीधे हिन्दूओं को गाली देता हैं, उसके लिए, इस पार्टी के नेता अथवा किसी भी मंत्री के जुबां नहीं खुले, पर इन नामर्दों को देखिये, पुरुषार्थ दिखाने के लिए भाजपा और संघ ही इन्हें मिलता हैं।
दंगा कहीं भड़का तो भाजपा और संघ ने करा दिया और कहीं विकास के कार्य हुए तो बस कांग्रेस ने किया। जबकि सच्चाई ये हैं कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेसी शासन में किस प्रकार पूरे देश में सिक्खों का कत्लेआम हुआ, वो पूरा देश जानता हैं। कैसे हाल ही में असम में कांग्रेसी सरकार के होते हुए मानवता की हत्या कर दी गयी। कैसे असम में बांगलादेशी घुसपैठियों को सुनियोजित तरीके से बसाया जा रहा हैं और वहां के मूल वाशिंदे को खदेड़ा जा रहा हैं। इस पर इन्हें शर्म नहीं महसूस होता, पर जैसे ही गुजरात विधानसभा का चुनाव आता हैं, नरेन्द्र मोदी के रुप में उन्हें दंगाई नजर आता हैं। ये अलग बात हैं कि इन कांग्रेसियों के खिलाफ, गुजरात की जनता आज भी नरेन्द्र मोदी के पीछे सशक्त रुप से खड़ी हैं और नरेन्द्र मोदी को अपना नेता मानती हैं। 
ऐसे एक बात पूरे देश को जान लेना चाहिए, कि कांग्रेसियों के इस चाल चरित्र को आगे बढा़ने में मुख्य भूमिका कांग्रेस भक्त पत्रकारों का भी हैं, जो समय - समय पर इन कांग्रेसियों के साथ मिलकर, देश को मिट्टी में मिलाने के लिए हर प्रकार का राग जनता के बीच अलापते हैं। जब कभी इन्हें मौका मिलता हैं, वे कांग्रेसियों के साथ हो लेते है। बदले में ये कांग्रेसी, कभी राज्यसभा तो कभी मुंहमांगी मुरादें देकर इन पत्रकारों को उपकृत करते रहते हैं और इसी में, यह देश मिट्टी में मिल रहा होता हैं। अब आगे देखिये कि कौन कांग्रेसी नेता, कब किस अन्य नेता को गाली देने के लिए अपना मुंह खोलता हैं। तब तक इंतजार करिये....................

Saturday, January 19, 2013

रांची में एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का आगाज, ये साली क्रिकेट पास जो न कराये.................

ये साली क्रिकेट पास जो न कराये........। आम जनता, मीडियाकर्मियों और माननीय विधायकों को पता नहीं क्या - क्या बना दिया, इस क्रिकेट पास और टिकट ने। गर आम जनता की बात करें तो, इस क्रिकेट पास के लिए के लिए तो नहीं, बल्कि क्रिकेटरों की एक झलक पाने के लिए, यहां की जनता पुलिस की मार तक खा चुकी, यहीं नहीं अपना पैंट तक उतरवा चुकी हैं, जबकि क्रिकेट की एक झलक पाने के लिए, एक अदद क्रिकेट के लिए, महंगाई तक को चुनौती दे डाली हैं, रांची की जनता ने। गर आप रांची आये तो देख सकते हैं, क्रिकेट की दीवानी यहां की जनता को, जो इस महंगाई में क्रिकेट मैच देखने के लिए बीस- बीस हजार रुपये में, टिकट ब्लैक में खरीदकर, क्रिकेट को इंज्वाय किया हैं। ये तो रही जनता और अब बात करते हैं मीडिया की। 
बात -बात में राजनीतिज्ञों और कारपोरेट जगत पर बरसनेवाली यहां की मीडिया और उनमें कार्यरत पत्रकारों और छायाकारों को भी कम नहीं झेलना पड़ा हैं। टिकट और पास पाने के लिए, जेएससीए द्वारा धकियाएं गये ये लोग, जेएससीए के आलाधिकारियों की वंदना और  विशेष पूजा करने से भी बाज नहीं आये। एक अखबार ने तो जेएससीए के एक आलाधिकारी की चरणवंदना में एक सप्लीमेंट ही निकाल दिया और उसमें एक पेज विशेष रुप से उक्त आलाधिकारी को समर्पित कर दिया। जिसके एवज में उक्त आलाधिकारी ने उक्त अखबार पर विशेष कृपा भी बरसायी। इसी तरह एक और अखबार, जो अपने को कारपोरेट जगत का सबसे बड़ा अखबार मानता हैं,  आज के दिन उसने जेएससीए के एक आलाधिकारी का बयान छापकर, अपनी मौन आराधना और वंदना उक्त आलाधिकारी के प्रति जगजाहिर कर दी हैं। पर जिन अखबारों व मीडिया को पास व टिकट नहीं मिले, उन्होंने जमकर, जेएससीए पर बरसना शुरु कर दिया। यहीं नहीं, खोद - खोदकर ऐसे ऐसे समाचार छापे गये, जिससे उक्त आलाधिकारी के चेहरे पर हवांइयां उड़ी होगी, इसकी संभावना कम ही दिखती हैं, क्योंकि फिलहाल, उस व्यक्ति के सितारे बुलंद हैं, और जब सितारे बुलंद होते हैं तो आप कुछ भी कर लें। उसे कुछ भी नहीं होता। लेकिन ये सितारे बराबर बुलंद रहेंगे, इसकी संभावना कम ही रहती हैं, क्योंकि रावण और कंस के सितारे भी इसी तरह कभी बुलंद हुआ करते थे, पर जब सितारें उनके गर्दिश में पड़े तो वे भी कहीं के नहीं रहे। 
आज एक अखबार ने लिखा हैं झारखंड में चार हजार करोड़ से अधिक के घोटाले के मास्टरमाइंड संजय चौधरी का पासपोर्ट आइपीएस अधिकारी अमिताभ चौधरी की सिफारिश पर ही बना था। इन्होंने ही 2004 में रांची पासपोर्ट कार्यालय को चिट्ठी लिखी थी। दिल्ली की सीबीआई टीम की जांच में इसका खुलासा हुआ हैं। इसी अखबार ने ये भी प्रकाशित किया हैं कि गुरुजी ने क्रिकेट स्टेडियम की नींव रखी थी पर स्टेडियम के उद्घघाटन में उक्त अधिकारी ने शिबू सोरेन को पूछना तक उचित नहीं समझा।  अखबार ने ये भी लिखा हैं कि स्टेडियम का उद्घाटन अधिकारियों का आयोजन बनकर रह गया। साथ ही स्पोर्टस पेज पर दो आईपीएस की लड़ाई में धूल धूसरित हुआ - कीनन स्टेडियम जैसे आलेख छापकर, अमिताभ चौधरी की बैंड बजा दी हैं। इस अखबार ने जो भी लिखा हैं, उसकी दाद देनी होगी, कि उसने ऐसा कर के एक ऐसे व्यक्ति को चुनौती दे डाली हैं, जिसका ख्वाब बहुत ही उंचा हैं, जो अब राजनीति में भी उतरकर, अपना लोहा मनवाने को उत्सुक हैं, पर जैसे खेल में कामयाब हुआ, वैसे राजनीति में भी कामयाब हो जायेगा, इसकी संभावना कम दिखती हैं, क्योंकि राजनीति में उससे ज्यादा की घटिया सोच रखनेवाले लोग पहले से ही विद्यमान हैं।
किसकी क्या सोच हैं, वह कितनी दूर जा सकता हैं, उससे देश व समाज का कितना भला होगा। उसका अंदाजा लगाना बहुत ही आसान हैं। बिहार में हमारी मां बहनें, चावल पका या नहीं, इसका अंदाजा, तसले पर उबल रहे चावल के एक दो कण को अंगूलियों पर रखकर, उसे मसल कर, पता लगा लेती हैं। ठीक उसी प्रकार जेएससीए कैसे-कैसे लोगों के हाथों में हैं, वह तो जेएससीए के आलाधिकारियों के आचरण से पता लग जाता हैं, उसके गतिविधियों से पता लग जाता हैं। जरा जेएससीए की कारगुजारियां देखिये ------------
1. यहां के जेएससीए के आलाधिकारियों ने पैसे लेकर, उद्घाटन समारोह के सीधा प्रसारण एक चैनल के हाथों बेच दिया। नतीजा लोग, उद्घाटन समारोह को ठीक से नहीं देख पाये। विजूयल इतना घटिया आ रहा था कि जिसकी जितनी निंदा की जाय कम हैं।
2. उद्घाटन समारोह में राज्य के सभी आइपीएस व आइएएस आलाधिकारियों व उनके परिवारों को आमंत्रित किया गया था, जो बचे उसमे गर्वनर और कार्यवाहक मुख्यमंत्री के परिवारों ने कब्जा जमाया। आम जनता इस पूरे उद्घाटन समारोह से दूर रही। वो जनता, जिसकी दुहाई, उद्घाटन समारोह के अंदर भाषण करनेवाले महानुभाव बारंबार दे रहे थे।
3. जेएससीए के एक आलाधिकारी ने अपने घर में क्रिकेटरों को बुलाया। इसकी महक पत्रकारों को लगी। पत्रकार जब उक्त आलाधिकारी के घर गये। तब वहां पहुंचे पत्रकारों और छायाकारों को धकियाने में लग गये, वहां कार्यरत पुलिस अधिकारी। ये इशारा भी मिला था, जेएससीए के आलाधिकारियों द्वारा कि - पत्रकारों को सबक सिखाओ।
4. जेएससीए के एक आलाधिकारी ने आनेवाले समय में लोकसभा चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर नजर ऱखकर, जमकर अपने चहेतों को क्रिकेट पास रेवड़िय़ों की तरह बांटी, और माननीय विधायकों और अन्य सम्मानित लोगों को ठेंगा दिखा दिया।
5. हद तो तब हो गयी, जब उक्त आलाधिकारी ने एक अखबार में ये बयान दे दिया कि उसने उनलोगों को पास दे दिया हैं, जो सम्मानित हैं। यानी जिन लोगों को उसने पास दिलवाया, वे सम्मानित हैं और जिन्हें नहीं दिलवाया वो अपमानित। अर्थात सम्मान देने और लेने का उसने दुकान खोल लिया हैं क्या।
बात ये हैं कि हर व्यक्ति की अपनी महत्वाकांक्षा होती हैं। महत्वाकांक्षा होनी भी चाहिए, पर किसी को नीचे गिराने की अंदर भावना पालना, ठीक नहीं, क्योंकि ये ही एक भावना, किसी भी व्यक्ति, संस्थान व समाज को नीचे ले जाने के लिए काफी होती हैं। फिर भी बहुत सारी गड़बड़ियों और संभावनाओं के बीच रांची में एकदिवसीय क्रिकेट नजर आया। इसकी हमें भी खुशी हैं।