Friday, February 1, 2013

बेचारा मुर्गा, बयानवीर नेता और कोयलांचल के ज्ञानवान पत्रकार..........................

कोयलांचल में पिछले हफ्ते एक बात थोड़े समय के लिए चर्चा में रही। वो बात थी -- भाजपाईयों द्वारा गणतंत्र दिवस के दिन मुर्गा खाने की । एक चैनल जो दक्षिण भारत के एक शहर से हिन्दी क्षेत्रों में संचालित हैं, उसने इस समाचार को गणतंत्र दिवस के दिन प्रसारित किया था। फिर क्या था -- यहां के बयानवीर नेताओं के इस पर बयान आने शुरु हुए। उन नेताओं के इस बयान को देख और पढ़कर हमें बड़ी निराशा हुई। निराशा इस बात को लेकर हुई कि यहां के नेता जिन्हे ये पता नहीं कि मांसाहार कब मना हैं और कब मना नहीं हैं वे देश और समाज को क्या दिशा देंगे। ये तो मुर्गा और मछली से उपर अब तक उठ ही नहीं पाये हैं। वे बिना सिरपैर के बयान देने शुरु कर दिये थे। जिस चैनल ने उक्त न्यूज को प्रसारित किया था, वो तो अपने समाचार को महिमामंडित करने के लिए इसका फौलोअप भी शुरु कर दिया था।
जब भी कोई समाचार प्रसारित अथवा प्रकाशित किया जाता हैं तो उस समाचार की वस्तुस्थिति का आकलन किया जाता हैं, तब प्रसारित या प्रकाशित किया जाता हैं, पर यहां तो कुछ और ही हो रहा था। हद तो भाजपा के नेताओं की थी, वे इस प्रकार के बयान दे रहे थे, जैसे लग रहा हो, कि उन्होंने बहुत बड़ा पाप कर दिया हो। धनबाद के भाजपा सांसद पी एन सिंह का बयान था कि उन्होंने मांस उस दिन नहीं खाया था, वे तो अपना टिफीन लेकर चलते हैं, शाकाहार भोजन ग्रहण किया था। भाजपा जिलाध्यक्ष हरि प्रकाश लाटा भी इस पूरे प्रकरण पर काउंटर करने के बजाय, स्वयं को बचाते नजर आये, जैसे लग रहा था कि गर उन्होंने इस पर बयान दिया कि उन्होंने या भाजपाईयों ने उस दिन मुर्गा खाया था, तो इज्जत चली जायेगी, यहीं हाल भाजपा के राज सिन्हा का था, जिनका बयान था कि पूर्णमासी होने के कारण, उन्होंने मुर्गा को हाथ तक नहीं लगाया। अरे भाई हाथ लगा भी देते तो क्या हो जाता। गणतंत्र दिवस के दिन मुर्गा खाना या खिलाना पाप थोड़े ही हैं, या कानून का, अथवा संविधान का उल्लंघन थोड़े ही हैं, गर आपको बुद्धि नहीं हैं, आप मीडिया के अनुसार चलते हैं तो इसमें संविधान और कानून क्या कर सकता हैं, आप हमेशा मूर्ख बनते रहिये और वो बनाते रहेंगे।
ये तो रही भाजपा और अब विपक्षी नेताओं के बयान देखिये। झारखंड विकास मोर्चा के जिलाध्यक्ष ज्ञान रंजन सिन्हा का बयान आ गया कि भाजपाईयों को बापू की प्रतिमा के समक्ष जाकर, उपवास करना चाहिए, प्रायश्चित करना चाहिए, सांसद पर मुकदमा करना चाहिए। अरे भाई भाजपाईयों को क्यों प्रायश्चित करना चाहिए। क्या उन्होंने गुनाह कर दिया, पहले गुनाह तो बताओं, गणतंत्र दिवस के दिन मांस खाना गुनाह तो हैं नहीं, फिर मुकदमा कैसा। लगे हाथों बयानवीर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष मन्नान मल्लिक भी आपसे बाहर हो गये। इनके बयान देखिये -- इन्होंने तो सब पर कानूनी कार्रवाई करने की बात कह दी, पर कानूनी कार्रवाई करेगा कौन, कैसे करेगा। ये हमें आज तक समझ में नहीं आया। सिर्फ गणतंत्र दिवस के दिन मुर्गा खाने से, कानूनी कार्रवाई हो जायेगी, तब तो बहुत लोगों को जेल में जाना पडे़गा।
हमें गुजारिश हैं, बयानवीर नेताओं से कि कोई बयान देने के पहले वे दस बार सोंचे कि वे जो बयान देने जा रहे हैं, उस बयान का कोई अर्थ भी हैं या यूं ही अनर्गल बयान दे रहे हैं, वो भी अखबार में नाम नामक कहानी के प्रमुख पात्र गुरदास की तरह, जो अखबार में नाम छपाने के लिए उटपुटांग हरकतें कर दे रहा था। साथ ही यहां के पत्रकारों से भी, कि वे समाचार प्रसारित व प्रकाशित करने के पहले वे भी दस बार सोचे कि क्या गलत हैं क्या सही। बेवजह गलत खबरें दिखाकर, उसे प्रसारित कर, बेवजह किसी बात को तिल का ताड़ न बनाये और न ही उन बेवजह बातों को महिमामंडित करें, क्योंकि इससे अतंतः मीडिया की छवि आमजनमानस में खराब होती हैं। अंततः गणतंत्र दिवस के दिन मुर्गा खाना कोई अपराध नहीं हैं और न ही कानून की अवहेलना। ये बात मीडिया और नेताओं को भलीभांति जान लेना चाहिए।