Thursday, May 16, 2013

पटना की परिवर्तन रैली, नीतीश और लालू दोनों के लिए एक संदेश हैं, जनता की भावना को समझिये.....

15 मई को पटना में लालू की परिवर्तन रैली बहुत कुछ कह रही हैं। ये लालू के लिए भी सबक हैं और नीतीश के लिए भी। नीतीश के लिए ये कि उनके पास खोने के सिवा कुछ नहीं और लालू के लिए ये कि उन्होंने जनता द्वारा मिली सत्ता का जिस प्रकार दुरुपयोग किया, जनता आज तक वो भूली नहीं, यानी कहीं न कहीं वो दर्द जनता के बीच आज भी विद्यमान हैं। ये अच्छी बात हैं कि लालू ने इस परिवर्तन रैली के दौरान कोई ऐसी बात नहीं की, जो जनभावनाओं को ठेस पहुंचाये। ये अलग बात हैं कि वे अपने विरोधियों की तुलना कुत्तों से करने से नहीं चुके। लालू प्रसाद को मालूम होना चाहिए कि अपने विरोधियों को भी सम्मान करना, बिहार की संस्कृति रही हैं। गर आप इस प्रकार की संस्कृति को तिलांजलि दे, जब ये कहते हैं कि आप बिहार के सम्मान को बरकरार रखेंगे तो आम जनता को शक होने लगता हैं।
जब कोई राजनीतिक दल सत्ता से दूर रहे, तो उसे आत्ममंथन करना चाहिए। वो आत्ममंथन तब तक करना चाहिए, जब तक वो समस्याओं को न जान लें, कि किन कारणों से उसे सत्ता से वंचित रहना पड़ा हैं और जब समस्या मालूम हो जाये तो उसका समाधान करना चाहिए। हमें लगता है कि लालू जी ने अभी भी, इस ओर ध्यान नहीं दिया, गर ये ही हाल रहा तो नीतीश भले ही अपनी कुछ सीटे गवां दे, पर बहुमत उन्हें ही मिलेगी। ये लालू जी को मालूम होना चाहिए, जबकि सच्चाई ये हैं कि नीतीश विकास - विकास का हौवा खड़ाकर, इतने अहं में डूब गये हैं कि उन्हें अपने सामने सभी लोग जीरो दिखाई दे रहे हैं। जिसका फायदा लालू को उठाना चाहिए, पर लालू इसका फायदा उठा पायेंगे, इस पर हमें संदेह हैं। वह भी तब जबकि लालू को आज भी बिहार का एक बड़ा वर्ग अपना नेता मानता हैं। ऐसे में लालू जी को चाहिए कि वे स्वयं को पहचाने।
कुछ सवाल आज भी लालू से हैं कि जब आप रेलमंत्री बनते हैं और रेल मंत्रालय को नई दिशा दे देते है, तब आपने 15 सालों में बिहार का कबाड़ा क्यूं बनाया, और इसके लिए आप बिहार की जनता से क्यूं क्षमा नहीं मांगते। क्षमा तो अच्छे - अच्छे पालिटिशयनों ने मांगा हैं, अपनी गलतियों का पश्चाताप करते हुए, जनता से माफी मांगना कोई बुराई नहीं, क्योंकि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि हैं। फिर जनता को विश्वास दिलाना कि वे उनकी विकास को लेकर चिंतित हैं, ये भी जनता को दिखाना होगा, पर आप कर क्या रहे हैं, अपने बेटे और बेटियों को लांच कराने में लगे है, यानी पत्नी और ससुराल से शुरु करते हुए अब बेटे और बेटियों तक पहुंच गये। लालू जी, आप ये जान लीजिये, जिसमें नेतृत्व करने की क्षमता होती हैं, वहीं नेता होता हैं, आप लाख अपने बेटे - बेटियों को लांच कर ले, गर उनमें क्षमता होगी तो खुद ब खुद टाप के राजनीतिज्ञ हो जायेंगे। आपने तो एक बेटे को क्रिकेटर बनाने की सोची, क्या वो धौनी बन गया। ये छोटी सी बात आपको क्यों नहीं समझ आती। अरे लालूजी आपको ईश्वर ने बिहार की जनता की सेवा करने को बनाया हैं, आपके परिवार की सेवा के लिए आपको नहीं बनाया। आप परिवार को छोड़िये, जनता के बीच जाइये। सारी जनता को अपना परिवार समझिये। उनके दर्द को समझिये, फिर देखिये। नीतीश क्या, सारे के सारे लोग आपके पीछे रहेंगे, पर ऐसा कर पायेंगे। हमें संदेह हैं.......................................

Saturday, May 11, 2013

नाच न जाने आंगन टेढ़ा....................

हां भाई, नाच न जाने आंगन टेढ़ा......................
रांची से एक प्रकाशित अखबार ने लोगों से राय मांगी कि आखिर राज्य में स्थायी सरकार नहीं बन पा रही , इसके कारण क्या हैं। इस मुद्दे पर बुद्धिजीवियों को कई भागों में बांटा - आदिवासी बुद्धिजीवी, दलित बुद्धिजीवी, सामान्य बुद्धिजीवी और पता नहीं क्या - क्या। अरे बुद्धिजीवी तो बुद्धिजीवी होते हैं। इसमें भी ठेला - ठेली चल रही हैं। सभी ने एक स्वर से कहा कि यहां चूंकि सीटें बहुत ही कम हैं, इसलिए विधानसभा में बहुमत किसी एक दल को नहीं मिल पाती, गर इसकी संख्या 150 - 160 के आस पास हो जाये तो यहां स्थिति सुधर जायेगी, पर इसकी गारंटी क्या हैं, इसकी गारंटी कौन देगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं। सच्चाई ये हैं कि जहां 150 - 160 से भी अधिक सीटे हैं, वहां भी लोकतंत्र में इसकी गारंटी नहीं होता कि वहां किसी एक दल को बहुमत मिल ही जायेगा। बहुमत मिलना या न मिलना, ये कई कारणों पर निर्भर करता हैं। क्या ये बुद्धिजीवी बता सकते हैं कि दिल्ली प्रदेश में तो विधानसभा की कुल सीटे, झारखंड से भी कम हैं, तो वहां किसी एक दल को बहुमत कैसे मिल जाता है। हम आपको बता दें कि दिल्ली में विधानसभा की कुल सीटे 70 है। यहीं नहीं हिमाचल प्रदेश में तो विधानसभा की कुल सीटे, दिल्ली से भी कम यानी 68 हैं तो वहां किसी पार्टी को बहुमत कैसे मिल जाती हैं। इस सवाल का उत्तर यहां के बुद्धिजीवियों के पास नहीं हैं। 
मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि यहां किसी एक दल को बहुमत क्यों नहीं मिल पाता। यहां किसी एक दल को इसलिए बहुमत नहीं मिल पाता, क्योंकि सारी पार्टियां, यहां की जनता का विश्वास खो चुकी हैं। किसी ने अपने कीर्तियों से जनता का विश्वास जीतने की कोशिश नहीं की। नतीजा सामने हैं। हम सबसे पहले बात करें - राष्ट्रीय पार्टियों का। राष्ट्रीय पार्टियों में भाजपा और कांग्रेस प्रमुख हैं। जरा बता सकते है कि इन पार्टियों के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चरित्र क्या हैं। इनके स्थानीय नेताओं ने कौन सा चरित्र दिखाया हैं, जिसके कारण जनता इनको अपना आदर्श माने। सभी ने स्व से अधिक किसी पर ध्यान ही नहीं दिया तो भला जनता, इन्हें वोट क्यूं दे। रही बात क्षेत्रीय पार्टियों की। तो लीजिये सबसे पहले बात झामुमो की। ये वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा हैं जिसके सांसद घूस लेकर नरसिंहा राव सरकार को बचाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। ये वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा हैं, जिसके सुप्रीमो कभी - कभी झारखंडियों और बाहरियों के बीच ऐसे - ऐसे बयान दे देते हैं, कि यहां की जनता, इन्हें वोट दे या न दे, इसी उधेड़बून में पड़ी रहती हैं। आज भी बिहारियों और झारखंडियों में भेदभाव को बढ़ावा देने में ये पार्टियां सर्वाधिक भूमिका निभाती हैं, जबकि मध्यप्रदेश से अलग हुआ छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से अलग हुआ उत्तराखंड में इस प्रकार का भेदभाव राजनीतिज्ञ नहीं पैदा करते। वहां स्थानीय मुद्दा का हल निकाल लिया गया, पर यहां अभी भी जारी हैं। आज भी झामुमो जैसी पार्टियों में परिवारवाद सर्वाधिक प्रमुख मुद्दा होता हैं। कहलाते हैं गुरुजी, पर अपने बेटे - बहुओं और पत्नी से उपर ही नहीं उठ पाये। जहां ऐसे लोग रहेंगे, वहां किसी दल को बहुमत मिलता हैं क्या। वहां तो वहीं होता हैं, जो फिलहाल यहां दीख रहा। अपना चरित्र नहीं सुधारते और सीटों को बढ़ाने की बात करते हैं। अरे झारखंड विधानसभा की कुल सीटे कितना भी बढ़ा लो, गर चरित्र ही नहीं हैं, तो फिर सुधार कहां से होगा, ये तो वहीं बात हुई, नाच न जाने अंगना टेढ़ा..........
रही बात भ्रष्टाचार की, तो यहां सारे के सारे पार्टियों ने भ्रष्टाचार का रिकार्ड बनाने में एक दूसरे को पछाड़ने की कोशिश की। किस पार्टी की बात करें, सभी ने अपना नंगापन दिखाया हैं। सीबीआई की रिकार्ड, उसका गवाह हैं।अरे हद तो तब हो गयी, जब थैला भरकर नोट लेकर दूसरे जगहों से धन्ना सेठ आते हैं और यहां के विधायक लाइन लगाकर, अपना वोट बेचते हैं और राज्यसभा में ऐसे - ऐसे लोगों को जीताकर भेज देते हैं कि वो जीतने के बाद, झारखंड में आना तक नहीं पसंद करता और बाद में अपना दल भी बदल लेता हैं, तो भाई जहां ऐसे - ऐसे निर्लज्ज रहते हो, वहां किसी दल को बहुमत कैसे मिलेगा। ये बात आपके समझ में क्यों नहीं आती, महाशय।

Wednesday, May 8, 2013

वाह री कर्नाटक की जनता, तुम्हारा भी जवाब नहीं..............

सबसे सुंदर, सबसे प्यारा
मेरा देश, मेरा देश
भ्रष्टाचारी यहां पनपते
देशद्रोही यहीं पे बढ़ते
अपनी जमीन पर, देश के नेता
दूसरे देश से कब्जा करवाते
जब मीडिया, अरे शोर मचाती
तब चीन के आगे, नाक रगड़ते
सबसे सुंदर, सबसे प्यारा
मेरा देश, मेरा देश
यहां की जनता
मस्त हैं रहती
मुंहमांगी रकम से, वोट बेचती
भ्रष्टाचारियों को खूब जीताती
भ्रष्ट पार्टियों को बहुमत देती
कहती लूटो, मेरे नेता
जमकर शोषित कर लो नेता
कर्नाटक क्या, दिल्ली क्या
सब जगह, तुम  बढ़ते जाओ
अपने देश को रौंद रौद कर
अपने महल बनाते जाओ
लूट लूट कर अपने पैसे
विदेशी बैंकों में भरते जाओ
जब तक जिंदा रहो, लूटो तुम
तुम्हें मदद हम करते रहेंगे
वोटों से और दिल देकर
तुम्हारा स्वागत करते रहेंगे
मेरा एक ही सपना भैया
मेरे दादा, कभी गुलाम थे
मैं स्वतंत्र, क्यू अरे कहाया
मैं परतंत्र होना चाहता हूं
कैसे सपना  पूरा होगा
जब तुम, नीचे से उपर तक
भ्रष्ट न होगे, भ्रष्ट न होगे
इसी हेतु ईश्वरीय प्रार्थना
सब नेता अरे भ्रष्ट हो जाये
नेता क्या
डाक्टर, इंजीनियर
यहीं क्यूं
शिक्षक, छात्र भी 
भ्रष्ट हो जाये, भ्रष्ट हो जाये
ताकि हम भारतवासी
दिल खोल कहे,
संपूर्ण विश्व से
देखो हमने रिकार्ड बनाया
विश्व का नं. एक हैं देश 
भारत देश भारत देश
भ्रष्टाचारियों का हैं देश
भारत देश, भारत देश
बधाई हो कांग्रेस पार्टी को। कर्नाटक में वो सरकार बनाने जा रही हैं। बधाई कर्नाटक की जनता को, कि उसने क्या जनादेश दिया हैं। जातियता में बहकर, सारे के सारे भ्रष्टाचारियों को जीताया हैं। ऐसे भी कर्नाटक की जनता, अन्य प्रदेशों से अलग थोड़े ही हैं। भारतवंशीय हैं, इसलिए भारतवंशियों का खून तो इनमें भी होगा। इसलिए दिल खोलकर, चीन के आगे नाक रगड़नेवाली, सीबीआई को अपने हाथों नचाकर, विदेशों में अपने पैसे समायोजित करानेवाली पार्टी में अपना विश्वास व्यक्त किया। अब मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये देश जरुर परतंत्र होगा। अरे परतंत्र होगा क्या, परतंत्र तो हैं ही। जो देश अपनी सीमा के अंदर 20 दिनों तक दूसरे देश की सेना का स्वागत करने के लिए पलक पावड़े बिछाये, उसे देश की औकात क्या। इस देश में कभी किसी मां के कोख से सुना हैं भगत सिंह पैदा हुआ करते थे। अब तो इस देश में येदियुरप्पा, राहुल, प्रियंका, मनमोहन, पवन  कुमार बंसल, ए राजा, दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल, अरे कितनो का नाम लिखूं, ये पैदा ले रहे हैं। ये देश को कहां ले जा रहे हैं, ये किसी से छुपा नहीं हैं। बार -बार हमारे मित्र कहते हैं कि ये देश बहुत तरक्की करेगा, मैं बार - बार कहता हूं कि ये देश गर तरक्की करेगा, तो फिर चीन के आगे नाक कौन रगड़ेगा, अमरीका का पांव कौन पखारेगा। कम से कम इन देशों में गुलामों की नौकरी करनेवाला एक वर्ग भी तो चाहिए। ऐसे में ये काम करने के लिेए भारतीयों जैसा दूसरा, पूरे विश्व में फिलहाल कोई देश नहीं दीखता। इसलिए गर्व से बोलो हम भारतीय हैं।
हम भ्रष्टाचारियों को वोट देते हैं।
हम भ्रष्टाचारियों में विश्वास व्यक्त करते हैं।
जो देश हमे आंख दिखाता हैं, उसके आगे हम नाक रगडते हैं।
हम अपना जमीर बेचकर, जयचंद और मानसिंह बनने को लालायित रहते हैं।
हम भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद को मूरख और राहुल तथा प्रियंका में आदर्श ढुंढते हैं।
जय हो भारत की..........................जय हो कर्नाटक की जनता की।
जिसने भ्रष्टाचारियों को वोट देकर, उसमें विश्वास व्यक्त कर भ्रष्टाचारियों का मनोबल बढ़ाया। 

Sunday, May 5, 2013

क्यों न इस मीडिया कप का नाम गुंडा कप रख दिया जाय..........................

..................और एक बार फिर पत्रकारिता की आड़ में वो सब हुआ। जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते। पत्रकारों ने वो कार्य किया, जिसकी जितनी निंदा की जाय कम है। वो भी अपने संपादक के नेतृत्व में, गुंडागर्दी की। अंपायरों की धुनाई की। अंपायरों को भद्दी - भद्दी गालियां दी। अंपायरों को धमकियां दे दी। वो भी सिर्फ एक मैच जीतने के लिए। कहां जाता हैं कि क्रिकेट संभ्रांतों का खेल हैं, पर जिस प्रकार से इस क्षेत्र में येन केन प्रकारेन केवल जीत का रसास्वादन करनेवाले लोग शामिल हो रहे हैं। मैं कह सकता हूं कि ये अब गुंडों का खेल हो गया हैं। यानी अब आप जब भी क्रिकेट खेलने जाइये तो गुंडे और असामाजिक तत्वों को अपने साथ अवश्य रखे, अच्छा रहेगा कि क्रिकेटर के रुप में हाथ - पांव से मजबूत गूंडों को ही क्रिकेटर बनाइये। इससे फायदा ये रहेगा कि गर आप हार गये तो इन गुंडों से असली काम लेते हुए, आप अपनी टीम को जीत दिलवा सकते हैं।
मैं ये बाते आज खुश होकर नहीं लिख रहा। दरअसल रांची जिला क्रिकेट एसोसिएशन ने स्व. शशिकांत पाठक मेमोरियल क्रिकेट मीडिया कप का आयोजन किया हैं। जिसमें पत्रकारों में क्रिकेट के प्रति उऩकी सोच को रेखांकित करने, खेल भावना को पुष्ट करने का संकल्प निहित हैं, पर जिस प्रकार से इस मीडिया कप में कुछ अखबारों की टीम शामिल हो रही हैं, और सिर्फ जीत का स्वाद चखने के लिए, मैदान में उतर रही हैं, उससे यहीं लगता हैं कि शायद ही ये मैच खेल भावना को पुष्ट कर रहा हैं। 
कुछ दिन पहले प्रभात खबर के संपादक विजय पाठक ने कशिश और प्रभात खबर के बीच चल रही क्रिकेट मैच के दौरान, मैदान में जाकर अंपायर को धमकाया था और आज रही सही कसर पूरी कर दी, दैनिक भास्कर ने। दैनिक भास्कर के लोगों ने अपने संपादक के नेतृत्व में वो हरकतें की, जिसकी जितनी भर्त्सना की जाय कम हैं। मैच कोई जीते, कोई हारे। कहां जाता हैं कि क्रिकेट नहीं हारना चाहिए, पर यहां क्रिकेट हारा। आइये हम आपको बता देते है कि क्या हुआ। दरअसल हेहल के ओटीसी ग्राउंड में कशिश और दैनिक भास्कर के बीच मैच था। कशिश की टीम पहले खेलते हुए 20 ओवरों में 6 विकेट खोकर 120 रन बनाये। जवाब में दैनिक भास्कर की टीम 20 ओवर में 120 रन बनाकर आल आउट हो गयी। नियम के मुताबिक मुकाबला बराबर रहा। मैच का परिणाम सुनिश्चित करने के लिए, नियम के मुताबिक अंपायरों ने एक - एक ओवर दोनों टीम से खेलने को कहा। दैनिक भास्कर की टीम पहले खेलते हुए एक ओवर में सात रन बनाये, जवाब में कशिश की टीम को उतरना ही था कि दैनिक भास्कर की टीम अंपायरों से उलझ गयी। भद्दी - भद्दी गालियां, अपमानजनक शब्दों का प्रयोग, धक्का - मुक्की ये अंपायरों के साथ करने लगे। इनकी हरकतें ऐसी थी कि वहां मैच देख रहे लोग भी भौचक्के रह गये। वहां बच्चे भी थे, जो इनकी हरकतों को देख रहे थे। ये वे लोग थे, जो नित्य प्रतिदिन देश व समाज को देवदर्शन और चरित्र का पाठ कराते हैं, पर खुद आज वे वो कार्य कर रहे थे, वो भी अंपायरों के साथ, जिसे देख एक सामान्य आदमी शर्मिंदा हो जाये, पर इन्हें शर्म नहीं आ रही थी। जमकर तमाशा किया। वो हर हाल में जीतना चाहते थे, पर अंपायरों का कहना था नियमानुसार ही जीत - हार का फैसला होगा। अंपायरों ने जब देखा कि दैनिक भास्कर, खेलने को तैयार नहीं हैं, तो उसने कशिश को जीत दे दी, पर दैनिक भास्कर के लोगों को गुस्सा इतना था कि वो कुछ भी सुनने और मानने को तैयार नहीं थे। अंपायर के इस फैसले से वे और आग बबुला हो गये। फिर अंत में फैसला ये हुआ कि मामला रांची जिला क्रिकेट एसोसिएशन के पास जायेगा और रांची जिला क्रिकेट एसोसिएशन फैसला करेगी कि कौन जीता और कौन हारा।
नियम तो यहीं हैं कि अंपायर का डिसीजन अंतिम होता हैं। नियम तो ये हैं कि गर आप खेलते नहीं हैं तो दूसरी टीम को जीत करार देने का अंपायर को हक हैं, पर आप नियम का पालन नहीं करेंगे और न किसी और को करने देंगे। हमेशा जीत का ही स्वाद चखना चाहेंगे, तो ये तो साफ-साफ गुंडागर्दी हैं। इसलिए हम तो चाहेंगे कि इस मीडिया कप का नाम बदलकर गुंडा कप रख दिया जाये। जो जितना बड़ा गुंडा, जिसकी जितनी बड़ी गुंडागर्दी, उसका कप पर कब्जा। बताइयें कैसी रही..................................

Saturday, May 4, 2013

बेचारा बंसल मामा, रेलमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देगा......

रेलमत्री पवन कुमार बंसल इस्तीफा नहीं देंगे। कांग्रेस भी कह चुकी हैं कि पवन कुमार बंसल इस्तीफा नहीं देंगे। भला बंसल इस्तीफा क्यों दे, इस्तीफा तो वो देता हैं, जिसके पास जमीर होती हैं। अब कांग्रेसियों के पास जमीर तो हैं नहीं, तो भला रेलमंत्री अपने पद से इस्तीफा क्यों दे। इस्तीफा तो दिया था, हमारे लाल बहादुर शास्त्री ने, जब उनके कार्यकाल में एक रेल दुर्घटना हो गयी थी। हम आपको बता दें कि लाल बहादुर शास्त्री इस घटना के लिए जिम्मेवार नहीं थे, फिर भी नैतिकता के आधार पर कि उनके कार्यकाल के दौरान इतनी बड़ी दुर्घटना हुई थी उन्होंने रेलमंत्रालय संभालने से ही इनकार कर दिया था।
आज पवन कुमार बंसल को देखिये। इसके भांजे विजय कुमार सिंगला को सीबीआई ने 90 लाख रुपये घूस लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया। यह रकम विजय को उन्हें बतौर रिश्वत दो दिन पहले ही रेलवे बोर्ड के सदस्य बनाये गये महेश कुमार ने भिजवाई थी। पूरी डील दो करोड़ की थी और फिर भी बेशर्मी से रेलमंत्री पवन कुमार बंसल कहता है कि वो इस्तीफा नहीं देगा। कांग्रेस भी पवन कुमार बंसल के बचाव में निर्लज्जता के साथ खड़ी हो गयी हैं, ऐसे भी निर्लज्ज को लज्जा कहा आती हैं। कांग्रेस अच्छी तरह भारतीय जनता की नब्ज टटोल चुकी हैं, वो जानती हैं कि इस देश में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं बनता, इस देश में भारत की सीमा चीन छोटा क्यूं न कर दें, ये मुद्दा नहीं बनता। जो जितना बड़ा भ्रष्टाचारी, वो उतना बड़ा नेता, इसलिए भ्रष्टाचार में लिप्त रहो, चीन से अपने देश की सीमा छोटी कराते रहो और फिर निर्लज्जता के साथी तीसरे टर्म के लिेए वोट मांगने को तैयार रहो। 
जनता के पास विकल्प तो हैं ही नहीं, वो क्या करेगी, अंततः कांग्रेस के साथ ही खड़ी होगी। गर किसी कारण से बहुमत नहीं भी आया तो निर्लजज्ता की श्रेणी में खड़े होने के लिए लालायित नीतीश एक न एक दिन, उनके साथ खड़े हो ही जायेंगे। बिहार में लालू और रामविलास, यूपी में मुलायम और मायावती  तो पहले से ही सोनिया नाम केवलम् का मंत्र जाप कर रहे हैं, दक्षिण में करुणानिधि और बची खुची वामपंथी पार्टियां, ये क्या करेंगी, अतंतः उन्हीं के शरण में आयेगी। देश भाड़ में जाय, हमने थोड़ी ही ठीका ले रखा हैं, आराम से लूटेंगे, विदेश में पैसे रखेंगे और फिर पूरे परिवार के साथ विदेश में कहीं बस जायेंगे। ये देश कोई रहने का हैं। देश तो इटली हैं, जहां की सोनिया माता हैं, जिनकी कृपा से राहुल और प्रियंका जी हैं। देश तो अमरीका, इंगलैंड और स्विटजरलैंड हैं, उनकी सरकारों के जूतों पर अपना नाक रगड़कर, वहां का नागरिकता प्राप्त कर लेंगे, यानी जब तक जिंदा रहेंगे, मस्ती में रहकर, पूरा जीवन गुजार देंगे।
इसलिए पवन कुमार बंसल, उसी श्रेणी के नेता हैं। सर्वदा सोनिया-राहुल और प्रियंका में अपना सर्वस्व लूटाने, चाटुकारिता करने, चरणवंदना करने, गणेश परिक्रमा करने में बड़ी ही श्रद्धा दिखाते हैं। जिसके एवज में वरदान स्वरुप रेल मंत्रालय उन्हें संभालने को मिला। आपको याद होगा, जब वे पहली बार रेलमंत्री बने थे, तो अपने भाषण में सोनिया जी की बड़ी ही श्रद्धा से नाम लिया था, राजीव गांधी का बड़ा ही नाम लिया था। उन्हें दुसरा कोई नाम याद ही नहीं था, क्योंकि जब सोनिया और राहुल जैसे भगवन् की उनके उपर कृपा हैं, तो जरुरत क्या हैं, अन्य का नाम लेने की। धन्य हैं, आज के नेता, आज के रेलमंत्री पवन कुमार बंसल जो रेल मंत्री के पद पर रहते हुए, अपने भांजे से सुंदर - सुंदर कार्य कराते हुए, भ्रष्टाचार का नया रिकार्ड बनाते हैं, ऐसे ही नेताओं से तो भारत की सुंदर तस्वीर बनती हैं। हम चाहेंगे कि देश में एक निर्लज्जता का भी एवार्ड देने की परंपरा की शुरुआत हो, ताकि ऐसे निर्लज्जों को पुरस्कृत किया जा सके, क्योंकि इन्होंने निर्लज्जता का रिकार्ड बना रखा हैं।

Thursday, May 2, 2013

सरबजीत की बहन दलबीर की ललकार के बावजूद भारतीय जगेंगे, मनमोहन और सोनिया की जमीर जगेगी, इसकी संभावना हमें दूर - दूर तक नहीं दीखती........

भारतीय बेटी और बहन - दलबीर कौर ने आज मीडिया के समक्ष जो बाते कही, वो दिल को दहलानेवाला हैं। अपने भाई सरबजीत की पाकिस्तान में की गयी हत्या के बाद जो दलबीर ने कहा, वो प्रमुख वाक्यांश इस प्रकार हैं...................
पाक में चुनाव के चलते सरबजीत की हत्या।
भारतीय होने की वजह से सरबजीत का कत्ल।
लाहौर के जिन्ना अस्पताल की घटना - सरबजीत का हाल पूछने पर डाक्टर हंसते थे।
सरबजीत की बहन ने कहा - अंसार बर्नी, पाकिस्तान का बड़ा मानवाधिकार कार्यकर्ता, जिसने कहा 25 करोड़ दो, सरबजीत लो।
चुनाव के लिए जरदारी ने मरवाया।
पाक को पता था सरबजीत जिंदा नहीं हैं।
सरबजीत देश के लिए शहीद हुआ।
पाक मे हमारे साथ सही बर्ताव नहीं।
सही कोशिश होती तो सरबजीत जिंदा रहता।
पाक ने भारत की पीठ पर छुरा घोपा।
अब पाक को बर्दाश्त करने का वक्त नहीं।
बेईमान हैं पाक, कायर हैं पाक।
पाक को सारी दुनिया को जवाब देना होगा।
और अब दुनिया का सबसे घटिया मीडिया बीबीसी ने क्या लिखा, उसे भी जानिये - बीबीसी ने जो समाचार बनायी है। उसमें उसने सरबजीत को भारतीय जासूस बताया हैं। पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाकर बीबीसी ने बता दिया कि वो भी भारत और भारतीयों के प्रति क्या रुख रखता हैं, यानी उसने भी भारत के साथ पत्रकारिता के नाम पर गद्दारी की सारी सीमा रेखा लांघ दी। ऐसे भी बीबीसी कभी भी भारत और भारत के प्रति संवेदना नहीं दिखायी, इसलिए इस गद्दार बीबीसी से भारत प्रेम की संभावना तलाशना मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं। पता नहीं, कैसे भारतीयों का एक वर्ग - बीबीसी से प्रेम रखता हैं और उससे आजीविका चलाता हैं। मुझे तो बीबीसी न कल अच्छा लगता था और ऩ आज ही अच्छा लगा, क्योंकि इस बीबीसी ने भारत के प्रति आज भी आग उगल कर करोड़ों भारतीयों के छाती पर गहरे जख्म दिये हैं। 
पाकिस्तान और चीन से भारतीयों के प्रति प्रेम की संभानाएं तलाशना भी कायरता हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ( सोनिया गांधी के इशारे पर ठुमके लगानेवाले प्रधानमंत्री ), या अन्य मंत्रालय संभाल रहे मंत्रियों का समूह जो सोनिया के इशारे पर ठुमके लगाते हैं, उन्हें सरबजीत की हत्या से क्या लेना - देना, एक बार फिर घड़ियाली आंसू बहायेंगे। दलबीर को झूठे दिलासे दिलायेंगे और आगे  बढ़ जायेंगे। सरबजीत की हत्या के बाद भी शायद भारतीयों के आंख खुले। क्योंकि मैं जानता हूं कि ये भारतीय कुछ दिनों तक पाकिस्तान को भला - बुरा कहेंगे और फिर पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने, पाकिस्तान के साथ संगीत का कार्यक्रम शेयर करने और पाकिस्तानियों को भारत में बुलाकर उसका स्वागत करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। इसके बदले पाकिस्तान उसके बदले में हर जगह, हर मोर्चे पर हमें नीचा दिखायेगा, वो हमारे जवान का सरकलम करके, हमारी गैरत को ललकारेगा और हम अपनी सेनाओं को सरहद तक ले जाकर, फिर अपने अपने बैरकों में वापस ले आयेंगे। 
हद तो तब हो गयी कि चीन हमारी सीमा में 20 किलोमीटर अंदर घूस आया हैं और हमारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ( सोनिया गांधी के इशारे पर ठुमके लगानेवाला प्रधानमंत्री ) कहता हैं कि इस मामले को ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए। हां प्रधानमंत्री जी, जरुरत क्या हैं तूल देने का। आपका जमीन तो गया नहीं हैं, आप तो आराम से सोनिया के इशारे पर ठुमके लगाते हुए प्रधानमंत्री कहलायेंगे और फिर दूसरे देश जाकर आराम फरमायेंगे। आपको क्या पता कि देश की मिट्टी क्या होती हैं। देश के लिेए मरना क्या होता हैं। देश को अपना मानना क्या होता हैं। आप मस्ती मारिये, और भारत के सम्मान को चीन और पाकिस्तान के पैरों तले रौंदवाते जाइये। ऐसे भी भारत की जनता को क्या चाहिए, आप और आपकी पार्टी को अच्छी तरह से मालूम हैं। पर ये जान लीजिये कि जिस दिन भारत की जनता देशभक्ति के पागलपन से लवरेज हुई तो फिर आप लोग कहां होंगे, शायद आपको पता नहीं। फिलहाल सभी अपने - अपने में मस्त हैं। आप भी मस्त रहिए। इतनी गद्दारी के बावजूद, चीन द्वारा 20 किलोमीटर जमीन ताजा - ताजा हड़पने के बावजूद आपके लिए एक अच्छी खबर कि आप कर्नाटक में वापस आ रहे हैं, और ये सारी घटनाएं सिर्फ भारत में ही दीखती हैं, क्योंकि देश की जमीन गवां देने वाली सरकार की वापसी सिर्फ भारत में ही होती हैं, दूसरे देशों में नहीं...........।