Monday, November 11, 2013

आप चिंता मत करिये, अगले साल हम दस दिन पहले से भीख लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लेंगे..............

हमारे देश में कैसे चरित्रहीनता के छोटे से पौधे ने बरगद का पेड़ का रुप धारण कर लिया हैं, उसकी बानगी मैंने इस बार छठव्रत में देखी। आम तौर पर ज्यादातर लोग छठव्रत के दौरान, उदारता दिखाते हैं। इस उदारता के दौरान आपको अजीबोगरीब हरकतें देखने को मिलेंगी। जिस व्यक्ति ने अपनी जिंदगी में कंजूसी के विश्व रिकार्ड बनाये हैं, वह भी छठ व्रत के दौरान, इस प्रकार की उदारता दिखाता हैं कि जैसे वो व्यक्ति अपनी उदारता के लिए भी विश्वरिकार्ड बनाने के लिए उतावला हो। मेरा बचपन पटना के एक छोटे से मुहल्ले सुलतानपुर में बीता हैं। वहां मैंने बचपन में देखा हैं कि जिसके घर मैं कद्दू होता, वो छठ आने के एक महीने पहले से ही कद्दू के पौधे पर ध्यान देता और जैसे ही नहाय खा का दिन होता, वो अपने यहां पैदा हुए कद्दू को बड़े ही सहेज कर, उन घरों तक कद्दू को मुफ्त में इस प्रकार पहुंचाता, जैसे वो भी इस महाव्रत के दौरान थोड़ा सा पुण्य का भागीदार बन जाये। इसी प्रकार सूप बनानेवाले दलितों का समूह, वहीं भाव लेता जो जरुरी हो, न कि छठ के बहाने सूप से अधिक कमाई करने की उसकी मंशा होती। चूंकि वो जानता था कि छठव्रत के दौरान लोग, मोल जोल नहीं करते, जो मुंह से निकल गया, दे देते। क्या वो दिन थे, सेवा भाव के। हर गली-मुहल्ले सेवा भाव से ओत-प्रोत होते। जिसका आटे का मिल होता, वो तो खरना के दिन सुबह से ही अपने मिल को साफ सफाई करके तैयार रखता और छठव्रती अपना आटा मुफ्त पीसा लिया करते, कोई पैसा देने की बात भी करता, तो मिल वाला यह कहकर पैसा लेने से इनकार करता कि यहीं बहाने छठि मइया हमारी सेवा स्वीकार कर रही हैं, यहीं क्या कम हैं। पर अब ऐसी बात नहीं दिखती। सभी मुनाफा कमाने में लगे हैं, क्योंकि अब उन्हें लगता है कि छठ साल में एक बार आनेवाला पर्व हैं, चलो कमालो, नहीं तो फिर ऐसा मौका बार बार नहीं मिलेगा। भला कद्दू, सूप, दौरा, केला, गुड़ और गेहूं आदि के लिए लोग इस प्रकार की मार्केंटिग हमेशा थोड़े ही किया करते हैं, प्रोफेशनल बन जाओ, अपने जमीर को थोड़े दिनों के लिए मिटा दो और शुद्ध मुनाफा कमाने के लिए मुनाफाखोर बन जाओ।
चलिए छोड़िये, कहा भी जाता हैं कि जीने के दो मार्ग हैं एक सत्य का रास्ता और दूसरा असत्य का। जब से सृष्टि बनी है, तभी से ये मार्ग जीवंत हैं, जो लोग सत्य का मार्ग चूनते हैं, उन्हें भी आनन्द मिलता हैं और जो असत्यमार्ग पर चलते हैं, उन्हे भी आनन्द मिलता हैं, अब कौन किस प्रकार का आनन्द लेता हैं, वो जाने। ठीक छठ में भी वो चीजें सामने दिखाई पड़ रही हैं, किसी को छठव्रतियों की सेवा में आनन्द प्राप्त होता हैं तो किसी को छठव्रतियों के सेवा के नाम पर उनसे पूरा सेवाकर वसूलने में आनन्द प्राप्त होता हैं।
इधर मैं कई वर्षों से रांची के चुटिया में रहता हूं। वहां मैंने इस बार अजीबोगरीब चीजें दिखी। चुटिया थाने के ठीक सामने एक दवा की दुकान हैं। संभवतः वो दुकान विक्की सिंह की हैं। जब से इलेक्ट्रानिक मीडिया से मेरा नाता टूटा हैं, तब से मैं थोड़ी देर के लिए वहां से गुजरने के क्रम में विक्की सिंह के दुकान में बैठ जाया करता हूं। इसी बीच छठव्रत आया, पता चला कि विक्की सिंह, हिन्दुस्तानी क्लब चलाते हैं, जिसमें कई युवा शामिल हैं। इस हिन्दुस्तानी क्लब के अध्यक्ष खुद विक्की सिंह हैं। एक सायं जब मैं दुकान पर बैठा था, तो कुछ लोग आये, और विक्की सिंह को कहा कि मेरा नाम लिख लीजिये। विक्की सिंह उठे और उन लोगों का नाम लिख लिये। मैंने विक्की सिंह से पूछा कि विक्की, आप बताये ये नाम लिखाने का क्या चक्कर हैं। विक्की सिंह ने बताया कि पिछले चार सालों से वे छठव्रत के खरना के दिन, उनलोगों के बीच छठव्रत की सामग्री( जैसे – सूप, साड़ी, नारियल, फल, दूध, ईख इत्यादि) बांटते हैं, जो छठव्रत करने में असमर्थ हैं। हमें ये सुनकर अच्छा लगा कि चलों आज के युवा भी इस प्रकार के कार्यों में निस्वार्थ भाव से लगे हैं। मैंने दूसरे सवाल पूछे कि कितने लोगों को आप बांटते हैं और ये पैसा कहां से आता हैं। विक्की ने बताया कि वे पिछले चार सालों से बांटते आ रहे हैं, शुरुआत 36 लोगों से हुई थी, इस बार 95 लोगों को देना हैं। जिसमें सूप उन्हीं के क्लब के रमेश शर्मा और दूध का इंतजाम मुन्ना सिंह कर देते हैं, बाकी सारी व्यवस्था उनकी यानी विक्की की हैं। सुनकर बहुत आनन्दित हुआ, देर रात हो चली थी, मैं घर पहुंचा। बहुत ही आत्मविभोर हुआ, कि छठव्रत का अर्थ ही सेवा भाव हैं, और ये युवा गर ऐसा करते हैं तो सचमुच वे प्रभु के बहुत ही निकट हैं, उसे और कुछ करने की क्या जरुरत हैं। उसके दुकान और आंगन में तो ऐसे ही सूर्यनारायण और छठि मइया खेलती होंगी। उसे कही जाने की कोई जरुरत ही नहीं। इसी सोच में दूसरे दिन हम फिर विक्की की दुकान पर पहुंचे, पता चला कि अब रजिस्ट्रेशन का काम पूरा हो चला हैं। रजिस्ट्रेशन का मतलब, जिन्हें छठव्रत की सामग्री देनी होती हैं, हिन्दुस्तानी क्लब के लोग, उसकी पूर्व में ही सूची बना लेते हैं, ताकि वितरण के दिन, कोई गड़बड़ी नहीं हो। मैं बहुत ही खुश था। अचानक, कुछ महिलाओं का समूह उनके दुकान पर आ गया। महिलाएं बोली कि उनका नाम भी लिख लिया जाय। दुकान पर बैठे, क्लब के सदस्यों के साथ विक्की ने कहा कि चूंकि जितने लोगों का इस बार देना हैं, उनकी सूची पूरी हो गयी हैं, अब हम देने में असमर्थ हैं, अब हम आपको अगले साल देंगे, पर शर्त यहीं हैं कि जिस दिन हमलोगों तिथि मुकर्रर करते हैं, अपना नाम सूची में दर्ज कराने की, उस तिथि तक आपलोग अपना नाम दर्ज करा दें। इन महिलाओं ने कहा कि आप चिंता मत करिये, अगले साल हम दस दिन पहले से भीख लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लेंगे..............। पर इस बार दे दीजिये। ये वो लोग थे, जिन्हें ईश्वर ने गरीब नहीं बनाया, जिनके हाथों व कानों में सोने के गहने साफ बता रहे थे, कि इन्हें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है, पर मुफ्त में छठव्रत करने का एक शायद अपना अलग आनन्द होगा, और मुफ्त में सूप, साड़ी वगैरह मिल जाये तो क्या गलत हैं। हद तो तब हो गयी कि ये महिलाएं, पूर्व विधानसभाध्यक्ष सी पी सिंह से पैरवी भी करवा ली। अब युवा क्या करते। उन्हें इनका नाम दर्ज करना पड़ा। यानी हवन करने में युवाओँ के हाथ जलने का खतरा साफ नजर आ रहा था, पर मुफ्त में छठव्रत के नाम पर बेवजह कष्ट प्रदान करनेवालों को दया नही आ रही थी। कमाल हैं, जिस देश में ऐसे ऐसे लोग हो, जो छठ के नाम पर भी, भीख मांगने की कला पर गर्व करते हो, और ये कहते हो कि हम एक साल बाद भीख मांगने के लिए, पहले से ही रजिस्ट्रेशन करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे तो क्या आपको लगता हैं कि ऐसे लोगों पर भगवान सूर्य नारायण और छठि मइया कृपा लूटायेंगी। जो लोग दूसरे के मुख का आहार छीनने में अपनी शान समझते हो, उस पर ईश्वर की दया कैसे हो सकती हैं। इन युवाओं ने तो उन बेसहारों और गरीबों के लिए कार्यक्रम चलाया, जिनको ईश्वर ने कुछ भी नहीं दिया, पर इन बेसहारों और गरीबों पर लालचियों को दया नहीं आ रही तो क्या कहेंगे। ऐसे हम उन बेसहारों और गरीबों को भी कह देते हैं कि आपको व्रत करने के लिए किसी भी चीज की जरुरत नहीं, बस आप इतना करिये कि किसी भी जलाशय अथवा कूएं पर चल जाइये। जिस दिन पहला अर्घ्य हो, उस दिन भगवान भास्कर के समक्ष दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो जाइये और एक लोटा जल लेकर अर्घ्य दे दीजिए और यहीं कार्य दूसरे दिन करिये। आपका व्रत सफल हो जायेगा और ईश्वर मनोवांछित वर अवश्य देंगे, क्योंकि भगवान केवल भाव देखते हैं, क्या आपको पता नहीं भगवान राम तो भाव में बहकर शबरी के जूठे बेर खा लिये थे तो ऐसे में आपके एक लोटे जल क्यों नहीं भगवान भास्कर, और छठि मइया अर्घ्य स्वरुप ग्रहण करेंगी। धन्य हैं। हिन्दुस्तानी क्लब के वे युवा जो इस मंहगाई में भी छवठ्रतियों की सेवा में स्वयं को समिधा बना डाला। ईश्वर की उन पर कृपा अवश्य हो, ईश्वर से हमारी यहीं प्रार्थना है।

Wednesday, November 6, 2013

लो, अब लताजी भी सांप्रदायिक हो गयीं.............

लो कर लो बात, अब विश्व की सुप्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर जी भी सांप्रदायिक हो गयी, क्योंकि उनकी दिली ख्वाहिश है कि नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और ये उद्गार उन्होंने अपने एक निजी कार्यक्रम में व्यक्त कर दिया। उन्होंने ऐसा बयान देकर, भाजपा के घुर विरोधियों की नींद उड़ा दी है। जो सोते जागते एक ही सपना देखते हैं कि कैसे नरेन्द्र मोदी का अहित हो। नरेन्द्र मोदी का अहित चाहनेवालों में केवल राजनीतिक पार्टियां ही नहीं, देश के वे कांग्रेस व नीतीश भक्त राष्ट्रीय चैनलों के पत्रकार और मालिक भी हैं, जिन्हें नरेन्द्र मोदी फूटी आंख भी नहीं सुहाते। बस इन्हें मौका मिलना चाहिए, नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मीन-मेख निकालने की। फिर क्या सारा काम-काज छोड़कर, नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मीन-मेख निकालने लगेंगे, भद्दी-भद्दी गालियां देंगे, कीचड़ उछालेंगे, विष-वमन करेंगे और उसके बाद भी, इनकी हरकतों पर आम जनता पर कोई असर, अगर नहीं पड़ा तो जनता को ही कटघरे में खड़ें कर देंगे और कहेंगे कि भारत की जनता तो एकदम खत्म हैं। इधर इन राजनीतिज्ञों और कांग्रेस – नीतीश भक्त पत्रकारों का एक ही सूत्री कार्यक्रम हैं – वो कार्यक्रम है सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी का विरोध करना। अभी कई चैनलों के मालिक और पत्रकार विधवा प्रलाप करने में लगे हैं, ये कहते हुए कि हाय, लताजी आप तो बहुत अच्छी थी, आपको तो हम भी बहुत मानते थे, पर आपने ये क्या कह दिया, आखिर क्यों आप नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनवाने पर तूली हैं, गर आप नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का इरादा रखती भी हैं, तो आपने इस इरादे को क्यों व्यक्त किया, अपने मन की बात, मन में ही रखती। अब हम कर ही क्या सकते हैं, हमारी तो आदत हैं, नरेन्द्र मोदी को गाली देने की और उन्हे भी गाली देने की जो नरेन्द्र मोदी के पक्ष में बयान देते हैं, इसलिए अब हम आपको भी नहीं छोड़ेंगे। इसलिए बयानवीर नेताओं के बयानों के आधार पर हम आप में भी मीन-मेख निकालेंगे, आपको भी नहीं छोड़ेंगे, जहां तक ताकत होगा, कांग्रेस भक्त और नीतीश भक्त पत्रकार और नेता, आपके खिलाफ भी विषवमन करने से बाज नहीं आयेंगे। ये अलग बात हैं कि इस विषवमन अभियान से आपका अहित होता हैं या नहीं होता, पर आपके खिलाफ हम अभियान शुरु कर चुके हैं और आज से आप भी सांप्रदायिक हो गयी, क्योंकि आप भी नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं, जिसका विरोध हम जन्म-जन्मातंर से कर रहे हैं। हमारे पास एक से एक उदाहरण है। एक राष्ट्रीय चैनल के पत्रकार का विधवा प्रलाप देखिए। हाल ही में नरेन्द्र मोदी बिहार आये, पटना ब्लास्ट में प्रभावित परिवारों से मिलने गये। मीडिया से बाद में उन्होंने बातचीत की, पर जब इस राष्ट्रीय चैनल के पत्रकार के किसी प्रश्नों का जवाब नरेन्द्र मोदी ने नहीं दिया, तो वह दोपहर में अपने एंकर के सवालों का जवाब न देकर, वो नरेन्द्र मोदी को ही भला-बुरा कहने लगा और अपनी बातों को सही करने के लिए कपिल सिब्बल तक का सहारा ले लिया, ऐसे हैं पटना के ये मठाधीश पत्रकार और ऐसा ही इनका चैनल। आजकल इस चैनल को नीतीश में केवल गुण ही गुण नजर आ रहे हैं और सारे दुर्गुण उसे नरेन्द्र मोदी में ही नजर आते हैं। इस चैनल की सायं और रात की विशेष बुलेटिन में नीतीश का गुणगान देखा जा सकता हैं, पर नीतीश की कुटिल मुस्कान और उसके द्वारा अपने विरोधियों के प्रति अभद्र भाषा का किया गया प्रयोग, इसे सुनायी नहीं देता, शायद उस राष्ट्रीय चैनल के प्रबंधक, या पटना में रह रहा उसका संवाददाता या एंकर बहरा हो जाता होगा, जब कुटिलता से लवरेज नीतीश, अपने विरोधियों के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे होते हैं। धन्यवाद दूंगा, आजतक व जी मीडिया को, जिसने सही को सही रखने का प्रयास किया। शायद यहीं कारण हैं कि इन दोनों चैनलों ने देश में अपनी साख पूर्व की तरह बरकरार रखी हैं, पर जरा उस वामपंथी विचारधारावाले निकम्मों, पत्रकारों और उसके प्रबंधकों को देखिये। जबसे लता जी ने नरेन्द्र मोदी के पक्ष में, वे प्रधानमंत्री के रुप में दीखे – बयान दिया। जदयू के एक नेता के सी त्यागी, कांग्रेस के राजीव शुक्ला, सपा और पता नहीं दीमक की तरह देश में कितनी पार्टियों के नेता हैं, जो कभी नगरपालिका के वार्ड आयुक्त का चुनाव तक नहीं जीत सकते, लता जी के खिलाफ अनाप-शनाप बयान दे डाला। जिसकी जितनी निंदा की जाय कम है। यहीं नहीं इन नेताओं ने मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ दी। ये अपनी अभिव्यक्ति के लिए तो एडी-चोटी एक कर देते हैं, पर लता मंगेशकर जैसी महान गायिका के प्रति घटिया स्तर के शब्दों का प्रयोग करने से नहीं चूकते। बयान देखिये इन घटियास्तर के नेताओं का – सुरसाम्राज्ञी को सलाह देते हैं कि वे राजनीति से दूर रहे। कमाल हैं देश को रसातल में ले जानेवाले ये नेता और इनकी पार्टी राजनीति में रहे, पर देश को मान-सम्मान बढ़ानेवाली लताजी राजनीति से दूर रहे। वो अपनी भावनाओं को भी अभिव्यक्त नहीं करें। ये घटियास्तर के नेता, जिनकी औकात नहीं कि वे जहां रहते हो, वहां ही रह रहे किसी चरित्रवान व्यक्ति की आंखों में आंख डालकर बात कर सकें। ये लता जी को राजनीति का एबीसीडी सीखाने चल पड़े और देखिये इन पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्षों को जो इन सड़क-छाप नेताओं के खिलाफ एक्शन भी नहीं लेते कि वे लता जी के खिलाफ क्यूं इस प्रकार का वक्तव्य दे रहे हैं। यानी धर्मनिरपेक्षता का सारा ठेका, इन्होंने ही ले रखा हैं, बाकी सभी सांप्रदायिक हो गये। लानत हैं, इन नेताओं और घटियास्तर के उन पत्रकारों को, जो घटियास्तर का सोच रखते हैं और लताजी जैसी महान गायिका पर कीचड़ उछालने से नहीं चूकते। ऐसे भी कीचड़ उछालने वाले और कर ही क्या सकते हैं। जिन्होंने देश में महंगाई, भ्रष्टाचार और अपने हित में दंगा करवाकर देश को नरक बना डाला हो, उनसे हम उम्मीद ही क्या कर सकते हैं। लताजी आप, आप हैं, आप ने अपनी गीतों से कभी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरुजी को रुलाया हैं। आपने देश ही नहीं बल्कि विश्व में रहनेवाले करोड़ों – करोड़ भारतीयों का मान बढ़ाया हैं। भारतीय सैनिकों के मनोबल बढाने के लिए आपने क्या नहीं किया। कभी मां, तो कभी बहन, तो कभी बेटी, पता नहीं कितने रिश्तों को आपने गीतों में जीया हैं, आप देश की शान हैं, आप भारत रत्न हैं, और भारत रत्न को कैसे सम्मान दिया जाता हैं, गर यहां के नेता नहीं जानते, पत्रकार नहीं जानते तो आप इन्हें माफ कर दीजिये, क्योंकि आपका दिल बड़ा हैं, आपके गीत लोगों को जोड़ते हैं पर ये तोड़नेवाले नेता क्या जाने, कि आपने किस भाव से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। लता जी आपको अपनी भावना जन-जन तक रखने के लिए कोटिशः धन्यवाद, साथ ही नरेन्द्र मोदी के घुरविरोधियों को उनकी औकात बताने के लिए शत् शत् नमन।

Sunday, November 3, 2013

जो राम को पा गया, जो राम में समा गया, उसी ने दिवाली मनाया.......................

जो राम को पा गया,
जो राम में समा गया,
उसी ने दिवाली मनाया,
किसी अन्य को आज तक मैंने दिवाली मनाते देखा ही नहीं। दिवाली क्या हैं, आनन्द को महसूस करने, आनन्द में खो जाने का एक विशिष्ट पर्व। पर लोग इस विशिष्ट पर्व में भी आनन्द से विमुख हो जाय, तो ऐसे लोगों को क्या कहेंगे। शायद ऐसे ही लोगों के बारे में कबीर ने कहा –
पानी बिच मीन पियासी,
मोहि सुन सुन आवै हांसी।
घर में वस्तु नजर नहीं आवत,
बन बन फिरत उदासी।
आत्मज्ञान बिना जग झूठा,
क्या मथुरा, क्या कासी।
कबीर ने साफ कह दिया कि जिस परम आनन्द को प्राप्त करने के लिए, लोग इधर से उधर भटक रहे हैं, वो तो घर में ही हैं, पर लोग परम आनन्द को प्राप्त करने के लिए जीवन भर वो सब करते हैं, जिसे करने की कोई जरुरत नहीं, जरुरत हैं आत्मज्ञान की ओर ध्यान देने की, क्योंकि आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य स्वयं को प्रकाशित कर लेता हैं, फिर मनाते रहिए, आप प्रत्येक दिन दिवाली, कौन रोक रहा हैं आपको।
कहा भी गया हैं ------
सदा दिवाली संत की,
आठों प्रहर आनन्द,
अकलमता कोई उपजा,
मिले इँद्र को रंक
अर्थात् संतों को जब आत्मसुख प्राप्त करना होता हैं, या स्वयं को प्रकाशित करना रहता हैं, परम आनन्द को प्राप्त करना होता हैं तो बस अपने हृदय में झांक लेते हैं, और सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं, पर देवताओं के राजा होने के बाद भी इँद्र को वो सुख प्राप्त नहीं होता, जो संतों को सहज ही प्राप्त होता है।
जरा मीरा को देखिये, जब मीरा को उनके गुरुदेव से रामरुपी धन प्राप्त हो जाता है, तो वह कितना परम आनन्दित हो जाती हैं। वो कैसे स्वयं को धन्य करते हुए, अतिप्रसन्न होकर, गाने लगती हैं, वो भी आत्मसुख प्राप्त करते हुए...............
पायोजी मैने रामरतन धन पायो,
वस्तु अमोलक दी मेरे सद्गुरु कृपा कर अपनायो,
खर्च न खूटे, चोर न लूटे, दिन-दिन बढत सवायो,
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरषि हरषि यश गायो,
सत की नाव खेवटिया सद्गुरु, भवसागर तर आयो
पायो जी मैंने रामरतन धन पायो,
कमाल हैं, गुरु से मिला भी तो क्या। राम रुपी धन। सोना-चांदी, हीरा-जवाहरात नहीं। आखिर रामरुपी धन ही मीराबाई को क्यों मिला, क्योंकि मीरा को परम आनन्द चाहिए थी, और परम आनन्द राम में ही समाया हैं, भौतिक सुख अथवा भौतिक संसाधनों में नहीं। मीरा का गर्व देखिये – ये ऐसा धन हैं, जो खर्च ही नहीं होता, खर्च करने की सोचे तो दिन –दिन बढ़ता जाता हैं. अंततः मीरा ये भी कहती हैं कि सत्य रुपी नाव को सिर्फ एक अच्छा गुरु, नेक गुरु, स्वार्थ और धन के प्रति लालच न रखनेवाला गुरु ही भवसागर पार करा सकता हैं, राम से साक्षात्कार करा सकता हैं, इसलिए मुझसा धन्य कौन है।
भारतीय वांग्मय कहता हैं
अधमाः धनम् इच्छन्ति
धनम् मानम् च मध्यमाः।
उत्तमाः मानम् इच्छन्ति
मानो हि महतां धनम्।।
अर्थात् जो दुष्ट होते हैं, वे सिर्फ धन की कामना करते हैं, जो मध्यमवर्गीय होते है वे धन और मान दोनों की कामना करते हैं पर जो सर्वोतम लोग हैं, वे कभी धन की कामना नहीं करते, वे तो सिर्फ सम्मान को ही सर्वोतम धन मानते हैं। इसलिए अपने देश में धन को उतना मह्त्व दिया ही नही गया। पर लोग दिवाली को धन से जोड़कर देखते हैं, दिवाली धन की कामना का पर्व नहीं, बल्कि परम आनन्द को प्राप्त करने का पर्व हैं। जरा सोचिये, एक छोटा सा मोहनदास, महात्मा कैसे बन गया, क्या धन की लालच के कारण, अथवा देश के लिए सर्वस्व का त्याग, और राम के प्रति उसकी अटूट श्रद्धा ने उसे दिव्यता प्रदान कर दी। भला दीपक जलायेंगे तो घर प्रकाशित होगा, पर मन को प्रकाशित करने के लिए आपने कुछ सोचा हैं। आप कैसे प्रकाशित होंगे, इसकी परिकल्पना की हैं, गर नहीं तो सोचिये। ये प्रकाश पर्व, प्रतिवर्ष आकर आपको ऐहसास कराता हैं, पर आप ऐहसास करने की जरुरत नहीं समझते। बस दिवाली आई, गणेश-लक्ष्मी की पूजा की, पटाखे छोड़े, विदेशी वस्तुओं से घर को सजा दिया और दिवाली हो गयी। ऐसा तो हम बरसों से करते आये हैं, फिर भी हमें कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ, और बगल का पड़ोसी चीन, हमसे आगे निकल गया। आखिर ऐसा क्यूं हुआ। आखिर आप चेतेंगे कब, जब सब कुछ हाथ से निकल जायेगा तब, हमारी प्राचीन संतों व ऋषियों की विशिष्ट परंपरा आपसे कुछ कहती हैं, कहती हैं कि आप इस मूलमंत्र के भाव को समझिये। तोता जैसा रटिये नहीं, चलिये। सदियों से भारत के कण – कण में ये मंत्र गूंजता आया हैं, वो आपसे कहता हैं कि अपने मन में ये भाव लाइये और फिर दीपावली मनाइये तभी इस पर्व की सार्थकता को आप समझ पायेंगे, तभी भारत विशिष्ट हो पायेगा, अन्यथा नहीं।
असतो मा सदगमय
तमसो मा ज्योर्तिगमय
मृत्योर्मां अमृतंगमय