Wednesday, December 31, 2014

पीके के नाम पर.....................

म तो पीके का मतलब पहले रांची से प्रकाशित होनेवाला एक समाचार पत्र प्रभात खबर ही समझते थे, हमें क्या मालूम कि आगे चलकर इस पर फिल्म भी आ जायेगी, पर सच्चाई हैं, फिल्म तो आ गयी – कुछ लोग इसे बेहतरीन फिल्म मान रहे हैं, तो कुछ लोग विरोध कर रहे हैं। दोनों के अपने – अपने तर्क हैं और दोनों के तर्क को झूठलाया भी नहीं जा सकता, पर इन दोनों को नहीं मालूम कि तीसरे ने जो ये फिल्म बनायी हैं, या इस फिल्म में काम किया हैं, उनका मूल मकसद येन केन प्रकारेण पैसा बनाना हैं, इसके सिवा और कुछ करना नहीं, न तो ये धार्मिक हैं और न ही धर्म से लेना – देना या धर्म के रहस्यों को जाननेवाले। इधर समर्थन – विरोध के क्रम में ये फिल्म अब तक 200 करोड़ रुपये तक की बिजनेस कर चुकी हैं यानी पैसों के आधार पर देखे तो फिल्म हिट। याद रहें, पहले पैसे नहीं तय करती थी कि फिल्में हिट हुई या नहीं, पूर्व में कौन सी फिल्म किस या कितने हालों में ज्यादा महीनों या वर्षों तक टिकी रही – ये पैमाना होता था। पर सच पूछिये तो आजकल 200 करोड़ रुपये कमानेवाली फिल्म हो या पांच करोड़ की फिल्म, कोई अब इन्हें पूछता नहीं, एक बार देख लिया – और लिखो-फेंकों कलम की तरह अपने जेहन से उतार दिया। सामान्य व्यक्ति तो आजकल सिनेमा हाल में जाता ही नहीं, वो तो टीवी से ही चिपककर अपना मनोरंजन और ज्ञानवर्द्धन कर लेता हैं। खैर पूर्व में जब आज से पच्चीस साल पहले रांची से मेरा नाता जुड़ा तो मैं कभी प्रभात खबर का फैन हुआ करता था, पर अब मेरा सारा अनुराग उस अखबार के प्रति जो था, वो काफुर हो गया हैं। अब तो मैं अपने घर में ये अखबार आने ही नहीं देता, क्योंकि मुझे ऐसे आंदोलन की जरुरत नहीं, जो अखबार वाले लाते हो। और अब हम बात कर रहे हैं, फिल्म पीके की। जो विरोध कर रहे हैं, उनसे सवाल। क्या आपने फिल्म देखी हैं, गर फिल्म देखी हैं तो जरा ध्यान दीजिये, फिल्म शुरु होते ही, लालकृष्ण आडवाणी, प्रतिभा आडवाणी, अमिताभ बच्चन, राजस्थान पत्रिका, भाषा, आर्ट आफ लिविंग के रविशंकर के नाम आदि पढ़ने को मिलेंगे। मतलब समझिये, ऐसे एक नहीं अनेक लोगों के नाम आपको पढ़ने को मिलेंगे, जो या तो भाजपाई हैं या भाजपा का समर्थन करते हैं, इनकी केन्द्र बिन्दु या तो भाजपा हैं या संघ। जिससे ये ओतप्रोत रहते हैं। और जो विरोध कर रहे हैं मूलतः हिन्दूवादी संगठन हैं, जो किसी न किसी प्रकार से भाजपा से जूड़े होते हैं, मेरा सवाल हैं कि ये भाजपाई सीधे आडवाणी के घर जाकर, उनसे सीधे सवाल क्यों नहीं पूछ लेते कि भाई हम फिल्म का विरोध कर रहे हैं, आप समर्थन क्यों कर रहे हें। या यहीं सवाल श्री श्री रविशंकर से क्यूं नहीं पूछ लेते। यानी एक तरफ विरोध और दूसरी तरफ भाजपाईयों द्वारा ही इस फिल्म का समर्थन और प्रशंसा, कुछ बात हजम नहीं हो रही। फिल्मवालों ने भी गजब फिल्म बनायी हैं जरा देखिये एक डायलाग जिसमें आमिर खान बोलता हैं कि कुछ लोग बोलते हैं गाय की पूजा करो और कुछ लोग कहते हैं कि गाय का बलिदान कर दो और इसी फिल्म में एक सामान्य व्यक्ति से डायलाग बुलवाया जाता हैं, जिसमें कहता हैं कि गाय को खाना खिलाने से हमें नौकरी मिलेगी तो क्या गाय हमारी डिग्री लेकर संस्थानों में जायेगी और पता नहीं क्या – क्या। यानी बेसिरपैर के डायलाग बोलकर, जनता को भरमाने का काम जरुर किया गया, साथ ही हिंदू धर्म के अंदर व्याप्त अंधविश्वास और पाखंड की आलोचना की गयी। मेरा मानना हैं कि दुनिया का कौन ऐसा धर्म हैं, जो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया गया और उसमें पाखंड नहीं। हमें आश्चर्य हो रहा हैं कि पूर्व में इन सब का विरोध वामपंथी किया करते थे, पर अब विरोध और समर्थन दोनों का काम भाजपाईयों ने उठा लिया हैं और रही बात अखबारों की तो उनकों पैसे फेंकिये और पूरा पेज ले लिजिये, दूसरे दिन देखिये आपकी फिल्म की तारीफ का कैसा पूल बांधते हैं, यानी हर्रे लगे, न फिटकरी और रंग चोखा। यानी फिल्म बनानेवालों ने हर प्रकार से खुद को बचाने का प्रबंध भी कर लिया, थोड़े पैसे के टूकड़े अखबार व चैनलों को फेकां और उन टूकड़ों पर अखबार और चैनलों के लोगों ने खुब मुंह मारीं, बदले में फिल्म का गुणगान किया, फिल्म हो गयी हिट, देश व समाज और धर्म जाये तेल लाने, इसे हमें क्या। हमको जिनको गरियाना था, गरिया दिया...............इसे ही तो फिल्म वालों की राजनीति कहते हैं।

Tuesday, December 23, 2014

सब पर भारी, झारखंड की जनता हमारी। कोई नहीं भरमा पायेगा, जब जनता जग जायेगा।।..........

हां भाईयों, सब पर भारी, झारखंड की जनता हमारी। कोई नहीं भरमा पायेगा, जब जनता जग जायेगा।। – ये नारा सम-सामयिक हैं, क्योंकि कल तक सारे राजनीतिज्ञों, मीडियाकर्मियों और ज्योतिषियों की धड़कनें तेज थी कि पता नहीं जनता का जनादेश क्या होगा......सभी अपनी –अपनी कलाबाजियों का प्रदर्शन करते हुए, डींगे हांक रहे थे। सब की अपनी – अपनी दलीलें, कोई कह रहा था कि मेरे क्षेत्र में हमने इतने काम किये हैं कि वहां से कोई दूसरा जीत ही नहीं सकता, कोई कह रहा था कि हमने धूप में बाल थोड़ी ही सुखायें हैं, पत्रकारिता की हैं, इसलिए जो हम बोल रहे हैं, वहीं होगा और राजनीतिक भविष्यवाणी करनेवाले ज्योतिषियों की तो हवा निकल गयी हैं, बोलते ही नहीं बन रहा, कल तक अर्जुन मुंडा को पुनः प्रतिष्ठित करनेवाले यानी मुख्यमंत्री बनाने का दावा करनेवाले ज्योतिषी खोजते नहीं मिल रहे। एक दो राजनीतिक पंडितों से बात हमने करनी चाही तो वे अपनी मोबाइल बंद कर सोते हुए मिले....कुछ की पत्नियां फोन उठायी और बड़ी विनम्रता से बोली, पंडित जी महराज सो रहे हैं, कृपा कर बाद में फोन करें..............अब हम क्या बोले कि पंडित जी को आज सोना ही देना उत्तम होगा, क्योंकि आज का दिन उनके लिए सोने के लिए ही संदेश लेकर आया हैं................ आखिर क्या हुआ हैं – झारखंड में.................. झारखंड में वो हुआ हैं, कि ऐसा किसी प्रदेश में आज तक नहीं हुआ..... जनता ने एक साथ कई को सबक सिखाया हैं और कहा हैं कि अब ज्यादा चूं कि तो समझ लो, तुम्हारी खैर नहीं.................. झारखंड की जनता ने वो काम किया हैं कि जिसकी जितनी प्रशंसा की जाय कम हैं, गर मेरी चले तो तो मैं एक लाइन में कह दूं कि यहां की जनता ने झारखंड के साथ खिलवाड़ करनेवाले नेताओं के साथ - साथ मीडिया को भी बजा दिया हैं कि मन करता हैं जनता जनार्दन का हाथ चूम लूं.......... यहां की जनता ने पहली बार राज्य के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत निवर्तमान मुख्यमंत्री तक को पहले धूल चटाया हैं......... जैसे बाबू लाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, हेमंत सोरेन ( बरहेट से जीते जरुर पर दुमका से हारे भी) को हराया............. यहीं नहीं..... आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो को भी बाहर का रास्ता दिखाया.......... काग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत और नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र प्रसाद सिंह को भी सदन में जाने से रोका............ झारखंड की पहली सरकार में कील ठोकनेवाले और गठबंधन की पहली सरकार को पटरी से उतारनेवाले लालचंद महतो और जलेश्वर महतो (प्रदेश अध्यक्ष जदयू) की औकात बता दी.......... राजद के प्रदेश अध्यक्ष गिरिनाथ सिंह और राजद की तेज तर्रार नेता अन्नपूर्णा देवी को भी कह दिया कि इस बार आपकी सदन में जरुरत नहीं............ जो मीडिया हरे मोदी, हरे मोदी, हरे अमित शाह, हरे अमित शाह कहकर उनके मतदान प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा था उसे भी औकात बता दी और राज्य में एक मजबूत विपक्ष भी इस बार प्रदान कर दिया.........और अंत में कह डाला कि देश की राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां, ज्योतिषियों का झूंड और खुद को लोकतंत्र का 4था स्तंभ कहनेवालों झारखंड की जनता के इस निर्णय का सम्मान करें और सबक लें...नहीं तो जब भी मौका मिलेगा, हम अपना निर्णय सुनायेंगे और वो निर्णय ऐसा होगा, जिसकी परिकल्पना किसी ने नहीं की होगी............... अब जरा सोचिये किसी ने सोचा था क्या कि दो सीटों से चुनाव लड़नेवाले बाबू लाल मरांडी, खरसावां से चुनाव लड़नेवाले मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार अर्जुन मुंडा, दुमका से हेमंत सोरेन, मझगांव से मधु कोड़ा चुनाव हार जायेंगे, पर हुआ तो ऐसा ही....क्या किसी मीडियावालों ने सोचा था क्या कि इस बार सिल्ली से सुदेश हार जायेंगे, क्योंकि हर बात में मीडिया उनकी स्तुति गा दिया करता था..........पर हुआ तो ऐसा ही हैं............... मैं, जब एक महीने पहले जयपुर से रांची आया तो जनता के बीच गया, छटपटाहट देखी, वो छटपटाहट थी – बार बार दामन पर लगनेवाले दाग की, वो छटपटाहट थी की मीडिया और राजनीति में शामिल लोग उन्हें बार – बार बदनाम क्यों करते हैं, ये क्यों कहते हैं कि स्पष्ट जनादेश जनता ने नहीं दिया......आखिर चुनाव आयोग क्यों पांच चरणों में चुनाव कराता हैं, आखिर राज्यसभा में उनके चूने हए प्रतिनिधि क्यों पैसे लेकर वोट डाला करते हैं, क्यों उन्हीं के समय जन्म लिया छत्तीसगढ़, उत्तराखंड उनसे आगे निकल गया और हम पीछे रह गये, आखिर उनके नेता विकास की सीढ़ियां चढ़ते हुए उनसे आगे कैसे निकल गये और वे पीछे क्यूं रह गये....क्यों उनके नेता विदेशों में अपने परिवार का इलाज कराने के लिए उन्हीं के पैसों का इस्तेमाल करते हैं पर उनके बेटे-बेटियां अच्छे इलाज के लिए तरस जाते हैं और इन्हीं छटपटाहटों के बीच झारखंड की जनता ने स्पष्ट जनादेश देने का मन बनाया और साथ ही संकल्प लिया कि वे उन्हें सबक सिखायेंगे, जो उन्हें सबक सिखाने की सोचते हैं, लीजिये जनादेश सामने हैं, जनता ने अपना काम कर दिया...गर इस जनादेश को समझ कर भी किसी की समझ नहीं खुलती हैं तो ऐसे लोगों के लिए तो भगवान ही मालिक हैं.....................

अपने बीवी-बच्चों को मुख्यमंत्री बनानेवाले, सजायाफ्ता और जनता को धोखा देने में महारत हासिल रखनेवाले नेताओं की फौज अब मोदी से हिसाब मांग रही हैं......

लो कर लो बात......., खुद भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे, अपने बीवी-बच्चों को सांसद-मंत्री और मुख्यमंत्री बनानेवाले, न्यायालय से सजा पाये, नेताओं की फौज दिल्ली में मोदी से हिसाब मांग रहे हैं, ताल ठोक रहे हैं कि वे सत्ता से मोदी को उखाड़ फेंकेंगे, ये वे लोग हैं, जिनकी कोई औकात नहीं, पर मोदी की औकात बताने में लगे हैं.....ये वे लोग हैं, जिन्हें बोलने तक की तमीज नहीं...जो बलात्कारियों पर भी कृपा लूटाते हैं, मोदी को सत्ता से हटाने का ख्वाब देख रहे हैं....इन राजनीतिबाजों के कलाबाजियों पर तो अब हंसी भी नहीं आती, क्योंकि इन्होंने तो यूपी-बिहार को कबाड़ बना कर रख दिया हैं। जब से लालू की बेटी और मुलायम के पोते की सगाई हुई हैं। लालू का मुलायम प्रेम देखते बन रहा हैं। एक समय था कि मुलायम के प्रधानमंत्री बनने के समय सबसे बड़ा रोड़ा लालू ही बनकर उभरे थे, पर अब लालू ऐसा नही करेंगे, इसका शायद उन्होंने मुलायम के समक्ष अब संकल्प कर लिया हैं। दूसरी ओर एक समय भाजपा के साथ गलबहियां डालकर घूमनेवाले और कभी मोदी के लिए कशीदे पढ़नेवाले नीतीश को परमज्ञान की प्राप्ति हो गयी हैं, वे अब लालू के गोद में बैठकर, लालू-मुलायम की भक्ति में जूट गये हैं, ये भी कह रहे हैं, मुलायम भैया को हम प्रधानमंत्री बनाकर रहेंगे, चाहे बिहार में उनकी सांसदों की संख्या शून्य ही क्यों न हो जाये, पर सपना देखने में क्या बुराई हैं, क्योंकि दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता हैं। चूंकि नरेन्द्र मोदी ने नीतीश के सपने चकनाचूर कर दिये, इसलिए नीतीश के सबसे बड़े शत्रु मोदी हैं, और मोदी को सत्ता से बेदखल करने के लिए गर घोटालेबाजों से भी, बीवी-बच्चों को सांसद और मुख्यमंत्री बनानेवाले राजनीतिबाजों से दोस्ती करनी पड़ें तो इसमें नीतीश को बुराई नहीं दिखती। खैर छोड़िये, ये हमेशा, जूटते हैं, हमेशा टूटते हैं, क्यों जूटते हैं, इनका तो इन्हें पता रहता हैं पर क्यों टूटते हैं, शायद इन्हें मालूम होने के बावजूद ये गलतियां करते रहते हैं। फिलहाल इन दिनों काला धन वापस लाने का मुद्दा और देश में चल रहे धर्मांतरण का मुद्दा ये जोर – शोर से उठा रहे हैं। जातीयता की राजनीति करनेवाले यानी नरक में भी ठेला-ठेली करनेवालों को देश में धर्म के नाम पर देश का बंटाधार होता दीख रहा हैं। संसद से लेकर सड़क तक शोर मचा रहे हैं, पर ये नहीं बता रहे कि यूपी-बिहार में किस प्रकार इन्होंने जातियता का नंगा नाच किया हैं। कैसे बिहार में लालू ने पन्द्रह साल तक जंगल राज स्थापित किया जिस कारण बिहार की जनता ने इस जंगलराज से आजीज होकर नीतीश को सत्ता सौंपी, ये अलग बात हैं कि बिहार की जनता को लालू फूटी आंख नहीं सुहाते, पर नीतीश और शरद को तो लालू में अब भगवान नजर आते हैं। इन दिनों मोदीफोबिया की बीमारी से ग्रसित नीतीश कुमार मोदी की सीडी का जंतर बनाकर गला में लटकाये घूम रहे हैं, जहां मौका मिलता हैं मोदी की वो सीडी सुनाते हैं....रोते हुए सभा में कहते हैं कि देखिये मोदी ने आपसे वायदा किया था पर मोदी ने वायदा नहीं निभाया। वादा तो हम यानी नीतीश निभाते हैं, आपने भाजपा-जदयू गठबंधन को बिहार में सरकार चलाने का बहुमत दिया था पर हमने आपके दिये इस बहुमत के फैसले को ठेंगा दिखा दिया और अब राजद के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं...यानी अपनी बेशर्मी नीतीश को नहीं दिख रही, कल तक बिहार के गांव – गांव में शत प्रतिशत बिजली देने की घोषणा करनेवाले नीतीश क्या बतायेंगे कि क्या बिहार के सभी गांवों में 24 घंटे बिजली हैं, गर नहीं तो जिसके घर शीशे के बने हो, उसे दूसरे के घर में पत्थर नहीं फेंकने चाहिए...... क्या हाल बना दिया हैं, राजधानी पटना का नीतीश ने...गंदगियों और मलमूत्र से पटा पटना में कोई आना नहीं चाहता....गांव –गांव में चाय की दुकान की तरह दारु का दुकान खुलवा दिया और खुद को विकास पुरुष मान बैठा हैं.....इसके शासनकाल में मीडियाकर्मियों की क्या हालत थी, कैसे मीडियाकर्मियों का ये शोषण करवाता था, पटना के विभिन्न अखबारों में कार्य करनेवाले मीडियाकर्मी बताते हैं पर मोदी ने जैसे ही इनके जनसहयोग से पर कतरे, इनकी चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। लालू-मुलायम-नीतीश जितनी जोर लगा ले, पर उन्हें मालूम होना चाहिए कि जनता जाग गयी हैं, इनकी हरकतों को देख चुकी हैं, झांसे में नहीं आनेवाली। पांच साल के लिए मोदी को अपना बहुमत दी हैं। मोदी को पांच साल में दिखाना हैं अपना किया वादा, अपना वादा मोदी पुरा करेंगे तो फिर सत्ता में आयेंगे, नहीं तो जनता के पास विकल्पों की कमी हैं क्या, कि वे विकल्प के लिए नीतीश-लालू और मुलायम की ओर देखेगी। इन लोगों ने तो अपना दीदा खो दिया हैं, शर्म आनी चाहिए, ऐसे नेताओं को जो जनता को बरगलाने में लगे हैं।

Sunday, December 21, 2014

घोर आश्चर्य ?


झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद से लेकर मतदान संपन्न होने तक, मात्र चंद पैसों के लिए विज्ञापन के नाम पर --- हरे मोदी, हरे मोदी, मोदी- मोदी, हरे हरे, हरे अमित शाह, हरे अमित शाह, अमित शाह – अमित शाह, हरे हरे।। - का जाप करनेवाले, आज ताल ठोंक रहे हैं कि राज्य में उनके चलते मतदान की प्रतिशतता बढ़ी हैं, क्या ये शर्मनाक नहीं हैं, क्या ये खुद को ईश्वर बताने की, मानने की कुटिल चाल नहीं हैं, जनता ऐसे लोगों से, ऐसे अखबारों और चैनलों से सावधान रहें, क्योंकि कुछ ही दिनों में मतगणना होगी, और जिसकी सरकार बनेगी, ये मीडिया वाले, उनकी चरणवंदना करने में सबसे आगे रहेंगे, साथ ही अपने हक का झारखंड लूटने में प्रमुख भूमिका निभायेंगे, उसके बाद क्या होगा, होगा वहीं - जनता एक बार फिर अन्य दिनों की तरह मीडियावालों से छली जायेंगी। ये मैं इसलिए लिख रहा हूं कि आज सुबह जैसे ही मेरी नींद खुली। एक अखबार ने राज्य में भारी मतदान पर संपादकीय लिख डाली और ये मान बैठा कि उसके कारण ऐसा संभव हुआ हैं। उसने एक अभियान चलाया और जनता उस अभियान से प्रभावित होकर 9 प्रतिशत ज्यादा मतदान कर बैठी, जबकि सच्चाई ये हैं कि राज्य में मतदान की प्रतिशतता बढ़ने के दूसरे बहुत सारे कारण है। जनता की वर्तमान सरकार से नाराजगी सबसे बड़ा कारण हैं, साथ ही बार-बार गठबंधन की सरकार के कारण विकास कार्य प्रभावित होना भी एक कारण हैं। तीसरा सबसे बड़ा कारण मोदी के बार – बार झारखंड आने और खुद को विकास के एजेंडें तक सीमित रखने और विश्वास बनाने, कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों का इस चुनाव के प्रति घोर निराशा का होना और मीडिया का मोदी के इर्द-गिर्द सिर्फ चंद पैसों के लिए जी – हुजूरी करना शामिल हैं। मीडिया ये नहीं भूले कि झारखंड को बर्बाद करने में गर नेताओं की अहम भूमिका हैं तो पत्रकारों की भी कम भूमिका नहीं हैं। झारखंड में पत्रकारों की एक बहुत बड़ी लंबी लिस्ट हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार के रिकार्ड बनाये हैं गर इसकी सूची प्रकाशित हुई तो बहुत सारे लोग नंगे हो जायेंगे। कोई किसी आर्गेनाइजेशन का संयोजक बनने के लिए तो कोई सूचना आयुक्त बनने के लिए, कोई सरकारी संस्थानों में अपने भाई-भतीजों को नौकरी दिलवाने के लिए, कोई कोयला और सोने के खदानों को पाने के लिए, कोई निजी संस्थानों में खुद को प्रतिष्ठित करने के लिए कैसे झारखंड की भोली – भाली जनता को लूटा हैं। वो सभी जानते हैं, पर अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया को देखे तो पता चलेगा कि दूनिया की सारी सच्चाई और ईमानदारी का ठेका, इन्हीं मीडियाकर्मियों ने ले रखा हैं। जिस प्रकार राष्ट्रीय चैनलों के मालिक और कई संपादक अपनी जमीर नेताओं के आगे गिरवी रखा हैं, उसी प्रकार झारखंड में भी वो चीजें देखने को मिल रही हैं, ऐसे में झारखंड की प्रगति का रोना-रोना मीडियाकर्मियों या उनके बॉस या उनके मालिक को शोभा नहीं देता। उनके इस रोने को घड़ियाली आंसू कहना, घड़ियाल तक का अपमान हैं। ये वे लोग हैं, जिन्हें ईश्वर ने दंडित करने का विशेष अभियान चलाने का शायद फैसला कर लिया हैं, जल्द ही वे इन फैसलों के अमल में आने के बाद दंडित होंगे, क्योंकि दो प्रकार के संविधान हैं। एक जिसे ईश्वर ने बनाया और एक वो जिसे मनुष्य ने अपनी सफलता और असफलता को सिद्ध करने के लिए खुद से संविधान बना डाली। मनुष्य के बनाये संविधान से तो वो बच जायेगा, पर ईश्वर के बनाये संविधान से बच पायेगा, हमें नहीं लगता। इन सभी ने शर्म बेच खाया हैं, इन सभी ने ईमान बेच खाया हैं, निर्मल बाबा और हनुमान यंत्र में भी इन्हें भेद नजर आता हैं, चूंकि निर्मल बाबा ने विज्ञापन के नाम पर माल नहीं दिया, तो उसे बदनाम कर ड़ाला, और जिसने विज्ञापने के नाम पर माल दिया, उसे मालोमाल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा दी। जबकि ईश्वर की अदालत में दोनों समान रुप से अपराधी हैं। ये तो एक प्रकार का उदाहरण, मैंने सामान्य जनता के सामने रखा हे। मैं झारखंड की जनता से यहीं कहूंगा कि आप स्वयं को इन अखबारों और चैनलों से बचा कर रखिये, क्योंकि इन पर विश्वास करना, खुद को धोखे में रखना, मूर्ख बनना और राज्य को गर्त में डालने के सिवा दूसरा कुछ भी नहीं..............

Saturday, December 13, 2014

झारखंड के नवनिर्माण के बाद चल रही गठबंधन सरकार पर पहला कील, नीतीश के चहेतों ने ठोका.....................

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को महापुरुष सिद्ध करने में बिहार – झारखंड से प्रकाशित होनेवाले एक अखबार ने एड़ी-चोटी लगा दी है। उस अखबार को लगता हैं कि ऐसा करने से दोनों प्रदेशों की जनता उसके झूठी खबरों के झांसे में आ जायेगी, और वहीं करेगी, जो वह सोचता हैं, पर क्या ऐसा संभव हैं। गाहे – बगाहे, उक्त अखबार में नीतीश कुमार का बयान प्रमुखता से छापा जाता हैं, जैसे लगता हैं कि नीतीश वर्तमान राजनीति के आदर्श पुरुष हैं। हाल ही में झारखंड में हो रहे चुनाव के दौरान बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने चहेते खीरु महतो, बटेश्वर महतो और जलेश्वर महतो के पक्ष में चुनावी सभा की और अपने चिर परिचित अंदाज में भाजपा की बखिया उधेड़नी शुरु की। हम आपको बता दें कि नीतीश का भाजपा के खिलाफ विषवमन तब से शुरु हुआ, जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इनके सपने को पूर्णतः ध्वस्त कर दिया, और वे भारत के प्रधानमंत्री बन गये। तभी से उनके लिए भाजपा अछूत बन गयी और लगे भाजपा को अपनी ताकत दिखाने, हालांकि उनकी कितनी ताकत हैं, वो तो पता लोकसभा के चुनाव में ही लग गया, जब उनकी पार्टी दो सीटों में सिमट गयी और वे उससे इतने विचलित हुए कि जिसके खिलाफ जनता ने उन्हें वोट देकर बिहार का सिरमौर बनाया था, वे उसी यानी लालू प्रसाद यादव के गोद में बैठकर भाजपा को मिटाने का सपना देखने लगे हैं। सपना उन्हें देखना भी चाहिए, पर ये सपना पूरा होगा या खुद ही राजनीति से मिट जायेंगे, इसका जवाब तो बिहार की जनता बेसब्री से देने को तैयार हैं। कुछ – कुछ इसकी तैयारी तो नीतीश के ही उत्तराधिकारी, बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने अपने बयानों से करनी शुरु कर दी हैं। अभी हाल ही में एक चुनावी सभा में इनका बयान आया है, जिसे रांची से प्रकाशित उक्त अखबार ने प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से छापा कि मोदी बतायें, गठबंधन सरकार के लिए कौन सी कीमत चुकायी। इस पर उन्होंने कई प्रमाण भी दिये, जिसमें उन्होंने ये सिद्ध करने की कोशिश की कि गठबंधन सरकार से कोई दिक्कत नहीं होती, उन्होंने इसके लिए केन्द्र में गठबंधन के तौर पर चली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का उदाहरण दिया, पर शायद उन्हें नहीं मालूम कि झारखंड के नवनिर्माण के बाद चल रही गठबंधन सरकार पर पहला कील, नीतीश के चहेतों ने ही ठोका था। क्या नीतीश को मालूम नहीं कि उनके ही चहेतों ने बाबूलाल मरांडी की चल रही सरकार को नाक में दम कर रखा था, वह भी भ्रष्टाचार के लिए। क्या नीतीश को मालूम नहीं कि उन्हीं के एक बड़े नेता जार्ज फर्नांडीस ने उर्जा मंत्री लाल चंद महतो के आवास पर प्रेस काँफ्रेस कर तत्त्कालीन मंत्री मधु सिंह को भ्रष्टाचार के आरोप में पार्टी से निलंबित कर दिया था। क्या नीतीश को मालूम नहीं कि बाबू लाल मरांडी की सरकार क्यों गिर गयी थी। बाबूलाल मरांडी की गलती क्या थी। क्यों उन्हें सत्ता से जाना पड़ा और अर्जुन मुंडा को सत्ता सौप दी गयी। क्या नीतीश बता सकते हैं कि बाबू लाल मरांडी की गलती क्या थी और उनके चहेते रमेश सिंह मुंडा, जलेश्वर महतो, बच्चा सिंह, मधु सिंह, लाल चंद महतो किन कारणों से बाबू लाल मरांडी से चिढ़े थे, कि उक्त अखबार को मालूम नहीं हैं। हमें लगता हैं कि मालूम तो सबको हैं, पर वे जनता को दिग्भ्रमित करना चाहते हैं। सच्चाई यहीं हैं कि तत्कालीन भाजपा गठबंधन बाबूलाल मरांडी सरकार को जो नीतीश के चहेतों ने बेदखल किया, वह भी उलजुलूल- भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए, उसका दंश आज भी झारखंड झेल रहा हैं, और नीतीश को इसके लिए पूरे प्रदेश की जनता से माफी मांगनी चाहिए कि उनके चहेतों ने जो गठबंधन सरकार को नहीं चलने देने का बीजारोपण किया, वो आज भी झारखंड में जारी हैं, जिसके कारण झारखंड आजतक अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सका। जो नीतीश बिहार के विकास को लेकर खुद को चिंतित होना दिखाते हैं, उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए, कि उस विकास में भाजपा की भी सहभागिता रही, अकेले उन्होंने ही बिहार की तकदीर नहीं बदली और बिहार की क्या स्थिति हैं, उस पर ताल ठोंकने के पहले वो रिपोर्ट देख लेनी चाहिए, नीतीश को, जिसमें बिहार की राजधानी पटना को सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल किया गया हैं। ये हैं बिहार की छवि। जिस लालू की गोद में बैठकर, बिहार को आगे बढ़ाने का दावा कर रहे हैं, नीतीश को मालूम होना चाहिए कि पन्द्रह साल लालू परिवार और दस साल करीब आपका भी शासन हुआ, और बिहार की राजधानी पटना में आनेवाले बाहर के लोग अभी तक नाक पर से रुमाल हटाना नहीं छोड़ा हैं। यत्र-तत्र-सर्वत्र मल-मूत्रों से अटा पटा आपका पटना बता देता हैं कि यहां कितना विकास हुआ। आपके नेता कितने अच्छे ढंग से अपनी बातों को रखते हैं, वो कभी – कभी नहीं, बल्कि हमेशा राष्ट्रीय व प्रादेशिक चैनलों की सुर्खियां बनती हैं। दस सालों में हमने यहीं देखा हैं कि आज भी बिहार की जनता अच्छे स्वास्थ्य के लिए तमिलनाडू या दिल्ली की दौड़ लगाती हैं। पढ़ाई के लिए आज भी बिहार के बच्चे, बिहार में नहीं बल्कि दक्षिण के प्रदेशों की दौड़ लगाते हैं। पर आपको शर्म नहीं। हां, आपको इसके लिए मैं जरुर धन्यवाद दूंगा कि आपने अपने शासनकाल में दारु की दुकान हर स्कूल-कालेजों के पास खुलवा दी, ताकि बच्चें आराम से दारु के बारे में जाने ही नहीं, बल्कि उसका रसास्वादन कर अपना भविष्य बेहतर कर सकें। ज्यादा जानकारी के लिए दानापुर के डीएवी स्कूल के पास चल रहे सरकारी देसी दारु की दुकान पर जाकर आप भी आनन्द की प्राप्ति कर सकते हैं। हमें लगता हैं कि इतनी बातें सब के समझ में आ जानी चाहिए, कि नीतीश कैसे हैं और क्या हैं। बिहार का तो वो हाल इस व्यक्ति ने किया हैं कि आनेवाले दिनों में बिहार के बच्चे दारु लेकर सड़कों पर दौड़ते नजर आये तो इसे अतिश्योक्ति नही समझना चाहिए। हालांकि इसके बावजूद नीतीश भक्त पत्रकारों की टोली, नीतीश में भगवान राम और कृष्ण की छवि देखे तो इसे हम और आप क्या कर सकते हैं. उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चुनौती तो हम दे नहीं सकते। उन्हें भी हक हैं नीतीश पुराण में लीन होने की....................

Tuesday, October 28, 2014

जरा सोचिये, क्या इन बेईमानों से झारखंड को बचाना आपका फर्ज नहीं...........................

झारखंड में चुनाव की घोषणा क्या हुई........आईपीएस अधिकारियों, पत्रकारों, बिस्तर की तरह दल बदलनेवाले नेताओँ, अधिकारियों की बन आई हैं। सभी की पहली पसंद भाजपा हो गयी हैं। शायद उन्हें मालूम हैं कि भाजपा में जाने का मतलब श्योर शॉट - विधायक बन जाना हैं। भाजपा वाले भी खुश हैं - उनके दल के प्रति लोगों की सोच बदल रही हैं, माहौल बन रहा हैं, तो क्या गलत हैं। भाजपा के अंदर जो नेता व कार्यकर्ता जो मुंह पिजाये थे कि इस बार मोदी लहर में, उनका विधायक बनना तय था, बेचारे मुंह लटका लिये हैं, क्योंकि बाहर के जो नेता हैं, पहले से अपनी सीट बुक करवा चुके हैं, चूंकि विधायक हैं, इसलिए टिकट की दावेदारी तो प्रथम उन्हीे का बनता हैं। कल तक जो मुक्त कंठ से भाजपा को गरियाते थे, वे आज भाजपा नेताओं के साथ गलबहियां डाले हुए हैं, इधर भाजपा कार्यकर्ताओं की बहुत बड़ी फौज खिसयाई हुई हैं, पर क्या करें, अनुशासन का डंडा, उनको गुस्साने भी नहीं दे रहा। बहुत सारे भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं के बेटे और बेटियां, ये बोलने से नहीं चूंक रहे, अपने सगे संबंधियों को कि कल तक आप भाजपा का झंडा व डंडा ढोते थे, आपको क्या मिला। जब मेवा खाने का मौका आया, तो दूसरा दल से आया नेता और पुलिस अधिकारी विधायक बनने जा रहा हैं। आपको  क्या मिला - बाबाजी का ठुल्लू। बेचारे भाजपा नेता व कार्यकर्ता क्या बताये कि उनका भी इस मु्द्दे पर जी कसमसा रहा हैं, पर क्या करें।
इधर मीडिया के बंधु भी सदाचार के किस्से सुनाने लगे हैं। बड़े बड़े अखबार और चैनल के मालिक और तथाकथित पत्रकार चरित्र की बात कह रहे हैं। झारखंड प्रेम और उसकी दिशा पर आलेख लिख और दिखा रहे हैं। ये वो लोग हैं, जो पत्रकारिता की आड़ में सूचना आयुक्त, राज्यसभा सांसद और पता नहीं क्या- क्या बन चुके हैं और बनने का सपना देखते हैं। ये वे लोग हैं, जो बिल्डरों के अवैध धंधों को सहारा देते हैं, और ये बिल्डर इन पत्रकारों और अखबारों की आड़ में आम जनता के सपनों को लूट रहे हैं। कमाल हैं, झारखंड की जनता को लूटने के लिए और झारखंड को बर्बाद करने के लिए एक बार फिर नेता, पत्रकार, पुलिस अधिकारी और प्रशानिक उच्चाधिकारी मिल बैठ गये हैं, सभी विधायक बनने और बनाने की तिकड़म में व्यस्त हैं। इनके तिकड़मों को जो जानते हैं, उन लोगों ने भी इनका जवाब देने का मन बनाया हैं, जो वोट बेचते हैं और वोट बिकवाने तथा खरीदने का कारोबार करते हैं। सभी ने अपना दुकान खोल दिया हैं। गली मोहल्लों में नुक्कड़ सभा करने, ओटा पर बैठकी लगाने, वोटरस्लिप बांटने, पार्टी का झंडा लगाने, प्रति व्यक्ति वोटर की कीमत भी लग चुकी हैं, बस लीजिये और दीजिये का काम बाकी हैं।
दूसरी ओर ऐसे लोग हैं, जो इस प्रकार की हरकतों को देख, किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। फिर चुनाव आया हैं। कह तो सभी रहे हैं कि झारखंड बनाना हैं, पर क्या ऐसे में झारखंड बनेगा। जहां का मीडिया बिका हुआ हो, जहां के नेता दलबदलू हो, जहां के पुलिस पदाधिकारी जो आज विधायक बनने को आतुर हैं और जिनका सेवा के दौरान रिकार्ड खराब रहा हो, क्या ऐसे लोग झारखंड का निर्माण करेंगे। सवाल ये हैं....
इसलिए झारखंड की जनता से सादर अनुरोध......
कृपया आप किसी लहर में नहीं बहें.........
दल के साथ -साथ जिन्हें आप वोट देने जा रहे हैं, उनके बारे में पूरा रिपोर्ट कार्ड देखें.....
हो सकें तो जब तक आप मतदान नहीं कर लेते हैं, अखबार पढ़ना पूरी तरह बंद कर दें या चैनल देखना पूरी तरह बंद कर दें, क्योंकि ये आपके मन मस्तिष्क को प्रभावित करेंगे, क्योंकि ये विभिन्न दलों से पैसे लेकर वो सारे हथकंडे अपनाते हैं, जिससे वे खुद भी बच जाते हैं और कानून को धोखा देते हुए, आपको भी प्रभावित कर डालते हैं, गर ज्यादा जरुरी हो तो चैनल को सिर्फ नौटंकी के रुप में देखे, जिसका मतलब सिर्फ मनोरंजन होता हैं, ज्ञान बांटना नहीं..........
ये मौका बार बार नहीं मिलेगा....पांच साल के बाद मिलता हैं, झारखंड बनाने का जिम्मा केवल नेताओं का नहीं, आपका भी हैं, जरा सोचिये आप अपनी आनेवाली पीढ़ी को क्या देंगे, किसके हाथों में झारखंड सौपेंगे...बेईमानों के हाथों में या ईमानदारों के हाथों में....
मौका हैं, सही व्यक्ति को, देश हित में राज्य हित में, सदन में पहुंचाये...........

Saturday, June 21, 2014

भैया, समय नहीं हैं................

पहले धान कुटाता था
फिर चावल से धान का गर्दा हटाया जाता था
फिर धान के गर्दे को चुल्हें में झोक
भात बनाया जाता था
फिर भी लोगों के पास समय था
गेहूं को घर के जाता में पीसा जाता था
तब तावे पर रोटी बनती थी
फिर भी लोगों के पास समय था
कुएं से पानी लाकर
घर के लोग प्यास बुझाते थे
घर की मां बहने और पुरुष कुएं अथवा चापाकल से पानी लाते थे
फिर भी लोगों के पास समय था
तालाब या कुएं पर जाकर
या घर ही में पानी लाकर
लोग कपड़े धोते थे
फिर भी लोगों के पास समय था
लोगों के पास आवागमन के साधन नहीं थे
एक्का और बैलगाड़ी
ज्यादा हुई तो साइकिल से काम चलाते थे
बस और ट्रके भी देखी
मेल - एक्सप्रेस ट्रेनें भी देखी
फिर भी लोगों के पास समय था
मनोरंजन के नाम पर आकाशवाणी और रेडियो सिलोन
और टीवी के नाम पर दुरदर्शन
फिर भी लोगों के पास समय था
और आज
सब कुछ सहज हैं, पर समय नहीं हैं
रिश्ते खत्म हो गये हैं
बेटा मुंह फुलाता हैं
बेटी और पत्नी भी गुस्साती है
बहु को बात - बात पर जम्हाई आती हैं
मेरे दोस्तों के चेहरे पर हवाईयां उड़ती हैं
और अंततः वे कह उठते हैं
भैया समय नहीं हैं
समय लेकर आउंगा 
तो बातें करुंगा
दिल का हाल सुनाउँगा
जैसे लगता हैं कि किसी दुकान पर जायेंगे
पैसे निकालेंगे
और दुकानदार को कहेंगे
कि भैया रुपये के दो किलो समय तौल दो
वो समय तौलेगा
और वे मुट्ठी में समय लेकर
मेरे पास आयेंगे
तब हमें हाले दिल सुनायेंगे

Monday, June 16, 2014

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी, क्या हुआ, आप भी तो वहीं कर रहे हैं, जो कांग्रेस करती थी यानी मर जवान मर किसान.............

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी, क्या हुआ, आप भी तो वहीं कर रहे हैं, जो कांग्रेस करती थी यानी मर जवान मर किसान। याद करिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विशाल रैली....। कांग्रेस पर बरसते हुए, प्रधानमंत्री मोदी जी को....जिसमें वे कांग्रेस पर बरसते थे। कहते थे कि कांग्रेस का नारा था - जय जवान, जय किसान। पर अब नारा बदल गया हैं, कांग्रेस कहती हैं कि मर जवान, मर किसान। पर सच्चाई क्या हैं....ज्यादा दूर जाने की जरुरत नहीं। दिल्ली एयरपोर्ट पर कार्यरत सीआईएसएफ के जवानों को देख लीजिये। उनके साथ गृह मंत्रालय में कार्यरत, और उनके इशारों पर कार्य करनेवाले वरीय अधिकारी ही अपने कनीय जवानों के साथ क्या कर रहे हैं। जवानों से 18-18 घंटे काम लिये जा रहे है। यहीं नहीं 18-19 घंटे की ड्यूटी खत्म हुई नहीं कि तीन घंटे बाद उन्हें पीटी-परेड के लिए बुला लिया जा रहा हैं। यहीं नहीं उन्हें खाने पीने की भी सुविधा नहीं कि वे ड्यूटी के दौरान खा पी ले। यहीं नहीं गर इसी बीच उन्हें पेशाब या शौच लग गया तो हो गयी उनकी कयामत। अपने जवानों से इस प्रकार की हैवानियत जैसा व्यवहार कौन कर रहा हैं। ये कोई दूसरा नहीं, ये वहीं लोग हैं जो उच्च पदों पर स्थित हैं। शायद उन्हें भूख नहीं लगती होगी, या पेशाब- शौच नहीं लगता होगा। नौकरी के भय से ये जवान कुछ बोलते नहीं, पशुवत जिंदगी जीने को मजबूर हैं, पर सत्ता के मद में चूर लोगों को इनसे क्या मतलब। वोट मिल गया। जवान भार में जाये। इससे क्या मतलब। इतिहास लिखेगा कि एक गुजरात का मुख्यमंत्री था, जो प्रधानमंत्री बन गया। संघ कहेगा कि हमने वो काम कर दिया जो कोई कर ही नहीं सकता था, पर गांव के किसी कोने में बैठा, जवान का परिवार यहीं कहेगा कि जैसे कांग्रेस ने अब तक छल किया। एक और व्यक्ति, जिसका नाम नरेन्द्र मोदी हैं, उसने भी छल किया। जरा सोचिये कि दिल्ली जहां संसद हैं, वहीं पर सीआईएसएफ के जवानों का ये हाल होगा, तो बार्डर पर जो जवान रहते होंगे,  जो जेसलमेर, बाड़मेर आदि जहां 50 डिंग्री सेल्सियस गर्मी में तापमान होता हैं। भारत चीन सीमा जहां जाड़े में माइनस डिंग्री तापमान हो जाता हैं, वहां काम कर रहे जवानों की क्या हालत होती होगी। क्या जवान सचमुच सिर्फ मरने के लिए होते हैं, जैसा कि बिहार के एक मंत्री ने बयान दिया था। फिलहाल देखकर तो ऐसा ही लगता हैं। नहीं तो देश के जवानों में मंत्री, नेता, आईएएस, आईपीएस, व्यापारी, धनाढ्य वर्गों के बच्चे क्यों नहीं शामिल होते। यहां तक की एनसीसी में भी गरीबों के बच्चें क्यों, अमीरों के क्यों नहीं। इससे साफ पता चलता हैं कि इस देश में भेदभाव शुरु से चला आ रहा हैं, और ये तब तक चलता रहेगा, जब तक घटियास्तर की सोच के लोग सत्ता पर काबिज होते रहेंगे। फिलहाल एक और व्यक्ति, एक और पार्टी जिसका नाम भाजपा हैं, वो छलने के लिए तैयार हैं, उसे पांच साल तक मिल गया हैं, हमें और हमारे जवानों को उल्लू बनाने के लिए.............

Sunday, March 2, 2014

नीतीश के साथ अधिकारियों ने भी थाली पीटी, किया बिहार बंद और केन्द्र से कहा मेरी थाली में भीख दे दो.........

शनिवार की सायं सात बजे....सीएम आवास पर नीतीश अपने मंत्रिमंडल और राज्य के वरीय अधिकारियों के साथ थाली पीट रहे थे...इस थाली पीटने की आवाज को, वो दिल्ली तक पहुंचाना चाहते थे पर शायद उन्हें मालूम नहीं कि उनकी थाली पीटने की आवाज पटना की गलियों तक भी नहीं पहुंच पायी........। ये बाते मैं इसलिए लिख रहा हूं कि इनके प्रदेश कार्यालय में जहां थाली पीटी जा रही थी...वहीं के कई जेडीयू कार्यकर्ताओं को पता नहीं था कि ये थाली पीटी क्यूं जा रहीं हैं। हांलांकि नीतीश ने पूरे बिहारवासियों से थाली पीटने की गुजारिश की थी...पर ये थाली पीटने का कार्यक्रम जेडीयू का कार्यक्रम बन कर रह गया....बिहार की जनता की भागीदारी न के बराबर रही.....। याद करिये वो जमाना....जब पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भारत की जनता से अपील की थी और उस अपील को भारतीय जनता ने स्वीकार किया और उसके अनुरुप कार्य भी किया.....। पर नीतीश की ये अपील को बिहार की जनता ने पूरी तरह नकार दिया......। आज नीतीश ने सत्याग्रह की घोषणा के साथ - साथ बिहार बंद का ऐलान किया था. अपने बयान में ये भी कहा था कि उनके कार्यकर्ता सड़कों पर उतरेंगे पर जोर - जबर्दस्ती नहीं करेंगे.....पर उनके कार्यकर्ताओं ने किस प्रकार की गुंडागर्दी की..आगजनी की...किसी से छूपा नहीं हैं....। नीतीश के बंद को सफल बनाने के लिए तो पुलिसकर्मी भी आतुर दीखे....कई जगहों पर पुलिसकर्मियों ने खुद ही रस्सा बांध दिया...ताकि सड़कों पर आवागमन बाधित हो जाय। मैं नीतीश से अपील करुंगा...कि ऐसे पुलिसकर्मियों को वे महिमामंडित करें, पुलिस पदक दिलाये क्योंकि इन्होंने जेडीयू धर्म का पालन किया हैं......। नीतीश का बिहार बंद हैं....पर आम जनता कहीं नहीं दिख रही.... इनके पैसों से कुकुरमुत्ते की तरह उगे कार्यकर्ता सड़कों पर कुछ जगह दीखे और टायर जलाया....नीतीश जिंदाबाद के नारे लगाये और गायब हो गये.......। आम जनता कहीं इनके बंद में शामिल नहीं दिखी....। कहने को तो नीतीश और नीतीश भक्त पत्रकार ये भी कहेंगे कि बिहार बंद सफल रहा.......क्योंकि आज स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय, केन्द्र सरकार के कार्यालय, राज्य सरकार के कार्यालय, व्यापारिक प्रतिष्ठान, बैंक आदि सभी बंद रहे पर ये नहीं कहेंगे कि आज रविवार भी हैं.....क्योंकि बेशर्मों को भी शर्म होती हैं क्या.............. कमाल है, जब बिहार का बंटवारा हुआ था तब राबड़ी ने भी बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग की थी...तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बिहार को विशेष दर्जा देने को तैयार भीॉ थे पर खुद नीतीश अड़ंगा डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी...ये बात सभी जानते हैं पर आज सीमांध्र और तेलंगाना दो राज्य अस्तित्व में आये हैं और केन्द्र ने सीमांध्र को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया तो ये इस मुद्दे को बिहार के विशेष राज्य के मुद्दे से जोड़कर देखना और दिखाना चाह रहे हैं....यानी कड़वा - कड़वा थू - थू और मीठा - मीठा चप - चप। नीतीश को ये नहीं भूलना चाहिए कि त्रेतायुग में रावण था..जिसको बहुत घमंड था, क्योंकि उसे लगता था कि उसका साम्राज्य सुर और असुर लोकों मेंं हैं, कौन हैं जो उससे भयभीत नहीं हैं...पर उसका भी घमंड ज्यादा दिनों तक नहीं रहा.....। यहीं नहीं एक समय इसी बिहार में लालू यादव को भी घमंड हो गया था....आज लालू की क्या स्थिति हैं वो किसी से छुपा नहीं हैं....ऐसे भी जब सत्ता में कोई आता हैं तो उस पर सत्ता का नशा कुछ ज्यादा ही छा जाता हैं और इसी नशे में वो हर प्रकार की हरकतें करता हैं, जिसकी इजाजत धर्म नहीं देता...नीतीश अभी उसी सत्ता के नशे में चूर हैं....बस अब ज्यादा देर नहीं...उनका नशा जल्द ही उतरनेवाला हैं....क्योकि लोकसभा का चुनाव सर पर हैं और बिहार की जनता नीतीश को सबक सिखाने के लिए बस मौके का इंतजार कर रही हैं....फिर क्या...नीतीश का घमंड स्वाहा...उसका बड़बोलापन स्वाहा...........

Saturday, January 11, 2014

मैं हूं आम आदमी पार्टी..........

मैं हूं आम आदमी पार्टी..........
मैं एक छोटे बच्चे के गेंद से टूटी कार के शीशे की तुलना बड़े पत्थर से कर देती हूं, बच्चा माफी भी मांगता हैं तो माफ नहीं करती, उलटे प्राथमिकी करवा देती हूं, यानी बात का बतंगड़ बनाने में विश्वास रखती हूं।
मैं कश्मीर को भारत से अलग करने का मन में सुंदर भाव रखता हूं।
मैं भ्रष्टाचार हटाने के लिए चिरकूट टाइप के लोगों पर कार्रवाई करता हूं पर भ्रष्टाचार का रिकार्ड बनाने वाले के साथ मिलकर सरकार चलाता हूं।
मैं पीत पत्रकारिता करनेवाले लोगों जैसे आजतक, एबीपी, आईबीएन 7 आदि चैनलों के साथ मिलकर देश का निर्माण करने का ठेका ले रखा हूं।
मैं बिजली का बिल आधा करने के लिए, अपने सरकार का खजाना खाली कर देता हूं और सब्सिडी का सहारा लेता/देता हूं।
मैं मुफ्त में 700 लीटर पानी देता हूं पर हमारे यहां ऐसा मीटर हैं, जहां 700 के बाद मीटर आगे बढ़ ही नहीं पाता, चाहे आप कितना भी पानी क्यों न निकाल लें।
मैं आते के साथ ही 9 अधिकारियों का तबादला कर देता हूं, क्योंकि तबादला हमारा विशेष अधिकार हैं।
मैं विकास की बात नहीं करता, मैं तो सिर्फ स्टिंग की बात करता हूं क्योंकि देश विकास से नहीं स्टिंग से चलती हैं, इसलिए मैं दिल्ली की सारी जनता से कह दिया हूं कि वो सारा काम छोड़कर केवल स्टिंग करें, इससे उनका काम बहुत जल्दी हो जायेगा............
मैं झूठ बोलने का रिकार्ड बनाने की ओर अग्रसर हूं, जैसे मात्र दो दिनों में 23 हजार लोगों की शिकायत सुन ली, कमाल हैं, एडवाइज देनेवाले लोग 23 हजार शिकायतें कैसे सुन ली, वो भी दो दिनों के अँदर,हैं न आश्चर्य.......

मैं जब शपथ लेने जाता हूं तो मेट्रो का इस्तेमाल करता हूं पर विधानसभा जाता हूं तो अपने औकात दिखा देता हूं, बड़ी- बड़ी गाडि़यों का इस्तेमाल करता हूं, जब कोई टोकता हैं तो बड़ी ही बेशर्मी से ये कह देता हूं कि मैंने तो लाल बत्ती इस्तेमाल नहीं करने को कहा था, न कि बड़ी गाड़ियों के इस्तेमाल करने से स्वयं को रोकने को कहा था।
मैं चुनाव के पहले चीख-चीखकर चिल्लाता हूं, कहता हूं कि कांग्रेस और भाजपा के लोगों को जेल के अंदर कर दूंगा पर सत्ता में आते ही ये सब भूल जाता हूं।
मैं जब सत्ता से बाहर रहता हूं तो दिल्ली के मुख्यमंत्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाता हूं और जैसे ही सत्ता प्राप्त हो जाती हैं तो उसे भूल जाता हूं।
जब विपक्ष हमसे सदन में कुछ सवाल पूछता हैं तो उसका जवाब देने में मैं खुद को असमर्थ पाता हूं और 18 सूत्री कार्यक्रम का प्लान विपक्ष को समझाता हूं, इंदिरा गांधी की 20सूत्री कार्यक्रम के अंदाज में.........
मैं हूं आम आदमी पार्टी जो सभी राजनीतिक पार्टियों को गाली देता हूं पर जब सत्ता पाने की लालच हममें जगती हैं तो बड़ी ही बेशर्मी से कांग्रेस के साथ बैठ जाता हूं, यहीं नहीं सदन में कोर्ट उतारनेवाले जदयू के एक मात्र विधायक को भी अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए ललक पड़ता हूं।
आइये मिलकर आम आदमी पार्टी के हाथों को मजबूत करें, ताकि ये फिर कांग्रेस के साथ मिलकर देश में मनमोहन सिंह की तरह राज करें। ताकि चीन और अमेरिका के सपने जल्द पूरे हो जाये, देश में एक कमजोर पार्टी का शासन हो जाये, देश में एक कमजोर प्रधानमंत्री दीखे, जो अमेरिका और चीन के इशारे पर ताता थैया करें, 

कैसी रही..................

Thursday, January 9, 2014

चाटुकारिता में आजतक ने देश के सारे चैनलों को पीछे छोड़ा, शीर्ष स्थान पर अपनी सीट बरकरार रखी.................

चाटुकारिता में आजतक ने देश के सारे चैनलों को पीछे छोड़ा, शीर्ष स्थान पर अपनी सीट बरकरार रखी। जी हां, ये सत्य हैं। अभी पूरे देश के सारे राष्ट्रीय चैनलों में एक-दो को छोड़कर, होड़ लगी हैं कि अरविंद केजरीवाल की चाटुकारिता में कौन किसको पीछे छोड़ता हैं। इसमें आज तक ने अपनी सीट पहले की तरह बरकरार रखी है। कल इस चैनल ने अरविंद की तुलना महात्मा गांधी से कर दी। इस चैनल ने इसके लिए रिचर्ड एटनबरो की गांधी फिल्म का सहारा लिया और व्ही. शांताराम की सुप्रसिद्ध फिल्म दो आंखे बारह हाथ का गाना - हम भलाई करे, वो बुराई करे, कभी बदले की न हो कामना गाने को अरविंद केजरीवाल के चरणों में समर्पित कर, स्वयं को धन्य - धन्य और भारतीय जनमानस के सामने ये भाव प्रस्तुत किया कि हे देशवासियों तुम्हारा तारणहार आ गया हैं।
याद करिए दूरदर्शन का जमाना, जब आज तक जैसे चैनल नहीं थे। इंदिरा जी का देहावसान हो चुका था। राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बने थे। दूरदर्शन राजीव गांधी को मि. क्लीन के रुप में इस प्रकार प्रस्तुत करता था जैसे लगता था कि राजीव गांधी नहीं तो कोई नहीं और इसे लेकर सारा विपक्ष दूरदर्शन की आलोचना करने से नहीं चूकता। किसी ने तो इसी पर दूरदर्शन का नाम बदलकर राजीव दर्शन कर दिया था। ठीक उसी प्रकार आज तक चैनल का नाम केजरीवाल तक कर दिया जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस चैनल ने हद कर दी हैं। चाटुकारिता व ठकुरसोहाती के ऐसे - ऐसे बोल, ये बंदा बोल रहा हैं, जैसे लगता हैं कि इसने आम आदमी पार्टी से करार कर लिया हो, कि वो उनकी पार्टी को आगामी लोकसभा में सदन में बहुमत दिलाकर रहेगा। जबकि सच्चाई ये हैं कि इस पार्टी ने अब तक कोई ऐसा कार्य नहीं किया जो अनुकरणीय हो। इस अरविंद केजरीवाल से भी बेहतर और ईमानदार, सादगी में जीनेवाले मुख्यमंत्री हैं पर ये उन्हें स्थान नहीं देता। सिर्फ हरे राम हरे राम वाली महामंत्र की जगह हरे अरविंद हरे अरविंद जपता रहता हैं और पूरे देश से जपवाने की काम करता हैं। जिससे देश की पत्रकारिता को लोग संदेह की नजरों से देख रहे हैं।
हम आपको बता दें कि जिस प्रकार से इस चैनल ने अरविंद की तुलना गांधी से कर दी, ऐसी तुलना तो लाल बहादुर शास्त्री जैसे ईमानदार व सादगी के महान पुरोधा की भी नहीं की गयी थी। गांधी की तुलना, अरविंद से करना, गांधी का भी अपमान है। गांधी एकता के सूत्रधार थे, ये अलग बात थी कि गांधी के रहते, भारत तीन टुकड़ों में बंट गया। दो देश बने - भारत और पाकिस्तान। पर अरविंद केजरीवाल की पार्टी में ऐसे - ऐसे घटिया स्तर के लोग हैं जो इस खंडित देश को और भी खंड-खंड करने में लगे हैं। मानवाधिकार की आड़ में कश्मीर को भारत से अलग करने की बात कहते है। विपरीत परिस्थितियों में देश की आन-बान और शान के लिए लड़ रहे हमारे सैनिकों के कार्यों की नुक्ताचीनी करते हैं। फिर भी देश भक्त कहलाते हैं। आश्चर्य हैं कि  वातानुकूलित कमरों में बैठनेवाले आम आदमी पार्टी के घटियास्तर के नेता व आजतक के पत्रकारों को लज्जा नहीं आती। बड़ी ही बेशर्मी से आम आदमी पार्टी की जय जयकार में लगे हैं। भाई, भारत ऐसा देश ही हैं जहां पृथ्वी राज चौहान के समय जयचंद भी था, अकबर के शासनकाल में जब महाराणा प्रताप अकबर से लोहा ले रहे थे तो उसी वक्त मान सिंह भी मौजूद था। तो ऐसे समय में वर्तमान स्थिति में ऐसे लोग भी दिखाई पड़ रहे हैं तो क्या गलत हैं। फिर भी जो महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान को माननेवाले लोग हैं, उन्हें ध्यान रखना होगा कि इस बार जयचंदों की फौज जीत न सकें।

Wednesday, January 8, 2014

स्टिंग के बहाने अरविंद की स्तुति............

एक कहानी सुनाता हूं। चंपकपुर प्रदेश में एक चुल्लू पाल नामक राजा था। एक दिन वह अपने मंत्रियों और सहकर्मियों के साथ नाटक देख रहा था। नाटक जब चल ही रहा था कि नाटक के एक परिदृश्य में किन्नरों का आगमन हुआ। किन्नर सैनिकों की भूमिका में थे। साथ ही ये सैनिक बने किन्नर इस प्रकार की तलवारबाजी कर रहे थे कि चुल्लू पाल राजा को लगा कि उसके प्रदेश में सैनिकों की जगह इन किन्नरों की बहाली कर ली जाये तो उसका प्रदेश शत्रु के भय से मुक्त हो जायेगा। उसने तुरंत आदेश जारी किया कि चंपकपुर प्रदेश से सारे सैनिकों को हटाया जाये और उसके जगह पर इन किन्नरों की बहाली की जाय। फिर क्या था राजा का आदेश का पालन हुआ। वर्तमान सैनिकों की जगह किन्नरों ने ले ली। इधर चंपकपुर का शत्रु राजा वनपुर नरेश धूमल को इस बात की जानकारी मिली तो वह तुरंत चंपकपुर पर आक्रमण करने का आदेश दिया था। इधर चुल्लू पाल ने सैनिक बने किन्नरों को बुलाया और तुरंत आक्रमण का जवाब देने को कहा। चुल्लु पाल के इस बात को सुनते ही, सैनिक बने किन्नर ये कहकर भाग खड़े हुए कि भला हम क्या लडेंगे, भगवान ने तो उन्हें सिर्फ हाथ से ताली बजाकर छक्के लगाने को पैदा किया और इस प्रकार वनपुर नरेश धूमल का चंपकपुर प्रदेश पर कब्जा हो गया.............।
ठीक इसी प्रकार की कहानी हमारे देश के दिल्ली प्रदेश में दिखाई पड़ रही हैं। जिसे करना चाहिए, वो कर नहीं रहा और जिसे नहीं करना चाहिए, वो करने का साहस नहीं बल्कि ढीठई दिखा रहा हैं, जैसे लगता हैं कि दूनिया का सारा सदाचार उसके अंदर समा गया हैं और वो दिल्ली को बेहतर करके रहेगा। इसी चक्कर में दिल्ली की भद्द पीट रही है, जिसकी चिंता किसी को नहीं हैं। अभी हाल ही में दिल्ली में कल तक कांग्रेस को गाली देनेवाली आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के सहयोग से ही सरकार बनायी हैं। एक राष्ट्रीय चैनल हैं, आजतक - आम आदमी पार्टी के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं की बिरदावली गा रहा हैं। आपायण गा रहा हैं। इधर कुछ स्टिंग भी दिखाई जा रही हैं, इस चैनल पर। स्टिंग में कुछ चिरकुट टाइप के कर्मचारी, अधिकारी घूस लेते पकड़े गये, दिखाये गये हैं। जैसा कि सर्वविदित हैं इस प्रकार कि हरकत दिखाये जाने पर, कोई भी सरकार संबंधित लोगों पर कार्रवाई करती हैं, निलंबित करती हैं, दिल्ली की सरकार ने भी किया हैं। इसी दौरान इस प्रकार की हरकतों के बीच आम आदमी पार्टी, आज तक चैनल की भूरि- भूरि प्रशंसा करने में लग गयी हैं, और आज तक वाले आम आदमी पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं की प्रशंसा करने में लग  गये हैं। जैसे लगता हैं कि दिल्ली में राम राज्य आ गया। पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं। जबकि सच्चाई ये हैं कि सिर्फ चिरकुट जैसे लोगों पर ही कार्रवाई हुई हैं, घाघ लोगों पर नहीं और न ही इन चैनल के स्टिंग करनेवाले पत्रकार बने कलाकारों की हिम्मत हैं कि घाघ लोगों को पकड़ सकें।
एक बात और, जो स्टिंग कर रहे हैं, मैं तो कहूंगा कि थोड़ा अपने संस्थान में काम कर रहे अधिकारियों और कर्मचारियों तथा दूर दराज के इलाकों में काम कर रहे अपने संवाददाताओं की भी स्टिंग करा लेते तो पता चलता कि उनके यहां कितना सदाचार हैं। अरे भाई तो स्टिंग का कैमरा का मुंह जिधर रहेगा, वहीं फंसेगा न, गर कैमरा का मुंह संवाददाताओं और चैनल के प्रंबंधनकर्ताओं पर रहेगा तो क्या होगा, सभी जानते हैं। यानी ये कितने देशभक्त और समाजभक्त हैं, उसका चरित्र उजागर हो जायेगा। इधर आजतक वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम की जय जयकार करने में लगे हैं। जय - जयकार ऐसी, जैसा लगता हैं कि दोनों एक दूसरे के लिए बने हैं। इनकी दोस्ती और भाईचारे पर तो श्रीरामचरितमानस की पंक्तियां भी फेल हो जायेगी। जब दोस्ती और भाईचारे की ऐसी दास्तां टीवी पर शो के दौरान दिखाई जा रही हैं तो हमारा विचार हैं कि आजतक को आप में विलय कर देना चाहिए। पुण्य प्रसुन वाजपेयी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना देना चाहिए, क्योंकि अब अरविंद केजरीवाल तो देश के प्रधानमंत्री की कैंडिडेट हो गये हैं। ऐसे में दिल्ली की जिम्मेदारी पुण्य प्रसुन जी संभाल लें तो कितना सुंदर होगा। आजतक और आप दोनों का बेड़ा पार। हम भी कह सकेंगे कि देखों फिल्म नायक का ये रियल हीरो। और इसी खुशी में पूरे दिल्ली प्रदेश में नायक फिल्म को कर मुक्त कर फिर से हर सिनेमा हाल में दिखाया जायेगा। लोगों को मुफ्त में पानी, मुफ्त में बिजली और अब मुफ्त में फिल्म भी, क्या बात हैं। 
कहने का तात्पर्य हैं कि आज के पत्रकारों को क्या हो गया है। पत्रकार किसी की चाटुकारिता करता हैं क्या। पत्रकार संदर्भ रखता हैं। निर्णय जनता को करना हैं, पर यहां तो समाचार दिखाने के क्रम में चाटुकारिता हो रही हैं। इस प्रकार आप पार्टी का गुणगाण हो रहा हैं, जैसे लगता हो कि ये आप के राष्ट्रीय सलाहकार की तर्ज पर काम कर रहे हो। और इसी क्रम में पूरे देश की जनता गुमराह हो रही हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे कभी आसाराम, तो कभी तरुण तेजपाल की चक्कर में यहां की जनता स्वयं को लूटा बैठी हैं। मेरा मानना हैं कि किसी को भी देश की जनता ने ये अधिकार नहीं दिया कि वो चैनल पर बैठकर अनाप शनाप बोले, प्रवचन करें। सरकार को चाहिए कि इस प्रकार की हरकतों को देखते हुए, राष्ट्रीय चैनलों के लिए भी कुछ मानक तय करें, नहीं तो देश और समाज हाथ से निकल जायेगा और ये लोग बैठकर जनता को मूरख बना, देश पर राज करते रहेंगे, देश गुलाम बनता रहेगा। जैसा कि शुरुआत में हमनें कहानी से अपनी बात कह दी...........

Monday, January 6, 2014

जब पत्रकार कलाकार हो जाये तो क्या होगा..........

जब पत्रकार कलाकार हो जाये तो क्या होगा....................
वहीं होगा जो आप देख रहे हैं
1. दिल्ली में बैठा राष्ट्रीय चैनलों का एंकर आपायण गायेगा।
2. अरविंद केजरीवाल की स्तुति गायेगा।
3. अरविंद की हर गलतियों पर पर्दा डालेगा।
4. अरविंद को जो पसंद आयेगा, वहीं बात करेगा।
5. पाकिस्तान का प्रधानमंत्री, विदेशों में भारत के प्रधानमंत्री की जब इज्जत उतारेगा तो उस समय उसके साथ बैठकर नाश्ता करेगा।
6. अपनी पत्रकारिता की जमीर बेचेगा।
7. जब संसद में बैठे सांसदों को पैसे से खरीदा जायेगा, तो उस वक्त की विजूयल उसके पास रहने के बावजूद उस विजूयल को नहीं दिखायेगा, जब देश और विदेश में उस पर थू थू होगी तब जाकर, बहुत अर्से बीत जाने के बाद कांट छांट कर समाचार दिखायेगा, तब तक उक्त समाचार की अहमियत भी नहीं रह जायेगी।
8. देश का सबसे बड़ा उद्योगपति या उसका परिवार कुछ भी अतःतः करेगा, तो उसके खिलाफ वह आवाज नहीं उठायेगा।
9. एक नहीं कई तरीकों से पैसे कमायेगा।
10. अपनी अंतरात्मा को बार-बार बेचेगा और ढिंढोरा पीटेगा कि दुनिया का सबसे बडा़ और नेक पत्रकार वहीं हैं, वहीं हैं, वहीं हैं............
11. एक ही पत्रिका में खुद भी लिखेगा और अपनी पत्नी से भी लिखवायेगा।
12. राज्य सरकार से मिलनेवाली किसी भी मीडिया फैलोशिप को गलत तरीके से पाने की कोशिश करेगा, और दूसरो को भी दिलवायेगा, एक कोशिश और करेगा कि वह अपनी पत्नी को जरुर उपकृत करवाये।
13. पत्रकारिता की आड़ में कई संस्थानों में अपनी गाड़ी भी चलवायेगा, कई कंपनियों का काम भी करवायेगा और अपनी पत्नी अथना प्रेमिका को स्विटजरलैंड की सैर करवायेगा।
पत्रकारिता में फैले इन दुराचारियों से पत्रकारिता को मुक्त कराइये,
देश को आगे बढ़ाईये............ 

Thursday, January 2, 2014

हमने देखा है....................

हमने देखा है
2014 के पहले दिन 
नये वर्ष का स्वागत करते
बहकते कदमों, पागल मन और
थिरकते पगों को अपने आप पर
मचलते देखा हैं..............
बीच सड़कों पर कटते बकरों,
दम तोड़ते मौत से छटपटाते मुर्गों,
और इसी बीच ठहाके लगाते
कसाईयों को मुस्काराते देखा हैं............
बड़े - बड़े होटलों से
छोटे होटलों तक,
शहरों से गांवों तक,
शराब से नहाते - नहलाते
युवक-युवतियों को देखा हैं...............
धूल से नहलाने को विवश करते
सड़कों पर कारों
और बाइक सवारों को
एक दूसरे को पछाड़ते देखा हैं...........
खाने-पीने के बीच,
मस्ती और आनन्द लेने के क्रम में,
झूठे आनन्द की खोज में.
तमंचों से चली गोलियों के बीच
दो जानों को लूढ़कते देखा हैं..............
कोई कहता बिहार जागे
तो देश आगे
पर इस नारे को सदा के लिए
सुलाने को तैयार,
सरकार को कदम बढ़ाने को
संकल्पित देखा है..............
एक नहीं कईयों को
अच्छे से अच्छे बननेवाले भइयों को
आदमी नहीं शैतान बनते देखा हैं...............
2014 के पहले दिन
नये वर्ष का स्वागत करते
बहकते कदमों, पागल मन और
थिरकते पगों को अपने आप पर
मचलते देखा हैं..............