Wednesday, December 31, 2014

पीके के नाम पर.....................

म तो पीके का मतलब पहले रांची से प्रकाशित होनेवाला एक समाचार पत्र प्रभात खबर ही समझते थे, हमें क्या मालूम कि आगे चलकर इस पर फिल्म भी आ जायेगी, पर सच्चाई हैं, फिल्म तो आ गयी – कुछ लोग इसे बेहतरीन फिल्म मान रहे हैं, तो कुछ लोग विरोध कर रहे हैं। दोनों के अपने – अपने तर्क हैं और दोनों के तर्क को झूठलाया भी नहीं जा सकता, पर इन दोनों को नहीं मालूम कि तीसरे ने जो ये फिल्म बनायी हैं, या इस फिल्म में काम किया हैं, उनका मूल मकसद येन केन प्रकारेण पैसा बनाना हैं, इसके सिवा और कुछ करना नहीं, न तो ये धार्मिक हैं और न ही धर्म से लेना – देना या धर्म के रहस्यों को जाननेवाले। इधर समर्थन – विरोध के क्रम में ये फिल्म अब तक 200 करोड़ रुपये तक की बिजनेस कर चुकी हैं यानी पैसों के आधार पर देखे तो फिल्म हिट। याद रहें, पहले पैसे नहीं तय करती थी कि फिल्में हिट हुई या नहीं, पूर्व में कौन सी फिल्म किस या कितने हालों में ज्यादा महीनों या वर्षों तक टिकी रही – ये पैमाना होता था। पर सच पूछिये तो आजकल 200 करोड़ रुपये कमानेवाली फिल्म हो या पांच करोड़ की फिल्म, कोई अब इन्हें पूछता नहीं, एक बार देख लिया – और लिखो-फेंकों कलम की तरह अपने जेहन से उतार दिया। सामान्य व्यक्ति तो आजकल सिनेमा हाल में जाता ही नहीं, वो तो टीवी से ही चिपककर अपना मनोरंजन और ज्ञानवर्द्धन कर लेता हैं। खैर पूर्व में जब आज से पच्चीस साल पहले रांची से मेरा नाता जुड़ा तो मैं कभी प्रभात खबर का फैन हुआ करता था, पर अब मेरा सारा अनुराग उस अखबार के प्रति जो था, वो काफुर हो गया हैं। अब तो मैं अपने घर में ये अखबार आने ही नहीं देता, क्योंकि मुझे ऐसे आंदोलन की जरुरत नहीं, जो अखबार वाले लाते हो। और अब हम बात कर रहे हैं, फिल्म पीके की। जो विरोध कर रहे हैं, उनसे सवाल। क्या आपने फिल्म देखी हैं, गर फिल्म देखी हैं तो जरा ध्यान दीजिये, फिल्म शुरु होते ही, लालकृष्ण आडवाणी, प्रतिभा आडवाणी, अमिताभ बच्चन, राजस्थान पत्रिका, भाषा, आर्ट आफ लिविंग के रविशंकर के नाम आदि पढ़ने को मिलेंगे। मतलब समझिये, ऐसे एक नहीं अनेक लोगों के नाम आपको पढ़ने को मिलेंगे, जो या तो भाजपाई हैं या भाजपा का समर्थन करते हैं, इनकी केन्द्र बिन्दु या तो भाजपा हैं या संघ। जिससे ये ओतप्रोत रहते हैं। और जो विरोध कर रहे हैं मूलतः हिन्दूवादी संगठन हैं, जो किसी न किसी प्रकार से भाजपा से जूड़े होते हैं, मेरा सवाल हैं कि ये भाजपाई सीधे आडवाणी के घर जाकर, उनसे सीधे सवाल क्यों नहीं पूछ लेते कि भाई हम फिल्म का विरोध कर रहे हैं, आप समर्थन क्यों कर रहे हें। या यहीं सवाल श्री श्री रविशंकर से क्यूं नहीं पूछ लेते। यानी एक तरफ विरोध और दूसरी तरफ भाजपाईयों द्वारा ही इस फिल्म का समर्थन और प्रशंसा, कुछ बात हजम नहीं हो रही। फिल्मवालों ने भी गजब फिल्म बनायी हैं जरा देखिये एक डायलाग जिसमें आमिर खान बोलता हैं कि कुछ लोग बोलते हैं गाय की पूजा करो और कुछ लोग कहते हैं कि गाय का बलिदान कर दो और इसी फिल्म में एक सामान्य व्यक्ति से डायलाग बुलवाया जाता हैं, जिसमें कहता हैं कि गाय को खाना खिलाने से हमें नौकरी मिलेगी तो क्या गाय हमारी डिग्री लेकर संस्थानों में जायेगी और पता नहीं क्या – क्या। यानी बेसिरपैर के डायलाग बोलकर, जनता को भरमाने का काम जरुर किया गया, साथ ही हिंदू धर्म के अंदर व्याप्त अंधविश्वास और पाखंड की आलोचना की गयी। मेरा मानना हैं कि दुनिया का कौन ऐसा धर्म हैं, जो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया गया और उसमें पाखंड नहीं। हमें आश्चर्य हो रहा हैं कि पूर्व में इन सब का विरोध वामपंथी किया करते थे, पर अब विरोध और समर्थन दोनों का काम भाजपाईयों ने उठा लिया हैं और रही बात अखबारों की तो उनकों पैसे फेंकिये और पूरा पेज ले लिजिये, दूसरे दिन देखिये आपकी फिल्म की तारीफ का कैसा पूल बांधते हैं, यानी हर्रे लगे, न फिटकरी और रंग चोखा। यानी फिल्म बनानेवालों ने हर प्रकार से खुद को बचाने का प्रबंध भी कर लिया, थोड़े पैसे के टूकड़े अखबार व चैनलों को फेकां और उन टूकड़ों पर अखबार और चैनलों के लोगों ने खुब मुंह मारीं, बदले में फिल्म का गुणगान किया, फिल्म हो गयी हिट, देश व समाज और धर्म जाये तेल लाने, इसे हमें क्या। हमको जिनको गरियाना था, गरिया दिया...............इसे ही तो फिल्म वालों की राजनीति कहते हैं।

Tuesday, December 23, 2014

सब पर भारी, झारखंड की जनता हमारी। कोई नहीं भरमा पायेगा, जब जनता जग जायेगा।।..........

हां भाईयों, सब पर भारी, झारखंड की जनता हमारी। कोई नहीं भरमा पायेगा, जब जनता जग जायेगा।। – ये नारा सम-सामयिक हैं, क्योंकि कल तक सारे राजनीतिज्ञों, मीडियाकर्मियों और ज्योतिषियों की धड़कनें तेज थी कि पता नहीं जनता का जनादेश क्या होगा......सभी अपनी –अपनी कलाबाजियों का प्रदर्शन करते हुए, डींगे हांक रहे थे। सब की अपनी – अपनी दलीलें, कोई कह रहा था कि मेरे क्षेत्र में हमने इतने काम किये हैं कि वहां से कोई दूसरा जीत ही नहीं सकता, कोई कह रहा था कि हमने धूप में बाल थोड़ी ही सुखायें हैं, पत्रकारिता की हैं, इसलिए जो हम बोल रहे हैं, वहीं होगा और राजनीतिक भविष्यवाणी करनेवाले ज्योतिषियों की तो हवा निकल गयी हैं, बोलते ही नहीं बन रहा, कल तक अर्जुन मुंडा को पुनः प्रतिष्ठित करनेवाले यानी मुख्यमंत्री बनाने का दावा करनेवाले ज्योतिषी खोजते नहीं मिल रहे। एक दो राजनीतिक पंडितों से बात हमने करनी चाही तो वे अपनी मोबाइल बंद कर सोते हुए मिले....कुछ की पत्नियां फोन उठायी और बड़ी विनम्रता से बोली, पंडित जी महराज सो रहे हैं, कृपा कर बाद में फोन करें..............अब हम क्या बोले कि पंडित जी को आज सोना ही देना उत्तम होगा, क्योंकि आज का दिन उनके लिए सोने के लिए ही संदेश लेकर आया हैं................ आखिर क्या हुआ हैं – झारखंड में.................. झारखंड में वो हुआ हैं, कि ऐसा किसी प्रदेश में आज तक नहीं हुआ..... जनता ने एक साथ कई को सबक सिखाया हैं और कहा हैं कि अब ज्यादा चूं कि तो समझ लो, तुम्हारी खैर नहीं.................. झारखंड की जनता ने वो काम किया हैं कि जिसकी जितनी प्रशंसा की जाय कम हैं, गर मेरी चले तो तो मैं एक लाइन में कह दूं कि यहां की जनता ने झारखंड के साथ खिलवाड़ करनेवाले नेताओं के साथ - साथ मीडिया को भी बजा दिया हैं कि मन करता हैं जनता जनार्दन का हाथ चूम लूं.......... यहां की जनता ने पहली बार राज्य के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत निवर्तमान मुख्यमंत्री तक को पहले धूल चटाया हैं......... जैसे बाबू लाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, हेमंत सोरेन ( बरहेट से जीते जरुर पर दुमका से हारे भी) को हराया............. यहीं नहीं..... आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो को भी बाहर का रास्ता दिखाया.......... काग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत और नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र प्रसाद सिंह को भी सदन में जाने से रोका............ झारखंड की पहली सरकार में कील ठोकनेवाले और गठबंधन की पहली सरकार को पटरी से उतारनेवाले लालचंद महतो और जलेश्वर महतो (प्रदेश अध्यक्ष जदयू) की औकात बता दी.......... राजद के प्रदेश अध्यक्ष गिरिनाथ सिंह और राजद की तेज तर्रार नेता अन्नपूर्णा देवी को भी कह दिया कि इस बार आपकी सदन में जरुरत नहीं............ जो मीडिया हरे मोदी, हरे मोदी, हरे अमित शाह, हरे अमित शाह कहकर उनके मतदान प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा था उसे भी औकात बता दी और राज्य में एक मजबूत विपक्ष भी इस बार प्रदान कर दिया.........और अंत में कह डाला कि देश की राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां, ज्योतिषियों का झूंड और खुद को लोकतंत्र का 4था स्तंभ कहनेवालों झारखंड की जनता के इस निर्णय का सम्मान करें और सबक लें...नहीं तो जब भी मौका मिलेगा, हम अपना निर्णय सुनायेंगे और वो निर्णय ऐसा होगा, जिसकी परिकल्पना किसी ने नहीं की होगी............... अब जरा सोचिये किसी ने सोचा था क्या कि दो सीटों से चुनाव लड़नेवाले बाबू लाल मरांडी, खरसावां से चुनाव लड़नेवाले मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार अर्जुन मुंडा, दुमका से हेमंत सोरेन, मझगांव से मधु कोड़ा चुनाव हार जायेंगे, पर हुआ तो ऐसा ही....क्या किसी मीडियावालों ने सोचा था क्या कि इस बार सिल्ली से सुदेश हार जायेंगे, क्योंकि हर बात में मीडिया उनकी स्तुति गा दिया करता था..........पर हुआ तो ऐसा ही हैं............... मैं, जब एक महीने पहले जयपुर से रांची आया तो जनता के बीच गया, छटपटाहट देखी, वो छटपटाहट थी – बार बार दामन पर लगनेवाले दाग की, वो छटपटाहट थी की मीडिया और राजनीति में शामिल लोग उन्हें बार – बार बदनाम क्यों करते हैं, ये क्यों कहते हैं कि स्पष्ट जनादेश जनता ने नहीं दिया......आखिर चुनाव आयोग क्यों पांच चरणों में चुनाव कराता हैं, आखिर राज्यसभा में उनके चूने हए प्रतिनिधि क्यों पैसे लेकर वोट डाला करते हैं, क्यों उन्हीं के समय जन्म लिया छत्तीसगढ़, उत्तराखंड उनसे आगे निकल गया और हम पीछे रह गये, आखिर उनके नेता विकास की सीढ़ियां चढ़ते हुए उनसे आगे कैसे निकल गये और वे पीछे क्यूं रह गये....क्यों उनके नेता विदेशों में अपने परिवार का इलाज कराने के लिए उन्हीं के पैसों का इस्तेमाल करते हैं पर उनके बेटे-बेटियां अच्छे इलाज के लिए तरस जाते हैं और इन्हीं छटपटाहटों के बीच झारखंड की जनता ने स्पष्ट जनादेश देने का मन बनाया और साथ ही संकल्प लिया कि वे उन्हें सबक सिखायेंगे, जो उन्हें सबक सिखाने की सोचते हैं, लीजिये जनादेश सामने हैं, जनता ने अपना काम कर दिया...गर इस जनादेश को समझ कर भी किसी की समझ नहीं खुलती हैं तो ऐसे लोगों के लिए तो भगवान ही मालिक हैं.....................

अपने बीवी-बच्चों को मुख्यमंत्री बनानेवाले, सजायाफ्ता और जनता को धोखा देने में महारत हासिल रखनेवाले नेताओं की फौज अब मोदी से हिसाब मांग रही हैं......

लो कर लो बात......., खुद भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे, अपने बीवी-बच्चों को सांसद-मंत्री और मुख्यमंत्री बनानेवाले, न्यायालय से सजा पाये, नेताओं की फौज दिल्ली में मोदी से हिसाब मांग रहे हैं, ताल ठोक रहे हैं कि वे सत्ता से मोदी को उखाड़ फेंकेंगे, ये वे लोग हैं, जिनकी कोई औकात नहीं, पर मोदी की औकात बताने में लगे हैं.....ये वे लोग हैं, जिन्हें बोलने तक की तमीज नहीं...जो बलात्कारियों पर भी कृपा लूटाते हैं, मोदी को सत्ता से हटाने का ख्वाब देख रहे हैं....इन राजनीतिबाजों के कलाबाजियों पर तो अब हंसी भी नहीं आती, क्योंकि इन्होंने तो यूपी-बिहार को कबाड़ बना कर रख दिया हैं। जब से लालू की बेटी और मुलायम के पोते की सगाई हुई हैं। लालू का मुलायम प्रेम देखते बन रहा हैं। एक समय था कि मुलायम के प्रधानमंत्री बनने के समय सबसे बड़ा रोड़ा लालू ही बनकर उभरे थे, पर अब लालू ऐसा नही करेंगे, इसका शायद उन्होंने मुलायम के समक्ष अब संकल्प कर लिया हैं। दूसरी ओर एक समय भाजपा के साथ गलबहियां डालकर घूमनेवाले और कभी मोदी के लिए कशीदे पढ़नेवाले नीतीश को परमज्ञान की प्राप्ति हो गयी हैं, वे अब लालू के गोद में बैठकर, लालू-मुलायम की भक्ति में जूट गये हैं, ये भी कह रहे हैं, मुलायम भैया को हम प्रधानमंत्री बनाकर रहेंगे, चाहे बिहार में उनकी सांसदों की संख्या शून्य ही क्यों न हो जाये, पर सपना देखने में क्या बुराई हैं, क्योंकि दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता हैं। चूंकि नरेन्द्र मोदी ने नीतीश के सपने चकनाचूर कर दिये, इसलिए नीतीश के सबसे बड़े शत्रु मोदी हैं, और मोदी को सत्ता से बेदखल करने के लिए गर घोटालेबाजों से भी, बीवी-बच्चों को सांसद और मुख्यमंत्री बनानेवाले राजनीतिबाजों से दोस्ती करनी पड़ें तो इसमें नीतीश को बुराई नहीं दिखती। खैर छोड़िये, ये हमेशा, जूटते हैं, हमेशा टूटते हैं, क्यों जूटते हैं, इनका तो इन्हें पता रहता हैं पर क्यों टूटते हैं, शायद इन्हें मालूम होने के बावजूद ये गलतियां करते रहते हैं। फिलहाल इन दिनों काला धन वापस लाने का मुद्दा और देश में चल रहे धर्मांतरण का मुद्दा ये जोर – शोर से उठा रहे हैं। जातीयता की राजनीति करनेवाले यानी नरक में भी ठेला-ठेली करनेवालों को देश में धर्म के नाम पर देश का बंटाधार होता दीख रहा हैं। संसद से लेकर सड़क तक शोर मचा रहे हैं, पर ये नहीं बता रहे कि यूपी-बिहार में किस प्रकार इन्होंने जातियता का नंगा नाच किया हैं। कैसे बिहार में लालू ने पन्द्रह साल तक जंगल राज स्थापित किया जिस कारण बिहार की जनता ने इस जंगलराज से आजीज होकर नीतीश को सत्ता सौंपी, ये अलग बात हैं कि बिहार की जनता को लालू फूटी आंख नहीं सुहाते, पर नीतीश और शरद को तो लालू में अब भगवान नजर आते हैं। इन दिनों मोदीफोबिया की बीमारी से ग्रसित नीतीश कुमार मोदी की सीडी का जंतर बनाकर गला में लटकाये घूम रहे हैं, जहां मौका मिलता हैं मोदी की वो सीडी सुनाते हैं....रोते हुए सभा में कहते हैं कि देखिये मोदी ने आपसे वायदा किया था पर मोदी ने वायदा नहीं निभाया। वादा तो हम यानी नीतीश निभाते हैं, आपने भाजपा-जदयू गठबंधन को बिहार में सरकार चलाने का बहुमत दिया था पर हमने आपके दिये इस बहुमत के फैसले को ठेंगा दिखा दिया और अब राजद के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं...यानी अपनी बेशर्मी नीतीश को नहीं दिख रही, कल तक बिहार के गांव – गांव में शत प्रतिशत बिजली देने की घोषणा करनेवाले नीतीश क्या बतायेंगे कि क्या बिहार के सभी गांवों में 24 घंटे बिजली हैं, गर नहीं तो जिसके घर शीशे के बने हो, उसे दूसरे के घर में पत्थर नहीं फेंकने चाहिए...... क्या हाल बना दिया हैं, राजधानी पटना का नीतीश ने...गंदगियों और मलमूत्र से पटा पटना में कोई आना नहीं चाहता....गांव –गांव में चाय की दुकान की तरह दारु का दुकान खुलवा दिया और खुद को विकास पुरुष मान बैठा हैं.....इसके शासनकाल में मीडियाकर्मियों की क्या हालत थी, कैसे मीडियाकर्मियों का ये शोषण करवाता था, पटना के विभिन्न अखबारों में कार्य करनेवाले मीडियाकर्मी बताते हैं पर मोदी ने जैसे ही इनके जनसहयोग से पर कतरे, इनकी चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। लालू-मुलायम-नीतीश जितनी जोर लगा ले, पर उन्हें मालूम होना चाहिए कि जनता जाग गयी हैं, इनकी हरकतों को देख चुकी हैं, झांसे में नहीं आनेवाली। पांच साल के लिए मोदी को अपना बहुमत दी हैं। मोदी को पांच साल में दिखाना हैं अपना किया वादा, अपना वादा मोदी पुरा करेंगे तो फिर सत्ता में आयेंगे, नहीं तो जनता के पास विकल्पों की कमी हैं क्या, कि वे विकल्प के लिए नीतीश-लालू और मुलायम की ओर देखेगी। इन लोगों ने तो अपना दीदा खो दिया हैं, शर्म आनी चाहिए, ऐसे नेताओं को जो जनता को बरगलाने में लगे हैं।

Sunday, December 21, 2014

घोर आश्चर्य ?


झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद से लेकर मतदान संपन्न होने तक, मात्र चंद पैसों के लिए विज्ञापन के नाम पर --- हरे मोदी, हरे मोदी, मोदी- मोदी, हरे हरे, हरे अमित शाह, हरे अमित शाह, अमित शाह – अमित शाह, हरे हरे।। - का जाप करनेवाले, आज ताल ठोंक रहे हैं कि राज्य में उनके चलते मतदान की प्रतिशतता बढ़ी हैं, क्या ये शर्मनाक नहीं हैं, क्या ये खुद को ईश्वर बताने की, मानने की कुटिल चाल नहीं हैं, जनता ऐसे लोगों से, ऐसे अखबारों और चैनलों से सावधान रहें, क्योंकि कुछ ही दिनों में मतगणना होगी, और जिसकी सरकार बनेगी, ये मीडिया वाले, उनकी चरणवंदना करने में सबसे आगे रहेंगे, साथ ही अपने हक का झारखंड लूटने में प्रमुख भूमिका निभायेंगे, उसके बाद क्या होगा, होगा वहीं - जनता एक बार फिर अन्य दिनों की तरह मीडियावालों से छली जायेंगी। ये मैं इसलिए लिख रहा हूं कि आज सुबह जैसे ही मेरी नींद खुली। एक अखबार ने राज्य में भारी मतदान पर संपादकीय लिख डाली और ये मान बैठा कि उसके कारण ऐसा संभव हुआ हैं। उसने एक अभियान चलाया और जनता उस अभियान से प्रभावित होकर 9 प्रतिशत ज्यादा मतदान कर बैठी, जबकि सच्चाई ये हैं कि राज्य में मतदान की प्रतिशतता बढ़ने के दूसरे बहुत सारे कारण है। जनता की वर्तमान सरकार से नाराजगी सबसे बड़ा कारण हैं, साथ ही बार-बार गठबंधन की सरकार के कारण विकास कार्य प्रभावित होना भी एक कारण हैं। तीसरा सबसे बड़ा कारण मोदी के बार – बार झारखंड आने और खुद को विकास के एजेंडें तक सीमित रखने और विश्वास बनाने, कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों का इस चुनाव के प्रति घोर निराशा का होना और मीडिया का मोदी के इर्द-गिर्द सिर्फ चंद पैसों के लिए जी – हुजूरी करना शामिल हैं। मीडिया ये नहीं भूले कि झारखंड को बर्बाद करने में गर नेताओं की अहम भूमिका हैं तो पत्रकारों की भी कम भूमिका नहीं हैं। झारखंड में पत्रकारों की एक बहुत बड़ी लंबी लिस्ट हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार के रिकार्ड बनाये हैं गर इसकी सूची प्रकाशित हुई तो बहुत सारे लोग नंगे हो जायेंगे। कोई किसी आर्गेनाइजेशन का संयोजक बनने के लिए तो कोई सूचना आयुक्त बनने के लिए, कोई सरकारी संस्थानों में अपने भाई-भतीजों को नौकरी दिलवाने के लिए, कोई कोयला और सोने के खदानों को पाने के लिए, कोई निजी संस्थानों में खुद को प्रतिष्ठित करने के लिए कैसे झारखंड की भोली – भाली जनता को लूटा हैं। वो सभी जानते हैं, पर अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया को देखे तो पता चलेगा कि दूनिया की सारी सच्चाई और ईमानदारी का ठेका, इन्हीं मीडियाकर्मियों ने ले रखा हैं। जिस प्रकार राष्ट्रीय चैनलों के मालिक और कई संपादक अपनी जमीर नेताओं के आगे गिरवी रखा हैं, उसी प्रकार झारखंड में भी वो चीजें देखने को मिल रही हैं, ऐसे में झारखंड की प्रगति का रोना-रोना मीडियाकर्मियों या उनके बॉस या उनके मालिक को शोभा नहीं देता। उनके इस रोने को घड़ियाली आंसू कहना, घड़ियाल तक का अपमान हैं। ये वे लोग हैं, जिन्हें ईश्वर ने दंडित करने का विशेष अभियान चलाने का शायद फैसला कर लिया हैं, जल्द ही वे इन फैसलों के अमल में आने के बाद दंडित होंगे, क्योंकि दो प्रकार के संविधान हैं। एक जिसे ईश्वर ने बनाया और एक वो जिसे मनुष्य ने अपनी सफलता और असफलता को सिद्ध करने के लिए खुद से संविधान बना डाली। मनुष्य के बनाये संविधान से तो वो बच जायेगा, पर ईश्वर के बनाये संविधान से बच पायेगा, हमें नहीं लगता। इन सभी ने शर्म बेच खाया हैं, इन सभी ने ईमान बेच खाया हैं, निर्मल बाबा और हनुमान यंत्र में भी इन्हें भेद नजर आता हैं, चूंकि निर्मल बाबा ने विज्ञापन के नाम पर माल नहीं दिया, तो उसे बदनाम कर ड़ाला, और जिसने विज्ञापने के नाम पर माल दिया, उसे मालोमाल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा दी। जबकि ईश्वर की अदालत में दोनों समान रुप से अपराधी हैं। ये तो एक प्रकार का उदाहरण, मैंने सामान्य जनता के सामने रखा हे। मैं झारखंड की जनता से यहीं कहूंगा कि आप स्वयं को इन अखबारों और चैनलों से बचा कर रखिये, क्योंकि इन पर विश्वास करना, खुद को धोखे में रखना, मूर्ख बनना और राज्य को गर्त में डालने के सिवा दूसरा कुछ भी नहीं..............

Saturday, December 13, 2014

झारखंड के नवनिर्माण के बाद चल रही गठबंधन सरकार पर पहला कील, नीतीश के चहेतों ने ठोका.....................

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को महापुरुष सिद्ध करने में बिहार – झारखंड से प्रकाशित होनेवाले एक अखबार ने एड़ी-चोटी लगा दी है। उस अखबार को लगता हैं कि ऐसा करने से दोनों प्रदेशों की जनता उसके झूठी खबरों के झांसे में आ जायेगी, और वहीं करेगी, जो वह सोचता हैं, पर क्या ऐसा संभव हैं। गाहे – बगाहे, उक्त अखबार में नीतीश कुमार का बयान प्रमुखता से छापा जाता हैं, जैसे लगता हैं कि नीतीश वर्तमान राजनीति के आदर्श पुरुष हैं। हाल ही में झारखंड में हो रहे चुनाव के दौरान बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने चहेते खीरु महतो, बटेश्वर महतो और जलेश्वर महतो के पक्ष में चुनावी सभा की और अपने चिर परिचित अंदाज में भाजपा की बखिया उधेड़नी शुरु की। हम आपको बता दें कि नीतीश का भाजपा के खिलाफ विषवमन तब से शुरु हुआ, जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इनके सपने को पूर्णतः ध्वस्त कर दिया, और वे भारत के प्रधानमंत्री बन गये। तभी से उनके लिए भाजपा अछूत बन गयी और लगे भाजपा को अपनी ताकत दिखाने, हालांकि उनकी कितनी ताकत हैं, वो तो पता लोकसभा के चुनाव में ही लग गया, जब उनकी पार्टी दो सीटों में सिमट गयी और वे उससे इतने विचलित हुए कि जिसके खिलाफ जनता ने उन्हें वोट देकर बिहार का सिरमौर बनाया था, वे उसी यानी लालू प्रसाद यादव के गोद में बैठकर भाजपा को मिटाने का सपना देखने लगे हैं। सपना उन्हें देखना भी चाहिए, पर ये सपना पूरा होगा या खुद ही राजनीति से मिट जायेंगे, इसका जवाब तो बिहार की जनता बेसब्री से देने को तैयार हैं। कुछ – कुछ इसकी तैयारी तो नीतीश के ही उत्तराधिकारी, बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने अपने बयानों से करनी शुरु कर दी हैं। अभी हाल ही में एक चुनावी सभा में इनका बयान आया है, जिसे रांची से प्रकाशित उक्त अखबार ने प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से छापा कि मोदी बतायें, गठबंधन सरकार के लिए कौन सी कीमत चुकायी। इस पर उन्होंने कई प्रमाण भी दिये, जिसमें उन्होंने ये सिद्ध करने की कोशिश की कि गठबंधन सरकार से कोई दिक्कत नहीं होती, उन्होंने इसके लिए केन्द्र में गठबंधन के तौर पर चली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का उदाहरण दिया, पर शायद उन्हें नहीं मालूम कि झारखंड के नवनिर्माण के बाद चल रही गठबंधन सरकार पर पहला कील, नीतीश के चहेतों ने ही ठोका था। क्या नीतीश को मालूम नहीं कि उनके ही चहेतों ने बाबूलाल मरांडी की चल रही सरकार को नाक में दम कर रखा था, वह भी भ्रष्टाचार के लिए। क्या नीतीश को मालूम नहीं कि उन्हीं के एक बड़े नेता जार्ज फर्नांडीस ने उर्जा मंत्री लाल चंद महतो के आवास पर प्रेस काँफ्रेस कर तत्त्कालीन मंत्री मधु सिंह को भ्रष्टाचार के आरोप में पार्टी से निलंबित कर दिया था। क्या नीतीश को मालूम नहीं कि बाबू लाल मरांडी की सरकार क्यों गिर गयी थी। बाबूलाल मरांडी की गलती क्या थी। क्यों उन्हें सत्ता से जाना पड़ा और अर्जुन मुंडा को सत्ता सौप दी गयी। क्या नीतीश बता सकते हैं कि बाबू लाल मरांडी की गलती क्या थी और उनके चहेते रमेश सिंह मुंडा, जलेश्वर महतो, बच्चा सिंह, मधु सिंह, लाल चंद महतो किन कारणों से बाबू लाल मरांडी से चिढ़े थे, कि उक्त अखबार को मालूम नहीं हैं। हमें लगता हैं कि मालूम तो सबको हैं, पर वे जनता को दिग्भ्रमित करना चाहते हैं। सच्चाई यहीं हैं कि तत्कालीन भाजपा गठबंधन बाबूलाल मरांडी सरकार को जो नीतीश के चहेतों ने बेदखल किया, वह भी उलजुलूल- भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए, उसका दंश आज भी झारखंड झेल रहा हैं, और नीतीश को इसके लिए पूरे प्रदेश की जनता से माफी मांगनी चाहिए कि उनके चहेतों ने जो गठबंधन सरकार को नहीं चलने देने का बीजारोपण किया, वो आज भी झारखंड में जारी हैं, जिसके कारण झारखंड आजतक अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सका। जो नीतीश बिहार के विकास को लेकर खुद को चिंतित होना दिखाते हैं, उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए, कि उस विकास में भाजपा की भी सहभागिता रही, अकेले उन्होंने ही बिहार की तकदीर नहीं बदली और बिहार की क्या स्थिति हैं, उस पर ताल ठोंकने के पहले वो रिपोर्ट देख लेनी चाहिए, नीतीश को, जिसमें बिहार की राजधानी पटना को सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल किया गया हैं। ये हैं बिहार की छवि। जिस लालू की गोद में बैठकर, बिहार को आगे बढ़ाने का दावा कर रहे हैं, नीतीश को मालूम होना चाहिए कि पन्द्रह साल लालू परिवार और दस साल करीब आपका भी शासन हुआ, और बिहार की राजधानी पटना में आनेवाले बाहर के लोग अभी तक नाक पर से रुमाल हटाना नहीं छोड़ा हैं। यत्र-तत्र-सर्वत्र मल-मूत्रों से अटा पटा आपका पटना बता देता हैं कि यहां कितना विकास हुआ। आपके नेता कितने अच्छे ढंग से अपनी बातों को रखते हैं, वो कभी – कभी नहीं, बल्कि हमेशा राष्ट्रीय व प्रादेशिक चैनलों की सुर्खियां बनती हैं। दस सालों में हमने यहीं देखा हैं कि आज भी बिहार की जनता अच्छे स्वास्थ्य के लिए तमिलनाडू या दिल्ली की दौड़ लगाती हैं। पढ़ाई के लिए आज भी बिहार के बच्चे, बिहार में नहीं बल्कि दक्षिण के प्रदेशों की दौड़ लगाते हैं। पर आपको शर्म नहीं। हां, आपको इसके लिए मैं जरुर धन्यवाद दूंगा कि आपने अपने शासनकाल में दारु की दुकान हर स्कूल-कालेजों के पास खुलवा दी, ताकि बच्चें आराम से दारु के बारे में जाने ही नहीं, बल्कि उसका रसास्वादन कर अपना भविष्य बेहतर कर सकें। ज्यादा जानकारी के लिए दानापुर के डीएवी स्कूल के पास चल रहे सरकारी देसी दारु की दुकान पर जाकर आप भी आनन्द की प्राप्ति कर सकते हैं। हमें लगता हैं कि इतनी बातें सब के समझ में आ जानी चाहिए, कि नीतीश कैसे हैं और क्या हैं। बिहार का तो वो हाल इस व्यक्ति ने किया हैं कि आनेवाले दिनों में बिहार के बच्चे दारु लेकर सड़कों पर दौड़ते नजर आये तो इसे अतिश्योक्ति नही समझना चाहिए। हालांकि इसके बावजूद नीतीश भक्त पत्रकारों की टोली, नीतीश में भगवान राम और कृष्ण की छवि देखे तो इसे हम और आप क्या कर सकते हैं. उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चुनौती तो हम दे नहीं सकते। उन्हें भी हक हैं नीतीश पुराण में लीन होने की....................