Sunday, June 21, 2015

नीतीश अर्थात् भस्मासुर................

बिहार में एक नेता पैदा हुआ - नीतीश, जिसे आप भस्मासुर भी कह सकते हैं, क्योंकि इस नेता को लालू के खिलाफ भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने खड़ा किया.........अब वहीं नेता भाजपा को खत्म करने की बात कर रहा हैं, पर उसे पता नहीं कि भस्मासुर तो भस्मासुर ही होता हैं, वो पैदा ही होता हैं भस्म हो जाने के लिए.....बस विधानसभा चुनाव का इंतजार कीजिये...बिहार की जनता ने तो संकल्प ले ही लिया हैं कि...............
जो लालू के संग जायेगा,
कभी सीएम न बन पायेगा.........
नीतीश का घमंड तोड़िये,
नया विकल्प चूनिये.........
बिहार का सम्मान बढाईये,
बेटे और पत्नी से प्यार करनेवाले नेता को साइड करिये...........
अबकी बार किसकी सरकार,
नीतीशविहीन बिहार सरकार.............
जो गंदगी फैलाये, वो नेता नहीं.
जो योग का विरोध करें, वो नेता हमें पसंद नहीं...........
जो बिहार से करें प्यार
वो नीतीश का घमंड तोड़ेगा इस बार............
पत्रकारों, अखबारों और चैनलों को, अपनी ओर करने की नीतीश ने की तैयारी,
रुपयो का बंडल लेकर जदयू नेता, मालिकों का मुंह बंद करने को हो रहे बेकरारी............
जिसने दलितों का किया अपमान
उस नीतीश को, न अब दें सम्मान.............

Saturday, June 20, 2015

चलनी दूसे सुप के जिन्हें बहत्तर छेद..............

बेचारे नीतीश आजकल नरेन्द्र मोदी का जंतर लेकर पटना से दिल्ली तक का सफर कर रहे हैं, ये वे जंतर लेकर जनता को बताते हैं कि नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान क्या वायदे किये थे पर नीतीश शायद भूल चुके है कि आज से ठीक पांच साल पहले उन्होंने भी बिहार की जनता को यह कहकर टोपी पहनाया था ( बिहार की जनता को जंतर पहनाया था) कि आनेवाले विधानसभा चुनाव में गर हमने बिहार के गांव- गांव तक बिजली नहीं पहुंचायी तो वे वोट मांगने बिहार की जनता के समक्ष नहीं आयेंगे.............
मैं पूछता हूं कि क्या बिहार के गांव - गांव में बिजली संकट समाप्त हो गयी, गर नहीं तो नीतीश को क्या अधिकार हैं नरेन्द्र मोदी पर ताना कसने की..............
क्या नीतीश बता सकते हैं कि जिस बिहार में अपने दुश्मन को उंचा पीढ़ा देने की रिवायत हैं, उस रिवायत को नीतीश ने कैसे धूल में मिला दिया, जब भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आये भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को खुद भोज पर आमंत्रित किया और खुद ही भोज देने से मना कर दिया क्या नीतीश बता सकते हैं कि इससे अपमान किसका हुआ, नीतीश का, बिहार का या भाजपा के नेताओं का............
क्या नीतीश भूल गये कि उन्होंने बिहार की लड़कियों से काला दुपट्टा कब और कैसे उतरवाने की कोशिश की थी...........
क्या नीतीश भूल गये कि उन्होंने कैसे लालू को चारा घोटाला में फंसाया और फिर लालू की गोद में बैठकर सत्ता की दुध-मलाई खाने में व्यस्त हो रहे हैं.............
कमाल हैं जिस भाजपा के साथ आठ वर्ष तक गलबहियां डाले घूम रहे थे, आज वो सांप्रदायिक हो गयी और जिस जातिवाद के खेल में प्रवीणता दिखाकर ये बिहार को घोर जातिवाद में धकेल रहे हैं, क्या बिहार को जातिवाद से खतरा नहीं.............
क्या नीतीश बता सकते हैं कि जब पूरा देश स्वच्छता अभियान में जूटा हैं तो वे झूठी अहंकार के लिए इस अभियान को भी चुनौती दे डाली हैं और पूरी राजधानी को नरक बनाने में सफलता प्राप्त कर ली ....नरक देखना हो तो बस पटना जंक्शन से बाहर आइये और करिये नीतीश के नरक का दर्शन.....
क्या नीतीश बता सकते हैं कि उन्हीं के एक पार्टी के नेता ने कहा था कि सीमा पर जवान मरने के लिए ही जाते हैं.............क्या एक नेता की ये भाषा हो सकती हैं, शर्म..शर्म...शर्म........
क्या नीतीश बता सकते हैं कि जिस नरेन्द्र मोदी ने बिहार के बाढ़ पीड़ितों के लिए गुजरात की जनता की ओर से सहयोग राशि भेजी थी, जिसे अपनी घमंड के चलते नीतीश ने लौटा दिया था, वे आज किस मुंह से नरेन्द्र मोदी से बिहार हित में सहयोग की बात करते हैं, केन्द्र से पैसे मांगते हैं, अरे नीतीश कुमार थोड़ा सा शर्म करो.....................नहीं तो लोग कहेंगे
चलनी दूसे सूप के, जिन्हें बहत्तर छेद.......
नीतीश का घमंड तोड़िये...........नया विकल्प चुनिये.........
बिहार हित में मतदान कीजिये.......
न लालू...न नीतीश.......
जनता बदलेगी बिहार की तकदीर.........
जनहित में जारी..............

Thursday, June 4, 2015

हे प्रभु.........ये आप क्या कर रहे हैं.........


रेलवे की अच्छे दिनों की बात करनेवालों महानुभावों, रेल मंत्रियों और रेलवे के वरीय अधिकारियों क्या इस देश में राजधानी, शताब्दी, दूरंतो और गरीब रथ के रेलयात्रियों को ही इस देश में रेल यात्रा करने का अधिकार हैं......आखिर हम गरीब रेल यात्रियों पर आपका ध्यान कब जायेगा, जो मेल एक्सप्रेस या सुपरफास्ट ट्रेनों से यात्रा करते हैं। मुझे जब भी नई दिल्ली से रांची आने का मौका मिला तो पाया कि दिल्ली से आनेवाली झारखंड स्वर्ण जयंती सुपरफास्ट एक्सप्रेस कभी भी समय पर रांची नहीं पहुंची, जबकि दिल्ली से ही आनेवाली राजधानी व गरीब रथ हमेशा समय पर पहुंचती है.......आखिर क्या वजह है भाई ये तो रेलवे के अधिकारियों और रेलमंत्रियों को बताना ही चाहिए............
हमने तो सोचा कि यूपीए सरकार में भ्रष्टाचार था, इसलिए ऐसा होता था पर एनडीए की सरकार ने कौन सा हमलोगों के लिए पहाड़ तोड़ दिया इन एक साल में कि हम उनकी आरती उतारें.............
जरा आज देखिये 12874 अनन्तविहार-रांची एक्सप्रेस की स्थिति। 3 जून को बताया गया कि ये गाड़ी अनन्तविहार से 11.30 बजे रात्रि में खुलेगी, फिर हुआ कि ये गाड़ी 4 जून को 1.30 बजे सुबह खुलेगी, यानी जिस गाड़ी को 3 जून को 7.45 सायं में खुलना था, वो गाड़ी दूसरे दिन 1.30 बजे सुबह खुल रही हैं। वाह रे रेलवे विभाग, हद तो तब हो गयी कि 4 जून की सुबह 6.15 बजे से लेकर अभी 9.15 तक ट्रेन का अपडेट ही रेलवे रनिंग स्टेटस में नहीं है। यानी गाड़ी कहां हैं, पता ही नहीं चल रहा हैं, ट्रेन जमीन पर हैं कि हवा में हैं या आकाश में हैं, पता ही नहीं लग रहा। इस गाड़ी से मैंने जब भी यात्रा की हैं, हमने पाया हैं कि ये गाड़ी चाहे समय पर अन्नतविहार से खुले या 6 घंटे देरी से खुले यह गाड़ी इलाहाबाद पहुंचते-पहुंचते 12 घंटे विलंब हो ही जाती हैं..........भाई इस ट्रेन को किस भूत ने पकड़ लिया हैं, जो कानपुर –इलाहाबाद तक छोड़ता ही नहीं, जबकि ये भूत अन्य गाड़ियों को नहीं पकड़ता। क्या देश में सामान्य नागरिक या गरीब होना अपराध हैं क्या.......गर अपराध हैं तो सारे गरीबों को जेल में क्यों नहीं बंद करा देते......ये कहकर कि तुमलोग राजधानी और शताब्दी में बैठने के लायक ही नहीं, इसलिए तुम्हें जीने का अधिकार ही नहीं.....।
आज देखिये इस ट्रेन को 3 जून को खुलना था, और 4 जून को खुली हैं, 4 जून को रांची पहुंचना था और 5 जून को भी रांची पहुंचेगी या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता, सुना हैं कि इस ट्रेन को कानपुर के भूतों ने पकड़ लिया हैं क्या कोई ऐसा देश का नागरिक हैं जो कानपुर के भूतों से मुक्त कराकर, इलाहाबाद के रास्ते, इस ट्रेन को रांची पहुंचा दें, क्योंकि इस ट्रेन में फिलहाल यात्रा कर रहे लोग तो भूतों से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं, भगवान सुरेश प्रभू को याद कर रहे हैं...............
शर्मनाक....शर्मनाक...शर्मनाक, अच्छे दिनों की बात करनेवालों, तुम्हें जनता कभी माफ नहीं करेगी, हमें क्या चाहिए तुमसे अरे कम से कम ट्रेन तो समय पर चलवाओ, और कुछ नहीं करों तो कम से कम ये तो बता दो कि ये ट्रेन कहां हैं....ट्रेन इन्कवायरी सिस्टम से, क्योंकि मैं तो पिछले तीन घंटों से यहीं देख रहा हूं कि ये ट्रेन रुरा के पास रुकी हैं....बेशर्मी की भी हद हो गयी....आम जनता तो लगता हैं कि इनके द्वारा शिलाखंडों से पीसने के लिए बनी हैं, पीसते चले जा रहे हैं....कल यूपीए ने पीसा और आज एनडीए की बारी है....

Monday, June 1, 2015

मुख्यमंत्री रघुवर दास जी, बच्चे परिणाम चाहते हैं....

रघुवर जी, आखिर आप ये तो बताएं कि इन बच्चों ने कौन सा पाप किया है कि आपके वरीय पुलिस अधिकारी इनकी बात नहीं सुनते या इनकी वेदना पर अट्टहास करने से बाज नहीं आते..................
हम जहां रहते हैं, वहां एक बहुत ही गरीब घर का बच्चा रहता है, नाम है – लखू। उसने कुछ सपने देखे है, अपने परिवार के लिए, उसे लगता हैं कि अब सपने पूरे होनेवाले है, वह भी तब जब जैप विज्ञापन संख्या – 02/2011 के बोर्ड नं. 1 का मेरिट लिस्ट निकलेगा। लखू जैसे एक नहीं कई लड़के होंगे, जिनकी हैसियत या औकात नहीं कि दिल्ली या और किसी महानगर में जाकर हराम के पैसे कमानेवाले परिवार के बच्चों की तरह आईएएस व आईपीएस की तैयारी कर सकें। हां मैं एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि गर इन्हें मौका मिले और सरकार मदद कर दें, इन बच्चों की, तो यकीन मानिये हराम की कमाई खानेवाले इन बापों के बेटे किसी जिंदगी में अपने बाप के सपनों को पूरा नहीं कर पायेंगे, क्योंकि तब इन सभी पर इन गरीब ईमानदार बापों के बेटों का कब्जा होगा, पर जरा देखिये इन बच्चों के साथ क्या हो रहा हैं। ये बच्चे प्रतिदिन कभी पुलिस उप महानिरीक्षक जैप, कभी प्रभारी पुलिस उप महानिरीक्षक(कार्मिक), कभी सुमन गुप्ता, पुलिस उप-महानिरीक्षक, जैप, कभी महानिदेशक एवं पुलिस महानिरीक्षक का कार्यालय, कभी न्यायालय तो कभी मुख्यमंत्री जनता दरबार, यानी कौन ऐसी जगह हैं, जहां इन बच्चों ने अपने हक के लिए दरवाजा नहीं खटखटाया, पर क्या मजाल कि जिन्हें अपने कार्यों को गति देना हैं, उनके कान पर जूं तक रेंगे। भला इनके बच्चों से संबंधित मामला थोड़े ही हैं, ये तो उन बच्चों का भविष्य हैं, जो जहां जन्म लेते हैं, वहीं मर जाते हैं.....इसलिए ऐसे भी मरेंगे, वैसे भी मरेंगे। राज्य सरकार के वरीय पुलिस कर्मियों की बेशर्मी देखिये, जब ये बच्चे सूचना के अधिकार के तहत, सूचनाएं मांगते हैं, तो उनका जवाब होता हैं, प्रक्रिया जारी हैं, अरे भ्राई ये प्रक्रिया आखिर कब समाप्त होगा। इसकी कोई समय सीमा भी हैं या नहीं, या ढपोर शंखी हो गये तुम लोग। गर तुम किसी समय सीमा पर कोई परिणाम नही दे सकते तो फिर इस प्रकार का विज्ञापन क्यों निकालते हो, मत निकालो विज्ञापन और जैसा तुम हमेशा करते हो, बैक डोर से पैसे लेकर वो सारे कुकर्म कर डालों, जिसके लिए झारखंड जाना जाता है....। क्या इसके लिए इन बच्चों ने मना किया था क्या। हद तो तब हो जाती हैं, जब बच्चे किसी अखबार के संवाददाता के पास पहुंचते हैं, और वो संवाददाता भी पैसे की बात कर देता हैं और नहीं देने पर उलजूलूल छाप देता हैं।
आखिर जिन बच्चों ने जैप विज्ञापन संख्या 02/2011 का परीक्षा दिया था, जिसमें तीन बोर्ड बनाये गये थे, उसमे बोर्ड -1 एक परिणाम कब आयेगा, क्या सरकार बतायेगी, या परिणाम निकलवाकर उन बच्चों के सपनों को पूरा करेंगी, उनके भविष्य सुधारेंगी या उनके हाल पर छोड़ देंगी.......मुख्यमंत्री रघुवर दास जी, इन बच्चों को आप से उत्तर चाहिए और ये उत्तर केवल उन बच्चों को ही नहीं, मुझे भी चाहिए ताकि मैं जान सकूं कि ये सरकार कितनी संवेदनशील है..................

विजय ने ताल ठोंकी और शेखर मेयर बन गया............



मैंने धनबाद को पत्रकारिता के दौरान दो-दो बार सेवाएं दी। एक जब दैनिक जागरण का ब्यूरो प्रमुख बना तब और दूसरी बार जब ईटीवी ने धनबाद की बागडोर सौंपी। नजदीक से देखा हूं, धनबाद को। यहां ए के राय जैसे महान वामपंथी विचारक व विजय झा जैसे देशभक्त लोग है तो  दूसरी ओर कई लंपटों का समूह भी हैं, जो येन-केन-प्रकारेण धनबाद को अपनी स्वार्थ के लिए बर्बाद करता रहता हैं और इसी को वो समाज सेवा के रुप में आमजन को प्रदर्शित भी करता हैं। आश्चर्य इसलिए भी कि जनता भी कभी-कभी उसके इस झांसे में आकर स्वयं को गौरवान्वित भी महसूस करती है। चलिए छोड़िये इन बातों को, अब हम बात करते हैं, इस बार हुए धनबाद के मेयर चुनाव की। इस बार मेयर के चुनाव में चंद्रशेखर अग्रवाल भारी मतों से विजयी हुए हैं। चंद्रशेखर अग्रवाल विशुद्ध रुप से भाजपाई हैं। मेयर चुनाव जीतने के बाद फिलहाल गणेश परिक्रमा करने के लिए रांची आये हुए हैं। गणेश परिक्रमा में ये सर्वप्रथम भाजपा कार्यालय जाकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण और कार्यालय में वरिष्ठ भाजपा नेताओं से मिल चुके हैं। तदुपरांत मुख्यमंत्री आवास जाकर मुख्यमंत्री रघुवर दास की परिक्रमा भी कर चुके हैं। सूत्रों की माने तो चंद्रशेखर अग्रवाल रघुवर गुट से आते हैं, जबकि मेरा मानना हैं कि राजनीति में कोई गुट नहीं होता, जब आप शक्तिशाली होते हैं तो सभी आपके गुट के होते हैं और जब दुर्बल होते है तो आपसे लोग कन्नी कटाते है। स्थिति ऐसी होती हैं कि वे दुर्बल व्यक्ति अथवा नेता के साथ फोटो खीचाना तो दूर, गर पुराना फोटो भी होता हैं तो उसे ऐसा दबा कर रख देते हैं कि कहीं कोई उस फोटो को फेसबुक वाल पर डालकर उसकी राजनीति की नैया न डूबा दें।
फिलहाल चंद्रशेखर अग्रवाल ने मेयर का चुनाव जीतकर धनबाद के सांसद पी एन सिंह और धनबाद के विधायक राज सिन्हा की औकात तो जरुर बता दी, क्योंकि इन दोनों नेताओं ने चंद्रशेखर अग्रवाल को हराने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी थी। यहीं नहीं जिस चंद्रशेखर अग्रवाल को खुद को भाजपा नेता-कार्यकर्ता कहने में गर्व महसूस होता था। उस चंद्रशेखर अग्रवाल को दिन में तारे दिखाई पड़ने लगे थे, जब भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनसे दूरियां बनाकर, पीएन सिंह और राज सिन्हा समर्थक प्रत्याशी राज कुमार अग्रवाल को जीताने के लिए पील पड़े। बेचारे अब शेखर क्या करें। वस्तुतः सांसद पी एन सिंह और विधायक राज सिन्हा को चंद्रशेखर अग्रवाल से भविष्य में होनेवाले संकट को लेकर स्पष्ट खतरा महसूस हो रहा था। इन दोनों को लग रहा था कि गर चंद्रशेखर अग्रवाल मेयर का चुनाव जीते तो कहीं ऐसा नहीं कि भाजपा आनेवाले दिनों में सांसद का टिकट अथवा विधायकी का टिकट चंद्रशेखर अग्रवाल के लिए सुरक्षित न कर दें, क्योंकि सांसद के रुप में पीएन सिंह का कार्य धनबाद की जनता के अनुरुप नहीं रहा हैं, और न ही संसद में इन्होंने कोई ऐसा कमाल दिखाया हैं, जिस पर धनबाद की जनता गर्व कर सकें। राज सिन्हा तो चूंकि पहली बार विधायक ही बने हैं, इसलिए अभी इन पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी, पर इतना तो तय हैं कि चंद्रशेखर अग्रवाल की जीत, पी एन सिंह और राज सिन्हा की नींद हराम कर दी हैं। आखिर चंद्रशेखर अग्रवाल को जीत कैसे मिली। उसका मूल कारण – विजय झा का शेखर अग्रवाल के लिए चाणक्य की भूमिका में प्रकट होना और पूरे चुनाव की जिम्मेदारी और उसका संचालन ही नहीं, बल्कि पूरी ईमानदारी से इसकी मानिटरिंग करना। चूंकि विजय झा, एक समय भाजपा जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं, साथ ही उनकी छवि निर्विवाद रही हैं, आज भी वे धनबाद में एक प्रतिष्ठित समाजसेवक के रुप में याद किये जाते है। पूर्व में मेयर के चुनाव में उनकी पत्नी शिवानी झा मुख्य प्रतिद्वंदी रही, इसलिए पूर्व का अनुभव भी विजय झा के साथ रहा। जिसका इस्तेमाल, उन्होंने इस चुनाव में किया और नतीजा सामने है। चंद्रशेखर अग्रवाल मेयर का चुनाव जीत गये। संभव हैं आनेवाले समय में वे सांसद और विधायकी पर भी दावा ठोंके पर ये तो भविष्य की बात हैं। हमें लगता हैं कि भाजपा को भी अब विचार करना होगा, क्या वो कांग्रेस की बी टीम होगी, या स्वयं को परिमार्जित करेगी, शुद्ध करेगी। उसे आत्ममंथन करना होगा कि  आखिर चंद्रशेखर अग्रवाल की जगह राज कुमार अग्रवाल भाजपाईयों की पसंद क्यूं बन गये। आखिर विजय झा जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति का भाजपा से मोहभंग क्यों हो गया। गर एक एक कर इसी तरह से योग्य व सम्मानित व्यक्ति अपमानित होकर, भाजपा से निकलते गये तो इसमें कोई दो मत नहीं कि आनेवाले समय में जो जितना बड़ा भ्रष्ट वो उतना बड़ा भाजपा का कैंडिडेट होगा, फिर भाजपा का आम नागरिकों के हृदय में क्या स्थान होगा। भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को अभी से ही आत्ममंथन करना शुरु कर देना चाहिए। साथ हीं, हमें लगता हैं कि चंद्रशेखर अग्रवाल को भी समझ में आ गया होगा कि भाजपा क्या हैं, क्योंकि ये जीत उन्हें भाजपाईयों ने नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति ने दिलायी, एक ऐसे जनसमूह ने दिलायी, जिसका भाजपा से प्यार नहीं था, बल्कि प्यार था, सम्मान से, प्यार था प्रतिष्ठा से, प्यार था धनबाद के स्वाभिमान और विकास से। ये बातें चंद्रशेखर अग्रवाल को गांठ बांधकर रख लेना चाहिए, नहीं तो कालांतराल में क्या स्थिति होगी, वो समझ सकते हैं, क्योंकि जनता किसी की भी जागीर नहीं होती..........