Sunday, September 27, 2015

प्रेम से बोलिए रघुवर दास की जय...

प्रेम से बोलिए रघुवर दास की जय...
झारखंड के मुख्यमंत्री की जय...
भाजपा नेता की जय...
रांची के शांति रक्षक रघुवर दास की जय...
आज सारे अखबारों, इलेक्ट्रानिक चैनलों, फेसबुक, टिवटर में झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास की जय जयकार हो रही है। जय-जयकार करनेवाले ज्यादातर पत्रकार है...। ये पत्रकार इसलिए जय-जयकार कर रहे है, ताकि मुख्यमंत्री से उनका पीआर और मजबूत हो जाय...। मुख्यमंत्री की कृपा से मिलनेवाले विज्ञापनों की राशि में बढ़ोत्तरी हो जाय... जबकि सच्चाई ये है कि मुख्यमंत्री से ये पूछा जाना चाहिए...
• कि क्या मुख्यमंत्री को ये पता नहीं था कि राज्य में पर्वों का सीजन आ रहा हैं और इसे देखते हुए असामाजिक तत्व राज्य में अशांति फैला सकते हैं, इसके बावजूद अशांति फैली, तो इसके लिए सीधे राज्य का मुख्यमंत्री जिम्मेवार नहीं है?
• राज्य के विभिन्न इलाकों में प्रतिस्थापित मंदिरों में प्रतिबंधित मांस कैसे पहुंच गये?, किसने फेंका?, क्या ऐसे लोगों को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए और जनता के समक्ष ये मिसाल नहीं रखना चाहिए कि ये है शांति में खलल डालनेवाला शख्स, इस पर कारर्वाई हो रही है?
• राज्य का मुख्यमंत्री ये बताएं कि उनका खुफिया विभाग क्या कर रहा था?, जब मंदिरों में प्रतिबंधित मांस फेंके जा रहे थे...।
• खुद मुख्यमंत्री ये घोषणा कर चुके है, राज्य में गोहत्या निषेध कानून लागू है और इसे कड़ाई से अनुपालन करने की वे सौंगध खाते है, तो फिर बड़े पैमाने पर गोहत्या राज्य में कैसे और क्यों हो रही है? झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से इस मुद्दे पर सीख लेनी चाहिए...
• मुख्यमंत्री को ये नहीं भूलना चाहिए कि पन्द्रह दिनों बाद दुर्गापूजा, उसके बाद दीपावली और फिर छठ पर्व आने को है, और इसे देखते हुए, राज्य में फिर अशांति फैलानेवाले सक्रिय हो जायेंगे, ऐसे में मुख्यमंत्री की क्या तैयारी है? ये जनता जानना चाहती है, क्या फिर दंगा भड़कने के बाद मुख्यमंत्री जनता के बीच जाकर शांति की अपील करने का इरादा रखते हैं या राज्य में अमन-चैन रहे, इसके लिए ठोस प्रयास कर रहे है?
हद हो गयी भाई, जिन्हें सरकार को इस मुद्दे पर क्लास लगानी चाहिए, वे सरकार की आरती और भजन गा रहे है, पीआर बना रहे है, विज्ञापन की चिंता कर रहे है, ऐसे में तो जनता का भगवान ही मालिक है...
यहां तो राज्य ठीक उसी प्रकार चल रहा है, वो कहावत है न...अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा....

Saturday, September 26, 2015

वे पत्रकार हैं..............

वे पत्रकार हैं...
पर बहुरुपिए हैं...
आवश्यकतानुसार रुप बदलते हैं...
कभी सांसद तो कभी नेता बन जाते हैं...
टीवी पर प्रवचन भी करते हैं...
वामपंथी बनकर खुब दहाड़ते हैं...
पर वामपंथ से कोसो दूर हो...
लाखों-करोड़ों में खेलते हैं...
वेतन तो दिखावा है...
असली माल तो घर पर इनके चाहनेवाले पहुंचा देते हैं...
जिंदगी में कभी इन बदमाशों ने किसी गरीब को एक पाव दूध भी नहीं पिलाया होगा...
पर गरीबी पर आलेख खूब लिखते हैं...
इन्कम टैक्स, प्रोफेशनल टैक्स चोरी करने में उस्ताद हैं...
पर नेताओं को गरियाने, अधिकारियों को फंसाने में सबके बाप हैं...
कहीं नौकरी नहीं मिली...
बन गये पत्रकार...
पर आज तक इंसान बनने की कोशिश नहीं कर पाये हैं...
दाढ़ी बढ़ाकर, वामपंथी बनने का किस्सा था पुराना...
अब सफाचट, मंहगे वस्त्र पहन, मेकअप खूब करवाते हैं...
अंदाजे बयां, ऐसा कि पंचतंत्र का लोमड़ी भी शरमा जाय...
पता नहीं कौन-कौन से टीवी में खुब धूम मचाते हैं...
इनके छुटभैये, अन्य हिस्सों में...
सबको पानी पिलवाते हैं...
कैमरा चमका और बूम दिखाकर...
लूट-लूट, डंस जाते हैं...
अरे टीवी, अखबारों के दल्ले...
तू क्या ज्ञान बघारेगा...
जिस दिन जनता जगेगी...
तेरा नामोनिशां न रह पायेगा...
ऐसे भी तू मरा हूआ हैं...
अब तू क्या कर सकता हैं...
कहीं मरा हुआ कोई जीव कभी...
किसी का भाग्य बदल वो सकता हैं...

Monday, September 21, 2015

दैनिक भास्कर के अनुसार पुलिसकर्मियों को डांस करने का अधिकार नहीं........

19 सितम्बर को रांची से प्रकाशित दैनिक भास्कर ने प्रथम पृष्ठ पर विभिन्न शीर्षकों से कई खबरें छापी। खबर थी – ये है पुलिस की विश्वकर्मा पूजा, डांसरों संग ठुमके लगाए, नोट उड़ाए, वर्दी का मान भी नहीं रखा, वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें – www.dainikbhaskar.com आदि-आदि।
सवाल दैनिक भास्कर से
क्या जिस जमाने में ABCD या ABCD 2 जिसका अर्थ ही होता है एनीबडी कैन डांस - फिल्में बनती हो, वहां पुलिसकर्मियों पर डांस पर रोक लगाने की बात हास्यास्पद या बेमानी नहीं है।
क्या पुलिस इंसान नहीं होते, उनका दिल नहीं होता, क्या उन्हें अपनी जिंदगी में रस घोलने का अधिकार नहीं...
क्या पुलिस केवल अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए ही बने है, कानून-व्यवस्था के लिए ही बने है, क्या उन्हें अपने परिवार के साथ हंसने-खेलने या वो करने का अधिकार नहीं, जो एक पत्रकार या उनके परिवार या दैनिक भास्कर के संपादक या किसी अखबार के संपादक किया करते है...
क्या दैनिक भास्कर बता सकता है कि भारतीय फिल्मों में ज्यादातर गाने पुलिस पर ही क्यूं बने है, साथ ही जैसे –
क. फिल्म दुश्मन – बलमा सिपहिया, हाय रे तेरे तंबूक से डर लागे, लागे रे जियरा धक धक धक धक जोर से भागे, बलमा सिपहिया......
ख. फिल्म कर्तव्य – छैला बाबू, तू कैसा दिलदार निकला, चोर समझी थी, मैं थानेदार निकला, चोर समझी थी मैं थानेदार निकला......
ग. फिल्म कालका – दारोगा जी से कहियो, सिपहिया करे चोरी...
घ. फिल्म दबंग – 1. पांडे जी., 2. मुन्नी बदनाम हुई, 3. फेविकोल से
आदि बहुतेरे गाने में क्या हो रहा है, नहीं तो एक बार फिर भारतीय फिल्मों पर नजर डाले...
फिल्में भारतीय समाज की दर्पण है, ये बताती है कि आज समाज में क्या हो रहा है...पर अखबार और उसमें काम करनेवाले लोगों की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया। वे समझ रहे हैं कि वे जो सोचते हैं, वे जो लिखते हैं, वहीं ब्रह्म वाक्य है पर वे नहीं जानते कि एक घटियास्तर की सोच पूरे समाज को प्रभावित कर डालती है और फिर उससे समाज का जो नूकसान पहुंचता है, उससे समाज को उबरने में काफी वक्त लग जाता है...
हे ईश्वर, अखबार के संपादकों व मालिकों को आप सद्बुद्धि दें ताकि वे समाज का हित कर सकें...नहीं तो ये समाज को बर्बाद करके रख देंगे...

सरयू की नाराजगी...........

बेचारे सरयू नाराज है। रांची से प्रकाशित एक अखबार ने प्रथम पृष्ठ पर उनकी नाराजगी की खबर छापी है और साइड में नाराजगी का कारण भी बता दिया है। भाजपा नहीं मानती पर सरयू के चाहनेवाले ताल ठोंक कर, डंके की चोट पर ये कहते नहीं भूलते कि वे भाजपा के थिंक टैंक है। रांची से प्रकाशित कई अखबार उनके चरणोदक पीने को सदैव इच्छूक रहते है, जिस दिन उनकी चरणोदक मिल गई, उस दिन कई अखबार और उनके मालिक व पत्रकार स्वयं को धन्य-धन्य महसूस करते हुए, ये समझते हैं कि उनका जीवन कृतार्थ हो गया। वे दामोदर बचाओ अभियान से भी जूड़े है, पर वे कितना दामोदर को बचा पाएं है, वे खुद ही अच्छी तरह बता पाएंगे, पर जहां तक मेरा मानना है अखबारों और न्यूज चैनल में दामोदर को लेकर इनके द्वारा किये गये प्रयास का जितना ढोल पीटा जाता है, उसका एक दृष्टांत तक दामोदर को देखने से नहीं मिलता।
फिलहाल जनाब, रघुवर दास से नाराज है। नाराज होना भी चाहिए, क्योंकि मैं खुद भी सरकार के काम-काज से प्रसन्न नहीं हूं। गाहे-बगाहे कुछ अखबार जो नीतीश के प्रेमरस में डूबे रहते है, वे भी रघुवर के खिलाफ कभी एक-दो खबरें पेश कर देते हैं, ताकि उनकी खबरों की निरपेक्षता बराबर झलकती रहें, पर बिहार व बंगाल जाते ही उस अखबार की निरपेक्षता तेल लेने निकल पड़ती है।
कहने का तात्पर्य है कि खबरों में बने रहने के लिए इस प्रकार के बयान, या अपनी राजनीति चमकाने के लिए गर ये बयान है तो इसकी जमकर आलोचना होनी चाहिए। आप सरकार में हैं, सरकार के एक जिम्मेदार मंत्री है तो खुल कर कहिये कि इस में हमारी भी भागीदारी है, हम भी गुनहगार है, पर खुद को शहनशाह बनाने की पेशकश करते हुए, अपने ही मुखिया की आलोचना करना, वह भी पद पर रहकर किसी भी प्रकार से ठीक नहीं। सरयू राय जिस मंत्रालय को संभाल रहे है, वह मंत्रालय किसी भी प्रकार से छोटा या बेकार मंत्रालय नहीं है, पर जो मंत्रालय उन्हें दिया गया है, उस मंत्रालय में उनके काम-काज कैसे रहे है?, पहले ये तो उन्हें बताना ही चाहिए, हालांकि चीनी के दामों को लेकर, राशन वितरण तक राशन दुकान में किस प्रकार धांधली चल रही है, उसके चर्चें अखबारों से लेकर, मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र तक पहुंच चुके है। जिस प्रकार से राशन दुकानों में धांधलियां चल रही हैं, अब तक नये राशन कार्ड तक नहीं बांटे गये है, उससे साफ पता लगता है कि सरयू राय ने अपने मंत्रालय के साथ न्याय नहीं किया और न ही वे किसी काम के लायक है, संयोग से इन्हें अन्य विभाग की जिम्मेदारी दी गयी, तो वे वहीं करेंगे, जो हाल खाद्य आपूर्ति मंत्रालय का उन्होंने कर रखा है। मेरा मानना है कि आलोचना वहीं करें, जिसने कुछ काम करके दिखाया हो, वो नहीं कि खुद काम नहीं करें और दूसरों को प्रवचन देना शुरु कर दे।
रघुवर सरकार के एक साल होने को है पर इस राज्य में आज तक किसी भी मंत्री ने कोई भी ऐसा काम नहीं किया, जिस पर वह गर्व कर सकें, हां बेवजह की बातें, अलोकतांत्रिक कार्य, जगहंसाई के काम इतने किये कि उस पर एक अच्छी पुस्तक बन जायेगी, शायद इसीलिए इस राज्य का नाम झारखंड है, फिलहाल सरयू राय ने डायलॉगबाजी कर दी है, देखिये अब इस डायलॉगबाजी का क्या असर होता है?

Sunday, September 13, 2015

लिपिक पर तोहमत लगाने के बजाय पर्यटन विभाग के सचिव को अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए.....

लिपिक पर तोहमत लगाने के बजाय पर्यटन विभाग के सचिव को अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए। 12 सितम्बर 2015 को रांची से प्रकाशित प्रभात खबर के पृष्ठ संख्या 08 में “राज्य में फिल्म शूटिंग पर शुल्क तय नहीं” शीर्षक से एक समाचार प्रकाशित हुआ। पूरे समाचार को पढ़ने पर यहीं पता चला कि यहां सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं...। यहां लिपिक विशेष विभागों की नीति बनाता है और उस लिपिक द्वारा बनायी गयी नीति को आईएएस आफिसर अपनी नीति बताकर राज्य सरकार की कैबिनेट में भेज देता है। कैबिनेट बिना उस नीति को पढ़े, बिना उसे जाने, बिना उसे समझे। यह कहकर पास करता है कि आईएएस द्वारा बनाया गया नीति है, जरुर ही राज्य हित में होगा, समाज का भला होगा। यह मानकर उसे कैबिनेट से पास करा देता है और जब कैबिनेट द्वारा पास कराये गये उस नीति की राज्य या देश भर में थू – थू होती है, तो बड़े ही सहज भाव में वह आईएएस आफिसर अखबार के किसी पत्रकार को बुलाकर यह कहता हैं कि भाई, ये नीति उसने नहीं तैयार की थी, वह तो लिपिक ने तैयार किया था, उसी से भूल हो गयी। कमाल है, कड़वा-कड़वा थू-थू, मीठा-मीठा चप-चप। अच्छा हो, प्रशंसा मिले तो काम आईएएस आफिसर ने किया और जब शिकायत मिले, आलोचना होने लगे, तो किसी लिपिक का नाम लेकर पतली गली से निकल जाने का काम, गर देखना हो, तो झारखंड आ जाइये।
आप कहेंगे – कि ये मैं क्या लिख रहा हूं, जो आपको समझ में नहीं आ रहा। तो मैं बता देता हूं, ये सारा मामला, राज्य के पर्यटन विभाग से संबंधित है। हुआ यूं कि राज्य सरकार के पर्यटन विभाग में एक बहुत ही दिमाग वाले, आईएएस आफिसर है, उन्हें लगता हैं कि दुनिया की सारी बुद्धि उन्हीं के पास गिरवी रखी हैं, इसलिए वह तरह-तरह के तिकड़म करते हैं, और उसमें उनके विभाग की तो बदनामी होती ही हैं, राज्य सरकार का भी बाट लग जाता है।
हाल ही में इस पर्यटन विभाग के सचिव ने झारखंड फिल्म शूटिंग रेगुलेशन एक्ट 2015 को कैबिनेट से पास करवा लिया। जिसमें राज्य में एक सप्ताह के शूटिंग के लिए 50 लाख रुपये का दर इस विभाग ने निर्धारित कर दिया। एक सप्ताह के बाद की शूटिंग के लिए प्रतिदिन के हिसाब से 10 लाख रुपये अलग से लेने की बात भी कहीं गयी थी। यहीं नहीं आवेदन देने के बाद, पंद्रह दिन तक विभाग की अनुमति मिली या नहीं उसका इंतजार करने आदि का ड्रामा भी उल्लिखित था, जिसका सबसे पहले मैंने विरोध किया था, जिसे आप मेरे फेसबुक व ब्लाग पर जरुर पढ़े होंगे। बाद में सभी ने इसका पुरजोर विरोध किया। इस विरोध में भाजपा के एक बड़े नेता अर्जुन मुंडा भी शामिल हो गये। जैसे ही अर्जुन मुंडा ने विरोध किया, उक्त आईएएस आफिसर ने पल्ला झाड़ने के लिए एक नये षड्यंत्र का सहारा लिया। जिसका जिक्र मैने उपर में किया है।
सवाल अब सरकार से.........
सरकार बताये कि क्या राज्य में फिल्म की शूटिंग का दर कितना हो या फिल्म नीति बनाने का अधिकार, पर्यटन विभाग को है?
क्योंकि राज्य सरकार का ही एक विभाग मंत्रिमंडल एवं समन्वय विभाग है, जो स्पष्ट रुप से विभिन्न विभागों के कार्यों को निरुपित करता है, उसने तो इसकी जिक्र ही नहीं की है, जब जिक्र नहीं है, तो पर्यटन विभाग ने फिल्म की शूटिंग और उसकी नीतियों पर एक्ट कैसे बना दी और उस एक्ट को सरकार ने मंजूरी कैसे दे दी? ये तो पूर्णतः गड़बड़झाला है, भाई। ऐसे में तो उक्त आईएएस अधिकारी पर कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि उसने तो सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया और सरकार की इजज्त ली, सो अलग......
आइये देखते है क्या कहता हैं, झारखंड सरकार का मंत्रिमंडल सचिवालय एवं समन्वय विभाग?
झारखंड सरकार का मंत्रिमंडल सचिवालय एवं समन्वय विभाग का अधिसूचना जो 13 जुलाई 2015 को जारी किया गया। जो राज्य के विभिन्न विभागों के कार्यों को प्रदर्शित करता है। जो सरकार के अपर सचिव जितबाहन उरांव के हस्ताक्षर से अधिसूचित है ---
सी.एस.-01/आर.-2/2015-1235/ भारत के संविधान के अनुच्छेद 166 के खंड(3) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए झारखंड के राज्यपाल, मंत्रिमंडल सचिवालय एवं समन्वय विभाग की अधिसूचना संख्या -07, दिनांक 16.1.2000 द्वारा बनायी गयी “झारखंड कार्यपालिका नियमावली 2000” (समय-समय पर यथा संशोधित) की अनुसूची -1 में निम्नलिखित संशोधन करते है -----
25 क. पर्यटन विभाग......
• पर्यटन की दृष्टि से धार्मिक, ऐतिहासिक एव दर्शनीय स्थलों का विकास।
• झारखंड में होटल उद्योग का विकास।
• देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिए आवास, परिवहन, मार्गदर्शन एवं उपहार की व्यवस्था।
• पर्यटन साहित्य प्रकाशन एवं विभिन्न साधनों द्वारा प्रचार।
• पर्यटन व्यवस्था के लिए स्थापित भिन्न –भिन्न साधनों द्वारा प्रचार।
• पर्यटन व्यवस्था के लिए स्थापित संस्थाओं जैसे – पर्यटन सूचना केन्द्र, युवा आवास, टुरिस्ट बंगला।
• पर्यटन में नियोजित सभी पदाधिकारियों का नियंत्रण।
• पर्यटन के दखल में सभी भवनों का प्रशासनिक प्रभार।
• सराय और सरायपाल।
• सभी सरकारी निरीक्षण भवन/गेस्ट हाउस का संचालन।
• पर्यटन सुरक्षा।
यानी कहीं भी फिल्म से संबंधित एक शब्द भी इसमें नहीं हैं, फिर भी पर्यटन विभाग के जनाब फिल्म शूटिंग की नीतियां व एक्ट बनाने में लग गये और लगे हाथों जो भी झारखंड में फिल्म बन रहे थे या बनाने की जो लोग सोच रहे थे, उनकी सोच का ही उक्त महाशय ने श्राद्ध कर डाला।
अब कुछ सवाल, सरकार से......
• क्या ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, जो गड़बड़ियां निकलने पर स्वयं को दोषी न मानकर लिपिक के सर गलतियों को मढ़ देते है?
• क्या ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, जो उनका काम नहीं हैं, फिर भी दूसरे के कामों में अड़ंगा लगाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते है?
• क्या ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, जो राज्य में किसी भी अच्छे काम को होने नहीं देना चाहते?
• क्या ऐसे अधिकारियों की गलती पकड में आने के बाद भी जब राज्य सरकार उक्त अधिकारी पर कोई कारर्वाई नहीं करें तो क्या लगता हैं कि यहां सरकार नाम की कोई चीज है?

Tuesday, September 1, 2015

धन्य है, रे भैया, झारखंड का पर्यटन विभाग.............

रांची से प्रकाशित “हिन्दुस्तान” समाचार पत्र के रांची लाइव नामक
पृष्ठ पर एक रिपोर्ट छपी है। रिपोर्ट है - “फिल्म सिटी की ओर
झारखंड ने बढ़ाया पहला कदम”। इस रिपोर्ट में राज्य के पर्यटन,
कला –संस्कृति और युवा कार्य विभाग और उसके सचिव अविनाश
कुमार की जमकर आरती उतारी गयी है। इस आरती में मुख्यमंत्री
रघुवर दास को भी शामिल किया गया है, यह कहकर कि जो
अविनाश कुमार ने फिल्मसिटी पर रिपोर्ट बनायी है, उस रिपोर्ट को
सीएम ने स्वीकृति दे दी है, गर ऐसा है तो यकीन मानिये, राज्य में
फिल्म उद्योग का भट्ठा बैठ जायेगा और इस राज्य में फिल्म
निर्माण, पर्यटन, कला संस्कृति और युवाओं के सपनों का श्राद्ध हो
जायेगा। श्राद्ध की तैयारी भी प्रस्ताव में बहुत अच्छे ढंग से कर ली
गयी है। कमाल है, अभी फिल्म नीति बनी नहीं, और गुपचुप तरीके
से झारखंड फिल्म शूंटिग रेगुलेशन – 2015 का निर्माण और सीएम
की स्वीकृति तथा हिन्दुस्तान अखबार में आज इस पर रिपोर्ट बताता
है कि दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है।
आखिर कौन लोग हैं, जो राज्य में फिल्म उद्योग को फलने – फूलने
नहीं देना चाहते हैं, उसका काला चिट्ठा है आज के हिन्दुस्तान
अखबार की यह रिपोर्ट।
अब हम बात करते हैं, आज अखबार में छपी रिपोर्ट की, जिसका हम
अक्षरशः आपरेशन करेंगे।
अखबार ने छापा हैं कि अविनाश कुमार द्वारा बनाये गये प्रस्ताव में
वर्णित हैं कि फिल्म शूटिंग से संबंधित कार्यों को देखने के लिए
पर्यटन विभाग के सचिव को नोडल आफिसर बनाया जायेगा।
मेरा मानना हैं कि आप ही प्रस्ताव बनाओ, और आप ही प्रधान बन
जाओ, ये आप कर सकते हैं, पर सच्चाई ये हैं कि भारत सरकार से
लेकर, विभिन्न राज्यों के राज्य सरकार तक फिल्मों से संबंधित सारे
कार्य सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ही देखता है, गर आपको नहीं
विश्वास हैं तो जाकर भारत सरकार का आफिसियल वेबसाइट या
तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश या किसी भी राज्य का आफिसियल
वेबसाइट देख सकते है।
अखबार ने लिखा है कि जिस किसी भी व्यक्ति को फिल्म निर्माण
करनी होगी, उसके लिए एक आवेदन विभाग को देना होगा, आवेदन
के साथ शुल्क भी तय होगा, जो वापस नहीं होगा। 15 दिनों के अँदर
संबंधित व्यक्ति को विभाग की ओर से सूचित किया जायेगा कि
फिल्म शूटिंग की इजाजत है या नहीं।
मेरा मानना हैं कि जहां आज तक कोई फिल्म बनाने नहीं आया, जहां
किसी ने झांकने तक की कोशिश नहीं की, वहां माहौल बनाने के
पहले, माहौल बिगाड़ने की इजाजत उक्त अधिकारी को किसने दे दी?
क्या आपके यहां राज खोसला के परिवार के लोग, बी आर चोपड़ा के
लोग, यश चोपड़ा के लोग, राजकपूर के परिवार के लोग, राजश्री
प्रोडक्शन्स, रामोजी राव से जूड़े आदि फिल्म निर्माण की हस्तियां
आपके यहां हाथ जोड़कर आवेदन देने के लिए, वह भी शुल्क के साथ,
वह भी कि आप शूटिंग की इजाजत देंगे या नहीं, मन में भाव रखकर
आवेदन करेंगी कि आप की अपेक्षा वह उन राज्यों में अपना फिल्म
निर्माण करेंगी, जहां की सरकारों ने सुविधाओं का पिटारा खोल दिया
हैं। कमाल हैं एक तरफ आप दिल्ली और अन्य शहरों में उद्योग धंधे
राज्य में खुले इसके लिए व्यापार मेला में प्रतिभागी के रुप में भाग
ले रहे हो, और यहां जब अवसर खुलने की बात हो रही हैं तो जो
यहां आने की सोच रहे हैं, उनसे अपनी आरती उतरवाने की सारी
योजनाओँ को मूर्त्तरुप देने में लगे हो, कमाल हैं भाई तुम्हारी सोच
की। फिल्म निर्माण से जूड़ी हस्तियां तुम्हारे 15 दिन के इंतजार की
अपेक्षा इंडोर या आउटडोर शूटिंग के लिए हैदराबाद या अन्य फिल्म
सिटी में अपना आशियाना नहीं ढूंढेंगी क्या। ये बातें तुम्हें समझ में
क्यों नहीं आती।
अखबार ने लिखा हैं कि प्रस्ताव में शूटिंग का शुल्क विभाग तय
करेगा। एक सप्ताह से अधिक शूटिंग चलाने पर प्रतिदिन दस हजार
रुपये देना होगा, इसके अलावा अगर सुरक्षा के लिहाज से पुलिस की
जरुरत हैं, तो उसका शुल्क अलग होगा।
आश्चर्य हैं रे भाई, आप मुंह पर खुब अच्छे-अच्छे कंपनी का पाउडर
और तेल मल लीजिये, एक भी फिल्म निर्माता आपके यहां इस प्रकार
की नीति रखेंगे तो नहीं आयेगा, क्योंकि कई राज्य सरकार इस प्रकार
की सुविधा मुफ्त में मुहैया करा रही हैं।
जिसने भी इस प्रकार की नीति बनायी हैं, उसकी सोच पर मुझे तरस
आता हैं, आज हमें ये भी पता लग गया कि क्या कारण हैं कि
पर्यटन झारखंड में पिछड़ गया, अरे जहां इस प्रकार के अधिकारी
होंगे, उस राज्य का तो भगवान ही मालिक है।

वाह-वाह, बिहार का नेता है.................

ये बिहार का नेता है
वाह-वाह, बिहार का नेता है
लालटेन तीर हाथ पकड़
सबका अपमान कर जाता है
वाह-वाह.............
जो पशुचारा खा जाता है
पत्नी को सीएम बनाता है
जो जातिवाद फैलाता है
संकीर्णता रास रचाता है
महिला को धौंस दिखाता है
जो बिहार बंटवाता है
वाह-वाह..........
जनता को नित दिन ठगता है
चश्मबाग दिखलाता है
कल तक हाथ में कमल दिखा
आज लालेटन पकड़ाता है
जहां चाणक्य ने जन्म लिया
जो चंद्रगुप्त प्रधान किया
वहा कंस बन करके नेता
खुद को कृष्ण बोलवाता है
वाह-वाह.................
जो कसमें बहुत ही खाता हैं
कहता बिजली दिलवाता है
पांच साल अब बीत गया
फिर भी वह नही शरमाता है
वाह वाह...................
खुद ही अनीति कर जाता हैं
पर नीतीश कुमार कहलाता है
बार-बार भीख मांग मांग
सब के आगे नच जाता है
वाह वाह...............
पटना में गंदगी करा दिया
पूरे बिहार को शरमा दिया
कभी केजरी, कभी मुल्लू
कभी सोनिया को, ठुमक दिखाता है
वाह वाह..................