Thursday, December 3, 2015

प्रभात खबर के इस आचरण को देख अलबर्ट एक्का भी शरमा गये होंगे....

आज सुबह आंख खुलते ही, प्रभात खबर अखबार पर नजर पड़ी...
प्रभात खबर ने निवेदन किया था...
“फूल बरसाइए
शहीद अलबर्ट एक्का की समाधि की पवित्र मिट्टी तीन दिसम्बर को रांची से जब जारी गांव (गुमला) की ओर बढ़ेगी, जगह-जगह पर आप कलश पर फूल बरसा कर अपने नायक का सम्मान करें.
निवेदक
प्रभात खबर”
यात्रा का समय भी दिया गया था...
सुबह 7 बजे
अलबर्ट एक्का चौक से प्रस्थान...
पर क्या आप जानते है?
कि जिस प्रभात खबर अखबार ने निवेदन किया था, उसका एक भी आदमी रांची के अलबर्ट एक्का चौक पर मौजूद नहीं था, वह भी तब, जब रांची के अलबर्ट एक्का चौक से रथ प्रस्थान करनेवाला था, यहीं नहीं रथ की अगुवानी करने की दिलचस्पी भी इन प्रभात खबर वालों ने नहीं दिखाई यानी
फूल बरसाने का निवेदन करनेवाला, खुद ही फूल बरसाने से अपने आप को अलग कर लिया था...शायद उसे सुबह में ठंड लगने का खतरा था या देर से उठने की आदत, मुझे समझ नहीं आया...
मैं पूछता हूं, प्रभात खबर के प्रधान संपादक से, कि जहां कारपोरेट एडीटर, कार्यकारी संपादक और संपादक यानी संपादकों की ही लंबी फौज रखने की परंपरा है वहां इनमें से किसी एक संपादक या आपके यहां कार्यरत अन्य लोगों में से किसी एक व्यक्ति को छुट्टी नहीं थी कि वो रांची के अलबर्ट एक्का चौक पर शहीद अलबर्ट एक्का की माटी का सम्मान करें...अरे आप निवेदनकर्ता थे, निवेदक थे, कम से कम इसका तो ख्याल रखना चाहिए था आपको...
आज ही देखिये आपके कार्यकारी संपादक अनुज कुमार सिन्हा ने क्या लिखा है – “छोटी और ओछी राजनीति, आलोचना, नकारात्मकता से समाज का भला नहीं होता. यह शहीद की समाधि की माटी है. इसकी पवित्रता को समझें और नमन करें. कर्म और दायित्व को प्रमुखता दें”
अनुज जी, झारखंड की जनता कर्म और दायित्व को प्रमुखता देने के अपने संकल्प को हृदय से लगाकर रखती है, उसे आपके ज्ञान की जरुरत नहीं...
जरुरत तो आप जैसे प्रभात खबर में कार्य कर रहे उच्च स्थानों पर बैठे लोगों को है, जो शहीद अलबर्ट एक्का चौक की आड़ में प्रभात खबर को चमकाने में लगे है... जो शर्मनाक है...
खुशी इस बात की है कि यहां की जनता जाग चुकी है...शायद यहीं कारण है कि आपके इस निवेदन की कम से कम रांची की जनता ने अनसुनी कर दी...शायद उसे पता था कि जो निवेदन किया है, वो खुद ही नहीं होगा...तो ऐसे जगह जाने से क्या मतलब...अलबर्ट एक्का तो हृदय में रहते है...उन्हें हमेशा नमन है...दुनिया को दिखाने की क्या जरुरत...
शायद यहीं कारण भी रहा कि अलबर्ट एक्का चौक पर जब रथ आया तो उस पर पुष्पांजलि देने के लिए तीन ही हाथ बढ़े, दो आदिवासी महिलाओं के और एक भाजपा नेता प्रेम मित्तल के...चौथा मैं ढूंढता रहा कोई नहीं मिला और खोजा प्रभात खबर के उन कर्णधारों को भी, जो पिछले कुछ दिनों से अलबर्ट एक्का के नाम पर प्रभात खबर – प्रभात खबर का ढिंढोरा पीट रहे थे... पर वे रांची से गायब थे, मैंने पूछा आखिर क्यों...तो एक पत्रकार ने मजाक में कहा कि बड़ा ठंडा है न और अखबार में रात में बहुत काम रहता है...इसलिए रांची में ये महापुरुष नहीं दिखेंगे, ये सभी महापुरुष है, इसलिए जारी गांव में मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ दीखेंगे...क्योंकि कल ही तो मुख्यमंत्री ने कहा था कि पत्रकारिता प्रभात खबर जैसी करनी चाहिए...और फिर वह ठठा कर हंसने लगा...
सचमुच अलबर्ट एक्का के नाम पर जिस प्रकार लोगों का भावनात्मक शोषण प्रभात खबर ने किया है...हमें लगता है कि इसे देख स्वर्ग में बैठे अलबर्ट एक्का भी शरमा गये होंगे...

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