Wednesday, August 26, 2015

“मांझी – द माउंटेन मैन” ये बाते कुछ हजम नहीं हुई...........

“मांझी – द माउंटेन मैन”
ये बाते कुछ हजम नहीं हुई...........
आजकल “मांझी – द माउंटेन मैन” फिल्म की चर्चा जोरों पर है। जिसे देखो – दिये जा रहा हैं। टीवी पर मांझी, अखबारों में मांझी, पत्रों में मांझी और पत्रिकाओं में मांझी। कोई मांझी से खुद को जबर्दस्ती जोड़े जा रहा हैं, पुरानी अखबारों के कतरन के साथ कि सबसे पहले हमनें इस खबर को स्थान दिया था, तो कोई अखबार दिये जा रहा हैं, कि गर वो नहीं होता तो मांझी को इतना स्थान नहीं मिलता, लोग जानते ही नहीं, जबकि सच्चाई ये हैं कि आपका हर अच्छा काम, आपको वो स्थान दिलाकर रहता हैं, जिसके आप हकदार हैं, चाहे इसके लिए आपके जीवन में कितनी भी रुकावटें क्यों नहीं आये। दशरथ मांझी – उसके जीते जागते उदाहरण है। एक ऐसा व्यक्ति जो दलित समुदाय से आता है। जिसका जीवन ही गाली से शुरु होता हैं और गाली पर ही खत्म हो जाता है, पर ये व्यक्ति किसी का प्रतिकार नहीं करता, वह तो कठोर पठार को काटकर, सड़क बना देता हैं, जिस रास्ते पर आज लोग चल रहे हैं, उसके लिए उसने कितनी गालियां सुनी, कितने ताने सहे, कितने थपेड़ें सहे, पर लक्ष्य को पाकर रहा। इस लक्ष्य को पाने के लिए, उसे क्या-क्या नहीं करना पड़ा। पर वो स्थितियां व परिस्थितियां आज भी मौजूद है।
जरा देखिये........
उसके नाम पर फिल्म बन गयी, पर उसके लोगों व समुदाय का क्या हाल हैं....जिन लोगों ने उसके नाम पर करोड़ों कमाए या कमा रहे हैं, उन्होंने क्या किया?
एक चैनल हैं, मैं उसे अराष्ट्रीय चैनल मानता हूं, नाम हैं – एनडीटीवी। देख रहा था, जिसमें दशरथ मांझी के परिवार के लोग बोल रहे थे कि सुप्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान आये। बोले कि दशरथ का घर बनवा देंगे, पर घर आज तक नहीं बना। क्या आमिर खान के पास इतने पैसे भी नहीं कि वो दशरथ मांझी के परिवार को दो कोठरी का घर बनवाकर दे दें। और जब उसे बनवाना नहीं था तो फिर वायदा क्यों किया।
दूसरी बात, दशरथ मांझी के ही परिवार से जूड़े एक महिला का कहना था कि वो पानी के लिए काफी दिक्कत उठा रही हैं, एक चापाकल हो जाता तो मजा आ जाता। क्या वहां एक चापाकल लगवाने की भी ताकत किसी में नहीं हैं। जबकि अखबारवाले या पत्रकार जो चिल्ला – चिल्लाकर भोंपू बजाकर ये कह रहे है कि मैंने पहले छापी तो क्या वे भी इस हालात में नहीं कि वहां एक चापाकल लगवा दें। हद हो गयी भाई। हमें पानी की जरुरत हैं और लोग कह रहे हैं अखबार पढ़ों, हमें भोजन की जरुरत हैं और लोग कह रहे हैं सिनेमा देखो। कमाल है........
और फिल्म भी मैंने देखी, देखकर निहाल हो गया.......
फिल्म में श्रीमती इंदिरा गांधी भी हैं, जो बोल रही हैं कि उनके हाथों को मजबूत करिये, कमाल है गरीबी हटाओ की बात हो रही हैं, इमरजेंसी के पहले का चित्रण हैं और हाथ को मजबूत की बात। कोई बता सकता हैं कि इंदिरा जी का चुनाव चिह्न हाथ कब हुआ।
यहीं नहीं, मांझी दिल्ली जा रहा हैं और जनक्रांति की बात हो रही हैं, ये जनक्रांति क्या हैं भाई, कब हुआ था......हमें तो मालूम नहीं। हां संपूर्ण क्रांति सुना था, जयप्रकाश नारायण ने आह्वान किया था। बात 1974-75 की हैं। यानी जो मन करें दिखा दो, जो मन करें तकिया- तकिया खेला दों, और माल बटोर लो। दशरथ के नाम पर पैसा और ख्याति मिले और क्या चाहिए......

देश जाये तेल लेने और मांझी का परिवार जाये तेल लेने। हम तो बम बम हो गये न.......

Tuesday, August 18, 2015

ऐसे आईएएस व आईपीएस अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाई हो...........

15 अगस्त बीते हुए तीन दिन हो गये, पर झारखंड में नियोजित आईएएस और आईपीएस को, अभी भी स्वतंत्रता दिवस की खुमारी नहीं उतरी हैं। वे बेमतलब के दिये जा रहे है, आम जनता की गाढ़ी कमाई दोनों हाथों से लूटा रहे हैं और अखबारों के मालिकों की तिजोरी भरते चले जा रहे हैं। तिजोरी भरने के चक्कर में ये आईएएस और आईपीएस मुख्यमंत्री तक को मात दे रहे हैं। अभी भी विभिन्न अखबारों में उनके द्वारा दिये जा रहे भारतीय स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं – लंबे-चौड़े रुप में छपते चले जा रहे हैं। क्या ये बता सकते हैं कि इससे आम जनता को क्या फायदा हो रहा है। किसी झारखंड की जनता ने इनसे शुभकामना संदेश मांगा हैं क्या। गर नहीं तो फिर ये ऐसा क्यूं कर रहे हैं।
जरा इन आईएएस-आईपीएस से पूछिए कि वे जो विज्ञापन के नाम पर दोनों हाथों से राज्य के राजस्व को लूटा रहे हैं, क्या कभी अपने पैसे से अपने घर के किसी सदस्य का इसी प्रकार का विज्ञापन कभी छपवाया हैं। उत्तर होगा – नहीं। तो फिर आम जनता के पैसे को वे इस तरह क्यूं बर्बाद कर रहे हैं।
क्या मुख्यमंत्री को इस पर संज्ञान नहीं लेना चाहिए...........
हम तो चाहेंगे कि भारतीय स्वतंत्रता दिवस के नाम पर जिन – जिन अधिकारियों ने बेवजह के विज्ञापन विभिन्न अखबारों में छपवाएं हैं, उसका भुगतान इन अधिकारियों के मिलनेवाले वेतन से करायी जाय, ताकि फिर कोई अधिकारी इस प्रकार की हरकतें न करें। आम तौर पर विज्ञापन जनहित में सरकार की विभिन्न योजनाओँ को जन-जन तक पहुंचाने के लिए किया जाता हैं, पर यहां तो गजब हो गया हैं। इस प्रकार से स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर विज्ञापन की गंगा – यमुना, अखबारों में बहा दी जाती हैं कि पूछिये मत। जिसका औचित्य भी नहीं होता।
आजकल तो एक नया फैशन चल पड़ा हैं, अब तो अखबारों के जन्मदिन पर भी ये अधिकारी सरकार का खजाना जमकर लूटा रहे हैं और अखबारों को विज्ञापन की राशि से मुंह भर दे रहे हैं, गर इस गरीब राज्य में यहां के अधिकारी इसी प्रकार की हरकतें करेंगे तो यकीन मानिये, राज्य की जनता का बहुत बड़ा अहित हो जायेगा। इसलिए मुख्यमंत्री को चाहिए कि इस प्रकार के अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें और उनसे पूछे कि जो विज्ञापन निकाले गये या निकाले जा रहे हैं, उनके औचित्य क्या थे। कम से कम इनसे कारण पृच्छा तो होनी ही चाहिए और इस प्रकार के विज्ञापन देने की प्रथा पर तत्काल प्रभाव से रोकनी चाहिए, ताकि जनता के पैसे का दुरुपयोग न हो।

Friday, August 14, 2015

एकश्चन्द्र तमो हन्ति ना च तारा शतैरपि.......

आप 31 के हो जाएं,
या 62 के,
क्या फर्क पड़ता है राज्य अथवा देश को,
जब आपने औरों की तरह चरित्रहीनता का लबादा ओढ़ लिया,
ये सच हैं कि,
आप पहले एक स्थान से छपते थे,
पर आपका सम्मान था,
आज, अब कई जगहों से छप रहे हैं,
पर यकीन मानिये,
आपने वो मुकाम खो दिया,
जो आम जनता के दिल में,
आपके लिए विशेष तौर पर पनपा था,
हां, आपने वो मुकाम खुद बनाया था,
पर आपने उसे अपने ही हाथों से मिटाया,
आप तो ये भी कह सकते हैं
तो क्या हुआ,
हां, क्या हुआ,
पर सम्मान वाले को सम्मान की चिंता होती हैं न,
आप तो सम्मान को ही ऐसी जगह बैठा दिया,
कि बेचारी नीलाम हो गयी,
चले थे, मशाल लेकर,
अधेरे को चीरने,
पर अंधेरे ने ही आपको निगल लिया,
आपको क्या,
आप उस मां से पूछिए,
जिसने आपके लिए अपना बेटा खो दिया,
उस पत्नी से पूछिए,
जिसने आपके लिए अपना पति खो दिया,
आपके लिए तो सुभाषित की एक पंक्ति ही काफी हैं,
समझना हैं तो समझिए,
नहीं समझना हैं, तो मत समझिए,
आप तो ऐसे भी कई जगह से छपने शुरु कर दिए हैं,
वो कहते हैं न कि कनगोजर को एक पैर टूट गया,
तो क्या हुआ,
ठीक हैं भाई, ऐसा ही सोचिए,
पर जाते – जाते एक सुभाषित की पंक्ति आपके लिए,
एकश्चन्द्र तमो हन्ति ना च तारा शतैरपि.......

Thursday, August 13, 2015

नीतीश का डीएनए करे पुकार...............

नीतीश का डीएनए करे पुकार
बबुआ नीतीश अब जइब हार
पहले दिया लालू को झटका
बाद में दिया भाजपा को अटका
लगे हाथ मांझी को पटका
फिर दिया चारा लालू को डाल
बबूआ नीतीश अब जइब हार
जंगल राज का देख रहा सपना
गंदगी - मैला से ढक दिया पटना
न कोई नीति न हैं सिद्धांत
बबुआ नीतीश अब जइब हार
राबड़ी खुश हो, देख रही सपना
घूटना टेक, नीतीश हुआ अपना
एमएलए बनेगा, पुतर हमार
बबुआ नीतीश अब जइब हार
तीर- लालेटन मे होड़ मची है
भ्रम पाल, सब लगी हुई है
जनता पटखनी देने को तैयार
बबुआ नीतीश अब जइब हार

Tuesday, August 4, 2015

बिहार में पत्नी युग की शुरुआत......

आज अखबारों में पढ़ा। बोकरादी बाबू यानी शत्रुघ्न सिन्हा अपनी पत्नी पूनम सिन्हा को जदयू का टिकट दिलाने के लिए बेचैन है। ऐसे भी उनके प्रिय कुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार, जब बोकरादी बाबू के लिए कुछ भी करने को तैयार हो... तो ऐसे में पूनम सिन्हा को जदयू की टिकट मिलने में दिक्कत नहीं होगी...यानी कल तक लोकनायक जयप्रकाश को अपना जगतगुरु शंकराचार्य बतानेवाले, संपूर्ण क्रांति में अपना सिद्धांत ढूंढनेवाले, इंदिरा गांधी को परिवारवाद के नाम पर कोसनेवाले, जंगलराज के अधिष्ठापक लालू यादव के पदचिह्नों पर चल दिये हैं, जैसे लालू ने अपनी पत्नी को सीएम बनाया। बोकरादी बाबू को सीएम बनाने की औकात नहीं, तो कम से कम अपनी पत्नी को विधायक ही बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं तो क्या गलत हैं। बिहार पुराण में तो लिखा ही हैं - सर्वे गुणाः भार्ययामाश्रयन्ति अर्थात् सारे गुण पत्नी का आश्रय लेते हैं, इसलिए जो व्यक्ति पत्नी के चरणचिह्नों पर बलिहारी होते हुए पत्नी के लिए ही जीता और पत्नी के लिए ही मर जाता हैं, वहीं व्यक्ति असली में नेता, असली में अभिनेता और असली में महान नागरिक हैं....भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाखां -ये सारे के सारे महान देशभक्त..निरामूर्ख थे, असली देशभक्त तो अपने बोकरादी बाबू है...इसलिए बिहार के सारे युवाओँ को बोकरादी बाबू से प्रेरणा लेते हुए, देश के लिए जीना छोड़कर, सिर्फ और सिर्फ अपनी पत्नी के लिए जीने का संकल्प लेना चाहिए, क्योंकि पत्नी हैं तो जीवन हैं, पत्नी हैं तो आनन्द हैं और पत्नी हैं तो सारे तीर्थ है.........
ऐसे भी बोकरादी बाबू के कभी दोस्त रहे, सुपरस्टार दिवंगत अभिनेता राजेश खन्ना ने फिल्म "सौतन" में अपनी पत्नी को मनाने के लिए एक गाना गाया था, उसके बोल थे.....
सासु तीरथ, ससुरा तीरथ, तीरथ साला-साली है
अरे दुनिया के सब तीरथ झूठे चारो धाम घरवाली है......
जब चारो धाम घरवाली ही हैं तो फिर बोकरादी बाबू, अपनी पत्नी के लिए इतना कर रहे हैं तो गलत क्या हैं। अब जहां से बोकरादी बाबू की पत्नी लडे़गी, वहां की जनता क्या निर्णय लेती हैं, मेरा ध्यान उसी ओर होगा...चलिए बिहार में पत्नी युग की शुरुआत करने के लिए महान नेता लालू और बोकरादी बाबू दोनों को मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएँ....साथ ही कुशासन बाबू को भी मेरी ओर से बधाई, क्योेंकि लालू के बाद पत्नी युग को बढ़ावा देने के लिए इन्होंने भी तो कमर कस ली....