Friday, October 30, 2015

कानून को ठेंगा दिखानेवाले विधायक ढुलू महतो को बचाने का प्रयास...

कानून को ठेंगा दिखानेवाले विधायक ढुलू महतो को बचाने का प्रयास...
मनमुताबिक मंतव्य लेने के लिए, लोक अभियोजक का तबादला...
प्रभार लेने के पूर्व ही, सरकार के मनमुताबिक रिपोर्ट, धनबाद डीसी को भेजा ए के सिंह-2 ने...
मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य को भ्रष्टाचार मुक्त झारखंड बनाने का दावा करते है, पर सच्चाई इसके ठीक उलट है, ऐसे में राज्य भ्रष्टाचार मुक्त होगा या यहां भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंचेगा, ये निर्णय करने का अधिकार, मैं जनता को सौंपता हूं, वह निर्णय करें और सरकार से पूछे कि आखिर ये मामला क्या है?
ढुलू महतो, भाजपा के बाघमारा विधायक है। इसके पहले ढुलू झाविमो विधायक भी रह चुके है और कभी बाबूलाल मरांडी उनके लिए ढाल का भी काम कर चुके है, पर इधर ढुलू मुद्दे पर बाबू लाल मरांडी का दल रघुवर दास का भी क्लास ले रहा है, यानी मेरे दल में है तो संत और दूसरे दल में गया तो चोर वाली कहावत....।
और अब सीधे काम की बात...
पिछले साल 24 जून 2014 को भारत सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से भेजा गया F.NO.IV/15012/4/2014-CSRII पत्र जो विधायकों/सांसदों के अपराधिक मामलों को जल्द से जल्द ट्रायल कर निबटाने से संबंधित था। झारखंड सरकार को प्राप्त हुआ। इस पत्र में संबंधित जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश - अध्यक्ष, संबंधित जिले के उपायुक्त – सदस्य, सबंधित जिले के वरीय पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक – सदस्य, संबंधित जिले के प्रभारी लोक अभियोजक/लोक अभियोजक – सचिव को मिलाकर एक जिलास्तरीय समन्वय समिति बनानी थी, जिसके आधार पर विधायकों/सांसदों से संबंधित अदालत में चल रहे अपराधिक मामलों का ट्रायल कर त्वरित निष्पादन करना था।
इस पत्र के आलोक में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने विधायक ढुलू महतो पर कृपा बरसानी शुरु कर दी और गृह मंत्रालय की ओर से उपायुक्त धनबाद को पत्र भेजा कि वह विधायक ढुलू महतो से संबंधित अपराधिक मामलों से संबंधित अपना मंतव्य सरकार को प्रेषित करें, ताकि ढुलू महतो पर चलाये जा रहे सारे मुकदमे वापस ले लिये जाये। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण मामला धनबाद कतरास थाना कांड संख्या -120/13 है, जिसमें विधायक ढुलू महतो को सजा मिलनी तय है, साथ ही उनकी विधायक पद पर भी खतरा मंडरा रहा है, विधायकी जाने का खतरा ढुलू महतो पर इतना ज्यादा हो गया है कि वे चाहते है कि जल्द से जल्द इस मामले में सरकार उन्हें दोष मुक्त कर दें, ताकि उनकी विधायकी बच जाये। इधर उपायुक्त धनबाद ने प्रभारी लोक अभियोजक, धनबाद से धनबाद कतरास थाना कांड संख्या – 120/13 की मुकदमा वापसी के संबंध में मंतव्य मांगा। उपायुक्त धनबाद को तत्कालीन प्रभारी लोक अभियोजक डी एम त्रिपाठी ने बिना देर किये अपने लिखित मंतव्य में मुकदमे का वापस लिया जाना लोकहित व न्यायहित के खिलाफ बता दिया।
प्रभारी लोक अभियोजक, धनबाद ने उपायुक्त धनबाद को 29.09.2014 पत्रांक संख्या 2952 के हवाले से अपना मंतव्य देते हुए लिखा कि –
कंडिका 4 – यह कि उपर्युक्त वाद धारा 147/148/149/341/323/353/332/290/427/283/224/225/504 भादवि के अंतर्गत सूचक रामनारायण चौधरी, तत्कालीन थाना प्रभारी, बरोरा थाना के द्वारा किया गया है जिसमें ढुलू महतो पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि वे अपने समर्थकों के सहयोग से पुलिस बल पर हरवे हथियार के साथ हमला कर गिरफ्तार वारंटी को छुड़ा ले गये एवं वादी का सर्विस पिस्टल छीनने का प्रयास किया, साथ ही पुलिसकर्मियों के साथ मारपीट कर एक पुलिसकर्मी की वर्दी भी फाड़ दी। इस प्रकार इस कांड में सरकार के विरुद्ध गंभीर अपराध कर सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाई।
कंडिका 5 – यह कि, इस घटना के पूर्व भी ढुलू महतो के विरुद्ध अनुमंडल न्यायालय में निम्नलिखित वाद गवाही पर लंबित है –
1. GR4041/06, U/S 147/149/353/332/224/511 IPC
2. GR1782/06, U/S 143/144/341/353/506/290/283IPC
3. GR851/07, U/S 147/148/341/323/332/353/149/225/511 IPC
4. GR3183/10,U/S 147/148/323/341/342/353/286/186/504/506IPC
इसके अलावा और भी कई वाद भिन्न-भिन्न न्यायालय में ढुलू महतो के विरुद्ध लंबित है।
कंडिका 8 – यह कि मुकदमे की वापसी होने की स्थिति में समाज पर एक ऐसे विधायक के तौर पर छवि उभरकर सामने आएगी जो कानून तोड़कर भी कानून की गिरफ्त से बाहर है और वह सरकार के विरुद्ध कोई भी न्याय विरोधी कार्य कर सकता है।
उपर्युक्त बातों पर विचार करते हुए मेरा मंतव्य है कि विधि का शासन कायम करने हेतु इस मुकदमे को वापस करना न्यायहित व लोकहित में उचित नहीं है।
प्रभारी लोक अभियोजक, डी एम त्रिपाठी के इस मंतव्य ने सरकार की नींद उड़ा दी और ये समझ लिया गया कि डी एम त्रिपाठी के रहते ढुलू को मुकदमे से वापसी संभव नहीं, इसलिए सरकार के गृह मंत्रालय ने डी एम त्रिपाठी का स्थानांतरण करने का फैसला लिया और 27 जून 2015 दिन शनिवार, यानी जिस दिन झारखंड मंत्रालय बंद रहता है, प्रभारी लोक अभियोजक, धनबाद डी एम त्रिपाठी का स्थानांतरण का आदेश दे डाला। डी एम त्रिपाठी को जिला अभियोजन कार्यालय बोकारो और डी एम त्रिपाठी की जगह अनिल कुमार सिंह-2 को अपर लोक अभियोजक धनबाद बनाकर भेजा गया, ताकि सरकार के अनुरुप अनिल कुमार सिंह -2 प्रस्ताव बनाकर उपायुक्त को भेज सकें और फिर सरकार मनमाफिक निर्णय ले सके। हुआ भी यहीं, पर इस बार सरकार की कलई खुल गयी। अनिल कुमार सिंह – 2 ने 23 जुलाई 2015 को लोक अभियोजक धनबाद के रुप में पदभार ग्रहण किया, पर पदभार ग्रहण करने के पूर्व ही सरकार के मनमुताबिक प्रस्ताव जो ढुल्लू महतो को निर्दोष साबित करता था, बनाकर 13 जुलाई 2015 को ही उपायुक्त धनबाद को संप्रेषित कर दी, जबकि उपायुक्त धनबाद ने लोक अभियोजक अनिल कुमार सिंह से रिपोर्ट भी नहीं मांगी थी। उपायुक्त ने दुबारा ढुलू महतो से संबंधित रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक धनबाद से मांगी थी, बाद में पुलिस अधीक्षक ने इस पत्र को बाघमारा डीएसपी को भेजा और इसकी प्रतिलिपि सिर्फ सूचनार्थ लोक अभियोजक को भेजी थी। पुलिस अधीक्षक के कार्यालय से जारी 6 जुलाई 2015 का पत्रांक संख्या 3448 देखा जा सकता है।
अब सवाल सरकार से, खासकर मुख्यमंत्री से.............
क. क्या सर्वोच्च न्यायालय के प्रपत्र को आधार बनाकर, एक अपराध से संबंधित व्यक्ति जो विधायक बन गया है, जिसने कानून को चुनौती दी, सरकार को चुनौती दी, लोकशाही को चुनौती दी, उसे बचाना क्या भ्रष्टाचार नहीं है?, और जब ऐसा करना भ्रष्टाचार नहीं है, तो फिर केवल ढुलू महतो को ही बचाने का ये अभियान क्यों चल रहा है?, ऐसे और भी अपराधी है, जो विधायक बने है, उन पर भी मुख्यमंत्री कृपा क्यों नही लूटा रहे?
ख. आखिर जब प्रभारी लोक अभियोजक डी एम त्रिपाठी से उपायुक्त धनबाद ने ढुलू महतो से संबंधित अपराधिक मुकदमों पर मंतव्य मांगा और डी एम त्रिपाठी ने अपना मंतव्य देने के साथ ही इसे न्यायहित और लोकहित के खिलाफ बताया तो सरकार ने इस मंतव्य को मानने से इनकार क्यों किया? डी एम त्रिपाठी का स्थानांतरण क्यों किया गया?
ग. डी एम त्रिपाठी की जगह पर अनिल कुमार सिंह – 2 को ही क्यों लाया गया?, जबकि उनके पहले कई ऐसे सीनियर है जो लोक अभियोजक धनबाद हो सकते थे, उन्हें न बनाकर अनिल कुमार सिंह – 2 को ही क्यों?, क्या सरकार को पता था कि अन्य लोक अभियोजक उनके सुर में सुर नहीं मिला सकते, और अनिल कुमार सिंह – 2 ऐसा कर सकते है।
घ. अनिल कुमार सिंह – 2 प्रभार लेते है – 23 जुलाई 2015 को, और वे अपना प्रस्ताव 13 जुलाई 2015 को ही धनबाद उपायुक्त के पास भेज देते है, वह भी ढुलू महतो के बचाव में, आखिर ये क्या मामला है? क्या उपायुक्त धनबाद ने उनसे कोई रिपोर्ट मांगी थी? वह भी प्रभार लेने के पूर्व ही कोई व्यक्ति वो काम कैसे कर सकता हैं?, जिसकी इजाजत कानून भी नहीं दे सकता, क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है?
ङ. क्या सरकार बता सकती है कि ऐसी भी क्या मजबूरी थी कि प्रभारी लोक अभियोजक डी एम त्रिपाठी के स्थानांतरण के लिए कार्य दिवस के दिन कार्य न करके, एक ऐसे दिन स्थानांतरण का आदेश निकाला गया, जिस दिन सरकार की आफिस ही बंद रहती है?
च. क्या राज्य सरकार की डिक्शनरी में भ्रष्टाचार का पैमाना दूसरा और अन्य के लिए कुछ और होता है?
छ. 24 अक्टूबर 2015 को सारे समाचार पत्रों में यह भी समाचार प्रकाशित हुआ है कि विधायक ढुलू महतो की गुंडागर्दी से आजिज होकर सिजुआ क्षेत्र के जीएम जे पी गुप्ता ने इस्तीफा दे दिया। जीएम जे पी गुप्ता का कहना है कि सभी चीजों के लिए सिस्टम बना हुआ है। मगर विधायक ने अनुचित रुप से दबाव बना कर उन्हें निचितपुर कोलियरी जहां एक मजदूर की मौत हुई थी। उक्त घटनास्थल पर बुलाया और जबरन चार लाख रुपये मुआवजा दिलाने की घोषणा कर दी। आपत्तिजनक शब्दों के नारे भी लगवाये। इससे आहत होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
ज. हद तो ये भी हो गयी कि 20 अक्टूबर को धनबाद के कतरास में प्रशासन द्वारा आयोजित शांति समिति के बैठक में, भाजपा विधायक ढुलू महतो ने शांति समिति में भाग ले रहे सदस्यों को चोर - चुहाड़ तक कह डाला, क्या एक विधायक की यहीं भाषा है, कि वह किसी को भी, कही भी बेइज्जत कर सकता है, वह भी यह कहकर कि वह भाजपा विधायक है।
सूत्र बताते है कि ढुल्लू महतो को बचाने के लिए मुख्यमंत्री इसलिए रुचि ले रहे हैं कि इनसे उनका राजनीतिक और अन्य स्वार्थ सिद्ध हो रहा है...और इसमें भाजपा के कद्दावर राष्ट्रीय नेताओं की भी मिलीभगत है। आश्चर्य इस बात की, कि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं का ढुलू महतो से इतना जल्द प्रेम प्रगाढ़ हो जायेगा, यहां के नेताओं को इसका अंदाजा ही नहीं था, हालांकि कुछ दिन पहले धनबाद में भाजपा के ही विधायक फूलचंद मंडल और ढुलू महतो के गुर्गों के बीच मुठभेड़ हो चुकी है, जिसकी खबर धनबाद से प्रकाशित होनेवाली सारी अखबारों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया...फिर भी राज्य सरकार का ढुल्लू प्रेम, आम जनता के लिए कौतूहल का विषय बन गया है, साथ ही मुख्यमंत्री रघुवर दास के भ्रष्टाचारमुक्त झारखंड बनाने के दावे पर अब सवाल भी उठने लगे है...
सरकार जवाब दें...

Thursday, October 29, 2015

अरविंद, लालू, ममता और नीतीश को मिलकर गोकशी दल बनाना चाहिए, तभी राजनीतिक महत्वाकांक्षा सधेगी...........

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केरल के मुख्यमंत्री ओमान चांडी, बीफ खाने व खिलाने को आमदा राजद नेता लालू प्रसाद यादव और उनके गो भक्षण को व्याकुल राजपूत कुलभूषण रघुवंश प्रसाद सिंह को मिलकर गोकशी दल बना लेना चाहिए।
इसके अनेक फायदे हैं.........
1. आरएसएस व भाजपा, साथ ही भारत की उन बहुसंख्यक आबादी को बार-बार चिढ़ाने का मौका मिलेगा, जो गोमांस से परहेज करते है।
2. बहुसंख्यक जमात के दिलों को भले ही ठेस लगे, वो बोल नहीं सके, पर खुद को अल्पसंख्यक कहलाने में गौरव महसूस करनेवाले मुस्लिमों व ईसाईयों का वोट सदा के लिए उन्हीं का होकर रह जायेगा।
3. किसी को बुरा लगे तो लगे, जैसे बकरे कटते हैं, मुर्गियां कटती हैं, ठीक उसी प्रकार हर मुहल्ले में गोकशी केन्द्र बनना चाहिए ताकि लोग आराम से गो मांस खाकर स्वयं को सुबाहु व मारीच समझ सके, इससे देश में लाल-क्रांति हो जायेगी। गो की जनसंख्या का नियंत्रण भी हो जायेगा और वैज्ञानिक हल भी।
4. अंग्रेजों के फूट डालो शासन करो की नीति का फायदा, आजादी के बाद भी गोहत्या के द्वारा ही सिर्फ उठाया जा सकता है, ये देश के सभी राजनीतिक दलों को बता देना चाहिए, ताकि गोकशी दलों में आपसी भाईचारा बनी रहे।
5. गो हत्या के संबंध में सुबाहु-मारीच ने जो कहा था, ऐसे विद्वानों की वाणी को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए, ताकि महर्षि कण्व, कणाद की यह भूमि सुबाहु व मारीच जैसे लोगो के कारण जानी जाये, इससे फायदा यह होगा कि ब्राह्मणवाद भी खत्म होगा और सुबाहुवाद-मारीचवाद की नयी परंपरा जागृत होगी, इससे देश में सही रुप से समाजवाद आयेगा।
6. रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे राजद नेताओं को जयचंद व मानसिंह जैसे महान शख्सियतों के पद चिह्नों पर चलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने विदेशी आक्रांताओं व लूटेरों के साथ एक बेहतर संबंध बनाए। महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान तो मूर्ख थे, इसलिए हमारा रघुवंश प्रसाद सिंह को सुझाव होगा, कि गांव – गांव में जयचंद व मानसिंह स्मारक समिति बनाकर हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द उत्सव मनाते हुए जनजागृति चलाए और इस आयोजन में गोमांस अवश्य खिलवाएं, ताकि सुबाहू – मारीच के सपने पूरे हो सके, ताकि महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान की आत्माएं सिसककर रोती रहे और मानसिंह व जयचंद की आत्माएं गौरवान्वित महसूस करें। लक्ष्य एक ही रखे - देश भाड़ में जाय, संस्कृति भाड़ में जाये, पर सुबाहु व मारीच के सपनों का भारत हम जरुर बनायेंगे और आनेवाले पीढ़ी को बताएंगे कि तुम राम और कृष्ण के वंशज नहीं, बल्कि तुम सुबाहु व मारीच की संतान हो, तुम्हें अकबर और मुहम्मद गोरी जैसे लोगों के लिए जीना है, जैसे ही देश में कोई ब्राह्मण जाति का टीका लगाये हुए व्यक्ति या गाय मिले, उसका सर कलम कर दो, क्योंकि उसे जीने का अधिकार ही नहीं, जीने का अधिकार सिर्फ रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे कुलभुषणों का हैं...........
7. हर सप्ताह एक बैनर लगाकर, जैसा कि आजकल फैशन चल गया है, गोकशी दलों में शामिल लोगों को गोमांस खाओ आंदोलन चलाना चाहिए, ताकि देश से सारी गाये ही समाप्त हो जाय, क्योंकि बच्चों को दूध-मक्खन-घी नहीं बल्कि मांस यत्र-तत्र-सर्वत्र उपलब्ध होना ही चाहिए।
8. गोकशी दलों को ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि गर किसी मां के छाती से दूध न निकले तो डाक्टरों द्वारा प्रचारित व प्रसारित कि बच्चों को गाय का दूध पिलाये, ऐसे डाक्टरों को दंडित कर दिया जाय। ये सुनिश्चित किया जाय कि भारत में जो भी बच्चे पैदा होंगे, वे सुबाहु व मारीच की तरह गाय का दूध के बदले गाय का रक्त और फिर बड़ा होते ही गोमांस खायेंगे। इससे देश बहुत ही तरक्की करेगा............
9. जो भी व्यक्ति या दल या संस्थान गोरक्षा अभियान चलाए, उसे तत्काल फांसी पर लटकाने का भी प्रबंध होना चाहिए, क्योंकि ये माना जाये कि गोरक्षा अभियान चलाने वाले देश के सबसे बड़े शत्रु है और ये खाने की स्वतंत्रता का हनन करते है।
10. गोकशी दलों को विभिन्न मीडिया चैनलों के माध्यम से भी गोहत्या कराने को प्रेरित करना चाहिए, ताकि मीडिया में शामिल उनके भाई-बंधु-बहनें भी अनुप्राणित हो सके। मीडिया में शामिल सभी पत्रकारों और मीडिया के मालिकों को किसने कितनी गो हत्याएं की या करवायी, उस पर एक प्रतियोगिता भी रखनी चाहिए, ताकि लोग सारे काम – धाम छोड़कर गोहत्या प्रतियोगिता में शामिल होकर, देश का मान बढ़ा सके.......
11. गोकशी दलों को ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि जो लोग गोमांस खा रहे है, वे अपने गर्दन में एक आईकार्ड जरुर रखे, जिसमें लिखा हो, हमें गर्व है कि हम गोमांस खाये हैं, ताकि दूसरे लोग समझ ले कि सामनेवाला व्यक्ति प्रगतिशील और वह निहायत मूर्ख है।
12. गोमांस खाने के बाद गर किसी को मनुष्य के मांस खाने की आदत हो जाये, तो इसकी भी विशेष व्यवस्था करने के लिए गोकशी दल को तैयार रहना चाहिए क्योंकि खाने की स्वतंत्रता तो हर हाल में एक सामान्य व्यक्ति को होना ही चाहिए।
क्यों कैसी रहीं............
जनहित में जारी.........
खासकर बिहार के दाढ़ीवाले बाबा रघुवंश को सादर समर्पित...........

Monday, October 26, 2015

मीडिया की संकीर्ण मानसिकता...........

कल यानी 25 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम के तहत अपनी विचारधारा भारतीय जनमानस के बीच रखने का प्रयास किया। इस कार्यक्रम को सभी चैनलों ने बारीकी से जनता के समक्ष रखा। प्रधानमंत्री ने इस मन की बात कार्यक्रम के दौरान बहुत ही अच्छी – अच्छी बातें की, गर उस पर सचमुच ध्यान दिया जाय तो मानवता और भारतीयता को बल मिलेगा। अंगदान, ग्रुप बी, सी एवं डी में साक्षात्कार की समाप्ति व सांसदों द्वारा गांवों को गोद लेकर उनके कायाकल्प का कार्य आदि बातों को प्रधानमंत्री ने जोरदार ढंग से उठाया और लगे हाथों प्रधानमंत्री ने स्वच्छता कार्यक्रम को भी जनता के समक्ष रखा।
इस स्वच्छता कार्यक्रम में मीडिया की भूमिका की भी प्रधानमंत्री ने जमकर सराहना की। प्रधानमंत्री ने आजतक, ईटीवी, जीटीवी, एबीपी, एनडीटीवी आदि चैनलों की जमकर प्रशंसा की, पर किसी चैनल ने अपने समाचार में ये नहीं बताया कि प्रधानमंत्री ने जब मीडिया की सराहना की तो उन्होंने सिर्फ एक चैनल का नाम नहीं लिया, बल्कि बहुतेरे चैनलों का नाम लिया, कुछ अखबारों का भी नाम लिया। सारे चैनलों ने अपने अपने समाचार के बुलेटिन में जब भी स्वच्छता कार्यक्रम के समाचार की बात हुई तो अपनी पीठ खुद थपथपाई, ये कहकर की प्रधानमंत्री मन की बात में उनके चैनल यानी जो चैनल समाचार प्रसारित करता, सिर्फ अपने चैनल का नाम लेकर समाचार का इतिश्री कर लेता। क्या ये संकीर्ण मानसिकता नहीं है?
अच्छा तो ये होता कि सारे चैनल, गांव व देश की सफाई के कार्यक्रम को जमीन पर उतारने की तरह अपने संकुचित मानसिकता की भी सफाई करते और ईमानदारी से लोगों को बताते कि प्रधानमंत्री ने विभिन्न चैनलों का नाम लिया और उन्हें इस बात की बधाई दी, कि वे स्वच्छता कार्यक्रम को महत्व दे रहे है।
मतलब समाज के सामने भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करनेवाले, नेताओं के बोली के बाल का खाल निकालनेवाले कितना एक दूसरे से ईर्ष्या करते है, ये बातें एक बार फिर कल स्पष्ट रुप से उजागर हो गयी। मैं रांची में भी देखता हूं कि कई अखबार बहुत अच्छे – अच्छे कार्यक्रम का आयोजन करते है, पर वह समाचार सिर्फ उसी अखबार में दिखाई पड़ता है, जो करा रहा होता है, क्या ये ईर्ष्या अथवा जलन नहीं है? गर ये ईर्ष्या व जलन है, तो फिर ऐसे लोगों से क्या समाज व देश का भला होगा, या हित होगा? इस प्रश्न को मैं जनता के समक्ष रख रहा हूं, जनता चिन्तन करें......

Friday, October 23, 2015

आनन्द की खोज.............

कल विजयादशमी समाप्त हो गयी। सभी ने आनन्द प्राप्त किया है। हर का आनन्द अलग – अलग प्रकार का है। किसी ने प्रभुता का ढूंढ लिया तो किसी ने हमेशा की तरह उस आनन्द की खोज की, जो एक पशु की चाहत होती है.....
आखिर एक पशु की पहली और अंतिम चाहत क्या है?
भोजन व मैथुन।
मैंने भी हमेशा की तरह आनन्द की खोज के लिए अपने घर से निकला। सपरिवार एक साथ निकले और एक साथ घर पहुंचे। इस दौरान अनेक कौतुक देखे, जो हम आप तक पहुंचाना चाहते है, शायद आप को कुछ प्राप्त हो.........
हमने देखा कि रांची में बड़े – बड़े पंडाल बने थे। ये पंडाल कहीं बड़े-बड़े ठेकेदारों, व्यापारियों के समूह, आला दर्जे के बेईमान व राज्य व केन्द्र सरकार के करों की चोरी करनेवालों के द्वारा बनाये गये थे, जिसका उद्घाटन ठीक उसी प्रकार के राजनीतिज्ञों व मंत्रियों के द्वारा हो रहा था। पंडाल व देवी प्रतिमाओं से जूड़े पूजा समितियों के मुख पर इस भाव का आनन्द था कि उन्होंने अपने कुकृत्यों को इस प्रकार के आयोजन से धो डाला है, जबकि राजनीतिज्ञों के मुख पर इस भाव का आनन्द था कि देखों हम तो भगवान से भी बड़े है। इनका उद्घाटन बिना हमारे संभव ही नहीं है।
अखबार वाले आनन्द पाने के चक्कर में इससे भी आगे निकल गये थे, वे मां की प्रतिमाओं व उनके दरबार का आकलन जजों के द्वारा करा रहे थे, तो कोई एसएमएस मंगवा रहा था। पूछ रहा था कि कहां की प्रतिमा और कहां का पंडाल बहुत सुंदर बना है? यानी मां और महाशक्ति को प्रतिमा मे तौल कर व जजों द्वारा तुलवा कर परम आनन्द की प्राप्ति की। चौकियेगा मत, जल्द ही ये आयोजन कर मां की प्रतिमाओँ को सर्वश्रेष्ठ बता कर अन्य सभी मां की प्रतिमाओं को नीचे भी गिरायेंगे और यहीं बात मां के दरबार यानी पंडालों पर लागू होगी। यानी हम बाजारीकरण और व्यवसायीकरण की आड़ में अपनी श्रद्धा और भक्ति को भी नीलाम कर दिया, क्योंकि हमें आनन्द जो प्राप्त करनी है।
इन्हीं में से कई दर्शनार्थियों को देखा, जो मां के दर्शन के लिए निकले थे, पर बालाओं के कपोलों और उनके वस्त्रों की ओर अनायास ही खीचे जा रहे थे, यानी उनका आनन्द इन्हीं पर सिमट जा रहा था।
अपने बाल – गोपाल के साथ निकले कई मां के भक्तों को देखा कि उनका आनन्द इस ओर था कि उनके बच्चों ने मेले का आनन्द लिया या नहीं। वे पूछते – तुमने मूर्ति देखी, तुम ने देखा कि बिजली से कैसे बाघ दहाड़ रहा था?, कैसे विष्णु की प्रतिमा जगमग कर रही थी? आदि सवालों से उनका और अपना मनोरंजन कर रहे थे।
रांची जंक्शन पर देखा भारी भीड़ थी। आयोजक की जय – जय हो रही थी, होर्डिंग्स में भी आयोजक के बड़े – बड़े फोटो लगे थे, फोटो में आयोजक चुनरी लिये दीख रहा था, मानो दुनिया का सबसे बड़ा मां का भक्त वहीं है। यहां रेलवे के भ्रष्ट अधिकारियों का समूह व आयोजक के शुभचिंतकों का समूह व मीडिया व प्रशासन के लोग बड़ी आसानी से दर्शन कर रहे थे, ठीक उसी प्रकार जैसे – बड़े मंदिरों में विशिष्ट लोगों के लिए अलग सुविधाएं होती है। वह दृश्य यहां साफ दीख रहा था। यहां आयोजक इस बात को लेकर आनन्दित था कि उसने ऐसी कलाकृति पेश कर दी, कि लोगों का झूंड उसी के आगे माथे झूका रहा है। रेलवे के भ्रष्ट अधिकारियों का समूह, इस बात को लेकर आनन्दित था कि रेलवे कार्यालय में तो उसका डंका बजता ही है, मां के दरबार में भी उसी की बजती है, और सामान्य जन इस बात को लेकर आनन्दित था कि वह तो हमेशा की तरह ठेलमठेल की जिंदगी जीता है, यहां भी जी रहा हैं तो क्या गलत है? और जो ये भीड़ देखकर कांप गया, वह दूर से ही यह कहकर प्रणाम कर लिया कि भाई भगवान तो दिल में रहते है.......
विभिन्न पंडालों के आस पास भिखमंगों की भी फौज दिखाई पड़ी, उसका आनन्द इसमें समाया था कि उसके कटोरे में इस दुर्गापूजा में कितने पैसे पड़े है?, जबकि सड़कों पर कुकरमुत्ते की तरह उगे चाट दुकानों को इस बात के आनन्द की फिक्र थी कि इस बार उसके चाट दुकानों में कितने ग्राहकों ने चाट का लुफ्त उठाया और उसकी आमदनी में बढ़ोतरी हुई या नहीं।
सड़कों पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का झूंड, विभिन्न खिलौनों को लेकर उतर गया था। उसे न तो आज हिंदू से मतलब रह गया था और न मुस्लिम से। आज उसका आनन्द व ईमान इस बात पर केन्द्रित था कि आज उसकी आमदनी कितनी होगी? जब कोई खिलौना उससे खरीदता तो उसके चेहरे की मुस्कान देखते बनती और जब कोई मोल-जोल कर भी नहीं खरीदता तो उसके चेहरे का भाव भी देखते बनता, उसकी मायूसी दिल को तोड़ देती।
रांची विश्वविद्यालय के मुख्यालय के पास, हर साल की भांति इस साल भी व्यवसायियों का एक ग्रुप भंडारा लगा रखा था। वह रास्ते में चलते मां के भक्तों को पुकारता, उन्हें दो पुड़ियां और सब्जी खिलाता और कहता ये प्रसाद है, ग्रहण करें, यहां पानी की भी अच्छी व्यवस्था थी। यानी यहां के लोगों को खिलाने में आनन्द था, शायद ये जान गये थे कि असली आनन्द तो सेवा में है। उपनिषद् तो कहता ही है – सेवा परमो धर्मः।
और अंत में
एक पहाड़ी मंदिर में एक अधेड़ महिला, एक बैग में बहुत सारे केले रखी थी, वह पहाड़ी मंदिर जानेवाली किसी भी लड़की को रोकती, उसे तिलक लगाती और उसे एक केले देती और फिर बाद में उसके पांव छू लेती। शायद उसे लगता था कि आज का दिन, ऐसा करने से उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी या मनोवांछित फल प्राप्त हो जायेगा। हम कहेंगे कि ऐसा संभव है और संभव हैं भी नहीं, पर इतना तो जरुर है कि जब वो महिला बालिकाओं के साथ ऐसा व्यवहार करती थी तब उन छोटी बालिकाओं की खुशियां देखते बनती, जो खुशियां बिखेरेगा, वहीं तो परम आनन्द की प्राप्ति करेगा, वहीं देवत्व को प्राप्त करेगा, बाकी क्या प्राप्त करेंगे, खुद ही जान लें, व समझ लें..................

Thursday, October 15, 2015

क्या बिहार में महागठबंधन से चुनाव लड़ रहे एनडीटीवी के रवीश कुमार के भाई चुनाव जीत पायेंगे...........

रांची से एक अखबार प्रकाशित होता है – खबर मंत्र। उसने 14 अक्टूबर को अपनी अभिव्यक्ति पृष्ठ पर एनडीटीवी के एक पत्रकार रवीश कुमार का उसके ब्लॉग से साभार आलेख छापा है। ये वहीं रवीश कुमार है, जो टीवी पर बहुत ही सुंदर अभिनय करने के कारण, इलेक्ट्रानिक मीडिया में जगह बनानेवाले नये – नये पत्रकारों का चहेता बना हुआ है। वह बहुत ही अच्छी – अच्छी बातें करता है, भाजपा को खूब गरियाता है, पर नीतीश का नाम जुबां पर आते ही नीतीश भक्ति में स्वयं को अनुप्राणित कर लेता है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी उसने बिहार का दौरा किया था, और उसी वक्त एक उसका आलेख प्रभात खबर में पढ़ने को मिला था, उस आलेख को पढ़ने पर मुझे साफ लगा था कि यह व्यक्ति नीतीश भक्ति में बहुत ही कन्फ्यूज्ड है, उसे जनता का नब्ज पहचानने नहीं आता। उसने उस वक्त आलेख में लिखा था कि बिहार में लोकसभा चुनाव का जो परिणाम आयेगा वह अप्रत्याशित होगा, जो भाजपा के खिलाफ रहेगा, पर हुआ ठीक इसके उलटा। भाजपा के लहर में बिहार से उसके भगवान नीतीश का ही सफाया हो गया।
फिलहाल नीतीश, लालू और राहुल की तिकड़ी से बने महालंठबंधन को जीताने के लिए अंदर ही अंदर वह सक्रिय है। खबर मंत्र में कल के छपे आलेख से फिर इसकी कलाकारी दीख रही है। बहुत कम ही लोगों को पता है कि रवीश कुमार का भाई ब्रजेश पांडे गोविंदगंज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहा है। सूत्र बताते है कि जहां से रवीश का भाई चुनाव लड़ रहा है, वहां ब्रजेश पांडे आज तक कभी गया ही नहीं, फिर भी वह जीतने के लिए हर हथकंडे अपना रहा है। हम आपको यह भी बता दें कि रवीश के नीतीश भक्ति का ही कमाल है कि गोविंदगंज से मीना द्विवेदी, जो जदयू के टिकट पर लगातार दो बार चुनाव जीतती आयी थी, उस मीना द्विवेदी को नीतीश ने इस बार नहीं उतारा और ये सीट अपने भक्त रवीश को खुश करने लिए रवीश के भाई ब्रजेश को दिलवा दिया और आज ब्रजेश कांग्रेस के टिकट पर अपना किस्मत आजमा रहा है। यानी पत्रकारिता में भी, भाई – भतीजावाद शुरु और पत्रकारिता के आड़ में अब नेतागिरी भी, हालांकि हम आपको बता दें कि रवीश के भाई ब्रजेश की जीतने की उम्मीद न के बराबर है। रवीश अकेले नहीं, बहुत ऐसे पत्रकार है, जिन्हें नीतीश में भगवान नजर आता है, आनन्द नजर आता है, इसलिए नीतीश की गलतियां उसे दिखाई नहीं देती, पर जो रवीश करते है, वैसा कोई नहीं करता, यानी हाथी के दांत दिखाने को कुछ और खाने को कुछ...। हम आपको बता दें कि इन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मीडिया को अपने चरणों में नतमस्तक कराने के लिए अनेक कार्य किये है, जैसे प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश को राज्यसभा भेजा। बिल्डर और कशिश चैनल के मालिक सुनील चौधरी को बेनीपुर से विधानसभा का टिकट देकर उसे बिहार विधानसभा में भेजने के लिए लगा है। यहीं नहीं ऐसे कई उदाहरण है, जो बताने के लिए काफी है कि नीतीश ने मीडिया को अपने चरण छूने को कैसे विवश किया है, पर मीडिया के लोग है, जो लालच में आकर, वह सब कर रहे जो आज का नेता करता है........यानी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबने की ललक......क्योंकि उसे भी वह सब कुछ चाहिए, जो नेता के पास होता है......ये नीतीश भक्ति का ही कमाल है कि महागठबंधन के एक नेता लालू प्रसाद की अतरी में मंगलवार को सभा थी, और उस सभा से भीड़ ही गायब थी, पर गया से ही प्रकाशित प्रभात खबर में लालू प्रसाद से संबंधित यह समाचार पूर्णतः गायब है....साथ ही कई चैनलों ने इसे दिखाया ही नहीं, आखिर ये नीतीश भक्ति नहीं तो और क्या है.........

Tuesday, October 13, 2015

सिक्का उछाल बाबा और उनका राजनीतिक चुनावी सर्वे.............

बिहार में विधानसभा चुनाव क्या हो रहे है, राजनीतिक सर्वे करनेवाले विभिन्न संस्थाओं, समाचार पत्रों व चैनलों की जैसे मानो लॉटरी निकल गयी है। ये सारे के सारे विभिन्न राजनीतिक दलों से आर्थिक लाभ उठाकर उनके पक्ष में राजनीतिक सर्वे दिखा रहे है और राज्य के मतदाताओं को दिग्भ्रमित कर रहे है, पर शायद उन्हें पता नहीं कि बिहार के मतदाताओं का मस्तिष्क अन्य राज्य के मतदाताओं के ठीक उलट होता है। वह राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि राजनीतिक सर्वे प्रस्तुत करनेवाले आंकाओं का भी दिमाग ठिकाने लगाने जानता है।
कमाल हैं कुछ सर्वे महागठबंधन जिसे लोग महालंठबंधन भी कहते है, उन्हें पहले स्थान पर दिखा रही है, तो कुछ भाजपा गठबंधन को....और ये सारे के सारे सर्वे गोलमट्ठे की तरह, ऐसी-ऐसी चीजे जनता के समक्ष रख दे रहे है, जैसे लगता हैं कि बिहार की जनता महामूर्ख है। सर्वे ही नहीं, कुछ पत्रकारों की भी इस बिहार विधानसभा चुनाव ने सिट्ठी-पिट्ठी गुम कर दी है। स्वयं को ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ बतानेवाले चैनल एनडीटीवी का एक बिहार का ही पत्रकार पिछली लोकसभा चुनाव के दौरान जब वह बिहार में चुनाव की रिपोर्टिंग कर रहा था तो उसका एक लिखित आलेख प्रभात खबर ने प्रथम पृष्ठ पर छापा था। जिसमें वह पूरी तरह कन्फ्यूज था। उस वक्त उसके अनुसार भाजपा की स्थिति बिहार में ठीक नहीं थी। मैंने सोचा कि इस बार भी उसका आलेख प्रभात खबर में दीखेगा, पर अभी तक तो दिखाई नहीं पड़ा है। शायद उसे लग रहा हैं कि कहीं ऐसा नहीं कि पिछले आलेख की तरह इस बार के आलेख का भी कही बंटाधार न हो जाय। खैर, स्वयंभू लालू भक्तों व नीतीश भक्तों की टोली उनके महालंठबंधन गठबंधन को शिखर पर दिखाने के लिए आमदा है, जबकि दूसरी टोली भाजपा को शिखर पर पहुंचा कर ही दम ले रहा है, पर सच्चाई क्या है?, जो बिहार की राजनीति जानते है.....वे जान चुके है, कि बिहार से नीतीश की इस बार विदाई तय है, लालू की विदाई तो बिहार की जनता दस साल पहले ही कर चुकी है, इसलिए उनके विदाई का सवाल तो है ही नहीं। हां, अब सवाल यह हैं कि अब किसके माथे बिहार का मौर चढ़ेगा?
इधर महालंठबंधन और भाजपा गठबंधन को शिखर पर पहुंचानेवाले राजनीतिक सर्वे को देखिये........
इन सर्वे को देख, हमें लगता है कि हमारे यहां भी एक सिक्का उछाल बाबा है, जो विशुद्ध राजनीतिक सर्वे करते है, वे जो राजनीतिक सर्वे करते है, उनका कहीं सानी नहीं। उनका राजनीतिक सर्वे कभी – कभी सटीक भी हो जाता है, कैसे? आपको बताता हूं.........
सिक्का उछाल बाबा कहते है कि अरे राजनीतिक सर्वे क्या होता है, असली राजनीतिक सर्वे तो हम करते है, मैंने पूछा – कैसे?
और जब उन्होंने जवाब दिया तो मैं भौचक्का रह गया।
उन्होंने कहा कि वे किसी भी राज्य का या देश का चुनाव परिणाम का सर्वे करना होता है तो एक सिक्का हाथ में लेते है और उसी से सर्वेक्षण कर लेते है। मैंने पूछा – यह संभव कैसे है?
उन्होंने बताया – कि वे एक सिक्के लेकर उछालते है, जितना बार सिक्का उछला यानी उतनी बार उन्होंने उस राज्य की जनता से संपर्क किया, जैसे गर चार हजार बार सिक्का उछाला तो चार हजार जनता से संपर्क हो गया।
इसी प्रकार मकान के पूर्व की कोठरी में सिक्का उछाला तो राज्य के पूर्व की जनता का विचार मिल गया। दालान में उछाला तो राज्य के मध्य भाग में रहनेवाले जनता का विचार मिल गया। इसी प्रकार उत्तर की कोठरी और दक्षिण की कोठरी, पश्चिम की कोठरी में सिक्का उछाला तो उस – उस दिशा की जनता का विचार मिल गया।
सुबह में सिक्का उछाला तो 18 वर्ष से लेकर 35 वर्ष तक के युवाओं का विचार मिल गया।
दोपहर में सिक्का उछाला तो 36 से 45 वर्ष तक के युवाओं का विचार मिल गया।
शाम में सिक्का उछाला तो 46 से उपर के आयु के युवाओं का विचार मिल गया।
रात में सिक्का उछाला तो महिला वर्ग के विचारों का पता चल गया।
सोते हुए सिक्का उछाला तो उद्योगपतियों का विचार मिल गया।
दौड़ते हुए सिक्का उछाला तो किसान – मजदूरों का विचार मिल गया
टहलते हुए सिक्का उछाला तो सामान्य वर्ग का विचार मिल गया।
दूध दूहते सिक्का उछाला तो यादव बंधुओं का विचार मिल गया।
बैठकर सिक्का उछाला तो मुस्लिम बंधुओं का विचार मिल गया।
किताब लेकर सिक्का उछाला तो सवर्णों का विचार मिल गया।
हाथ में पोछा लेकर सिक्का उछाला तो दलितों का विचार मिल गया।
मैंने तुरंत उन्हें रोका और पूछा, सिक्का उछाले तो विचार कैसे मिल गया। उन्होंने तुरंत पलट कर कहा कि आपको पत्रकार कौन बना दिया?, आपको इतना भी ज्ञान नहीं। अरे बिहार में महालंठबंधन और भाजपा गठबंधन के बीच ही न मुकाबला है तो हो गया फैसला। चित्त – महालंठबंधन और पट भाजपा गठबंधन.......मतलब समझे।
हमें हंसी आ गयी........
सिक्का उछाल बाबा ने, हमारे सामने राजनीतिक सर्वे करनेवालों की पोल खोलकर रख दी थी।

Friday, October 9, 2015

शर्मनाक घटना। ईसाई मिशनरियों ने गरीबी का मजाक उड़ाते हुए, गरीबी की सौदेबाजी की, धर्मांतरण कराया........

शर्मनाक घटना। ईसाई मिशनरियों ने गरीबी का मजाक उड़ाते हुए, गरीबी की सौदेबाजी की, धर्मांतरण कराया........
आज के प्रभात खबर में पृष्ठ संख्या 14 पर खबर छपी है। खबर चौंकानेवाला है, साथ ही यह समाचार ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण के कुचक्र को सामने लाकर खड़ा कर दिया है।
गुमला के जिलपीदह गांव के 60 परिवारों ने ईसाई धर्म अपनाया हैं। ये सारे परिवार आदिम जनजाति के हैं, जो सरना धर्म को मानते थे, पर अब ईसाई धर्मानुसार आचरण कर रहे हैं, चर्च जाते हैं, ईसाई विधि से प्रार्थना कर रहे हैं। इनका कहना हैं कि उनका गांव विकास से कोसो दूर है, सड़क नहीं है, बिजली नहीं है, आजीविका का कोई साधन नहीं, अशिक्षा है। इसलिए ईसाई धर्म अपना लिया, इससे अब कम से कम उनके बच्चे पढ़ तो सकेंगे........
यानी गरीबी ने इन्हें धर्म परिवर्तन करने पर मजबूर कर दिया और इस गरीबी का नाजायज फायदा उठाया यहां के ईसाई मिशनरियों ने। ये घटना स्पष्ट करती है कि राज्य में किस प्रकार गरीबी से जूझ रहे आदिवासी बंधुओं और सरना धर्म के माननेवालों पर ईसाई मिशनरियां कुचक्र रचते हुए, उनके मूल धर्म से विमुख कर, उनकी संस्कृति पर चोट कर रही हैं।
धर्म क्या कहता है?
मेरे धर्म ने तो यहीं सिखाया कि किसी की गरीबी का नाजायज फायदा उठाना महापाप है। यह अनैतिक और अमानवीय है, फिर भी धर्म के नाम पर विदेशी धन पर ऐश करनेवालों के लिए इससे बड़ा कोई धर्म ही नहीं। ये धर्मांतरण का खेल कोई आज से नहीं चल रहा, ये अंग्रेजों के समय से चलता रहा, पर उस वक्त के आदिवासी महानायकों ने ईसाई मिशनरियों के खेल को समझा और उनका प्रतिकार किया। भगवान बिरसा मुंडा का प्रतिकार जगजाहिर है, पर आजादी के बाद, धर्मांतरण का खेल इस प्रकार चल रहा है और फलीभूत हो रहा हैं कि आनेवाले समय में झारखंड से आदिवासियों का मूल धर्म ही समाप्त हो जायेगा और ये केवल अतीत की बाते रह जायेगी।
हालांकि आदिवासी सरना धर्म को लेकर सचेत है और इस प्रकार के धर्मांतरण का समय-समय पर विरोध कर रहे हैं, पर इन्हें सफलता नहीं मिल रही। सरकार की विकास योजनाएं भ्रष्टाचार का भेंट चढ़ जा रही हैं, पर ईसाई मिशनरियों की योजनाएं सरकार के माध्यम से ही फलीभूत हो रही है और वे इसका जमकर सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर लाभ भी उठा रहे हैं और धर्मांतरण भी करा रहे है। आश्चर्य इस बात की है कि जहां ये धर्मांतरण हुआ, वहां एक सामाजिक संस्था विकास भारती भी काम करती है, पर ये विकास भारती इस जगह पर कैसे फेल हो गयी?, आश्चर्यजनक है। ये वही विकास भारती है, जिसके स्वयंभू अशोक भगत है, जिन्हें हाल ही में राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया है। जो खूब इन इलाकों में विकास की गति तेज करने का ढोल पीटते है।
शर्म आनी चाहिए ईसाई मिशनरियों को.........
क्या किसी की गरीबी का नाजायज फायदा उठाना सहीं है?
क्या किसी को लालच देकर उसकी गरीबी का मजाक उड़ाना सही है?
क्या ईसाई मिशनरियां बता सकती है कि फादर कामिल बुल्के ने राम और तुलसी में क्या देखा था?
क्या धर्मांतरण कर देने से उन गरीब आदिवासियों की सारी समस्याएं समाप्त हो जायेगी?
आखिर भगवान बिरसा ने ईसाई मिशनरियों के खिलाफ हल्ला क्यों बोला था?
आखिर पश्चिम देशों में पढ़े – लिखे ईसाई समुदाय क्यों धर्मांतरित हो रहे है?
केवल सेवा का भाव मन में रखने का ढोंग करनेवालों, किसी का धर्मांतरण करके कौन सी सेवा कर रहे हो, ये तो सेवा के नाम पर धोखाधड़ी, बनियागिरी और सौदेबाजी है?
मेरे विचार से, इस घटना की जितनी निंदा की जाय, वह कम है..........
मैं सरनाधर्मावलंबियों से कहूंगा कि गरीब होना कोई पाप नहीं, पर गरीबी के नाम पर स्वयं को धर्मांतरित कर देना, अपने पूर्वजों, अपनी मिट्टी और अपनी संस्कृति का अपमान है, ये व्यक्ति को नरक की ओर ले जाता है। अपने धर्म और अपनी संस्कृति पर मान करना सीखो, गर्व से खुद को झारखंडी कहो, आदिवासी कहो, सरनाधर्मावलंबी कहो। जो भी तुम्हारी गरीबी का फायदा उठाने की कोशिश करे, उसका मुकाबला करो, न कि उसके आगे घूटने टेक दो।

Saturday, October 3, 2015

देश में दंगा भड़काने का काम, अब मीडिया का.......

देश में दंगा भड़काने का काम, अब मीडिया का.......
देश की जनता, सावधान...
मीडिया ने देश में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने का संकल्प ले लिया...
देश की जनता से विनम्र निवेदन है कि वे मीडिया की बातों में न आए, मीडिया में काम करनेवाले लोग, ज्यादातर बेवकूफ, आला दर्जें के गधे व खुद को तेज समझनेवाले बीमारी से पीड़ित इंसान होते हैं। उन्हें लगता है कि दुनिया की सारी बुद्धिमानी उन्हीं के गिरफ्त में है, जबकि उनके सामनेवाला व्यक्ति आला दर्जें का मूर्ख है। इसलिए वे कभी – कभी समाचार पत्र तो कभी विभिन्न चैनलों में डिस्कसन के माध्यम से तो कभी फेसबुक, टिवटर, वाट्सएप पर अपना अधकचरा ज्ञान बिखरते रहते है। अपने घटियास्तर के धनपशु मालिकों के इशारे पर ताता –थैया करते हुए, देश की एकता व अखंडता के साथ खिलवाड़ भी करते है। वे अपनी अखबारों व चैनलों में अधूरी ज्ञान के चलते कभी-कभी कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा भी बता देते है।
इधर उनके दिमाग में एक जबर्दस्त कीड़ा घूस गया है, जो कैंसर और एड्स से भी ज्यादा खतरनाक है। वे आजकल गाय और गाय से संबंधित डिस्कशन, कार्टून व बेवजह के घटियास्तर के इंसानों के बयान छाप रहे, दिखा रहे और विभिन्न सूचना तंत्रों के माध्यम से इसे फैला रहे है, ताकि देश में सांप्रदायिक उन्माद फैले और देश की समरसता पूरी तरह से नष्ट हो जाये। ये किनके इशारे पर ऐसा कर रहे है, थोड़ा सा आप दिमाग लगायेंगे तो पता चल जायेगा।
सबसे पहले आप उदाहरण देख लीजिये...
रांची से प्रकाशित एक उर्दू अखबार फारुकी तंजीम ने गाय से संबंधित एक आलेख छापा, जिसके कारण पूरे राज्य में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गयी। इसी अखबार ने कुछ दिन पहले एक लेख छापा जिसमें लिखा था कि हिन्दुस्तान ने कभी भी पाकिस्तान से कोई जंग जीती ही नहीं।
अभी एक दो दिन पहले की घटना है – एबीपी न्यूज ने एक सेलिब्रेटी (पता नहीं वह सेलिब्रेटी है भी या नहीं, क्योंकि जिसको सेलिब्रेटी एबीपी ने कहा हैं उसे बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिसे जानते ही नहीं, लेकिन एबीपी उसे सेलिब्रेटी मानता है) के माध्यम से बयान दिखाया व अन्य संचार माध्यमों से उसे जन- जन तक पहुंचवाया कि “मैंने अभी – अभी बीफ खाया हैं आओ मेरा कत्ल कर दो”। सवाल उठता है कि कौन क्या खा रहा है?, और क्यूं खा रहा हैं?, उससे आम आदमी को क्या मतलब? कोई एबीपी से पूछने गया था क्या? कि वो सेलिब्रेटी क्या खाने में शान समझ रही है? अरे बहुत सारे देश है – जहां इसानों के मांस भी इंसान बड़े शौक से खाते है।
यहीं नहीं दिल्ली से प्रसारित एक राष्ट्रीय चैनल एनडीटीवी ने कुछ साल पहले जब दिल्ली में कथित तौर पर चर्च पर हमले हो रहे थे, तो वह बार – बार इस प्रकार के समाचार को ज्यादा प्रसारित करता था और उसमें जानबूझकर यह दिखाने की कोशिश करता था कि ऐसा करने में हिन्दू संगठनों का हाथ है, जबकि उसी के समाचार में अधिकारियों का बयान आता था कि यहां पर आग शार्ट सर्किट से लगी है, पर वह विद्युत अधिकारियों व कर्मचारियों की बातों को नजरंदाज कर, हिन्दू संगठनों पर ही इसका दोष मढ़ देता था। इसके प्रमाण हैं, मेरे पास, एनडीटीवी द्वारा प्रसारित सारे समाचार उस वक्त के, मेरे सामने देखिये, बताता हूं कि उक्त चैनल ने कैसे ढोंग करके देश में सांप्रदायिकता के बीज बोए।
एक और घटना। मैं आपको बता दूं ये कल की ही बात है, जब मैंने फेसबुक खोला, तो एक हमारे वामपंथी मित्र ने सलमान रिज्वी का एक फोटो शेयर किया। फोटो में क्या था, जान लीजिये। फोटो में था - एक साधु के पास सिर कटी लाश पड़ी है, साधु एक हाथ में नर मुंड लिये है और दूसरे हाथ में आरती का थाल लेकर गाय की आरती उतार रहा है। जब मैंने उस फोटो को देखकर, कमेंटस किया कि जनाब आपने ये फोटो शेयर तो कर दिया पर जब इसका जवाब आयेगा तो क्या आप उसे भी इसी प्रकार स्वीकार करेंगे...तुंरत मैंने देखा कि वे जनाब, जिन्होंने इस प्रकार का फोटो शेयर किया था, तुरंत उसे हटा लिया।
आखिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जब आप किसी की भावना से खिलवाड़ करेंगे तो आप भी अपनी भावनाओं का खिलवाड़ करवाने के लिए तैयार रहे, क्योंकि न्यूटन का तीसरा नियम साफ कहता हैं कि – क्रिया तथा प्रतिक्रिया बराबर एवं विपरीत दिशा में होती हैं, पर आज के वामपंथी सिर्फ अपनी प्रतिक्रिया दूसरे के माथे पटकना जानते हैं, पर उसके जवाब में कुछ भी लेने को तैयार नहीं, भला ऐसा भी कहीं हुआ है।
अभिव्यक्ति के नाम पर कभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मकबूल फिदा हुसैन का बचाव किया था। वह मकबूल फिदा हुसैन जो हमारे देवी – देवताओं की नग्न चित्र बनाता था। मैं पूछता हूं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसा ही कोई हरकत कोई दूसरा वर्ग करेगा, तो उसे भी हमें स्वीकार करना पड़ेगा। एक के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दूसरे पर तलवार की मार, ये दोगली संस्कृति का प्रतीक है। अब मैं पूछता हूं कि
अपने ही देश में जो मीडिया, इस प्रकार की हरकत कर रही है, उससे क्या होगा? वैमनस्यता फैलेगी या नहीं, सांप्रदायिक उन्माद फैलेगा या नहीं, और ऐसे में फिर क्या होगा? इंसान ही इंसान को काटने के लिए दौड़ेगा तो इसे क्या कहोगे?
पहले देश में सांप्रदायिक उन्माद व जातीय उन्माद फैलाने का काम नेताओं का हुआ करता था। जिससे उन्हें फायदा भी मिलता था। सांप्रदायिक व जातीय उन्माद से उन्हें एक खास वर्ग के वोटों का ध्रुवीकरण होता था और वे सत्ता हासिल कर लेते थे। आज भी ये नेता इस कार्य को गति दे रहे है, पर अब एक नया वर्ग भी इसके साथ पैदा हुआ है। वह हैं मीडिया का। अब सांप्रदायिक व जातीय उन्माद फैलाने का काम पूरी तरह मीडिया ने ले लिया है। वह बड़े ही सुनियोजित साजिश के तहत पूरे देश में सांप्रदायिक व जातीय उन्माद फैला रही है। इसमें दक्षिणपंथी व वामपंथी दोनों मीडिया का ग्रुप शामिल है। वामपंथी मीडिया बड़े प्रेम और चालाकी से अल्पसंख्यकों की ओर से फैलाये जा रहे सांप्रदायिक उन्माद का समर्थन करता है और इसकी सारी गोष्ठियां और कार्यक्रम अल्पसंख्यकों द्वारा चलाये जा रहे संगठनों में ही आयोजित किये जाते है, जबकि बहुसंख्यकों के सांप्रदायिक उन्माद को दक्षिणपंथी संगठन समर्थन करते है। इससे पूरा देश प्रभावित हो रहा है। इसलिए आप सारे देशवासी इन मीडिया में काम करनेवाले तेज लोगों से आज ही सतर्क हो जाय। नहीं तो, न तो आप बचेंगे और न ही देश। अतः जैसे ही दाढ़ी बढ़ाकर कोई खुद को वामपंथी बताकर उपदेश दें, या टीका लगाकर दक्षिणपंथी पत्रकार बताकर आपके समक्ष उपदेश देना शुरु करें तो बस उसे वही टोकिये और कहिये, हमें आपके भाषण की जरुरत नहीं। हमें कैसे रहना हैं, हमें रहना आता है, हमें कोई ज्ञान न दें। जरा देखिये, आपके ही रांची में क्या हुआ? किसकी इज्जत गयी, पूरे देश में। इसलिए आज ही इन मीडिया व मीडियाकर्मियों से सावधान हो जाओ व देश बचाओ। सारे भारतवासी एक है। कबीर की एक वाणी याद रखो ---
कबिरा तेरा झोपड़ा गलकटियन के पास।
करेगा सो भरेगा, तू क्यों रहे उदास।।