Friday, November 27, 2015

झारखंडवासियों से अपील...................

न प्रभात खबर अखबार पढ़े और न ही पढ़ाएं...
बच्चों से तो खासकर प्रभात खबर अखबार को दूर रखें, क्योंकि इससे उनका भविष्य खतरे में पड़ सकता है...
क्योंकि
ये अखबार भारत का मानचित्र ही गलत प्रकाशित करता है, कहीं आपका बच्चा इसके द्वारा प्रकाशित मानचित्र को ही सही मान लिया तो समझ लीजिये देश और बच्चा दोनों का नुकसान...
यहीं नहीं, आजकल ये अखबार महागठबंधन के प्रति समर्पित हो गया है...
इसे महागठबंधन की गलतियां नजर नहीं आती, इसे सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में ही गलतियां नजर आती है…
प्रधानमंत्री के खिलाफ विषवमन करनेवाले पत्रकारों की लंबी फौज को ये अपने अखबार में स्थान दे देता है...
क्योंकि इसका प्रधान संपादक हरिवंश जदयू से राज्यसभा का सांसद है, यानी पत्रकारिता के प्रति कम और नीतीश कुमार के प्रति ये ज्यादा वफादार खुद को साबित करने के लिए अनाप – शनाप छापे रहता है...साथ ही महागठबंधन के शीर्षस्थ नेताओं की गलतियों पर पर्दा डालता रहता है...
उदाहरण...
दिनांक 26 नवम्बर को रांची से प्रकाशित व प्रसारित सारे अखबारों को ले लीजिये...
जिसमें सारे अखबारों ने महागठबंधन के नेता राहुल गांधी से संबंधित समाचार को प्रमुखता से स्थान दिया है, जिसमें बेंगलुरु के माउंट कार्मेल कॉलेज में छात्र-छात्राओँ के साथ सवाल – जवाब के बीच राहुल गांधी साफ फंसते नजर आ रहे है, यही नहीं उनकी जमकर किरकिरी भी हुई है...पर प्रभात खबर ने अपने इस खबर को पृष्ठ संख्या 17 पर स्थान दिया, वह भी इस प्रकार दिया है कि जब ज्यादा जोर लगायेंगे तो उस पर आपकी नजर जायेंगी, राहुल गांधी को बचाने का प्रभात खबर ने कम प्रयास नहीं किया, बल्कि एड़ी चोटी लगा दी, पर राहुल गांधी का ऐसा ये समाचार था कि प्रभात खबर के किसी भी व्यक्ति में हिम्मत नहीं थी कि राहुल की वे इज्जत बचा लें...पर क्या करें हरिवंश जदयू के नेता जो ठहरे, महागठबंधन के नेता जो ठहरें...बेचारे ने ईमानदारी से राहुल के सम्मान को बचाने की कोशिश की...
आखिर क्या हुआ...बेंगलुरु में...
राहुल चले थे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्टाइल अपनाने, और यही स्टाइल अपनाना उनको महंगा पड़ गया...वो समझे कि जैसे बिहार के लोग है, उसी प्रकार बेंगलुरू के छात्र होंगे...
निठल्ले और महामूर्ख...
जो कहेंगे, वे हां में हां मिलाते रहेंगे और वे अपना उल्लू सीधा कर लेंगे, पर हुआ ठीक उल्टा...
राहुल ने पूछा – क्या स्वच्छ भारत पर काम हो रहा है?
स्टूडेंट्स – हां
राहुल ने पूछा – क्या मेक इन इँडिया से फायदा हुआ है?
स्टूडेंट्स – हां
राहुल ने पूछा – क्या वाकई ऐसा लगता है?
स्टूडेंट्स – हां
राहुल ने पूछा – क्या यंगस्टर्स को जॉब मिल रहा है?
स्टूडेंट्स – हां
प्रतिक्रियास्वरुप
और भी ऐसे कई सवाल हैं, जो छात्रों ने राहुल से पूछे, जिस पर राहुल की घिग्घी बंध गयी, पर प्रभात खबर में ये सारे के सारे सवाल खोजते रह जाओगे, नहीं मिलेगा। इसके लिए आपको अन्य अखबारों का सहारा लेना पड़ेगा...
ऐसे में हम प्रभात खबर क्यूं ले?, वह भी तब जबकि हमारे पास बहुत सारे विकल्प है, तो ऐसे में उन विकल्पों को क्यों न चुनें?, आखिर महागठबंधन के अखबार को लेने से हमें क्या फायदा?और झारखंड को क्या फायदा?
अखबार वहीं ले, जो मिट्टी से जूड़ा हो, ऐसे भी पटना जब जायेंगे तो प्रभात खबर का ध्येय वाक्य जो रांची में लिखा दिखता है – अखबार नहीं आंदोलन, इस ध्येय वाक्य की बिहार में हवा निकल जाती है और वहां बोलता है ये – बिहार जागे देश आगे, जब बिहार जागे तो देश आगे तो झारखंड जागे तो कौन आगे? इस सवाल का जवाब क्या प्रभात खबर के पास है?

Wednesday, November 25, 2015

आमिर का डर और एनडीटीवी का विधवा प्रलाप...

कल जब मैंने टीवी खोला...
तो टीवी खोलते ही आमिर भक्त, कांग्रेस भक्त और वामपंथ के रास्ते देश को आगे बढ़ाने की बात कहनेवाले चैनल एनडीटीवी पर नजर पड़ी, जहां अशोक पंडित, एंकर अभिज्ञान प्रकाश के ज्ञान की धज्जियां उड़ा रहे थे और अभिज्ञान अपने अधकचरे ज्ञान से खुद को बचाने का असफल प्रयास कर रहा था...
इन दिनों आमिर के उपर टीवी में खुब बहस चल रही है...टीवी का एक तबका आमिर के पक्ष में आ गया तो दूसरा तबका उसके विरोध में...
आमिर के पक्ष में आ गया एनडीटीवी मोदी के विरोध में जमकर अपनी वाणी का सही इस्तेमाल कर रहा है...बिहार के चुनाव में मोदी की हार से प्रसन्न एनडीटीवी ऐसा मौका कभी नहीं छोड़ना चाहता, जिसमें मोदी की बखिया उधेड़ने की बात हो... पर कभी – कभी उलटी दांव भी चल जाती है, जैसा कि कल अशोक पंडित ने एनडीटीवी की अपने वाक्यांशों से वो कर डाली, जो सपने में भी अभिज्ञान ने नहीं सोचा होगा...
और अब बात आमिर की...
आमिर से पूछिये...कि बेटा कभी पाकिस्तान या बांगलादेश गये हो, जहां हिन्दूओं की बेटियों को प्रतिदिन जलालत झेलनी पड़ती है, क्योंकि वे हिंदू है, गर नहीं तो कम से कम वहां की अखबारें तो पढ़ लो, जहां का मुस्लिम समुदाय वहां की हिन्दु बेटियों का अपहरण करता है, फिर उसकी इज्जत लूटता है और फिर उसका धर्मांतरण कराता है और फिर इस्लाम जिंदाबाद का नारा बुलंद करता है...दूसरी बात क्या आमिर बता सकता है कि पाकिस्तान और बांगलादेश में हिंदूओँ की संख्या लगातार घटती क्यों चली गयी, क्या वहां के सारे हिंदू पुरुष नपुंसक थे क्या?
और आजादी के बाद भारत में रह रहे सारे मुसलमान असली मर्द थे क्या? कि वे लगातार अपनी जनसंख्या बढ़ाते चले गये, स्थिति तो ऐसी है कि कालांतराल में भारत में ही हिंदू अल्पसंख्यक हो जायेंगे, कई राज्यों में जैसे जम्मू-कश्मीर या नार्थ-ईस्ट इलाकों में तो हिन्दूओं की हालत दोयम दर्जें की हो गयी है...।
तीसरी बात मैंने इसके पहले जब आमिर की फिल्म पीके आयी थी तो कुछ लिखा था, जो इस फेसबुक में मौजूद है, सभी पढ़े...और पूछे आमिर से कि बेटा क्या जिस धर्म से तुम आते हो?, उसमें सब कुछ क्या सही है? , गर सब कुछ सही नहीं है तो उसके अंदर जो दकियानूसी चीजें है, उस पर तुम्हारी हिम्मत है कि फिल्म बना दो...वो कहेगा, कि नहीं...क्योंकि वो जानता है कि फिर क्या होगा? ...मैं कहता हूं कि जब पहले सहिष्णुता की बात करते हो, तो तुम अपने धर्म में इसे दिखाओ...और तुम्हारी सहिष्णुता उस वक्त कहां चली जाती है, जब धर्म के नाम पर तुम्हारे लोग पूरे विश्व में आंतक मचा रहे होते है, जिससे पूरी दुनिया ही त्रस्त हो गयी...
तुम बोलते हो कि भारत से कहीं और चले जाये...तो तुम्हे रोका किसने है, तुम्हारे पास इतने पैसे है कि तुम पैसे के बल पर कहीं भी चले जाओगे और तुम्हें शरण भी मिल जायेगी, पर हम कहां जायेंगे, बेईमान...मुझे तो यहीं रहना है...क्योंकि तुम्हारे जैसा मैं गद्दार नहीं, कि जिस देश में खाया, कमाया और जब उड़ने की बारी आयी तो देश को गाली देकर चल दिये...
तुम्हारे ही जैसा एक और आदमी था, नाम था – मकबूल फिदा हुसैन, वह हमेशा हिन्दू देवी – देवताओं की अश्लील चित्र बनाता था, पर कभी इस्लाम पर उसका ऐसा चित्र नहीं आया, क्योंकि वह जानता था कि असहिष्णु कौन है...इसलिए वो जी भर कर हिन्दू देवी-देवताओं की गालियां दी और फिर मुस्लिम देश की ओर चल दिया...ठीक उसी प्रकार की हरकत तुमने कर दी...जी भरकर पीके फिल्म में हिन्दू देवी – देवताओं की गाली दी, और अब पूरे देश के हिन्दूओं के गालों पर असहिष्णु का तमाचा जड़ कर विदेश जाने की बात कर दी...।
इस मुददे पर तुम्हारे साथ कांग्रेस और आप के लोग है...ये कितने देश भक्त है...पूरा देश इन्हें जानता है...अभी देश पर जान छिड़कनेवाले दिल्ली की 70 सीटों में से 67 सीटों पर कब्जा जमानेवाले दिल्ली की जनता की फिक्र छोड़ अपने 67 विधायकों को ढाई-ढाई लाख रुपये का मासिक वेतन दिलवाने जा रहे है...और लालू के साथ गले मिलकर भ्रष्टाचार का नया पैतरा कैसे सीखा जाये, इसके लिए लालू को गले लगा रहे है...ऐसे लोग तुम्हारे साथ जरुर होंगे...पर जहां से तुमने कमाना सीखा...हमें खुशी है कि वहां के लोगों ने तुम्हारे उपर थूका है...हो सकता है कि इनकी संख्या तुम्हारी नजरों में कुछ भी नहीं हो...पर आमिर ये जान लो कि देश की आजादी में मुट्ठी भर ही लोग लड़े थे...नहीं तो पूरा देश गर खड़ा हो जाता तो सरकार किस-किसको स्वतंत्रता सेनानी का वेतन देती...स्वतंत्रता सेनानी का वेतन मिलना इस बात का संकेत है कि इस देश में गद्दारों की संख्या सर्वाधिक और देश भक्तों की संख्या का अकाल हमेशा से रहा है...
ऐसे भी, मैं जानता हूं कि तुम क्या हो? ...कल तक कांग्रेस का शासन था...मुंबई-दिल्ली कई राज्यों के प्रमुख शहरों में कत्लेआम हुआ...पूरे देश में सिक्खों का कत्ल राजीव के शासन में हुआ...इंदिरा के मरने के समय... राजीव का बयान आया था कि कोई पेड़ गिरता है तो कंपन होती है, और उसमें कई सिक्ख मारे गये...ये सिक्खों को मारनेवाला कौन था...पूछो अपने कांग्रेसियों से....उस वक्त सहिष्णुता कहां गयी थी...
इधर जब से मोदी आया है...मोदी विरोधियों का एक ही सूत्र रह गया है...मोदी हटाओ, देश की इज्जत चली जाये तो चली जाये, पर मोदी नहीं रहना चाहिए...और एक मोदी है, जो इन सबसे अलग देश की इज्जत और विकास के मुद्दे पर पूरे विश्व में भारत की नई ईमारत तैयार कर रहा है, और जरा इन बेहुदों को देखिये...जो ऐसी जगह रहते है...जहां कोई इनका बाल बांका नहीं कर सकता...पर इन्हें अब भारत में रहना खतरा सा दीख रहा है...इससे बड़ी गद्दारी और क्या हो सकती है? और उससे भी बड़ी गद्दारी तो वे कर रहे है, जो इसके सुर में सुर मिला रहे है...जो इनके सुर में सुर मिला रहे है, वे जान ले कि देश वो नहीं भी रहेंगे तो रहेगा...देश के प्रति ईमानदारी नहीं छोड़े...नहीं तो आनेवाले समय में ये सभी जयचंद ही कहलायेंगे...
आज इस्लाम के नाम पर जो आईएस पूरे विश्व में कोहराम मचा रहा है...उसे पूरी दुनिया देख रही है...रुस, चीन, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, अफ्रीका, यहां तक कई मुस्लिम देश भी, कितने देश का नाम गिनाये, सभी आईएस के खिलाफ लग गये है...इस्लाम से अनजाने भय से लोग इतने डर गये है कि लोग बुर्का और काले रंग को देखकर कांप जा रहे है...और ये कहते है कि भारत में असहिष्णुता बढ़ी है...
हाल ही में एक अखबार में पढ़ा कि ब्रिटेन में 300 प्रतिशत असहिष्णुता बढ़ी है, फिर भी वहां के किसी भी विरोधी दल के नेता ने, अपने देश और सरकार के प्रति घिनौने शब्द का प्रयोग नहीं किया पर जरा इस देश के नये – नये चपड़गंजूओं को देखिये...दिये जा रहे है...
अरे आमिर पूछो तो राहुल गांधी से कि जहां कलबुर्गी की हत्या हुई...वहां किस पार्टी का शासन है? और पुछो जहां दादरी हुआ वहां किस पार्टी का शासन है?
क्या तुम्हें मालूम नहीं कि लॉ एंड आर्डर राज्य के अंतर्गत आता है...तो फिर जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया...उन्हें जेल में डालने का काम किसका है...यानी काम गलत करे तुम्हारे अब्बा और गाली सुने हम वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हो...गर ये कहावत नहीं सुने हो तो ये कहावत जरुर सुने होंगे कि खेत खाये गदहा और मार खाये जुलाहा...
आमिर तुमने सिद्ध कर दिया कि तुम मकबूल फिदा हुसैन के बताये मार्ग पर चल रहे हो...
तुमने सिद्ध कर दिया कि तुम ही सिर्फ असली मुसलमान हो और भारत में रह रहे अन्य मुसलमान, मुसलमान नहीं है...
तुमने सिद्ध कर दिया कि तुम देश के प्रति वफादार नहीं हो...
और तुमने उनके भी चेहरे से पर्दा उठा दिया जो कहते है कि देश उनके लिए सर्वोपरि है...
और एनडीटीवी वाले तुम भी जान लो, ये जो तुम बार – बार पूछते हो न कि हम देशभक्त है या नहीं, इसका सर्टिफिकेट कौन देगा या कौन बांट रहा है...तो मैं तुम्हें बताता हूं...अभिज्ञान और तुम्हारे आका...
ये सर्टिफिकेट तुम्हारे शरीर के अंदर किसी कोने में आत्मा बैठी है, वो देती है, और ये तब सर्टिफिकेट जारी करती है, जब तुम्हारे पास कुछ नहीं होता...तुम तो लाखों – करोड़ों में खेल रहे हो, तुमको देश की क्या चिंता...
चिंता तो उन्हें है, जो खेतों में हल चलाकर जीते है...जिनके बेटे सीमा पर खड़े है...और तुम, तुम क्या जानो देशभक्ति...बस अपनी बीवी और बेटों के पास जाकर कहना कि बेटा घबराना नहीं...रतलाम सीट से भाजपा हार गयी है...हां हां ये मत बताना कि मणिपुर में भाजपा दो विधानसभा सीटें जीतकर खाता खोल दी हैं, नहीं तो तुम्हारा बीवी – बेटा डर जायेगा...समझे लल्ला...

Tuesday, November 24, 2015

लालू-नीतीश भजन..............

(लालू-नीतीश भजन...
इस भजन को सुबह-शाम गाने से भक्त इस लोक में सुख पाकर, अंत में लालू व नीतीश लोक में चला जाता है, जहां उसे परम् आनन्द की प्राप्ति होती है...इस भजन में उन महान संतों के भी नाम है, जिन्होंने लालू व नीतीश भगवान को अपने हृदय में रखकर इस लोक में सुख पा रहे है और परलोक को भी सुधारने में लगे है...बोलिए प्रेम से इस लोक के महाभगवान सामाजिक न्याय के पुरोधा, भक्त वत्सल लालू नीतीश भगवान की जय...)
लालू नीतीशम्
लालू नीतीशम्
यादव भजे
लालू नीतीशम्
कुर्मी भी भजे
लालू नीतीशम्
मुसलमां भजे
लालू नीतीशम्
लालू नीतीशम्......
हरिवंश भजे
लालू नीतीशम्
ज्ञानू भी भजे
लालू नीतीशम्
शैबाल भजे
लालू नीतीशम्
लालू नीतीशम्......
माखनचोरम्
यदृश्म् यदृश्म्
चारा चोरम्
पत्नी भक्तम्
बेटा भक्तम्
बेटी भक्तम्
सजायाफ्ता भये
लालू श्रीमन्नम्
सर्व गुण संपन्न
लालू नीतीशम्
लालू नीतीशम्.............
प्रभात खबरम्
हृदयम् राखम्
नीतीश गौरवम्
हरदम गायम्
लालू चरणम्
लोटे हरदम्
प्रभात खबरम्
प्रभात खबरम्
लालू नीतीशम्
लालू नीतीशम्......
शिवानंद प्रियम्
लालू नीतीशम्
पवनम् प्रियम्
लालू नीतीशम्
मनोज प्रियम्
लालू नीतीशम्
लालू नीतीशम्
लालू नीतीशम्......
एक तीर भोकम्
दूजे लालटेन धड़म्
तीजे हाथ साफ
हरदम करतम्
ऐसे है, प्रियम्
महागठबंधनम्
लालू नीतीशम्
लालू नीतीशम्......
जो ले चलम्
बिहार हरदम्
पृष्ठम् पृष्ठम्
पृष्ठम्, पृष्ठम्
लालू नीतीशम्
लालू नीतीशम्......
जातिवाद बढ़म्
हरदम् हरदम्
यादववाद बढ़म्
हरदम् हरदम्
सबको मार चलम्
धूआधारम्
गाली देत चलम्
धूआधारम्
और बोल चलम्
सामाजिक न्यायम्
लालू नीतीशम्
लालू नीतीशम्

Saturday, November 21, 2015

रघुवर की अयोध्या को सरयू से खतरा....

रघुवर की अयोध्या को सरयू से खतरा...
शत्रुघ्न सिन्हा का रोल झारखंड में सरयू अदा करने को तैयार...
झारखंड भाजपा में विभीषण बनने में सरयू अन्य नेताओं से कहीं आगे...
एक लोकोक्ति है...घर का भेदी लंका ढाहे अर्थात् घर का भेदिया ही लंका को हानि पहुंचाता है। इसको आप ऐसे भी समझिये कि बिना भेदिया के लंका ढायी नहीं जा सकती...पर झारखंड में रावण तो है नहीं, यहां तो रघुवर का दास यानी खुद को हनुमान बतानेवाले रघुवर दास का शासन है, तो फिर रघुवर की अयोध्या को खतरा किससे...। इसको अगर ऐसे समझा जाये कि सरयू में जलस्तर बढ़ेगा तो अयोध्या को बाढ़ का खतरा झेलना पड़ेगा अर्थात् झारखंड के सरयू राय की हृदय वेदना का स्तर अत्यधिक होगा, तो रघुवर दास की मुख्यमंत्री पद को झटका लग सकता है। अब तक देखने में तो यहीं आ रहा है कि रघुवर दास की सरकार में सरयू राय की वेदना का स्तर बहुत अधिक बढ़ रहा है, जो कभी-कभी सरयू के मुख से आक्रोश के रुप में प्रकट होता है और धीरे-धीरे अखबारों व चैनलों की सुर्खियां बन जाता है, जिसे बाद में बहुत ही प्रेम से सरयू राय स्वयं ही अपनी वेदना को दूसरी तरह से शांत करा देते है, ठीक उसी प्रकार जैसे अयोध्या की सरयू में बढ़े जलस्तर को सरयू स्वयं ही शांत करा देती है...
इधर नीतीश के बिहार में पुनः सत्तारुढ़ होने से भले ही नीतीश स्वयं ही उतने प्रसन्न न हो, पर बिहार के भाजपाद्रोही व मुख्यमंत्री बनने का दिवास्वप्न देखने वाले बिहारी बाबू उर्फ बोकरादी बाबू अर्थात् शत्रुघ्न सिन्हा बहुत ही प्रसन्न है। ठीक बिहारी बाबू की तरह ही, झारखंड में भी भाजपा के कई बिहारी बाबू है, जो खुद को बिहारी बाबू यहां कहलाना पसंद नहीं करते, लेकिन हैं खाटी बिहारी पर झारखंड के तकदीर बने हुए है। इन्होंने भी बिहारी बाबू की तरह झारखंड में भाजपा का गड्ढा खोदना शुरु कर दिया है...। सरयू राय बिहारी बाबू का रोल सही-सहीं निभा पायेंगे या नहीं, ये तो वक्त बतायेगा, पर वे उसी राह में है। नीतीश के प्रति उनका उमड़ा प्रेम ऐसे ही नहीं है, उनके मुख से आज तक नीतीश के खिलाफ कुछ भी नहीं निकला है, वे नीतीश भक्ति में हमेशा से लगे रहते है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार विधानसभा चुनाव के क्रम में नीतीश कुमार के खिलाफ कुछ भी बोलते थे, तो सरयू राय का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ गुस्सा उनके चेहरे पर साफ दीख जाया करता था। नीतीश के ताजपोशी में नीतीश का खुद फोन घुमाकर, सरयू को आमंत्रण, इस बात का संकेत और प्रमाण है कि नीतीश ने भाजपा के अंदर रहकर उन विभिषणों के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते। जिनसे उनकी सत्ता को संजीवनी मिली। ये राजनीति ही है कि यहां कब किसकी कौन आरती उतारने लगेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता...। इसलिए ईमान की रोटी खानेवालों की संख्या राजनीति व राजनीतिबाजों से इतना नफरत करती है कि पूछिये मत। वो जानवरों पर तो भरोसा कर लेती है, पर राजनीतिज्ञों पर नहीं।
एक बात और। इन दिनों पढ़ने को मिला कि बोकरादी बाबू यानी शत्रुघ्न सिन्हा जो खुद को ट्वीटर के माध्यम से खुद को हाथी भी बोल चुके है। नागपुर गये थे, वे संघ के नेताओं व भाजपा के नेताओं से बातचीत करने के लिए वे उनके दरवाजा भी खटखटाएं पर किसी ने उन्हें भाव भी नहीं दिया...। यहां भी वे बड़बोलेपन में कह दिये कि गर सच कहना बगावत है तो समझो हम बागी है। जैसे लगता है कि दुनिया के सत्यवादी हरिश्चंद्र सिर्फ और सिर्फ बोकरादी बाबू है, दूसरा कोई नहीं...। हमारा सलाह होगा – बोकरादी बाबू को कि आप थोड़ा दरियादिली दिखाइये, सचमुच के हाथी बनिये और हाथी जैसी हरकत दिखाइये...। भाजपा से नाता तोड़िये और सदा के लिए तीर थाम लीजिये और उस तीर से लालटेन के सहारे, उन सब को अपनी बातों से दर्द पहुंचाइये जो आप को दर्द पहुंचाया, आपको मुख्यमंत्री बनने नहीं दिया...। साथ ही नीतीश को कहिये कि देखो, नीतीश भाई हम भाजपा के बिभीषण है, तुम तो अब हमारे लिए राम बन जाओ। ठीक जैसे राम ने विभीषण को गले लगाया और लंकेश बनाया। तुम भले ही मुझे बिहार का किंग न बनाओ पर मेरी बीवी-बच्चों को तो कम से कम विधायक-सांसद व मंत्री तो बना दो। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि नीतीश, बिहारी बाबू पर कृपा दृष्टि दिखायेंगे, क्योंकि नीतीश तो भक्तवत्सल है। जब वे हरिवंश को सांसद बना सकते है, जब वे रवीश के भाई पर दयालुता दिखा सकते है तो फिर बिहारी बाबू पर क्यों नहीं...। उन्होंने तो बिहार चुनाव में भाजपा में कील ही ठोक दी...।
और इधर देखिये सरयू राय कि, जब से वे झारखंड में रघुवर मंत्रिमंडल में शामिल हुए है। रघुवर दास के नाक में दम कर दिया है। हर एक महीने पर उनका ऐसा बयान आता है, जो राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर देता है। आखिर उनका गुस्सा क्यों प्रकट होता है? उसका साफ संकेत है कि वे अपने मंत्री पद से खुश नहीं है। उन्हें मलाईदार मंत्री पद चाहिए था, पर रघुवर दास ने उन्हें खाद्य आपूर्ति मंत्रालय संभालने को दे दिया। इधर एक साल होने को हुए, पर सच पूछिये तो सरयू राय ने इस मंत्रालय का कबाड़ा बना कर रख दिया है। काम-धाम कुछ नहीं और गिलास तोड़ा आठ आना वाला हिसाब है। आज एक साल होने को आये, राज्य में किसी को नया राशन कार्ड तक नहीं मिला है। गर इक्के-दुक्के को मिले भी तो उसमें इतनी अशुद्धियां है कि पूछिये मत...। अक्टूबर महीना बीत गया, नवम्बर महीना चल रहा है और अभी तक अक्टूबर के अनाज का उठाव तक नहीं हो सका है...। इस माह के करीब 52 हजार टन चावल व गेहूं का उठाव करने में राज्य का खाद्य आपूर्ति विभाग असफल रहा है। इसके उठाव के लिए भारतीय खाद्य निगम के कार्यकारी निदेशक कोलकाता से समय विस्तार की सहमति ली गयी जिसकी तय तिथि 20 नवम्बर को समाप्त हो गयी, यानी न काम करेंगे और न करने देंगे, पर बयानबाजी कर भाजपा और मुख्यमंत्री रघुवर दास का सारा काम तमाम कर देंगे। जमकर नीतीश भक्ति में लीन रहेंगे और मंत्रिमंडल की आड़ में, सरकार की आड़ में स्वहित में अन्य कामों को निबटायेंगे। क्या ये राज्य के साथ धोखाधड़ी नहीं...।
सब को कटघरे में खड़ा करनेवाले सरयू राय राज्य की जनता को बताये कि उन्हें जो विभाग मिला, उसमें उन्होंने कौन-कौन से काम किये, जिसको लेकर जनता उन्हें माथे पर बिठाएं...। रही बात मुख्यमंत्री रघुवर दास की तो ये न तो वसुंधरा राजे सिंधिया और न ही शिवराज सिंह चौहान की तरह मुख्यमंत्री है, जो ऐसे लोगों को उनकी औकात बता दें, ये तो मामूली प्रभात खबर के मामूली संपादकों के इशारे पर वे काम करते है, जिसको एक सामान्य विधायक भी तवज्जों नहीं देता...ऐसे में ये सरयू राय जैसे अशांत मंत्रियों को शांत करा देंगे, हमें नहीं लगता...। एक साल होने को आये, सच पूछिये तो राज्य का कोई भी ऐसा मंत्री नहीं, जो ये दावे के साथ ये कह सकता है कि उसने राज्य की जनता के हित में ये कार्य किये है, उसे इसके लिए शाबाशी मिलनी चाहिए...पर हम इतना जरुर कह सकते है कि इन मंत्रियों ने ऐसी-ऐसी हरकतें जरुर की जो जग हँसाई का कारण भी बन गयी...
भाजपा में ही रहकर, भाजपा से अपने तन का वजन बढ़ानेवाले ये नेता, अपनी मातृसंगठन संघ के प्रति भी वफादार नहीं है, तो ये समाज और देश के लिए कितने वफादार होंगे, समझा जा सकता है...ये तो सत्ता में आते ही, अपने चारणों व अपने अनुचरों पर दया लुटाने में लीन हो जाते है, इन्हें देश व राज्य से क्या मतलब...। जरा नजर दौड़ाईये...झारखंड सरकार की हरकतों पर पता लग जायेगा कि जो लोग इनकी आरती उतार रहे है, वे बम बम हो रहे है, और जो इन्हें आइना दिखा रहा है, उसे ये फूंटी आंखों नहीं देख रहे, वे तो उसे ठिकाने लगाने में भी देर नहीं कर रहे...
और रही बात हमारी...तो मैं उन्हें बता दूं...
कबीर का हूं, कबीर ही रहूंगा...
कबीरा खड़ा बाजार में लिये लुआठी हाथ। जो घर जारे आपना चले हमारे साथ।।
कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर। ना काहुं से दोस्ती ना काहु से वैर।।
हमें राज्यसभा या लोकसभा में नहीं जाना और न ही किसी नेता मंत्री का चरणोदक पीना है, जो नेताओं व मंत्रियों का चरणोदक पीना चाहते हैं, पीते रहे और नीतीश या किसी अन्य राज्य के मुख्यमंत्री जैसे लोगों या अन्य नेताओं के चरणोदक पीकर कृतार्थ होते रहे...हमें क्या?

Thursday, November 19, 2015

झारखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय और ग्राह्य नेता है बाबू लाल मरांडी..........

झारखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय और ग्राह्य नेता है बाबू लाल मरांडी..........
पन्द्रह साल झारखंड बने हो गये...
राज्य की जनता ने इसी बीच एक से एक नेता देखें, जिन्होंने झारखंड का नेतृत्व किया...पर किसी नेता में हिम्मत नहीं हुई कि बाबू लाल मरांडी द्वारा खींची गयी विकास की लकीर से बड़ी लकीर खींच कर दिखा दें...।
कितने नाम गिनाऊं...
अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधु कोड़ा, हेमंत सोरेन और अब रघुवर दास...। दावे तो सबके थे और हैं, पर जरा पूछिये कि वो कौन ऐसी चीजें है, जिसको लेकर राज्य की जनता इन पर गर्व कर सकें और ये कहें कि ये इनकी देन है – इन झारखंडी नेताओं का...झारखंड की जनता के लिए...।
सच्चाई यह है कि इन सारे नेताओं ने अपनी कोठी ठीक की, अपना दबदबा कायम किया पर जनता के हित में कोई ऐसा कार्य नहीं किया, जिस पर जनता इन्हें अपना मान सकें...हां इतना जरुर हुआ कि इनके यशोगान गानेवाले मीडिया में रह रहे लोग व इनके चारणों की आर्थिक स्थिति इन नेताओं के समान जरुर हो गयी...।
गर इन नेताओं के कार्यकाल को देखिये और विभिन्न अखबारों में इनके शासनकाल के दौरान विकास को पैमाना बनाकर छपे विज्ञापनों को देखे तो इनकी पोल खुलकर रह जायेगी...। ये सारे नेता बाबू लाल मरांडी के इर्द-गिर्द भी नहीं ठहरते...।
हमें याद है कि जब बाबू लाल मरांडी ने सत्ता संभाली तो बिहार के घटिया स्तर नेताओं की मार झेल रहा झारखंड को उपर उठाना कोई सामान्य कार्य नहीं था, पर बाबू लाल मरांडी ने योग्य लोगों की मदद से जो खाका तैयार किया और उस पर जो चलने की कोशिश की...उसका फायदा सबने उठाया और आज भी वह फायदा देखने को मिल रहा है...
हालांकि बाबू लाल के विकासात्मक सोच को कुंद करने और झारखंड के विकास की पटरी को धराशायी करने का प्रयास उस वक्त के नीतीश भक्त नेताओं व विधायकों ने कम नहीं किया...। जिसका खामियाजा लाल चंद महतो, जलेश्वर महतो, बच्चा सिंह, गौतम सागर राणा आज भी उठा रहे है, जबकि मधु सिंह और रमेश सिंह मुंडा तो स्वर्ग ही सिधार गये...। इसलिए इन पर बोलना अब ठीक नहीं...पर सच्चाई यहीं है...
आखिर क्या किया बाबू लाल ने...आज इस पर चर्चा होना ही चाहिए, क्योंकि झारखंड अपने स्थापना के 15 साल पूरे कर लिए और आज 16 वें वर्ष में प्रवेश कर लिया है...।
बाबू लाल का झारखंड को देन......
1. झारखंड के बच्चों को बिहार से पिंड छुड़ाया और सीधे सीबीएसई पैटर्न लागू करते हुए, झारखंड के बच्चों को एनसीईआरटी की पुस्तकें निःशुल्क थमा दी...पढ़ों और खुद को गढ़ो का सिद्धांत बाबू लाल ने झारखंड के बच्चों को दिया... और किसी से भेदभाव नहीं की....
2. झारखंड की आदिवासी बालिकाएँ कल्याण विभाग को जान सकी और वे साइकिल से अपने घरों से निकलती हुई, स्कूल पहुंचने लगी...ऐसा पहली बार सुंदर सा दृश्य झारखंड में देखने को मिला, जहां बेटियां आगे निकल रही थी...वह सरकार द्वारा दिये गये साइकिल से अपने स्कूल जा रही थी।
3. बाबू लाल जानते थे कि बिना आधारभूत सरंचना के झारखंड का विकास नहीं हो सकता...इसलिए उन्होंने जर्जर झारखंड को ठोस झारखंड बनाना शुरु किया...बड़े पैमाने पर पुल-पुलिया बनाये गये...सड़कों की दशा सुधारी गयी...उस वक्त लोग बोला करते थे कि गर बसे हिचकोले खाना बंद कर दें तो समझ लो, झारखंड आ गया...
4. भारतीय रेल की मदद ली...झारखंड में अच्छी ट्रेनें इन्हीं के शासनकाल में देखने को मिली, जो रांची में इक्के – दुक्के ट्रेन देखने को मिलते थे, जहां दिल्ली जाने के लिए कोई बेहतर ट्रेन नहीं थी, इनके शासन काल में भारत सरकार के सहयोग से रांची देश के सभी महत्वपूर्ण महानगरों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ना शुरु हुआ...यहीं नहीं कई रेलवे प्रोजेक्ट भी उन्होंने शुरु करवाएं...ज्यादा जानकारी के लिए तत्कालीन रेलमंत्री और अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कोई भी दरवाजा खटखटा सकता है...
5. बाबू लाल ने भ्रष्टाचार पर भी सीधा चोट किया... मात्र एक साल में बाबू लाल मरांडी के शासन काल में सौ से भी ज्यादा भ्रष्ट अधिकारी व कर्मचारी निगरानी की भेंट चढ़ चुके थे।
6. झारखंड के दलितों व आदिवासियों के आर्थिक उत्थान के लिए बाबू लाल मरांडी ने उन्हें बस, टेम्पू भी उपलब्ध करायी थी...
7. किसानों को कम कीमत पर पानी पटाने के लिए डीजल चालित मशीन उपलब्ध करायी गयी, यहीं नहीं जैसे ही सुखा पड़ने की आशंका होती, वे बैठक बुलाते और एक्शन लेते, ये अलग बात थी कि जैसे ही एक्शन की बात होती, प्रकृति इतनी बारिश कर देती कि राज्य से सूखे पड़ने की आशंका ही खत्म हो जाती...
8. बाबू लाल मरांडी के शासनकाल में ही विधानसभा में सरपल्स बजट पेश होता था...
9. बाबू लाल मरांडी ने ही झारखंड के मूलवासियों को उनका हक मिले, इसके लिए डोमिसाइल नीति की घोषणा की, इस नीति में कहीं भी कुछ गड़बड़ नहीं था, पर उनके विरोधियों ने उनके खिलाफ कुचक्र रचा, जिसके वे शिकार हुए...आखिर झारखंड जिनके लिए बना, उन्हें वह हक क्यों नहीं मिलना चाहिए...आखिर जो अन्य राज्यों में भी वहां का डोमिसाइल बनाकर लाभ ले रहे है, वे यहां भी उसका लाभ ले, यानी एक व्यक्ति का परिवार दो – दो जगहों का लाभ लें और यहां के आदिवासी – मूलवासी झारखंड में भी दोयम दर्जें का नागरिक बन कर रहें, क्या ये गलत नहीं?
10. आज जो विधानसभा भवन और उच्च न्यायालय भवन निर्माण की बात हो रही है, उसके लिए ग्रेटर रांची बनाने का स्वप्न किसका था, ये तो सबको मालूम होना चाहिए...
11. ये किसी को नहीं भूलना चाहिए कि झारखंड के मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ही थे, जो विकास के आधार पर देश के सभी राज्यों में से सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री के रुप में उस वक्त तीसरे स्थान पर पहुंच गये थे...जो आज तक कोई नहीं पहुंच सका....
12. जब उनका शासन था तो झारखंड का सम्मान था...जरा पूछिये मधु कोड़ा से और उनका समर्थन करनेवाले झामुमो, कांग्रेस और राजद के नेताओं व विधायकों से आज वो झारखंड को सम्मान क्यों नहीं मिलता...आखिर झारखंड के सम्मान के साथ खिलवाड़ किसने की...
13. भाजपा को शिखर पर ले जाने में भी बाबू लाल मरांडी के महत्व को नकारा नहीं जा सकता...हमें याद है कि झारखंड बनने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई...। उस वक्त राजनाथ सिंह, अर्जुन मुंडा और बाबू लाल मरांडी ने संयुक्त रुप से प्रेस कांफ्रेस किया था...। हमारा सवाल था – बाबू लाल मरांडी से कि गर भाजपा सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री कौन होगा...बाबू लाल मरांडी ने बिना देर किये बताया – अर्जुन मुंडा। तुरंत यहीं सवाल अर्जुन मुंडा से मेरा था, अर्जुन मुंडा ने जवाब दिया कि पार्टी जो कहेगी, वो करेंगे, हालांकि वे भी दरियादिली दिखा सकते थे, पर उन्होंने नहीं दिखायी। ये वो समय था जब लाल कृष्ण आडवाणी के होठों पर अटल बिहारी वाजपेयी और अटल बिहारी वाजपेयी के होठो पर आडवाणी हुआ करते थे, पर झारखंड में बाबू लाल मरांडी के होठों पर अर्जुन मुंडा तो थे, पर अर्जुन मुंडा के होठों पर बाबू लाल मरांडी नहीं थे। एक बात और...झारखंड के राजनीति के धुरंधरों को ये जान लेना चाहिए कि अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले जाने में बाबू लाल मरांडी की ही महत्वपूर्ण भूमिका थी... न कि किसी और नेता की...पर काल के पहिये ने... बाबू लाल मरांडी को भाजपा से इतना दूर कर दिया कि....वे भाजपा को आज की तारीख में पसंद ही नहीं करते...और न भाजपा के नेताओं को....
14. बाबू लाल मरांडी मुख्यमंत्री पद पर रहने के दौरान अपने विरोधियों को भी उतना ही सम्मान देते थे, जितना आज तक किसी ने नहीं दिया...याद करिये...भाकपा माले विधायक दल के नेता महेन्द्र प्रसाद सिंह के प्रति विधानसभा में दिया गया उनका बयान बहुत कुछ कह देता है...जरा आज के नेताओं का बयान देख लीजिये....हालांकि बाबू लाल मरांडी आज भी अपने विरोधियों को उतना ही सम्मान देते है...चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट और ये पूछना...क्या जी, कैसे है, सब ठीक...
15. सिंगल विंडो सिस्टम हो या ग्रेटर रांची, सब पर बाबू लाल मरांडी का विजन क्लियर था...नक्सलवाद का सफाया हो...या बेहतर झारखंड निर्माण की ललक...सचमुच बाबू लाल मरांडी आज भी झारखंड की जनता के बीच उतने ही लोकप्रिय है, जितने कल थे...ये अलग बात है कि चुनाव के समय उनके सहयोग से लोग जीत तो जाते है, पर झारखंड के दलबदलू कल्चर से अनुप्राणित होकर, ये जीते विधायक बाबू लाल मरांडी को ही ठेंगा दिखा देते है...हमें लगता है कि ऐसे लोगों को भी जनता देख रही है...
एक बार फिर बाबू लाल मरांडी को हृदय से आभार...
क्योंकि उनकी सोच, आज भी झारखंड को मजबूत करती है...

Monday, November 16, 2015

एक पत्र झारखंड के मुख्यमंत्री को..........

सेवा में,
श्री रघुवर दास, मुख्यमंत्री, झारखंड।
विषय - क्या प्रभात खबर द्वारा किये जा रहे पाप को इसलिए छोड़ देना चाहिए, कि वह झारखंड में सर्वाधिक बिकनेवाला अखबार है?
महाशय,
सर्वप्रथम, आप ये जान लीजिये......
इसी साल अप्रैल महीने में अल जजीरा चैनल लगातार भारत के नक्शे से छेड़छाड़ कर रहा था और कश्मीर का गलत मानचित्र लगाकर समाचार प्रस्तुत कर रहा था, जिसे लेकर भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कड़ी कार्रवाई करते हुए भारत में अलजजीरा के प्रसारण पर पांच दिन के लिए रोक लगा दी थी.....
इसी साल पाकिस्तान में क्या हुआ, वह भी जान लीजिये....
10 सितम्बर 2015 पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक प्रोफेसर आबिदा नसरीन से ऐसी ही गलती हो गयी, उन्होंने एक सेमिनार में पाक अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान में नहीं दिखाया। उसका परिणाम क्या हुआ? पाकिस्तान स्थित पंजाब के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ ने इस घटना पर वहां के वीसी से रिपोर्ट मांगी। यहीं नहीं इंस्स्टीच्यूट ऑफ एजूकेशन एंड रिसर्च की सहायक प्रोफेसर आबिदा नसरीन को तत्काल प्रभाव से तीन महीने के लिए निलंबित कर दिया गया......
इसी साल आप के झारखंड में....
धनबाद का एक लड़का, धनबाद के झरिया में, एक धार्मिक जुलूस में पाकिस्तानी झंडा लेकर चल रहा था, उस पर कार्रवाई हुई, वो जेल भेज दिया गया।
इसी साल रांची से प्रकाशित एक अखबार फारुकी तंजीम ने सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़नेवाला लेख प्रकाशित किया। आपने उस पर कड़ी कार्रवाई की। तो फिर ऐसे में, रांची से ही प्रकाशित अखबार प्रभात खबर जो बार-बार भारत के मानचित्र को गलत ढंग से प्रकाशित करता है, उस पर आप कार्रवाई क्यों नहीं करते....
कल का यानी 15 नवम्बर 2015 के प्रभात खबर का लाइफ संडे अखबार देखिये...जिसमें भारत के मानचित्र को दर्शाया गया है, कैसे पाक अधिकृत कश्मीर को भारत से काट कर, प्रभात खबर ने दिखाया है। आश्चर्य है कि ये गलती कोई पहली बार नही हुई, वो बार-बार गलत करता है। मेरे पास उसके कई दृष्टांत मौजूद है। वो भारत के गलत मानचित्र प्रकाशित करता है, और माफी भी नहीं मांगता। डंके की चोट पर वो गलती किये जा रहा है, और आपकी सरकार उस पर कोई कार्रवाई नहीं करती, आखिर क्यों? क्या प्रभात खबर, भारत देश से भी बड़ा है....
आशा ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आप इस पर देशहित में एक्शन लेंगे...
भवदीय
कृष्ण बिहारी मिश्र
स्वतंत्र पत्रकार,
रांची।

Saturday, November 14, 2015

बाबा रामदेव का टूटता तिलिस्म............

योगगुरु के नाम से विख्यात, बाबा रामदेव आज देश के सुप्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक है...। अरबों के व्यवसाय, पूरे विश्व में चल रहे उनके दवा व खाद्यान्नों के व्यापार ने विश्व के बाजारों में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है...यहीं नहीं बाबा रामदेव जो कल तक योग के ब्रांड थे, आज अपने प्रतिष्ठान से उत्पादित वस्तुओं का स्वयं को ही ब्रांड के रुप में प्रस्तुत कर विज्ञापन करते हुए भी नजर आ रहे है...आज इनके पास पैसों की कमी नहीं, पैसे इनके आगे – पीछे नाचती है...।
कल तक कांग्रेस के आंखों में खटकनेवाले बाबा, आज भी कांग्रेस के आंखों में बुरी तरह खटकते है...। कांग्रेस व कांग्रेस के लोग तो इन्हें फूंटी आंख नहीं समाते और न रामदेव व रामदेव के लोगों को कांग्रेस व कांग्रेस के लोग फूंटी आंख समाते है...। दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी है। बस मौका मिलना चाहिए, दोनों एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी में एक दूसरे से बीस निकलने की कोशिश में लग जाते है। रामदेव की जितनी कांग्रेस से खुन्नस है, ठीक उसके उलट भाजपा से प्रेम...। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कट्टर प्रशसंक बाबा भाजपा के नेताओं व कार्यकर्ताओं में खासा लोकप्रिय है। कमाल यह भी है कि बाबा यादव समुदाय से आते है, ज्यादातर यादव खासकर बिहार व उत्तरप्रदेश में भाजपा को पसंद नहीं करते, वे तो लालू और मुलायम को ही अपना सब कुछ मानते है, पर रामदेव का यादव होकर भी लालू व मुलायम को रास नहीं आना ज्यादातर लोगों के समझ से परे है...
हाल ही में रांची के किशोरी चौक पर एक बैनर देखा, जिसमें यादव महासभा ने रामदेव को यादव समुदाय का बताते हुए, गौरवान्वित महसूस किया था, जबकि अपने देश में कोई भी संत चाहे उसकी जाति जन्म से कुछ भी हो, वह सर्वग्राह्य बन जाता है, क्योंकि उसका जीवन सब के लिए हो जाता है, ठीक जैसे गंगा किसी से भेदभाव नहीं करती, उसी प्रकार संत किसी से भेदभाव नहीं करते...। पर रामदेव संत हैं या यादव या उदयोगपति, इसको लेकर अब चर्चा चल पड़ी है। इतिहास खंगाले तो पता चलेगा कि देश में आज तक किसी संत ने दुकान नहीं खोली, न व्यवसाय का पल्लू पकड़कर, विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाते हुए राजनीति में दखलंदाजी की। हां, इतना जरुर किया कि जो उनके पुश्तैनी कार्य थे, उस पुश्तैनी कार्य में लगते हुए, भगवान को प्राप्त करने के मार्ग को चुन लिया। राजनीति में दक्ष और भारत स्वामिमान ट्रस्ट बनाकर, अपने चहेतों में लोकप्रिय रामदेव को शायद मालूम नहीं कि जब अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को अपने राजमहल में बुलाने की जुर्रत की, तब गोस्वामी तुलसीदास ने स्पष्ट रुप से कहा था – मोसो कहां सीकरी सो काम अर्थात् मुझे फतेहपुर सीकरी से क्या काम... पर यहां ठीक इसके उलट है, रामदेव को राजनीतिज्ञों के बीच रहना, उठना-बैठना, राजधानी में रहनेवाले मुख्यमंत्रियों से वार्ता करना उनका आनन्द का विषय होता है।
रामदेव का रांची आना – जाना बराबर लगा रहता है। यहां के कई व्यवसायी बाबा के परम भक्त है। भाजपा की सरकार होने के कारण इनकी भक्ति का पैमाना और छलकता है। पिछले तीन नवम्बर को बाबा पुनः रांची पधारे, खुब जमकर प्रचार- प्रसार किया गया। उनके कार्यक्रम में भाग लेने के लिए शुल्क तय किये गये। ये शुल्क इंट्री कार्ड पर रखे गये थे, जिसके लिए कई व्यवसायिक केन्द्रों को कार्ड बेचने के लिए चुना गया था, पर सच्चाई ये है कि वे कार्ड इक्के दुक्के ही बिके, बाकी धरे के धरे रह गये...। रामदेव के एक दिन आने के पूर्व शोभायात्रा भी निकाली गयी, पर वह शोभा यात्रा भी बेकार साबित हुई...। बाबा 2 नवम्बर को जब सायं समय रांची हवाई अड्डे पर आये, तब वहां उनके स्वागत में भी कोई खास भीड़ दिखाई नहीं पड़ी, इतने लोग पहुंचे थे, जिन्हें हाथों से गिना जा सकता था...। जो लोग रामदेव को जानते है, वे ये भी जानते है कि पहले रामदेव का स्वागत कैसे किया जाता था? और कैसे उनके लिए जन-ज्वार उमड़ पड़ता था?
आपको ज्ञात हो, रांची से प्रकाशित एक अखबार तो बाबा रामदेव के पीछे ऐसा उमड़ता था, जैसे लगता हो, कि वे भगवान हो...। यहीं नहीं इस अखबार ने तो इनकी स्तुति भी गायी थी। उन्हें अपने यहां एक दिन का संपादक भी बना डाला था...। अखबार की आवभगत से खुश बाबा उस अखबार के पक्ष में कशीदे भी पढ़े थे। अर्जुन मुंडा के शासनकाल में आये बाबा ने ऐलान किया था कि आनेवाले पांच वर्षों में भारत विश्वगुरु बन जायेगा। प्रभात खबर ने प्रमुखता से इस खबर को प्रथम पृष्ठ पर छापा था...। पांच से ज्यादा साल बीत गये, पता नहीं भारत विश्वगुरु बना या नहीं, पर बाबा सुप्रसिद्ध उद्योगपति जरुर बन गये...उनका कारोबार विश्वस्तर तक जरुर पहुंच गया...वे संत से सुप्रसिद्ध उदयोगपति का तमगा जरुर ले लिये, यानी रामदेव पहले संत हुए, जो उद्योगपति भी है, राजनीतिज्ञ भी है, संत भी है, गुरु भी है...यानी बहुमुखी प्रतिभा के धनी...। कलयुग का प्रभाव कहिये...या और कुछ...पर सच्चाई तो यही हैं...
इन हालातों में हमारी नजर बाबा रामदेव के कार्यक्रम पर थी...अचानक 2 नवम्बर को मेरे मोबाइल पर मैसेज आया कि आप रामदेव के कार्यक्रम में सपरिवार शामिल हो, इंट्री फ्री है...। हमें समझ में नही आया...मुझे योग में दिलचस्पी नहीं, फिर मुझे क्यों बुलाया जा रहा, निमंत्रण क्यों दिया जा रहा...। इसके पूर्व तो हमें संवाददाता सम्मेलन में भी नहीं बुलाया जाता था...अचानक आस-पास बैठे लोगों के पास भी इस प्रकार मैसेज आने लगे...। मुझे समझते देर नहीं लगी कि बाबा को बहुत बड़ा झटका लगनेवाला है...। लोगों की बाबा में दिलचस्पी घटने लगी है...। इंट्री कार्ड नहीं बिका है...। जब इंट्री कार्ड ही नहीं बिका और लोगों की दिलचस्पी घट रही तो फिर सुबह साढ़े सात बजे 3 नवम्बर को भीड़ कहां से आयेगी... तो नुस्खा निकाला गया, सभी को मोबाइल मैसेज करिये...बाबा से मिलिये...। सच्चाई ये है कि उसके बाद भी बाबा रामदेव को वो माइलेज नहीं मिला, जो माइलेज कभी मिला करता था...।
आज से ठीक छह-सात साल पहले एक बाइट लेने के लिए संवाददाताओं को तेल निकल जाते थे, पर आज बाबा टीवी वालों को ढूंढ रहे थे, पर टीवी वाले नजर नहीं आ रहे थे। लाइफ रांची निकालनेवाले के लिए तो बाबा एक आयटम थे, आयटम के रुप में उसने जगह दी और बाबा ने उसकी प्रशंसा कर दी...और लाइफ रांची वालों ने उसका भी न्यूज बना दिया...यानी जीव विज्ञान आपने पढ़ा होगा...तो आपने सहजीविता जरुर पढ़ा होगा... जिसमें दो जीव एक दूसरे पर आश्रित रहकर साथ – साथ जीवन जीते है और उससे किसी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता...। इसी सहजीविता के आधार पर प्रभात खबर और रामदेव ने पिछले दिनों अपनी भूमिका निभायी।
इसी दरम्यान बाबा के मन में छुपा हुआ – भयंकर दर्द से भी मेरा आमना –सामना हुआ। बाबा रामदेव ने रांची में दर्दे बयां किया कि उन्हें नोबल पुरस्कार इसलिए नहीं दिया गया, क्योंकि वे काली चमड़ी वाले है, नोबेल पुरस्कार गोरी चमड़ीवालों को दिया जाता है...यानी भारत स्वाभिमान की बात करनेवाले, भारत माता की जय बोलनेवाले, भारत-भारती की जमकर दुहाई देनेवाले विदेशी पुरस्कार नोबेल के लिए कितने लालायित है...वो पता चल गया...ऐसे संत है...बाबा रामदेव...। ऐसी है, इनकी भारत भक्ति...। हमारे देश में बहुत सारे संत है, संत होंगे भी पर किसी ने ऐसी पीड़ा व्यक्त नहीं की, जो रामदेव ने कर दी...यानी हमारे देश के संत-परंपरा का अपमान...
अरे रामदेव जी संत जो होता है, वो किसी पुरस्कार का भूखा नहीं होता...
धन का भूखा नहीं होता...
वो दुकान नहीं खोलता...
वो मार्गदर्शन करता है...
वो करता नहीं, कराता है, और बदले में स्वयं के लिए कुछ नहीं कर पाता...
बाद में तो वो गर्व से यहीं कहता है...जो कबीर ने कभी कहा था...
सुना देता हूं...
यहीं चादर सुर-नर-मुनि ओढ़े, ओढ़ के मैली कीनी चदरिया...
दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया...

Wednesday, November 11, 2015

धिक्कार, उन कलमों को...उन चैनलों को...

धिक्कार, उन कलमों को...उन चैनलों को...
जो बिहार चुनाव परिणाम का सही विश्लेषण न कर सकें...
• जीत कर भी हार गये नीतीश...
(संदर्भ – बिहार चुनाव परिणाम)
आइये हम आपको एक कहानी सुनाते है। दो बिल्लियां थी। उन्हें कहीं से एक रोटी मिली। एक रोटी के टूकड़े में अधिक हिस्से पाने को, वे आपस में लड़ पड़ी। दो बिल्लियों को आपस में लड़ता देख, कहीं से आए वानर ने कहां कि लाओ इस रोटी को, हम तुम दोनों के बीच में बराबर – बराबर बांट दें, फिर क्या था? बिल्लियों ने हामी भर दी और वह चालाक वानर इन दोनों बिल्लियों को मूर्ख बनाकर सारा रोटी हजम कर गया.........
बिहार चुनाव परिणाम के संदर्भ में बचपन में सुनी इस कहानी में, आप दो बिल्लियों में एक को जदयू और दूसरे को भाजपा के रुप में रख सकते है। हालांकि बहुत सारे लोगों को ये कहानी बिहार संदर्भ चुनाव में गले से नहीं उतरेगी। उतरना भी नहीं चाहिए, क्योंकि बहुत सारी ऐसी कहानियां है, जो गले में तब उतरती है, जब कोई घटना का बहुत बुरा अंजाम सामने आता है...क्योंकि कहानियां समझ में आ जाये और उस अनुरुप हम कार्य करें, ऐसा होता भी नहीं......
बिहार के चुनाव परिणाम बताते है कि नीतीश की लालू भक्ति की वजह से लालू यादव एक बार फिर किंग मेकर बने है और नीतीश स्वयं फिसड्डी। नीतीश जानते थे कि लालू कृपा बिना इस बार वे मुख्यमंत्री नहीं बन सकते, इसलिए उन्होंने अपने सारे अहं का त्याग कर लालू कृपा पाने के लिए वे लालू के चरणों में लोट गये...हुआ वहीं, यादवों के नेता लालू ने, कुर्मियों के नेता नीतीश को गले लगाया और कहा कि तुम चिंता क्यों करते हो?, हम यादव नेता, तुम कुर्मी के नेता और बचा मुसलमान...तो मुसलमानों का सबसे बड़ा शत्रु कौन है, तो वह हैं भाजपा....। मुसलमानों का नारा क्या होता है?...बस वहीं वोट उसी को जायेगा, जो भाजपा को हरायेगा....और जब हमारा कंबिनेशन बनेगा तो वो जायेगा कहां...उसका वोट इधर ही आयेगा....और हुआ वहीं....यादव, मुस्लिम और कुर्मी तीनों मिल गये और भाजपा धराशायी..........
सच्चाई यहीं है... इसमें कोई अरंतु-परंतु नहीं, ये अलग बात है कि नीतीश-लालू भक्ति और इन दिनों मोदी से परेशान मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग इस परिणाम के बाद लंबा-चौड़ा संपादकीय दिये जा रहा है...
हम आपको एक और कहानी सुनाते है.........
बिहार के एक मुख्यमंत्री थे – कर्पूरी ठाकुर। वो बराबर कहा करते थे। आप कितना भी विकास कर लो, बिहार में विकास के नाम पर वोट थोड़े ही पड़ता है। यहां तो सिर्फ कंबिनेशन चलता है...ये कंबिनेशन हमेशा से रहता है, ये अलग बात है कि इसका फायदा कोई – कोई, कभी – कभी उठाता है और कोई हमेशा उठाता रहता है....
नीतीश ने कम दिमाग नहीं लगाया था...वो मीडिया के महत्व को भी जानता था। इसलिए उसने प्रभात खबर के प्रधान संपादक पर डोरे डाले, पता चला कि ये तो राज्य सभा भेजने में ही गदगद हो जायेंगे, उसे राज्य सभा भेज दिया। फिर देखा कि एनडीटीवी को भी उपकृत करना चाहिए, पता चला कि रवीश का भाई चुनाव लड़ना चाहता है, नीतीश ने बहुत बड़ा त्याग किया। निरंतर जदयू की सीट रहनेवाली गोविंदगंज की सीट रवीश के भाई को थमा दी, कांग्रेस के टिकट पर रवीश का भाई लड़ा, ये अलग बात है कि वह चुनाव हार गया, पर कशिश चैनल के मालिक ने तो बेनीपुर में जदयू के टिकट पर आखिरकार झंडा बुलंद कर ही दिया। यानी नीतीश ने राजनीति के साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाई और वो चीजें पाई, जिसको लेकर वो ज्यादा सक्रिय था.....
पर नीतीश को भी मालूम है कि सरकार तो उसकी बनी पर उसके क्या परिणाम निकले....कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा। याद करिये, चुनाव परिणाम के बाद का नीतीश, लालू और अशोक का संयुक्त प्रेस काँफ्रेस। जो शारीरिक विज्ञान को जानते है, उन्हें ज्यादा दिमाग लगानी नहीं पड़ेगी, जो बयानों की तकनीक को जानते है, उन्हें भी ज्यादा दिमाग लगाना नहीं पड़ेगा। नीतीश ने चुनाव परिणाम की बारीकियां समझी और उसी के अनुसार बयान दिया, ज्यादा आक्रामकता नहीं दिखाई, चेहरे पर भी जीत का भाव नहीं दिखा, एक संशय जरुर दिखा...जबकि इसके विपरीत लालू गदगद, वो सारी बाते लालू ने कहीं, जो उनके स्वभाव में है, इस प्रेस कांफ्रेस में भी, उन्होंने उनलोगों को चेता ही दिया कि जो वोट उन्हें नहीं दिये, वे संभल जाये... यानी इशारा किस ओर था, इशारों को समझने वाले जान गये है...
अब दूसरी बात..........
नीतीश से कुछ सवाल, जो उनके भक्त पत्रकार उनसे नहीं पूछ सकते या उनसे अनुप्राणित मीडिया का वर्ग, या उनके जाति के पत्रकार नहीं पूछ सकते.....
क्या नीतीश-लालू बता सकते है, कि जब उनका गठबंधन इतना ही लोकप्रिय था और जब कुर्मी, यादव और मुस्लिमों का इतना बड़ा गठजोड़ था तो फिर वे कुर्मी, यादव और मुसलमान बहुल राजधानी पटना के पटनासिटी, कुम्हरार, दीघा, बांकीपुर और दानापुर की सीट पर बुरी तरह से क्यों हार गये?
क्या नीतीश बता सकते है कि जब उनका शासन बहुत ही लोकप्रिय था तब उनकी सीटे लालू से भी कम क्यों आयी?
क्या नीतीश बता सकते है कि जब चुनाव परिणाम आ रहा था तो राजधानी पटना के व्यवसायियों और अन्य प्रबुद्ध वर्गों में भय क्यों व्याप्त हो रहा था?
क्या नीतीश बता सकते है कि उनके स्पीकर और अन्य मंत्रियों की करारी हार कैसे हो गयी?
क्या नीतीश बता सकते है कि इतनी बड़ी जीत के बाद भी, उन्हीं के द्वारा आयोजित प्रेस कांफ्रेस में उनके चेहरे का रंग उतरा हुआ क्यों था?
क्या नीतीश दावे के साथ कह सकते है कि उन्होंने इस चुनाव में प्रधानमंत्री के खिलाफ निम्नस्तरीय शब्दों का प्रयोग नहीं किया?
क्या नीतीश दावे के साथ कह सकते है कि उन्होंने मीडिया जगत के लालची पत्रकारों और लालची मालिकों को खुश करने के लिए वे सारे हथकंडे नहीं अपनाए, जो भाजपा ने अपनाए थे?
ये सारे सवाल सिर्फ नीतीश से पूछना चाहिए, क्योंकि वे सुशासन बाबू है, लालू से तो पूछने का सवाल ही नहीं है...क्योंकि वे खुद ही बता चुके है, इस चुनाव में कि वे क्या है?
नीतीश जी, ये याद रखिये.....जब कोई जीतता है तो उसके जीत का कारण कोई नहीं पूछता, हां जो हारता है, उसके हार के कारण गिनाएं जाते है.....
मैं जानता हूं कि बहुत सारे अखबार और मीडिया हाउस में भी जातिवादी पत्रकारों और लालची पत्रकारों का समूह पैदा हुआ है, जो कभी कांग्रेस, तो कभी भाजपा और आज आपका गुणानवाद कर रहा है, पर इससे नुकसान किसका हो रहा है। आप ये जानकर भी अनजान है....नुकसान उन बेवकूफों का हो रहा है, जो नहीं जानते कि पिछले पच्चीस और अब आज से तीस सालों तक वे अभी सड़कों, बिजली और पानी पर ही अटके हैं जबकि अन्य राज्य इन सबसे कहीं बहुत दूर निकल चुके है.....
ये बेवकूफ बन रहे लोग नहीं जानते कि उनके बच्चे विकसित होते कई राज्यों में दोयम दर्जें के नागरिक बन कर रह रहे हैं और उनकी औकात सिर्फ कुली, पोछा लगानेवाले से ज्यादा कुछ भी नहीं...
आप में जितना अहं हैं, हमें नहीं लगता कि केन्द्र और राज्य के बीच कोई मधुर संबंध रहेगा और आप बिहार को इन परिस्थितियों में जबकि राजद आपसे बीस है, कोई राज्यहित में स्वतंत्र रुप से निर्णय ले लेंगे.....
• नीतीश भक्ति और प्रभात खबर...........
सभी जानते है कि जैसे ही बिहार चुनाव की घोषणा हुई, दिल खोलकर प्रभात खबर ने लालू यादव, नीतीश कुमार, सोनिया गांधी और उनके लाडले राहुल की भक्ति में स्वयं को अनुप्राणित करना शुरु कर दिया....ऐसा होना भी चाहिए था क्योंकि नीतीश कुमार ने बिना एक पैसे प्रभात खबर से लिये, इसके प्रधान संपादक को राज्य सभा में पहुंचा दिया था....
प्रभात खबर की भूमिका देखिये, उसकी महागठबंधन भक्ति देखिए........
उसके लिए ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत नहीं, बस 9 नवम्बर का अखबार कहीं से उठा लीजिये और सबसे पहले प्रथम पृष्ठ पर नजर दौड़ाइये...उसने भाजपा के हार के कारण गिनाएं है, लिखा है...भाजपा के हार के प्रमुख कारण, निम्नलिखित है....
• आरक्षण पर संघ प्रमुख भागवत का बयान
• नीतीश के डीएनए पर सवाल उठाना
• गोमांस को लेकर अनावश्यक बयानबाजी
• लालू को शैतान कह कर हमला करना
• नीतीश पर बिना तथ्यों के हमला करना
• प्याज, दाल की कीमतों में भारी वृद्धि
• नीतीश के मुकाबले राज्य में एनडीए के पास कोई दमदार चेहरा का न होना
• नीतीश सरकार के कामकाज के प्रति लोगों की सकारात्मक राय
यानी हार के 8 कारणों में नीतीश व लालू की भक्ति में पांच कारण जोड़ दिये गये....
यहीं नहीं प्रथम पृष्ठ पर लिख दिया लालू प्रसाद के बेटों तेज प्रताप व तेजस्वी को छोड़ कर सभी नेतापुत्रों को मिली हार, जबकि खुद पृष्ठ संख्या 13 पर शिवानंद तिवारी के बेटे को भी जीत दिखलाता है, सच्चाई क्या है? प्रभात खबर ही बेहतर बता सकता है....
इस अखबार में नीतीश के प्रशसंकों के कई आलेख भी छपे है...
पृष्ठ संख्या 13 पर प्रंजॉय गुहा ठकुराता के आलेख है – सांप्रदायिकता की राजनीति की पराजय। सवाल - ठकुराता से। 2005 व 2010 में जब नीतीश भाजपा का बांह पकड़कर सत्ता में आये थे तो उस वक्त क्या सांप्रदायिकता की राजनीति की जय हुई थी?
पृष्ठ 14 पर संपादकीय में तो नीतीश भक्ति के सिवा कुछ भी नहीं, अभिमत में रविभूषण जो वामपंथी पत्रकार है, विश्वविद्यालय में प्राध्यापक भी है, इनके कलम से मैंने आज तक भाजपा व संघ की प्रशंसा में दो शब्द नहीं देखे तो आज कैसे देख पाउंगा...हां पत्रकार को कभी भी किसी का सदा के लिए विरोधी या सदा के लिए प्रेमी नहीं होना चाहिए...पत्रकार को तटस्थ होना चाहिए.......
पृष्ठ संख्या 15 तो भगवान नीतीश को समर्पित है...हल्की दाढ़ीवाले बाबा नीतीश का बहुत बड़ा फोटो और उनका चरित्र वर्णन है...ये आम तौर पर होता है, जब कोई सत्ता में आता है तो उसके लिए एक विशेष पेज होता है...इस पर हमें कोई टिप्पणी नहीं करनी है.......
पृष्ठ संख्या 18 पर चरणवार भाजपा की हार का मनगढंत विश्लेषण और अजय कुमार व एमएन कर्ण का संपादकीय आधारित आलेख है, जिसमें नीतीश व लालू को भगवान का दर्जा दे दिया गया है।
और अंतिम पृष्ठ पर भाजपा व संघ का दुश्मन व जब तक जीवित रहेगा दुश्मन बना रहेगा...नाम बता देता हूं, उर्मिलेश का आलेख है। ये वहीं उर्मिलेश है, जिसे चारा घोटाला में सजायाफ्ता लालू में सामाजिक न्याय नजर आता है और नीतीश में शासन के सर्वगुण संपन्न होने के गुण...ये पत्रकार जहां भी भाजपा का विरोध हुआ देखता है, पुलकित हो जाता है, और जहां अपनी जाति के लोगों को जीत देखता हैं, प्रसन्न होकर उसकी स्तुति करता है....इन दिनों प्रभात खबर का चहेता बना हुआ है... इसके आलेख है........
यानी गर आप नीतीश के कट्टर समर्थक है, भाजपा का विरोध करना जानते है, तो हरिवंश को पकड़िये, प्रभात खबर से जूड़िये और कल तक खलनायक थे, तो नायक बन जाइये.........
अपनी बात.......
नीतीश के जीत के कारण...
एकमात्र जीत का कारण – जातिवादी लहर को फैलाना, लोगों को उनकी जाति का हवाला देना, यादववाद, कुर्मीवाद और अंत में मुस्लिमों के अंदर ये बात फैलाना कि भाजपा आई तो उनकी खैर नहीं........
भाजपा के हार के कारण.....
• जातिवाद लहर के आगे संप्रदायवाद की हवा निकल जाना।
• बेवजह असहिष्णुता का बवंडर विपक्षियों द्वारा अपने शुभचितकों, लेखकों, फिल्मकारों साहित्यकारों द्वारा खड़ा करना, ताकि मोदी सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी और हिंदूवादी बताया जाय।
• भाजपा के कई नेताओं द्वारा विषवमन करना।
• भाजपा के अंदर शत्रुघ्न सिन्हा जैसे जयचंदों का बराबर अपनी ही पार्टी के खिलाफ विषवमन करना और नीतीश व लालू का प्रशंसा करना।
• भाजपा के एक नेता साक्षी महराज द्वारा दूसरे चरण के बाद भाजपा की हार स्वीकार करनेवाले बयान को जारी करना।
• एकमात्र मोदी के भाषण पर ही ध्यान टिका कर, अन्य चुनाव प्रचारों व सशक्त जनसमर्थन जुटाने पर ध्यान का न होना।
• सामान्य वर्ग द्वारा बढ़ती महंगाई के खिलाफ गुस्सा।
• प्रधानमंत्री द्वारा पूर्व में दिये गये बयान कि काला धन वापस लायेंगे, पर अभी तक उस पर कोई प्रगति का न होना, जबकि कोई भी सरकार आये, ये इतना जल्द संभव भी नहीं, पर आम जनता को लगा कि सरकार अपने इस वायदे को पूरा करने में सफल नहीं रही।
• मीडिया के एक बहुत बड़े वर्ग द्वारा नीतीश को खुलकर समर्थन करना और उसे बिहार की जनता के बीच एक महान शख्सियत के रुप में पेश करना, जैसे ये दीने इलाही अकबर हो।
• नीतीश द्वारा अनुप्राणित अखबार जैसे प्रभात खबर और कुछ चैनलों द्वारा खुलकर नीतीश भक्ति में डूब जाना।
चुनाव परिणाम के प्रभाव............
• अब नीतीश कुमार गर चाह लें कि वे स्वतंत्र रुप से बिहार के लिए कोई निर्णय कर लें, ये अब संभव नहीं है, उन्हें हर बात के लिए लालू की शरण में जाना होगा और लालू वहीं करेंगे, जो उनके हित में होगा।
• लालू सर्मथकों का स्थानीय प्रशासन पर बोलबाला रहेगा, गुंडों की जमात स्थानीय शासन पर हावी रहेगी और व्यापार में बिहार पिछड़ता चला जायेगा।
• ऐसे ही बिहार की नकारात्मक छवि पूरे देश में है, अब इसकी छवि और पुष्ट होगी, कोई भी उदयोग जगत का व्यक्ति यहां उद्योग लगाने से हिचकेगा, जो अब बचा भी होगा तो यहां से दूसरे जगहों पर वो सिफ्ट करेगा।
• ऐसे ही अहंकार में डूबे नीतीश को, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से नहीं बनती, ऐसे में विकास को लेकर बिहार में संशय की स्थिति बनी रहेगी।
• पन्द्रह साल लालू-रावड़ी और दस साल नीतीश और अब फिर लालू-नीतीश मतलब एक बार फिर रोजगार की तलाश में जाने को मजबूर बेरोजगार युवकों की फौज बिहार को छोड़ अन्य राज्यों में जाने को मजबूर होगी।
• एक बार फिर बिहार के ये युवा महाराष्ट्र, असम, कर्णाटक आदि राज्यों में दोयम दर्जें के नागरिक बन कर रहने को विवश होंगे और समय-समय पर जलील होंगे, पिटाई खायेंगे...क्या नीतीश व लालू बता सकते है कि महाराष्ट्र व गुजरात से कितने युवा बिहार में रोजगार के लिए आते है।
• एक बार फिर बिहार के लोग अच्छी स्वास्थ्य सेवा के लिए बिहार से दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर होंगे।
• एक ओर जहां आंध्र प्रदेश अपनी नई राजधानी अमरावती को बसाने के लिए ठोस प्रयास कर रहा होगा, तो बिहार की जनता अपनी जातिवाद पहचान के लिए संघर्ष करती नजर आयेगी।
• एक साल में झारखंड व्यापार सुगमता सूचकांक में भारत के प्रमुख विकसित राज्यों में तीसरा स्थान बना लिया और तेजी से बढ़ते राज्यों में चौथा स्थान प्राप्त कर लिया और बिहार सबसे नीचे रहने के लिए स्थान बनाने को व्याकुल रहेगा।
• प्रभात खबर के प्रधान संपादक एक बार फिर राज्यसभा में जाने के लिए नीतीश कुमार की द्यादृष्टि पाने के लिए लालायित रहेंगे और सामान्य जनता इस बात के लिए व्याकुल रहेगी कि उसके घर से निकली बेटियां सही सलामत घर लौटेंगी भी या नहीं।
कौन कहता है कि बिहार में विकास व सुशासन की जीत है, मैं कहता हूं कि ये पूर्णतः जातिवाद की जीत है...जैसे सांप्रदायिकता बुरी है, वैसे ही जातीयता बुरी है, पर कुछ पत्रकार, कुछ बुद्धिजीवी जातीयता का तो समर्थन करते है, पर सांप्रदायिकता की आलोचना...ठीक उसी प्रकार जैसे पाकिस्तान भारत प्रायोजित आतंकवाद का तो समर्थन करता है, पर अन्य जगहों पर होनेवाले आतंकवाद की कड़ी भर्त्सना करता है...ये दोगली सोच बिहार को बर्बाद कर डालेगी...पता नहीं, बिहार की जनता को अक्ल कब आयेगी?
हमें लगता है कि एक दिन अक्ल जरुर आयेगी...पर तब तक बहुत देर हो चुका होगा...और कुछ लोग गाने गायेंगे...सब कुछ लूटा के होश में आए तो क्या किया....

Thursday, November 5, 2015

लालू यादव ब्राह्मणों को अच्छी गाली दे लेते है...........

लालू यादव ब्राह्मणों को अच्छी गाली दे लेते है...........
बिना ब्राह्मणों को गाली दिये, लालू का भोजन पचता भी नहीं.......
लालू यादव दुनिया के पहले नेता नहीं जो ब्राह्मणों को गाली देता है, ऐसे कई नेता है जो ब्राह्मणों को गाली देना शान समझते है, इससे उन्हें वोटों में बढ़ोत्तरी होती है और उनके दल का प्रचार – प्रसार भी हो जाता है। कंस की परंपरा को वर्तमान युग में भी ले चलने की उनकी सोच बहुत ही निराली है। स्थिति ऐसी है कि एक समय उनके घोर विरोधी माने जानेवाले अखबार के प्रधान संपादक भी, अपने अखबार में उनके दिव्य फोटो छापने से अब परहेज नहीं करते, क्योंकि उनके प्रिय नेता नीतीश कुमार के बड़े भाई के नाम से आजकल लालू यादव विख्यात हो रहे है.......अपने प्रिय नीतीश को वे भला निराश कैसे कर सकते है...। कुछ लोग कहते है कि शिवानंद तिवारी और मनोज झा जैसे ब्राह्मण लालू की पार्टी में है, तो भाई मेरे रावण को भी कुछ लोग ब्राह्मण कहा करते है, तो ऐसे में क्या हम शिवानंद तिवारी और मनोज झा जैसे लोगों को इसलिए हम ब्राह्मण मान लें कि उसने ब्राह्मण कुल में जन्म ले लिया। जो लालू यादव जैसे ब्राह्मण द्रोही की शरण में बैठकर, उसके भ्रष्टवाणियों को सुने, जो पशुओं के चारा खा जानेवाले भ्रष्ट नेताओं की आरती उतारे वह किसी जिंदगी में ब्राह्मण नहीं हो सकता....। उसके हाथ से तो जल ग्रहण करना या अपने बच्चों पर आशीर्वाद के रुप में पुष्प-अक्षत छिड़कवाना भी महापाप है....जो भी ब्राह्मण लालू यादव अथवा उसकी पार्टी या उसके समर्थकों का गुणगान करता है, वह महापातक है, उसे तो नर्क में भी जगह नहीं मिले....जो गोमांस का समर्थन करे, वह गोपालक कैसे हो सकता है, वह गोसंहारक है..........
सही मायनों में अभी लालू यादव को ब्राह्मण से भेंट ही नहीं हुआ है, जिस दिन भेंट हो जायेगा, उन्हें पता चल जायेगा, कि ब्राह्मण क्या होता है?, वे मनोज झा और शिवानंद तिवारी जैसे ब्राह्मण, जो उनकी चरणवंदना करते है, वे समझ लेते है कि बस अब ब्राह्मणों की यहीं औकात है...अरे लालू जी, जिस दिन ब्राह्मण अपने तेज को पहचान लिया तो फिर आप कहां रहोगे, आपको पता ही नहीं चलेगा...
हां एक बात और, आपको आपके किये का फल ब्याज समेत ईश्वर दे रहा है, फिर भी आपको शर्म नहीं...शर्म आयेगी भी कैसे, शर्मवालों को न शर्म होता है...आप तो विशुद्ध रुप से बेशर्म है....बोलने की तो आपको तमीज है नहीं और न ही आप बोलने की तमीज सीखेंगे, क्योंकि आप नमूने जो ठहरें, हमें तो लगा था कि बिहार की सत्ता से दस साल बेदखल होने के बाद आपको बुद्धि आ गयी होगी, पर आप तो वहीं है, न सुधरे थे, न सुधरे है, न सुधरेंगे........
खुब गाली दीजिये ब्राह्मणों को, हो सके तो सारे चैनलों पर संतों की तरह प्रातः का एक बुलेटिन बुक करवा लीजिये, और जी भरकर ब्राह्मणों को गाली दीजिये, क्योंकि जब तक आप ब्राह्मणों को गाली नहीं दीजियेगा, तब तक आपका और आपके दल का उद्धार कैसे होगा.....वोट कैसे मिलेगा, आप धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील कैसे कहलाइयेगा....हां आप ही के एक दल में एक नेता है, शायद उसका नाम रघुवंश प्रसाद सिंह है। उससे ज्ञान भी अर्जन करिये, वो बतायेगा कि गोमांस कब और कैसे खाया जाता है?, कौन- कौन ऋषि गोमांस खाकर भगवान को प्राप्त कर लेते थे? इससे एक नये समाज का जन्म होगा। सुबाहुवाद और मारीचवाद बिहार के कण-कण में फैलेगा, तब परिकल्पना कीजिये....अपना बिहार कितना सुंदर दीखेगा....जब सब बिहारी भाईयों के हाथों में गोमांस होगा....और जोरदार नारा लगायेंगे, नारा इस प्रकार होगा.....
गोमांस हम खायेंगे,
लालू के संग जायेंगे....
धन्य – धन्य बिहार प्रदेश,
जहां मिले गोमांस अनेक....
यादव-मुस्लिम भाई-भाई
गोमांस से करो कमाई....
भाईचारा तभी आयेगा,
जब गोमांस सब खायेगा....
शाकाहारी मुर्दाबाद,
मासांहारी जिन्दाबाद.....
शाक-सब्जी नहीं खायेंगे
केवल गोमांस घर लायेंगे.....
रोज सबेरे, एक ही काम
ब्राह्मणों का, कर दो काम तमाम....
और लालू जी आपके लिए एक और काम की बात....सारे बिहार के लोगों को बता दीजिये कि कैसे कश्मीर से सारे कश्मीरी पंडितों को भगा दिया गया और आज वहां केवल मुस्लिमों की आबादी शान से रह रही है....इसलिए बिहार में भी ब्राह्मणों को हटाने के लिए नीतीश कुमार के साथ एक व्यापक आंदोलन चलाईये ताकि बिहार से ब्राह्मणों का सदा के लिए सफाया हो जाय और आप माई समीकरण के तहत जब तक जिंदा रहे राज करें.....फिर आपके बेटे-बेटियां राज करें....कालांतराल के बाद जब मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ जाये तो फिर आप के खानदान के लोग सदा के लिए उन्हें सत्ता सौंप दें....बाद में आपकी आनेवाली पीढ़ी खुद भी यह कहकर धर्मांतरण कर लें कि उन्हें लोकतंत्र में गहरी आस्था है..........