Saturday, December 31, 2016

नेकी कर दुनिया को दिखा............

पहले हमने पढ़ा था, सुना था, मेरे घर के बुढ़े-बुजूर्ग बताया करते थे...
नेकी कर दरिया में डाल...
इस लोकोक्ति के आधार पर वे कई कहानियां सुनाया करते थे, कहानियां सुनाने के क्रम में यह भी कहा करते थे, कि ईश्वर को आत्मप्रशंसा पसंद नहीं है, पर दुनिया इतनी तेजी से बदली कि अगर स्वयं की आत्मप्रशंसा न करें तो दुनिया जानेगी भी नहीं और न रोजी-रोटी ही मिलेगी...न धंधा चलेगा।
इसलिए अब नई लोकोक्ति पेश है...
नेकी कर दुनिया को दिखा...
जब से निजीकरण और प्राइवेटाइजेशन का जमाना आया, मनुष्य संसाधन के रूप में नजर आया, बायोडाटा की मांग होने लगी, इस बायोडाटा में कैंडिडेट जमकर अपनी प्रशंसा करने लगा, ऐसी प्रशंसा जिसका सत्य से कोई नाता ही न हो, चूंकि दुनिया को दिखाना है, अपनी काबिलियत और शोहरत दिखाना है, तो ऐसा करना ही पड़ेगा...
यहीं नहीं फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सअप ने तो नेकी कर दुनिया को दिखा कि प्रवृत्ति को ऐसा आगे बढ़ाया, जैसे लगा कि किसी ने आग में भर चम्मच घी दे दिया हो...आग और तेज होने लगी...
हमारे कई मित्र ऐसे है कि इसका खूब जमकर सहारा लेने लगे है...
पहले तो चिरकूट नेताओं, फिल्मी नायक-नायिकाओं, बकरों-खरहों-चूहों-कुत्तों, चिलगोजों-चिरकूटों के साथ अपना फोटो खिंचवाकर, सेल्फी लेकर फोटो डाला करते थे, अब तो ये और भी इससे आगे निकल चूके है, अब वे पोस्टर बनवाते है, बैनर बनवाते है और ऐसी-ऐसी हरकते करते है कि हरकते शब्द ही शरमां जाये।
उदाहरण अनेक है...
पहला उदाहरण देखिये, एक सज्जन है, नाम लिखूंगा तो भड़क जायेंगे, उन्हें भड़काना भी नहीं है, सत्ता के करीब है, सत्ता में शामिल बड़े-बड़े लोग उन्हें धन-धान्य से परिपूर्ण कर रहे है। उन्होंने एक बैनर बनवाया और लगे कंबल बांटने। जब ये कंबल बांट रहे थे, तो कुछ लोगों ने उन्हें धर्मपरायण और धार्मिक व उदार व्यक्ति का खिताब दे डाला, ये खिताब दे भी क्यूं नहीं भाई, जिसका जो चेहरा दिखेगा, वहीं तो कहेगा। झट से उनके मातहत काम कर रहे एक कर्मचारी ने तीन-चार सेल्फी ली और झट से फेसबुक पर दे मारा, लगे हाथों लाइक और कमेंट्स और शेयरों की होड़ लग गयी, चूंकि बॉस नाराज न हो, इसका ख्याल रखना था, कुछ लोगों ने वाह-वाह तक कर डाला।
ऐसे मैं बता दूं कि हमने 9 साल पहले कंबल लिया था, एक कंबल तो 16 साल पुराना है, पर अंतिम बार जो 9 साल पहले कंबल खरीदा था, उसके बाद से कंबल खरीदा नहीं हूं। ऐसे भी कंबल चार –पांच महीने ही ओढ़े जाते है, वह भी जाड़े में, पर इधर देख रहा हूं कि कंबल लेनेवाले और देनेवाले दोनों की संख्या बढ़ी है, पता नहीं ये कंबल लेनेवाले कैसे कंबल ओढ़ते है, कि इनकी कंबल एक साल भी नहीं टिक पाती और दूसरे कंबल देनेवाले पता नहीं, इसमें कौन सा धर्म देखते है कि कंबल बांट चलते है, शायद शनि ग्रह शांत करने और स्वयं को उदार-दयालु दिखाने का दूसरा आसान रास्ता इसके सिवा कोई दूसरा नहीं।
नेकी कर दुनिया को दिखा का दूसरा उदाहरण देखिये...
छः-सात महीने पहले की बात है, एक बार एक कार्यक्रम में मुझे शरीक होने का मौका मिला। जनाब जो बहुत ही दयालु किस्म के आदमी स्वयं को घोषित करा चुके थे, उन्होंने उक्त कार्यक्रम में अपने एक ड्राइवर को गाड़ी की चाबी देते हुए ये ऐलान किया कि वे अपने ड्राइवर को आज गाड़ी सौप रहे हैं। मैं बहुत प्रसन्न हुआ, खड़ा होकर ताली बजाने लगा, बहुत अभिभूत हुआ कि जनाब लाखों की गाड़ी अपने ड्राइवर को दे दी, पर पता चला कि वो नई गाड़ी नहीं दे रहे, बल्कि वर्तमान में जो ड्राइवर, उनकी पुरानी गाड़ी चला रहा है, वह भी सड़ी हुई पुरानी गाड़ी, उसी को देने का ऐलान किया है। मैं आश्चर्य में पड़ गया, दुनिया में कैसे-कैसे लोग है?, पर सच्चाई यह है कि वह सड़ी हुई पुरानी गाड़ी भी उस ड्राइवर को अब तक नहीं मिली है, यानी हद हो गयी, नेकी के रास्ते में स्वयं को दिखाने का ये धोखे का प्रचलन हमें अंदर से हिलाकर रख दिया...
और अब आगे देखिये, आजकल देश में बहुत सारी सरकारें है, पंचायत से लेकर राज्य और फिर केन्द्र में, सरकार ही सरकार है, जो कहती है कि वे नेकी का काम करती है, इनलोंगों ने अपनी नेकी का काम का प्रचार-प्रसार करने के लिए अनेक चिलगोजों-चिरकूट टाइप कंपनियों को करोड़ों में हायर किया है, पहले इनका काम राज्य में कार्यरत मशीनरियां किया करती थी, पर इन सरकारों का इन मशीनरियों पर विश्वास ही नहीं रहा, शायद सरकारों को लगता है कि उनके पास जो लोग है, वे सारे निकम्मे है, इसलिए वे अब अपनी नेकी के काम का प्रचार-प्रसार, दिखावा आदि के लिए चिलगोजों-चिरकूट कंपनियों को ये काम दे रखा है, जो इनका बेवजह प्रचार-प्रसार, अपने चिलगोजों-चिरकूटों टाइप के दिमागों से किया करती है, आश्चर्य इस बात की है, इन चिलगोजों-चिरकूट कंपनियों को कुछ नहीं आता, केवल ये गलथेथरी और तूकबंदी किया करती है, पर स्वयं को शूट-बूट-टाई से अंलकृत रखती है, जिससे सरकार में कार्यरत बहुत सारे तथाकथित अक्लमंदों को लगता है कि दुनिया की सारी बुद्धिमानी ऐसे ही लोगों में भरी-पड़ी है...
यानी नेकी कर दुनिया को दिखा की प्रवृत्ति ने घर,परिवार,समाज, देश और विश्व तक को नहीं छोड़ा है। सभी इस प्रवृत्ति में सराबोर है, इससे मुक्ति का रास्ता फिलहाल नहीं दिखता, क्योंकि इसका प्रभाव भी गजब है। हाल देखिये, जो कल तक बाबा थे, अब वणिक हो चुके है। जो संत थे आज जेल की शोभा बढ़ा रहे है। जो नेता थे वे कोर्ट से चुनाव लड़ने के लिए वंचित करार दिये जा चुके है। यानी खोल कर लिख दिया भाई, समझते रहिये...

Wednesday, December 28, 2016

मेरे प्यारे बच्चों...........

मेरे प्यारे बच्चों,
तुम लोगों से मोबाइल पर बातचीत हो जाती है, तो आनन्द आ जाता है। मैं जानता हूं कि तुम विपरीत परिस्थितियों में सीमा पर तैनात हो, फिर भी हमें हंसाने और खुश रखने के लिए हंसकर-मुस्कुराकर बातें करते हो। हम जानते और महसूस करते है कि आनेवाले समय में देश की जो स्थिति है, वो बेहतर नहीं होने जा रही है, क्योंकि इस देश के 98 प्रतिशत नेता अपने देश से प्यार नहीं करते, वे तो जिनकी बातें कर राजनीति करते है, उन्हें भी धोखा देते है और सिर्फ अपनी पत्नी और प्रेमिकाओं के प्यार में डूबे होते है। ऐसे में, देश का क्या हाल होगा?, हमें समझना होगा। हम अपने प्यारे देश को इन चिरकूट नेताओं और उनके घटियास्तर के बेटे-बेटियों और उनकी पत्नियों और प्रेमिकाओं के हवाले नहीं छोड़ सकते।
मैं जानता हूं कि तुमलोग छुट्टियों के लिए संघर्ष करते हो, पर छुट्टियां नहीं मिलती, गर छुट्टियां मिलती भी है तो समय पर नहीं मिलती। कहने को सरकारें बहुत कुछ कहती है और चिरकूट टाइप के नेता कहा करते है कि सीमा पर कार्य कर रहे जवानों के लिए हम बहुत कुछ कर रहे है, पर सच्चाई हमसे नहीं छुपी है, फिर भी तुमलोग अपने देश के प्रति और अपने कार्य के प्रति ईमानदार हो, ये देखकर हमें गर्व होता है।
तुम तो जानते हो और देखे भी होगे कि यहां के लोग भी महान है, वे शहीद हो गये जवानों के बेजान शरीरों पर फूल और मालाएँ डालने के लिए भीड़ इकट्ठी कर लेते है, पर जीवित जवानों (जो सीमा पर से लौटकर अपने घर-परिवार से मिलने आ रहे होते है) उन्हें अपनी सीटों पर बैठने तक को नहीं कहते और न ही बैठने देते है, सीट रहने पर भी कई लोगों को पैर-पसार कर अनारक्षित सीटों पर हमने सोते देखा है। मैंने अपनी इन्हीं आंखों से देखा है कि कई जवान ट्रेनों में जैसे-तैसे नीचे सोकर-बैठकर पशुओं की तरह अपने घर-परिवार से मिलने जाते है। ये सूरत कभी बदलनेवाली नहीं, चाहे सरकार किसी की भी आ जाय, ये तो चरित्र और संस्कार से जुड़ा मसला है, जिसकी दवा किसी के पास नहीं।
मैं तो तुम्हें कल भी कहता था, आज भी कह रहा हूं...
योग का अर्थ है – आत्मा का परमात्मा से मिलन।
योग 4 प्रकार का होता है – कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और हठयोग।
दुनिया का सबसे बड़ा योग कर्मयोग है। भगवान कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कर्म की प्रधानता और उसके गूढ़ रहस्य के बारे में बताया है। समय मिले तो श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ लेना। गोस्वामी तुलसीदास ने भी श्रीरामचरितमानस में लिखा है...
कर्म प्रधान विस्व करि राखा। जो जस करहिं तस फल चाखा।।
हम जो भी आज है, वो कर्म के कारण है, आगे हम जो बनेंगे, उसमें भी कर्म की ही प्रधानता रहेगी, आज जो तुम्हें मिला है, या जो तुम्हें प्राप्त हो रहा है, उसमें तुम कहीं नहीं हो, वो सब ईश्वर कर रहा है और करा रहा है...
बस तुम्हें करना क्या है? कि स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर, कर्म करते जाना है, फल की चिंता नहीं करनी है...फल तो तुम्हें अवश्य प्राप्त होगा। इसके लिए उदाहरण कई है, पर मैं अपना उदाहरण तुम्हारे समक्ष रखता हूं, क्योंकि तुम मेरे बेटे हो, तुमने हमें नजदीक से देखा है, मैं तुम्हारे सामने हूं, मेरा कर्म तुम्हारे सामने है, मैं आज कहा हूं, कल कहां था, और कल कहां रहूंगा, उसका सूक्ष्म विवेचना कर लो।
एक बात और...
हम इस दुनिया में क्यों आये है?
इसे भी जानो...
क्या हम आइएएस, आइपीएस, राजनीतिज्ञ, पत्रकार, अधिकारी-कर्मचारी, चिकित्सक आदि बनने आये है? उत्तर होगा – नहीं।
तो हम दुनिया में आये है किसलिये...
क्या हम भोजन करने, मल-मूत्र परित्याग करने, बच्चे पैदा करने आये है?
अगर हम ऐसा करने आये है तो ऐसा तो पशु भी करते है।
ऐसे हालात में हम पशु से कैसे भिन्न हुए?
हमें यह मालूम होना चाहिए कि हम पशु नहीं, मनुष्य है और मनुष्य का जन्म प्रारब्ध, प्रार्थना और प्रयास के इर्द-गिर्द घूमता रहता है। वर्तमान में प्रारब्ध पर तुम्हारा अधिकार नहीं। आज का कर्म, कल प्रारब्ध में बदल सकता है, तुम्हारा वर्तमान में अधिकार सिर्फ प्रार्थना और प्रयास पर है, प्रतिदिन प्रार्थना करो और जो काम मिले, उसमें ईमानदारी बरतते हुए कार्य करो। मैं जानता हूं कि तुम अपने कार्यों में ईमानदारी बरतते हो, सेवा कार्य में कोई भी ढिलाई तुम बर्दाश्त नहीं करते, फिर भी पिता हूं, बताना चाहता हूं, जब तक जीवित रहूंगा, बताता रहूंगा। पिता का यह धर्म भी है। प्रार्थना के विषय में महात्मा गांधी का उल्लेख मैं करना चाहूंगा। उन्होंने कहा था कि मैने ऐसी कोई प्रार्थना नहीं कि, जिस प्रार्थना को ईश्वर ने सुना नहीं हो। कमाल है महात्मा गांधी किस प्रकार की प्रार्थना करते थे कि ईश्वर ने उनकी सारी प्रार्थना को सुना। ये चिंतन का विषय है। आखिर महात्मा गांधी ने क्या कर लिया था? कि ईश्वर उनकी हर बातों को मान लेते थे। उसका सुन्दर उदाहरण है। महात्मा गांधी का सत्य से जुड़ाव। जिस दिन उन्होंने स्वयं को सत्य से जोड़ लिया, वे असाधारण हो गये। सत्य क्या है? इसका सुंदर विश्लेषण तैत्तरीयोपनिषद् में है, पर मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि सत्य ही ईश्वर है। ईश्वर को खोजना, बहुत आसान है, जब तुम सत्य पर होते हो तो जान लो कि ईश्वर के सन्निकट होते हो।
मैं जिस अवस्था में हूं, वहां तुम विश्वास नहीं करोगे, प्रतिदिन ईश्वर से मुलाकात होती है, मैं उन्हें महसूस करता हूं, मेरा सारा कार्य आसान होता चला जा रहा है। इसलिए मैं तुम सब को आशीर्वाद प्रदान कर रहा हूं, मस्ती में रहो, देश की सेवा करो, आनन्दित रहो, आनन्द न तो सरकार देती है और न अधिकारी। आनन्द तो सिर्फ ईश्वर देता है। वो कहीं भी किसी रूप में दे सकता है। मैने तो कई लोगों को भौतिक सुखों में घिरे रहने के बावजूद बिलखते देखा है, और कई को भौतिक सुखों के अभाव में भी परम आनन्द की प्राप्ति में स्वयं को आनन्दित होते हुए देखा है...
सच पूछो, तो तुमसब हमारे लिए ईश्वर का वरदान हो...
आनन्द लूटो, परम आनन्द की ओर बढ़ो...
जो हमने सिखाया है, उस मार्ग पर अडिग रहना...
मत झूकना, असत्य के आगे...
सत्य पर रहना, देश तुम्हारा, हम तुम्हारे, डर किस बात की...
वेद कहता है...
ऐ मन तू मत डर, जैसे सूर्य और चंद्र नहीं डरा करते...
ऐ मन तू मत डर, जैसे दिन और रात नहीं डरा करते...
आज कुछ ज्यादा लिख दिया हूं...वार्ता के क्रम में...
क्या करें? तुमलोग पास में रहते हो...तो खूब बाते होती है, और जब दूर हो तो फेसबुक में ही आराम से लिख देता हूं...पढ़ लो, और हमें आनन्द दे दो...
अरे अब तो मुस्कुराओं, दांत दिखाओ, देखो मैं पास में ही खड़ा हूं और तुम्हें देख रहा हूं...

Monday, December 26, 2016

2016 याद आओगे नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार के रूप में..........

2016 भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शानदार कीर्तियों के लिये विशेष रूप से जाना जायेगा। एक ने नोटबंदी कर पूरे देश में कालाधन रखनेवालों की धज्जियां उड़ा दी, तो दूसरे ने अपने राज्य में शराबबंदी कर लाखों परिवारों के घर में खुशिंया बिखेर दी। दोनों एक दूसरे के घूर विरोधी पर दोनों में एक समानता, कि देश को कुछ देना है, राज्य को कुछ देना है। कहा जाता है कि ईश्वर ने सब को कुछ करने का जज्बा दिया है, पर लाखों-करोड़ों में कोई एक होता है, जो उन जज्बा को मूर्त्तरुप में देने में कामयाब होता है। मौका तो देश की जनता ने सोनिया-राहुल को भी दिया और बिहार में लालू यादव को दिया पर इन सब ने अपने परिवारों को ही देश मान लिया, पर इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार ने देश की जनता और राज्य की जनता को ही अपना परिवार मानकर, ऐसे कार्य किये, जिस कार्य को देख पूरी मानव जाति आश्चर्यचकित है।
जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी की घोषणा की थी, तब कई लोगों ने उनके इस निर्णय की यह कहकर आलोचना की थी कि ये संभव नहीं है, क्योंकि पूर्व में भी कई राज्यों ने शराबबंदी की, पर वहां ये सफल नहीं हो सका, इस बात में सच्चाई है, आज भी कई राज्यों में शराबबंदी है, पर वहां भी शराब धड़ल्ले से बिक रहे है, यहां तक कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के राज्य में भी। एक हमारे परम मित्र हाल ही में चकिया (मुजफ्फरपुर) गये, और वहां के दृश्य का जो उन्होंने आंखों देखा हाल सुनाया, वो सुनकर मैं हतप्रभ हो गया। मैं जहां रहता हूं यानी दानापुर, वहां भी देखा कि कई लोग शराब पीकर मस्त नजर आये, पर जो हाल शराबबंदी के पूर्व में देखा था, वैसा नहीं दीख रहा है। मेरा मानना है कि अगर आप किसी भी चीज में 100 में 70 या 80 प्रतिशत सफलता अर्जित कर लेते हो, तो ये मान लेना चाहिए कि सफलता मिली है, क्योंकि शत प्रतिशत तो कहीं भी कुछ नहीं होता।
वहीं हाल नोटबंदी में भी, जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी अभियान चलाया, कई लोगों की दुकानें बंद हो गयी। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो इसके विरोध का राष्ट्रीय नेतृत्व कर डाला, पर जनता ने उनका कितना सहयोग किया, वो स्वयं जानती है, उनका गुस्सा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर क्यों है? वह भी हम जानते है कि क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने उनके क्षेत्र में उनकी नींद उड़ा दी है। ऐसे भी उनकी सत्ता को कहीं से खतरा है, तो वह भाजपा से ही है, इसलिए वे अपने घुर-विरोधी वामपंथियों से भी नोटबंदी के खिलाफ हाथ मिलाया, पर स्थिति क्या है? वह अच्छी तरह जानती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस नोटबंदी का समर्थन पूरे देश की जनता ने किया है, जनता को लगता है कि इस नोटबंदी से देश का भला होगा। इस नोटबंदी का समर्थन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया है, यानी जो भी लोग है, जो जानते है कि काला धन से देश के विकास और सुरक्षा को खतरा है, वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इस मुद्दे पर समर्थन कर रहे है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो साफ कर दिया है कि वे काला धन चाहे नोट के रूप में हो, या सोने के रूप में या किसी भी बेनामी संपत्ति के रूप में, वे किसी को भी बख्शने नहीं जा रहे है। वे तो यह भी कहते है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्होंने सत्ता पायी और भ्रष्टाचार को वे जड़ से उखाड़ फेंकेंगे, हांलांकि सोनिया-राहुल-लालू-ममता एंड कंपनी के लोग, जिन्होंने भ्रष्टाचार का रिकार्ड तक बना डाला है, वे इस अभियान की हवा निकालने में लगे है, पर हमें नहीं लगता कि वे इस अभियान की हवा निकाल पायेंगे, क्योंकि जब जनता साथ है, तो किसी की हिम्मत नहीं कि सत्य की हवा निकाल दें।
ये सही है, कि इस नोटबंदी अभियान से गरीबों को दिक्कतें हुई है, मैं तो कहता हूं कि गरीब दिक्कत के लिए ही तो पैदा हुआ है, उसी की दिक्कत तथा उसी की सहनशीलता से ही तो देश आगे बढ़ा है। भला कोई अमीर बताये कि सीमा पर किस अमीर या नेता का बच्चा अपना छाती खोलकर दुश्मन की गोलियों का सामना कर रहा है, अरे कोई अमीर या कोई नेता ही बता दें कि किसका बच्चा एनसीसी की परेड में भाग लेता है, ज्यादातर एनसीसी में तो गरीब का ही बच्चा भाग लेता है। गरीबों की दुहाई देनेवाले, गरीबों का ही पैसा और उसके हक को अपने तिजोरी में भर लिये, वह भी कभी उन्हें दलित बताकर, तो कभी पिछड़ा बताकर, कभी अल्पसंख्यक बताकर, और आज रोना- रो रहे है कि नोटबंदी से गरीबों को दिक्कते हो रही है, अरे जब गरीबों को कोई दिक्कत नहीं तो ये अमीर या नेता क्यों रोना रो रहे है?, हम नहीं जानते क्या? या जनता नहीं जानती, जनता सब जानती है।
2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वयं द्वारा ऐसी लकीर खींच दी है कि इस लकीर को छोटा करना किसी भी भारतीय नेता के वश की बात नहीं, क्योंकि ऐसी लकीर वहीं खींच पाते है, जिनके पास चरित्र होता है और ये चरित्र किसी दुकान पर नहीं बिकती, ये तो जन्मजात होता है, जो माता-पिता के द्वारा पुष्पित-विकसित होता है। सचमुच 2016 तुम जा रहे हो, पर तुम याद आओगे, नरेन्द्र मोदी और नीतीश के कीर्तियों के रूप में...

Tuesday, December 13, 2016

नोटबंदी से पत्रकारिता जगत में हाहाकार...

जी हां, नोटबंदी से पत्रकारिता जगत में हाहाकार है। संपादक से लेकर पत्रकारिता जगत में चपरासी तक कार्य करनेवालों का जीना मुहाल हो गया है। अपने आकाओं, राजनीतिज्ञों, आइएएस, आइपीएस, थानेदारों, सरकारी जन वितरण प्रणाली दुकानों से कमीशन लेनेवालों के घर में कमीशन के पैसे नहीं पहुंच रहे है। जिसके कारण इनके चेहरों से लाली समाप्त हो गयी, चूंकि डायरेक्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने अखबारों के माध्यम से ये गाली नहीं दे सकते, इसलिए इन्होंने इनडायरेक्ट माध्यम को चूना है। वे अपने विशेष पृष्ठों पर ऐसे-ऐसे लोगों को दिखा रहे है, जिनका इस नोटबंदी से कोई लेना – देना नहीं और न ही उनके कारोबार पर कोई असर ही पड़ रहा है, क्योंकि मैं भी भारत के रांची में ही रहता हूं और कोई टाटा-बिड़ला या अडानी-अंबानी के परिवार का सदस्य नहीं हूं, जैसे सामान्य लोग जीते है, उसी तरह मैं भी जीता हूं। मेन रोड स्थित फुटपाथ की दुकान हो या अपर बाजार की कपड़े की दुकान या पंडितजी से पतरा दिखाना हो, या नाई से बाल ही क्यूं न कटवाना हो, या जूता-पालिस ही क्यूं न कराना हो। एक वाक्य में कहें तो जूता सिलाई से लेकर चंडी पाठ तक इसी मेन रोड में होता है, कहीं हाहाकार नहीं हैं, लेकिन कुछ लोगों यानी पत्रकारों को पेट में भयंकर दर्द हो रहा है कि भाई नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी करके उनके पेट पर लात मारा है, क्योंकि कमीशन बंद हो चुकी है, जो इन्हें कमीशन देते थे, रुपयों में, जब उनकी सिट्ठी-पिट्ठी गुम हो गयी है, तो बेचारे को प्रतिदिन का पांच सौ और एक हजरियां कौन देगा...
जब इनके विशेष पृष्ठों से नरेन्द्र मोदी को गरियाने का काम समाप्त हो जाता है, तो वे फेसबुक का सहारा लेते हैं, और जी-भरकर नरेन्द्र मोदी को गरियाते है, तरह-तरह के नरेन्द्र पाठ करते है। एक सज्जन जो एनजीओ भी चलाते है, कभी संपादक भी रहा करते थे, वे नरेन्द्र मोदी को गरियाते – गरियाते अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी सुनाने लगते है। एक तो अखबार नहीं आंदोलन – पंचायती वाले बाबा दांत निपोरते हुए फोटो प्रोफाइल रखे हुए है, वे तो सुबह उठते और रात में सोने के पहले जब तक फेसबुक पर नरेन्द्र मोदी को गरिया नहीं ले, उनका खाना ही नहीं पचता। इसी अखबार में युवा पत्रकारों की भी टोली है, जो नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी अभियान को समर्थन करनेवालों को भक्त कहकर गरियाते है, जबकि वे स्वयं चिरकुटानंद के सहोदर भाई है।
हम भी अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध करेंगे कि इन कमीशन खानेवाले पत्रकारों और उन्हें गरियानेवाले इन पत्रकाररूपी बहुरूपियों पर वे थोड़ी कृपा करें, ताकि उनका कमीशन का धंधा बेरोकटोक चलता रहे, लेकिन फिर बात यहीं आती है कि नरेन्द्र मोदी रहे धाकड़ बैट्समैन हमें नहीं लगता कि उन्होंने जो नोटबंदी का शतक बनाने का जो बीड़ा उठाया है, उससे वे पीछे हटेंगे।
इसलिए कमीशन खानेवाले पत्रकारों और एनजीओ चलानेवाले महानुभावों से सादर अनुरोध है कि वे फिलहाल बाजार और आम जनता की ऐसी छवि प्रस्तुत न करें, बल्कि अपना चेहरा जो कमीशन के नहीं मिलने कारण बर्बाद होता दीख रहा है, उसे दिखाने की कोशिश करें, ताकि लोगों को पता चलें कि इस कमीशन के धंधे में कितने संपादक और कितने पत्रकार अब तक मालामाल हो गये...

Saturday, December 10, 2016

“लेकिन जो पापी न हो वो, पहला पत्थर मारे”

हमें हंसी आती है, जब चोर और डाकू ये कहें कि चोरी करना बहुत बुरी बात है, डकैती करने से देश और समाज का नुकसान होता है...
हमें हंसी आती है, जब चरित्रहीन लोग, सभी से आह्वान करते है कि सभी को चरित्रवान होना चाहिए...
ये मैं इसलिए लिख रहा हूं कि आजकल पत्रकारिता की आड़ में, स्वयं को समाज में गलत ढंग से प्रतिष्ठित करनेवाले और जनता की पैसों से ऐश करनेवाले आज देश को आह्वान कर रहे है कि सूचना के अधिकार के दायरे में लाया जाये राजनीतिक दलों को...
मैं कहता हूं कि ऐसा आह्वान करनेवाले पहले स्वयं चरित्रवान बनकर, स्वयं को प्रतिष्ठित करें और उसके बाद ऐसा आह्वान करें तो उसका असर भी दिखेगा, नहीं तो वे जनता को जो मूर्ख समझने की कोशिश कर रहे है, वे भूल कर रहे है... हां इस प्रकार के आयोजन कर खुद को तसल्ली देने और बड़ा बनने का ऐहसास कराने का ढोंग करना हो तो चल सकता है...
आजकल मैं देख रहा हूं कि कुछ लोग एनजीओ खोलकर, अपनी चालाकी को महिमामंडित करने की कोशिश कर रहे है...
यानी सेमिनार-संगोष्ठियों के नाम पर होटल बुक करो-कराओ, एनजीओ के नाम पर फंडिग करो, अखबार और चैनल में न्यूज छपवाओ और प्रसारित करवाओ और जिनको कोई काम नहीं है, उनको ऐसे कामों से जोड़कर बतकुचन और झलकुटन कराओ...
और लो काम हो गया...
अरे कौन नहीं जानता कि पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की कृपा पाकर कौन व्यक्ति सूचना आयुक्त बना...
अरे कौन नहीं जानता कि पूर्व मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की कृपा पाकर आज कौन व्यक्ति सूचना आयुक्त बना है...
अरे कौन नहीं जानता कि पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के शासन काल में कौन उनका सलाहकार सूचना आयुक्त बनने जा रहा था, जिसकी बैंड प्रभात खबर के तत्कालीन प्रधान संपादक एवं वर्तमान मे जदयू के वरिष्ठ नेता और सांसद हरिवंश ने बहुत अच्छी तरह बजा दी थी, हालांकि सांसद हरिवंश महोदय ने भी अखबारों में खुब चरित्र की बातें कर, बाद में नीतीश भक्ति में ऐसे लीन हुए कि नीतीश भक्ति में लीन होने के कारण, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें प्रसाद के रूप में राज्यसभा का सीट प्रदान किया...
कमाल है, खूब दिये जा रहे है, राजनीतिक दलों पर अंगूलियां उठा रहे है...
अरे सबसे पहले स्वयं सुधरो तब दूसरे को सुधारो...
वो फिल्म “रोटी” के गाने का वो अंतरा नहीं सुना क्या...
“पहले अपना मन साफ करो रे, फिर औरों का इंसाफ करो”
“लेकिन जो पापी न हो वो, पहला पत्थर मारे”

Thursday, December 8, 2016

प्रधानमंत्री के निर्णयों का बेवजह विरोध सहीं नहीं.........

हाहाहाहाहाहा...
सावन का महीना था...
बादल बरस रहे थे...
तभी बिजली गिरी और एक का घर ढह गया, एक व्यक्ति मर गया...तभी किसी ने चिल्लाया कि हमारा प्रकृति या भगवान से अनुरोध है कि पानी बरसाना बंद करें, क्योंकि जब भी बारिश होती है, बिजली कड़कती है, किसी का मकान ढह जाता है, कोई व्यक्ति मर जाता है, इसलिए पानी बरसना बंद हो जाना चाहिए...
हाहाहाहाहाहा...
गंगा बहती रहती है, उसमें कई लोग डूब कर मर जाते है, तभी एक ने चिल्लाया, ये गंगा क्यों बहती है?, लोग इसमें डूब कर मर जाते है, सरकार को चाहिए कि गंगा को बहने पर रोक लगा दें...
हाहाहाहाहाहाहा...
एक बार, एक पेड़ एक इंसान पर गिर गया, इंसान मर गया...तभी एक ने चिल्लाया ये पेड़ पूरी तरह से काट देने चाहिए क्योंकि बड़े - बड़े पेड़ कहीं भी गिर जाते है, जिससे जन-धन की हानि होती है...
ठीक उसी प्रकार से, जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया है, तभी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस अभियान की हवा निकालने के लिए देश के मूर्धन्य नेताओं और उनके समर्थकों की फौज बेसिरपैर की बातें करने लगे है। भारत में तो देखता हूं कि एक संप्रदाय ऐसा है कि उसे नरेन्द्र मोदी की हर बात में ही गड़बड़ी लगती है, चाहे वो देशहित में ही क्यों न हो? वो नरेन्द्र मोदी की हर बात की काट निकालने को तैयार रहता है, जबकि लोकतंत्र में हर बात को कसौटी पर खड़ा रखकर बाते करनी चाहिए, पर क्या करें? हमें नरेन्द्र मोदी को गाली देनी है तो गाली देंगे। फेसबुक पर ऐसे लोगों की एक बड़ी जमात है, जो नोटबंदी की हवा निकालने के लिए बेसिरपैर की बात करते है, जबकि वहीं लोगों को देखता हूं कि भाजपा नेताओं के आगे गणेश परिक्रमा भी करते नजर आते है। उनके इस चरित्र को देख हम भी आश्चर्य करते है कि ऐसा संभव कैसे है?, पर क्या करें?, ऐसा मैं देख रहा हूं।
ठीक इसी प्रकार जदयू के वरिष्ठ नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नोटबंदी का समर्थन किया पर उन्हीं के पार्टी के कुछ लोगों, खासकर काला धन रखनेवालों की टीम नरेन्द्र मोदी के इस अभियान की हवा निकालने में लगी है, यहीं नहीं उन पत्रकारों की भी नींद हराम हो गयी है, जो निरंतर पेड न्यूज में दिलचस्पी रखते हुए ब्लैक मनी इकट्ठा करते थे, इनकी भी नींद उड़ गयी है, वे भी अनाप-शनाप बोलकर नरेन्द्र मोदी को गरिया रहे है। इन सारे लोगों के लिए ममता बनर्जी और अरविंद केजरीबाल भगवान हो गये है, और आज के हालात में नीतीश कुमार की आलोचना करने से भी नहीं चूक रहे...
आजकल ये भी देख रहा हूं कि जो लोग नरेन्द्र मोदी की बातों का समर्थन करते है, उन्हें ये मोदी विरोधी भक्त कहकर गरियाते है, पर जब इन मोदी विरोधियों को जब कोई सटीक जवाब देता है, तो उनकी घिग्घी बंद हो जाती है।
मैं तो देख रहा हूं कि स्थिति ठीक उसी प्रकार की है, जब कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कम्प्यूटर क्रांति का श्रीगणेश किया था, तब उनका भी विरोध इसी प्रकार हुआ था।
मैं कहता हूं कि डिजिटल होने में जाता क्या है? हम पैसे कहां से लाते है, और कहां खर्च करते है?, इसकी जानकारी सरकार को क्यों नहीं होनी चाहिए?, हम जितना कमाते है, उतनी ही ईमानदारी से टैक्स क्यूं नहीं चुकाना चाहिए? केवल आयकर के डर से, ये सारी नौटंकियां और मोदी का विरोध कभी सहीं नहीं ठहराया जा सकता। देश को ईमानदार बनाना है, तो ऐसे एक्शन बहुत पहले लिये जाने चाहिए थे, पर देर से ही सही, किसी ने उठाया तो उसका समर्थन भी करना चाहिए।
ऐसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 50 दिन मांगा, 50 दिन देने में जाता क्या है? इतना सहा, थोड़ा और सहें, गलत होंगे तो उनका भी विरोध किया जायेगा, ऐसा थोड़े ही है कि यहां राजतंत्र है, गलत करेंगे, सत्ता से हटायेंगे और फिर एक नया जनादेश देंगे, पर थोड़ा देखे तो कि इस नोटबंदी का क्या असर होने जा रहा है, बेवजह का विरोध किसी भी प्रकार से सहीं नहीं ठहराया जा सकता...

Friday, December 2, 2016

पत्रकारिता की आड़ में इज्जत लूटना गर सीखना हो, तो कोई इनसे सीखें..........

आजकल हमारे समाज में, ये फैशन और प्रचलन हो गया है कि...
अगर कोई पुलिस है, तो उसे गुंडा मान लिया जाता है...
ये मान लिया जाता है कि वो गलती करें या न करें पर उसकी गलती जरूर होगी...
अगर पत्रकारों को पुलिस से संबंधित एक मामूली सी भी गलती मिल गयी तो लीजिये, ये देखिये उस खबर को कैसे मसालेदार बनाकर अखबारों में स्थान देते है...
पर यह भी ध्यान रखे...
ये आइपीएस अथवा वरीय पुलिसकर्मियों जिनकी धाक कुछ ज्यादा ही चलती है, जो रोबीले है, उनके खिलाफ लिखने या छापने में सबकी नानी और दादी एक साथ याद आती है, पर एक सामान्य पुलिसकर्मी, जिसकी गलती नहीं भी हो तो उससे संबंधित खबर को उसके खिलाफ कैसे समाचार पत्रों में स्थान मिलती है? उसकी एक बानगी है कल रांची के डोरंडा के एजी मोड़ पर घटी घटना, जिसको रांची से प्रकाशित सभी प्रमुख अखबारों ने प्रथम पृष्ठ और अंदर की पृष्ठों में स्थान देकर राई का पहाड़ बना दिया और एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत का कबाड़ा बना दिया।
घटना क्या है?
तो घटना भी जान लीजिये...
रांची के एजी मोड़ पर तैनात ट्रैफिक एएसआई दिनेश ठाकुर ने बिना हेलमेट पहने वासुदेव को पकड़ा और 100 रुपये का चालान काटा। फिर क्या था? वासुदेव घर गया, अपनी पत्नी पम्मी को इस बात की जानकारी दी, पम्मी अपने साथ 30-40 लोगों का हुजूम लेकर आयी और चप्पल से एएसआई दिनेश ठाकुर की पिटाई कर दी। आश्चर्य इस बात कि भी वहां एएसआई अनिल कुमार टोप्पो, हवलदार अशोक राणा और आरक्षी उमेश उरांव मौजूद है, किसी ने भी एएसआई दिनेश ठाकुर के सम्मान की रक्षा करने की कोशिश नहीं की, बल्कि इस घटना को वहां खड़ा होकर देखते रहे...
यहीं घटना आज रांची के कई अखबारों की सुर्खियां बन गयी...खूब तेल-मसाला लगाकर सभी अखबारों ने इस समाचार को प्रमुखता से छापा है और एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत की धज्जियां उड़ा दी...
और अब इसी प्रकार का सवाल प्रभात खबर, हिन्दुस्तान और दैनिक भास्कर अखबारों से कल इसी प्रकार की घटना, उन्हीं के यहां काम करनेवाले पत्रकारों के साथ घट जाये तो क्या इसी प्रकार से वे समाचार छापेंगे...
दूसरी बात...
क्या ये सत्य नहीं कि आज भी इन अखबारों में काम करनेवाले ज्यादातर लोग कानून की धज्जियां उड़ाकर, वह भी दादागिरी के साथ बिना हेलमेट के दुपहिये वाहन चलाते है और पुलिस इनकी इस दादागिरी को नजरंदाज कर देती है, नहीं तो इनके ज्यादातर पत्रकारों के दुपहिये वाहन पुलिस थाना की शोभा बढ़ा रहे होते...
तीसरी बात...
एएसआई दिनेश ठाकुर कि सिर्फ यहीं गलती है न, कि उसने बिना हेलमेट के वाहन चला रहे वासुदेव की चालान काट दी, क्या चालान काटना अपराध है?
जब वह वासुदेव का चालान काटा था, तब उसकी पत्नी तो वहां नहीं थी, वासुदेव का घर जाकर पत्नी और अपने 30-40 लोगों को बुलाकर घटनास्थल पर लाना, ये क्या बताता है?
खुद को अखबार नहीं आंदोलन बतानेवाला अखबार प्रभात खबर तो एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत लूटने में सभी अखबारों से आगे निकल गया, उसने तो दिनेश ठाकुर पर छेड़खानी करने का आरोप लगा दिया, जबकि किसी अन्य अखबार ने ऐसी बातें नहीं लिखी है...सच्चाई क्या है? ये जांच का विषय है।
कल की घटना और आज अखबारों में छपी समाचार से तो यही पता चलता है कि अब शायद ही कोई पुलिसकर्मी, किसी बिना हेलमेट के वाहन चलानेवाले का चालान काटेगा, क्योंकि फिर कोई बिना हेलमेट के वाहन चलानेवाला, चालान कटने के बाद, अपनी पत्नी के साथ हुजूम लायेगा, और चालान काटनेवाले पुलिसकर्मी को अपनी पत्नी से पिटवायेगा और प्रभात खबर के रिपोर्टर को जो बोलेगा, वो रिपोर्टर छापेगा और लीजिये उक्त पुलिसकर्मी की इज्जत की दही हो गयी...
एक ओर मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य में बिना हेलमेट के दुपहियेवाहन चलाने पर प्रतिबंध लगाना चाह रहे है, वे विशेष अभियान चलाने की बात करते है, और लोगों की जान की हिफाजत करना चाह रहे है, पर यहां के लोग क्या कर रहे है? यहां की मीडिया क्या कर रही है? आपके सामने है...
क्या ऐसे में हेलमेट अभियान सफल हो पायेगा...
क्या मीडिया की जिम्मेवारी नहीं बनती...
क्या बात का बतंगड़ बनाना और किसी की इज्जत से खेलना ही पत्रकारिता है...
गर ऐसा है तो मीडिया स्वयं अपनी इज्जत का दही क्यों नहीं बनाती? क्योंकि सर्वाधिक ट्रेफिक कानून की धज्जियां तो ये मीडियावाले ही उड़ाते है...
पता नहीं, यहां के पुलिसकर्मियों को ये दिव्य ज्ञान कब आयेगा?
मैं तो कहता हूं कि जिस दिन राज्य के पुलिसकर्मी मीडियाकर्मियों की सुध लेना शुरु कर दें, उस दिन से किसी की हिम्मत नहीं कि कोई मीडिया हाउस ये कनीय पुलिसकर्मियों की इज्जत से खेल लें...
और एक बात...
ये पत्रकारिता नहीं...
ये सिर्फ और सिर्फ गुंडागर्दी है...

Tuesday, November 29, 2016

ये कॉलेज हॉस्टल है या गुंडों का अभयारण्य............

आज का अखबार मेरे सामने है। अखबार पढ़ने से पता चल रहा है कि दुमका के एसपी कॉलेज के हॉस्टल में छापेमारी के दौरान तलवार, रॉड, बोतलें, सीडी व अन्य आपत्तिजनक सामान बरामद हुए है। छह आधुनिक ब्रांड ( आधुनिक ब्रांड शब्द का इस्तेमाल इसलिये कर रहा हूं कि पहले छात्र समाज व देशहित में कार्य करते थे पर आज स्वहित में अपने जेबखर्च और अश्लील साहित्यों को पढ़ने के उददेश्य से सारी हरकतों को अंजाम देते है। ) के छात्र हिरासत में लिये गये है। यहीं नहीं, करीब छह घंटे तक चली कार्रवाई में हॉस्टल के आसपास की झाड़ियों से भारी मात्रा में परंपरागत हथियार व आपत्तिजनक सामान जब्त किये गये। जो सामान बरामद हुए है, वे है – 20 से 25 हजार तीर, धनुष सहित तलवार, लोहे के रड, लाठी-डंडे, शराब की बोतलें, अश्लील सीडी और अन्य आपत्तिजनक सामान। इन सामानों की बरामदगी के बाद हॉस्टल को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने का आदेश दे दिया गया है। हम आपको बता दें कि ये छापामारी भी नहीं होती, अगर 25 नवम्बर को सीएनटी-एसपीटी के सरलीकरण के खिलाफ झारखण्ड बंद का आयोजन नहीं होता। दरअसल हुआ ये कि 25 नवम्बर को झारखण्ड बंद के दौरान दुमका में संताल परगना कॉलेज के सामने हुई आगजनी की घटना के बाद प्रशासन ने कल सोमवार को हॉस्टलों में छापे मारे, क्योंकि 25 नवम्बर को झारखण्ड बंद के दौरान दुमका के एसपी कॉलेज के पास भीड़ हिंसक हो गयी थी। उस दिन आठ गाड़ियों को फूंक डाला गया था, 50 से अधिक वाहनों में तोड़-फोड़ की गयी थी। इस मामले में तीन प्राथमिकियां दर्ज की गयी है, जबकि 1200 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया है।
हमारा कॉलेज प्रशासन से कुछ सवाल...
क. क्या कॉलेज प्रबंधन द्वारा, अपने हॉस्टल में रह रहे छात्रों को तीर-तलवार चलाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है? अगर नहीं तो फिर इतनी बड़ी संख्या में तीर-धनुष, तलवार, लोहे के रड कहां से आ गये?
ख. छापेमारी के दौरान अश्लील साहित्य व सीडी भी बरामद हुए, क्या कॉलेज प्रशासन बता सकता है कि अश्लील साहित्यों की खेप हॉस्टलों में कैसे आ गयी?
ग. कॉलेज हॉस्टलों में रह रहे छात्र क्या कर रहे है?, उनकी गतिविधियां असामाजिक है अथवा नहीं? इसकी जिम्मेवारी कॉलेज हॉस्टल प्रबंधन की नहीं होती क्या?
जब कॉलेज हॉस्टलों में ऐसी नारकीय स्थिति है, तो फिर ऐसे कॉलेज रहे या नहीं रहे, क्या फर्क पड़ता है?
दुमका प्रशासन ने एसपी कॉलेज के हॉस्टलों में छापेमारी कर, जो चीजें बरामद की, और जो छात्रों की हरकतें सामने आयी है, वह देश और समाज दोनों के लिए खतरा है? इस कॉलेज हॉस्टल में रह रहे छात्रों के अभिभावक भी ध्यान दें, देखे कि उनके बच्चे यहां हॉस्टल में रहकर क्या कर रहे है?, अगर अभी नहीं चेते तो उनके बच्चे हाथ से निकल जायेंगे और फिर जो उनके सपने है, वे तो अंधकारमय हो ही रहे है, इस राज्य और देश को भी उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, अभी समय है, चेत जाये तो अच्छा।
हम राज्य सरकार से भी अनुरोध करेंगे, कि ऐसे जितने भी कॉलेज है और जहां हॉस्टल संचालित है, वहां समय – समय पर इस प्रकार की जांच/छापेमारी अवश्य कराएं ताकि बच्चों में भय रहे कि उनके उपर सरकार और विभागीय अधिकारी है, जो कभी भी जांच कर सकतें है और जांच क्रम में पता चले कि ये असामाजिक कृत्यों में लिप्त है, तो उन पर कठोर कार्रवाई भी करें, ताकि देश और समाज को आसन्न संकटों से बचाया जा सकें...

Thursday, November 24, 2016

ये माननीय नहीं हो सकते.............

ये माननीय नहीं हो सकते...
जो स्पीकर पर कुर्सियां फेकें...
जो स्पीकर पर जूते फेकें...
जो स्पीकर पर फॉगिंग स्प्रे करें...
जो रिपोर्टिंग टेबल पर आ धमकें...
जो मार्शल के साथ धक्का-मुक्की करें...
जो संसदीय कार्य मंत्री से कार्य सूची लूट कर फाड़ डालें...
जो झारखण्ड की भोली-भाली जनता के सम्मान की धज्जियां उड़ाएं...
वे माननीय नहीं हो सकते...
वे सिर्फ और सिर्फ गुंडे होते है...
कल झारखण्ड विधानसभा में जो कुछ हुआ, वह झारखण्ड की सवा तीन करोड़ जनता का अपमान है...
यह भारतीय लोकतंत्र का अपमान है...
इन जनप्रतिनिधियों को ये नहीं भूलना चाहिए कि जनता ने उन्हें विपक्ष में बैठने के लिए जनादेश दिया। विपक्ष में बैठने का ये मतलब नहीं कि आप सत्तापक्ष को अपने गुंडागर्दी से या अन्य प्रकार से भय दिखाकर कोई काम करने से रोक दें। आप विपक्षी दल है, राज्य सरकार अगर गलत कर रही है, तो उसके खिलाफ आक्रोश व्यक्त करने अथवा जनता को गोलबंद करने के और भी उपाय है, न कि आप गुंडागर्दी करें और किसी पर वह भी सदन में, जिसे लोकतंत्र का मंदिर कहते है, वहां आप किसी पर जानलेवा हमला करें।
कल इन्हीं बातों को लेकर, जब आपकी सदन में जाने के पूर्व जांच की जाने लगे और कल ये कह दिया जाये कि आप सदन में जूते खोल कर जाये, तो आप कहेंगे कि आपका अपमान किया जा रहा है, पर आपने स्वयं को अपमान कराने की तो सारी तैयारी कर ली, हमारे विचार से तो सारे जनप्रतिनिधियों को सदन में जाने के पूर्व हर प्रकार से जांच की जानी चाहिए ताकि उनके पास कोई ऐसी चीज न हो, जिससे वे हिंसक वारदातों को अंजाम दें...
शर्मनाक, गुंडई की हद है...
इन घटनाओं के लिए हम किसी एक दल को दोषी नहीं ठहरा सकते, ऐसा ही नजारा, उस वक्त देखने को मिला था, जब बाबू लाल मरांडी मुख्यमंत्री थे, तब तत्कालीन स्पीकर इंदर सिंह नामधारी पर भाजपा के रवीन्द्र राय ने इस प्रकार की हरकत की थी, जो अशोभनीय थी। क्या सदन इसी के लिए बना है?, ये राजनीतिक दल विचार करें, क्या वे आनेवाले पीढ़ी को यहीं आचरण करने के लिए बतायेंगे? क्योंकि ये जैसा आज बोएंगे, वैसा ही काटेंगे-कटवायेंगे?
हम चाहेंगे कि विधानसभाध्यक्ष, कल सदन में जनप्रतिनिधियों के द्वारा की गई गुंडागर्दीवाली विजूयल को जनता के समक्ष सार्वजनिक करें, ताकि लोग देख सकें कि उनके जनप्रतिनिधि जिन्हें जनता ने वोट देकर सदन में पहुंचाया, वे किस प्रकार की हरकतें कर रहे हैं? इन जनप्रतिनिधियों की संतानें और उनकी गृहिणियां भी देखें कि जिन पर उन्हें नाज है, वे कैसी हरकतें, वह भी सदन में करते हुए दिखाई देते है?
हम चाहेंगे कि विधानसभाध्यक्ष ऐसे जनप्रतिनिधियों पर ऐसी कार्रवाई करें ताकि आनेवाले समय में फिर कोई जनप्रतिनिधि इस प्रकार की गुंडई न कर सकें। जब ये जनप्रतिनिधि लोकतंत्र के मंदिर में इस प्रकार की हरकतें कर सकते है, तो वे सामान्य स्थलों पर इनकी हरकतें कैसी होती होंगी?, ये अब समझने या समझाने की जरुरत नहीं है।

Wednesday, November 23, 2016

इसे कहते है पत्रकारिता.................

आजाद सिपाही समाचार पत्र को दिल से सलाम...
जिसने यहां के बड़े-बड़े अखबारों और चैनलों की चूलें हिला दी...
जिसने एक ताकतवर नेता वर्तमान में विरोधी दल के नेता हेमंत की नींव हिला दी...
आखिर आज के अखबार में क्या है? आजाद सिपाही ने क्या कर डाला? कि हमें यह लिखना पड़ गया...
आजाद सिपाही ने प्रथम पृष्ठ पर एक लीड स्टोरी छापी है कि
“हितैषी बन कर आये थे हेमंत सोरेन, कर दिया बर्बाद – राजू उरांव”
“रुपये 10 करोड़ की जमीन ले ली मात्र रुपये 20 लाख में”
“करोड़ों की जमीन के मालिक राजू उरांव का परिवार दाने दाने को मोहताज”
“सदमें में राजू उरांव, जमीन पर सोये-सोये देखते रहते हैं आलीशान बिल्डिंग को”
“झारखण्ड आंदोलन के सिपाही थे राजू के दादा”
ऐसे है – झारखण्ड आंदोलन से उभरे नेता, दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन। शिबू सोरेन वहीं है, जिन्होंने रिश्वत लेकर, कभी नरसिम्हाराव की सरकार बचायी थी। आज उनके बेटे अपने ही आंदोलनकारियों की जमीन पर नजर गड़ाये है, और उनकी जमीन को कौड़ियों के भाव खरीद कर, अपने सपनों को पूरा करते है और दूसरों के सपनों को इस प्रकार रौंद डालते है कि वह व्यक्ति या उसका परिवार कभी ठीक से खड़ा ही न हो सकें।
हम आपको बता दें कि इस कार्य में यहां के बड़े-बड़े माफिया पत्रकार भी शामिल है, जो ऐसे नेताओं का महिमामंडन करते और इसके बदले में उनसे उपकृत होते है। ऐसा नहीं कि इस घटना की जानकारी राज्य के स्वयं को प्रतिष्ठित कहनेवाले बड़े-बड़े मीडिया हाउसों को नहीं थी, उन्हें सब जानकारी थी, पर इन्होंने छापने का साहस नहीं किया, क्योंकि उन्हें इनसे उपकृत जो होना था।
फिलहाल राज्य में सीएनटी-एसपीटी की राजनीति चल रही है, इस राजनीति में मीडिया हाउस के लोग भी शामिल है, जो दूल्हों के भी चाची है और दूल्हिनियों के भी चाची है, पर मौके की तलाश में है कि किस तरफ ऊंट बैठे, ताकि अपनी सुविधानुसार जिस तरफ भी ऊंट बैठे, उस तरफ झक-झूमर गाने के लिए वे बैठ जाये, पर इसके उलट आजाद सिपाही ने बताया कि आखिर कौन लोग है, जो आदिवासियों के सपनों को तोड़ रहे हैं? वे कौन लोग है, जो सीएनटी-एसपीटी में हो रहे संशोधन के खिलाफ आग उगलते है, पर अपने ही भाइयों की जमीन को कौड़ियों के भाव हथिया लेते है? आज आजाद सिपाही ने ये आइना दिखाया है। ऐसा नहीं कि सीएनटी-एसपीटी पर कोई पहला संशोधन होने जा रहा था, ऐसा अब तक 26 बार हो चुका, स्वयं एक-दो बार तो शिबू सोरेन की उपस्थिति में बिहार विधानसभा में संशोधन हुआ, पर उस वक्त न तो इनके बयान आते थे, और न ही आंदोलन की धमकी सुनाई पड़ती, पर आजकल तो इनका ऐसा आंदोलन चल रहा था, जैसे लग रहा था कि इन्होंने झारखण्ड को बंधक बना लिया हो...पर जनता आज सब जान चुकी है।
मैं दावे के साथ कहता हूं कि राज्य में जितने भी चैनल है, वे सब अब पेड न्यूज के अंतर्गत समाचार प्रसारित करते है, यहीं हाल अखबारों का है, किसी को जनसरोकार से मतलब नहीं। सभी झकझूमर गाते है...जब जैसा, तब तैसा।
मेरा मानना है कि पेट के लिए अगर कोई झकझूमर गाता है तो जायज है, पर पेट से नीचे के लिए झकझूमर गाता है तो सर्वथा अनुचित है। कई अखबारों के प्रधान संपादकों से लेकर सामान्य संपादकों तक को देखता हूं कि किसी भी चिरकूट टाइप के नेता की फोन आयी नहीं कि वे झकझूमर गाने लगते है, जिस राज्य में ऐसे-ऐसे संपादक होंगे, उस राज्य की क्या हालत होगी? समझा जा सकता है...
मैं तो एक – दो चैनलों के संवाददाताओं को देख रहा हूं कि वे आइएएस-आइपीएस अधिकारियों और चिरकूट टाइप के नेताओं के आगे झकझूमर गाते है और जनसरोकार से जुड़ी समस्याओं पर ध्यान ही नहीं देते, इसका मूल कारण है कि वे अपने मालिकों और संपादकों को ये संकल्प कर चूके होते है कि वे झारखण्ड से एक साल में दो करोड़ से पांच करोड़ का विज्ञापन दिलायेंगे, और इसके लिए वे स्वयं को पत्रकार से दलाल बनने में ज्यादा रुचि दिखा रहे है, जब ये दलाल बनेंगे तो फिर हेमंत जैसे नेताओं के चरित्रों का उजागर कैसे करेंगे? आप समझ सकते है...
एक बार फिर आजाद सिपाही, आपको दिल से सलाम, आपने सही मायनों में आज बेहतर पत्रकारिता का उदाहरण पेश किया और एक व्यक्ति की गंदी सोच और गंदी हरकतों को जनता के बीच उजागर किया। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि वह व्यक्ति आज विधानसभा में एक शब्द भी नहीं बोल पाया होगा...और न वह मीडिया बोल पायी होगी, जो इनके आगे झकझूमर गाने को बेकरार होते है...

Tuesday, November 22, 2016

सचमुच देश बदल रहा है.................

सचमुच देश बदल रहा है...
जो अंधे है, वे देख रहे है...
जो बहरे है, वे सुन रहे है...
जो गूंगे है, वे बोल रहे है...
जो लंगड़े है, वे दौड़ रहे है...
जिनके पास कल तक पैसे नहीं थे...
वे नोटबंदी में नोट बदलने के लिए बैंकों की लाइन को कम नहीं होने दे रहे...
जिनके घर में कल तक शादी नहीं थी, वे शादी का कार्ड छपवा रहे है...
जो कल तक तत्काल टिकट के लिए लाइन में लगा करते थे, वे नोटबंदी में नोट बदलने के लिए दिमाग लगाकर पैसे बटोर रहे है...
जो कल तक खड़े नहीं हो रहे थे, वे घंटो बैंक की लाइन में, एटीएम की लाइन में खड़े होकर मुस्कुरा रहे है...
जो कल तक बीमार ही नहीॆं होते थे, आज वे बीमार भी पड़ रहे है...
भारत में इन दिनों चाहे मौत की वजह कुछ भी क्यों न हो, पर सब आजकल नोटबंदी से ही मर रहे है...
एनडीटीवी, आजतक के चैनलों के संवाददाताओं की फौज को उनके मनपसंद बाइट नहीं मिल रहे, उलटे जनता ही उन्हें निशाने पर ले रही है...
नीतीश नोटबंदी के साथ, तो लालू को मोदी की यह आइडिया फर्जिकल स्ट्राइक लग रही है...
बेइमान आईएएस और आईपीएस की टोलियों के चेहरे मुरझा रहे है...
कुछ तो एक-दो दिन की छुट्टियां लेकर, रूपयों को ठिकाने में लगे है...
दो हजारिये से नीचे बात नहीं करनेवाले डाक्टरों का दल, एक अखबार को बुलवाकर, अपना बयान छपवा रहे है...
कल तक लाल बहादुर शास्त्री के एक इशारे पर, एक बयान पर एक दिन का उपवास करनेवाली भारत की जनता में से आज कुछ देश के वर्तमान प्रधानमंत्री को एक दिन भी देने को तैयार नहीं है...
सीमा पर सैनिक मरें, पर हम देश के भीतर भी अच्छे कार्यों के लिए किसी को एक मौका देने को तैयार नहीं है...
कल तक एक दूसरे को आपस में ही देखनेवाले नेताओं का दल, वर्तमान में एक ही सुर में मोदी के खिलाफ झकझूमर गा रहे है...
सचमुच देश बदल रहा है...

Monday, November 21, 2016

वनवासी के नाम पर.............

ईसाई मिशनरियों ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत "वनवासी" शब्द पर अपनी आपत्ति दर्ज क्या करा दी? कुछ लोग वनवासी शब्द से ही चिढ़ने लगे, जबकि सच्चाई यह है कि मिशनरियों के धर्मांतरण और अनुसूचित जन जातियों के मूल धर्म से अलग करने की उनकी हरकतों की आलोचना और प्रतिकार स्वयं उसी समय के अनेक आदिवासी महापुरुषों ने किया। भगवान बिरसा मुंडा का प्रमाण सबके सामने है, पर इन दिनों देख रहा हूं कि मिशनरियों ने एक बार फिर वनवासी के नाम पर वो गंदी हरकत शुरु की है, जिससे समाज में एक बार फिर विष घुल रहा है...आखिर मिशनरियां ये विष क्यों घोल रही है, हमें लगता है कि यहां बताना जरुरी है।
इन दिनों आदिवासियों का एक बहुत बड़ा वर्ग मिशनरियों के धर्मांतरण के कुचक्र से लोहा ले रहा है और अपने बंधुओं को सरना धर्म में लौटने की मुहिम चला रखी है, जिससे उनके धर्मांतरण की मुहिम की हवा निकल गयी है, इसलिए वे बेतुके शब्दों के माध्यम से विष-बेली बो रहे है,ताकि समाज में नफरत की वो बुनियाद तैयार हो, जिससे मिशनरियां अपनी रोटी सेंक सकें। हमें अच्छी तरह पता है कि इसके लिए खाद - बीज कहां से उन्हें उपलब्ध हो रहा है...
और अब बात उनसे जो वनवासी शब्द पर आपत्ति दर्ज करा रहे है?
जब हम वनों में रहेंगे, तो हम भी वनवासी कहलायेंगे, इसमें दिक्कत क्या है...सिर्फ आदिवासी ही वनवासी के पर्याय नहीं है, अगर कोई ये सोचता है, तो कृपया अपने दिमाग से इस विकार को निकाल दें...सिर्फ आदिवासी को जो लोग सिर्फ वनवासी कहते है, वे मूरख ही होंगे...राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण और अपनी पत्नी के साथ 14 वर्षों तक वनों में रहे, वनवासी कहलाये। पांडव वनों में रहे, वनवासी कहलाये...एक समय था पूरा भारत वनों से ढंका था, सभी वनवासी कहलाये...आज भी जिसे हम चंपारण कहते हैं, वह चंपा और अरण्य शब्द से ही बना है, आरा अरण्य का ही अपभ्रंश है, आज भी दारुकावन, दंडकारण्य आदि कई नाम है, जो वन और वहां के वाशिदों का प्रतिनिधित्व करते है... जो आदिवासी ये सोचते है कि वनवासी सिर्फ उन्हीं के लिए बना है, तो माफ करें...मुझे भी वनवासी कहलाने में उतना ही गर्व महसूस होगा, जितना की नगरवासी या भारतवासी कहलाने में...ये तो कुछ घटियास्तर के बुद्धिजीवियों की दिमाग में उपजी घटियास्तर की मानसिक दिवालियापन है, कि इस सुंदर शब्द में भी अलगाववाद और कुत्सितविचारों का बीजारोपण कर दिये है...ईश्वर उन्हें सदबुद्धि दें ताकि वे शब्दों का सही अर्थ निकाल सकें....

Friday, November 18, 2016

हेमंत का बयान यानी हर साख पर उल्लू........

हमारे देश में एक से एक नमूने नेता है, जो अपने पप्पू टाइप सलाहकारों के इशारों पर नाचते और बयान देते है। इस नाचने और बयान देने में कभी – कभी सफलता हाथ लग जाती है तो ये नेता बौरा जाते है और कह डालते है कि अरे वाह क्या तूने हमें सलाह दिया है... हमारी तो बल्ले – बल्ले हो गयी। ये नमूने नेता ये भी नहीं सोचते कि उनका ये बयान दोयम दर्जें से भी नीचे का है। बयान देने में ये नमूने नेता ये भी नहीं देखते कि इससे सामाजिक ढांचा बिखरेगा, वे ऐसी – ऐसी हरकते करते है कि क्या कहा जाय? हम इसके लिए कोई एक दल को दोषी नहीं ठहरा सकते, इसमें सभी दोषी है।
जरा देखिये एक उदाहरण। झामुमो के नेता व वर्तमान में विरोधी दल के नेता हेमन्त सोरेन ने क्या कह दिया? हेमन्त सोरेन का विधानसभा में बयान है कि एटीएम से पैसे निकालने के दौरान मरनेवालों को सरकार शहीद का दर्जा दे। विधानसभा में इस बयान को स्पष्ट रूप से रखने के बाद, तो हमें लगता है कि हेमन्त को एक और बयान देना चाहिए कि भारत में जितने भी घूसखोर नेता है, जिन्होंने देशहित में घूस खाकर केन्द्र की सरकार बचाई, उसे भारत रत्न मिलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने स्वयं को घूस की दांव पर बिठाकर नरसिम्हाराव की सरकार बचाई। ऐसे नेताओं को भी भारत रत्न मिलना चाहिए जो अपने बेटे, बेटियों, पत्नियों और बहूओं को सांसद, विधायक बनाने के लिए मरे रहते है।
पता नहीं, हमारे देश के नेताओं को क्या हो गया है? वे चिरकूट टाइप का बयान क्यों दे देते है?, क्या उन्हें थोड़ा सा भी दिमाग नहीं? क्या एटीएम की लाइन में लगना और सीमा पर लाइन लगाकर देश की रक्षा करना दोनों एक ही बात हो सकती है, आखिर ये नेता दोनों अलग – अलग बातों को एक ही तराजू पर क्यों तौल रहे है? नेता विरोधी दल हेमन्त के बयान ने साफ कर दिया कि झारखण्ड के नेताओं की सोच किस स्तर का है? जब नेताओं की सोच दोयम दर्जें की होगी तो ये अपने राज्य को किस दिशा में ले जायेंगे?, ये भी जगजाहिर है, यानी मान लीजिये कि हर साख पर उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा?

Wednesday, November 16, 2016

मोदी जी, मत झूकिये, इन निर्लज्जों के सामने...........

माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी, इन निर्लज्जों के आगे मत झूकिये, नोटबंदी जारी रखिये, भारत काला धन नामक कैंसर से स्वयं को मुक्त करना चाहता है और जब तक इस पर कड़े निर्णय नहीं लिये जायेंगे, देश इस भयानक रोग से मुक्त नहीं हो सकता। कमाल है, कल तक जो नेता भ्रष्टाचार और काला धन के खिलाफ आंदोलन करते थे, आज आप के द्वारा काला धन के खिलाफ लिये गये निर्णय को ही कटघरे में रख रहे है और काला धन को संरक्षित करने के लिए आंदोलन पर उतारु है। एक नेता जो स्वयं को समाजवादी कहता है, उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री है, काला धन को आर्थिक मंदी से लड़नेवाला हथियार बता रहा है। राहुल गांधी की तो बात ही निराली है, वो क्या बोलता है?, क्या सोचता है?, उसे खुद मालूम नहीं। कल तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आपके द्वारा लिये गये निर्णय को साहसिक बता रहे थे, आज उनके दल आपके खिलाफ विपक्षी दलों के सुर में सुर मिला रहे है। वामपंथी पार्टियों का तो चरित्र ही रहा है कि भाजपा के खिलाफ हर बात पर आंदोलन कर देना, चाहे उसके लिए उसकी पार्टी की हवा ही क्यों न निकल जाये? इधर एक चीज और देखने को मिल रही है। कुछ चैनल और कुछ अखबार इस मुद्दे पर दो भागों में विभक्त हो गये। जीटीवी, एबीपी, इंडिया टीवी को आपके द्वारा चलाया जा रहा यह अभियान देश हित में लग रहा है, पर आजतक और एनडीटीवी जो शुरू से ही आपके विरोधी रहे है, इस अभियान के खिलाफ आग उगलने शुरु कर दिये है।
पर आम जनता की क्या राय है, वो भी देखिये आज तक का सईद अंसारी नोटबंदी पर सोमवार की रात लाइभ समाचार दिखा रहा था, समाचार में वो दिखा रहा था कि जनता को नोटबंदी के बाद से कितनी परेशानी उठानी पड़ रही है, और इसी खरखाई में वह जनता की ओर माइक लगा कर जनता से पूछ डाला, आप इस परेशानी पर क्या कहेंगे?, जनता ने कह डाला – हम मोदी के साथ है, जनता मोदी-मोदी कहकर चिल्लाने लगी, फिर क्या था?, सईद अँसारी और आजतक के होश ही उड़ गये। इसमें कोई दो मत नहीं कि आम जनता को इस नोटबंदी अभियान से परेशानी हुई है, पर जनता इतनी मूर्ख भी नहीं कि इसके अंदर की बात को नहीं जानती और न समझती हो। जनता नरेन्द्र मोदी के साथ है, क्योंकि जनता जानती है कि काला धन ने देश को कितना नुकसान पहुंचाया है? कैसे ये आतंकवादियों और नक्सलियों को मदद पहुंचा रहा है?, कैसे आंतकी कश्मीर के पत्थरबाजों तक ये काला धन पहुंचाते थे?, नकली नोटों के माध्यम से। कैसे जमाखोंरों और भ्रष्ट अधिकारियों का दल काला धन के माध्यम से देश और विदेश में अपना कारोबार फैला रखा था? हमारा मानना है कि देश को आत्मनिर्भर और सम्मान के साथ जीना है तो इस पर अंकुश लगाना ही होगा।
जरा बेशर्म नेताओं को देखिये...एक नेता कहता है कि काला धन पर अंकुश लगना चाहिए, पर समय गलत चूना गया। मैं पूछता हूं कि काला धन पर अंकुश कब लगे?, इसके लिए किसी पंडित के पास जाकर सुदिन देखना था क्या? क्या इससे काला धन रखनेवाले लोग सतर्क नहीं हो जाते? देश में जब भी काला धन पर अंकुश लगाने का निर्णय लिया जाता, समस्याएं आती, और समस्याओं से लड़ने के लिए हमें कुछ त्याग करना होगा, देश हित में। सिर्फ खाने-पीने, सुतने और बेवजह की तिरंगे लहराने को देशभक्ति नहीं कहते।
मैं तो देख रहा हूं कि काला धन पर अंकुश लगाने के निर्णय से राजनीतिज्ञों, व्यापारियों, पत्रकारों, इंजीनियरों, डाक्टरों, आइएएस, आइपीएस, सरकारी बाबूओं और उन सारे दो नंबरियों के नींद उड़ चुके है, वे पैसों को ठिकाने लगाने के लिए नये – नये तरकीब ढूंढ रहे है। जो मजदूर कल तक सब्जी के बोरे ढोते थे, जो सामान ढोते थे, जिनकी रोजमर्रा की जिंदगी तबाह हुआ करती थी, जो तत्काल टिकट की बुकिंग करने के लिए रात से ही लाइन लगाने के लिए रेलवे टिकट बुकिंग काउंटर पर लगे रहते थे, उनसे रुपये बदलवाने का काम लिया जा रहा है, ये लोग बेवजह की एटीएम पर भीड़ लगा रहे है, जिनके कारण 30 प्रतिशत जरुरतमंदों को परेशानी उठानी पड़ रही है, हालांकि इन परेशानियों के बावजूद जनता मोदी की तारीफ करते नहीं थकती।
कल की ही बात है, रात में मैं एबीपी न्यूज देख रहा था, उस न्यूज में साफ दिखलाया जा रहा था कि जो लोग रात में ही एटीएम के पास पूरे परिवार के साथ खटिया और कंबल के साथ आ धमके है, वे सारे के सारे वहीं लोग है, जो काला धन को सफेद बनाने के लिए काला धन रखनेवालों की मदद कर रहे है। इनका एक ही मकसद है, काला धन रखनेवालों से मुंहमांगी रकम लो, और उनके काला धन को सफेद कर दो। हालांकि इन पर नकेल कसने के लिए केन्द्र सरकार ने स्याही लगाने का प्रबंध इनके हाथों में किया है। मैं चाहता हूं कि ऐसे लोगों को सीसीटीवी खंगाल कर, जेल में बंद भी करना चाहिए, ताकि काला धन रखनेवालों की मदद करनेवालों की नानी – दादी याद हो जाये।
हमारे देश में हर अच्छे काम करने पर उसका विरोध करना एक फैशन हो चला है। याद करिये, जब राजीव गांधी ने सरकारी कार्यालयों में कम्प्यूटर का प्रवेश कराया था, तो यहां की तत्कालीन वामपंथी और विपक्षी पार्टियों ने इसकी कितनी आलोचना की थी, इस निर्णय के खिलाफ कितना बड़ा आंदोलन चलाया था, पर आज सच्चाई क्या है?, सब के सामने है, इस कम्प्यूटर ने हमारी जिंदगी बहुत ही आसां कर दी है। ठीक इसी प्रकार नरेन्द्र मोदी द्वारा लिया गया, यह निर्णय देश को मजबूती देने के लिए है। बस हमें मजबूती प्रदान करनी है, इस निर्णय की।
सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर का नरेन्द्र मोदी द्वारा लिये गये निर्णय की प्रशंसा करते हुए यह कहना कि जब हमारे फौजी, देश के जवान, विपरीत परिस्थितियों में, अपनी जान पर खेलकर देश की हिफाजत कर रहे है तो क्या हम देश के लिए इतना भी नहीं कर सकते?, आखिर दो – चार घंटे लाइन में लग गये तो क्या हो गया?, कौन सा पहाड़ टूट गया?
इस एटीएम पर लगी लाइन पर जो लोग सवालिया निशान उठा रहे है, उनसे हमारा भी सवाल है, कि आखिर हाल ही में फोकट के जियो सिम लेने के लिए लोगों ने डेढ़ किलोमीटर की लंबी लाइऩ नहीं लगाई है क्या? फिल्मों के टिकट पाने के लिए लोग लंबी लाइन नहीं लगाते क्या? और लंबी लाइन लग भी गयी तो क्या हो गया? अरे देश तुम्हारा है, देश के लिए कुछ तो करो भाई...

Thursday, November 10, 2016

माफ करिये मोदी जी................

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 500 व 1000 के नोटों पर सर्जिकल स्ट्राइक क्या चलायी, बाजार से एक, पांच, दस, बीस, पचास और 100 रुपये के नोट ही गायब हो गये। जिन्हें घर में सब्जी या जरुरत की चीजें - राशन खरीदनी है, उनके लिए जीवन - मरण का यक्ष प्रश्न आ गया है। सर्वाधिक चिंता का विषय ग्रामीण इलाकों में है, जहां स्थिति भयावह है। कल तक बैंक और पोस्टआफिस के बाबू मक्खी मारते थे, आज उनकी पौ बारह है। हर कोई उनकी आरती उतार रहा है, शायद ये बाबू भगवान बनकर कुछ मदद करा दें। एक से लेकर 100 रुपये के कुछ भी नोट का दर्शन करा दें, ताकि बनियों की दुकान पर जाकर, वे जरुरत का सामान खरीद सकें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि कुछ दिन दिक्कते आ सकती है, शायद उनका इशारा इसी ओर था, पर हमें लगता है कि ये दिक्कतें बहुत लम्बी जायेगी। गृह मंत्री राजनाथ सिंह और वित्त मंत्री अरुण जेटली समेत अन्य मंत्रियों के बयान अखबारों में धमाल मचा रहे हैं। देश की जनता भी प्रसन्न है, मोदी जी ने बहुत अच्छा काम किया है। नक्सलियो से लेकर आतंकवादियों, जमाखोरों तक पर बुलडोजर चला दिया, पर जब वे बाजार जा रहे है और उनसे पूछा जा रहा है कि छोटे नोट है, तो उनके हाथ - पांव फूल जा रहे है। शायद जमाखोरों को भी पता था कि मोदी जी धमाल मचायेगे। कहीं ऐसा तो नहीं कि इसी धमाल में उन्होंने देश में पड़े सारे छोटे नोटों पर कुंडली मार कर बैठ गये। मोदी जी, कभी-कभी अच्छा काम से भी नुकसान होता है...
हम जानते है कि आपका हृदय साफ है, पर यकीन मानिये हमलोगों का भी हृदय साफ है। बहुतों के घर में शहनाइयां बजनेवाली है...कहीं ऐसा नहीं कि उनके घरों में मातम पसर जाये। बहुत सारी देश की महिलाएँ अपने पति से छुपाकर पैसे रखती है, ताकि आसन्न संकटों का मुकाबला किया जा सकें, यहीं नहीं वे इन पैसों से अपने पति और परिवार का मान भी रखती है, पर आज वो मजबूर होकर घर से पैसे निकाल रही है। आपने कहा था कि आप बाहर के पैसों को भारत ला्येंगे, पर आपने घर से ही उनके पैसे निकाल लिये, जिनके सपने थे। आपने बहुत अच्छा किया है, आपकी सरकार में शामिल सभी मंत्री और नेता और आपकी पार्टी दूध के धूले है, लेकिन हमारा मत है कि देश की बेटियां और मां आपके लोगों से ज्यादा ईमानदार है...उन्हें भी देश प्यारा है...वे भी आतंकियों और नक्सलियों को अपने पैरों के ठोकरों पर रखती है...पर क्या करें। वे आज दुखी है। कहीं ऐसा नहीं कि उनकी आह आपको ले डूबे...इसलिए पहले वो काम करें, जिससे इन गरीबों व महिलाओं के सम्मान पर आंच न आये...बाकी आप जो करें, देश और जनता तो आपके साथ है ही...

Monday, November 7, 2016

अल कर, बल कर, छठ पर आर्टिकल, लिख चल..........

अल कर,
बल कर,
छठ पर आर्टिकल, लिख चल...
अल कर,
बल कर,
छठ पर, अलबल बोल चल...
अल कर,
बल कर,
छठ पर रिपोर्टिंग कर चल,
टीवी पर अनाप-शनाप बक चल...
पिछले एक सप्ताह से हमारे आंख-कान दोनों पक गये...
अखबारों और टीवी चैनलों तथा गुगुल पुराणों ने छठ महापर्व की धज्जियां उड़ा दी है...
जितने अखबार, उतनी बुद्धि, जितने टीवी उतनी बक-बक
और सभी ने अपने ज्ञान से छठ की ऐसी-तैसी कर दी...
जिनको छठ के बारे में एबीसीडी नहीं मालूम
वे महाज्ञानी और महापंडित बनकर उपदेश देते नजर आये
और
जो छठ के सर्वज्ञानी है, वे अपने कमरों में बंद होकर पागलों जैसा बुदबुदाते नजर आये...
मैं पिछले एक सप्ताह से देख रहा हूं कि अखबारों और टीवी चैनलों में नये- नये चिरकुटानन्दों की फौज ने धमाल मचा रखा है...
बंदरों जैसी हरकते, गधों जैसी सोच रखे, रिपोर्टरों और अखबार व चैनल के संपादकों ने छठव्रतियों और उनके परिवारों का कीमा बना दिया है...
सच पूछिये, अगर जो नये ढंग से छठ से जुड़ना चाहते है, तो उनके लिए इन महाचिरकुटानंदों ने हर प्रकार के कुसंग से छठ का नाता जोड़ दिया है...
जबकि पूर्व में ऐसा नहीं था...
बच्चे अपनी मां और दादी से छठ की आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को जान लेते...
कल की ही बात है...
एक अखबार और उसके बाद चैनल पर हमारी नजर गयी...
जनाब एक सज्जन, छठि मइया को भगवान भास्कर का पत्नी बता दिये...
एक ने बहन बना दिया
और एक ने क्या कह दिया, उसे खुद पता नहीं...
यहीं नहीं
आजकल वामपंथियों की एक नई फौज जो धर्म को अफीम मानती है, वह भी छठ में साम्यवाद ढुंढती नजर आयी, उन वामपंथियों को छठ के ठेकुएं और केले में कैसे साम्यवाद नजर आ गया, हमारी समझ से परे है...
चोरी से, चीटिंग से मैट्रिक, इंटर, बीए, एमए कर किसी तरह से प्रोफेसर और रीडर बने लंपटों का समूह भी छठ पर आर्टिकल लिख रहा था और उसे अखबार वाले इस कदर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे थे, जैसे लग रहा हो, कि वह महाज्ञानी हो...पर जो लोग छठ के बारे में विस्तृत जानकारी रखते है, उन्हें ये पता लगते देर नहीं लगी कि ये ढोंगी प्रोफेसर चोरी से डिग्री लेकर यहां तक पहुंचा है, जो सारी दुनियां को भरमा रहा है, और इसके माध्यम से संपादकों का समूह अपनी उल्लू सीधी कर रहा है...
यहीं हाल सारे चैनलों के रिपोर्टरों का था...
चूंकि छठ के बारे में नॉलेज तो है नहीं तो बस घिसी पिटी सवाल से फिल्मों में काम करनेवाले असरानी, जगदीप, राजेंद्रनाथ और धूमल जैसे हास्य कलाकारों का रोल अदा कर रहे थे और यहीं हाल टीवी के एंकरों का था...
इन सारी हरकतों को देख, हमें ये जानते देर नहीं लगी कि आनेवाला समय महामूर्खों चिरकूटानंदों का है...यानी जो जितना मूर्ख वो उतना ज्ञानी...जितना अल बल लिखो, उतना बड़ा साहित्यकार और पत्रकार...
पर इसके परे,
एक परिवार को भी देखा...
बुढ़ी माता...छठ कर रही थी...
उनके संग, बहुत सारी औरते थीं, जो बुढ़ी माता को सहयोग कर रही थी...
बच्चे बुढ़ी माता को आजी कहकर पुकार रहे थे...
तभी मैं रह नहीं पाया...
पूछ डाला कि आजी आप अखबार पढ़ती है, टीवी देखती है...
आजी ने कहा – ए बचवा, आग लागे अइसन पढ़ाई के

आउर आग लागे अइसन टीवी दिखाई के
अरे जब भावे नइखे, तो पूजा करके का होई...
हमरा कोई सीखवले बा...
अरे हम अपना घर में बुढ़ परनिया के देखनी और सीख गइनी...
इ तो अखबरवन और टीवीवालन सब बर्बाद करके धर देले बारन सब...
हम तो सोचतानी कि अइसने चलत रही...
त आगे चलके
भीड़ त दीखी पर छठि मइया ना दिखाई दीहे...

Thursday, October 27, 2016

धर्मांतरण के नाम पर एआइपीएफ की चिरकूटई...........

झारखण्ड में मिशनरियों द्वारा अनैतिक तरीके से चलाये जा रहे धर्मांतरण के कट्टर समर्थक ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम ने राज्यपाल से मांग की है कि वे वंदना डाडेल मामले में हस्तक्षेप करते हुए राज्य सरकार पर दबाव डाले कि वह वंदना डाडेल के खिलाफ जो कारण बताओ नोटिस जारी की है, वह नोटिस को राज्य सरकार वापस ले लें। हम आपको बता दें कि ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम भाकपा माले की प्रतिलिपि है, जिसके ज्यादातर सदस्य भाकपा माले से जुड़े है, तथा जो शेष बचे है, उनमें से एक दो अन्य वामपंथी दलों से जुड़े है। इनका मूल मकसद हिंदू और आदिवासियों के उनके मूल धर्म को सबके समक्ष निकृष्ट बताना है। इनके ज्यादातर कार्यक्रम मिशनरियों से जुड़े संस्थानों में आयोजित होते है। इनके बाहर के सदस्य भी आते है, तो वे या तो वामपंथी कार्यालयों में ठहरते है अथवा मिशनरी संस्थाओं में ठहरते है और यहीं से धर्मांतरण के कार्यक्रमों को गति देते है।
कुछ सवाल ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम के लोगों से...
1. वंदना डाडेल से इतना प्रेम क्यों? वंदना डाडेल ने सोशल साइट्स पर अपनी बातें रखी, राज्य सरकार के कार्मिक विभाग ने उनसे सवाल पूछे। इसे राजनीतिक रंग देने की जरूरत भाकपा माले एंड कंपनी को जरूरत क्यों पड़ गयी?
2. वंदना डाडेल ने जो सोशल साइट्स पर मुद्दे उठाये कि आदिवासियों में सर्वाधिक गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी देखे गये है, ऐसे में वे स्वेच्छा से धर्म भी नहीं चुन सकते? मैं पूछता हूं भाकपा माले एंड कंपनी से कि क्या धर्मांतरण कर लेने से ये सारी समस्याएं दूर हो जाती है? क्या भारत के सारे लोग जो गरीब है, उन्हें धर्मांतरण कर ईसाई बन जाना चाहिए? गरीबी का धर्म से क्या संबंध? मैं पूछता हूं कि विदेशों में लोग जो गरीब नहीं है, हर प्रकार से परिपूर्ण है, वे हिन्दू क्यों बन रहे है?
3. मैं पूछता हूं कि किसी गरीब को रोटी दिखाकर, कपड़े दिखाकर, रोजगार का लोभ दिलाकर, उन्हें प्रलोभन देकर, उनकी गरीबी का मजाक उड़ाकर, उनका धर्मांतरण कराना गलत नहीं है क्या? वंदना डाडेल पर बयान देनेवाली भाकपा माले एंड कंपनी बताएं कि फादर कामिल बुल्के भारत के गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस से क्यों प्रभावित थे?
4. आजकल मैं देख रहा हूं कि भाकपा माले एंड कंपनी के लोग जिनको हिन्दूत्व की एबीसीडी मालूम नहीं, वे भी मनुवाद पर खुब लिख रहे है, जबकि सच्चाई ये है कि इन वामपंथियों के जमात को कई मस्जिदों में नमाज और कई मंदिरों में घंटे बजाते भी मैं देखा हूं और ये सब राज्य की जनता को उल्लू बनाने के लिए करते है, ये कहकर कि देखो कि मैं आपके साथ हूं, जबकि सच्चाई ये है कि ये वो हर हरकत करते है, जिससे समाज को टूटने का खतरा है।
5. सच्चाई ये है कि सारी दूनिया जानती है कि वामपंथी धर्म को अफीम मानते है, पर यहां के वामपंथी, धर्म को अपने-अपने हिसाब से तौलते है और उसकी रूपरेखा तय करते है।
6. हमारा मानना है कि धर्म – सत्य और शाश्वत है। किसी व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया गया कोई भी मंतव्य, धर्म नहीं हो सकता। धर्म तो उस व्यक्ति विशेष के मंतव्य चलने-चलाने के पूर्व से ही मौजूद रहा है। आप उसको कोई नाम दें पर वह सत्य ही रहता है, उसके मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं ला सकता। फिर भी धर्म के नाम पर धर्मांतरण का खेल, झारखण्ड में कुछ ज्यादा ही चल रहा है, और इस खेल में जो सर्वाधिक नंगे है, वे कुछ ज्यादा ही डॉयलॉगबाजी कर रहे है और दूसरे को अनैतिक और असंवैधानिक बताते है। हमारे विचार से, राज्य व केन्द्र सरकार को इस पर एक्शन लेना चाहिए और कहीं भी प्रलोभन और अनैतिक तरीके से धर्मांतरण का कार्य कोई भी कर रहा है, तो उसे कानून के शिकंजे में कसना चाहिए, क्योंकि हमारा संविधान भी अनैतिक तरीके से कराये गये धर्मांतरण को मान्यता नहीं देता।

Tuesday, October 25, 2016

झारखण्ड बंद की हवा निकल गयी................

दिनांक 24 अक्टूबर, दिन सोमवार को हजारीबाग के बड़कागांव में बीते दिनों हुई पुलिस फायरिंग के विरोध में कांग्रेस, झाविमो, राजद, जदयू और सभी वामदलों एवं आदिवासी नामधन्य संगठनों ने झारखण्ड बंद का ऐलान किया था। इस बंद को राज्य की प्रमुख विपक्षी दल झामुमो ने भी अपना नैतिक समर्थन दिया था। कुल मिलाकर कहें तो भाजपा को छोड़कर सभी दलों ने बंद बुलाया था, जिस प्रकार बंद की तैयारी थी, उस प्रकार से तो ये बंद ऐतिहासिक हो जानी चाहिए थी, पर आम जनता द्वारा इस बंद को नकार दिये जाने के कारण ये बंद प्रभावहीन दिखा। हम आपको यह भी बता दें कि इस बंद को एक प्रकार से रांची के प्रमुख राष्ट्रीय और क्षेत्रीय अखबारों ने भी अपना नैतिक समर्थन दिया था। एक अखबार जो स्वयं को अखबार नहीं आंदोलन कहता है, उसने तो इस आंदोलन को दमदार आंदोलन की संज्ञा दे डाली थी, पर उसे कल अवश्य घोर निराशा हाथ लगी होगी कि उसके इस दमदार आंदोलन में रांची में मात्र 472 बंद समर्थक ही सड़क पर दीखे, जो गिरफ्तार हुए। अगर हम झारखण्ड बंद की बात करें, तो पूरे झारखण्ड में बंद का मिला-जुला असर दिखा। राज्य के प्रमुख महानगरों जैसे रांची, जमशेदपुर, धनबाद व डालटनगंज में बंद का कोई असर नहीं दिखा। रांची में तो दोपहर के 12 बजे, जिंदगी आमदिनों की तरह दिखी।
सर्वाधिक मजा तो धनबाद में बंद के दौरान दिखा। बंद करानेवाले नेता मुकदमे के डर से स्वयं ही सेल्फी लेकर अपना फोटो पत्रकारों को उपलब्ध करा रहे थे। स्थिति ऐसी थी कि धनबाद में ज्यादातर नेता ड्रामेबाजी में ही मशगुल दीखे। कांग्रेस का एक नेता संतोष सिंह सुबह में राजधानी एक्सप्रेस को रोकने धनबाद स्टेशन पहुंचा, ट्रेन के आने पर फोटो खिंचवाई और चलता बना। झाविमो का रमेश राही का भी यहीं हाल था, सुबह बंद कराने निकले, स्टेशन पहुंचे, चेहरा चमकाये और चल दिये। जदयू के पिंटू सिंह का भी यही हाल था, यानी जेल और मुकदमे के डर ने इन नेताओं का गला सूखा दिया था।
आखिर ये बंद क्यों असफल रहा? इस बंद के असफल होने का मूल कारण, बंद के तिथि का समय ठीक नहीं होना है। चूंकि दीपावली है, धनतेरस है, धन्वतंरि जयंती है, भैया दूज है, छठ महापर्व का आगमन है, इन सारे पर्व – त्यौहारों के कारण बंद की हवा निकल गयी और जनता ने इस बंद से स्वयं को अलग रखा। शायद बंद समर्थक नेता व कार्यकर्ता इन बातों को समझने में असफल रहे।
बंद का भी एक समय होता है, आप जब बंद बुला लें और बंद का जनसमर्थन जुटा लें, ये संभव नहीं है। हां, अगर जनता का समर्थन चाहिए तो जनता का दिल भी टटोलना होगा, उनकी मनोदशा का भी आकलन करना होगा।
एक बात और, यहां की जनता पिछले 15 सालों से बंद का दंश झेलकर आजीज हो चुकी है, अब एक तरह से वह बंद से नफरत करने लगी है, ये बंद समर्थकों को समझना होगा। हां अब बंद का वे विकल्प तलाशें, अच्छा रहेगा कि ये बंद एकदिवसीय न होकर, कुछ घंटे का हो, जिसमें बंद समर्थक अपनी नीतियों को सरकार तक भी पहुंचा दें और आम जनता को तकलीफ भी नहीं हो। अगर इन विकल्पों पर राजनीतिक दलों ने नहीं सोचा, तो समझ लीजिये, राज्य की जनता उन्हें अच्छी तरह समझा देगी, क्योंकि ये राजनीतिज्ञ कोई दूध के धूले नहीं है, जनता सब समझती है...
एक बात और, भले ही बंद समर्थकों के बंद को रांची की जनता ने नकार दिया, पर झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने बंद को सम्मान देते हुए बंद समर्थकों के हौसले जरुर बुलंद कर दिये। उन्होंने अपने एक कार्यक्रम को झारखण्ड बंद के कारण रद्द कर दिया। जैसे उन्हें कल रांची के एक्सआइएसएस जाना था, पर वे वहां नहीं गयी और कह दिया कि चूंकि बंद है, इसलिए वे वहां जाने में असमर्थ है, यानी सरकार बंद में जनता के साथ और राज्यपाल बंद में बंद समर्थकों के साथ।

Sunday, October 23, 2016

प्रभात खबर के लिए बाबू लाल हीरो और रघुवर खलनायक........

रांची से प्रकाशित अखबार प्रभात खबर ने आज बाबू लाल मरांडी को हीरो और रघुवर को विलेन बनाकर जनता के सामने पेश किया है। इसका मूल कारण प्रभात खबर के प्रधान संपादक रह चुके हरिवंश है, जो फिलहाल जनता दल यू से राज्यसभा सांसद है, हालांकि कहनेवाले ये भी कहते है कि हरिवंश प्रभात खबर छोड़ चुके है, पर हमारे पास पुख्ता प्रमाण है कि वे प्रभात खबर छोड़े नहीं है, आज भी वे प्रभात खबर को कस कर पकड़े हुए है। चूंकि नीतीश कुमार ने झारखण्ड मामले में अपनी नीति स्पष्ट कर दी है कि बाबू लाल मरांडी झारखण्ड के नायक है, वे ही उनकी ओर से झारखण्ड के मुख्यमंत्री उम्मीदवार है। तभी से हरिवंश ने उनकी राह आसान बनाने के लिए कमर कस ली है और जब भी मौका मिलता है, वे बाबू लाल के प्रति वफादार बन कर पत्रकारिता को अपने इशारों पर नचा रहे है। जैसे कल ही की बात को ले लीजिये। रांची में कल आदिवासी आक्रोश रैली थी। इस रैली में 42 आदिवासी संगठनों के लोग थे, पर प्रभात खबर ने इस पूरे प्रकरण का हीरो बाबू लाल मरांडी को बना दिया, जबकि उस रैली में कांग्रेस के प्रदीप बलमुचू, गीताश्री उरांव, झामुमो के पौलुस सुरीन और अन्य नेता भी मंच पर मौजूद थे। यहीं नहीं अपने अखबार में प्रथम पृष्ठ पर इस प्रकार की हेडिंग दे दी कि अगर सामान्य व्यक्ति उस समाचार को पढ़े तो पता लग जायेगा कि यहां के मुख्यमंत्री रघुवर दास सचमुच में खलनायक है, जबकि सच्चाई कुछ और ही है।
प्रभात खबर के अनुसार, कल की रैली को रोकने के लिए राज्य सरकार ने कमर कस लिया था, और इसी क्रम में खूंटी में फायरिंग हुई और एक व्यक्ति की मौत हो गयी, जबकि सच्चाई कुछ और ही है। इस सच्चाई को जानने के लिए आपको दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आजाद सिपाही, राष्ट्रीय सागर तथा अन्य अखबारों का रूख करना पड़ेगा।
दैनिक भास्कर ने अपने प्रथम पृष्ठ पर फोटो देते हुए हेडलाइन्स दिया – रांची में रैली, खूंटी में नाकेबंदी से आक्रोश। एएसपी-थानेदार को ढाई घंटे रस्से से बांधकर पीटा, फिर पुलिस फायरिंग में किसान की मौत, लेकिन प्रभात खबर ने इसी घटना को पृष्ठ संख्या 11 पर लिखा – खूंटी में प्रशासन ने एक हजार ग्रामीणों को रोका और पुलिस के साथ होनेवाली हादसे और सेंदरे की बात अपनी ओर से छुपा ली, साथ ही इस घटना को सामान्य दिखाते हुए पुलिस के मुख से लिखवाया, जैसे लगता है कि वहां कोई ऐसी घटना घटी ही नहीं। जबकि सच्चाई यह है कि अगर पुलिस आत्मरक्षार्थ गोली नहीं चलाती तो आज कितने पुलिसकर्मियों के घरों में लाशों के ढेर नजर आते क्योंकि इस रैली में नक्सलियों ने अपनी भूमिका तय कर रखी थी। इस घटना को दैनिक जागरण ने प्रथम पृष्ठ पर हेडिंग्स देते हुए लिखा – खूंटी में उग्र भीड़ पर फायरिंग, एक मरा, पुलिस ने आत्मरक्षार्थ चलाई गोलियां, 8 ग्रामीण घायल और इस हेडिंग्स के माध्यम से दैनिक जागरण ने पत्रकारिता धर्म की रक्षा की, साथ ही आक्रोश रैली को भी प्रमुखता से उठाया, जो उठाना भी चाहिए।
चूंकि हिन्दुस्तान अखबार ने तो परसो से ही ताल ठोक दिया था कि उसे आदिवासी आक्रोश रैली को बेहतर ढंग से पेश करना है और रघुवर दास की सरकार को कील ठोकना है, तो उसने अपने उक्त निर्णयों पर आगे बढ़ते हुए, आज भी वहीं किया। इसलिए हिन्दुस्तान अखबार पर क्या कहना।
अब अपनी बात – ये जो अखबार वाले है न। कोई धर्म या समाज हित में पत्रकारिता के लिए अपना दुकान नहीं खोले है। प्रभात खबर का मालिक प्रभात खबर की आड़ में कहा-कहां माइन्स चला रहा है, क्या किसी को नहीं मालूम। हिन्दुस्तान अखबार के लोग अर्जुन मुंडा के शासन काल में कहा पर गोल्डमाइन्स लिये थे। हमको नहीं मालूम है क्या? यानी ये अखबार वाले अपना धंधा चलाने के लिए आदिवासियों की जमीन लूटे तो सही और दूसरा कोई लूटे तो गलत। अरे गलत है तो सब गलत है, एक गलत और दूसरा सहीं...और दूसरा गलत तो पहला सही कैसे भाई। सच्चाई यह है कि यहां झारखण्ड का हर नेता और हर पत्रकार अपने – अपने ढंग से राज्य की जनता को बरगला रहा है, और भोली-भाली जनता इनके बहकावे में आ रही है। नेताओं और पत्रकारों को तो कुछ नहीं होता, पर जनता हर प्रकार से मारी जाती है। अखबार के मालिकों और संपादकों को क्या है? वे तो पेड न्यूज की आड़ में अपनी गोटी सेंक चुके होते है और उनके प्यादे यानी रिपोर्टर्स उनके इशारे पर वो न्यूज बनाते है, जो उनके आकाओं को पसंद आती है। आज का अखबार देखने से तो यहीं लगता है।
... और अब एक सलाह राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को, आप कृपा कर किसी भी अखबार के कार्यक्रम में जाये, तो प्लीज ये न कहें कि पत्रकारिता हो तो फंलाने अखबार जैसी। हमारे पास प्रमाण है एक अखबार बार-बार आपका वक्तव्य छापता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रभात खबर की प्रशंसा की। हमें हंसी आती है, जो अखबार हमारे परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के परिवार के साथ धोखा करता है। अमर शहीद की मिट्टी पर राजनीति करता है, उसे आप कैसे कह सकते है कि बहुत ही अच्छा है। प्लीज माफ करें। झारखण्ड की जनता के साथ इँसाफ करें। ये अखबारवाले किसी के नहीं है, न तो देश के और न ही देश के जवानों के। ये तो वीर जवानों के शहीदों का भी व्यवसायीकरण कर देते है। शर्मनाक...

Saturday, October 22, 2016

आदिवासियों के हित के नाम पर चेहरा चमकाने की कोशिश............

राज्य सरकार ने राज्य के आदिवासियों के हित के लिए एसपीटी और सीएनटी में बदलाव करने का फैसला लिया। इस फैसले से आदिवासियों का एक बहुत बड़ा तबका, जो चाहता है कि आदिवासियों के जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव हो, वह बहुत ही खुश है, पर एक तबका इस पर राजनीति कर, अपना चेहरा चमकाने को बेताब है। जो अपना चेहरा चमकाना चाहता है, वह यहां के मिशनरियों से अनुप्राणित है। मिशनरियां भी चाहती है कि जिस प्रकार डोमिसाइल आंदोलन की आग को उन्होने हवा दी थी, इसे भी अपने ढंग से हवा देकर इस मुद्दे को आग की तरह फैला दे, ताकि रघुवर सरकार की जमकर किरकिरी हो जाय, पर इसके विपरीत न लाभ और न हानि, न सत्ता का लोभ, न कुछ पाने की इच्छा ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को स्थानीय नीति और अब एसपीटी और सीएनटी पर हीरो के रूप में झारखण्ड में स्थापित कर दिया है। जिसको लेकर राज्य के छोटे से लेकर बड़े आदिवासी नेताओं की हवा निकल गयी। पिछले दिनों गुपचुप तरीके से आदिवासियों की रैली आयोजित करने के बाद, आज बाबूलाल मरांडी का ग्रुप आदिवासी आक्रोश रैली का आयोजन किया। इस रैली के सफल आयोजन के लिए खूब मेहनत की गयी। जमकर गांव-गांव का परिभ्रमण किया गया। मिशनरियों से भी सहयोग लिया गया। उन सारे लोगों के पांव पकड़े गये, जो किसी न किसी प्रकार से आदिवासी समुदाय के नाम पर नेतागिरी चमकाते है, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि कहीं आदिवासी के नाम पर उनकी नेतागिरी न छिन जाये। राज्य व राष्ट्रस्तर पर जो आदिवासी नेता का बड़ा लेबल लगा है, वह न छिन जाये। मोराबादी से लेकर कचहरी चौक तक लाउडस्पीकर का बंदोबस्त किया गया, पर भीड़ उतनी नहीं जूट सकी, जितना का उन्होंने ऐलान कर रखा था।
दूसरी ओर रांची से प्रकाशित एक अखबार हिन्दुस्तान की सारी टीम इस रैली के आयोजन के पूर्व ही आयोजनकर्ताओं के आगे नतमस्तक हो गयी। खूब जमकर तारीफ के पूल बांधे। प्रथम पृष्ठ से लेकर अंदर के पृष्ठों तक आदिवासी आक्रोश रैली के गुणगान छापे। प्रथम पृष्ठ पर तो इस अखबार ने एक प्रकार से आदिवासी आक्रोश रैली के नाम पर दहशत फैलाने की कोशिश की। यह लिखकर कि “रांची की सड़कें आज प्रदर्शनकारियों से रहेंगी जाम” पर खुशी इस बात की कि आज प्रशासन ने इस प्रकार की व्यवस्था कर दी थी कि कहीं भी कोई जाम नहीं लगा, नहीं तो यकीन मानिये हिन्दुस्तान इसे भी बढ़ा-चढ़ा कर दूसरे दिन छाप देता, पर हिन्दुस्तान अखबार की हेकड़ी निकल गयी। ऐसे भी रांची में कोई अखबार नहीं, जो दूध का धुला हो, सभी पत्रकारिता छोड़ दुकान खोलकर बैठ गये है और जिसमें उनका हित सधता है, उस प्रकार से वे अपना दिमाग सेट कर कभी सरकार के खिलाफ तो कभी किसी नेता के खिलाफ तो कभी किसी संगठन के खिलाफ लिख चलते है और जैसे ही इनका विज्ञापनों से मुंह बंद कर दिया जाता है, फिर ये उसकी स्तुति गाने लगते है।
रांची से प्रकाशित ही एक अखबार है – राष्ट्रीय सागर। बहुत ही छोटा अखबार, पता नहीं आप जानते है या नहीं। इसी में काम करते है एक पत्रकार उमाकांत महतो। उनका एक आलेख छपा है, आज प्रथम पृष्ठ पर। शीर्षक है – पहला संशोधन 1914 में और 26वां 1995 में, अगर ये आर्टिकल आप पढ़े तो आपको पता लग जायेगा कि अब तक छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 में 26 बार संशोधन हो चुके है। अब मेरा सवाल है कि केवल 1914 से लेकर 1995 तक जब 26 संशोधन हो चुके है तो फिर इस बार के संशोधन से आदिवासियों के लिए नेतागिरी करनेवाले, आदिवासी नेता और मिशनरियों के पेट में दर्द क्यों? मैं पूछता हूं कि अब तक 26 संशोधनों को अपने माथे पर ढोनेवाले आज झारखण्ड बनने के बाद रघुवर दास द्वारा लिये गये सही निर्णयों को नहीं मानने के लिए आंदोलन को हवा क्यों दे रहे है? आखिर आदिवासी आक्रोश रैली के नाम पर भीड़ क्यों जुटाई जा रही है। जरा पूछिये, बाबू लाल मरांडी, शिबू सोरेन, सूरज सिंह बेसरा और डोमिसाइल आंदोलन की उपज बंधु तिर्की से, कि वे इन 26 संशोधनों पर क्या कहते है?
• आखिर एक ही जगह पर एक आदिवासी परिवार और एक सामान्य परिवार की जमीन की बिक्री में आकाश और जमीन का अंतर क्यों होता है?
• आखिर एक आदिवासी परिवार अपने जमीन पर केवल कृषि और कृषि से जुड़ा ही कार्य क्यों करें, अन्य कार्य जैसे अन्य समुदाय के लोग करते है, उस पर लागू क्यों न हो, ताकि उसका भी आर्थिक उन्नयन हो।
ये दो सवाल ऐसे है, जिसे लेकर सारा आदिवासी समुदाय पहली बार इस प्रकार की भ्रांतियों से उबरने की कोशिश कर रहा है। हमें खुशी है कि राज्य सरकार ने इन नेताओं द्वारा फैलायी जा रही भ्रांतियों को समय रहते दूर करने की कोशिश की।
छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम की धारा 21 एवं धारा 13 संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम के तहत रैयत अपनी जमीन का उपयोग सिर्फ कृषि और कृषि से जुड़े कार्यों के लिए ही कर सकते है, यानी उन्हें अपनी ही जमीन का गैर कृषि कार्यों के लिए उपयोग करने का अधिकार प्राप्त नहीं है, ऐसे में अगर वे चाहे कि अपनी जमीन पर, मैरिज हॉल, होटल, ढाबा, दुकान या अपनी मर्जी का कोई और प्रतिष्ठान खोल सकें तो वे ऐसा नहीं कर सकते, ऐसे में उनका आर्थिक विकास कैसे होगा, वे सशक्त कैसे होंगे। ये सब को सोचना होगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने उनके आर्थिक उन्नयन के लिए संशोधन का प्रस्ताव रखा है, ताकि वे अपनी जमीन का अपनी मर्जी से अपने हित में सही इस्तेमाल कर सकें, साथ ही अपना विकास भी कर सकें। राज्य सरकार ने स्पष्ट कहा कि जो भ्रांतियां फैलायी जा रही है कि इससे आदिवासियों के जमीन पर उनका स्वामित्व खत्म हो जायेगा, वे गलत कर रहे है, पूर्णतः भ्रांति फैला रहे है। इस संशोधन से किसी भी रैयती के जमीन पर स्वामित्व के उसके अधिकार को कोई चुनौती दे ही नहीं सकता, बल्कि इससे उनके स्वामित्व का सही आर्थिक लाभ रैयतों को प्राप्त होगा।
राज्य सरकार ने अपना स्पष्ट दृष्टिकोण रखा और जनता से कहा कि इसके लिए वे जितना हिस्सा गैर कृषि कार्यों के लिये करेंगे, उतनी ही भूमि के बाजार मूल्य के अधिकतम एक प्रतिशत के बराबर ही उन्हें गैर कृषि लगान देना होगा। इससे रैयतों के अधिकार एवं स्वामित्व को और मजबूती मिलेगी। राज्य सरकार के अनुसार अगर कोई रैयत द्वारा ऐसे भूखण्ड पर गैर कृषि कार्य किया जा रहा है तो उसे नियमित भी किया जा सकेगा। जिससे रैयत भविष्य में होनेवाले कानूनी झंझट से भी बच जायेंगे, साथ ही कानूनी संरक्षण भी उन्हें प्राप्त हो जायेगा।
रघुवर सरकार ने यह भी कहा कि धारा 49 छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम में भी संशोधन प्रस्तावित है। चूंकि राज्य में चल रहे रेलवे, सड़क, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, विभिन्न प्रकार की जनोपयोगी परियोजनाओं के लिए जमीन की आवश्यकता होती है। अतः उक्त आवश्यकताओं को देखते हुए इसमें भी बदलाव की आवश्यकता है, जिससे जनकल्याणकारी योजनाओं के लिये कोई भी रैयत उपायुक्त से अनुमति प्राप्त कर अपनी भूमि जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए हस्तांतरित कर सकता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भूमि हस्तांतरित होगी, उनका कार्यान्वयन 5 वर्षों के अंदर करना होगा, अन्यथा संबंद्ध रैयतों को पूर्व में हस्तातंरण की गयी राशि बिना वापस किये उनकी भूमि उन्हें लौटा दी जायेगी।
पूर्व में राज्य के आदिवासियों की अवैध रूप से हस्तांतरित भूमि को उन्हें एसएआर कोर्ट द्वारा वापस करने का प्रावधान है। धारा 71 ए के द्वीतिय और तृतीय की आड़ में बिहार अनुसूचित क्षेत्र विनियमन अधिनियम 1969 में प्रावधानित नियमों के विपरीत 30 वर्षों के बाद भी एसएआर कोर्ट द्वारा कम्पन्शेसन का आदेश जमीन माफिया/जमीन दलाल प्राप्त कर आदिवासियों की जमीन हड़पने में सफल होते रहे है। धारा 71 ए में कम्पन्शेसन का प्रावधान ही हटा दिया गया है तथा 6 महीने के अंदर आदिवासियों की जमीन उन्हें वापस करने का प्रावधान कर दिया गया है। ऐसे में ये कहना कि इन संशोधनों से आदिवासियों का अहित होगा, वह पूर्णतः गलत है, सच्चाई यह है कि इससे आदिवासियों का ही हित सधेगा।

Thursday, October 20, 2016

अरे चीन, पगला गया भइया................

जब से भारतीयों ने चीन और चीनियों को आर्थिक चोट पहुंचाने का संकल्प लेते हुए, अपने सपने साकार करने की कोशिश प्रारंभ की है, तभी से चीन और चीनियों की बौखलाहट सातवें आसमान पर हैं। वे भारत और भारतीयों के बारे में अनाप-शनाप बक रहे हैं। वे कोई भी ऐसी जगह नहीं छोड़ रहे, जहां वे अपनी हरकतों से भारत को नीचा दिखाने की कोशिश न कर रहे हो। दोस्त का दोस्त अपना दोस्त और दोस्त का दुश्मन अपना दुश्मन की कहावत को सार्थक करते हुए, वे पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों पर भी प्यार लूटा रहे है। वे हमारी ही बदौलत आर्थिक शक्ति को बढ़ाए है और हमें ही आंख दिखा रहे है। वे समझते है कि जैसे वे गुंडागर्दी करते हुए 1962 में हमारा बड़ा भू-भाग पर कब्जा कर लिया, तिब्बत पर कब्जा कर लिया। वैसे ही वे बार – बार करते रहेंगे और हम चुपचाप इनकी गुंडागर्दी के आगे नतमस्तक हो जायेंगे, पर उन्हें ये पता नहीं कि आज देश में एक नये युवाओं की टोली का जन्म हुआ है। वह अपने देश भारत को महाशक्ति बनाने के लिए वचनबद्ध है। उसके साथ 125 करोड़ की भारतीय आबादी भी साथ है। आज वह जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान के साथ आगे निकल पड़ा है।
चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स का पागलपन देखिये, वह हर दम हमें धौंस दिखाता है। वह समझ लिया है कि जैसे उसने तिब्बत को कब्जे में कर लिया, जैसे वह समय-समय पर अपने पड़ोसी जापान, ताइवान, विएतनाम, फिलीपीन्स को आंखे दिखाता है, उसी तरह भारत को भी आँख दिखायेगा और भारत उसके चरणों में जाकर झूक जायेगा। हम अच्छी तरह जानते है कि चीन को ये सब करने का मौका हमारी पूर्ववर्ती सरकारों ने दिया है, जिस पर अंकुश लगाने का काम वर्तमान सरकार और यहां की वीर युवाओं की टोली ने प्रारंभ किया है। हम चीन को बता देना चाहते है कि वे गीदड़भभकी दिखाना बंद करें और सच्चाई को समझे।
चीन का यह कहना कि भारत के लोग मेहनती नहीं, सिर्फ हल्ला करना जानते है, माल उससे ही खरीदेंगे तो फिर वो बौखलाहट में क्यों है?, वो हमें गाली क्यों दे रहा है?, जब वह सब कुछ जानता है। हम आपको बता देते है कि चीन समझ चुका है कि भारतीयों ने अब ये पूर्णतः समझ लिया है कि बिना चीन को उसकी औकात बताएं भारत का निर्माण हो ही नहीं सकता। तभी तो देश की करोड़ों जनता ने चीन को उसकी औकात बताने के लिए इस दीपावली में संकल्प कर लिया और चीन को उसकी औकात बतानी शुरु कर दी। पूरे भारत में एक प्रकार का चीनी सामानों के बहिष्कार का लहर है, जिस पर सारी जनता एक है।
आखिर चीनी सामानों का बहिष्कार क्यों?
1. चीन का सामान भारतीय सामानों की अपेक्षा घटिया होता है।
2. चीन के सामान से प्रदुषण का खतरा होता है।
3. चीन के खाद्य पदार्थों की विश्वसनीयता नहीं के बराबर होता है, वह किन चीजों से बनाकर भारत या अन्य देशों में भेजता है, उसकी विश्वसनीयता ही नहीं होती।
4. चीन कभी भी विश्वसनीय नहीं रहा।
5. चीन सिर्फ अपनी भलाई में ही मग्न रहता है और अपनी भलाई के लिए वह कुछ भी कर सकता है, जैसे दुसरे देश पर चढ़ाई और उसका मान-मर्दन। जैसे उसने तिब्बत पर चढ़ाई कर उस तिब्बत को सदा के लिए बर्बाद कर दिया। भारत का कई हजार वर्गमील उसने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है।
6. चीन पाकिस्तान के उन आतंकी समूहों की सराहना और बचाव करता है, जो भारत में आतंक फैलाता है।
7. चीन पाकिस्तान को हर मोर्चें पर मदद करता है, जिससे भारत को नुकसान पहुंचने की शत प्रतिशत गारंटी रहती है।
8. चीन के सैनिक हमेशा भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं।
चीन के समर्थक – भारत में चीन के भारत विरोधी और उसकी आक्रमणकारी गतिविधियों का समर्थन यहां के वामपंथी खुलकर करते है। वे अमरीकी साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगाते है, पर चीन के साम्राज्यवादी नीतियों को खुलकर समर्थन करते है, कई वामपंथी कार्यालयों में चीनी साम्यवादी नेताओं के चित्र और उन पर लदे फूल मालाएं आप स्वयं जा कर देख सकते है।
चीन अब जान चुका है कि भारत और भारत के लोग जाग चुके है, इसलिए वह अपनी भड़ास अब भारत और भारतीयों को गाली देकर निकाल रहा है। बस भारतीय सिर्फ इतना ही करें, अपने लिये संकल्प को पूरा करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे। जहां भी देखे, चीनी सामान उसका बहिष्कार करें। सरकार और यहां के नेता मजबूर हो सकते है, पर हम मजबूर नहीं, चीन को हम औकात बता कर रहेंगे, भारत को आर्थिक महाशक्ति बना कर रहेंगे। हम अपने पैसे से चीन की ताकत नहीं बल्कि चीन की ताकत को मटियामेट करेंगे और अपने जवानों को कहेंगे कि देखों हम तुम्हारे साथ है। डटे रहो सीमा पर। चीन को जवाब दो। हम सब मिलकर भारत की कायाकल्प करेंगे। चीन मुर्दाबाद। उसकी साम्राज्यवादी नीतियां मुर्दाबाद। उसकी भारत विरोधी गतिविधियां मुर्दाबाद। आंतक समर्थक पाकिस्तान समर्थक चीन और चीन की नीतियां मुर्दाबाद। मुर्दाबाद वे अखबार, वे नेता जो भारत में ही रहकर चीन की स्तुति गाते है, मेरा इशारा किस ओर है, आप समझ गये होंगे।

Wednesday, October 19, 2016

प्रभात खबर यानी हम नहीं सुधरेंगे.........

नीतीश भक्ति में सराबोर और जदयू के मुख पत्र के नाम से जनता में लोकप्रिय हो चुका प्रभात खबर सुधरने का नाम नहीं ले रहा, इसने एक बार फिर हम नहीं सुधरेंगे की पंक्ति को सर माथे बिठा, वो सारी हरकतें कर डाला है, जिससे यहां की नई पीढ़ी पूर्णतः बर्बाद हो जाये अथवा सर्वदा के लिए कन्फ्यूज्ड होकर अपनी जिंदगी बिताएं...
जरा एक बार फिर आज का रांची से प्रकाशित प्रभात खबर का पृष्ठ संख्या 3 का पहला कॉलम में प्रकाशित आज का पंचाग देखिये। जिसमें उसने लिखा है कि आज तृतीया तिथि है, जो रात्रि के 3.09 मिनट तक है, उसके बाद चतुर्थी तिथि है। मैं पूछता हूं कि जब आज तृतीया तिथि है, तो लोग आज करवा चौथ कैसे मना रहे है, ये प्रभात खबर बताये। कमाल है इसी में आगे पढ़िये तो प्रभात खबर के अनुसार आज बुधवार नहीं, बल्कि मंगलवार है और सबसे नीचे पर्व त्यौहार की पंक्ति पढ़े तो उसने लिख डाला है कि आज कोई व्रत-त्यौहार नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि आज चतुर्थी तिथि है, जो रात्रि के 12.48 तक है, दिन बुधवार है और आज महिलाओं के लिए बहुत ही खास पर्व है – करवा चौथ है।
मेरा स्पष्ट मानना है कि जब आपको पंचाग के बारे में जानकारी ही नहीं, तो तुम पंचाग क्यों छापते हो? इसकी आवश्यकता ही क्या है? अगर तुम्हें जानकारी नहीं तो फिर क्या इस आधार पर गलत छापोगे और सबको कन्फ्यूज्ड करते रहोगे। यह कहकर कि हमें कुछ भी बेवजह छापने का अधिकार है और सभी को कन्फ्यूज्ड और उनके पर्व-त्यौहारों में मानसिक खलल डालने का अधिकार है। हम आपको बता दें कि ऐसी हरकत प्रभात खबर पहली बार नहीं किया, ये ऐसी हरकते बार-बार करता है, और सुधरने का नाम नहीं ले रहा।
मेरा इस आलेख लिखने का अभिप्राय यह है कि आम जनता जान लें कि अखबार में लिखी सारी बातें सच्ची नहीं होती, ज्यादातर झूठ के पुलिंदे होते है, जो मूर्खों के द्वारा लिखित व प्रकाशित होते है, इसलिए जनता इनकी बातों में न आये और अपने विवेकानुसार पंचाग को देखे, समझे, तब व्रत व त्यौहार का निर्णय लें, नहीं तो आप समझ लें कि इन्होंने आपको धोखे देने का मन सदा के लिए बना लिया है, और ये बराबर धोखे देते रहेंगे, ये कहकर कि हम अखबार नहीं आंदोलन है.......

Tuesday, October 11, 2016

महाशक्ति, हम और पाकेटमार...............

महाष्टमी का दिन
प्रातः दुर्गा पाठ, फिर दिन भर का भागम भाग, उसके बाद ऑफिस आना और वहां के कार्य को संपन्न करना, तत्पश्चात् रात्रि में हम अपनी पत्नी के साथ रांची के विभिन्न पंडालों में स्थापित मां दुर्गा का दर्शन करने के लिए घर से निकले। सर्वप्रथम हम पहुंचे चर्च रोड स्थित मां दुर्गा के पंडाल में, वहां श्रद्धा निवेदित किया। उसके बाद ओसीसी क्लब, राजस्थान मित्र मंडल, भारतीय युवक संघ बकरी बाजार, शक्ति श्रोत संघ, सत्य अमर लोक होते हुए आर आर स्पोर्टिंग क्लब रातू रोड पहुंचे।
यहां भारी भीड़ थी, महिला और पुरुषों के लिए अलग – अलग कतार बने थे, मैंने अपनी पत्नी को कहा कि आप महिला वाली कतार से होते हुए भगवती के दर्शन कर बाहर निकलिये और हम पुरुषों वाली कतार से होकर बाहर निकलते है। कुछ कदम ही उपर बढ़ाये कि मेरे आस-पास पांच-छ व्यक्तियों का ग्रुप मेरे चारों ओर घेरा बनाकर चलने लगा। एक के हाथ मेरे फुलपेंट के पाकेट की ओर बार-बार बढ़ रहे थे। मुझे अब जानते देर नहीं लगी कि हम पाकेटमारों के घेरे में आ गये है। हम भी पाकेटमारों के घेरे में आने के बाद सचेत हो गये और उन पर अपनी नजरे टिका दी और साथ ही अपने फुलपेंट के पाकेट पर अपने हाथ को एक सिपाही की तरह मुस्तैद कर दिया। जब हम आर आर स्पोटिंग क्लब से बाहर आये, तो हमने पाया कि वह पाकेटमारों का दल, पाकेटमारी में सफल नहीं होने के कारण बेचैन दीखा।
अब उन्होंने मेरी पाकेटमारी करने के लिए ब्रह्म कुमारियों द्वारा लगाये गये स्टाल को चुना, जहां जीवंत देवियों की झांकियां दिखाई जा रही थी। पाकेटमारों का दल यहां मुस्तैद था, पर मेरी पत्नी ने कहा कि वह इस प्रकार की झांकियां देख चुकी है, बारिश हो रही है, जल्द घर भी पहुंचना है, नहीं तो मकान मालिक दरवाजा बंद कर देगा तो फिर रात भर बाहर ही गुजारना पड़ेगा, इसलिए यहां से चला जाये। मैंने भी सोचा की बात में दम है, इसलिए निकला जाये। तभी पाकेटमारों का दल जो यहां हमारी पाकेटमारी करने के लिए मुस्तैद था, मुझे उस ओर से गुजरते हुए, फिर मेरी ओर लपकने की कोशिश की। पाकेटमारों की इस हरकत को देख, मैने उन पाकेटमारों को स्पष्ट रुप से कह दिया कि भाई, मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम सभी पाकेटमार हो, और मेरे पाकेट में रखे हुए रुपयों पर तुम्हारी नजर है। अच्छा रहेगा कि तुम लोग दूसरी जगह पाकेटमारी की तलाश करों, नहीं तो तुम्हें दिक्कत हो जायेगी, क्योंकि पहली बात कि तुम हमारी पाकेटमारी नहीं कर सकते, क्योंकि मैं तुम्हें जान गया हूं कि तुम सभी पाकेटमार हो और अब हमारा पीछा किया तो हमें पुलिस की सेवा लेते देर नहीं लगेगी। इतना कहना था कि स्वयं को पोल खुलता देख, वे सारे पाकेटमार उसके बाद फिर हमारी पीछा नहीं कर पाये, शायद उन्हें लगा कि मेरे सामने उन सबकी पोल खुल गयी है। ऐसे मैं इन सारे पाकेटमारों को देख कर पहचान सकता हूं, अगर रांची पुलिस हमारी मदद लेनी चाहे, तो मैं यह मदद देने को भी तैयार हूं।
इसके बाद हम कचहरी रोड पहुंचे, फिर बिहार क्लब। बिहार क्लब से आगे बढ़ते ही हमारे साथ एक घटना घट गयी। एक जगह प्रसाद बंट रही थी, हम दोनों ने प्रसाद ग्रहण किया और प्रसाद ग्रहण करने के बाद जैसे ही हाथ धोने के लिए हम झुके, तभी एक 14 वर्षीय एक किशोर ने हमारी उपरी पाकेट से सैम्संग जी 7 मोबाइल आराम से निकाल लिया और चुपके से भागने की कोशिश करने लगा। जैसे ही वह किशोर हमारे पाकेट से पाकेटमारी करते हुए सैम्संग जी 7 मोबाइल निकाला, हमें आभास हुआ कि किसी ने मोबाइल हमारी निकाल ली, और तभी हमने झट से उक्त किशोर को पकड़ा, उस किशोर को अपने चंगुल में, मैंने जैसे ही लिया। वह बोला कि मेरा मोबाइल नीचे गिर गया था, यानी पकड़ में आने के बाद झूठ बोलकर बचने की कोशिश। तभी गुस्सा आया और मैंने चार-पांच थप्पड़ जड़ दिये। अंततः मुझे दया आयी और मैंने उसे छोड़ दिया। मेरा छोड़ना था कि वह दनदनाते हुए भाग निकला। यानी महाष्टमी के दिन हमारे साथ पाकेटमारी की दो घटना और दोनों घटनाओं से हम बच निकले, कोई नुकसान नहीं।
हम आपको बता दे कि जैसे ही यह दोनों घटनाएं घटी थी, हमें लगा कि कोई अदृश्य शक्ति ने हमें बताया कि तुम्हारे साथ घटना घट रही है, बचो और मैं स्वयं को बचा लिया। जरा सोचिये, अगर दोनों घटनाओं को अंजाम देने में पाकेटमार सफल हो जाते तो हमारा क्या होता? हम महाष्टमी का आनन्द नहीं ले पाते, फिर दो – तीन दिनों के लिए तनाव की स्थिति आ जाती और हम दुर्गा पूजा का आनन्द कम, विषाद में ज्यादा डूब जाते। सचमुच मां ने कृपा किया और हम पाकेटमारों द्वारा मिलनेवाले दुख से बाल – बाल बच गये।

Wednesday, October 5, 2016

लो शुरू हो गया अपनी ढपली अपना राग..............

अरविंद केजरीवाल, अरुण शौरी, दिग्विजय सिंह के बाद संजय निरुपम और पता नहीं और कौन – कौन से लोग आयेंगे। इन सभी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मांग की है कि वे सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जारी करें। इन्होंने प्रत्यक्ष रुप से ये भी कह डाला कि इस प्रकार के स्ट्राइक पूर्व में भी होते रहे पर किसी ने इस प्रकार से मीडिया के समक्ष इन बातों को नहीं उठाया, पर भाजपा की मोदी सरकार ने पालिटिकल माइलेज के लिए ऐसा किया। हमें पूरा विश्वास था कि कुछ दिनों के बाद इस प्रकार के बयान सुनने को मिलेंगे, इसकी संभावनाएं हमें पहले से थी, क्योंकि विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जहां देशद्रोहियों की एक परंपरा रही है। उन परंपराओं की ओर जायेंगे तो देखेंगे कि इसकी बहुत बड़ी लिस्ट है, पर मैं ज्यादा तो नहीं, पर कुछ महान देशद्रोहियों का नाम यहां जरुर रखना चाहेंगे। मो. गोरी के समय जयचंद, ब्रिटिश हुकुमत के समय जब महारानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ रही थी, तो सिंधिया परिवार ने लक्ष्मीबाई को मदद न कर, अंग्रेजों की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसका वर्णन तो सुप्रसिद्ध कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने भी किया – यह कहकर कि अंग्रेजों के मित्र सिंधिंया ने छोड़ी रजधानी थी, खुब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी। सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी व देश की युवाओं के धड़कन भगत सिंह को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने में सुप्रसिद्ध पत्रकार खुशवंत सिंह के पिता शोभा सिंह का बहुत बड़ा हाथ था। इसलिए जब हाफिज सईद जैसे आतंकियों को सईद जी कहकर संबोधित करनेवाला वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह जब ये कहता है कि सर्जिकल स्ट्राइक जैसी चीज कुछ हुई ही नहीं तो हमें यह आश्चर्य नहीं होता और रही बात संजय निरुपम की तो फिलहाल शिव सेना से कैरियर शुरु करनेवाला अभी सेकुलर राजनीति का प्याज खा रहा है, अरविंद केजरीवाल तो दुनिया के एकमात्र ईमानदार नेता है, इसलिए उनकी ईमानदारी तो इसी में है कि वे प्रधानमंत्री के साथ – साथ भारतीय सेना पर भी अंगूली उठा दें। अरुण शौरी के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो वो बैंटिग की है कि उनका वश चले तो वे जयचंद को भी मात दे दें। ये तो रहा भारतीय पक्ष अब देखते है पाकिस्तान के क्या हाल है... पाकिस्तान भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर इतना घबराया हुआ है कि पाकिस्तानी सेना पिछले दिनों पत्रकारों का एक दल बार्डर के समीप ले गया। उसके इस हरकत पर फ्रांसीसी न्यूज एजेंसी एएफपी ने पाकिस्तान के इस हरकत को एक दुर्लभ कदम करार दिया। पाकिस्तानी मीडिया डॉन और द न्यूज इंटरनेशनल के मुताबिक वहां सर्जिकल स्ट्राइक के कोई निशान नहीं मिले पर एएफपी ने पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल असीम बाजवा का बयान छापा कि जिसमे बाजवा ने कहा कि उनका इलाका मीडिया के लिए खुला है, आप देख सकते है कि यहां शांति है, यहां कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुई, हालांकि एएफपी ने यह भी लिखा बाजवा के दावों की पुष्टि करना संभव नहीं था कि भारतीय सेना ने उन क्षेत्रों में सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की। इधर आतंकी दाउद इब्राहिम का समधी जावेद मियांदाद अपने स्वभावानुरुप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गालियों से नवाजा है। पाकिस्तान के पूर्व वायुसेना प्रमुख रह चुके एयर मार्शल असगर खान ने कहा है कि पाकिस्तान को भारत से कभी कोई खतरा नहीं रहा, सच्चाई यह है कि पाकिस्तान ने ही भारत पर ज्यादा हमले किये। इसी बीच भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इतनी विकट परिस्थितियों में भी मानवीय मूल्यों को तरजीह देकर दोनों देशों में सुर्खियां बटोर ली है, जब उन्होने पाकिस्तानी यूथ डेलिगेशन के साथ मित्रवत् व्यवहार किया। हुआ यह कि एक अक्टूबर को पीस फोरम आगाज दोस्ती की कन्वेनर आलिया हरीर ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से अपनी सुरक्षा को लेकर बात की। सुषमा ने आलिया को सुरक्षित वापसी को लेकर भरोसा दिलाया। सुषमा स्वराज ने इस टीम को हृदय को छू लेनेवाली प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बेटियों के लिए कोई सरहद नहीं होती। बेटियों का ताल्लुक सबसे होता है।
इसी बीच यूनाइटेड नेशन में रूस के राजदूत और अक्टूबर महीने के लिए सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ने पाकिस्तान को तगड़ा झटका दिया है। उन्होंने यूनाइटेड नेशन जैसी वैश्विक संस्था में कश्मीर मसले और भारत की सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा उठानेवाले पाकिस्तान को स्पष्ट तौर पर झिड़की लगायी है और कह दिया कि यह सुरक्षा परिषद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनावों पर चर्चा नहीं करने जा रहा। संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत विताली चर्किन ने तो मीडिया के द्वारा पूछे गये सवाल पर भी नो कमेंट्स कहकर निकल गये। कुल मिलाकर पूरे विश्व स्तर पर भारत को मिल रही साख और भारतीय सेना को मिल रहे साथ पर अब भारत के कुछ जयचंदों की फौज अंगूलियां उठानी शुरु कर दी है, वह भी क्षुद्रस्वार्थ के लिए। यही भारत की सही इमेज है, जो कभी भी खत्म नहीं हो सकती।
(यह आर्टिकल रांची से प्रकाशित समाचार पत्र आजाद सिपाही में आज के अंक में संपादकीय पृष्ठ 11 पर प्रकाशित है।)

Sunday, October 2, 2016

एम एस धौनी दि अनटोल्ड स्टोरी – खूब तो नहीं, पर चलेगा जरुर........

रांची की धड़कन है धौनी
हर युवा के दिलों में बसते है धौनी
इसलिए एम एस धौनी पर तो रांची का हक बनता ही है। मीडिया से लेकर सोशल साइट्स तक धौनी के फिल्म की धूम है। तभी तो फेसबुक पर कई लोगों ने अपने फोटो पर एम एस धौनी दि अनटोल्ड स्टोरी की मुहर लगाकर फिल्म का एक तरह से प्रचार भी कर दिया और अपने फोटो को कवर फोटो बनाने से भी हिचक नहीं की। एम एस धौनी दि अनटोल्ड स्टोरी बनाने के लिए फिल्म निर्माता अरुण पांडे, निर्देशक नीरज पांडे बधाई के पात्र है, वे प्रशंसा के हकदार है। फिल्म नीति राज्य में लागू हो जाने के बाद, इस प्रकार के फिल्म की राज्य को जरुरत भी थी और उस पर से अपने ही राज्य का कोई आइ-कॉन पर फिल्म बन जाये तो मजा आनी ही है।
इस फिल्म को राज्य सरकार ने टैक्स फ्री कर दिया है। हमारा राज्य सरकार से अनुरोध होगा कि वे इस फिल्म पर रहम करें और अपना टैक्स फ्री की कृपा वापस ले लें, क्योंकि इसका फायदा राज्य की जनता को न के बराबर मिल रहा है, हमें लगता है कि राज्य की जनता के हित में ही राज्य सरकार ने यह फैसला लिया होगा, पर जब राज्य की जनता को इसका लाभ न मिलें तो इस प्रकार की घोषणा या फैसला बेमानी है, टैक्स फ्री का सीधा फायदा मिल रहा है मल्टीप्लेक्स और सिनेमाघरों को। फिल्म अच्छी बन पड़ी है, लोग देख रहे है, लोगों को फिल्म प्रभावित भी कर रही है, एक साधारण घर में पैदा लेनेवाला बच्चा अपनी प्रतिभा के आधार पर कैसे शिखर पर पहुंचता है, इसकी बानगी है – एम एस धौनी, दि अनटोल्ड स्टोरी।
जो लोग धौनी को जानते है, समझते है, उनके लिए ये फिल्म किसी रामायण से कम नहीं पर जिनको धौनी पसंद नहीं, उनके लिए भी ये फिल्म किसी इतिहास से कम नहीं। जरा फिल्म को देखिये। हर जगह कसावट, बिना विलेन के फिल्म, और लोग कुर्सी से चिपके है। डायलॉग भी बिहारी और झारखण्डी टोन लिये हुए, इसलिए हंसी खूब जमकर आ रही है। इस फिल्म में कुछ रोचक तथ्य भी जोड़े गये है, जैसे पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के वे बयान जो धौनी पर दिये गये, इस फिल्म में दिखाया गया है। जो लोग जानते है कि भारत की करारी हार के बाद, रांची के एक पत्रकार द्वारा कैसे धौनी के घर पर पत्थरबाजी करवायी गयी थी, विजूयल बनाने के लिए, उसका भी चित्रण है। चित्रण इसका भी किया गया है कि कैसे फार्म में नहीं चल रहे सचिन तेदुंलकर को लेकर, धौनी ने टीम भावना को उपर रखते हुए अपनी बात रखी थी। चूंकि फिल्म का नाम द अनटोल्ड स्टोरी से जुड़ा है, इसलिए धौनी के दिल पर राज करनेवाली युवती का बड़ा ही खुबसुरत और मार्मिक चित्रण इस फिल्म में देखने को मिला है, पर कुछ अनसुलझे सवाल भी है, जो फिल्मकार सुलझा नहीं पाये, दर्शकों को यह बात कुछ ज्यादा ही खटकती है।
महेन्द्र सिंह धौनी के एक बड़े भाई है – संभवतः नरेन्द्र सिंह धौनी। आखिर जब फिल्मकारों ने धौनी के परिवारों को दिखाया, और धौनी के जन्म से लेकर बात उठाई तो भला उनका बड़ा भाई नरेन्द्र कहां गायब हो गया। हो सकता है कि नरेन्द्र से किसी बात को लेकर, धौनी के परिवार को दूरियां हुई हो, पर उसे बचपन के रोल में तो दिखाया ही जा सकता था, इस फिल्म में तो महेन्द्र सिंह धौनी की एक बहन को दिखाया गया पर भाई को छोड़ दिया गया। यहां दर्शकों के साथ फिल्मकार द्वारा न्याय नहीं किया गया।
महेन्द्र सिंह धौनी, ऑल राउंडर है, वे अच्छा बैटिंग करते है, अच्छा फील्डिंग करते है, अच्छा विकेट कीपरिंग करते है, कभी – कभी वे बालिंग भी कर लेते है, पर मूलतः वे विकेटकीपर ही है, इस फिल्म में उन्हें केवल बैट भांजते हुए दिखाया गया, पर यह नहीं दिखाया गया कि वे कैसे फील्डिंग, कैसे विकेट कीपरिंग कर अपने देश का सम्मान बढ़ाया। यानी फिल्मकार ने विकेटकीपर को केवल बैट्समेन बनाकर प्रस्तुत किया।
धौनी के नेतृत्व में भारत ने वर्ल्ड कप जीता पर धौनी के नेतृत्व में भारत ने टी 20 पर भी कब्जा जमाया, पर हमें लगता है कि फिल्म की लंबाई बढ़ने के भय ने फिल्मकारों को वर्ल्ड कप तक ही रखने पर विवश किया होगा।
एक बात और फिल्मकारों ने दिउड़ी मंदिर को कैसे छोड़ दिया, क्योंकि धौनी तो कहा जाता है कि जब भी रांची आते है तो दिउड़ी मंदिर जरुर जाते है, उनके कारण ही दिउड़ी मंदिर की लोकप्रियता बढ़ी, खूब यहां के चैनलवालों ने भी इस मंदिर को धौनी से जोड़ा और फिल्मकारों को इसकी भनक तक नहीं लगी, आश्चर्य है।
पूरे फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत, राजेश शर्मा, दिशा पटानी ने बेहतर अभिनय से लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है, जबकि अनुपम खेर इस फिल्म में सामान्य नजर आये, ऐसे भी इस फिल्म में उनके लिए कुछ करने को भी न था। अंततः पूरे देश को एक बेहतरीन, साफ-सुथड़ी फिल्म बहुत दिनों के बाद मिली है, लोग पूरे परिवार के साथ इस फिल्म का आनन्द ले सकते है। रही बात झारखण्ड की, तो धौनी के लिए तो पूरा झारखण्ड ही उतावला है। आशा की जानी चाहिए कि पांडे परिवार द्वारा बनायी गयी यह फिल्म उनके कैरियर में भी धौनी की तरह धनवृद्धि का उपहार विशेष तौर पर लेकर आयेगी।

Saturday, October 1, 2016

सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तानियों के बैंड बजा दिये, पूरा पाकिस्तान सदमें में.................

सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तानियों के बैंड बजा दिये, पूरा पाकिस्तान सदमें में
पाकिस्तान की सड़कों पर पिछले दो दिनों से नहीं दीख रहे आतंकी...
भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक को क्या अंजाम दे दिया। पूरा पाकिस्तान ही सदमें में है। पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल आपरेशन के खात्मे के बाद, न तो लश्करे तैय्यबा, न हिजबुल मुजाहिद्दीन और न ही जैशे मोहम्मद के आतंकियों की ओर से इस संबंध में कोई बयान आये है। बात-बात में जमात उत दावा का आतंकी जो भारत के खिलाफ जहर उगलता था, उसकी भी बोलती बंद है। कल तक हर बात में भारत को देख लेनेवाले पाकिस्तान आतंकियों का समूह जो पाकिस्तान की सड़कों पर एक भारी भीड़ लेकर जमा होता था, वो दिखाई नहीं दे रहा। न तो पाकिस्तान के अखबार में उनके बयान नजर आ रहे है और न ही भारत के अखबारों में। चूंकि ये सर्जिकल वार उन आतंकियों के खिलाफ था, जो भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों में लिप्त होते हुए पाकिस्तान की सरजमीं को अपना जन्नत समझते है, ऐसे में उनकी प्रतिक्रिया ज्यादा जरुरी थी, पर हमें लगता है कि जिस प्रकार से भारतीय सेना ने उड़ी का बदला लिया है। अब वे भी समझ गये होंगे कि वे पाकिस्तान में भी सुरक्षित नहीं है। भारतीय सेना उनका हर जगह, उन्हें सबक सिखाने को अब तैयार है। भारत अब पाकिस्तान के इस गीदड़भभकी से भी डरने को तैयार नहीं कि पाकिस्तान एक न्यूक्लियर पावर है।
आश्चर्य इस बात की है कि पूरे पाकिस्तान के ये हाल है कि उसका प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सेना इन सब के बयान सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर समानता लिये हुए नहीं हैं, जबकि इसके ठीक उलट भारत की ओर से भारत के प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सेना के बयानों में समानता है।
यहीं नहीं पहले पाकिस्तानी नागरिक और अब भारतीय नागरिकता प्राप्त कर चुके अदनान सामी के ट्वीट ने पाकिस्तानियों के नींद उड़ा दिये है। अदनान सामी ने ट्वीट कर भारतीय प्रधानमंत्री और भारतीय सैनिकों को आतंक के खिलाफ कार्रवाई करने पर बधाई दे दी है। पाकिस्तानियों ने अदनान सामी के खिलाफ गालियों का बौछाड़ कर दिया है, स्थिति ऐसी है कि अदनान सामी के इस ट्वीट पर पाकिस्तानियों का गुस्सा सातवें आसमान पर है।
अगर पाकिस्तान की अखबारों की बात करें, तो उनके भी सुर बदले हुए है, अपने पोर्टलों पर कभी कुछ तो कभी कुछ लिखकर आत्मसंतुष्टि दिखा रहे है, जिसमें डॉन जिसे एक जिम्मेदार अखबार माना जाता है, उसकी ओर से भी गलतियां साफ दिखाई पड़ रही है, जैसे डॉन ने लिख दिया कि पाकिस्तान की ओर से जवाबी कार्रवाई में 8 भारतीय सैनिक मारे गये, जबकि इस खबर में कोई सच्चाई नहीं, बाद में उसने संशोधित किया। यानी एक सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तानियों के दिमाग में ऐसे स्ट्राइक किये है कि पूछिये मत।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री, वहां के सरकार में शामिल अन्य नेता व विपक्ष, यहां तक की मीडिया और सेना तक यह बात मानने को तैयार नहीं कि भारत ने उनसे उड़ी का बदला ले लिया, सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया पर विश्व के अन्य देशों के अखबारों ने सिद्ध कर दिया कि भारतीय सेना ने आक्रामकता दिखाई और पाकिस्तान को बैकफूट पर भेजने में कामयाबी हासिल किये। इसके लिए आप बीबीसी और न्यूयार्क टाइम्स का आधार ले सकते है।
हालांकि ये सवाल पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के लोग पूछ रहे है कि अगर उनके अनुसार भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की तो फिर उन्हें बेचैनी क्यूं है। वे इस घटना की गुरुवार से लेकर बार-बार निंदा क्यूं कर रहे है। जब मामला लाइन ऑफ कंट्रोल पर सामान्य घटना से जुड़ा है तो वहां के रक्षा मंत्री और सेना के चेहरे, यहां तक मीडिया में काम कर रहे लोगों के चेहरों पर हवाइयां क्यों उड़ रही। बार –बार परमाणु बम की धौंस कहा गयी। एक गैर-जिम्मेदारानां मुल्क की तरह बयानबाजी करनेवाला देश आज असहाय क्यूं है, ये पाकिस्तान को चिंतन करना चाहिए। क्या वजह है कि आज बांगलादेश, भूटान, अफगानिस्तान, भारत यहां तक ईरान आप से खफा है। एक समय था कि कश्मीर मुद्दे को ही लेकर विश्व के कई देश आपके साथ हो जाया करते थे, पर आपने आतंकियों को ऐसा पाला कि इक्के-दुक्के को छोड़ कोई आपके साथ नहीं।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा केरल में दिया गया बयान आज पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक है कि हमें गरीबी, बेरोजगारी के लिए लड़ना है, अपने देश को विकसित करने के लिए काम करना है, पर आप तो नरेन्द्र मोदी को सुनने को ही तैयार नहीं। आज पता नहीं कैसे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने स्वयं के द्वारा बुलाये गये फेडरल कैबिनेट की बैठक में गरीबी और बेरोजगारी से लड़ने की बात कह दी, पर वे ये कहना नहीं भूले कि भारत के इस आक्रामक प्रहार का जवाब देने के लिए उनकी सेना तैयार है। वे आज भी कश्मीर को लेकर अपनी नीति स्पष्ट कर दी, कि हम नहीं सुधरेंगे। हम भी जानते है कि पाकिस्तान कभी नहीं सुधरेगा, क्योंकि पाकिस्तानियों को जो इतिहास पढ़ाये जा रहे है, उस मूल में ही भारत के प्रति नफरत कूट-कूट कर भरा जाता है, ऐसे में आप पाकिस्तान से बेहतर संबंध किसी कालखंड में संभव नहीं। हम आपको बता दें कि अगर कश्मीर समस्या हल भी हो जायेगा तो ये मत भूलिये कि ये देश आपको शांति से रहने देगा, क्योंकि इसकी बुनियाद में ही भारत के प्रति नफरत भर दी गयी है, जबकि इसके विपरीत आप भारत के किसी भी शिक्षा केन्द्र में चल रहे पुस्तकों को टटोलें तो उसमें पाकिस्तान के खिलाफ एक भी शब्द नहीं मिलेगा, जिससे यह पता चलता हो कि भारत ने कभी अपने पड़ोसी के खिलाफ सपने में भी बुरा सोचा हो।
(यह आर्टिकल रांची से प्रकाशित समाचार पत्र आजाद सिपाही में आज के अंक में संपादकीय पृष्ठ 11 पर प्रकाशित हुई है।)

Friday, September 30, 2016

भारतीय सेना पहली बार लाइन ऑफ कंट्रोल के पार..................

मोदी ने किये पाकिस्तानी हुक्मरानों के बोलती बंद, भारतीय सेना पहली बार लाइन ऑफ कंट्रोल के पार
भारतीय जनमानस को बहुत बड़ी राहत देनेवाली खबर, बरसों बाद सुनने को मिली। भारत ने पाकिस्तान की नींद उड़ायी है। बरसो बाद भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर में एक बड़े हमले को अंजाम दिया और सर्जिकल स्ट्राइक को सफलता पूर्वक संपन्न किया है। इस घटना के साथ ही
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे विश्व को बता दिया कि अब भारत नियोजित आतंक को नहीं सहेगा, बल्कि उसका जवाब भी देगा। याद करिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण का समय, जब उन्होंने सभी पड़ोसियों को आमंत्रित कर अपने पड़ोसियों के साथ बेहतर संबंध बनाने की ओर कदम बढ़ाया था। याद करिये वे कभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर भी अचानक पहुंच गये थे, यानी उन्होंने लगातार पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने के प्रयास किये, यहां तक कि पठानकोट में हुए हमले पर भी उन्होंने कड़वे घूंट पीये। भारतीय प्रधानमंत्री के इस कड़वे घूंट पीने और बार-बार संयम अपनाने से पाक हुक्मरानों को लगा कि वे भारत के साथ पिछले इंदिरा युग से चले आ रहे प्रॉक्सी वार को मोदी युग में भी कामयाबी दिलाकर रख देंगे, पर उन्हें पता नहीं कि मोदी, तो मोदी है, जहां जाते हैं, अपनी वाकपटुता और कार्यशैली से सभी को अपना मुरीद बना लेते है, ऐसा मुरीद की सामने वाले शत्रुओं के परम मित्र भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिभा के कायल हो जाते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहनशीलता पर पाक हुक्मरानों ने तो यहां तक कह दिया कि अगर पाकिस्तान के खिलाफ भारत ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार किया तो उसके बम केवल शो पीस के लिए नहीं बना है, यानी हर वक्त धमकी, हर वक्त उन्माद फैलाने की बात, आतंकियों की भी एक जमात बनाना, एक अच्छा आतंकी और दूसरा बुरा आतंकी। हर वक्त भारत को देख लेने की बात, पाकिस्तान की ओर से सुनाई पड़ रही थी। जिसका जवाब पाकिस्तान को देना जरुरी था। इसी बीच उड़ी की घटना और 18 भारतीय जवानों की मौत ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अंदर से हिलाकर रख दिया। जब यह घटना घटी थी तो हम एक-दो दिनों के बाद रांची के खादी बोर्ड के मुख्यालय में पहुंचे थे, जहां खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ, अरुण श्रीवास्तव और कई गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे। मैंने उसी समय कहा था कि उड़ी घटना के बाद, आज जो सोशल साइट्स या भारत के विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बेवजह हमले हो रहे है, शायद उन्हें पता नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दूसरे मिट्टी के बने हुए है। मैंने उसी समय कह दिया था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि वे इसका बदला जरुर लेंगे तो इसका मतलब है कि वे बदला जरुर लेंगे और लीजिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बदला ले लिया। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो साफ कह दिया था कि कश्मीर के गीत गानेवाले पाकिस्तान के हुक्मरानों से हमें अब बात नहीं करनी। उन्होंने साफ कहा कि आतंकी कान खोलकर सुन लें, हमारा देश उड़ी हमले के शहीदों की कुर्बानी कभी नहीं भूलेगा। उन्होंने यह भी कहा था कि हमसे हजार साल लड़ने की बात कहनेवाले पाक के हुक्मरानों की चुनौती मैं स्वीकार करता हूं।
ऐसे में हम अपने माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बातों पर कैसे विश्वास नहीं करते। गर्व करिये, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज इतिहास बनाया है, पहली बार 1971 में बनी लाइन ऑफ कंट्रोल को भारतीय सेना ने पार किया, जिसका ऐलान संवाददाता सम्मेलन कर भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह ने किया। उन्होंने बताया कि पैरा कमांडोज हेलिकॉप्टर से एलओसी पहुंचे, फिर पैदल ही पाक के कब्जे वाले कश्मीर में 3 किलोमीटर अंदर घुसकर आतंकियों के 7 कैम्प ध्वस्त कर दिये। इस घटना से पाकिस्तान इतना तिलमिलाया कि उसके प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस स्ट्राइक की निंदा कर दी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का बयान था कि यह सर्जिकल स्ट्राइक पाकिस्तान पर हमला है, उसे कमजोर समझने की कोशिश न समझा जाये।
लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह के अनुसार उन्हें विश्वस्त सूत्रों से सटीक जानकारी मिली थी कि आतंकी एलओसी के साथ लॉन्चपैड्स पर इकट्ठे हुए है। उनका मकसद भारत में घुसपैठ करने आतंकी हमले को अंजाम देना था। भारत ने उन लॉन्चपैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दिया। इन हमलों के दौरान आंतकियों और उनके समर्थकों को भारी नुकसान हुआ है। कई आतंकियों को मार गिराया गया है। इस घटना की जानकारी पाकिस्तानी सेना को भी दे दी गयी। इधर पाकिस्तान इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस ने स्वीकार किया कि भारत ने भीमबेर, हॉटस्प्रिंग, केल और लिपा सेक्टर पर हमले किये है। इधर पाकिस्तान सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि इस हमले में उसके दो सैनिक मारे गये और नौ घायल हुए। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के इस बयान को पाकिस्तानी अखबार डान ने प्रमुखता दी है। हमें अपने भारतीय सेना पर गर्व है, हम भारतीयों को गर्व है, ऐसे कमांडोज पर जिन्होंने उड़ी की घटना का बहुत जल्द ही बदला ले लिया। हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उन नीतियों की भी प्रशंसा करते है, जिन नीतियों के कारण आज पाकिस्तान पूरे विश्व में मुंह दिखाने के लायक नहीं। हम प्रशंसा करते है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जिनके कार्यों से आज पूरे विश्व में भारत का मान बढ़ा है, भारत की साख बढ़ी है और विश्व के विभिन्न देशों में रह रहे भारतीय शान से स्वयं को भारतीय कहलाने पर गर्व महसूस कर रहे है।
(यह आर्टिकल आज रांची से प्रकाशित आजाद सिपाही नामक समाचार पत्र में संपादकीय पृष्ठ संख्या 11 पर प्रकाशित हुई है।)