Tuesday, May 31, 2016

अर्जुन मुंडा ने शुरू की झारखण्ड में लालू स्टाइल में राजनीति...

झारखण्ड का अर्जुन लालू बनेगा, लालू स्टाइल में राजनीति करेगा और भाजपा को डूबो कर अपने अपमान का बदला लेगा। 29 मई 2016, झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा धनबाद के ब्राह्मण बरारी बस्ती में बांगला व खोरठा भाषा में लालू स्टाइल में भाषण दे रहे थे। जैसे लालू यादव का भाषण ब्राह्मण विरोध पर शुरु होता है और ब्राह्मण विरोध पर ही खत्म होता है, ठीक उसी स्टाइल में वे भाषण दे रहे थे। वे उपस्थित जनता को आह्वान कर रहे थे कि जनता भ्रष्ट अधिकारियों को ओखली में कूटे। वे धनबाद के डीसी कृपानन्द झा और एसएसपी सुरेन्द्र कुमार झा पर खूब बरसे। और तल्ख टिप्पणी करते हुए, सीधे कहा कि ये अधिकारी धनबाद को बिहार का झाझा शहर न बनायें। वे सतीश महतो के निमंत्रण पर जो इस कोयलानगरी में नया – नया आउटसोर्सिग में हाथ आजमा कर बहती गंगा में हाथ धोना चाहता है, उसका राजनीतिक कद बढ़ाने के लिए यहां पहुंचे थे। अर्जुन मुंडा सीधे तौर पर स्थानीय प्रशासन को इशारों ही इशारों में ये कहना चाहते थे कि यहां के अधिकारी सतीश महतो को हर प्रकार की सहूलियत प्रदान करें, ताकि सतीश अपना दबदबा कायम कर, इस कोयला नगरी में एक आतंक के रूप में उभर सकें, जिसका आर्थिक फायदा अर्जुन मुंडा जैसे नेताओं को भी मिल सकें।
और अब सवाल भाजपा के दिग्गज नेताओं से...
1. अगर अर्जुन मुंडा जैसा व्यक्ति जो राज्य का पूर्व मुख्यमंत्री रह चुका है, वो सार्वजनिक सभा में यह कहता है कि जनता भ्रष्ट अधिकारियों को ओखली में कूटे तो क्या जनता को यह अधिकार नहीं कि वह भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को भी ओखली में कूट दें, जिसके कारण झारखण्ड तबाह और बर्बाद हो गया, या हो रहा है।
2. धनबाद के डीसी कृपानन्द झा और एसएसपी सुरेन्द्र कुमार झा अगर ब्राह्मण समुदाय से है तो उन पर जातिगत टिप्पणी करना कहा तक जायज है, और उन्हें भ्रष्ट बताना कहां से जायज है, क्या अर्जुन मुंडा के पास एक विशेष प्रकार का चश्मा है, जिससे उन्होंने पता लगा लिया कि वे दोनों भ्रष्ट है, और अगर ये दोनों भ्रष्ट है तो उन्हें सजा देने-दिलाने का काम अर्जुन मुंडा का है क्या?
3. कल जब अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री थे, तो यही अधिकारियों का दल इनकी आरती उतारता था तो बहुत अच्छा था और आज जब ये अपना काम करने में लगा हैं और इनकी नहीं सुन रहा तो भ्रष्ट हो गया। ये तो वहीं बात हो गयी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में – कड़वा-कड़वा थू-थू और मीठा-मीठा चप-चप।
4. अपना राजनीतिक कद बढ़ाने के लिए एक नया भस्मासुर पैदा करने से क्या धनबाद की स्थिति सुधर जायेगी? क्या धनबाद के लोग नहीं जानते है कि ये सतीश महतो कौन है और इसका मकसद क्या है?
और अब अपनी बात...
झारखण्ड की जनता को यह जान लेना चाहिए कि...
झारखण्ड में चाहे बाबू लाल मरांडी हो, या अर्जुन मुंडा या शिबू सोरेन या हेमंत सोरेन या कोई भी नेता – सच्चाई यहीं है कि ये सभी अपना पीए या सलाहकार ब्राह्मण जाति के समुदाय के लोगों को ही रखते है, या रखे हुए है। किसी कारण से अगर वे सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन से नीचे आते है तो वे इनका संरक्षण करने के लिए, हद से गुजर जाते है। ...पर जरा देखिये, सार्वजनिक सभाओं में इनका चरित्र कैसे उजागर होता है? बस मौका मिलना चाहिए, इन्हें ब्राह्मणों को गाली देने का, ये दे चलते है, क्योंकि ये राजनीतिबाज जो ठहरे, राजनीतिबाजी से कैसे स्वयं को अलग कर सकते है? देश – समाज भाड़ में जाये, इससे उन्हें क्या मतलब। उन्हें तो मतलब है किसी ऐसे समुदाय को गाली देने से, जिससे आज की जनता बहुत ही प्रसन्न होती है और वह जाति है –ब्राह्मण, क्यों अर्जुन मुंडा जी।

Saturday, May 28, 2016

2 साल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासनकाल के...

अगर एक शब्द में कोई पूछे इस सवाल के जवाब तो मैं यहीं कहूंगा – प्रशंसनीय।
याद करिये, जब नरेन्द्र मोदी ने शासन का बागडोर संभाला था तो देश की क्या स्थिति थी? सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार और पूरे विश्व में भारत की गिरती साख का था और इन दोनों मुद्दों पर नरेन्द्र मोदी ने शानदार तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहण किया। दो साल हो गये पर विपक्षी दल के किसी भी नेता में ये हिम्मत नहीं कि नरेन्द्र मोदी ही नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल किसी भी मंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा दें, जब इन विपक्षियों को कुछ भी नहीं मिल रहा तो वे ऐसे-ऐसे आरोप लगा रहे है, जिसे देख और पढ़कर सामान्य जनता अपनी हंसी को नहीं रोक पा रही, उन्हीं आरोपों में से एक आरोप है केजरीवाल की पार्टी द्वारा लगाया गया प्रधानमंत्री पर डिग्री संबंधी आरोप है, जिसका कोई भ्रष्टाचार से लेना-देना नहीं, सिवाय रायता फैलाने के। भ्रष्टाचार पर विराम लगाकर और दूसरी ओर संपूर्ण विश्व में भारत की साख को स्थापित कर नरेन्द्र मोदी ने सिद्ध कर दिया कि भारत में फिलहाल उनका कोई विकल्प नहीं। अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, संयुक्त अरब अमीरात साथ ही पड़ोसी भूटान, नेपाल, चीन, पाकिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, बांगलादेश जैसे देशों के साथ मधुर संबंध स्थापित कर भारत की शान बढ़ा दी। भारत और बांगलादेश सीमा विवाद का 40 साल पुराना विवाद सदा के लिए समाप्त कराया। जब नेपाल में भूकम्प के रूप में त्रासदी आयी, सबसे पहले भारत नेपाल के साथ खड़ा हुआ, जिसका संपूर्ण विश्व ने तहेदिल से समर्थन और प्रशंसा किया, यहीं नहीं यमन में जब भारतीयों के उपर संकट गहराया, तब भारत का उस वक्त कौन ऐसा देश था, जिसने प्रशंसा नहीं किया, यहां पर तो भारत ने विदेशियों को भी बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कल तक नरेन्द्र मोदी को वीसा नहीं देने की बात करनेवाला अमरीका आज उनके कशीदे पढ़ रहा है, आखिर क्या खास है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में...
नरेन्द्र मोदी की खासियत पर ध्यान दीजिये...
देश में तीन ही शानदार प्रधानमंत्री हुए, जिन पर किसी भी किस्म का दाग नहीं, जो अपनी काबिलियत के आधार पर प्रधानमंत्री बने, न कि किसी की कृपा या कहने पर...
वे पहले प्रधानमंत्री थे – लाल बहादुर शास्त्री, दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी और तीसरे नरेन्द्र मोदी।
बाकी जितने लोग हुए, उन्होंने किसी न किसी की कृपा या जोड़-तोड़ का सहारा अवश्य लिया। आज नरेन्द्र मोदी को ही लीजिये, उन्होंने परिवारवाद पर चोट करते हुए, दिखाया कि उनके लिए देश ही सर्वोपरि है, जब से वे सत्ता में आये है, तब से लेकर आज तक उन्होंने कभी भी छुट्टी ही नहीं ली, बहुत ही कम खर्च में वे कई देशों की यात्रा की, साथ ही भारत के संदेश को वहां के जन-जन तक पहुंचाया, ये पहला मौका था कि जब भारत का प्रधानमंत्री, दूसरे देशों में बैठे अपने नागरिकों और वहां की जनता के साथ, उसी धरती पर इस प्रकार संवाद स्थापित कर रहा था, जैसे लगता हो कि वह कोई वहां चुनावी सभा को संबोधित कर रहा हो।
पहली बार भारत के किसी प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ को योग पर झकझोरा और पूरे विश्व ने भारत की देन योग को स्वीकारा, देखते ही देखते संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत के योग को स्वीकृत करते हुए 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रुप में मनाने की घोषणा की। यहीं नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता को जनांदोलन बना दिया, आज पूरा देश स्वच्छता अभियान से जुड़ गया है, कई निजी स्वैच्छिक संस्थाएं और बड़े-बड़े नेता-अभिनेता इस अभियान से जुड़कर देश की दशा – दिशा बदलने के लिए निकल पड़े। देश की बेटियों को मान बढ़ाया, बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ अभियान चलाया, सुकन्या समृद्धि योजना से बालिकाओं के बेहतर भविष्य के लिए कार्यक्रम चलाये। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना चलाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए विशेष योजना चलायी। जन-धन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना चलाकर देश की गरीब जनता को एक नई आर्थिक ताकत दी, वहीं स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, डिजिटल इंडिया आदि चलाकर देश को हर स्तर पर संबल प्रदान करने की सफल कोशिश की। पहली बार बिना किसी भेदभाव के सबको एक साथ ले चलने की बात कही गयी, ये नहीं कि अल्पसंख्यक कहकर उन्हें बहुसंख्यक से अलग करने और दलित-पिछड़े कहकर उन्हें अन्य से भेदभाव करने का बीज रोपा गया। सबका साथ- सबका विकास के नारे के साथ सभी को बराबर का मौका देते हुए, सभी को देश बनाने के लिए उनके मनोबल को बढ़ाया गया, जिससे देश काफी आगे निकलने की कोशिश में है। जरा देखिये जहां पूरा विश्व आर्थिक मंदी का शिकार है, वहीं भारत की आर्थिक विकास दर आज भी 7.57 प्रतिशत है, जो पूरे विश्व को आश्चर्यचकित कर रहा है, ये सब नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता का कमाल है, ये कमाल है, उस व्यक्ति का जिसकी सोच पूर्णतः देश को समर्पित है, यहीं कारण है कि वर्तमान अमरीकन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इसी सोच पर टिप्पणी की थी कि यह व्यक्ति की पहली और अंतिम सोच भारत की प्रगति है। पर्यटन को उद्योग का दर्जा देना हो, लोगों की क्रय शक्ति बढ़ानी हो, देश की अर्थव्यवस्था को एक मुकाम देना हो, सब में प्रधानमंत्री का विजन क्लियर है। हाल ही में वे 24 अप्रैल को जमशेदपुर आये, मौका था राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर पंचायत प्रतिनिधि सम्मेलन का, उन्होंने पंचायत प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा था कि वे चाहते है कि गांधी के सपनों का भारत बनाएं, और ये तभी बनेगा जब गांव की पंचायत सशक्त होगी, जब गांव के पंचायत सही निर्णय लेने प्रारंभ करेंगे, वे एक साल में एक योजनाएं बनायेंगे और उसे मूर्तरूप देंगे, इसी से ग्रामोदय होगा और जब ग्रामोदय होगा तो भारत के उदय होने से कोई रोक नहीं सकता। आज का प्रधानमंत्री अपने बेटे या अपनी पत्नी को सुख प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री नहीं बना है, उसकी विजन है, भारत निर्माण की, वह निकल पड़ा है, निर्माण के लिए, भारत बन रहा है, भारत बदल रहा है, आज का युवा भी अपने प्रधानमंत्री के साथ है, तभी तो बेंगलूरु के एक शिक्षण संस्थान में कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने वहां उपस्थित युवाओं से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से संबंधित कुछ सवाल पूछे तो उन्हें उनकी आशा के अनुरूप उत्तर नहीं मिले। ये घटना साफ बताती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की युवाओं की सोच बदली है और जब युवा की सोच बदलेगी तो देश का तकदीर जरूर बदलेगा। मेरा भारत बदल रहा है, हमारा भारत बदल रहा है, इसमें कोई मत नहीं कि पहली बार हुआ है कि विश्व में कही भी भारतीय है, आज वह शान से बोल रहा है कि वह भारतीय है, वह जहां भी हैं, उसके दिल में भारत का दिल धड़क रहा है, और ये सब हुआ है मात्र दो वर्षों में, जरा सोचिये दो वर्षों में ये हाल है, तो पांच वर्षों में क्या होगा? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी आप के इस बीते दो साल के लिए आपको दिल से बधाई।

Monday, May 23, 2016

।। अथ चपलकांत कथा ।।

बहुत दिनों की बात है...
जंगलों से आच्छादित एक भूखण्ड प्रदेश था...
जहां चपलकांत नामक एक सियार पत्रकार था...
उसकी धूर्त बातों से अनभिज्ञ जंगलों के अन्य जीव-जंतु उसे महान बुद्धिजीवी समझते और चपलकांत उस भूखण्ड प्रदेश में सारे जीव-जंतुओं को बेवकूफ बनाकर राज किया करता था। उसकी धूर्तता से अनभिज्ञ उसके ज्ञान के कायल सत्तापक्ष और विपक्ष के लोग भी थे। उसकी पत्रकारिता से भय खा कर कई प्रशासनिक अधिकारी उसकी सेवा में लगे रहते, और उसे अपने – अपने विभागों की सुंदर-सुंदर कॉटेजों और अतिथिगृहों में आनन्द की सारी सामग्रियां उपलब्ध किया करते। चपलकांत अपनी प्रिय पत्नी और बच्चों के साथ परम आनन्द की प्राप्ति करता, साथ ही अगर सेवा के दौरान कुछ गड़बड़ियां दीख जाती तो वह पत्रकारिता का धौंस दिखाकर जंगल के छोटे-छोटे कर्मचारियों को अपना भय दिखाना नहीं भूलता...
उसकी इस धौंस और धूर्तता से धीरे-धीरे भूखण्ड प्रदेश के सभी वन्य प्राणी परेशान होने लगे...
पर सत्ता के सर्वोच्च सिंहासनों तक उसकी धौंस और उसकी पत्नी के भी एक न्यूज पोर्टल के संपादक बन जाने से सभी की नींद उड़ गयी थी, कि अब क्या होगा...क्योंकि वह नाना प्रकार के कुटिल हरकतें करता और पुरस्कार के लालचियों और घटियास्तर के भ्रष्ट लोगों को श्रेष्ठनायक का पुरस्कार देकर अपने आपको और मजबूत करता चला जाता...
यहीं नहीं भूखण्ड प्रदेश में कार्यरत सत्तावचन प्रसारित भवन में भी उसकी धमक रहती और वह इसका फायदा उठाने में कोई कोताही नहीं बरतता...
उसकी इस हरकत से धीरे-धीरे उस भूखण्ड प्रदेश की पत्रकारिता की छवि धूमिल होने लगी। भूखण्ड प्रदेश के कई बुद्धिजीवियों ने भूखण्ड प्रदेश में रहनेवाले सभी जीव-जंतुओं को उससे सावधान करने का मन बनाया...
तभी भूखण्ड प्रदेश में चल रहे एक महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थान में एक भयंकर ज्ञान-विस्फोट हुआ, जिसमें उसकी हवा निकल गयी, यहीं उसे पहला झटका मिला...फिर भी उसे लगा कि जब वह चपलकांत ही है, तो इस प्रकार की झटकों से उसके सम्मान को कुछ नहीं होता, क्योंकि सारे संसार में उसके जैसे लोग भरे पड़े हैं, ऐसे भी उसका जन्म ही इसी प्रकार की हरकतों को करने के लिए हुआ है...
इसलिए वह हर प्रकार के हथकंडों में निपुण होता जाता...कभी वो गायक बन जाता, तो कभी साहित्यकार, तो कभी प्रोफेसर तो कभी विद्यार्थी, यानी जब जैसा तब तैसा...पत्रकार तो था ही...
इसी चक्कर में उसने सर्वश्रेष्ठ धनपशु बनने का लालसा पा लिया...
इस लालसा को पा लेने के बाद उसे परमज्ञान हुआ कि ये तो भूखण्ड प्रदेश है...
यहां तो सारे के सारे नेता और अधिकारी गधे और मूर्ख है...एक सबसे ज्यादा तेज तो वहीं हैं, जिसकी ज्ञान से भूखण्ड प्रदेश के सारे जीव-जंतु हैरान है...
इसलिए, उसने एक स्वज्ञान आधारित एक स्मारिका निकालने की सोची, जिससे उसे अपार धन हासिल हो...उसने भूखण्ड प्रदेश के सारे नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों के आगे नाचना शुरू किया...जिससे उसकी रही-सही इज्जत भी धूल में मिल गयी, साथ ही उसके परम मित्रों में भी जो सम्मान बचा था, वह भी धुल गया...
पर उसकी धन कमाने की लालसा नहीं गयी...
वह धन कमाने के चक्कर में अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी तथाकथित धूर्तनिष्ठ पत्रकारिता का चरणामृत चखा दिया...
जिससे बच्चे बड़ी तेजी से उसके कुकृत्यों के शिकार होने लगे...
वो कहावत है न
बाढ़हु पुत पिता के धर्में, खेती उपजे अपना कर्मे
जब पिता के धर्म पर पुत्र आगे बढ़ सकता है, तो पिता के कुकर्म पर बच्चे नीचे जायेंगे ही।
उस चपलकांत सियार के बच्चे सत्यनिष्ठ बनना तो दूर, धूर्तनिष्ठ होने लगे...
पर सर्वश्रेष्ठ धनपशु बनने के चक्कर में चपलकांत सियार नामक पत्रकार इतना खो गया कि उसे पता ही नहीं चला कि उसका सारा तेज धीरे – धीरे कुकर्मों से युक्त होकर धूमिल होता जा रहा है...
एक दिन वह भूखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके मातहत अधिकारियों को अपने ज्ञान का स्वाद चखाने के लिए ताना-बाना बुना, पर उसकी चालाकी को जान लेने के बाद भूखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके मातहत काम करनेवाले अधिकारियों ने उसकी एक न सुनी और उस धनपशु चपलकांत को औकात बता दी और कहा कि वह ज्यादा काबिल न बने, नहीं तो उसे लेने के देने पड़ जायेंगे...
बेचारा चपलकांत, उसकी रही-सही बुद्धि भी खत्म हो गयी...
और शीर्ष पर रहनेवाला चपलकांत धड़ाम से जमीन पर आकर गिर पड़ा...
शिक्षा – क. पत्रकारिता में ईमानदारी अवश्य बरतनी चाहिये...
ख. आपके किये कुकर्म आपको उपर नहीं, बल्कि नीचे ले जाते हैं...
ग. चरित्रवान होना, सारी सफलता की कुंजी है, इससे ईश्वर प्रसन्न होते हैं...

Wednesday, May 18, 2016

हम ऐसी पत्रकारिता की कड़ी भर्त्सना करते हैं.......

30 दिसम्बर 2015
स्थान – सूचना भवन, रांची।
कार्यक्रम – मुख्यमंत्री रघुवर दास की ‘सीधी बात’।
एक शिकायत है - लातेहार के बालूमाथ में उत्क्रमित मध्य विद्यालय बरहनियां खांड़ में कार्यरत पारा शिक्षक रमेश पांडेय हमेशा अनुपस्थित रहते है। ये प्रखण्ड स्तर पर दैनिक जागरण के पत्रकार भी है। पत्रकार होने के कारण दबंगई भी दिखाते है, जिनके डर से कोई बोलता नहीं। इनके घर में दो पहिया वाहन है, आर्थिक रुप से संपन्न है। इसके बावजूद बीपीएल की सूची में भी दर्ज है। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जिला के उपायुक्त को जांच का आदेश दिया। जांच में आरोप सही पाया गया और रमेश पांडेय को पारा शिक्षक के पद से निलंबित कर दिया गया।
1 फरवरी 2016
स्थान – सूचना भवन, रांची।
कार्यक्रम – मुख्यमंत्री रघुवर दास की ‘सीधी बात’।
आनन्द कुमार की शिकायत थी कि चतरा का उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय टिलरा हेट-आहर पिछले एक साल से बंद है, जिसमें लगभग 50 विद्यार्थी अध्ययनरत थे, विद्यालय के बंद रहने से सारे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो गयी। विद्यालय के प्रधानाध्यापक मालिक बाबू ग्राम टिलरा के जन-वितरण प्रणाली के डीलर और प्रखण्ड स्तर पर एक प्रेस समूह में बतौर संवाददाता कार्य करते है, यहीं नहीं जनाब ठेकेदारी भी करते है। इन्होंने एक और कमाल किया है विद्यालय के भवन निर्माण के लिए वर्ष 2008 में 8 लाख रुपये आये थे, उसे बिना कार्य संपन्न कराये ही निकाल लिया।
जैसे ही मुख्यमंत्री रघुवर दास की ‘सीधी बात’ में यह मामला आया, मुख्यमंत्री ने संबंधित जिला शिक्षा अधीक्षक को मामले की जांच करने और इस पर त्वरित कार्रवाई करने का आदेश दिया। पूरे मामले की जांच हुई। आरोप सही पाया गया। मालिक बाबू की सेवा समाप्त कर दी गयी और इनके खिलाफ मयूरहंद थाने में प्राथमिकी भी दर्ज करा दी।
18 मई 2016
रांची से प्रकाशित सारे अखबारों ने मुख्य पृष्ठ पर खबर छापी है कि ताजा टीवी के पत्रकार अखिलेश प्रताप सिंह उर्फ इंद्रदेव यादव की हत्या उग्रवादी संगठन टीपीसी ने करायी है, मामला लेवी से जुड़ा है। चतरा एसपी के बयान से बताया गया है कि पत्रकार इंद्रदेव यादव राजपुर थाना क्षेत्र में डीवीसी के तहत 33 हजार पोल लगाने का ठेका लिया था। वह तीन साल से काम कर रहा था। उग्रवादी संगठन टीपीसी ने सात लाख रुपये लेवी की मांग की। लेवी नहीं देने पर पत्रकार की हत्या 12 मई को 9.30 बजे रात्रि में कर दी गयी।
कुछ अन्य घटनाएं...
जब मैं ईटीवी धनबाद में कार्यरत था, तब उस समय भी दो हृदय विदारक घटनाएं घटी थी, जब एक पत्रकार से ठेकेदार बने व्यक्ति की हत्या कर दी गयी थी और दूसरा मैथन के हिन्दुस्तान संवाददाता पर जानलेवा हमला हुआ था। जिसने जानलेवा हमला किया था, वह हमला का जो कारण बताया था, वह बड़ा ही शर्मनाक था। यहीं नहीं 31 दिसम्बर 2006 को तो धनबाद के ही गांधी सेवा सदन में धनबाद के तथाकथित पत्रकारों का समूह मुर्गा तक कटवा दिया था, शराब की बोतले तक खोल दी थी, सिगरेट तक फूंक डाले गये थे जबकि सबको पता है कि गांधी से संबंधित किसी भी सदन में इस प्रकार की हरकतों को बर्दाश्त नहीं किया जाता, फिर भी पत्रकारों ने ऐसी हरकत की। मैंने पत्रकारों के इस हरकतों को अपने ईटीवी पर दिखाया, नतीजा यह हुआ कि धनबाद के सारे मीडिया हाउस में बैठे शीर्षस्थ महानुभावों ने संयुक्त रुप से मेरे खिलाफ मोर्चा खोला और मेरे खिलाफ अनाप – शनाप एक अखबार में छपवाने लगे, उन्हें लगा कि मैं इससे डर जाउंगा, मैंने उनका मुकाबला किया और अपनी उपस्थिति शानदार ढंग से दर्ज करायी।
ये दृष्टांत है – आज के पत्रकारों के। मैं यह नहीं कहता कि झारखण्ड या अन्य जगहों के सारे पत्रकार ऐसे ही है, पर हां, इतना जरूर कहूंगा कि इनकी संख्या बहुतायत है और इनकी हरकतों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। कुछ लोगों को तो मैं देख रहा हूं, जिनसे ये आशा की जा सकती है कि वे पत्रकारिता के क्षेत्र में आदर्श स्थापित करेंगे, जिसे देखकर आनेवाली पीढ़ी सीख लेंगी, वे मर्यादा को तोड़ने में ज्यादा रूचि दिखा रहे है। कोई राजनीतिज्ञों की भक्ति में ऐसे लग गया कि उसे राज्यसभा पहुंचने में परम आनन्द की प्राप्ति हो रही है, कोई सूचना आयुक्त बनकर स्वयं को धन्य कर चुका है, कोई बाडीगार्ड लेकर घूम रहा है और शान बघार रहा है, कोई कुकृत्यों से धन इकट्ठा कर रहा है, कोई अपनी पत्नी के नाम पर पोर्टल चला रहा है और नाना प्रकार से धन जुटाने के लिए वह सारी हरकतें कर रहा है, जिसे पत्रकारिता इजाजत नहीं देती। आश्चर्य इस बात की भी है कि ऐसे लोग ही उन लोगों को प्रवचन दे रहे है, जिन्होंने अपनी जिंदगी में खासकर पत्रकारिता के क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। कमाल है, जो पग-पग पर पत्रकारिता को अपनी जागीर बनाकर, स्वयं के जमीर को बेच डाला, वे पुरस्कृत हो रहे है, और जो किसी के आगे सर नहीं झुकाया, वे उसे कोस रहे है, यह कहकर कि अरे वो गधा है, वो क्या जाने की पत्रकारिता क्या है?
कुछ लोग तो यह भी कहेंगे कि पत्रकार क्या करे बेचारा। उसे तो अखबार वाले और इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले कुछ भी नहीं देते। मैं कहता हूं कि अगर कुछ नहीं देते तो इसका मतलब कि तुम जहां रहते हो, उसका हक छीन लोगे, उस पर दबंगई दिखाओगे। अगर अखबार वाले और इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले तुम्हें कुछ नहीं देते, तो तुम उनके यहां काम क्यों कर रहे हो, आखिर क्या वजह है कि तुम बिना पैसे के काम करने को तैयार हो, और उनकी सेवा को भी तैयार हो। मैं बताता हूं कि आखिर ऐसा तुम क्यों करते हो। वह हैं – झूठी इज्जत और पत्रकारिता की झूठी धौंस का तिलिस्म, जो तुम्हें इनके प्रति खींचता है और तुम जब तक जिंदा रहते हो, इस झूठी शान में अपनी जिंदगी गंवा देते हो, साथ ही अपने परिवार को और आनेवाले पीढ़ी को बर्बाद कर देते हो।
कमाल है, आजकल झारखण्ड में कुकुरमुत्ते की तरह पत्रकारों के हित के लिए लड़नेवाले संगठन भी खड़े हो गये है, जिन्हें कल तक कोई नहीं जानता था, आज लाखों-करोड़ों में खेलने लगे है। रांची, धनबाद, जमशेदपुर, गिरिडीह ही नहीं बल्कि दिल्ली में भी भाषण दे रहे है, किताबे छपवा रहे हैं, मंत्रियों और नेताओं को बुलाकर स्वयं महिमामंडित हो रहे हैं और चिरकूट टाइप के लोग उन्हें वाह-वाह करके आनन्दित हो रहे है। मैं कहता हूं कि अगर यहीं हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं कि जनता इन्हें पटक-पटक कर मारेगी...
कमाल है, आजकल मैं यह भी देख रहा हूं कि ये संगठन सरकार से पत्रकारों के लिए सुविधा मांग रहे हैं, पर जहां ये काम कर रहे होते है, वहां पर उन्हें इज्जत बचाने के लिए कुछ रोटी का प्रबंध हो जाये, कुछ पैसे मिल जाये, वहां आंदोलन करने और कराने में इनकी नानी मर जाती है, क्योंकि वे जानते है कि जैसे ही उन संस्थानों में ये आंदोलन करने जायेंगे, वहां पहले से ही रखे बाउंसर इनका ऐसा इलाज करेंगे कि इनकी सारी नेतागिरी ही तेल लेने चली जायेगी...
अंत में – जो चरित्रवान पत्रकार है, उन्हें कहीं कोई दिक्कत नहीं। दिक्कत तो उन्हें है, जो नेताओं की चरणवंदना या अधिकारियों की चाटुकारिता करते है, तभी तो इसी रांची के एटीआई में एक कार्यक्रम में एक अधिकारी ने कह डाला था कि आप पत्रकारों और माननीय मुख्यमंत्री के बीच में तो पति-पत्नी का संबंध होता है, पर किसी पत्रकार ने इसकी आलोचना तक नहीं की थी, सभी मन ही मन आनन्दित हो रहे थे, अंत में किसने इस पर प्रतिकार किया, किसने इसकी आलोचना की, वहां जो पत्रकार होंगे, उन्हें जरुर पता होगा। हमें लगता है कि इस पर अब ज्यादा लिखने की आवश्यकता नहीं।

Tuesday, May 10, 2016

प्रभात खबर की लीला, प्रभात खबर ही जाने...

7 मई 2016
प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश के प्यारे, अनुज का डॉ. के. के. सिन्हा पर केन्द्रित दो पृष्ठों का आलेख छपा है। इन दो पृष्ठों में डॉ. के के सिन्हा की जमकर आरती उतारी गयी है। उन्हें इस प्रकार से पेश किया गया है, जैसे वे साक्षात् मुक्तिदाता – मोक्षदाता हो। जिनके दर्शन मात्र से सारे रोग भाग खड़े होते है। आलेख की शुरूआत होती है – जब नहीं दिखती कहीं कोई उम्मीद, तब याद आते है डॉ. के के सिन्हा। इस आलेख में क्या खास है, सर्वप्रथम उसे जानिये –
1. डॉ. के के सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को ठीकठाक बताया है, पर झारखण्ड के अन्य 90 प्रतिशत राजनीतिज्ञों को बेवकूफ बताया है।
2. जो लोग डाक्टर को भगवान का दूसरा रूप मानते है, उन्हें डॉ. के के सिन्हा अनपढ़ और बेवकूफ बताता है। वह उन हिन्दुस्तानियों को भी बेवकूफ मानता है, जो पूजा करते है। उसके अनुसार इन हिन्दुस्तानियों के पास दूसरा कोई चारा नहीं है, साधन भी नहीं है, इसलिए वे भगवान के आगे हाथ जोड़ते है, लेकिन वह भगवान को नहीं मानता, इसलिए उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
3. डॉ. के के सिन्हा अपने बयान में भारतीयों को यह भी कहा है कि भारतीय भिखारियों की तरह खाना खाते हैं।
4. वह यह भी कहता है कि जवाहर लाल नेहरू में कुछ कमियां थी, हिन्दुस्तान का बंटवारा नहीं होता, अगर नेहरू प्रधानमंत्री बनने की इच्छा नहीं रखते। वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दूबे और जगन्नाथ मिश्र के खिलाफ भी अनाप-शनाप बयान दिया है।
और अब अपनी बात...
आम तौर पर इस प्रकार के आलेख तभी छपते है, जब कोई विशेष दिन हो या कोई विशेष क्षण...
आखिर इस प्रकार के किसी व्यक्ति विशेष को महिमामंडित करने के आलेख छापने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी? कुछ न कुछ तो बात जरुर होगी, क्योंकि बिना आवश्यकता के तो प्रभात खबर कुछ छापता ही नहीं और ऐसे भी 7 मई को कोई डाक्टर दिवस या मरीज दिवस तो था ही नहीं, फिर इसकी जरुरत क्यों पड़ गयी? हो सकता है कि प्रभात खबर के किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को के के सिन्हा से दिखाने की जरूरत पड़ गयी हो या हो सकता है कि प्रभात खबर ये देख रहा हो कि के के सिन्हा नामी गिरामी डाक्टर हैं, उनसे ऐसा संबंध बनाया जाय कि आराम से एक फोन घुमाने पर ही उनका नंबर मिल जाये, जैसा कि अनुज ने महिमामंडित करने में लिखा है कि इनका नंबर मिलने में 6-6 महीने लग जाते है।
हो सकता है कि के के सिन्हा के मन में ये बात उठी हो कि भाई अशोक भगत और सिमोन उरांव जैसे लोग पद्मश्री ले रहे है तो भाई हमारे में क्या कमी है?, हमे भी मिल जाये। इसलिए उसने सोची समझी रणनीति के तहत राज्य के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री की झूठी तारीफ और बाकी को बेवकूफ बता दिया हो या और कुछ न कुछ अंदर खिचड़ी जरूर पक रहा हो, जहां तक मेरा ध्यान नहीं गया हो...
अब कुछ सवाल प्रभात खबर से...
आप इस प्रकार के आलेख लिखकर क्या साबित करना चाहते हो?
क्या आप बता सकते हो...
कि जनाब के फीस कितने है?
और जितने का वो इलाज करते है, कभी ईमानदारी से उसका आयकर भी चुकाया हैं, हमारे पास तो इतने लोग आये है, इनके पास से इलाज कराकर, कि उनके पैड पर केवल उनके दवा के नाम होते है, पर निबंधन संख्या होता ही नहीं, आखिर बिना निबंधन वाले पैसे कहा जाते है।
इसी रांची में डॉ. एस पी मुखर्जी है, जिनकी फीस मात्र 5 रुपये है, और वहां डॉ. के के सिन्हा से ज्यादा मरीज दर्द लेकर आते है और मुस्कुराते हुए जाते है...
इसी रांची में डॉ. पी आर प्रसाद हुए, जो आज दुनिया में नहीं है, उनकी फीस मात्र 100 रुपये थी और उनके यहां इलाज कराकर बहुत सारे लोग खुश थे। उनके निधन पर बहुत लोगों को दर्द हुआ था, शायद आपको नहीं मालूम...आप जिस प्रकार से इस व्यक्ति को पेश किया उसे हम पत्रकारिता नहीं कहते, क्या कहते है, वो आप खुद ही जान लो...
और ये भी जान लो कि हमारे देश में तो जिसका चल जाता है, तो चल जाता है...
जैसे एक लोकोक्ति है, जो बिहार में खूब चलता है,
वो क्या कहते है...
नामी ..... का, ....बिकाता है
अंततः
हे भगवान, ऐसे कभी डाक्टर मत देना, जिसकी फीस दो हजार हो...
हे भगवान, ऐसे कभी डाक्टर मत बनाना, जो स्वयं को महान और दूसरे को, खासकर सामान्य जन को जाहिल समझता हो...
क्योंकि जो दूसरे को जाहिल समझेगा, वह उसके साथ क्या सलूक करेगा...
आपसे बेहतर कौन जान सकता है...