Saturday, June 25, 2016

ये है हमारे नेता, हमारे उद्धारकर्ता, आधुनिक जयचंद.........

ये आधुनिक जयचंद है, जो भारत की इस असफलता पर अट्टहास कर रहे है...
आइये हम आपको एक कहानी सुनाते है। ये कहानी भारत की ही है। जब पृथ्वी राज चौहान ने संयोगिता के साथ विवाह रचाया तो जयचंद ने इसे अपना अपमान समझा। इस अपमान के बदले में उनसे मुहम्मद गोरी का साथ देने का निश्चय किया। पृथ्वी राज चौहान की हार हुई, मुहम्मद गोरी जीत गया, पर ऐसा नहीं कि जयचंद को उससे फायदा हुआ, हुआ यह कि भारत एक बार फिर विदेशियों के हाथों पराजित हुआ, मानमर्दित हुआ।
दूसरी कहानी सुनिये...
महारानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों को धूल चटा रही थी और ग्वालियर नरेश अंग्रेजों के तलवे चाट रहे थे। ज्यादा जानकारी के लिए भारत की ही सुप्रसिद्ध कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता पढ़ लीजिये –
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी
खुब लड़ी मर्दानी वो तो झांसीवाली रानी थी
जब भगत सिंह भारत की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे, सोते हुए भारतीयों को जगाने का काम कर रहे थे तो उस वक्त सुप्रसिद्ध दिवगंत पत्रकार खुशवंत सिंह का पिता शोभा सिंह भगत सिंह को फांसी के तख्ते पर पहुंचाने में मुख्य भूमिका निभा रहा था।
ऐसी एक नहीं, अनेक सच्ची कहानियां है, जो बताती है कि हम भारतीय चाहे शांत हो या गुस्से में हो, वहीं काम करते है, जिससे भारत का नुकसान हो जाय, भारत बर्बाद हो जाये...
ये हमारी फितरत है, हम सुधर नहीं सकते। हम सच्चे देशभक्त नहीं, क्योंकि पूरे विश्व में हम एकलौते देश है, जो आजादी की लड़ाई का भी कीमत वसूलते है, स्वतंत्रता सेनानी का वेतन लेकर, अब तो 1974 के जेपी आंदोलन का भी पैसा वसूल रहे है, जैसे लगता है कि आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे...
मैंने कहा न, ये हमारी फितरत है, हम सुधरेंगे ही नहीं...
हम जानते है कि 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया...हमारे हजारों रणबाकुड़ें मार डाले...हजारों वर्ग किलोमीटर भू-भाग को कब्जा कर लिया...पर आज भी हम उसकी आर्थिक समृद्धि के लिए वे सभी सामान खरीदते है, जो हमारे लिए जरूरी है, और वह चीन, हरदम हमारे सीने पर, तो कभी पीठ पर खंजर भोकता है...
हम हैं भारतीय, जो कभी नहीं सुधरेंगे...
आज ही देखिये,
अखबारों में पढ़ा कि भारत एनएसजी का सदस्य नहीं बना, क्यों नहीं बना तो चीन ने उस पर अड़ंगा लगा दिया...क्या भारत को एनएसजी का सदस्य नहीं बनना चाहिए।
हमारा उत्तर होगा – बनना चाहिए,
क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एनएसजी की सदस्यता के लिए जो प्रयास किये, वो गलत था...
एक दूसरे देश का सामान्य नागरिक भी होगा तो वह यहीं कहेगा कि मोदी का यह प्रयास सही था, पर जरा भारत के विभिन्न दलों में रह रहे जयचंदों को देखिए, बहुत खुश है। अनाप-शनाप बयान दिये जा रहे है। मोदी को कोस रहे है।
जरा केजरीवाल के स्टेटमेंट को देखिये – यह मूर्ख क्या कह रहा है – कह रहा है कि पीएम मोदी विदेश नीति के मोर्चे पर फेल रहे है, उन्हें यह बताना होगा कि वे विदेश यात्राओं में क्या करते रहे।
जरा कांग्रेस को देखिये वो कह रही है कि प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को और भारत को तमाशा बना दिया। लालू और नीतीश की तो बात ही छोड़ दीजिये, ये तो नमूने है। इनसे देशप्रेम की आशा करना तो अव्वल दर्जे के मूर्ख होने का प्रमाण पत्र स्वीकार करना है।
ये है हमारे नेता, हमारे उद्धारकर्ता, आधुनिक जयचंद।
अब कांग्रेसियों से कुछ सवाल...
कांग्रेसियों तुम्हे पता है कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्रीत्वकाल में कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ में उस वक्त के विपक्ष में रह रहे, जो विपक्ष के नेता भी नहीं थे, अटल बिहारी वाजपेयी ने क्या भूमिका निभाई थी, अगर नहीं पता तो मूर्खों ज्यादा दिन नहीं हुआ, इतिहास पढ़ो...
अरे कमबख्तों, कम से कम देश के मुद्दे पर तो एक हो जाओ...
क्या जयचंद बनने में, ज्यादा जोर लगा रहे हो...
अरे भारतीयों, अब भी चेतो...
अरे सरकार मजबूर है, विपक्ष घटियास्तर का है, पर तुम तो देशभक्त हो...
बहिष्कार करो, चीनी सामानों का...
बहिष्कार करो, चीनी नेताओं का...
बहिष्कार करो, चीनी सोच का, जो वामपंथियों ने भारत में फैला रखा है...
बहिष्कार करो, उन हर नेताओं को जो देश में रहकर विदेशी ताकतों को मजबूत कर रहे है...
उन वीर भारतीयों का हौसला बुलंद करों,
जो विपरीत परिस्थितियों में चीन को नाक में दम कर रखे है...
उन वीर वैज्ञानिकों का हौसला आफजाई करों, जो भारत को शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे रहे है...
आखिर कब चेतोगे...
तुम्हारे देश के ज्यादातर नेता गद्दार है, ये याद रखो...
ये तुम्हारे बीच, जातिवाद फैलाते है, और इस जातिवाद की आड़ में अपने जोरु, अपने बेटी-बेटे, दामाद-बहु का आंगन क्लियर करते है...
जागो भारतीय जागो, पर तुम जागोगे, इसकी संभावनाएं हमें कम है...
क्योंकि विश्व में एकमात्र भारत ही ऐसा देश है, जो सर्वाधिक गुलामी का दंश झेलने का रिकार्ड अपने पास सुरक्षित रखा है...

Friday, June 17, 2016

जैसा नजरिया, वैसा विकास...

मैं यादव हूं...मुझे लालू-मुलायम में विकास दीखता है...
मैं कुर्मी हूं, मुझे नीतीश में विकास दीखता हैं...
मैं वामपंथी हूं हरदम सीमा पर चीन लतियाता हैं मुझे, फिर भी चीन की स्तुति करने और उसके यहां की बनी सामान खरीदने में मुझे विकास दीखता है...
मैं वामपंथी हूं सिंगूर और नंदीग्राम और फिलहाल कन्नूर में दर्जनों निहत्थे को मौत के घाट उतार देता हूं, उसमें विकास दीखता हैं...
पर और कहीं भी विकास नहीं दीखता...
क्या करुं आदत से लाचार हूं...
हमारे पूर्वज अंग्रेजों के जूते और मुगलों के जूते खाते रहे हैं, इसलिए हमें भी आजकल उनके जूते खाने के लिए बदन कुलकुलाता है इसलिए विकास दीखेगा कैसे...
मैं आज भी जहां हूं चूहों की तरह भारत को कुतर रहा हूं...
विकास दीखेगा कैसे...
विकास तो लालू जी ने दिया कभी अपने जोरु को सीएम बनाकर तो कभी अपने बेटे को डिप्टी सीएम बनाकर, कभी अपनी बेटी को राज्यसभा में पहुंचाकर...
विकास तो हमारे झामुमो नेता दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने किया,अपनी आदत के अनुसार सबसे छोटे बेटे को भी नेतागिरी की जन्मघूंटी पिलाकर राज्यसभा बेचने की युगत लगा दी...
विकास तो सोनिया ने किया है, जो अपने बेटे राहुल, दामाद राबर्ट और बेटी प्रियंका से आगे सोच ही नहीं रही...
विकास तो मुलायम ने किया, जिसने अपने पूरे खानदान को लोकसभा, राज्यसभा विधानसभा और पूरे यूपी में अपनी जाति के लोगों को हर जगह भर कर रख दिया...
विकास तो नीतीश ने किया, नीतीशभक्ति में लीन एक पत्रकार को राज्यसभा में पहुंचाकर...
विकास तो वृंदा और प्रकाश करायेंगे जिन्होंने कई वर्षों तक बंगाल को ऐसा रौंदा कि पिछले पांच वर्षों से बंगाल की जनता इनकी पार्टी को लतिया रही है, पर शर्म नहीं आ रहा...
विकास तो अरविन्द केजरीवाल करायेंगे, जो हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ ही बोला करते थे और आज जिनके 21 विधायक भ्रष्टाचार का रिकार्ड तोड़ते हुए हुतूतू कर रहे है,
भाई बुरा मत मानियेगा हम भी आपके साथ हैं, जब हल्ला करियेगा कि विकास नहीं हो रहा तो हम भी आपके साथ सुर में सुर मिलायेंगे, और जैसा आपका झंडा होगा, थाम लेंगे, फिलहाल अभी आप हमारा लाल, पीला, हरा और भैस के रंगवाला काला सलाम भी स्वीकार करिये...

Monday, June 6, 2016

भला अनैतिक रूप से अर्जित धन से पोषित बच्चे देश भक्त कैसे होंगे...

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में अधिकांश माता –पिता अनैतिक रूप से धन कमाकर, अपने बच्चों का भरण-पोषण करते है, साथ ही ये आशा भी रखते है कि ये बच्चे बड़े होकर, उनकी सेवा करें और देशभक्त हो। भला अनैतिक रूप से धन कमाकर, उस धन से बच्चों का भरण-पोषण होने से बच्चे नैतिकरुप से कैसे मजबूत होंगे, ये मुझे समझ में नहीं आता। ये तो वहीं बात हुई कि पेड़ बो रहे है बबूल के और आशा रख रहे है कि इस बबूल से आम निकलेंगे।
ऐसे भी हमारा देश काफी प्रगति किया है...
जैसे जिन्हें चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना है, तो वे धन-पशु बनने में सर्वाधिक समय व्यतीत कर रहे हैं, धन-पशु बनने के लिए जितनी भी कलाएं होनी चाहिए, उन सारे कलाओं में पारंगत हो गये, नतीजा स्वयं देखिये कल तक योगगुरु थे, आज व्यवसायी गुरु हो गये। कल तक उनकी एक झलक पाने के लिए लोग लालायित रहते थे, आज वे स्वयं को मॉडल के रूप में स्थापित कर रहे है, फिर भी उन्हें वो सम्मान नहीं मिल रहा, जिनकी उन्होंने कभी लालसा रखी थी, वे तो इतने गिर गये है कि उन्हें अब राम और रावण में भी फर्क करना नहीं आ रहा...
इसी प्रकार, मैं देखता हूं कि कई ऐसे मंदिर देश में बने है, जो उद्योगपतियों के नाम पर है...कई ऐसे राजनीतिज्ञों को देखता हूं कि अनैतिक रूप से धन कमाकर, अपनी हैसियत दिन दुनी रात चौगुनी करते जा रहे है, और जब रमजान का महीना आयेगा तो ये अपने घरों में सफेद टोपी पहनकर इफ्तार का ऐसा आयोजन करते है, जैसे लगता है कि इन्होंने जिंदगी में कोई दंगा-फसाद या घृणित कार्य ही न किया हो और उससे भी बड़ा आश्चर्य कि ऐसे घटियास्तर के राजनीतिबाजों के इफ्तार में शामिल होने के लिए तथाकथित बड़े-बड़े मौलानाओं की झूंड भी आ खड़ी होती है।
रांची में एक सज्जन है, बहुत बड़े व्यापारी, मीडिया हाउस चलाते है, धन इतना कमाया है कि पूछिये मत, पर पर्यावरण की धज्जियां उड़ाने में, खनिज संपदा को लूटने में, अपने यहां कार्यरत कर्मचारियों का शोषण करने में, सरकार की कर प्रणालियों को चूना लगाने में, सबसे आगे है।
रांची में एक और सज्जन को मैंने देखा है कि वे बराबर नैतिकता की दूहाई देते थे, कोई ऐसा महीना नहीं होगा, जिस महीने में वे छद्म नाम से नैतिकता संबंधी या स्वयं के नाम पर नैतिकता संबंधी आलेख न छापे हो, उनके इस आलेख से कई लोग भ्रमित होकर, उन्हें महान इंसान समझ रखे थे, पर जैसे ही बिहार के एक राजनीतिज्ञ ने उन्हें राज्यसभा का टिकट देने का ऐलान किया, उनकी सारी पत्रकारिता की नैतिकता की गंगोत्री उस बिहार के राजनीतिज्ञ के चरणों में जाकर लोटने लगी।
मैंने कई आइएएस और आइपीएस अधिकारियों को देखा है, जिन्हें देखकर या उनकी स्क्रिप्ट पढ़कर मैं हैरान हो जाता हूं कि ये आदमी आइएएस या आइपीएस कैसे बन गया, तभी मेरे दिल के किसी कोने से आवाज आती है कि बेटे ये भारत देश है , यहां भाग्य का भी विधान है, ये भाग्य का बहुत ही मजबूत है, पूर्व जन्म में कुछ बेहतर किया है, इसलिए इस जन्म में आइएएस या आइपीएस बन गया है, इसका राजयोग है, जब तक जिंदा रहेगा, लूटेगा, खायेगा, मर जायेगा, इससे देश-सेवा या समाज-सेवा की परिकल्पना भी करना बेमानी है...
ये कुछ दृष्टांत है...
और अब सवाल कि आखिर ये सब लिखने की आवश्यकता क्यों है...
मैंने इसमें राजनीतिज्ञों, पत्रकारों, उद्योगपतियों, अधिकारियों और संतो के कुछ दृष्टांत दिये है, जो बताने के लिए काफी है कि हमारा समाज कितना गिर रहा है, यह भी बताने के लिए काफी है, कि जिनके उपर दारोमदार है, देश को आगे बढ़ाने का, वे कितने गिरे हुए है और जब जिनके कंधों पर जिम्मेदारी है, देश को आगे बढ़ाने का और वे अपने बेटे-बेटियों और अपनी पत्नियों के आगे कुछ सोचे ही नहीं तो समझ लो, देश बदल रहा है, और ये आगे नहीं, पीछे जा रहा है। देश या समाज, वहां रह रहे व्यक्तियों के चरित्र व व्यक्तित्व से जाना जाता है, और ये चरित्र या व्यक्तित्व का झलक मिलता है, वहां कार्य कर रहे अधिकारियों, संतों, पत्रकारों, उदयोगपतियों, राजनीतिज्ञों और वहां रह रही आम जनता से, पर यहां सभी ने सारी मर्यादाएं तोड़कर धन-पशु बनने में ही समय ज्यादा लगा दिया है, ऐसे में इन धन-पशुओं से भारत के निर्माण की बात करना मूर्खता है...
एक बात और जान लीजिये...
भारत बहुमंजिलों इमारतवाली भवनों वाली स्थानों का नाम नहीं...
भारत कल-कारखानोंवाली औद्योगिक स्थलियों का नाम नहीं...
भारत महानगरों में डांसबार या बीयरबार वाली सांस्कृतिक केन्द्रों का नाम नहीं...
भारत महानगरों में अधकचरा ज्ञान बिखरनेवाले पत्रकारों की अशिष्ट मंडलियों का नाम नहीं...
भारत घटियास्तर के राजनीतिज्ञों जो अपनी पत्नी, बेटे और बेटियों में अपना सुख-चैन देखते हैं, उसका नाम नहीं...
भारत उन अधिकारियों वाले देश का नाम नहीं, जो जिंदगी भर जोंक की तरह भारत की जनता का खून चूसकर धन इकट्ठा करते हैं...
भारत उन उदयोगपतियों का नाम नहीं, जो अनैतिक रुप से धन कमाते हैं...
भारत तो त्याग का दूसरा नाम है...
भारत तो मर्यादा का दूसरा नाम है...
भारत तो गुणता का दूसरा नाम है...
भारत तो कर्मयोग को ग्रहण करने का दूसरा नाम है...
पर फिलहाल, भारत में अधिकांश लोग, धन-पशु बनने की कला में माहिर होकर, स्वयं को सर्वश्रेष्ठ धन-पशु बनने के लिए एक – दूसरे को पछाड़ने में लगे हैं...
जिसमें राजनीतिज्ञों-पत्रकारों-अधिकारियों और सामान्य जन के लोग भी दिल से लगे हुए हैं, यानी कल तक जो भारत जिस चीज के लिए जाना जाता था, आज वहीं चीज यहां ढूंढने को नहीं मिल रही, ये हैं 1947 के बाद हमारे देश की सबसे बड़ी उपलब्धि...