Thursday, October 27, 2016

धर्मांतरण के नाम पर एआइपीएफ की चिरकूटई...........

झारखण्ड में मिशनरियों द्वारा अनैतिक तरीके से चलाये जा रहे धर्मांतरण के कट्टर समर्थक ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम ने राज्यपाल से मांग की है कि वे वंदना डाडेल मामले में हस्तक्षेप करते हुए राज्य सरकार पर दबाव डाले कि वह वंदना डाडेल के खिलाफ जो कारण बताओ नोटिस जारी की है, वह नोटिस को राज्य सरकार वापस ले लें। हम आपको बता दें कि ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम भाकपा माले की प्रतिलिपि है, जिसके ज्यादातर सदस्य भाकपा माले से जुड़े है, तथा जो शेष बचे है, उनमें से एक दो अन्य वामपंथी दलों से जुड़े है। इनका मूल मकसद हिंदू और आदिवासियों के उनके मूल धर्म को सबके समक्ष निकृष्ट बताना है। इनके ज्यादातर कार्यक्रम मिशनरियों से जुड़े संस्थानों में आयोजित होते है। इनके बाहर के सदस्य भी आते है, तो वे या तो वामपंथी कार्यालयों में ठहरते है अथवा मिशनरी संस्थाओं में ठहरते है और यहीं से धर्मांतरण के कार्यक्रमों को गति देते है।
कुछ सवाल ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम के लोगों से...
1. वंदना डाडेल से इतना प्रेम क्यों? वंदना डाडेल ने सोशल साइट्स पर अपनी बातें रखी, राज्य सरकार के कार्मिक विभाग ने उनसे सवाल पूछे। इसे राजनीतिक रंग देने की जरूरत भाकपा माले एंड कंपनी को जरूरत क्यों पड़ गयी?
2. वंदना डाडेल ने जो सोशल साइट्स पर मुद्दे उठाये कि आदिवासियों में सर्वाधिक गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी देखे गये है, ऐसे में वे स्वेच्छा से धर्म भी नहीं चुन सकते? मैं पूछता हूं भाकपा माले एंड कंपनी से कि क्या धर्मांतरण कर लेने से ये सारी समस्याएं दूर हो जाती है? क्या भारत के सारे लोग जो गरीब है, उन्हें धर्मांतरण कर ईसाई बन जाना चाहिए? गरीबी का धर्म से क्या संबंध? मैं पूछता हूं कि विदेशों में लोग जो गरीब नहीं है, हर प्रकार से परिपूर्ण है, वे हिन्दू क्यों बन रहे है?
3. मैं पूछता हूं कि किसी गरीब को रोटी दिखाकर, कपड़े दिखाकर, रोजगार का लोभ दिलाकर, उन्हें प्रलोभन देकर, उनकी गरीबी का मजाक उड़ाकर, उनका धर्मांतरण कराना गलत नहीं है क्या? वंदना डाडेल पर बयान देनेवाली भाकपा माले एंड कंपनी बताएं कि फादर कामिल बुल्के भारत के गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस से क्यों प्रभावित थे?
4. आजकल मैं देख रहा हूं कि भाकपा माले एंड कंपनी के लोग जिनको हिन्दूत्व की एबीसीडी मालूम नहीं, वे भी मनुवाद पर खुब लिख रहे है, जबकि सच्चाई ये है कि इन वामपंथियों के जमात को कई मस्जिदों में नमाज और कई मंदिरों में घंटे बजाते भी मैं देखा हूं और ये सब राज्य की जनता को उल्लू बनाने के लिए करते है, ये कहकर कि देखो कि मैं आपके साथ हूं, जबकि सच्चाई ये है कि ये वो हर हरकत करते है, जिससे समाज को टूटने का खतरा है।
5. सच्चाई ये है कि सारी दूनिया जानती है कि वामपंथी धर्म को अफीम मानते है, पर यहां के वामपंथी, धर्म को अपने-अपने हिसाब से तौलते है और उसकी रूपरेखा तय करते है।
6. हमारा मानना है कि धर्म – सत्य और शाश्वत है। किसी व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया गया कोई भी मंतव्य, धर्म नहीं हो सकता। धर्म तो उस व्यक्ति विशेष के मंतव्य चलने-चलाने के पूर्व से ही मौजूद रहा है। आप उसको कोई नाम दें पर वह सत्य ही रहता है, उसके मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं ला सकता। फिर भी धर्म के नाम पर धर्मांतरण का खेल, झारखण्ड में कुछ ज्यादा ही चल रहा है, और इस खेल में जो सर्वाधिक नंगे है, वे कुछ ज्यादा ही डॉयलॉगबाजी कर रहे है और दूसरे को अनैतिक और असंवैधानिक बताते है। हमारे विचार से, राज्य व केन्द्र सरकार को इस पर एक्शन लेना चाहिए और कहीं भी प्रलोभन और अनैतिक तरीके से धर्मांतरण का कार्य कोई भी कर रहा है, तो उसे कानून के शिकंजे में कसना चाहिए, क्योंकि हमारा संविधान भी अनैतिक तरीके से कराये गये धर्मांतरण को मान्यता नहीं देता।

Tuesday, October 25, 2016

झारखण्ड बंद की हवा निकल गयी................

दिनांक 24 अक्टूबर, दिन सोमवार को हजारीबाग के बड़कागांव में बीते दिनों हुई पुलिस फायरिंग के विरोध में कांग्रेस, झाविमो, राजद, जदयू और सभी वामदलों एवं आदिवासी नामधन्य संगठनों ने झारखण्ड बंद का ऐलान किया था। इस बंद को राज्य की प्रमुख विपक्षी दल झामुमो ने भी अपना नैतिक समर्थन दिया था। कुल मिलाकर कहें तो भाजपा को छोड़कर सभी दलों ने बंद बुलाया था, जिस प्रकार बंद की तैयारी थी, उस प्रकार से तो ये बंद ऐतिहासिक हो जानी चाहिए थी, पर आम जनता द्वारा इस बंद को नकार दिये जाने के कारण ये बंद प्रभावहीन दिखा। हम आपको यह भी बता दें कि इस बंद को एक प्रकार से रांची के प्रमुख राष्ट्रीय और क्षेत्रीय अखबारों ने भी अपना नैतिक समर्थन दिया था। एक अखबार जो स्वयं को अखबार नहीं आंदोलन कहता है, उसने तो इस आंदोलन को दमदार आंदोलन की संज्ञा दे डाली थी, पर उसे कल अवश्य घोर निराशा हाथ लगी होगी कि उसके इस दमदार आंदोलन में रांची में मात्र 472 बंद समर्थक ही सड़क पर दीखे, जो गिरफ्तार हुए। अगर हम झारखण्ड बंद की बात करें, तो पूरे झारखण्ड में बंद का मिला-जुला असर दिखा। राज्य के प्रमुख महानगरों जैसे रांची, जमशेदपुर, धनबाद व डालटनगंज में बंद का कोई असर नहीं दिखा। रांची में तो दोपहर के 12 बजे, जिंदगी आमदिनों की तरह दिखी।
सर्वाधिक मजा तो धनबाद में बंद के दौरान दिखा। बंद करानेवाले नेता मुकदमे के डर से स्वयं ही सेल्फी लेकर अपना फोटो पत्रकारों को उपलब्ध करा रहे थे। स्थिति ऐसी थी कि धनबाद में ज्यादातर नेता ड्रामेबाजी में ही मशगुल दीखे। कांग्रेस का एक नेता संतोष सिंह सुबह में राजधानी एक्सप्रेस को रोकने धनबाद स्टेशन पहुंचा, ट्रेन के आने पर फोटो खिंचवाई और चलता बना। झाविमो का रमेश राही का भी यहीं हाल था, सुबह बंद कराने निकले, स्टेशन पहुंचे, चेहरा चमकाये और चल दिये। जदयू के पिंटू सिंह का भी यही हाल था, यानी जेल और मुकदमे के डर ने इन नेताओं का गला सूखा दिया था।
आखिर ये बंद क्यों असफल रहा? इस बंद के असफल होने का मूल कारण, बंद के तिथि का समय ठीक नहीं होना है। चूंकि दीपावली है, धनतेरस है, धन्वतंरि जयंती है, भैया दूज है, छठ महापर्व का आगमन है, इन सारे पर्व – त्यौहारों के कारण बंद की हवा निकल गयी और जनता ने इस बंद से स्वयं को अलग रखा। शायद बंद समर्थक नेता व कार्यकर्ता इन बातों को समझने में असफल रहे।
बंद का भी एक समय होता है, आप जब बंद बुला लें और बंद का जनसमर्थन जुटा लें, ये संभव नहीं है। हां, अगर जनता का समर्थन चाहिए तो जनता का दिल भी टटोलना होगा, उनकी मनोदशा का भी आकलन करना होगा।
एक बात और, यहां की जनता पिछले 15 सालों से बंद का दंश झेलकर आजीज हो चुकी है, अब एक तरह से वह बंद से नफरत करने लगी है, ये बंद समर्थकों को समझना होगा। हां अब बंद का वे विकल्प तलाशें, अच्छा रहेगा कि ये बंद एकदिवसीय न होकर, कुछ घंटे का हो, जिसमें बंद समर्थक अपनी नीतियों को सरकार तक भी पहुंचा दें और आम जनता को तकलीफ भी नहीं हो। अगर इन विकल्पों पर राजनीतिक दलों ने नहीं सोचा, तो समझ लीजिये, राज्य की जनता उन्हें अच्छी तरह समझा देगी, क्योंकि ये राजनीतिज्ञ कोई दूध के धूले नहीं है, जनता सब समझती है...
एक बात और, भले ही बंद समर्थकों के बंद को रांची की जनता ने नकार दिया, पर झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने बंद को सम्मान देते हुए बंद समर्थकों के हौसले जरुर बुलंद कर दिये। उन्होंने अपने एक कार्यक्रम को झारखण्ड बंद के कारण रद्द कर दिया। जैसे उन्हें कल रांची के एक्सआइएसएस जाना था, पर वे वहां नहीं गयी और कह दिया कि चूंकि बंद है, इसलिए वे वहां जाने में असमर्थ है, यानी सरकार बंद में जनता के साथ और राज्यपाल बंद में बंद समर्थकों के साथ।

Sunday, October 23, 2016

प्रभात खबर के लिए बाबू लाल हीरो और रघुवर खलनायक........

रांची से प्रकाशित अखबार प्रभात खबर ने आज बाबू लाल मरांडी को हीरो और रघुवर को विलेन बनाकर जनता के सामने पेश किया है। इसका मूल कारण प्रभात खबर के प्रधान संपादक रह चुके हरिवंश है, जो फिलहाल जनता दल यू से राज्यसभा सांसद है, हालांकि कहनेवाले ये भी कहते है कि हरिवंश प्रभात खबर छोड़ चुके है, पर हमारे पास पुख्ता प्रमाण है कि वे प्रभात खबर छोड़े नहीं है, आज भी वे प्रभात खबर को कस कर पकड़े हुए है। चूंकि नीतीश कुमार ने झारखण्ड मामले में अपनी नीति स्पष्ट कर दी है कि बाबू लाल मरांडी झारखण्ड के नायक है, वे ही उनकी ओर से झारखण्ड के मुख्यमंत्री उम्मीदवार है। तभी से हरिवंश ने उनकी राह आसान बनाने के लिए कमर कस ली है और जब भी मौका मिलता है, वे बाबू लाल के प्रति वफादार बन कर पत्रकारिता को अपने इशारों पर नचा रहे है। जैसे कल ही की बात को ले लीजिये। रांची में कल आदिवासी आक्रोश रैली थी। इस रैली में 42 आदिवासी संगठनों के लोग थे, पर प्रभात खबर ने इस पूरे प्रकरण का हीरो बाबू लाल मरांडी को बना दिया, जबकि उस रैली में कांग्रेस के प्रदीप बलमुचू, गीताश्री उरांव, झामुमो के पौलुस सुरीन और अन्य नेता भी मंच पर मौजूद थे। यहीं नहीं अपने अखबार में प्रथम पृष्ठ पर इस प्रकार की हेडिंग दे दी कि अगर सामान्य व्यक्ति उस समाचार को पढ़े तो पता लग जायेगा कि यहां के मुख्यमंत्री रघुवर दास सचमुच में खलनायक है, जबकि सच्चाई कुछ और ही है।
प्रभात खबर के अनुसार, कल की रैली को रोकने के लिए राज्य सरकार ने कमर कस लिया था, और इसी क्रम में खूंटी में फायरिंग हुई और एक व्यक्ति की मौत हो गयी, जबकि सच्चाई कुछ और ही है। इस सच्चाई को जानने के लिए आपको दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आजाद सिपाही, राष्ट्रीय सागर तथा अन्य अखबारों का रूख करना पड़ेगा।
दैनिक भास्कर ने अपने प्रथम पृष्ठ पर फोटो देते हुए हेडलाइन्स दिया – रांची में रैली, खूंटी में नाकेबंदी से आक्रोश। एएसपी-थानेदार को ढाई घंटे रस्से से बांधकर पीटा, फिर पुलिस फायरिंग में किसान की मौत, लेकिन प्रभात खबर ने इसी घटना को पृष्ठ संख्या 11 पर लिखा – खूंटी में प्रशासन ने एक हजार ग्रामीणों को रोका और पुलिस के साथ होनेवाली हादसे और सेंदरे की बात अपनी ओर से छुपा ली, साथ ही इस घटना को सामान्य दिखाते हुए पुलिस के मुख से लिखवाया, जैसे लगता है कि वहां कोई ऐसी घटना घटी ही नहीं। जबकि सच्चाई यह है कि अगर पुलिस आत्मरक्षार्थ गोली नहीं चलाती तो आज कितने पुलिसकर्मियों के घरों में लाशों के ढेर नजर आते क्योंकि इस रैली में नक्सलियों ने अपनी भूमिका तय कर रखी थी। इस घटना को दैनिक जागरण ने प्रथम पृष्ठ पर हेडिंग्स देते हुए लिखा – खूंटी में उग्र भीड़ पर फायरिंग, एक मरा, पुलिस ने आत्मरक्षार्थ चलाई गोलियां, 8 ग्रामीण घायल और इस हेडिंग्स के माध्यम से दैनिक जागरण ने पत्रकारिता धर्म की रक्षा की, साथ ही आक्रोश रैली को भी प्रमुखता से उठाया, जो उठाना भी चाहिए।
चूंकि हिन्दुस्तान अखबार ने तो परसो से ही ताल ठोक दिया था कि उसे आदिवासी आक्रोश रैली को बेहतर ढंग से पेश करना है और रघुवर दास की सरकार को कील ठोकना है, तो उसने अपने उक्त निर्णयों पर आगे बढ़ते हुए, आज भी वहीं किया। इसलिए हिन्दुस्तान अखबार पर क्या कहना।
अब अपनी बात – ये जो अखबार वाले है न। कोई धर्म या समाज हित में पत्रकारिता के लिए अपना दुकान नहीं खोले है। प्रभात खबर का मालिक प्रभात खबर की आड़ में कहा-कहां माइन्स चला रहा है, क्या किसी को नहीं मालूम। हिन्दुस्तान अखबार के लोग अर्जुन मुंडा के शासन काल में कहा पर गोल्डमाइन्स लिये थे। हमको नहीं मालूम है क्या? यानी ये अखबार वाले अपना धंधा चलाने के लिए आदिवासियों की जमीन लूटे तो सही और दूसरा कोई लूटे तो गलत। अरे गलत है तो सब गलत है, एक गलत और दूसरा सहीं...और दूसरा गलत तो पहला सही कैसे भाई। सच्चाई यह है कि यहां झारखण्ड का हर नेता और हर पत्रकार अपने – अपने ढंग से राज्य की जनता को बरगला रहा है, और भोली-भाली जनता इनके बहकावे में आ रही है। नेताओं और पत्रकारों को तो कुछ नहीं होता, पर जनता हर प्रकार से मारी जाती है। अखबार के मालिकों और संपादकों को क्या है? वे तो पेड न्यूज की आड़ में अपनी गोटी सेंक चुके होते है और उनके प्यादे यानी रिपोर्टर्स उनके इशारे पर वो न्यूज बनाते है, जो उनके आकाओं को पसंद आती है। आज का अखबार देखने से तो यहीं लगता है।
... और अब एक सलाह राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को, आप कृपा कर किसी भी अखबार के कार्यक्रम में जाये, तो प्लीज ये न कहें कि पत्रकारिता हो तो फंलाने अखबार जैसी। हमारे पास प्रमाण है एक अखबार बार-बार आपका वक्तव्य छापता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रभात खबर की प्रशंसा की। हमें हंसी आती है, जो अखबार हमारे परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के परिवार के साथ धोखा करता है। अमर शहीद की मिट्टी पर राजनीति करता है, उसे आप कैसे कह सकते है कि बहुत ही अच्छा है। प्लीज माफ करें। झारखण्ड की जनता के साथ इँसाफ करें। ये अखबारवाले किसी के नहीं है, न तो देश के और न ही देश के जवानों के। ये तो वीर जवानों के शहीदों का भी व्यवसायीकरण कर देते है। शर्मनाक...

Saturday, October 22, 2016

आदिवासियों के हित के नाम पर चेहरा चमकाने की कोशिश............

राज्य सरकार ने राज्य के आदिवासियों के हित के लिए एसपीटी और सीएनटी में बदलाव करने का फैसला लिया। इस फैसले से आदिवासियों का एक बहुत बड़ा तबका, जो चाहता है कि आदिवासियों के जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव हो, वह बहुत ही खुश है, पर एक तबका इस पर राजनीति कर, अपना चेहरा चमकाने को बेताब है। जो अपना चेहरा चमकाना चाहता है, वह यहां के मिशनरियों से अनुप्राणित है। मिशनरियां भी चाहती है कि जिस प्रकार डोमिसाइल आंदोलन की आग को उन्होने हवा दी थी, इसे भी अपने ढंग से हवा देकर इस मुद्दे को आग की तरह फैला दे, ताकि रघुवर सरकार की जमकर किरकिरी हो जाय, पर इसके विपरीत न लाभ और न हानि, न सत्ता का लोभ, न कुछ पाने की इच्छा ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को स्थानीय नीति और अब एसपीटी और सीएनटी पर हीरो के रूप में झारखण्ड में स्थापित कर दिया है। जिसको लेकर राज्य के छोटे से लेकर बड़े आदिवासी नेताओं की हवा निकल गयी। पिछले दिनों गुपचुप तरीके से आदिवासियों की रैली आयोजित करने के बाद, आज बाबूलाल मरांडी का ग्रुप आदिवासी आक्रोश रैली का आयोजन किया। इस रैली के सफल आयोजन के लिए खूब मेहनत की गयी। जमकर गांव-गांव का परिभ्रमण किया गया। मिशनरियों से भी सहयोग लिया गया। उन सारे लोगों के पांव पकड़े गये, जो किसी न किसी प्रकार से आदिवासी समुदाय के नाम पर नेतागिरी चमकाते है, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि कहीं आदिवासी के नाम पर उनकी नेतागिरी न छिन जाये। राज्य व राष्ट्रस्तर पर जो आदिवासी नेता का बड़ा लेबल लगा है, वह न छिन जाये। मोराबादी से लेकर कचहरी चौक तक लाउडस्पीकर का बंदोबस्त किया गया, पर भीड़ उतनी नहीं जूट सकी, जितना का उन्होंने ऐलान कर रखा था।
दूसरी ओर रांची से प्रकाशित एक अखबार हिन्दुस्तान की सारी टीम इस रैली के आयोजन के पूर्व ही आयोजनकर्ताओं के आगे नतमस्तक हो गयी। खूब जमकर तारीफ के पूल बांधे। प्रथम पृष्ठ से लेकर अंदर के पृष्ठों तक आदिवासी आक्रोश रैली के गुणगान छापे। प्रथम पृष्ठ पर तो इस अखबार ने एक प्रकार से आदिवासी आक्रोश रैली के नाम पर दहशत फैलाने की कोशिश की। यह लिखकर कि “रांची की सड़कें आज प्रदर्शनकारियों से रहेंगी जाम” पर खुशी इस बात की कि आज प्रशासन ने इस प्रकार की व्यवस्था कर दी थी कि कहीं भी कोई जाम नहीं लगा, नहीं तो यकीन मानिये हिन्दुस्तान इसे भी बढ़ा-चढ़ा कर दूसरे दिन छाप देता, पर हिन्दुस्तान अखबार की हेकड़ी निकल गयी। ऐसे भी रांची में कोई अखबार नहीं, जो दूध का धुला हो, सभी पत्रकारिता छोड़ दुकान खोलकर बैठ गये है और जिसमें उनका हित सधता है, उस प्रकार से वे अपना दिमाग सेट कर कभी सरकार के खिलाफ तो कभी किसी नेता के खिलाफ तो कभी किसी संगठन के खिलाफ लिख चलते है और जैसे ही इनका विज्ञापनों से मुंह बंद कर दिया जाता है, फिर ये उसकी स्तुति गाने लगते है।
रांची से प्रकाशित ही एक अखबार है – राष्ट्रीय सागर। बहुत ही छोटा अखबार, पता नहीं आप जानते है या नहीं। इसी में काम करते है एक पत्रकार उमाकांत महतो। उनका एक आलेख छपा है, आज प्रथम पृष्ठ पर। शीर्षक है – पहला संशोधन 1914 में और 26वां 1995 में, अगर ये आर्टिकल आप पढ़े तो आपको पता लग जायेगा कि अब तक छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 में 26 बार संशोधन हो चुके है। अब मेरा सवाल है कि केवल 1914 से लेकर 1995 तक जब 26 संशोधन हो चुके है तो फिर इस बार के संशोधन से आदिवासियों के लिए नेतागिरी करनेवाले, आदिवासी नेता और मिशनरियों के पेट में दर्द क्यों? मैं पूछता हूं कि अब तक 26 संशोधनों को अपने माथे पर ढोनेवाले आज झारखण्ड बनने के बाद रघुवर दास द्वारा लिये गये सही निर्णयों को नहीं मानने के लिए आंदोलन को हवा क्यों दे रहे है? आखिर आदिवासी आक्रोश रैली के नाम पर भीड़ क्यों जुटाई जा रही है। जरा पूछिये, बाबू लाल मरांडी, शिबू सोरेन, सूरज सिंह बेसरा और डोमिसाइल आंदोलन की उपज बंधु तिर्की से, कि वे इन 26 संशोधनों पर क्या कहते है?
• आखिर एक ही जगह पर एक आदिवासी परिवार और एक सामान्य परिवार की जमीन की बिक्री में आकाश और जमीन का अंतर क्यों होता है?
• आखिर एक आदिवासी परिवार अपने जमीन पर केवल कृषि और कृषि से जुड़ा ही कार्य क्यों करें, अन्य कार्य जैसे अन्य समुदाय के लोग करते है, उस पर लागू क्यों न हो, ताकि उसका भी आर्थिक उन्नयन हो।
ये दो सवाल ऐसे है, जिसे लेकर सारा आदिवासी समुदाय पहली बार इस प्रकार की भ्रांतियों से उबरने की कोशिश कर रहा है। हमें खुशी है कि राज्य सरकार ने इन नेताओं द्वारा फैलायी जा रही भ्रांतियों को समय रहते दूर करने की कोशिश की।
छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम की धारा 21 एवं धारा 13 संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम के तहत रैयत अपनी जमीन का उपयोग सिर्फ कृषि और कृषि से जुड़े कार्यों के लिए ही कर सकते है, यानी उन्हें अपनी ही जमीन का गैर कृषि कार्यों के लिए उपयोग करने का अधिकार प्राप्त नहीं है, ऐसे में अगर वे चाहे कि अपनी जमीन पर, मैरिज हॉल, होटल, ढाबा, दुकान या अपनी मर्जी का कोई और प्रतिष्ठान खोल सकें तो वे ऐसा नहीं कर सकते, ऐसे में उनका आर्थिक विकास कैसे होगा, वे सशक्त कैसे होंगे। ये सब को सोचना होगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने उनके आर्थिक उन्नयन के लिए संशोधन का प्रस्ताव रखा है, ताकि वे अपनी जमीन का अपनी मर्जी से अपने हित में सही इस्तेमाल कर सकें, साथ ही अपना विकास भी कर सकें। राज्य सरकार ने स्पष्ट कहा कि जो भ्रांतियां फैलायी जा रही है कि इससे आदिवासियों के जमीन पर उनका स्वामित्व खत्म हो जायेगा, वे गलत कर रहे है, पूर्णतः भ्रांति फैला रहे है। इस संशोधन से किसी भी रैयती के जमीन पर स्वामित्व के उसके अधिकार को कोई चुनौती दे ही नहीं सकता, बल्कि इससे उनके स्वामित्व का सही आर्थिक लाभ रैयतों को प्राप्त होगा।
राज्य सरकार ने अपना स्पष्ट दृष्टिकोण रखा और जनता से कहा कि इसके लिए वे जितना हिस्सा गैर कृषि कार्यों के लिये करेंगे, उतनी ही भूमि के बाजार मूल्य के अधिकतम एक प्रतिशत के बराबर ही उन्हें गैर कृषि लगान देना होगा। इससे रैयतों के अधिकार एवं स्वामित्व को और मजबूती मिलेगी। राज्य सरकार के अनुसार अगर कोई रैयत द्वारा ऐसे भूखण्ड पर गैर कृषि कार्य किया जा रहा है तो उसे नियमित भी किया जा सकेगा। जिससे रैयत भविष्य में होनेवाले कानूनी झंझट से भी बच जायेंगे, साथ ही कानूनी संरक्षण भी उन्हें प्राप्त हो जायेगा।
रघुवर सरकार ने यह भी कहा कि धारा 49 छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम में भी संशोधन प्रस्तावित है। चूंकि राज्य में चल रहे रेलवे, सड़क, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, विभिन्न प्रकार की जनोपयोगी परियोजनाओं के लिए जमीन की आवश्यकता होती है। अतः उक्त आवश्यकताओं को देखते हुए इसमें भी बदलाव की आवश्यकता है, जिससे जनकल्याणकारी योजनाओं के लिये कोई भी रैयत उपायुक्त से अनुमति प्राप्त कर अपनी भूमि जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए हस्तांतरित कर सकता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भूमि हस्तांतरित होगी, उनका कार्यान्वयन 5 वर्षों के अंदर करना होगा, अन्यथा संबंद्ध रैयतों को पूर्व में हस्तातंरण की गयी राशि बिना वापस किये उनकी भूमि उन्हें लौटा दी जायेगी।
पूर्व में राज्य के आदिवासियों की अवैध रूप से हस्तांतरित भूमि को उन्हें एसएआर कोर्ट द्वारा वापस करने का प्रावधान है। धारा 71 ए के द्वीतिय और तृतीय की आड़ में बिहार अनुसूचित क्षेत्र विनियमन अधिनियम 1969 में प्रावधानित नियमों के विपरीत 30 वर्षों के बाद भी एसएआर कोर्ट द्वारा कम्पन्शेसन का आदेश जमीन माफिया/जमीन दलाल प्राप्त कर आदिवासियों की जमीन हड़पने में सफल होते रहे है। धारा 71 ए में कम्पन्शेसन का प्रावधान ही हटा दिया गया है तथा 6 महीने के अंदर आदिवासियों की जमीन उन्हें वापस करने का प्रावधान कर दिया गया है। ऐसे में ये कहना कि इन संशोधनों से आदिवासियों का अहित होगा, वह पूर्णतः गलत है, सच्चाई यह है कि इससे आदिवासियों का ही हित सधेगा।

Thursday, October 20, 2016

अरे चीन, पगला गया भइया................

जब से भारतीयों ने चीन और चीनियों को आर्थिक चोट पहुंचाने का संकल्प लेते हुए, अपने सपने साकार करने की कोशिश प्रारंभ की है, तभी से चीन और चीनियों की बौखलाहट सातवें आसमान पर हैं। वे भारत और भारतीयों के बारे में अनाप-शनाप बक रहे हैं। वे कोई भी ऐसी जगह नहीं छोड़ रहे, जहां वे अपनी हरकतों से भारत को नीचा दिखाने की कोशिश न कर रहे हो। दोस्त का दोस्त अपना दोस्त और दोस्त का दुश्मन अपना दुश्मन की कहावत को सार्थक करते हुए, वे पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों पर भी प्यार लूटा रहे है। वे हमारी ही बदौलत आर्थिक शक्ति को बढ़ाए है और हमें ही आंख दिखा रहे है। वे समझते है कि जैसे वे गुंडागर्दी करते हुए 1962 में हमारा बड़ा भू-भाग पर कब्जा कर लिया, तिब्बत पर कब्जा कर लिया। वैसे ही वे बार – बार करते रहेंगे और हम चुपचाप इनकी गुंडागर्दी के आगे नतमस्तक हो जायेंगे, पर उन्हें ये पता नहीं कि आज देश में एक नये युवाओं की टोली का जन्म हुआ है। वह अपने देश भारत को महाशक्ति बनाने के लिए वचनबद्ध है। उसके साथ 125 करोड़ की भारतीय आबादी भी साथ है। आज वह जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान के साथ आगे निकल पड़ा है।
चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स का पागलपन देखिये, वह हर दम हमें धौंस दिखाता है। वह समझ लिया है कि जैसे उसने तिब्बत को कब्जे में कर लिया, जैसे वह समय-समय पर अपने पड़ोसी जापान, ताइवान, विएतनाम, फिलीपीन्स को आंखे दिखाता है, उसी तरह भारत को भी आँख दिखायेगा और भारत उसके चरणों में जाकर झूक जायेगा। हम अच्छी तरह जानते है कि चीन को ये सब करने का मौका हमारी पूर्ववर्ती सरकारों ने दिया है, जिस पर अंकुश लगाने का काम वर्तमान सरकार और यहां की वीर युवाओं की टोली ने प्रारंभ किया है। हम चीन को बता देना चाहते है कि वे गीदड़भभकी दिखाना बंद करें और सच्चाई को समझे।
चीन का यह कहना कि भारत के लोग मेहनती नहीं, सिर्फ हल्ला करना जानते है, माल उससे ही खरीदेंगे तो फिर वो बौखलाहट में क्यों है?, वो हमें गाली क्यों दे रहा है?, जब वह सब कुछ जानता है। हम आपको बता देते है कि चीन समझ चुका है कि भारतीयों ने अब ये पूर्णतः समझ लिया है कि बिना चीन को उसकी औकात बताएं भारत का निर्माण हो ही नहीं सकता। तभी तो देश की करोड़ों जनता ने चीन को उसकी औकात बताने के लिए इस दीपावली में संकल्प कर लिया और चीन को उसकी औकात बतानी शुरु कर दी। पूरे भारत में एक प्रकार का चीनी सामानों के बहिष्कार का लहर है, जिस पर सारी जनता एक है।
आखिर चीनी सामानों का बहिष्कार क्यों?
1. चीन का सामान भारतीय सामानों की अपेक्षा घटिया होता है।
2. चीन के सामान से प्रदुषण का खतरा होता है।
3. चीन के खाद्य पदार्थों की विश्वसनीयता नहीं के बराबर होता है, वह किन चीजों से बनाकर भारत या अन्य देशों में भेजता है, उसकी विश्वसनीयता ही नहीं होती।
4. चीन कभी भी विश्वसनीय नहीं रहा।
5. चीन सिर्फ अपनी भलाई में ही मग्न रहता है और अपनी भलाई के लिए वह कुछ भी कर सकता है, जैसे दुसरे देश पर चढ़ाई और उसका मान-मर्दन। जैसे उसने तिब्बत पर चढ़ाई कर उस तिब्बत को सदा के लिए बर्बाद कर दिया। भारत का कई हजार वर्गमील उसने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है।
6. चीन पाकिस्तान के उन आतंकी समूहों की सराहना और बचाव करता है, जो भारत में आतंक फैलाता है।
7. चीन पाकिस्तान को हर मोर्चें पर मदद करता है, जिससे भारत को नुकसान पहुंचने की शत प्रतिशत गारंटी रहती है।
8. चीन के सैनिक हमेशा भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं।
चीन के समर्थक – भारत में चीन के भारत विरोधी और उसकी आक्रमणकारी गतिविधियों का समर्थन यहां के वामपंथी खुलकर करते है। वे अमरीकी साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगाते है, पर चीन के साम्राज्यवादी नीतियों को खुलकर समर्थन करते है, कई वामपंथी कार्यालयों में चीनी साम्यवादी नेताओं के चित्र और उन पर लदे फूल मालाएं आप स्वयं जा कर देख सकते है।
चीन अब जान चुका है कि भारत और भारत के लोग जाग चुके है, इसलिए वह अपनी भड़ास अब भारत और भारतीयों को गाली देकर निकाल रहा है। बस भारतीय सिर्फ इतना ही करें, अपने लिये संकल्प को पूरा करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे। जहां भी देखे, चीनी सामान उसका बहिष्कार करें। सरकार और यहां के नेता मजबूर हो सकते है, पर हम मजबूर नहीं, चीन को हम औकात बता कर रहेंगे, भारत को आर्थिक महाशक्ति बना कर रहेंगे। हम अपने पैसे से चीन की ताकत नहीं बल्कि चीन की ताकत को मटियामेट करेंगे और अपने जवानों को कहेंगे कि देखों हम तुम्हारे साथ है। डटे रहो सीमा पर। चीन को जवाब दो। हम सब मिलकर भारत की कायाकल्प करेंगे। चीन मुर्दाबाद। उसकी साम्राज्यवादी नीतियां मुर्दाबाद। उसकी भारत विरोधी गतिविधियां मुर्दाबाद। आंतक समर्थक पाकिस्तान समर्थक चीन और चीन की नीतियां मुर्दाबाद। मुर्दाबाद वे अखबार, वे नेता जो भारत में ही रहकर चीन की स्तुति गाते है, मेरा इशारा किस ओर है, आप समझ गये होंगे।

Wednesday, October 19, 2016

प्रभात खबर यानी हम नहीं सुधरेंगे.........

नीतीश भक्ति में सराबोर और जदयू के मुख पत्र के नाम से जनता में लोकप्रिय हो चुका प्रभात खबर सुधरने का नाम नहीं ले रहा, इसने एक बार फिर हम नहीं सुधरेंगे की पंक्ति को सर माथे बिठा, वो सारी हरकतें कर डाला है, जिससे यहां की नई पीढ़ी पूर्णतः बर्बाद हो जाये अथवा सर्वदा के लिए कन्फ्यूज्ड होकर अपनी जिंदगी बिताएं...
जरा एक बार फिर आज का रांची से प्रकाशित प्रभात खबर का पृष्ठ संख्या 3 का पहला कॉलम में प्रकाशित आज का पंचाग देखिये। जिसमें उसने लिखा है कि आज तृतीया तिथि है, जो रात्रि के 3.09 मिनट तक है, उसके बाद चतुर्थी तिथि है। मैं पूछता हूं कि जब आज तृतीया तिथि है, तो लोग आज करवा चौथ कैसे मना रहे है, ये प्रभात खबर बताये। कमाल है इसी में आगे पढ़िये तो प्रभात खबर के अनुसार आज बुधवार नहीं, बल्कि मंगलवार है और सबसे नीचे पर्व त्यौहार की पंक्ति पढ़े तो उसने लिख डाला है कि आज कोई व्रत-त्यौहार नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि आज चतुर्थी तिथि है, जो रात्रि के 12.48 तक है, दिन बुधवार है और आज महिलाओं के लिए बहुत ही खास पर्व है – करवा चौथ है।
मेरा स्पष्ट मानना है कि जब आपको पंचाग के बारे में जानकारी ही नहीं, तो तुम पंचाग क्यों छापते हो? इसकी आवश्यकता ही क्या है? अगर तुम्हें जानकारी नहीं तो फिर क्या इस आधार पर गलत छापोगे और सबको कन्फ्यूज्ड करते रहोगे। यह कहकर कि हमें कुछ भी बेवजह छापने का अधिकार है और सभी को कन्फ्यूज्ड और उनके पर्व-त्यौहारों में मानसिक खलल डालने का अधिकार है। हम आपको बता दें कि ऐसी हरकत प्रभात खबर पहली बार नहीं किया, ये ऐसी हरकते बार-बार करता है, और सुधरने का नाम नहीं ले रहा।
मेरा इस आलेख लिखने का अभिप्राय यह है कि आम जनता जान लें कि अखबार में लिखी सारी बातें सच्ची नहीं होती, ज्यादातर झूठ के पुलिंदे होते है, जो मूर्खों के द्वारा लिखित व प्रकाशित होते है, इसलिए जनता इनकी बातों में न आये और अपने विवेकानुसार पंचाग को देखे, समझे, तब व्रत व त्यौहार का निर्णय लें, नहीं तो आप समझ लें कि इन्होंने आपको धोखे देने का मन सदा के लिए बना लिया है, और ये बराबर धोखे देते रहेंगे, ये कहकर कि हम अखबार नहीं आंदोलन है.......

Tuesday, October 11, 2016

महाशक्ति, हम और पाकेटमार...............

महाष्टमी का दिन
प्रातः दुर्गा पाठ, फिर दिन भर का भागम भाग, उसके बाद ऑफिस आना और वहां के कार्य को संपन्न करना, तत्पश्चात् रात्रि में हम अपनी पत्नी के साथ रांची के विभिन्न पंडालों में स्थापित मां दुर्गा का दर्शन करने के लिए घर से निकले। सर्वप्रथम हम पहुंचे चर्च रोड स्थित मां दुर्गा के पंडाल में, वहां श्रद्धा निवेदित किया। उसके बाद ओसीसी क्लब, राजस्थान मित्र मंडल, भारतीय युवक संघ बकरी बाजार, शक्ति श्रोत संघ, सत्य अमर लोक होते हुए आर आर स्पोर्टिंग क्लब रातू रोड पहुंचे।
यहां भारी भीड़ थी, महिला और पुरुषों के लिए अलग – अलग कतार बने थे, मैंने अपनी पत्नी को कहा कि आप महिला वाली कतार से होते हुए भगवती के दर्शन कर बाहर निकलिये और हम पुरुषों वाली कतार से होकर बाहर निकलते है। कुछ कदम ही उपर बढ़ाये कि मेरे आस-पास पांच-छ व्यक्तियों का ग्रुप मेरे चारों ओर घेरा बनाकर चलने लगा। एक के हाथ मेरे फुलपेंट के पाकेट की ओर बार-बार बढ़ रहे थे। मुझे अब जानते देर नहीं लगी कि हम पाकेटमारों के घेरे में आ गये है। हम भी पाकेटमारों के घेरे में आने के बाद सचेत हो गये और उन पर अपनी नजरे टिका दी और साथ ही अपने फुलपेंट के पाकेट पर अपने हाथ को एक सिपाही की तरह मुस्तैद कर दिया। जब हम आर आर स्पोटिंग क्लब से बाहर आये, तो हमने पाया कि वह पाकेटमारों का दल, पाकेटमारी में सफल नहीं होने के कारण बेचैन दीखा।
अब उन्होंने मेरी पाकेटमारी करने के लिए ब्रह्म कुमारियों द्वारा लगाये गये स्टाल को चुना, जहां जीवंत देवियों की झांकियां दिखाई जा रही थी। पाकेटमारों का दल यहां मुस्तैद था, पर मेरी पत्नी ने कहा कि वह इस प्रकार की झांकियां देख चुकी है, बारिश हो रही है, जल्द घर भी पहुंचना है, नहीं तो मकान मालिक दरवाजा बंद कर देगा तो फिर रात भर बाहर ही गुजारना पड़ेगा, इसलिए यहां से चला जाये। मैंने भी सोचा की बात में दम है, इसलिए निकला जाये। तभी पाकेटमारों का दल जो यहां हमारी पाकेटमारी करने के लिए मुस्तैद था, मुझे उस ओर से गुजरते हुए, फिर मेरी ओर लपकने की कोशिश की। पाकेटमारों की इस हरकत को देख, मैने उन पाकेटमारों को स्पष्ट रुप से कह दिया कि भाई, मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम सभी पाकेटमार हो, और मेरे पाकेट में रखे हुए रुपयों पर तुम्हारी नजर है। अच्छा रहेगा कि तुम लोग दूसरी जगह पाकेटमारी की तलाश करों, नहीं तो तुम्हें दिक्कत हो जायेगी, क्योंकि पहली बात कि तुम हमारी पाकेटमारी नहीं कर सकते, क्योंकि मैं तुम्हें जान गया हूं कि तुम सभी पाकेटमार हो और अब हमारा पीछा किया तो हमें पुलिस की सेवा लेते देर नहीं लगेगी। इतना कहना था कि स्वयं को पोल खुलता देख, वे सारे पाकेटमार उसके बाद फिर हमारी पीछा नहीं कर पाये, शायद उन्हें लगा कि मेरे सामने उन सबकी पोल खुल गयी है। ऐसे मैं इन सारे पाकेटमारों को देख कर पहचान सकता हूं, अगर रांची पुलिस हमारी मदद लेनी चाहे, तो मैं यह मदद देने को भी तैयार हूं।
इसके बाद हम कचहरी रोड पहुंचे, फिर बिहार क्लब। बिहार क्लब से आगे बढ़ते ही हमारे साथ एक घटना घट गयी। एक जगह प्रसाद बंट रही थी, हम दोनों ने प्रसाद ग्रहण किया और प्रसाद ग्रहण करने के बाद जैसे ही हाथ धोने के लिए हम झुके, तभी एक 14 वर्षीय एक किशोर ने हमारी उपरी पाकेट से सैम्संग जी 7 मोबाइल आराम से निकाल लिया और चुपके से भागने की कोशिश करने लगा। जैसे ही वह किशोर हमारे पाकेट से पाकेटमारी करते हुए सैम्संग जी 7 मोबाइल निकाला, हमें आभास हुआ कि किसी ने मोबाइल हमारी निकाल ली, और तभी हमने झट से उक्त किशोर को पकड़ा, उस किशोर को अपने चंगुल में, मैंने जैसे ही लिया। वह बोला कि मेरा मोबाइल नीचे गिर गया था, यानी पकड़ में आने के बाद झूठ बोलकर बचने की कोशिश। तभी गुस्सा आया और मैंने चार-पांच थप्पड़ जड़ दिये। अंततः मुझे दया आयी और मैंने उसे छोड़ दिया। मेरा छोड़ना था कि वह दनदनाते हुए भाग निकला। यानी महाष्टमी के दिन हमारे साथ पाकेटमारी की दो घटना और दोनों घटनाओं से हम बच निकले, कोई नुकसान नहीं।
हम आपको बता दे कि जैसे ही यह दोनों घटनाएं घटी थी, हमें लगा कि कोई अदृश्य शक्ति ने हमें बताया कि तुम्हारे साथ घटना घट रही है, बचो और मैं स्वयं को बचा लिया। जरा सोचिये, अगर दोनों घटनाओं को अंजाम देने में पाकेटमार सफल हो जाते तो हमारा क्या होता? हम महाष्टमी का आनन्द नहीं ले पाते, फिर दो – तीन दिनों के लिए तनाव की स्थिति आ जाती और हम दुर्गा पूजा का आनन्द कम, विषाद में ज्यादा डूब जाते। सचमुच मां ने कृपा किया और हम पाकेटमारों द्वारा मिलनेवाले दुख से बाल – बाल बच गये।

Wednesday, October 5, 2016

लो शुरू हो गया अपनी ढपली अपना राग..............

अरविंद केजरीवाल, अरुण शौरी, दिग्विजय सिंह के बाद संजय निरुपम और पता नहीं और कौन – कौन से लोग आयेंगे। इन सभी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मांग की है कि वे सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जारी करें। इन्होंने प्रत्यक्ष रुप से ये भी कह डाला कि इस प्रकार के स्ट्राइक पूर्व में भी होते रहे पर किसी ने इस प्रकार से मीडिया के समक्ष इन बातों को नहीं उठाया, पर भाजपा की मोदी सरकार ने पालिटिकल माइलेज के लिए ऐसा किया। हमें पूरा विश्वास था कि कुछ दिनों के बाद इस प्रकार के बयान सुनने को मिलेंगे, इसकी संभावनाएं हमें पहले से थी, क्योंकि विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जहां देशद्रोहियों की एक परंपरा रही है। उन परंपराओं की ओर जायेंगे तो देखेंगे कि इसकी बहुत बड़ी लिस्ट है, पर मैं ज्यादा तो नहीं, पर कुछ महान देशद्रोहियों का नाम यहां जरुर रखना चाहेंगे। मो. गोरी के समय जयचंद, ब्रिटिश हुकुमत के समय जब महारानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ रही थी, तो सिंधिया परिवार ने लक्ष्मीबाई को मदद न कर, अंग्रेजों की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसका वर्णन तो सुप्रसिद्ध कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने भी किया – यह कहकर कि अंग्रेजों के मित्र सिंधिंया ने छोड़ी रजधानी थी, खुब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी। सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी व देश की युवाओं के धड़कन भगत सिंह को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने में सुप्रसिद्ध पत्रकार खुशवंत सिंह के पिता शोभा सिंह का बहुत बड़ा हाथ था। इसलिए जब हाफिज सईद जैसे आतंकियों को सईद जी कहकर संबोधित करनेवाला वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह जब ये कहता है कि सर्जिकल स्ट्राइक जैसी चीज कुछ हुई ही नहीं तो हमें यह आश्चर्य नहीं होता और रही बात संजय निरुपम की तो फिलहाल शिव सेना से कैरियर शुरु करनेवाला अभी सेकुलर राजनीति का प्याज खा रहा है, अरविंद केजरीवाल तो दुनिया के एकमात्र ईमानदार नेता है, इसलिए उनकी ईमानदारी तो इसी में है कि वे प्रधानमंत्री के साथ – साथ भारतीय सेना पर भी अंगूली उठा दें। अरुण शौरी के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो वो बैंटिग की है कि उनका वश चले तो वे जयचंद को भी मात दे दें। ये तो रहा भारतीय पक्ष अब देखते है पाकिस्तान के क्या हाल है... पाकिस्तान भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर इतना घबराया हुआ है कि पाकिस्तानी सेना पिछले दिनों पत्रकारों का एक दल बार्डर के समीप ले गया। उसके इस हरकत पर फ्रांसीसी न्यूज एजेंसी एएफपी ने पाकिस्तान के इस हरकत को एक दुर्लभ कदम करार दिया। पाकिस्तानी मीडिया डॉन और द न्यूज इंटरनेशनल के मुताबिक वहां सर्जिकल स्ट्राइक के कोई निशान नहीं मिले पर एएफपी ने पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल असीम बाजवा का बयान छापा कि जिसमे बाजवा ने कहा कि उनका इलाका मीडिया के लिए खुला है, आप देख सकते है कि यहां शांति है, यहां कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुई, हालांकि एएफपी ने यह भी लिखा बाजवा के दावों की पुष्टि करना संभव नहीं था कि भारतीय सेना ने उन क्षेत्रों में सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की। इधर आतंकी दाउद इब्राहिम का समधी जावेद मियांदाद अपने स्वभावानुरुप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गालियों से नवाजा है। पाकिस्तान के पूर्व वायुसेना प्रमुख रह चुके एयर मार्शल असगर खान ने कहा है कि पाकिस्तान को भारत से कभी कोई खतरा नहीं रहा, सच्चाई यह है कि पाकिस्तान ने ही भारत पर ज्यादा हमले किये। इसी बीच भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इतनी विकट परिस्थितियों में भी मानवीय मूल्यों को तरजीह देकर दोनों देशों में सुर्खियां बटोर ली है, जब उन्होने पाकिस्तानी यूथ डेलिगेशन के साथ मित्रवत् व्यवहार किया। हुआ यह कि एक अक्टूबर को पीस फोरम आगाज दोस्ती की कन्वेनर आलिया हरीर ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से अपनी सुरक्षा को लेकर बात की। सुषमा ने आलिया को सुरक्षित वापसी को लेकर भरोसा दिलाया। सुषमा स्वराज ने इस टीम को हृदय को छू लेनेवाली प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बेटियों के लिए कोई सरहद नहीं होती। बेटियों का ताल्लुक सबसे होता है।
इसी बीच यूनाइटेड नेशन में रूस के राजदूत और अक्टूबर महीने के लिए सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ने पाकिस्तान को तगड़ा झटका दिया है। उन्होंने यूनाइटेड नेशन जैसी वैश्विक संस्था में कश्मीर मसले और भारत की सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा उठानेवाले पाकिस्तान को स्पष्ट तौर पर झिड़की लगायी है और कह दिया कि यह सुरक्षा परिषद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनावों पर चर्चा नहीं करने जा रहा। संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत विताली चर्किन ने तो मीडिया के द्वारा पूछे गये सवाल पर भी नो कमेंट्स कहकर निकल गये। कुल मिलाकर पूरे विश्व स्तर पर भारत को मिल रही साख और भारतीय सेना को मिल रहे साथ पर अब भारत के कुछ जयचंदों की फौज अंगूलियां उठानी शुरु कर दी है, वह भी क्षुद्रस्वार्थ के लिए। यही भारत की सही इमेज है, जो कभी भी खत्म नहीं हो सकती।
(यह आर्टिकल रांची से प्रकाशित समाचार पत्र आजाद सिपाही में आज के अंक में संपादकीय पृष्ठ 11 पर प्रकाशित है।)

Sunday, October 2, 2016

एम एस धौनी दि अनटोल्ड स्टोरी – खूब तो नहीं, पर चलेगा जरुर........

रांची की धड़कन है धौनी
हर युवा के दिलों में बसते है धौनी
इसलिए एम एस धौनी पर तो रांची का हक बनता ही है। मीडिया से लेकर सोशल साइट्स तक धौनी के फिल्म की धूम है। तभी तो फेसबुक पर कई लोगों ने अपने फोटो पर एम एस धौनी दि अनटोल्ड स्टोरी की मुहर लगाकर फिल्म का एक तरह से प्रचार भी कर दिया और अपने फोटो को कवर फोटो बनाने से भी हिचक नहीं की। एम एस धौनी दि अनटोल्ड स्टोरी बनाने के लिए फिल्म निर्माता अरुण पांडे, निर्देशक नीरज पांडे बधाई के पात्र है, वे प्रशंसा के हकदार है। फिल्म नीति राज्य में लागू हो जाने के बाद, इस प्रकार के फिल्म की राज्य को जरुरत भी थी और उस पर से अपने ही राज्य का कोई आइ-कॉन पर फिल्म बन जाये तो मजा आनी ही है।
इस फिल्म को राज्य सरकार ने टैक्स फ्री कर दिया है। हमारा राज्य सरकार से अनुरोध होगा कि वे इस फिल्म पर रहम करें और अपना टैक्स फ्री की कृपा वापस ले लें, क्योंकि इसका फायदा राज्य की जनता को न के बराबर मिल रहा है, हमें लगता है कि राज्य की जनता के हित में ही राज्य सरकार ने यह फैसला लिया होगा, पर जब राज्य की जनता को इसका लाभ न मिलें तो इस प्रकार की घोषणा या फैसला बेमानी है, टैक्स फ्री का सीधा फायदा मिल रहा है मल्टीप्लेक्स और सिनेमाघरों को। फिल्म अच्छी बन पड़ी है, लोग देख रहे है, लोगों को फिल्म प्रभावित भी कर रही है, एक साधारण घर में पैदा लेनेवाला बच्चा अपनी प्रतिभा के आधार पर कैसे शिखर पर पहुंचता है, इसकी बानगी है – एम एस धौनी, दि अनटोल्ड स्टोरी।
जो लोग धौनी को जानते है, समझते है, उनके लिए ये फिल्म किसी रामायण से कम नहीं पर जिनको धौनी पसंद नहीं, उनके लिए भी ये फिल्म किसी इतिहास से कम नहीं। जरा फिल्म को देखिये। हर जगह कसावट, बिना विलेन के फिल्म, और लोग कुर्सी से चिपके है। डायलॉग भी बिहारी और झारखण्डी टोन लिये हुए, इसलिए हंसी खूब जमकर आ रही है। इस फिल्म में कुछ रोचक तथ्य भी जोड़े गये है, जैसे पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के वे बयान जो धौनी पर दिये गये, इस फिल्म में दिखाया गया है। जो लोग जानते है कि भारत की करारी हार के बाद, रांची के एक पत्रकार द्वारा कैसे धौनी के घर पर पत्थरबाजी करवायी गयी थी, विजूयल बनाने के लिए, उसका भी चित्रण है। चित्रण इसका भी किया गया है कि कैसे फार्म में नहीं चल रहे सचिन तेदुंलकर को लेकर, धौनी ने टीम भावना को उपर रखते हुए अपनी बात रखी थी। चूंकि फिल्म का नाम द अनटोल्ड स्टोरी से जुड़ा है, इसलिए धौनी के दिल पर राज करनेवाली युवती का बड़ा ही खुबसुरत और मार्मिक चित्रण इस फिल्म में देखने को मिला है, पर कुछ अनसुलझे सवाल भी है, जो फिल्मकार सुलझा नहीं पाये, दर्शकों को यह बात कुछ ज्यादा ही खटकती है।
महेन्द्र सिंह धौनी के एक बड़े भाई है – संभवतः नरेन्द्र सिंह धौनी। आखिर जब फिल्मकारों ने धौनी के परिवारों को दिखाया, और धौनी के जन्म से लेकर बात उठाई तो भला उनका बड़ा भाई नरेन्द्र कहां गायब हो गया। हो सकता है कि नरेन्द्र से किसी बात को लेकर, धौनी के परिवार को दूरियां हुई हो, पर उसे बचपन के रोल में तो दिखाया ही जा सकता था, इस फिल्म में तो महेन्द्र सिंह धौनी की एक बहन को दिखाया गया पर भाई को छोड़ दिया गया। यहां दर्शकों के साथ फिल्मकार द्वारा न्याय नहीं किया गया।
महेन्द्र सिंह धौनी, ऑल राउंडर है, वे अच्छा बैटिंग करते है, अच्छा फील्डिंग करते है, अच्छा विकेट कीपरिंग करते है, कभी – कभी वे बालिंग भी कर लेते है, पर मूलतः वे विकेटकीपर ही है, इस फिल्म में उन्हें केवल बैट भांजते हुए दिखाया गया, पर यह नहीं दिखाया गया कि वे कैसे फील्डिंग, कैसे विकेट कीपरिंग कर अपने देश का सम्मान बढ़ाया। यानी फिल्मकार ने विकेटकीपर को केवल बैट्समेन बनाकर प्रस्तुत किया।
धौनी के नेतृत्व में भारत ने वर्ल्ड कप जीता पर धौनी के नेतृत्व में भारत ने टी 20 पर भी कब्जा जमाया, पर हमें लगता है कि फिल्म की लंबाई बढ़ने के भय ने फिल्मकारों को वर्ल्ड कप तक ही रखने पर विवश किया होगा।
एक बात और फिल्मकारों ने दिउड़ी मंदिर को कैसे छोड़ दिया, क्योंकि धौनी तो कहा जाता है कि जब भी रांची आते है तो दिउड़ी मंदिर जरुर जाते है, उनके कारण ही दिउड़ी मंदिर की लोकप्रियता बढ़ी, खूब यहां के चैनलवालों ने भी इस मंदिर को धौनी से जोड़ा और फिल्मकारों को इसकी भनक तक नहीं लगी, आश्चर्य है।
पूरे फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत, राजेश शर्मा, दिशा पटानी ने बेहतर अभिनय से लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है, जबकि अनुपम खेर इस फिल्म में सामान्य नजर आये, ऐसे भी इस फिल्म में उनके लिए कुछ करने को भी न था। अंततः पूरे देश को एक बेहतरीन, साफ-सुथड़ी फिल्म बहुत दिनों के बाद मिली है, लोग पूरे परिवार के साथ इस फिल्म का आनन्द ले सकते है। रही बात झारखण्ड की, तो धौनी के लिए तो पूरा झारखण्ड ही उतावला है। आशा की जानी चाहिए कि पांडे परिवार द्वारा बनायी गयी यह फिल्म उनके कैरियर में भी धौनी की तरह धनवृद्धि का उपहार विशेष तौर पर लेकर आयेगी।

Saturday, October 1, 2016

सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तानियों के बैंड बजा दिये, पूरा पाकिस्तान सदमें में.................

सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तानियों के बैंड बजा दिये, पूरा पाकिस्तान सदमें में
पाकिस्तान की सड़कों पर पिछले दो दिनों से नहीं दीख रहे आतंकी...
भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक को क्या अंजाम दे दिया। पूरा पाकिस्तान ही सदमें में है। पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल आपरेशन के खात्मे के बाद, न तो लश्करे तैय्यबा, न हिजबुल मुजाहिद्दीन और न ही जैशे मोहम्मद के आतंकियों की ओर से इस संबंध में कोई बयान आये है। बात-बात में जमात उत दावा का आतंकी जो भारत के खिलाफ जहर उगलता था, उसकी भी बोलती बंद है। कल तक हर बात में भारत को देख लेनेवाले पाकिस्तान आतंकियों का समूह जो पाकिस्तान की सड़कों पर एक भारी भीड़ लेकर जमा होता था, वो दिखाई नहीं दे रहा। न तो पाकिस्तान के अखबार में उनके बयान नजर आ रहे है और न ही भारत के अखबारों में। चूंकि ये सर्जिकल वार उन आतंकियों के खिलाफ था, जो भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों में लिप्त होते हुए पाकिस्तान की सरजमीं को अपना जन्नत समझते है, ऐसे में उनकी प्रतिक्रिया ज्यादा जरुरी थी, पर हमें लगता है कि जिस प्रकार से भारतीय सेना ने उड़ी का बदला लिया है। अब वे भी समझ गये होंगे कि वे पाकिस्तान में भी सुरक्षित नहीं है। भारतीय सेना उनका हर जगह, उन्हें सबक सिखाने को अब तैयार है। भारत अब पाकिस्तान के इस गीदड़भभकी से भी डरने को तैयार नहीं कि पाकिस्तान एक न्यूक्लियर पावर है।
आश्चर्य इस बात की है कि पूरे पाकिस्तान के ये हाल है कि उसका प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सेना इन सब के बयान सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर समानता लिये हुए नहीं हैं, जबकि इसके ठीक उलट भारत की ओर से भारत के प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सेना के बयानों में समानता है।
यहीं नहीं पहले पाकिस्तानी नागरिक और अब भारतीय नागरिकता प्राप्त कर चुके अदनान सामी के ट्वीट ने पाकिस्तानियों के नींद उड़ा दिये है। अदनान सामी ने ट्वीट कर भारतीय प्रधानमंत्री और भारतीय सैनिकों को आतंक के खिलाफ कार्रवाई करने पर बधाई दे दी है। पाकिस्तानियों ने अदनान सामी के खिलाफ गालियों का बौछाड़ कर दिया है, स्थिति ऐसी है कि अदनान सामी के इस ट्वीट पर पाकिस्तानियों का गुस्सा सातवें आसमान पर है।
अगर पाकिस्तान की अखबारों की बात करें, तो उनके भी सुर बदले हुए है, अपने पोर्टलों पर कभी कुछ तो कभी कुछ लिखकर आत्मसंतुष्टि दिखा रहे है, जिसमें डॉन जिसे एक जिम्मेदार अखबार माना जाता है, उसकी ओर से भी गलतियां साफ दिखाई पड़ रही है, जैसे डॉन ने लिख दिया कि पाकिस्तान की ओर से जवाबी कार्रवाई में 8 भारतीय सैनिक मारे गये, जबकि इस खबर में कोई सच्चाई नहीं, बाद में उसने संशोधित किया। यानी एक सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तानियों के दिमाग में ऐसे स्ट्राइक किये है कि पूछिये मत।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री, वहां के सरकार में शामिल अन्य नेता व विपक्ष, यहां तक की मीडिया और सेना तक यह बात मानने को तैयार नहीं कि भारत ने उनसे उड़ी का बदला ले लिया, सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया पर विश्व के अन्य देशों के अखबारों ने सिद्ध कर दिया कि भारतीय सेना ने आक्रामकता दिखाई और पाकिस्तान को बैकफूट पर भेजने में कामयाबी हासिल किये। इसके लिए आप बीबीसी और न्यूयार्क टाइम्स का आधार ले सकते है।
हालांकि ये सवाल पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के लोग पूछ रहे है कि अगर उनके अनुसार भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की तो फिर उन्हें बेचैनी क्यूं है। वे इस घटना की गुरुवार से लेकर बार-बार निंदा क्यूं कर रहे है। जब मामला लाइन ऑफ कंट्रोल पर सामान्य घटना से जुड़ा है तो वहां के रक्षा मंत्री और सेना के चेहरे, यहां तक मीडिया में काम कर रहे लोगों के चेहरों पर हवाइयां क्यों उड़ रही। बार –बार परमाणु बम की धौंस कहा गयी। एक गैर-जिम्मेदारानां मुल्क की तरह बयानबाजी करनेवाला देश आज असहाय क्यूं है, ये पाकिस्तान को चिंतन करना चाहिए। क्या वजह है कि आज बांगलादेश, भूटान, अफगानिस्तान, भारत यहां तक ईरान आप से खफा है। एक समय था कि कश्मीर मुद्दे को ही लेकर विश्व के कई देश आपके साथ हो जाया करते थे, पर आपने आतंकियों को ऐसा पाला कि इक्के-दुक्के को छोड़ कोई आपके साथ नहीं।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा केरल में दिया गया बयान आज पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक है कि हमें गरीबी, बेरोजगारी के लिए लड़ना है, अपने देश को विकसित करने के लिए काम करना है, पर आप तो नरेन्द्र मोदी को सुनने को ही तैयार नहीं। आज पता नहीं कैसे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने स्वयं के द्वारा बुलाये गये फेडरल कैबिनेट की बैठक में गरीबी और बेरोजगारी से लड़ने की बात कह दी, पर वे ये कहना नहीं भूले कि भारत के इस आक्रामक प्रहार का जवाब देने के लिए उनकी सेना तैयार है। वे आज भी कश्मीर को लेकर अपनी नीति स्पष्ट कर दी, कि हम नहीं सुधरेंगे। हम भी जानते है कि पाकिस्तान कभी नहीं सुधरेगा, क्योंकि पाकिस्तानियों को जो इतिहास पढ़ाये जा रहे है, उस मूल में ही भारत के प्रति नफरत कूट-कूट कर भरा जाता है, ऐसे में आप पाकिस्तान से बेहतर संबंध किसी कालखंड में संभव नहीं। हम आपको बता दें कि अगर कश्मीर समस्या हल भी हो जायेगा तो ये मत भूलिये कि ये देश आपको शांति से रहने देगा, क्योंकि इसकी बुनियाद में ही भारत के प्रति नफरत भर दी गयी है, जबकि इसके विपरीत आप भारत के किसी भी शिक्षा केन्द्र में चल रहे पुस्तकों को टटोलें तो उसमें पाकिस्तान के खिलाफ एक भी शब्द नहीं मिलेगा, जिससे यह पता चलता हो कि भारत ने कभी अपने पड़ोसी के खिलाफ सपने में भी बुरा सोचा हो।
(यह आर्टिकल रांची से प्रकाशित समाचार पत्र आजाद सिपाही में आज के अंक में संपादकीय पृष्ठ 11 पर प्रकाशित हुई है।)