Friday, January 27, 2017

और एक-एक कर सभी नंगे हो गये...............

और एक-एक कर सभी नंगे हो गये...
ये हैं रांची के पत्रकार,
देखिये क्या कर रहे है?
ये एक निकृष्ट बैग के लिए हाय तौबा मचा रहे हैं...
मामूली बैग, जिसकी बाजार में कीमत सौ-दो सौ से ज्यादा कुछ भी नहीं...
फिर भी मुफ्त के बैग में आनन्द की प्राप्ति होती है, इसलिए वे एक मामूली बैग को लेने के लिए लूच्चे व भिखारी की तरह हरकते कर रहे हैं...
जिन्हें बैग इन पत्रकारों को देना है, वे आराम से दूर से यह दृश्य देखकर, मुस्कुरा रहे है...
शायद वे इसलिए मुस्कुरा रहे है, कि जो काम कोई नहीं कर सका, इन्होंने कर दिया...
यानी उधर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 23 जनवरी को विधानसभा में झारखण्ड का बजट पेश किया और इधर आइपीआरडी ने पूरे विधानसभा में रांची के सभी बड़े प्रतिष्ठानों के अखबारों और चैनलों के पत्रकारों को लूच्चा व भिखारी करार दिया...
ये किसने किया, हम आपको बताते है, ये सारा श्रेय जाता है, आइपीआरडी के निदेशक राजीव लोचन बख्शी को, जिसकी खुराफाती दिमाग ने ये सारा कार्य कर दिया...
मैं पूछता हूं कि जब दीवाली में सारे पत्रकारों को मिठाई का डिब्बा, ये आइपीआरडी आराम से उनके घर तक पहुंचाता है, तो क्या यह एक मामूली बैग, जिसके लिए विधानसभा में पत्रकार भिखारियो की तरह हरकतें कर रहे हैं, उनके घर तक नहीं पहुंचा सकता था...
मेरा उत्तर है, पहुंचा सकता था, पर इसने ऐसा नहीं किया,
क्योंकि आइपीआरडी के निदेशक राजीव लोचन बख्शी को, तो विधानसभा में पत्रकारों को नंगा करना था, उसने कर दिया और पत्रकार नंगे हो गये, जरा देखिये नीचे में एक फोटो, जिसमें आइपीआरडी का निदेशक राजीव लोचन बख्शी, कैसे पत्रकारों के इस बेशर्मी वाली हरकतों को देखकर मुस्कुरा रहा है...
कमाल
है, सब की इज्जत की मिट्टी पलीद करनेवाले ये अखबार और चैनलवाले अपनी इस गंदी हरकतों को न तो छापे और न ही दिखाया, शायद उन्हें लगा कि छापेंगे और दिखायेंगे तो उनकी इज्जत चली जायेगी, अरे तुम्हारी इज्जत है कहां कि जायेगी, जनता तो तुम्हें खूब अच्छी तरह जानती है कि तुम क्या हो?

अखबारों और चैनलों के होठ सील गये हैं..................

अखबारों और चैनलों के होठ सील गये हैं...
वरीय अधिकारियों के दल ने विज्ञापन का ऐसा लालच दिखाया है कि ये अखबार और चैनलवाले आम जनता के सामने नंगे हो गये है, फिर भी बेशर्म की तरह सीना तानकर खड़े है और कह रहे है कि हम लोकतंत्र के चौथे स्तंभ है, जबकि सच्चाई यह है कि ये इंसानियत के नाम पर कलंक है...
आपको मालूम होगा कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत दो बेटियों ने यहां हो रहे गलत कार्यों का विरोध किया, उनका कहना था कि मुख्यमंत्री जनंसवाद केन्द्र में कार्यरत महिलाओं के साथ अपमानजनक व्यवहार होता है, इन दोनों बेटियों ने इसकी जानकारी राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष को पत्र के माध्यम से दी, साथ ही इसकी प्रतिलिपि भारत के प्रधानमंत्री, झारखण्ड की राज्यपाल, झारखण्ड के मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय महिला आयोग, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव और सचिव को भेजी।
पर सवाल यह है कि जब यहां राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष ही नहीं तो इन बेटियों के पत्र का संज्ञान कौन लेगा? हद हो गयी, क्या इस सरकार के पास, या इस राज्य में एक भी योग्य महिला नहीं, जो राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष बन सकें। ऐसे में महिलाओं की समस्याओं का हल कौन निकालेगा? क्या ऐसे में उनलोगों का मनोबल नहीं बढ़ेगा, जो महिलाओं का अपमान करते है या उनके साथ दुर्व्यवहार करते है।
कमाल है, यहां संयोग देखिये महिला राज्यपाल है, वह महिला राज्यपाल जो बेटियों की समस्याओं को लेकर सजग है, पर वे इस मामले में सजग नहीं दिखी, जबकि इन बेटियों ने उनका भी दरवाजा खटखटाया, पर न्याय नहीं मिला... इन बेटियों ने स्वयं द्वारा लिखे पत्र की एक प्रतिलिपि राजभवन में भी दी... कमाल है राजभवन के वरीय अधिकारियों का दल जिस सूचना भवन में बैठता है, उसी के ठीक नीचे चलता है, मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र, फिर भी उसे न्याय नहीं मिलता...
गजब स्थिति है...राज्य की...
गलत करनेवाले मस्त और सहीं करनेवाले पस्त...
किसी ने ठीक ही कहा है कि जहां की सरकार हाथी उड़ाने में मस्त हो,
वहां, उसके पास वक्त कहां कि जो बेटियों को न्याय दिला सकें...
जरा देखिये...
मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र के हाल...
क. नियोक्ता लड़कियों को नियुक्ति पत्र नहीं देता, पर निलंबन पत्र अवश्य थमा देता है...
ख. उसने आंतरिक शिकायत समिति का गठन ही नहीं किया, जबकि ये ज्यादा जरुरी है, वह भी तब जहां बड़ी संख्या में लड़किया कार्यरत हो...
ग. श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन करता है, एक ही कार्य के लिए समान वेतन नहीं, बल्कि वेतन में भी असमानता है...
घ. राज्य सरकार बतायें कि यहां कार्यरत बड़ी संख्या में महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या विशेष व्यवस्था की है?
ऐसे कई प्रश्न है, जिसका जवाब न तो राज्य सरकार के पास है और न ही मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र चलानेवालों के पास...
यहां कार्य करनेवाले वरीय अधिकारियों का दल बहुत सारी बातें, इस शर्त पर बताता कि उनका नाम न प्रकाशित किया जाय...
वह कहता है कि
यह विभाग उसी दिन डूब गया था, जब ये विभाग सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से आइटी विभाग को दे दिया गया...
आइटी विभाग में जाते ही मनमानी शुरु हुई, महिलाओँ के साथ अपमान और दुर्व्यवहार का सिलसिला शुरू हुआ...
आइटी विभाग के वरीय अधिकारी यहां तक कि सचिव भी अपने कनीय अधिकारियों के साथ सही व्यवहार नहीं करते, जिसका परिणाम सामने है...
मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र के अधिकारियों का मनमाना रवैया...
और दोषपूर्ण कार्यप्रणाली का प्रमाण है ये सब दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं...
नाम का है, 181... ऐसी बहुत सारी शिकायतें है, जिसका हल न तो मुख्यमंत्री निकाल पाये और न ही अधिकारी, जबकि शिकायतकर्ता मारे- मारे फिर रहे है...
ऐसा मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र रहे या न रहे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता...
आम जनता को इससे कोई राहत नहीं...
कुल मिलाकर मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र चूं – चूं का मुरब्बा बन गया है...
राज्य की स्थिति ऐसी है कि
मूर्ख और चाटूकार – उपदेशक और सलाहकार बन रहे है...
और ईमानदार, अपनी इज्जत बचाने में ही ज्यादा समय बीता रहे है...
ऐसे में इन बेटियों को, राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास से या मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र से न्याय मिलेगा, इसकी संभावना कम ही दीखती है...
फिर भी निराश होने की जरुरत नहीं,
संघर्ष तो रंग लाता ही है...

धिक्कार रांची की मीडिया और मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र को ...............

धिक्कार...
रांची की मीडिया को जिन्होंने रांची की बेटियों की आवाज सुनने से इनकार कर दिया...
धिक्कार उस सरकार को जिसे पता ही नहीं कि उनकी बेटियों के संग उन्हीं के नाक के नीचे क्या हो रहा है...
रांची स्थित सूचना भवन में चल रहे मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत महिलाकर्मियों ने राज्य महिला आयोग को पत्र लिखा है कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत वरीय अधिकारियों एवं नियोक्ता के द्वारा उनके साथ बराबर दुर्व्यवहार किया जाता है, अपमानित किया जाता है... इन महिलाकर्मियों ने उक्त पत्र की प्रतिलिपि राष्ट्रीय महिला आयोग नई दिल्ली, प्रधानमंत्री भारत सरकार, मुख्यमंत्री झारखण्ड, राज्यपाल झारखण्ड, मुख्य न्यायाधीश झारखण्ड, मंत्री महिला एवं बाल विकास, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव और सचिव को भी भेजा है... इन महिलाकर्मियों ने अपने पत्र में लिखा है कि...
क. मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र के वरीय अधिकारियों और नियोक्ता का व्यवहार अपने महिला संवादकर्मियों के प्रति बेहद आपत्तिजनक और अशोभनीय होता है।
ख. यहां कार्यरत वरीय अधिकारियों के करतूतों से अखबार के पन्ने रंगे हुए है, पर इन वरीय अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती, उदाहरणस्वरुप रांची के सुखदेवनगर थाने में इसी मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत एक महिलाकर्मी द्वारा दर्ज करायी गयी वह प्राथमिकी है, जिसकी सुनवाई भी नहीं हुई और मामले को रफा-दफा करते हुए जिस लड़की ने एफआईआर दर्ज कराया था, उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
ग. जब भी कोई महिलाकर्मी बाथ रुम जाती है, तो उसका पीछा किया जाता है, उनके साथ ऐसी हरकतें की जाती है, जिसका उल्लेख वो इस पत्र में नहीं कर सकती।
घ. यहां के नियोक्ता द्वारा बराबर सामूहिक स्तर पर महिला संवादकर्मियों को अपमानित व प्रताड़ित किया जाता है।
ड. एक ही कार्य के लिए नियुक्त कई महिला संवाद कर्मियों को चेहरे देखकर वेतन का भुगतान किया जाता है, जिसमें किसी को पांच तो किसी को दस हजार वेतन भुगतान किया जाता है।
च. दो वर्ष हो गये पर किसी को भी नियुक्ति पत्र नहीं दी गयी।
छ. हाल ही में एक सप्ताह पूर्व बिना किसी सूचना के संवादकर्मियों का परीक्षा लिया गया, क्या बतायेंगे कि नियोक्ता ने यह परीक्षा किसके कहने पर और क्यों ली?
ज. भारत सरकार का आदेश है, जहां बड़ी संख्या में लड़कियों या महिलाओं का समूह कार्य करता है, वहां आंतरिक शिकायत समिति का होना जरुरी है, जिसका अध्यक्ष वहां कार्यरत वरीय महिलाकर्मी को बनाये जाने का प्रावधान है, पर आज तक सूचना भवन में मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में जहां बड़ी संख्या में लड़कियां कार्य करती है, वहां आंतरिक शिकायत समिति का गठन क्यों नहीं हुआ? ऐसे में लड़कियां किससे शिकायत करेंगी?
और अब सवाल सीधे मुख्यमंत्री रघुवर दास से...
मुख्यमंत्री रघुवर दास जी, क्या आपको याद है कि जब ३ मई २०१६ को रांची के सूचना भवन में जब मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र की पहली वर्षगांठ मनायी जा रही थी, तब जिन लड़कियों ने आपको मिठाई खिलाई थी, जिन्हें आपने शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया था, वह मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में आपके इस सम्मान देने के बाद एक महीने भी क्यों नहीं टिक पाई?
क्या आपको याद है कि आपके सचिव सुनील कुमार बर्णवाल ने यहीं पर कार्यरत प्रियंका पल्लवी के बारे में उस दिन आपके समक्ष क्या कहा था? मैं बता देता हूं, उन्होंने कहा था कि ये लड़की बहुत अच्छा काम कर रही है, फिर भी ऐसा क्या हुआ कि उस प्रियंका पल्लवी को एक महीने के अंदर ही बाहर जाने का रास्ता दिखा दिया गया। हमारे पास एक से एक प्रमाण है, जो बताने के लिए काफी है कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है, पर आपके अधिकारी इन सारी हरकतों से आंखें मूंदे है, मैं पूछता हूं, आखिर क्यों?
मेरे पास कई प्रमाण है, आइये दिखाता हूं मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र की हरकतें। आप कहते कि ७० प्रतिशत शिकायतों का निष्पादन हो गया, यह सफेद झूठ के सिवा दूसरा कुछ भी नहीं... आकड़ें बिठाकर, दिखाने में आप जो आगे निकलने की कोशिश कर रहे है, वो सहीं नहीं है, सच्चाई कुछ और ही है, ये आंकड़े कैसे बैठाये जा रहे है, वो हम जानते है... अगर ये लड़कियां कह रही है कि आंतरिक शिकायत समिति का गठन अब तक क्यों नहीं की गयी तो गलत क्या है? फिर भी आप कहेंगे कि आंतरिक शिकायत समिति का गठन किया गया है, तो मैं आपसे पूछता हूं कि उस महिला का नाम बताइये जो इसका अध्यक्ष बनी और अगर अध्यक्ष बनी है तो कब बनाई गयी?
यहीं नहीं आप जो श्रम कानूनों के सरलीकरण का ढिंढोरा पीटते है कि यहां श्रम सुधारों में झारखण्ड विश्व बैंक के मानकों के आधार पर प्रथम स्थान पर है तो आप ही बताइये कि आप ही के देखरेख में चलनेवाले मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत महिला संवादकर्मियों को अब तक नियुक्ति पत्र क्यों नहीं मिला?
एक तरह से देखा जाये तो इसके लिए आप भी दोषी है... ये अलग बात है कि आपके खिलाफ कोई नहीं बोलता और वह भी सिर्फ इसलिए कि जो लोग गलत कर रहे है, वे आपसे अनुप्राणित है, अनुप्राणित होनेवाले वे सारे लोग है जो किसी न किसी रुप से आपसे कुछ न कुछ प्राप्त कर रहे है, चाहे प्रत्यक्ष रुप से या अप्रत्यक्ष रुप से। जरा देखिये, यहां के मीडिया को चाहे वह प्रिट हो या इलेक्ट्रानिक मीड़िया, सभी इस समाचार को खा-पका गये, क्योंकि मामला मुख्यमंत्री से जुड़ा है, क्योंकि मामला विज्ञापन से जुड़ा है, क्योंकि मामला मुख्यमंत्री से पत्रकारों के मधुर संबंधों का है... और ये हरकतें राज्य के लिए शर्मनाक है... अरे जब बेटियां मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में अपमानित महसूस कर रही है तो अन्य जगहों पर इन बेटियों का क्या होता होगा, समझने की जरुरत है, अरे जब मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत महिलाओं-बेटियों को सम्मान नहीं, तो हम ये कैसे समझ लें कि बुटी में जिस लड़की की दुष्कर्म के बाद नृशंस हत्या हुई, उसके अपराधियों को पकड़ने में रांची पुलिस सफल हो जायेगी। अरे ये तो सीबीआई को जैसे ही मामला दिया गया, उसी दिन पता चल गया कि यहां की सरकार कैसे और किस प्रकार शासन कर रही है? फिर भी, इतना होने के बावजूद, उन दो लड़कियों को सलाम, जिसने मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में हो रहे गड़बड़ियों पर समाज का ध्यान आकृष्ट कराया और अपनी बातें हर जगह पहुंचाने की कोशिश की... ये अलग बात है कि रांची से प्रकाशित करीब सारे अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोगों ने इनकी आवाज अनसुनी कर दी... इन लड़कियों की आवाज को वे जगह देंगे भी कैसे, जो स्वयं भ्रष्टाचार की गंगोत्री में स्नान कर रहे है, वे क्या किसी की मदद करेंगे?

Friday, January 13, 2017

ये “दंगल” बहुत कुछ कह रहा है..............

ये “दंगल” बहुत कुछ कह रहा है...
कह रहा है – अब अच्छी फिल्मों के दौर फिर से शुरु होंगे। “नदिया के पार”, “हम आपके है कौन” के बाद जो रिक्तिता आ गयी थी, वो अब खत्म होनेवाला है। हमारे देश में एक प्रकार का दौर चलता है। कोई फिल्म जो सुपरहिट होती है, उसके सुपर हिट होने के बाद, ठीक उसी प्रकार की फिल्म बननी शुरु हो जाती है, अगर ऐसा होता है तो देशहित व समाजहित में एक प्रकार से क्रांति संभव है। बहुत दिनों के बाद “दंगल” फिल्म देखने को मिली, जिसे देखने के लिए पूरा समाज विभिन्न मल्टीप्लेक्सों व छविगृहों के चक्कर लगा रहा है। फिल्म टैक्स फ्री नहीं है, फिर भी इसे देखनेवालों की भीड़ खूब यहां दिखाई पड़ रही है। हाल ही में क्रिकेटर धौनी को केन्द्र में रखकर एक और फिल्म बनी थी – “धौनी – ए अनटोल्डस स्टोरी” और अब एक और फिल्म जल्द ही देखने को मिलेगी जो सचिन तेंदुलकर के जीवन पर आधारित है। फिल्म का नाम है - “ए बिलियन ड्रीम्स”। सचमुच अगर ऐसी फिल्म बननी शुरु हुई तो समाज पर उसका असर पड़ना तय है, क्योंकि फिल्मों का हमारे जीवन पर असर खूब पड़ता है... और अब हम बात कर रहे है, फिल्म “दंगल” की। आखिर “दंगल” में क्या है? कुछ दिन पूर्व सायं समय जयपुर की वरिष्ठ पत्रकार मोनालिसा ने मेरे मोबाइल पर फोन किया। सर, आपकी बहुत याद आ रही है। मैंने पूछा – क्यों? तब उसने कहा कि सर मैंने अभी फिल्म दंगल देखी है। उस फिल्म में जैसे एक पिता ने अपनी दोनों बेटियों को बेहतर बनाने के लिए दुनिया से लड़ाइयां लड़ी, ठीक उसी प्रकार आप हमें बेहतर बनाने के लिए लोगों से लड़ जाया करते। मोनालिसा का ये कहना था कि मैंने सोचा कि मुझे यह फिल्म देखनी चाहिए, तभी मेरे बेटे सुधांशु ने नई दिल्ली से मेरे और अपनी मां के लिए ऑनलाइन टिकट बुक कर दी और मैं एक जनवरी को ग्लिट्ज में पिक्चर देखने के लिए पहुंचा। पूरी फिल्म देखने के बाद, हमारे मुख से वाह निकल गयी। क्या नहीं था – इस फिल्म में। इस फिल्म ने बताया है कि एक पिता को अपने सपनों को पूरा करने के लिए किस प्रकार की योजना बनानी चाहिए।
इस फिल्म ने बताया कि ईश्वर सबको मौका देता है, बस उस मौके को लाखों में कोई एक ही पहचान पाता है। इस फिल्म ने बताया है कि मिथक तोड़िये कि जो काम बेटे कर सकते है, वे बेटियां नहीं कर सकती। इस फिल्म ने बताया है कि एक बेहतरीन फिल्मों से भी अच्छी कमाई की जा सकती है। बशर्ते कि बेहतरीन फिल्म, समाज को सुदृढ़ करने, सशक्त करने, संदेश देने के लिए बनाये जाये। इस फिल्म ने बताया है कि राष्ट्रभक्ति क्या है? याद करिये, फिल्म समाप्त हो रहा है, फिल्म अभिनेता आमिर खान कमरे में बंद है, राष्ट्रीय धुन बज रहा है, कानों तक वह धुन पहुंची है, बड़ी शान से खड़ा होकर वे राष्ट्रीय धुन को सम्मान दे रहे है, और उन्हीं के साथ फिल्म देख रहे, सारे लोग उनके साथ खड़े हो जाते है, यहां सारी जातियां व धर्म दोनों समान रूप से राष्ट्रीय धुन के सम्मान में खड़े हो रहे है...
अगर फिल्में ऐसी बनेंगी तो देश बनेगा, समाज बनेगा... खुशी इस बात की है, अब ऐसी फिल्मों के बनने का दौर शुरु हो रहा है। जल्द ही सचिन की “ए बिलियन ड्रीम्स” आयेगी। लोग देखने जायेंगे। चरित्र और संस्कार का सुंदर समन्वय इन फिल्मों में देखने को मिलेगा। अपना देश मजबूत होगा... और क्या चाहिए हमें। आमिर खान और उनकी पूरी टीम, जिन्होंने “दंगल” बनायी, उनकी प्रशंसा होनी चाहिए। इस फिल्म के माध्यम से एक संदेश उन फिल्म निर्माताओं को भी मिला है, जो ये कहते है कि अब अच्छी फिल्में लोग देखना नहीं चाहते है। उनके लिए एक ही जवाब – गर फिल्म अच्छा बनाओगे तो लोग देखेंगे... उसका प्रचार आम जनता स्वयं करेगी... जरा देखो, आमिर खान ने अपनी बहुत सारी फिल्मों को खूब प्रचार – प्रसार किया है, पर “दंगल” का प्रचार तो आम जनता ने खुद ही शुरु कर दिया, जो भी देख रहा है, वो अपने लोगों को कह रहा है कि आप “दंगल” देखिये और अपनी बेटियों से प्यार करिये, साथ ही एक बेहतर पिता भी बनिये, ठीक “दंगल” वाले आमिर खान जैसा...

Monday, January 9, 2017

खादी मेला और वो 4000 रुपये............

खादी मेला समाप्त हो चुका है। कल ही समापन के दिन, मैं और अरुण श्रीवास्तव मेला का परिभ्रमण करने पहुंचा। परिभ्रमण के दौरान पाया कि मेले के अंतिम दिन भारी भीड़ थी। लाखों की संख्या में लोग अपने परिवार के साथ मेले का आनन्द लेने पहुंचे थे। मेरी धर्मपत्नी भी कहीं थी कि खादी मेला मैं भी देखना चाहती हूं, पर समयाभाव के कारण मैं उन्हें मेला नहीं दिखा सका। मेले में खरीदार से लेकर दुकानदार तक प्रसन्न दीखे। अच्छी कारोबार हुई, सुनने को मिला। नोटबंदी का असर इस मेले में न के बराबर दिखा। आयोजकों ने अच्छी व्यवस्था की थी, जिस कारण यहां कहीं कोई दिक्कत किसी को नहीं हुई। इसके लिए सचमुच संजय सेठ की टीम बधाई के पात्र है। बधाई दीपंकर पांडा को भी क्योंकि इनकी भी भूमिका सराहनीय ही रही।
खादी मेला घूम ही रहा था कि एक दृश्य मेरे सामने से घूम गई। यह दृश्य था, जब मैं ईटीवी छोड़ने के बाद मौर्य से जुड़ा था और पांच महीने में ही मौर्य से नाता तोड़कर घर में बैठ गया था। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उस वक्त छोटा बेटा हिमांशु मारवाड़ी कॉलेज का छात्र था और नाट्य विधा से जुड़ा था। खादी मेले में शतरूपा नाटक करने के लिए दिल्ली से टीम आई थी। शतरूपा नाटक में भाग लेने के लिए स्थानीय कलाकारों को भी शामिल किया गया था, जिसमें गीत तथा नाटक प्रभाग की रांची टीम नें मुख्य भूमिका निभाई थी। शतरूपा नाटक में हिमांशु को दिल्ली से आई टीम ने कहा था कि उसमें उसे कुछ लीड रोल देंगे, पर उसे लीड रोल नहीं मिली। उसे लीड रोल नहीं मिली उसका मूल कारण भ्रष्टाचार था, जिसे लेकर हिमांशु ने प्रतिवाद भी किया था, और उसकी दिलचस्प कहानी उसने हमें बतायी थी। अंततः उसे सामान्य रोल में ही जगह मिली, पर हिमांशु ने सिद्ध किया कि उसे लीड रोल मिले या न मिले, पर वह अपनी भूमिका से नाटक देखनेवालों को अपनी ओर खीचने में जरुर कामयाब होगा।
तभी गांधी के नमक सत्याग्रह के आंदोलन का नाटक का मंचन होना था, हिमांशु को उसमें सामान्य सत्याग्रही का रोल मिला, जो आंदोलन में शामिल था, उसने नेत्रहीन का रोल किया और अपने एक साथी को विकलांग के रुप में चलने को कहा, अंततः लोगों को नेत्रहीन हिमांशु का रोल इतना अच्छा लगा कि नाटक देख रहे मेरे बड़े बेटे सुधांशु ने खादी मेले से ही हमें फोन कर सूचित किया कि पापा जी, हिमांशु तो बहुत अच्छा रोल किया है, दर्शक दीर्घा में लोग उसकी खूब तारीफ कर रहे है। दूसरे दिन अखबारों में उसके फोटो भी छपे, देखकर अतिप्रसन्नता हुई।
इसी बीच कुछ और उसे छोटे रोल मिले। तबियत खराब थी, वह खूले आकाश के नीचे अपने छोटे-छोटे रोल को ईमानदारी से मंचित करने में लगा था। मैं एक बार उसकी नाटक देखने भी गया, उसे छोटे से बौद्धभिक्षु के रोल में देखकर, हमें अच्छा लगा। मैंने कहा था कि रोल कोई भी छोटा नहीं होता, अगर वह ईमानदारी से किया जाय। खादी मेला का समापन हो चुका था, दूसरे दिन उसे चार हजार रुपये नाटक में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए मिले थे। वह चार हजार रुपये लेकर दौड़ता हुआ आया और कहा कि पापा जी ये चार हजार रुपये आपके। वो चार हजार रुपये हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण थे, वो सिर्फ मैं और मेरा बेटा हिमांशु और सुधांशु ही जानता था, दूसरा कोई नहीं...
मोरहाबादी में जब – जब खादी मेला लगता है, मुझे ये परिदृश्य स्वतः नजर आते है, शायद याद दिलाते है, मेरे छोटे से बेटे की उस दृढ़इच्छा शक्ति की, अभिनय के प्रति सम्मान की, साथ ही पितृभक्ति की...

Saturday, January 7, 2017

भला हाथी भी कहीं उड़ता है.......

ये हाथी कभी नहीं उड़ेगा, चाहे धौनी जितना भी उड़ाने का प्रचार क्यों न कर लें... धौनी चाहे जिस भी मिट्टी के बने हो, पर हमारा हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान की महक के रुप में जाना जानेवाला झारखण्ड अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं जानता और न ही ऐसे सपने देखता है, जो सपने कभी पूरे ही न हो...
झारखण्ड बढ़ेगा, अवश्य बढ़ेगा पर पंखों वाला हाथी से नहीं, बल्कि झारखण्ड के करोड़ों मेहनतकश-मजदूरों और उनके मजबूत इरादों और बुलंद हौसलों से... न कि परछाइयों के शहरों में रहनेवालों से...
धौनी कल क्रिकेट खेलते थे, बाद में विज्ञापनों से खेलने लगे, एक मोटरसाइकिल का प्रचार करते थे, कहते थे मैं तो दूध पीता हूं, ये तो कुछ भी नहीं पीता, फिर भी दौड़ता रहता है... बाद में हमारे धौनी दारु का भी प्रचार करने लगे, उस दारु का, जिसका प्रचार आज तक क्रिकेट के भगवान माने जानेवाले भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने नहीं किया...
ऐसे धौनी को राज्य सरकार ने मोमेंटम झारखण्ड का ब्रांड एंबेसडर बनाया है, इसका फायदा राज्य सरकार को कितना मिलेगा, ये तो वक्त बतायेगा, पर राज्य को नुकसान होना तय है... हम तो एक ही बात जानते है, कि गांधी ने ग्राम स्वराज्य की परिकल्पना की थी... बार-बार गांधी की बात करनेवाली सरकार, उनके 150 वीं जयंती पर स्वच्छता अभियान की बात करनेवाली सरकार, उनके मूल वक्तव्य ग्राम स्वराज्य से भटक रही है और जिन विदेशियों को गांधी ने देश से बाहर किया, उन विदेशियों को पुनः भारत में लाने का हर प्रकार का नौटंकी कर रही है... जिसमें केन्द्र से लेकर राज्य सरकार भी शामिल है... संघ जिसकी राजनीतिक इकाई भाजपा है, वह भी इस हथकंडे से तौबा करती है, और ग्राम स्वराज्य-स्वदेशी की परिकल्पना को साकार करने की बात करती है, पर इन सबसे दूर, राज्य और केन्द्र सरकार ने पूंजी निवेश के नये तरीके ईजाद कर स्थिति ऐसी कर दी है जैसे लगता है कि बिना पूंजी निवेश के राज्य व देश आगे बढ़ ही नहीं सकता...
क्या ऐसे हालात में आप धौनी के इस अपील को स्वीकार करेंगे कि - " ये हाथी उड़ेगा, और झारखण्ड इंडिया का नंबर वन इंवेस्टमेंट डेस्टिनेशन बनेगा। अब सवाल ये है क्या आप हमारे साथ होंगे?" मैं तो भाई, साफ-साफ कह देता हूं कि धौनी के इस बयान के साथ मैं तो नहीं हूं, क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि हाथी उड़ता नहीं है...

Friday, January 6, 2017

सभी को मेरा प्रणाम स्वीकार हो..........

4 जनवरी 2017 को मैंने फेसबुक पर अपना स्टेटस डाला -
“आज मेरा सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में अंतिम दिन है...सभी को मेरा प्रणाम स्वीकार हो...”
जिसे हमारे फेसबुक के मित्रों ने जिनकी संख्या 251 है, अब तक लाइक किया है, इनमें आठ दुखी है, जबकि दो परमानन्दित है, कई लोगों ने अपने कमेंट्स में हमसे इस संबंध में सवाल पूछे है, कई ने अपनी भावनाओं को नाना प्रकार से हमारे समक्ष रखा है। कुछ लोगों ने हमारे मोबाइल पर हमसे पूछ डाला कि आखिर ऐसा क्यूं?, आज भी कुछ लोग हमसे मिलने आये, कि आखिर क्यूं?, हमें लगता कि हमें सभी के प्रश्नों का जवाब दे देना चाहिए, इसलिए सर्वप्रथम हम उन सभी महानुभावों का हृदय से आभार प्रकट करते है, जिन्होंने हमसे सवाल किये...
और अब सवाल का जवाब...
उत्तर दीर्घउत्तरीय है, इसलिए ध्यान से पढ़े...
ऐसे तो हमें कोई बांध कर नहीं रख सकता, सिवाय ईश्वर के...
मैं ईश्वर का गुलाम हूं, वो मुझे जहां चाहे, वहां रखे...
ऐसे भी मैं इस दुनिया में उसी के द्वारा भेजा गया हूं, इसलिए हमारा ख्याल उसे ही रखना होगा...
मैं उससे झगड़ भी नहीं सकता कि वो हमें ऐसा क्यों बनाया कि मैं ज्यादा दिनों तक कहीं टिकता ही नहीं...
अगर मैं कहीं ज्यादा टिका हूं, तो वह है ईटीवी जहां करीब पौने नौ साल कार्य किये, वह भी गुंजन सिन्हा जैसे लोगों के कारण, हालांकि उनसे भी हमारी जबर्दस्त मुठभेड़ उस दौरान हुई, और मुठभेड़ कराने में वे लोग उस दिन ज्यादा सक्रिय थे, जिन्हें हमें रांची में दीखने में बहुत ज्यादा कष्ट होता था, हालांकि इसका लाभ उन्होंने उठाया...
इसके पूर्व दैनिक जागरण में धनबाद व मोतिहारी में भी योगदान दिया था, दैनिक जागरण में मात्र डेढ़ साल रहा, वहां हमें पत्रकारिता का गूढ़ रहस्य देखने को मिला, सारी पत्रकारिता संबंधी भ्रांतियां और तथाकथित मूल्य पहली बार वहीं धूल-धूसरित दीखे...
इसके पूर्व अनुमंडलीय संवाददाता के रूप में थोड़े दिन प्रभात खबर, हिन्दुस्तान, आर्यावर्त, आज और इसके पूर्व आकाशवाणी पटना में आकस्मिक उद्घोषक के रुप में भी योगदान दिया...
इधर ईटीवी छोड़ने के बाद मौर्य टीवी से जुड़ा, जहां मात्र पांच महीने ही रहा, जहां पत्रकारिता जगत के महान विभूतियों की लीलाएं देखी। बाद में न्यूज 11, कशिश, जीटीवी, न्यूज इंडिया से भी जूड़ा और यहां भी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका।
शायद यहीं कारण रहा कि धनबाद के एक अनन्य मित्र हरि प्रकाश लाटा जी ने लिखा कि “हम सोच रहे थे इस बार तो आपका रिकार्ड टूटेगा। आप यहां टिकेंगे। आपके पैरों के एड़ी के आसपास कोई तिल है क्या? जरा देखिएगा तो। हमारी शुभकामनाएँ। वैसे भी ईश्वर की तो असीम कृपा है आप पर !”
जो लोग मुझे जानते है, सो जानते है, कुछ लोग जो हमें जानने का दिखावा भी करते है, और जब उनके म्यानों में नहीं फिट बैठता हूं तो फिर वो अपने ढंग से हमें एवार्ड दे देते है, मुझे इसकी परवाह भी नहीं होती, क्योंकि मैं जो भी कुछ बोलता हूं, करता हूं...डंके की चोट पर बोलता हूं व करता हूं...
क्योंकि मुझे न तो कल सुख की लालसा थी और न आज ही है...
मुझे अपने ईश्वर पर पूरा भरोसा है, वो मुझे हर अवस्था में जो मुझे चाहिए, इतनी व्यस्तताओं के बावजूद हम तक पहुंचा देता है...
और अब बात आइपीआरडी की...
19 जून 2015 को मैं घर पर बैठा था कि आइपीआरडी के निदेशक अवधेश कुमार पांडेय जी का फोन आया, कि एक किताब तैयार करनी है, राज्य सरकार के लिए। उसमें मैं सहयोग करूं। अवधेश कुमार पांडेय जी हमको पटना से जानते थे, जब मैं वहां अनुमंडलीय संवाददाता के रूप में कार्य करता था। चूंकि मैं घर पर बैठा था, आइपीआरडी आकर उनसे मिला। किताब तैयार हो गयी। इसी बीच उन्हें एक व्यक्ति की तलाश थी, कि जो सरकार के विज्ञापनों और सरकार के कई क्रियाकलापों को जन-जन तक पहुंचाने में संचार के विभिन्न आयामों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। उसमें मैंने ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई, पर जैसे-जैसे दिन बीतते गये, मैं कई लोगों को खटकने लगा। कई लोगों ने हमारी झूठी शिकायत मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके आस-पास रहनेवाले महानुभावों को विभिन्न तरीकों से पहुंचाई। उन्होंने हमारे ब्लॉग और फेसबुक में सरकार के विरूद्ध लिखी गई बातों का हवाला दिया। इनमें मुख्य भूमिका आईपीआरडी के असंतुष्ट अधिकारियों की भी थी, जो काम तो कुछ नहीं किया करते पर शिकायत का पुलिंदा लेकर मुख्यमंत्री आवासीय सचिवालय में कार्यरत सीएम के खास लोगों तक जरूर पहुंचाते।
जिसके कारण मुझे 5 जनवरी 2016 को मुख्यमंत्री सचिवालय तलब किया गया। जहां मैंने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी, कि मैं अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता। इसी बीच मैं काम करता रहा, लोगों ने अपनी आदतें नहीं छोड़ी, वे अपना काम करते रहे, और मैं ईमानदारी से जो काम मिलता करता रहा।
आज मुझे गर्व है कि यहां मात्र डेढ़ साल में, ईश्वर ने मुझसे वह काम कराया, जिसका मुझे विश्वास ही नहीं था। ईश्वर ने हमसे बहुत ही शानदार कार्य कराये है, जो झारखण्ड के लिए मील का पत्थर साबित हो रही है... वो क्या है? इसके बारे में मैं कुछ भी लिखना, यहां नहीं चाहता, ये तो वक्त बतायेगा?
इसके लिए मैं आभारी हूं, निदेशक – अवधेश कुमार पांडेय जी का, जिन्होंने मुझसे इतना बढ़िया काम करा लिया।
अंततः चूंकि मुझे अवधेश कुमार पांडेय ने ही आइपीआरडी के लिए नियुक्त किया था। राज्य सरकार ने उनकी जगह अब राजीव लोचन बख्शी को नया निदेशक नियुक्त किया है, ऐसे में मुझे अब यहां रहना उचित नहीं लगता, क्योंकि मुझे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने तो रखा नहीं और नहीं उनके मातहत किसी ने मुझे आईपीआरडी के लिए नियुक्त किया है और नहीं कोई मेरे पास कोई ऐसा पत्र है, जिसके आधार पर मैं ये कह सकूं कि मैं आईपीआरडी का सदस्य हूं। इसलिये नीति कहती है कि अब मुझे यहां नहीं रहना चाहिए, और न ही रहूंगा। अब मैं पूर्णतः स्वतंत्र हूं।
अब मैं खुलकर लिखूंगा, जनहित में लिखूंगा...
किसी की परवाह नहीं...
देखते है, अब ईश्वर, मुझे कहां ले जाता है...
जहां भी ले जायेगा, मुझे उसकी हर आज्ञा मंजूर है, क्योंकि मैं आज जो भी हूं उसी की कृपा से तो हूं...